Sunday 5 June 2022

फर के अगोरा म वृक्षारोपण* *व्यंग्यकार* *त्रिभुवन पांडेय*

 छत्तीसगढ़ी अनुवाद पढ़व 




*फर के अगोरा म वृक्षारोपण*


       *व्यंग्यकार* 

*त्रिभुवन पांडेय* 

                                                

                   


अनुवादक - दुर्गा प्रसाद पारकर



                          आजादी मिले के बाद हमन फर के अगोरा करत रेहेन, फेर इही बीच पता चलिस कि पेड़ गायब होगे हे। अब हालत ए हे कि उपलब्धि मन के फर गायब करे के बाद पेड़ लगाए बर ढिंढोरा पिटत हे। लोगन सुन के हैरान हे। एक पीढ़ी आजादी के पौधा मन ला लगाए म न्योछावर होगे फेर देश के हालत अभी घलो बंजर भुंइया कस चातर हे। लोगन तो फर के संगे–संग पेड़ ला घलो काट के लेगे। जउन डाहर देखो उही डाहर हरिहर छत्तीसगढ़ के कार्यक्रम ह जोर - शोर ले चलत हे। कुछ अइसने मनखे मन पेड़ लगावत हे जउन ह आजादी के पहिली घलो वृक्षारोपण करे रिहिन भलेे वो पेड़ मन के अभी कोनो अता–पता नइहे। आजादी के बाद उपलब्धि मन के आंकड़ा ह मनखे मन करा रही गे। फर अउ पेड़ ह तस्कर अउ बांट के खवइया मन के हिस्स मा चले गे । आजादी के पहिली राष्ट्रभक्ति के जउन बढ़िया पर्यावरण बने रिहिसे वोहा धीरे–धीरे मइलात गे। आजादी के पहिली हमर करा भगतसिंह, राजगुरू, बिस्मिल, सुखदेव जइसे जोरदार फरदार पेड़ रिहिसे। आजकाल हमर करा बेइमानी भ्रष्टाचार जइसे नागफनी के पौधा हा आाजादी के हरियाली के बदला मा मिले हे। अइसन मा पर्यावरण के फिकर करना स्वाभाविक हेे। जउन हा देश के भविष्य ल जानत रिहिसे वोहा बहुत पहिली लिख दे रिहिसे जउन हा त्याग करही वोहा पाही। जउन हा फर के आशा म करम करही वोहा निराश होही। आजादी के बाद देश उही अमरवाणी ला जीयत हे। नेता मंत्री पद तियागथे ताहने राजदूत के पद पाथे। संगठन के पद छोडथे ताहने वोला तुरते निगम अध्यक्ष के पद मिल जाथे। जनता करम करथे फेर वोहा फर बर चुक जाथे। फर हा बड़े–बड़े बंगला म बइठे रोबदार मन करा पहुंच जथे। उमन जनता के उदारता के बढ़ई करत कभू नइ थके। उमन बिना स्वार्थ कर्मयोग उपर राष्ट्रीय परिचर्चा आयोजित करथें, अउ उमन आशा करथें कि मनखे मन बिना कोनो लालच के देश के सेवा म जुटे रही। अगस्त के पर्यावरण दिवस म हम्मन सिरिफ दुए ठन बूता करथन। आजादी के बखत लगाये गे रूख मन के सुरता करथन अउ लगाए रूख बर गोहराथन। फर के चिंता के जिम्मेदारी तो दूसर मन के आय। हमर बूता आय हर बार कटाय पेड़ के जघा म नवा पेड़ लगाना अउ पेड़ मन के देखभाल करना, अउ जब पेड़ ह तइयार हो जय ताहन फर ला टोरे बर दूसर मन के हाथ सौंप देना। रूख लगाना हमर नियति आय अउ फर ला टोर के आपस म बंटई उंकर राजनीति आय। उमन रूखराई के बदला फर के हिसाब राखथें। जउन डारा म फर लगे ल धरथे वो डारा के मालिकाना हक उमन अपन अधिकार म ले लेथें। आजादी के पहिली जउन रूख लगाए गे रीहिसे वोहा ओजादी के चार दसक तक काम आवत रिहिस। आज जउन वृक्ष लगाए जात हे वोहा आज ले पचास साल बाद के तस्कर मन के अउ बेवस्था के हिस्सेदार मन के काम आही। पहिली बिना स्वार्थ भाव ले रूख लगाए जात रीहिस। आजकाल पइसा बचाय बर योजना म फायदा बर रूख लगाए जाथे। आजकाल पेड़ लगाए बर कतनो प्रायवेट योजना गजट मा छपत रईथे। आप कोनो जगा राहव सिरिफ एकेट्ठा रकम पठो देव ताहन आपके नाव ले रूख लग जही। समाज अउ देश के खातिर जियइया मन के समय बीत गे। उंकर लगाए पेड़ ला काटे गिस अब अइसन मनखे हे जिंकर मन बर लाभ सबले ऊंचा आय। बिना स्वार्थ के राष्ट्र सेवा करे के दिन चले गे। आजकाल इही बातय योजना ले राष्ट्र सेवा चलत हे। भ्रष्ट्राचार अउ साम्प्रदायिकता रूख ह अतका जल्दी उल्होथे कि वोेला कतेनो काटो तभो इंकर जंगल हा हरिहरे–हरिहर दिखथे। ठीक एकर उल्टा राष्ट्रीय एकता के पौधा ल कतनो सावधानी ले लगाबो, उग्रवाद अउ क्षेत्रीयवाद के जानवर ह देखत वोला रउंद डरथे। राष्ट्र के उन्नति खातिर एक सुग्घर पौधा लगाते भार ओकर चारों कोति राष्ट्र विरोधी अनगिनत बेसरम मन के पौधा मन बहुत जल्दी जाग जथे। कोनो भी नेक बिचार ल इंकर मन ले बचा के रखना मुश्किल हो जथे। फर नइ मिले के बाद घलो वृक्षारोपण अभियान म लगे मनखे मन के विषय म इही केहे जा सकत हे कि वोमन आजादी के परम्परा के सच्चा अनुयायी आय जउन देश सेवा करत कोनो फर के आशा नइ करय। देश भक्त मन के संख्या आजादी के बाद जउन रफ्तार म बाढ़े हे वो आघू अउ बाढ़े के संभावना हे....।दुर्गा प्रसाद पारकर*


                          आजादी मिले के बाद हमन फर के अगोरा करत रेहेन, फेर इही बीच पता चलिस कि पेड़ गायब होगे हे। अब हालत ए हे कि उपलब्धि मन के फर गायब करे के बाद पेड़ लगाए बर ढिंढोरा पिटत हे। लोगन सुन के हैरान हे। एक पीढ़ी आजादी के पौधा मन ला लगाए म न्योछावर होगे फेर देश के हालत अभी घलो बंजर भुंइया कस चातर हे। लोगन तो फर के संगे–संग पेड़ ला घलो काट के लेगे। जउन डाहर देखो उही डाहर हरिहर छत्तीसगढ़ के कार्यक्रम ह जोर - शोर ले चलत हे। कुछ अइसने मनखे मन पेड़ लगावत हे जउन ह आजादी के पहिली घलो वृक्षारोपण करे रिहिन भलेे वो पेड़ मन के अभी कोनो अता–पता नइहे। आजादी के बाद उपलब्धि मन के आंकड़ा ह मनखे मन करा रही गे। फर अउ पेड़ ह तस्कर अउ बांट के खवइया मन के हिस्स मा चले गे । आजादी के पहिली राष्ट्रभक्ति के जउन बढ़िया पर्यावरण बने रिहिसे वोहा धीरे–धीरे मइलात गे। आजादी के पहिली हमर करा भगतसिंह, राजगुरू, बिस्मिल, सुखदेव जइसे जोरदार फरदार पेड़ रिहिसे। आजकाल हमर करा बेइमानी भ्रष्टाचार जइसे नागफनी के पौधा हा आाजादी के हरियाली के बदला मा मिले हे। अइसन मा पर्यावरण के फिकर करना स्वाभाविक हेे। जउन हा देश के भविष्य ल जानत रिहिसे वोहा बहुत पहिली लिख दे रिहिसे जउन हा त्याग करही वोहा पाही। जउन हा फर के आशा म करम करही वोहा निराश होही। आजादी के बाद देश उही अमरवाणी ला जीयत हे। नेता मंत्री पद तियागथे ताहने राजदूत के पद पाथे। संगठन के पद छोडथे ताहने वोला तुरते निगम अध्यक्ष के पद मिल जाथे। जनता करम करथे फेर वोहा फर बर चुक जाथे। फर हा बड़े–बड़े बंगला म बइठे रोबदार मन करा पहुंच जथे। उमन जनता के उदारता के बढ़ई करत कभू नइ थके। उमन बिना स्वार्थ कर्मयोग उपर राष्ट्रीय परिचर्चा आयोजित करथें, अउ उमन आशा करथें कि मनखे मन बिना कोनो लालच के देश के सेवा म जुटे रही। अगस्त के पर्यावरण दिवस म हम्मन सिरिफ दुए ठन बूता करथन। आजादी के बखत लगाये गे रूख मन के सुरता करथन अउ लगाए रूख बर गोहराथन। फर के चिंता के जिम्मेदारी तो दूसर मन के आय। हमर बूता आय हर बार कटाय पेड़ के जघा म नवा पेड़ लगाना अउ पेड़ मन के देखभाल करना, अउ जब पेड़ ह तइयार हो जय ताहन फर ला टोरे बर दूसर मन के हाथ सौंप देना। रूख लगाना हमर नियति आय अउ फर ला टोर के आपस म बंटई उंकर राजनीति आय। उमन रूखराई के बदला फर के हिसाब राखथें। जउन डारा म फर लगे ल धरथे वो डारा के मालिकाना हक उमन अपन अधिकार म ले लेथें। आजादी के पहिली जउन रूख लगाए गे रीहिसे वोहा ओजादी के चार दसक तक काम आवत रिहिस। आज जउन वृक्ष लगाए जात हे वोहा आज ले पचास साल बाद के तस्कर मन के अउ बेवस्था के हिस्सेदार मन के काम आही। पहिली बिना स्वार्थ भाव ले रूख लगाए जात रीहिस। आजकाल पइसा बचाय बर योजना म फायदा बर रूख लगाए जाथे। आजकाल पेड़ लगाए बर कतनो प्रायवेट योजना गजट मा छपत रईथे। आप कोनो जगा राहव सिरिफ एकेट्ठा रकम पठो देव ताहन आपके नाव ले रूख लग जही। समाज अउ देश के खातिर जियइया मन के समय बीत गे। उंकर लगाए पेड़ ला काटे गिस अब अइसन मनखे हे जिंकर मन बर लाभ सबले ऊंचा आय। बिना स्वार्थ के राष्ट्र सेवा करे के दिन चले गे। आजकाल इही बातय योजना ले राष्ट्र सेवा चलत हे। भ्रष्ट्राचार अउ साम्प्रदायिकता रूख ह अतका जल्दी उल्होथे कि वोेला कतेनो काटो तभो इंकर जंगल हा हरिहरे–हरिहर दिखथे। ठीक एकर उल्टा राष्ट्रीय एकता के पौधा ल कतनो सावधानी ले लगाबो, उग्रवाद अउ क्षेत्रीयवाद के जानवर ह देखत वोला रउंद डरथे। राष्ट्र के उन्नति खातिर एक सुग्घर पौधा लगाते भार ओकर चारों कोति राष्ट्र विरोधी अनगिनत बेसरम मन के पौधा मन बहुत जल्दी जाग जथे। कोनो भी नेक बिचार ल इंकर मन ले बचा के रखना मुश्किल हो जथे। फर नइ मिले के बाद घलो वृक्षारोपण अभियान म लगे मनखे मन के विषय म इही केहे जा सकत हे कि वोमन आजादी के परम्परा के सच्चा अनुयायी आय जउन देश सेवा करत कोनो फर के आशा नइ करय। देश भक्त मन के संख्या आजादी के बाद जउन रफ्तार म बाढ़े हे वो आघू अउ बाढ़े के संभावना हे....।

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