Saturday 25 June 2022

पुस्तक समीक्षा(चेतना के स्वर- डॉ पी सी लाल यादव)- पोखनलाल जायसवाल


 

पुस्तक समीक्षा(चेतना के स्वर- डॉ पी सी लाल यादव)- पोखनलाल जायसवाल

*साँस्कृतिक चेतना के स्वर 'लोक-मंगल' लोक-मंगलकारी हे*


      छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य ह अगास म चमकत चंदैनी मन सहीं इहाँ के लोक जीवन म चारों मुड़ा बगरे हे। इहाँ के लोक साहित्य लोक परंपरा, लोककथा, लोकगीत अउ लोकगाथा के रूप म बड़ समृद्ध हे। ए लोक साहित्य जुन्ना बेरा ले मुअखरा लोकजीवन के गंगा म सरलग तउँरत हे। बिन बाधा के आगू बढ़ते जावत हे। परंपरा अउ संस्कृति ल सजोर करे के बूता भाषा के आय। भाषा चूँकि लिपि बद्ध होके कोनो जिनिस ल नवा जिनगी देथे। लम्बा जिनगी देथे। भाषा पहलीच ले वाचिक/मुअखरा परंपरा ले पोठ होवत आगू बढ़े हे। फेर लिपिबद्ध होके एहर सांस्कृतिक चेतना ल अउ सजोर करथे। अइसने ढंग ले छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति अउ लोक साहित्य ल डॉ. पीसी लाल यादव मन पहिचान तो दे हें, ओला ठाड़ होय के मउका घलव दे हावँय। डॉ. पीसी लाल यादव छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य के मरम ल बड़ गहिर ले जानथें। ओला लोकसाहित्य के पोषइया कहे जाय, त एहर कोनो नवा बात नइ होही। उन मन बड़ गंभीर अउ गहिर ले लोक संस्कृति अउ परंपरा मन के अध्ययन करे हें। एकक तिनका ल सहेजे के उदिम करें हें। उँखर ऊप्पर शोध कर के कतको लेख लिखें हें अउ इहां के जम्मो साँस्कृतिक अस्मिता ल सहेजे के उदिम अउ बड़ जतन करें हें। अइसन श्रमसाध्य के बूता कोनो पालक दरी ही संभव हे। 'लोक मंगल' नाँव के अपन किताब ले डॉ. पीसी लाल यादव मन छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक मूल्य मन ल संरक्षित करे हें। एकर संग पाश्चात्य संस्कृति कोती दउड़त-भागत लोगन अपन संस्कृति ल मानँय, एकर बर बड़का बूता करे हें। जब वोमन पाश्चात्य संस्कृति ले असकटा के अपन अस्मिता कोती लहुँटही, त मानवीय मूल्य आधारित अपन अस्तित्व ल खोजत भटकहीं, 'आव अब लौट चलिन' सोचहीं त ओमन बर लोक साहित्य के इही किताब एक ठन आसरा रइही। जेन म सिरिफ छत्तीसगढ़ी हाना, जनौला लोकगीत, लोकपरंपरा अउ लोकगाथा के जानकारी नइ हे, बल्कि जिनगी म सामाजिकता के महत्तम ल बतावत मानवीय मूल्य मन ल सहेज के लिखे लेख हवँय।

           आज के भागदौड़ भरे जिनगी मनखे ल कुरिया भीतरी समेट दे हे। मनखे मन म अवसाद, चिड़चिड़ई, तनाव जइसन अउ कतको विकार मन दिन ब दिन घर करत जावत हें। मशीन के बीच राहत मनखे के व्यवहार मशीन सहीं हो गे हे। भावनात्मक विचार के क्षमता कमतियावत जावत हे। कतको कारण ले भीड़ म रहिके घलो अकेल्ला जिनगी जियई होवत हे। इही जीवन शैली के नवा टशन म लोगन के हँसी गँवावत जावत हे। एके छत के छाँव तरी रही के मनखे तिर म दू घड़ी बइठ के हाल-चाल पूछे ल तो कब के भुलागे हवय। मोबाइल टपड़त असल जिनगी जीना तो बोझा होगे हे। जम्मो मानवीय संवेग गायब होवत जात हे। थोक-थोक म चिल्लई अउ झगरा-झाँसी देखे ल मिलथे। अइसन म हमर संस्कृति ह हम ल मनखे के हद म रहे के संदेश देथे, काबर के हमर संस्कृति जोड़े के संस्कृति आय। एहर तोड़य नहीं। इही सब बात मन ल विचार करके डॉ. पीसी लाल यादव मन शायद ए दिशा म ए स्तुत्य कारज ल करे हे। पूरा भारत म अनूठा अउ निराला परंपरा 'मितान बदना' छत्तीसगढ़ के अपन खास चिन्हारी हरे। जेन बिखरत जावत परिवार ल एक सूत म पिरोय के बूता करथे। दू आने-आने परिवार ल मया के सुतरी म जोरे के बँधना आय मितानी।

       हाना मन ल सकेले अउ सहेजे गे हे। नाचा जे आज नँदावत हे। मंच ले गायब हे। सोशल मीडिया म सिमटा गे हे। ओकर ऊप्पर पीसी लाल जी बड़ विस्तार ले लिखे हें। लोक मंगल के प्रतीक भित्तिचित्र जे ल भितिया ले उतर के भुइयाँ म रंगोली बन के घर-अँगना के शोभा बनत हे। आज हर मंगल उछाह के बेला म रंगोली सजाय जावत हे। जे ह एकर अक्षुण्णता ल बताथे। लोकप्रियता ल बताथे। यहू बताथे के छत्तीसगढ़ आर्थिक रूप ले सजोर बनत जावत हे। नइ ते फूल अउ पाना ल रगड़ के भित्तिचित्र बनइया मनखे मन रकम-रकम के रंगोली नइ सजातिन। 

        बिसकुटक जनौला के जइसन तो होथे, लोकजीवन के तार्किक क्षमता ल समृद्ध करथे, गणितीय अभ्यास भी कराथे। वो ह मुअखरा फूले-फले हे। यहू बताय गे हे के बिसकुटक म गणित के मूल नियम सबो जगह लागू नइ होवय।

         गहना मनखे के सबले बड़े कमजोरी आय। नारी होवय ते नर सब ल गहना लुभाथे। मनखे गहना के मोह फाँस ले उबरेच नइ सकय। गहना-गुँठा तन के सुघरई भर नइ बढ़ाय, बल्कि वो हर हमर संस्कृति के एक ठन अंग आय। चिह्नारी आय। त संस्कृति म रचे-बसे गहना के आकर्षण ले भला लेखक कइसे आरुग बँच पाही।

        समाज सुधारक और संत, बाबा गुरु घासीदास जी छत्तीसगढ़ म प्रसिद्ध हें। उँकर जीवनदर्शन सतनाम पंथ के रूप म इहाँ के लोकजीवन ल जग-जग अंजोर बगरावत हे। लोकसंगीत म उँकर महिमा पंथी गीत के रूप म प्रचलित हे। अइसन सत्धर्मी सत्पुरुष के जीवन गाथा लोक बर मंगलकारी हे, लोक मंगल म उन ल जगह देना लोकहित म हे।

       डॉ. यादव के भाषा  गंगा के निर्मल जलधारा के जइसे बेरोकटोक बोहावत हे। सरल अउ सहज हे। अपन कथ्य के साखी बर लोक साहित्य ले उदाहरण बर जेन मोती चुने हे, ओमन अनमोल हें। 

     लोककला लोक बर होथे। लोक जम्मो जन समूह बर प्रयोग करे जाने वाला शब्द आय। अइसन म लोकसाहित्य म समाय जिनिस/विषय लोक मंगल के हित बर ही होथे। डॉ. पीसी लाल यादव द्वारा रचित 'लोक मंगल' सिरतोन म लोक मंगलकारी हे। एमा लोक चेतना के स्वर समाय हे। छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान अउ अस्मिता ल अक्षुण्ण रखे म लोक हितकर ए किताब ल पढ़े ले पाठक छत्तीसगढ़ के साँस्कृतिक मूल्य ले जुड़े रही पाही। छत्तीसगढ़ के साँस्कृतिक एकता के संवर्धन बर डॉ. पीसी लाल यादव के शोध ले भरे किताब लिखे के ए उपक्रम पाठक मन ल जरूर पसंद आही। ए किताब हिंदी म हे, अउ छत्तीसगढ़ी रीति-रिवाज अउ संस्कृति ल समोय हे। अइसन किताब सबो छत्तीसगढ़िया ल पढ़ना चाही। इही सोच के सब तिर पहुँचाय के उदिम म ही महूँ ह ए लेख ल लिखे हँव। 

         लोक मंगल के प्रकाशन हेतु डॉ. पीसी लाल यादव जी ल मैं हार्दिक बधाई अउ शुभकामना पठोवत हँव। 

*रचना: लोक मंगल*

*रचनाकार: डॉ. पीसी लाल यादव*

*प्रकाशनः सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली*

*पृष्ठ : 128*

*मूल्य: 150/-*


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला-बलौदाबाजार छग.

9977252202

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