Saturday 25 June 2022

कहानी--गुरु बनावौ जान के

 कहानी--गुरु बनावौ जान के

    अपन डीह-डोंगर के संगे-संग जम्मो देवी-देंवता- ठाकुर देव, मारो देव, साड़हा देव, गौरा-चौंरा, शीतला दाई, बूढ़ा देव जम्मो म मूठ धरे के दिन आगे हे, अउ एती नांगर के संवागा ल कहिबे त एक ठन बइला के खोरई अभी माढ़े नइए अउ उप्पर ले दूसर बइला के लहकई चालू होगे हे... तेमा ए सरगनच्चा टूरा झिथरू... दिन न बादर अउ गेंड़ी चघहूं कहिके बेलबेली मढ़ाए हे. काला-काला करबे अउ काला नहीं गुनत बुधारू अपन सुवारी भगवंतीन ल कहिथे- 'बादर ह लिबलिबाए ले धरले हे, कतका जुवर गदगद-गदगद रितो दिही ते ठिकाना नइए. तैं बिजहा ल बने जोर-जंगार के राखबे कइसनो करके धरती महतारी के कोरा ल तो हरियाएच बर लागही न'.

    बुधारू के गोठ पूरे नइ रिहिसे अउ एती वोकर बेटा झिथरू फेर अपन ददा करा गोहराए लागिस- 'आंय ददा... खोरवा ह एकदम हमला देख-देख के मचत रिहिसे... हमूं वोला लुलुवावत ले ललचाबो गा..'

    -'राह न रे.. दिन न बादर अउ गेंड़ी चघबे, कुछू संसो हे तोला... ए लोगन के तरुवा धमकत हे, कइसे मूठ धरे के जोखा माड़ही कहिके अउ तोला गेंड़ी मचई सूझे हे. जा अभी हरेली म बना देबो.

    -उं... वोकर ह एकदम रचरिच-रचरिच बाजत रिहिसे गो... आंय ददा...

    -तोला कहि देंव न... हरेली म रचरचा लेबे... कभू नंदिया बइला म चघहूं कइही, कभू गेंड़ी मचमचाहूं कइही, कभू फिलफिली चलाहूं कइही, त कभू तुतरू बजाहूं कइही. इही एक झन लोखन के लइका ए. सिरतोन म एकलमुंडा लइका झन होवय कहिथे सियान मन तेन सिरतो ए. ए लोगन के मरना दिखत हे, अउ एला मसमोटी सूझे हे.

    -त का होगे... लइका के जात, खेलही-कूदही नहीं... एक छिन बना देबे त का हो जाही- काहत बुधारू के गोसईन भगवंतीन बाप-बेटा के गोठ म झपा परिस.

    -तहूं टूरा डहार गोठियाबे... लोखन के लइका बिया डारे हस तेला पंदोली देबे, कहिके बुधारू खिसियाय असन करीस.

    भगवंतीन घलो बेलबेलाय असन कहिस- 'अई... सबो अपन लइका बर मया करथे, फेर तहीं कइसन बाप अस ते... जब देखबे ते बपरा ल हुदेनेच असन गोठियाथस'.

    -नहीं त, मंदरस चंटाए अस गोठियाववौं वो तोर टूरा संग?'

    -त का हो जाही, अपन लइका संग मया-मंदरस कस गोठिया लेबे त? भगवंतीन अउ लमाए कस कहिस.

    -हहो-हहो तुंहरे दाई-बेटा बर तो मैं ह घानी फंदाए हौं ओ... ए लोगन ल जब देखबे ते हटरे-हटर. कभू गिरे-परे म तेल चुपर दे कहिबे... त हम वोतको के पुरती नइ होवन... अउ ए टूरा ह.. गोंहगोंह ले खाए रइही, तभो करोनी करो लेना बेटा कहिके सइघो दुहना ल वोकर आगू म मढ़ा देथस. 

    -हहो-हहो.. खवाबो, अउ खवाबो... कोन हमर चउदा झन खवइया हे तेमा... एक झन बेटा... मन भर के खवाबो.

    -तोर अइसने चरित्तर के सेती तो टूरा ह दिन के दिन लेड़ब्बा होवत जात हे. एकर जउंरिहा गाँव के अउ आने लइका मनला देख... कइसे बने स्कूल जाए बर धर लिए हें. नान-नान लइका मनला बस्ता धर के स्कूल जावत देखबे त मन ह भर जाथे... अघात सुग्घर लागथे... अउ हमर ए हुड़म्मा ह... अभी ले ठेठा चिचोरत किंजरत रहिथे. सब तोरे सेती ए... महूं ह कोनो पढ़े-लिखे ल गोसईन बना के लाने रहितेंव, तब वो ह जानतीस-समझतीस पढ़े लिखे के महत्व ल.

    -त लान ले नइ रहिते... मैं बरपेली थोरे आए हौं तोर घर म.

    -अरे का बतावौं... ददा ह मोला देखे बर नइ जावन दिस तेकरे सेती आय... नइते तोर असन छेपकी नाक के ठेमनी ल कोन लानतीस- काहत बुधारू ह घर ले निकल गे.

 * * * * *

    गाँव म हांका परत राहय- 'अब्बड़ दुरिहा ले संत-महात्मा मन आए हें, ए बछर के चौमासा ल हमरे गाँव म बिताहीं.. चलौ-चलौ परघाए बर.' बुधारू के कान म हांका के भाखा परिस, त उहू गुनिस- रात-दिन के किटिर-काटर ले चलव महूं संत-महात्मा मनके दरसन कर लेथौं.

    बस्ती बीच के लील्ला चौंरा मार सैमो-सैमो करत राहय. गाँव भर के परानी वो मेर जुरियागे राहंय. का लइका का सियान जम्मो अपन-अपन सख के पुरती वोकर मनके सेवा-जतन म भीड़े रहंय. वोती ले भजनहा मन घलो बाजा-रूंजी संग आगे राहंय, अउ परघउनी भजन गा-गा के उनला परघावत राहंय-

  ये भजन बोलो भगवान के

  तोर नइया ल लगाही,

  वो ह पार हो

  ये भजन बोलो...

    भजन पूरा सिराय घलो नइ रिहिसे अउ भंडार मुड़ा ले उठत बादर ह कड़कड़ाय  लगिस. बिजुरी झमाझम लउके लागिस तहाँ ले छिन भर म मूसर कस पानी ह दमोर दिस. जम्मो मनखे एती-तेती जिहां छइहां दिखिस तिहां ओधगें. कतकों मनखे बरखा के पानी म भिंजते-भिंजत अपन-अपन घर कोती भागिन- चल दाई छेना-पैरा ल सकेलबो काहत. बुधारू घलो घर कोती भागीस. वोकर दूनों बइला बाहिर म बंधाए रिहिसे, कोन जनी भगवंतीन ह वोमन ल ढील के कोठा म लेगिस होही धुन नहीं ते? 

    घर आइस त सिरतोन म बइला मन पानी म घुरघुरावत खड़े राहंय. बुधारू वोमन ल ढील के कोठा म लेगिस. तहाँ ले रंधनी खोली म चुनुन-चानन करत भगवंतीन ल कहिस- 'देख मैं तोला कहे रेहेंव न, बरखा दाई कतका जुवर बरस जाही तेकर भरोसा नइए कहिके, आजेच मोर बात ह सिरतो होगे. काल बिहंचे मैं मूठ धरहूं, तैं बिजहा के धान ल टुकना म तोप के मढ़ा दे रहिबे.

    भगवंतीन रंधनी खोली के भितरेच ले कहिस- 'फेर बइला मन तो बीमार हे काहत रेहेव न?

    देखबो, बनत भर ले बनाबो, नइते आन के बइला ल मांगबो... फेर कुछू होवय धरती के गरभ म बीजा तो छींचेच ले लागही न- काहत बुधारू फेर लील्ला चौंरा कोती चल देइस. उहाँ जम्मो मनखे अपन-अपन घर चलदे राहंय. पानी घलो थिरागे राहय. बुधारू एक झन सियान असन दिखत महात्मा के पैलगी करके वोकरे तीर बइठ गे. महात्मा वोकर नांव पूछिस, त बुधारू बताइस.

    बुधारू के हाव-भाव ल देख के महात्मा समझगे के ए ह वोकर संग गोठियाना चाहत हे. उन पूछिन- 'कइसे जी तुंहर गाँव म खेती-किसानी के का हालचाल हे?'

    -काला कहिबे महात्मा बबा. जबले ए बड़का-बड़का फेक्टरी मन गाँव के भांठा म रकसा बरोबर खड़ा होगे हें, तबले पानी हुल मारथे. ले देके एके फसल हो पाथे, उहू म धान के बाली ह ओकर मनके धुंगिया के मारे कोइला रचाए कस करिया-करिया दिखथे. सेवाद ल कहिबे त भसभस ले लागथे. भइगे भूंसा बरोबर पगुरावत रहिथन. 

    -अउ पहिली कइसे राहय जी?'

    -पहिली कहेस महात्मा बबा. पहिली चुरोए दूध कस गुरतुर लागय भात ह. धान के बाली मन मार सोन के गहना-गुरिया कस चमकत राहय, अउ नहीं-नहीं म साल म दू फसल तो लेबेच करन. फेल अब तो नंदिया-नरवा, कुआँ-बावली जम्मो के पानी ल इही भांठा म खड़े रकसा मन पी डारथें. अउ एकरो ले अभियावन बात हे महात्मा बबा...!

    -का बात हे जी- महात्मा अचरज ले पूछिस.

    ए रकसा मन संग बाहिर ले आवत मनखे मन तो हमर मनके जम्मो जिनिस के सइतानास करत हें. एक डहार जिहां दाई-बहिनी मनके मरजाद म नीयत खोरी होवत हे, उहें हमर मनके जम्मो कला-संस्कृति, साहित्य अउ भाखा के बरबादी करत हें, वोकर हिनमान करत हें, हमर गौरव-इतिहास ल अन्ते-तन्ते लिख-लिख के वोमा सेंधमारी अउ मिलावटखोरी करत हें. फेर थोरिक गुन के कहिस- अच्छा ए तो बतावौ महात्मा बबा, काली मैं मूठ धरहूं त सबले पहिली उही बाहिर ले रकसा संग आके भांठा म बसे पुरोहित घर धान अमराहूं?

    -नहीं तो... तैं कइसे गोठियाथस बुधारू.. देवी-देंवता, डीह-डोंगर ले बढ़के कोनो नइ होय. ए पेट-पोसवा मन जम्मो धरम-करम के रीत-नीत ल बिगाड़ डारे हें. अच्छा बता पहिली कइसे करत रेहे?

    -पहिली... पहिली तो गाँव के जम्मो देवी-देंवता मन म धान चढ़ावन, तहाँ ले बांचे धान मनला खेत म लेग के ओनार देवत रेहेन.

    -त अभी घलो वइसने करबे. अपन पुरखौती के परंपरा ल मानबे. बाहिर ले आए पेट-पोसवा मनके भभकी म मत आबे.

    -हौ काहत बुधारू अपन घर कोती रेंग दिस. रतिहा जादा नइ होए रिहिसे, फेर कतकों घर ले थारी-लोटा के ठुनुर-ठानर सुनाए ले धर ले रिहिसे. पढ़इया लइका वाले घर के मन जल्दी बियारी कर डारथें न. अओ भगवंतीन बेंस ल हेर न- कहिके बुधारू दरवाजा ल खटखटाइस. बेंस के हिटते वो घर भीतर चल दिस.

    पल्हरा मनके अवई-जवई म कभू-कभार चंदैनी मन जुगुर-जागर दिख घलो जायं, फेर चंदा कती मेर हे तेकर गम नइ मिलत रहय. भंइसा मुंहन अंधियार म घलो बुधारू के नींद नइ परत रिहिसे. बस वोला काल बिहंचे होत मूठ धरे के चिंता राहय... कब कुकरा बासही तेकर अगोरा राहय.

    आखिर बुधारू के अगोरा सिराइस. कुकरा बासे के भाखा सुनाइस. वो धरारपटा खटिया ले उठ के मुंह-कान धोए बर बारी कोती चल दिस. आज भगवंतीन घलो वोकर उठे के आरो पाते उठ के बुधारू बर चहा-पानी तिपो डारिस, तहाँ ले बिजहा ल टुकना म जोर-सकेल के परछी म मढ़ा दिस. बुधारू बारी कोती ले आइस तहाँ ले चहा पी के एक टुकना के धान ल उठाइस अउ देवता खोली म माढ़े कुल देवता के संग घर के जम्मो देवता मन म एकक मूठा धान चढ़ावत गाँव के जम्मो देवी-देंवता म धान चढ़ावत अपन खेत कोती चल दिस. भगवंतीन घलो दूसर टुकना के धान ल बोह के खेत के रद्दा धर लिस.

* * * * *

    गरुवा धरसत खेत ले लहुटिस बुधारू ह. दिन भर के जांगर-टोर मिहनत म थकगे राहय. भगवंतीन तुरते वोकर बर चहा तिपो डारिस अउ एक गिलास पानी संग वोकर आगू म मढ़ा आइस. बुधारू चाय पिइस तहाँ ले माखुर झर्रावत बाहिर कोती जाए बर धरिस, त भगवंतीन वोला बरजे असन करिस- 'दिन भर के थके-मांदे आए हौ... थोरिक सुरता लेतेव नहीं. भइगे तुंहर पांव तो घर म माढ़बे नइ करय, जब देखबे ते एती-तेती किंजरई.

    -अरे बही मैं एती-तेती थोरे जाथौं तेमा... ओ महात्मा मन आए हें न तेन कोती जाथौं... एक झन सियान मुढ़न ह अब्बड़ सुंदर गोठियाथे, बने-बने गियान के बात बताथे. 

    -का बताथे?

    -काहत रिहिसे... ये पेट-पोसवा मनके बात ल नइ मानना चाही. ए मन हमर धरम के मूल भाव ल मेंटत हें. वोकर सरूप ल बिगाड़त हें. महात्मा बबा काहत रिहिसे- बाहिर ले आए मनखे मन बरपेली हमर इहाँ 

ऊंच-नीच अउ छोटे-बड़े के बिजहा बो डारे हें. मनखे मन जम्मो एक बरोबर होथें. जम्मो के भीतर एक परमात्मा के अंश आत्मा के रूप म समाए हे, जेला हम जीव घलो कहि देथन. आज मैं ह बबा जगा चौमासा के बारे म पूछिहौं.

    -हाँ हाँ ले जवौ.. तहाँ ले महू ल बताहौ- काहत भगवंतीन रंधनी खोली डहार चल देथे.

    लील्ला चौंरा म अबड़ झन सकलाए राहंय. अपन-अपन ले महात्मा बबा मनके सेवा-जतन अउ गियान चरचा म लगे राहंय. बुधारू उही सियान बबा जगा जाके वोकर पैलगी करके बइठ गे. महात्मा बबा वोला देख के मुसकाइस, पूछिस-' फेर कोनो बिसय ऊपर तोला गोठियाए के साध लागत हे?

    -हौ महात्मा बबा... जब ले तुमन पेट-पोसवा मन के भरम जाल ले बाहिर निकले के बात बताए हौ, तबले मोला अबड़ अकन जाने-समझे के साध लागत हे. मैं जानना चाहत रेहे हौं के चौमासा म संत-महात्मा मन एके जगा काबर रहिथें, आने बखत सहीं एती-तेती काबर नइ आवयं-जावयं? 

    महात्मा बबा कहिस- कुछू नहीं, सिरिफ झड़ी-बादर के सेती. पहिली अब्बड़ पानी गिरय, चारों मुड़ा दलदली माते राहय, उप्पर ले आवागमन के कोनो साधन नइ रिहिसे, न तो आज असन चिक्कन-चांदन सड़क-डगर. बस एकरे सेती ए चौमासा ल एक जगा बइठ के पहावंय पहिली के संत-महात्मा मन.

    -फेर ए चार महीना म तो पूजा-पाठ, कोनो शुभ कारज नइ करना चाही कहिथें... देवता मन सूते रहिथें कहिथें?

    परलोखिया मन अइसन कहिथें... देवता कभू सूतही भला? जेन सूतगे तेन फेर देवता कइसे होइस... अउ हां..! इही चार महीना म सबले जादा शुभ कारज अउ पूजा-पाठ करना चाही, काबर ते जम्मो विघ्न मनके हरइया गनपति महराज के जनम, मातेश्वरी के नवरात अउ महादेव के सावन पूजा तो इही चौमासा म आथे, दसरहा-देवारी आथे. तब भला तहीं बता, एकर ले बढ़के अउ कोनो शुभ बेरा हो सकथे?

    बुधारू अपन मुड़ ल खजवावत कहिस- फेर जेठउनी के पहिली तो कोनो शुभ कारज नइ करना चाही कहिथें, वो भांठा म आके बसे पुरोहित मन.

    -ये बाहिर ले आके बसे जम्मो मन रकसा आयं... चाहे दू गोड़िया मनखे होवय... चाहे लोहा के बड़े-बड़े धुंगिया उगलत चिमनी वाले फेक्टरी होवय. हमर गाँव-घर अउ धरम-संस्कृति बर दूनों के दूनों भांठा के रकसा आयं... ये भांठा के रकसा मनला घर-परिवार म कभू झन संघरन देहू, तभे तुंहर पुरखा के परंपरा अउ संस्कृति बांचे रइही. नइते ए पेट-पोसवा मन वोकर गती-गती कर देहीं. वोकर मनके चिक्कन-चांदन रूप-रंग अउ गुरतुर-गुरतुर बोली-भाखा म झन आहू... ए हर सिरिफ ठगे खातिर आय. बनौका के बनते, इन अपन असली रूप ल देखाय लगथें. देखत हस नहीं तुंहर जम्मो जीए अउ राज करे के अधिकार म आज उही मन कइसे संचर गे हें! काबर ते धरम अउ संस्कृति ह असली होथे, जेकर नांव म उन तुंहर मुड़ी म बइठिन, तहाँ ले फेर उन सकल पदारथ म तुंहर मुड़ी म बइठे के उदिम करहीं. तेकरे सेती इही असली चीज ले उनला उतारे अउ खेदारे के जरूरत हे.

    -फेर जेठउनी के पहिली तो कोनो शुभ कारज नइ करना चाही कहिके तो हमर गाँव-बस्ती म खुसरे पुरोहित मन घलो कहिथें महात्मा बबा?

    -अरे ए सब बदमासी के बात आय बेटा. अच्छा मोला बता- इहाँ तुमन गौरा अउ ईसरदेव के बिहाव ल कब करथौ... वोकर परब कब मनाथौ?

    -गौरा पूजा के दिन.

    -अउ गौरा पूजा कब होथे?

    -कातिक अमावस के.

    -अच्छा ए बता... जेठउनी पहिली आथे ते कातिक अमावस ह?

    -आए बर तो कातिक अमावस ह पहिली आथे महात्मा बबा.

    -हाँ... आथे न.. माने इहाँ के सबले बड़का भगवान के बिहाव ह जेठउनी के पहिली हो जाथे न.. त तहीं बता बेटा... जब भगवान के बिहाव ह जेठउनी ले पहिली हो जाथे, त हमर मनके बिहाव-भांवर के संगे-संग जम्मो किसम के शुभ कारज ह काबर पहिली नइ हो सकही?

    -केहे बर तो ठउका कहिथौ महात्मा बबा... जब भगवान के बिहाव जेठउनी ले पहिली हो सकथे, त हमर मनके काबर नइ हो सकय? एकदम  सिरतोन ए. ये पेट-पोसवा मन तो सिरतोन म हमन ल बिल्होरत हें. जइसे पावत हें तइसे धरम के नांव म बेलबेली करत हें... अउ हमूं मन बिन कुछू गुने-बुझे वोकर मनके भभकी म आवत जाथन. अब मैं जान डरेंव ददा ये पेट-पोसवा मनके भभकी म कभू नइ आवौं. तभे तो हमर सियान मन ठउका कहे हें-

   गुरु बनावौ जान के,

   अउ पानी पीयौ छान के.

(कहानी संकलन 'ढेंकी' ले साभार)

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811


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समीक्षा- पोखनलाल जायसवाल

छत्तीसगढ़ एक कोती अपन संस्कृति, परम्परा अउ रीति-रिवाज ले  पहिचान रखथे, त दूसर कोती खनिज संपदा अउ वन्य संपदा बर घलो जाने जाथे। सबले बढ़का अउ खास पहिचान इहाँ के मनखे के सरल(सिधवा) अउ मिलनसार होना आय। सब ल अपन दया-मया के छाँव म रखथे। कोनो म फरक नइ करँय। अपन अउ बिरान नइ चिन्हे। छत्तीसगढ़िया के इही भाव ल उँखर कमजोरी मान चतुरा मनखे मन एखर फायदा उठाथें। हमन ल भुलवारे बर एमन हमर मुड़ म एक ठन पागा बाँध दे हें। छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया। कोनो मनखे अउ परानी अइसन नइ हे, जेन मया दुलार पाके मगन नइ होवत होहीं। मया के मीठ बानी पाके भला करु कसा जुबान कोन दिहीं। तभे तो मान पाय अउ मान दे बर छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया कहि दिन। साँप तो नोहय कि दूध पी के बीख उगलही।...फेर साँप घलव अपन बचाव म बीख उगलथे।

      वाह रे छत्तीसगढ़िया ! अउ कतेक दिन ले मया लुटात रहिबे? का मया के सँघरा सरबस लुटा जही त तोर चेत आही? तैं अपन धरती दाई के सेवा म दिन रात रेहड़त रहिथस अउ मलाई खाय बर पेट पोसवा मन बिलई कस सिका ल ताकत रहिथें। जल जंगल जमीन म सबो जीव के अधिकार होथे। ए मन तो सबो जीव के हियाव करथें। मनखे च आय जिंकर पेट अघावत नइ हे। जंगल ल उजारते जावत हे। अउ सरलग कारखाना फैक्ट्री के जंगल खड़ा करत जावत हे। 

       जमीन, जायदाद अउ पइसा के भूख अतेक बाढ़ गे हवय कि ए ल मिटाय बर कखरो मति भ्रम करे के उदिम करे लग जथे। अपन डीह डोंगर म जब पइती नइ जमय त छत्तीसगढ़ कोती दउड़त-भागत आथे। अउ छत्तीसगढ़िया के सिधवापन अउ भोलापन के फायदा उँचाथें। छत्तीसगढ़ याने सी जी। सी जी याने चरागाह। इही तो जानथें, मानथें सब।

         छत्तीसगढ़िया मन जादा तीन पाँच नइ जानँय। कमती पढ़े लिखे मनखे। परदेसिया मन के अंतस् ल का जानय? मन के बात गड़रिया जाने। कारखाना अउ फैक्ट्री बर भाठा टिकरा बिसावत इहेंच बसे ल धर लिन। हमन अपने म कमती विश्वास अउ भरोसा करत उँकर म जादा विश्वास करे धर लेन। अँगरी पकड़त उन मन बाँह धरे लगिन। अउ  हम कलेचुप रहिगेन। लोकलाज ल डरा गेन। लोक लाज ह तो हमर बड़े धन आय। इही सब के पड़ताल करत कहानी आय *गुरु बनावो जान के*। ए कहानी अपन संस्कृति अउ स्वाभिमान बर जागरण के कहानी आय। ए कहानी म पेट पोसवा कहिके आने प्रदेश के लोगन ऊपर फबती कसे गे हे। दूसर भाषा म कहँव त क्षेत्रीयता ऊपर जोर दे गेहे। भारत जइसे बड़े देश ल जोर के रखे म क्षेत्रीय एकता के जरूरत घलव हे। काबर कि इहाँ कतकोन भाषा-भाषी रहिथन। ए भाषा च ह हम ल जोर के रखे के सुतरी आय। नइ ते बिन सुतरी के मोती असन छरिया जबो अउ मतलबिहा मन अपन बूता कर जाहीं। 

      संत महात्मा मन कोनो संप्रदाय, जाति धरम के बपौती नइ होवय। ओमन मानवता के आँय अउ मानवता के कल्याण करथें। ओमन घूम घूम के जन कल्याण म लगे रहिथें। संत महात्मा के पात्र ल गढ़ के कहानीकार छत्तीसगढ़िया समाज ल जगाय के उदिम करे हे। अपन संस्कृति, रीत रिवाज, मरजाद, स्वाभिमान बर सावचेत रहय के संदेश दे हे।

     अपन उल्लू सीधा करइया मन के पोल खोले बर संत महात्मा जइसन पात्र ल गढ़ना अउ अपन उद्देश्य ल पूरा करना, कहानीकार के चतुराई आय। भाखा सरल सहज अउ पठनीय हे। कहानी के शुरुआत देशकाल अउ परिस्थिति के हालचाल बतावत हे।

संवाद मन पात्र मन के लइक लिखे गे हे। शीर्षक प्रासंगिकता ल समोय हे। आज जब हम अपन मूल संस्कृति अउ परम्परा ल ताक म रख के दूसर के लोकशैली मन ल अउ परम्परा ल अपनावत हन त अइसन म ए कहानी प्रासंगिक जान परत हे।

      अतेक सुग्घर कहानी बर सुशील भोले जी ल बधाई 💐🌹


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

जिला बलौदाबाजार छग.


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