Wednesday 1 June 2022

छत्तीसगढ़ी हास्य बियंग मुंह फुल्ली

 छत्तीसगढ़ी  हास्य बियंग 

                मुंह फुल्ली

मोर घरवाली हर अकसर मुंह फुलायेच रहिथे , गोठियाये ल छोड़ देथे कभू परोसी घर  के बने बने रहन सहन ल देख के, तव कभू ऊंकर पहिनना ओढ़ना ल देख के, कहीथे देख तो ओ मन ला कइसे रथे , बढ़िहा ओनहा कपड़ा ले हावे।एक तू मन आ कभु तिहार बार म एको ठन लुगरा पोलका ले दे था, तहा होगे साल भर बर फुरसत,हमारे भाग म किरवा पर गए हावय, मै कहिथो तेला तो तू मन मानबे नई करा _कहिके बडबडावत बड़बड़ावत अपने अपन मशीन कस बंद हो जाथे। तव ओला मै मिसतीरी बन के बनाय ल भिड़थ व,फेर वो हा आऊ बिगड़ जाथे, काबर के मै मनाए के परसिकछन नई लेहे हव तव बूजा ला फैल हो जाथव, पूरक घला नई आव मै सोचथव घरवाली (डौकी) चलाए बर परसिकक्षण केंद्र खुलना चाही जेमा कुंवारा कुमारी मन ल आऊ हमर सही रोज लड़ाई झगरा होवईय्या डौकी डौउका

      मन ल परसिकछन लेंहे के मउका मिले। आऊ हम अपन घर द्वार ल सुग्घर ढंग ले चला सकी तेमा डौऊकी घला खुश डौउका घला खुश।ये दारी हमर गांव मा मंत्री विधायक आही त ओला आवेदन लिख के देहू भाई,नवसिखिया दुलहा दुलहीन बर परसिक्छन केंद्र होना चाही सिरीफ सामूहिक बिहाव कर देहे ले कुछु सफल नई होत हावे।सरकारी दाईज ल दुनो झन बट वारा करके आऊ लड़ाई झगरा होके अलग बिलग हो जावत हावे।

       डौकी मन के मुंह फूले के कई ठन कारन होथे, पारटी,आरती म नई ले जाबे तव मुंह फूल जाथे , बजार ले ओकर बर कुछू नई लाने तव मुंह  फूल जाथे , उकर मइके के कुकुर ल गारी देबे तव,मुंह फूल जाथे।

हा मोला सुरता आथे के मोर ससुरार म एक ठन मिठ्ठू पोसे रहीन तेंन हा कोंदा आऊ चुपवा रहय, मैं अपन के घरगोसाईन ल कहेव, कइसे ओ _छोटी के दाई तुहर घर के मिठ्ठू घला हर मुंह फुलाए ला जानथे का ओ?मोर एतका गोठ ला सुन के ओकर गुस्सा तरुवा म चढ़गै, आंखी हर घुघवा कस आंखी बरे लागिस, मैं नानकन लइका बागी मरो जीयो ले डेरागेव।

    डौकी मन ल मुंह फुलाए म बड़ लाभ होथे,  डौउका मन समझ जाथे के काबर मुंह फुलाए हावय,ओकर आगु पाछु बने सुग्घर गोठिया के  डोउका जात डौकी मन ल ठग डारथे।फेर कहीं थे न डौकी मन के बुद्धि हर कहां मेर रहिथे, ठगा जाथे बिचारी मन , वइसे आजकल टीवी देख देख  गांव के डौकी मन होसियार होगे हावय , जेन जिनीस ल देखथे तेला लेके रहीथे,तव बता डौका के खीसा खाली होइस के नहीं ?

   डौकी मन के मुंह फुलाए ले डौका मन के बड़ नकसान होथे,थैली तो खाली होथेच संग म आऊ कई ठन कारन हो सकत हे जेकर ले नकसान हो थे ओमा रात के नींद दिन के चैन आऊ खाना पीना सामिल हावे ।

नोकरीपेसा नारी मन खुस रहीथे काबर के ओमन आर्थिक दृष्टि ले सक्छम होथे, इंकरो मुंह हर फूल थे पर घर म परभाव होए के कारन सब झन ओला सहिथे, काबर के दुधारू गाय के छटारा घला मिठाथे, उलटा इकर डौऊका मन मुंह फुल्ला होथे।फेर बिचारा मन के दरद ल ओहि हर जानथे, जे मन ऐसनेहैच्च होथे , खग के भासा खग जाने,

     जब ले टीवी मोबाइल के चलन होये हे, तब ले मुंह फुलाई हर परदुसन कस घर घर मा पेल दे हावय ,सब मनखे मन एकर ले परभावित हावय कोनो मन सहथे तव कोनो मन रोवथे ,तव कोनो मन मुंह फुलाए एक दुसर ल झेलत हावय । ओ दिन चारझन माई लोगन मन हमर घर बुलत बुलत आइन सब के हाथ म रुमाल के जघा एक ले बड़ के एक बड़े बड़े मोबाईल धरे रहे,ओमन रहि रहि के ओकर बटन  ल चिपे अलट पलट के कान म लगा के सोझे सोझे ऊकर हलो हलो कहाई हर_ मोला  हला के रख दिहिस काबर के ऊंकर जाए के बाद  मोर सुवारी हर बड़का मोबाईल बर मुंह फुलाए बैइठे हावय।


रामेश्वर शांडिल्य

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