Wednesday 1 June 2022

छत्तीसगढ़ी उपन्यास शौर्य की प्रतिमूर्ति बिलासा देवी केवट


 




छत्तीसगढ़ी उपन्यास

शौर्य की प्रतिमूर्ति

बिलासा देवी केवट


- दुर्गा प्रसाद पारकर




लेखक के कलम ले...

- दुर्गा प्रसाद पारकर


कलचुरि वंश म कुल 18 झिन राजा मन राज करिन। जेमा 13वां शासक के रूप म राजा कल्याण साय के उल्लेख मिलथे। कलचुरि वंश ह दक्षिण कोसल (छत्तीसगढ़) के राजधानी रतनपुर ल बनइस (बिलासा ज्योति पेज क्रमांक-1)। इतिहास के पन्ना ल पलटे ले पता चलथे कि सिंधु घाटी सभ्यता म घलो निषाद जाति के प्रादुर्भाव हो गे रिहिसे। ए भुइयाँ म निषाद (केवट) जाति के उल्लेख सिंधु घाटी सभ्यता म आज तक नदी अउ समुन्दर के किनारा म मिलथे काबर कि ए जाति के मुख्य धंधा नौका (डोंगा) चलई, मछली मरई, धान उपजई, चना-मुर्रा, लाड़ू अउ कांदा-कुसा आदि रिहिसे। सिंधु घाटी सभ्यता म आर्य अउ अनार्य के उल्लेख मिलथे जेमा अनार्य ल ही ऐतरेय ब्राह्मण उपनिषद म निषाद जाति माने हवे। (बिलासा ज्योति पेज क्रमांक-9, संपादक-बद्री प्रसाद कैवर्त)।

लोक संस्कृति के मर्मज्ञ कोठारी ने लिखा है-लोक कथाएं कभी भी काल निरपेक्ष नहीं होती और किसी भी कथा का रूप यदि इतिहास के दौरान से निकलकर हम तक पहुंचा है तो उसकी सामाजिक उपयोगिता असंदिग्ध रूप से बह रही है। लोक कथाएं वस्तुत: केवल प्राचीन की अवशेष नहीं है बल्कि विशिष्ट समाज के सांस्कृतिक संदर्भ की एक जरूरत है और उसी जरूरत ने उन्हें जिंदा रखा है। गद्य और पद्य रूपों में प्रचलित लोक कथाओं, विभिन्न अवसरों पर गाये जाने वाले गीतों तथा नाट्य रूपों में सामान्य जन के हृदय के उच्छवास और उसके मन में उबलते उद्वेग को व्यक्त करने का सहज गुण होता है। आचार्य नरेन्द्र देव ने संस्कृति को चित्त भूमि की खेती कहा है। लोक गाथाओं को हम उस फसल की बालियां कह सकते हैं। (अस्वीकार साहस-रमाकांत श्रीवास्तव, पेज क्रमांक-68, लोक मड़ई संपादक-जयप्रकाश, प्रकाशक-दलेश्वर साहू)।

कथा गायन की भारतीय परंपरा की विवेचन के अंत में एक बार पुन: पाश्चात्य मत के एक बिन्दु से उसकी तुलना अति संक्षेप में हम कर सकते हैं। पाश्चात्य विज्ञान स्तैंथल के मत पर हम दृष्टि डाले तो पाते हैं कि जे. ग्रिम, एफ.बी. गुमेर, एफ.जे. चाइल्ड या श्लेगल जैसे अन्य लोकवार्ता शास्त्रियों की अपेक्षा स्तैंथल की परिभाषा पाश्चात्य अभिमत को अधिक स्पष्ट करती है। स्तैंथल दृढ़ता से इसे रेखांकित करते हैं कि लोक कथा गीतों की रचना किसी भी देश की समस्त जाति करती है। जाति से स्तैंथल का मन्तव्य नस्ल (क्र्रष्टश्व) से है। भारतीय संदर्भ में यह सिद्धांत आंशिक रूप से ही प्रतिफलित होता है। भारतीय समाज के विकास में बहुलता और सांस्कृतिक समन्वय की प्रबल भूमिका रही है। इसलिए यहां मध्य युग तक लिखित और मौखिक काव्यों में विभिन्न जातियों के विश्वासों का समावेश होता रहा है। इतना ही नहीं इनमें विभिन्न नस्लों की रचना धर्मिता के तत्व भी शामिल होते रहे हैं। विभिन्न मानव समूहों के इतिहास के संकेत उनके कर्मों और संघर्षों की परछाई के अलावा उनकी कथा रूढ़ियाँ भी इनके शामिल है।

कथा गायन के संदर्भ में यह भी दृष्टव्य है कि भारत में गायन के कर्म से जुड़े वर्ग और जातियां भी थी। प्राचीन गं्रथों में सूत, मागध, बंदी, कुशीलव, वैतालिक, चारण, भाट और जोगी के विवरण प्राप्त होते हैं जो किसी न किसी रूप में यशोगान और कथा गायन से जुड़े थे। राजस्थान में भाट, भोपा, ढाढी, मिराशी जातियां तथा गोंडवाना की परधान और छत्तीसगढ़ की देवार जाति पेशे से ही गाने-बजाने वाली जातियां रही हंै। (छत्तीसगढ़ी कथा गीत सामाजिक-सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य-डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव, पेज क्रमांक-23, 24)

छत्तीसगढ़ में कलचुरि शासन काल में मंडला क्षेत्र से देवारों का आव्रजन हुआ है। वे रतनपुर आकर गोंड़ मिथकों एवं आख्यानों से संबंधित गाथाओं का प्रस्तुतिकरण करने लगे। वे स्थायी रूप से रतनपुर में ही बस गये।

कल्याण साय के राज्य में एक प्रसिद्ध देवार गोपाल राय बिंझिया उनका मल्ल बन गया था। देवारों द्वारा गाये जाने वाले गोपाल राय के पावड़े में उनके शौर्य का वर्णन मिलता है। (यायावार देवारों का यथार्थ-लोक-पूषण कुमार, पेज नं. 17, लोक मड़ई, संपादक-जयप्रकाश) सुभद्रा कुमारी चौहान ने झांसी की रानी की शौर्य गाथा बुंदेले हरबोलो से सुनी थी। 

अइसने किसम ले छत्तीसगढ़ म देवार मन के मुंह ले 'बिलासा देवी केवटÓ के देवी शक्ति अउ शौर्य गाथा सुने बर मिलथे। जेला श्रीमती रेखा देवार ले डॉ. विजय सिन्हा संकलित करे हे-


सतजुग म मनपुर बाजिस

त्रिधा मानिकपुर

द्वापर म हीरापुर बाजिस

कलयुग म रतनपुर


बिलासा केवट बिक्कट बहादुर

रिहिस देवी शक्ति के अवतार

धन-धन बिलासा तोर बड़ नाव

तोर महिमा ल मँय ह गाँव


बिलासा करिस भारी समर

'बिलासा देवीÓ के नाव अमर

बिलासपुर के एही परमान

बिलासा के नाव म सहर महान


डॉ. विनय कुमार पाठक के निर्देशन में पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ले डॉ. निशा शर्मा अउ डॉ. सोनऊ राम निर्मलकर ह पी.एच.डी. करे हे जेमा बिलासा के शौर्य (वीरता) अउ बहादुरी के जिक्र करे गे हे। बिलासा के शौर्य अउ बिलासा के नाम से बिलासपुर के नाम ले जुड़े लोक कथा बिलासा ज्योति म बद्री कैवर्त ह पेज क्रमांक 20 म संकलित करे हे-

राजा कल्याण साय शिकार पर निकले थे। बिलासा और बंशी केवट जंगल से अपने घर अरपा नदी के किनारे एक छोटी सी बस्ती को लौट रहे थे। इसी समय कल्याण साय पर एक शेर हमला कर देता है। बचाओ-बचाओ का आवाज सुनाई देता है तो बिलासा अपने तीर कमान से शेर पर प्रहार कर राजा कल्याण साय की प्राण की रक्षा करती है। उस वक्त बिलासा की बहादुरी देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। राजा पूछते हैं-तुम्हारा क्या नाम है बेटी? तुम कहां रहती हो? बिलासा अपना परिचय देती है-मैं बिलासा केवट हूं, अरपा नदी के किनारे रहती हंू, ये मेरे पति बंशी केवट है।

राजा कल्याण साय को मछुवारों की बस्ती में ले जाते हैं। बस्ती वाले राजा का स्वागत करते हैं और राजा की जय हो, राजा की जय हो। इस प्रकार सभी लोग जय-जयकार करने लगते हैं। बिलासा के पिता परसु द्वारा दवा पिलायी जाती है। राजा परसु से कहते हैं कि आपकी बेटी बहुत बहादुर है। उसी ने शेर को मारकर हमारी जान बचाई और आप लोगों ने मेरी खूब सेवा की। बिलासा ने मेरी रक्षा की इसलिए मैं (राजा कल्याण साय) अरपा के दोनों किनारों की जागीर (विशिष्ट सेवा खातिर पुरस्कार स्वरूप राजा द्वारा दी गई जमीन) बिलासा को देता हंू। राजा ठीक होकर रतनपुर जाते हैं। कुछ दिन बाद रतनपुर का संदेशवाहक बिलासा के घर आता है और संदेशवाहक कहता है-अपने पति के साथ राज दरबार आइए। बिलासा अपने पति बंशी को साथ लेकर रतनपुर राज दरबार में उपस्थित होती है। राजा ने बिलासा को राज दरबार में एक तलवार भेंट कर सम्मानित किया। हमें राजकाज संचालन करने के लिए योद्धा की आवश्यकता है। हमने तुम्हारी वीरता देखी है। हम तुम्हें महिला सेनापति बनाते हंै। राज दरबार से बिलासा घोड़े पर सवार होकर निकलती है। बिलासा ने अपने जागीर का विस्तार किया। गाँव को विकसित कर नगर का निर्माण किया। उसके बढ़ते प्रभाव को देखकर पड़ोसी राज्य ने उसकी जागीर पर हमला कर दिया। बिलासा ने डटकर मुकाबला किया उसने अपने राज्य की रक्षा के लिए हिम्मत नहीं हारी और वीरगति को प्राप्त हो गई। राजा कल्याण साय ने राज दरबार में कहा कि बिलासा ने अपने राज्य की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हो गई इसलिए हम उनके सम्मान में उनकी बस्ती (डोंगाघाट-अरपा नदी के खड़ करार म बसे बस्ती जेला अभी पचरी घाट जूना बिलासपुर कहिथे) का नाम बिलासा के नाम से बिलासपुर रखथे हैं। आज से इस बस्ती को बिलासपुर के नाम से पुकारा जायेगा। रतनपुर राज की कुलदेवी आदिशक्ति महामाया मइया के किरपा ले 'बिलासा देवी केवटÓ अमर हो गे अउ मँय महामाया मइया के किरपा ले छत्तीसगढ़ी उपन्यास, शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवटÓ ल पूरा कर पायेंव।

बिलासपुर के कुलदेवी 'बिलासा देवी केवटÓ के नाम ले बिलासा चबूतरा (पचरी घाट, जूना, बिलासपुर), बिलासा गुड़ी (पुलिस प्रशासन द्वारा), बिलासा गुड़ी खेल परिसर एवं पुलिस नियंत्रण कक्ष (पुलिस प्रशासन द्वारा), बिलासा उपवन (द.पू.म. रेलवे द्वारा), बिलासा ताल (जिला कलेक्टर द्वारा), बिलासा कला मंच (डॉ. सोमनाथ यादव द्वारा), बिलासा छात्रावास (लिगिंयाडीह निषाद समाज बिलासपुर द्वारा), बिलासा सभागार (बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा), बिलासा विद्या मंदिर (माता बिलासा शिक्षण संस्थान द्वारा), बिलासा ब्लड बैंक (रावतपुरा सरकार द्वारा), बिलासा चौक (नगर निगम द्वारा), बिलासा वार्ड (नगर निगम द्वारा), शासकीय बिलासा कन्या स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय बिलासपुर (छत्तीसगढ़ शासन द्वारा), बिलासा देवी केवट पुरस्कार (छत्तीसगढ़ शासन द्वारा), 'बिलासा देवी केवटÓ हवाई अड्डा बिलासपुर (सन् 2021 छत्तीसगढ़ शासन द्वारा), बिलासा दाई नवयुवक मंडल बिलासपुर अउ बिलासा साहित्य संगीत धारा नाम धराये हे।

श्री उदेराम पारकर (ददा), स्व. श्री रामप्यारा पारकर (कका), श्री बद्री प्रसाद पारकर (कका), श्री मुकुंद पारकर (भाई), श्री एम.आर. निषाद, श्री कुंवर निषाद, प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. बिहारीलाल साहू, अपन कदकाठी के बड़का साहित्यकार श्री डुमनलाल ध्रुव, डॉ. डी.पी. देशमुख, डॉ. मंतराम यादव, डॉ. शांतिलाल कैवर्त्य, श्री परसराम कैवर्त, श्रीमती प्रेमलता निषाद, श्री अजय उमरे, श्री संजय सपहा, श्रीमती नीलम पारकर (गोसइन), श्री महेन्द्र भक्ता (दमांद), श्रीमती भावना भक्ता (बेटी), श्री केतन पारकर (बेटा), श्रीमती रविना पारकर (बहू), दुलरूवा शौर्य पारकर (नाती) के आभारी हँव जिंकर सहयोग ले छत्तीसगढ़ी उपन्यास शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवटÓ ल पूरा कर पायेंव। मँय ए छत्तीसगढ़ी उपन्यास शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवटÓ ले मोर नाती शौर्य पारकर ल जन्मोत्सव के खुसी म सम्मानित करे हँव।



क्वांर नवरात्रि सप्तमी

मंगलवार, 12 अक्टूबर 2021 



समय के यथार्थ पर जोर देने वाला सार्वकालिक छत्तीसगढ़ी उपन्यास

शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवटÓ


जहां तक मेरा अनुमान है लोगों की स्मृति अल्प होती है। किसी इतिहास के बदल जाने पर भी भरोसा कर लेती है। प्राकृतिक रूप से देखा जाए तो मन की गतिविधियां जीवित रखने और उसमें रचनात्मकता बनाए रखने के लिए स्मृति और विस्मृति दोनों आवश्यक है। मनुष्य के बारे में यह नतीजा अनुभव और अनुसंधान दोनों का है। देश की आजादी का मूल्यांकन महज एक ही दिन में नहीं हुआ। आजादी की 75 वीं वर्षगांठ को अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं के पैतृक गांव में तिरंगा यात्रा और मशाल रैली निकाली जा रही है। 75 से अधिक उम्र के व्यक्तियों की विचार गोष्ठी आयोजित की जा रही है। इस तरह हमारी सोच, हमारी चिंतन और हमारी प्रगति बहुआयामी हुई है। शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवटÓ केवल समाज के ही गौरवगाथा नहीं बल्कि विशेष आचरण के शौर्य गाथा के प्रवर्तक हैं। उनका महत्व केवट समाज में प्रायोगिक तौर पर है ऐसा नहीं बल्कि वह समाज के लिए उत्तराधिकार के साथ उतना ही प्रासंगिक है।

शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवटÓ प्रसिद्ध उपन्यासकार-कथाकार, लोक साहित्यकार श्री दुर्गा प्रसाद पारकर द्वारा लिखित कृति अपने समय के सामाजिक यथार्थ को तेजस्क्रीय संवेदना द्वारा अभिव्यक्त करती है। इनमें काल की सतत गतिशील धारा का चित्र आवेग है और वर्तमान के प्रति गहन सम्बद्धता। सामाजिक जीवन की स्थिति शैली को प्रस्तुत करने का अभिनव पहल है। समाज की कोई भी महान विभूति हो नए मूल्यों को अपने ढंग से, अपने जातीय स्वभाव और परंपरा के अनुरूप, स्वायत्त करता है।

हम देखते हैं कि किसी भी समाज के अस्तित्व के साथ उसकी ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी होती हैं। क्योंकि वह समाज का प्राण तत्व है। सामाजिक मनुष्य के तौर पर हमारी पहचान की निर्णायक मुद्रा विभिन्न संदर्भों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। आधुनिक समाज ने अपनी शक्ति अर्जित कर ली और तमाम ऐतिहासिक शक्ति भी उसके भीतर स्वमेव एकाग्र होती चली गई। अब तो राज सत्ता मूर्त रूप से पर्याय बन चुकी है। वह भी इतनी शक्तिशाली हो चुकी है कि सब कुछ को अपने अंदर समा लेने को आतुर है।

लेखक श्री दुर्गा प्रसाद पारकर का विनम्र प्रयास अपने समाज के प्रति सार्थक सृजन की ओर ही रहा है। कृति- 'चिन्हारीÓ, 'शिवनाथÓ, 'चंदाÓ, 'सुकवाÓ, 'केवट कुंदराÓ,  'बहु हाथ के पानीÓ, 'सुराजी गाँवÓ, 'जोत जँवाराÓ, 'मया-पीरा के सँगवारी सुवाÓ ने विराट फलक पर नई समझ विकसित की है। सामाजिक परिवेश के साथ अपने लेखकीय दृष्टिकोण को समर्थ और सार्थक बनाये। सामाजिक जीवन की सच्चाई, ऐतिहासिक महत्व को सामने लाये। इसके बिना सामाजिक गौरवबोध को समझना नामुमकिन है। अधिकांशत: मनुष्य-विरोधी शक्तियों के विरुद्ध अनिवार्य पक्षधरता और प्रतिरोध की मांग करते हैं। एक समय के बाद देखें तो हमारा सृजन कर्म ही हमारा संघर्ष बन जाता है। एक लेखक के संघर्ष का औजार उसका रचनाकर्म है। लेखक श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने अपनी तार्किक-संवेदनात्मक संरचना से शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवटÓ जैसी कृति की रचना करता है। समय के साथ-साथ माध्यम को भी परिवर्तित करते हैं, अंतर्संयोजन के रूप-कल्प को बदलते हैं तभी 'बिलासा देवी केवटÓ जैसी वीरांगना नारी का समाज के लिए पुनर्नवीनीकरण हुआ है। संघर्ष की प्रक्रिया में प्रतिरोध के एक नये सौंदर्यशास्त्र अपनी अर्थ सत्ता को प्राप्त करता है। प्रतिरोध का यही सौंदर्यशास्त्र हमारे भावी समाज के लिए शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवटÓ बन जाती है।

छत्तीसगढ़ी उपन्यास शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवटÓ समय से आबद्ध उन घटनाचक्रों की समुच्चय से है जिनका संबंध राजा कल्याण साय की प्राण रक्षा से है। जब राजा कल्याण साय शिकार पर निकलते हैं, जंगल का शेर कल्याण साय पर हमला कर देता है, बचाओ-बचाओ की आवाज आती है तब बिलासा अपने तीर कमान से शेर पर प्रहार करते हुए राजा कल्याण साय के प्राणों की रक्षा करती है। यह वही 'बिलासा देवी केवटÓ है जो अरपा नदी के किनारे अपने पति बंशी केवट के साथ रहती है।

बिलासा की वीरता निषाद समाज को गौरवान्वित करती है। न्यायधानी नगरी बिलासपुर बिलासा की वीर परंपरा को वर्तमान युग तक कायम रखे हुए हैं। लेखक श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने मानवीय संवेदनाओं के बदलते हुए परिवेश, प्रकृति और कल में जो कुछ भी घटित हुआ है, उसकी स्पष्ट आहट छत्तीसगढ़ी उपन्यास 'शौर्य की प्रतिमूर्ति बिलासा देवी केवटÓ में देखी जा सकती है। बिलासपुर से रतनपुर तक आदिशक्ति महामाया मइया की कृपा अभिव्यक्त होती है। वीरता की शालीन परंपरा से समाज का बदलता हुआ परिवेश उभरा है-आज सपना म महामाया मइया ह दर्शन दे रिहिसे। तोर कोख म जउन लइका संचरे हे ओहा शक्ति स्वरूपा आय। ओहा कुल ल तारही। केवट समाज के नाम ल रोशन करही। नोनी ह देवी के रूप म स्थापित होही।

 लेखक श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने समाज की बुनियादी आवश्यकताओं को आधार मानकर 'बिलासा देवी केवटÓ की कथा दृष्टि को क्लासिक दृष्टि दी है - हर युग, हर भाषा की। समय के यथार्थ पर जोर देने वाला सार्वकालिक छत्तीसगढ़ी उपन्यासकार श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने यह साबित कर दिया कि छत्तीसगढ़ी कथा साहित्य में केवट समाज की वीर स्वाभिमानी नारी 'बिलासा देवी केवटÓ राजा कल्याण साय की नगरी रतनपुर और बिलासपुर से गायब नहीं हुई हैं। छत्तीसगढ़ में गांव और शहर भी हंै पर जीवन के यथार्थ पर लिखित बिलासा की प्रासंगिकता आज भी विद्यमान है और रहेंगे क्योंकि-बिलासा ह जउन भी काम के शुरुआत करे पहिली महामाया मइया ल ही सुमिरय, गांव के संघर्ष और जिजीविषा की अभिव्यक्ति के लिए। श्री दुर्गा प्रसाद पारकर द्वारा लिखित छत्तीसगढ़ी उपन्यास 'बिलासा देवी केंवटÓ अपने समय और समाज से सदैव जीवंत संबंध रहा है। उसका वर्तमान और यथार्थ से गहरा और अनन्य रिश्ता रहा है। यह एक लोकतांत्रिक विधा है। यह उपन्यास अपने लोकतांत्रिक रूप को समाज में और अधिक समृद्ध किया। देशकाल परिस्थिति को विभिन्न रूपों में देखा तो नए देश काल के निर्माण की तड़प भी दिखाई दी। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था से जूझते केवट समाज की महागाथा को प्रस्तुत किया साथ ही नयी व्यवस्था निर्माण की रचनात्मक आकांक्षा को रेखांकित किया। समाज में बिलासा देवी केवट जैसी उपन्यास की प्रकृति बदली। उपन्यास की थीम से लेकर उसकी शिल्प संरचना में होने वाले परिवर्तन को संभव किया। स्मृति, घटना और स्वप्न में घटना अर्थात यथार्थ को अपने-अपने औपन्यासिक कृति में देखा, समझा और जांच परख कर समाज के लिए एक यथार्थ की रचना है- 'सुखवन्तीन ह परसुराम ल बताइस कि नोनी अँवतरे हे बेटा नोनी अँवतरे हे। नोनी के चेहरा ह चमकत रिहिसे। बिहनिया बिहनिया बस्ती भर हल्ला हो गे। बैसाखा के कोरा म बेटी अँवतरे हे। बस्ती भर खुसी के माहौल बनगे।Ó


बेटी जनम लिन्हे बेटी जनम लिन्हे 

बइसाख म बेटी जनम लिन्हे

सखियां आवय सोहर गावय

सोहर गवउनी देबो मन के मड़उनी

बइसाख म बेटी जनम लिन्हे


लेखक इसी व्यवस्था में जीता है। इसी नाभि-नाल से जुड़ा अधिकांश कहानी मध्य वर्ग से आते हैं। व्यवस्था से समझौते और विद्रोह के विकट चुनौतियों को स्वीकार करते हैं। यह समाज की गहरे आत्म साक्षात्कार की उपलब्धि है। मुझे उपन्यासकार बाबू देवकीनंदन खत्री के उस तिलिस्म की याद आती है जिसमें से बाहर निकलना असंभव था लेकिन जिसके भीतर के प्रांगणों में बगीचे भी थे, तहखाने भी थे और जिसमें कई नवज्योति हम और किशोरियां गिरफ्तार रहती थीं। वे घूम-फिर सकती थीं, तिलिस्मी पेड़ों के फल खा सकती थीं लेकिन अपने हद से बाहर नहीं निकल सकती थीं। ये हदें वे दीवारें थी जो पहले से ही बनी हुई थी जिनको तोड़ पाना लगभग असंभव था अथवा जिन्हें तोड़ने के लिए अपरिसीम साहस, कष्ट सहन करने की अपार शक्ति और धैर्य तथा वीरता के अतिरिक्त विशेष कार्य-कौशल और गहरे चातुर्य की जरूरत थी। मेरी आंखों से उस गहरे अंधेरे तिलिस्म के तहखानों और कोठरियों के बाहर के मैदानों में घूमती हुई लाल-पीली और नीली साड़ियां अब भी दिख रही हैं, उनके मुरझाए गोरे कपोल और ढीली बंधी वेणियों की लहराती लटें भी दिख रही हैं और मन ही मन में कल्पना कर रहा हूं कि क्या यहां फैले हुए बहुत से लोगों की आत्माएं इसी प्रकार की तो नहीं हो गई हैं लेकिन प्रश्न तो यह है कि यह तिलिस्म कैसे तोड़ा जाए। मनुष्य के समाज की व्यवस्था बाहरी सामाजिक तो है ही, आंतरिक भी है-व्यक्ति के मन में। मनुष्य का संघर्ष दोनों स्तरों पर चलता है। एक ओर वह सामाजिक व्यवस्था के दोषों से जूझता है, दूसरी ओर वह अपने मन के धरातल पर चलते महाभारत को भी लड़ता है। मगर असली मुद्दा यह है कि एक लेखक इस दोहरी लड़ाई में किस तरह अपनी भागीदारी निभाता है। 

'बिलासा ह अपन सहेली मन संग डोंगा म गिस अउ बंशी के डोंगा ले सबो यात्री मन ल अपन डोंगा म कइसनो करके बइठार के ए पार लइस। सब यात्री मन बिलासा ल असीस दिस तँय ह देवी के अवतार हस बेटी आज तँय नइ रहिते त हम्मन अरपा के धार म बोहा जाय रहितेन। बिलासा किहिस- ऐमा मोर कोनो हाथ नइहे ए सबो महामाया मइया के किरपा आय। बंशी घलो बिलासा ल किहिस- आज तोर सेती सब झिन के जान बांच गे बिलासा। बिलासा किहिस- ए सब महामाया मइया के किरपा आय बंशी। बिलासा के बहादुरी के सोर ह चारो मुड़ा बगरे बर धर लिस।Ó

ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो छत्तीसगढ़ी उपन्यास शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवटÓ कलात्मक लेखन अवयव है। श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने उपन्यास लिखते समय 'बिलासा देवी केवटÓ की शौर्य गाथा की शिराओं में रक्त की तरह अंतर्निहित करते हैं। तार्किक कल्पना के साथ ऐतिहासिकता को प्रदर्शित करते हुए ऐतिहासिक रूप से आबद्ध होकर लेखन किया है। इस ऐतिहासिक समय में आबद्ध होकर किसी शौर्य गाथा परिगाथा को विशेष रुप से चित्रांकित करना मात्र नहीं है जैसा कि हम अन्य कहानियों और सत्य कथाओं में पढ़ते हैं। 'बिलासा देवी केवटÓ की जीवन के प्रासंगिक वास्तविक शौर्य संदर्भ को मौजूदा समय में प्रस्तुत करना है। लेखक श्री दुर्गा प्रसाद पारकर के लिए यह समय सदैव वर्तमान का रहा है याने हम जिस समय को लेकर चल रहे हैं वह अतीत है या भविष्य हमारे सामने उपस्थित है।

राज दरबार म बिलासा के जय-जयकार होइस। राज दरबार म राजा ह घोषणा करिस कि रतनपुर राज ल बिलासा जइसे बहादुर नारी के जरूरत हे। आज ले बिलासा ल मोर सलाहकार के संगे संग मंत्री के रूप म नियुक्त करत हँव। अउ एकर बहादुरी के एवज म अरपा नदिया के दुनो पार (खड़) जागीर (भुइयाँ) ल बिलासा ल सौंपत हँव। राज दरबार म राजा ह बिलासा ल तलवार दे के सम्मानित करिस। बिलासा ह राजा के सलाहकार अउ मंत्री बने के बाद जब घोड़ा म बंशी संग अरपा तीर बस्ती म पहुंचिस त पूरा बस्ती जय-जयकार करिन। बिलासा ल अरपा के दुनो पार के भुइयाँ के मालकिन घलो बना दे हे कहिके बस्ती वाले मन ल बिलासा ऊपर गर्व होइस। अब तो अरपा के दुनो पार के विकास बर बिलासा ह अपन विवेक ले बहुत अकन योजना बनइस अउ योजना ल पूरा करके अरपा के दुनो पार के विकास करत गिस। बिलासा ह हर क्षेत्र म चाहे शिक्षा के क्षेत्र हो, चाहे आर्थिक क्षेत्र हो, चाहे अरपा नदिया के संरक्षण के काम हो, चाहे धार्मिक बुता होय अपन जनता ल आत्म निर्भर बनाए के दिशा म दिन-रात काम करत रिहिसे। जब अपन जागीर के विकास के बात होवय चाहे राजा ल सलाह बर बिलासा के जरूरत परय बिलासा ह शौर्य के देवी के रूप म तलवार धर के रतनपुर जावय।

लेखक श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने मानवीय प्रेम और आध्यात्मिक सौंदर्य एवं शौर्य की समृद्धि परंपरा का निर्वाह करते हुए बिलासा की रूप कृतियों में कलात्मकता के शिखर को छुआ है। जीवन की समग्रता को रूप शिल्प के माध्यम से अभिव्यक्ति दी है- 'बिलासा केवटÓ ह साधारण नारी नई रिहिस वोहा देवी के अवतार रिहिसे। अब बिलासा ल 'बिलासा देवी केवटÓ के नाम ले जाने जाही, अरपा के दुनो पार बिलासा के जागीर ल बिलासा के नाम से बिलासपुर के नाव ले जाने जाही अउ बिलासपुर म कुल देवी के रूप म बिलासा देवी के पूजा होही। राजा कल्याण साय के घोषणा के बाद 'बिलासा देवी केवटÓ के जय-जयकार होइस।

छत्तीसगढ़ी उपन्यास सृजन की दिशा में श्री दुर्गा प्रसाद पारकर निरंतर कार्य कर रहे हैं। रचनात्मक प्रासंगिकता के कारण शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवटÓ को समाज आत्मावलोकन के साथ शौर्य गाथा को व्यापक मापदंडों के साथ तलाश कर सकेंगे।

           


- डुमन लाल ध्रुव



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एक


रतनपुर वाली महामाया मइया सबके मनोकामना ल पुरा करथे। आदिशक्ति महामाया मइया के किरपा ले रतनपुर राज्य म राजा कल्याण साय ह सुग्घर राज चलावत रिहिस हे। वोकर करा दू हजार खड़गधारी, पांच हजार कटारधारी, छत्तीस सौ बन्दूकधारी जवान, छब्बीस सौ धनुषधारी सेना, एक हजार घुड़सवार सैनिक, चौदह हजार दू सौ सैनिक अउ एक सौ छब्बीस हाथी घलो रिहिस। ओ बखत कोनो भी साधारण राजा अतना सेना नइ रख सकत रिहिन।

कल्याण साय के जमाबंदी किताब अउ रिवाज के मुताबिक कल्याण साय के शासन पद्धति सबले बढ़िया रिहिस हवय। जमाबंद किताब ले पता चलथे कि छत्तीसगढ़ के खालसे (वो भुइयाँ जेकर उपर कोनो एक झिन के अधिकार हो, वो भुइयाँ जेकर उपर राज्य के अधिकार हो) के प्रबंध म अउ ओकर सीमा म स्थित डिगर (दुसर) राज्य मन के प्रबंध म फरक रिहिसे। छत्तीसगढ़ के खालसा राजा ल सिरमौर मानय। राज चलाए बर अधिकार ल ओरी-पारी  (क्रमबद्ध) सबो पदाधिकारी मन ल बांटय। राज्य के मुख्य शासक ल 'दीवानÓ कहाय। जेकर सीधा सम्बन्ध राजा ले राहय। दीवान से नीचे दाऊ पद होवत रिहिसे। ये दुनो महत्वपूर्ण पदाधिकारी बारहों के उपर होवत रिहिस हे। कलचुरी राजा मन के राज्य प्रबंधन के मुताबिक बारहों के अर्थ बारह गाँव के एक समूह ले हे फेर यहू जरूरी नइ रिहिसे कि बारहों म बारह गाँव ही हो। कोनो बारहों म बारह से कम त कोनो म बारह ले जादा गाँव होवत रिहिसे। शासन के सुविधा खातिर जइसे राज्य ल गढ़ म बांट देवत रिहिन हे वोइसने गढ़ ल घलो बारहों म बांट देवत रिहिन।

दाऊ के बाद गौटिया के पद रिहिसे। गौटिया के मतलब गाँव के मुखिया ले हे। गाँव के किसान अउ जनता गौटिया के अधीन होवत रिहिन। दीवान, दाऊ अउ गौटिया के असली बूता- ''जमा के सही वसूली अउ रबानगीÓÓ रिहिस। ए व्यवस्था के मुताबिक गाँव के गौटिया ह अपन-अपन गाँव के 'करÓ वसूल के दाऊ करा भेज देवय। सबो दाऊ मन अपन-अपन 'बारहोंÓ के राशि ल सकेल के दीवान करा भेजे के जिम्मेदारी रिहिसे। अइसने किसम ले दीवान मन के उपर अपन-अपन गढ़ के जमा राशि ल वसूले के जिम्मेदारी रहाय। ये सब वसूली खातिर सबो कर्मचारी मन ल राजा डाहर ले कमीशन मिलय। अइसन ढंग ले ये सबो राज्य कर्मचारी मन ल सिरिफ जमा वसूली बर रखे जावत रिहिन हे। पदाधिकारी मन के वो भुइयाँ (जमीन) उपर कोनो किसम के अधिकार नइ होवत रिहिसे। वो बखत भू-जमाबंदी के सबसे असरदार व्यवस्था कलचुरि राजा (रतनपुर) के रिहिसे।

रतनपुर करा घोर जंगल म लगरा गाँव रिहिसे। लगरा गाँव के गौटिया सुखऊ केवट रिहिस। सुखऊ ल बइद (वैद्य) के रूप म जादा जाने। सुखऊ ह सांवला रंग के ऊंच-पुर रिहिसे न जादा मो_ा रिहिसे न जादा पातर, लाम-लाम मेछा अउ घमघम ले दाड़ी ह ओला बिक्कट फभय। धोती कुरता ओकर संवागा रिहिसे। गर म ताबीज अउ बांह म ढोलकी बाँधे राहय। मुड़ी म पागा ह बँधाय राहय। हाथ म तांबा के कड़ा पहिरे राहय। गाँव के गौटिया होय के सेती गाँव म बिक्कट मान-सम्मान राहय। गौटिया के जिम्मेदारी राहय कि गाँव म भरना (कर) ल वसूल के दाऊ करा पहुंचाना राहय। जउन मनखे मन अपन भुइयाँ के भरना ल नइ पटा सकय उँकर मन के भरना ल सुखऊ गौटिया ह पटा देवय। जइसने ओकर नाम रिहिसे ओइसने ओकर गुन रिहिस। तिही पाय के तो सुखऊ ह सब ल सुख देवय। सुखऊ बइद के राहत ले गाँव वाले मन कोनो चिन्ता फिकर नइ राहय। सुखऊ उपर आदिशक्ति महामाया मइया के आपार किरपा रिहिस हे। जंगल ले जड़ी बूटी लान के सबो बीमारी के इलाज करय। महामाया मइया के सुमिरन करके मरीज मन के इलाज करे। ताहन माता के किरपा ले सब जल्दी बने हो जावय। जड़ी-बूटी ले कोन कोन बीमारी के इलाज होवै ओला दशरथ ह बड़ सुग्घर ढंग ले गावय-


कोशल राज के जंगल मन म

साजा सरई के भरे भण्डार

कर्रा, आंवरा, धांवरा, भिरहा

अउ सइगोना के लगे रवार

भुंई लीम हर हरे मलेरिया

घाव गोंदर के दुख नसाय

बरहा कांदा ले बिक्कट फायदा

मूसली दशमूर बल देवाय

संजीवनी बूटी ये गढ़ के

सलिहा रूख के छाल कहाय

बिखहर अउजार के काटे

चेत आय अउ घाव भराय

हर्रा, आंवरा, बहेरा, ओंखद

खावै मकोइया तेंदू चार

सबेच पेड़ हर दवई आवै

बिरले मनखे करे चिन्हार

कउहा अइसन औखद आवै

जे नासय हिरदे के रोग

पीपर कउहा दुनो के छाली

बरोबर चूरन के संजोग

संझा बिहनिया चुटकी भर

दवई रोगी ल दै खवाय

उपर ले एक गिलास पानी

रोगी मनखे ल दै पियाय

ब्राम्ही बूटी रहे चितावर

नरवा, ढोंड़गा, चितावर पाय

गियान बढ़ावै ये मनखे के

कूट पीस के चूरण खाय

आक अपामार्ग बिखनाशी

फूंड़हर चिड़चिड़ा ये कहवाय

इंकर रस अउ चूरन लेय ले

सांप बिच्छी के बिख नसाय

भूल भुलइया के बूटी म

पांव परे ले चेत हराय

भूलन बन येला कहिथे

ओनहा बदले अक्कल आय


सुखऊ गौटिया ह धनीमानी रिहिस। जमीन जायजाद ले भरपूर रिहिसे। कोठा म गाय गरूवा बंधाय राहय। घर के दूध अउ घर के घी खावय अउ चार झिन ल बांटय घलो। घर बूता बर गाड़ा बइला रिहिसे त बजार हाट अउ गाँव गउंतरी करे बर खासर रिहिसे। धान, कोदो, कुटकी, मड़िया, जुंवार अउ बाजरा सबो के फसल लेवय। भर्री म कोदो के संग तिली, अरसी घलो बोवय। गाँवे म घानी म तेल निकलवा लेवत रिहिस। बइदइ ह तो सिरिफ सेवा भाव बर रिहिस हे। काकरो करा ले कुछु नई लेवत रिहिस हे। गाँव म तीज तिहार ल गौटिया के सियानी म बड़ा धूमधाम ले मनावय।

सुखऊ गौटिया के गोसइन के नाम सुखवन्तीन रिहिस। गौटिया के गोसइया ल सब गौटनीन काहय। गौटनीन ह गाहना म लदाय राहय। ओतेक चीज बस वाले हो के घलो ओला थोरको घमण्ड नइ रिहिसे। गाँव म कोनो भी जात के होवय नता रिश्ता के मुताबिक बराबर उंकर सम्मान करय। सुखऊ गौटिया ह ऊंच पुर रिहिसे फेर गौटनीन ह मंझोलन बानी के रिहिसे। टन्नक बानी के राहय। घर म नौकर चाकर रेहे के बावजूद घलो घरेलू काम बूता ल खुदे करय। गाँव म काकरो घर सुख-दुख होवय ते उंकर सहयोग घलो करय। गाँव के सुख-दुख के बराबर खियाल रखय। गौटिया, गौटनीन के राहत ले लगरा गाँव के मन एको रात लांघन नइ सुतिन। अंकाल पर जय त गाँव वाले मन बर अपन कोठी ल खोल देवय। गौटनीन, गौटिया ल गाँव वाले मन देवी देवता कस मानय। दुनो झिन बिक्कट दयालु राहय। धरम करम ल बिक्कट मानय। इंकर दुवारी ले कोनो खाली हाथ नइ जावय। गौटिया, गौटनीन मन के दिमाक म बस एके बात राहय।


साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाय।

मैं भी भूखा न रहंू, साधू भी न भूखा जाय।।


गौटिया, गौटनीन धार्मिक प्रवृत्ति के रिहिन हे। जब भी बखत मिलय गौटिया ल त रामायण पढ़े। गौटनीन ह बराबर रामायण सुनय। अइसने करत करत गौटिया ह गाँव म रामायण मण्डली खोलवा डरिस। ताहन इही रामायण मण्डली वाले मन गाँव म छ_ी बरही म रामायण पढ़य। गाँव के अराध्य देवी शीतला माता म गाँव भर मिलके जंवारा बोवय। अब तो रामायण मण्डली के संगे-संग सेवा मण्डली घलो तैयार हो गे रिहिस हे। एसो तो गाँव के सुख, शांति बर गौटिया के अगुवाई म क्वांर नवरात्रि म जंवारा बोईन। गौटिया ह पंडा के धरम ल निभइस। दुबी रस पी के आठ दिन ले माता रानी के सेवा बजावय। सेउक मन संझा के संझा ढोल मंजीरा के संग झूम-झूम के सेवा गावय।


जस गीत


तोर देवाला म दाई...

तोर देवाला म दाई, जगमग जोत जले

संझा बिहनिया सेवा, होवत चले

तोर देवाला म दाई, जगमग जोत जले...


कड़रा घर के झेंझरी म, बिरही बोवाये

कुम्हरा घर के कलसा म, बाती जलाथे

निस दिन पंडा, जल सिंचत चले

तोर देवाला म दाई, जगमग जोत जले...


लोहरा घर के बाना म, लिमऊ खोंचाये

मेघीन, लाली, सादा, मइया, बैरग लहराये

लंगुरे रखवारे, तोर करत चले

तोर देवाला म दाई, जगमग जोत जले...


काली रूप म खप्पर मइया, मुहाटी बिराजे

मांदर, ढोल, मंजीरा दाई, सेउक बजाये

दुरगा परसाद मइया हो...


भक्ति परसाद मइया, बंटत चले

तोर देवाला म दाई, जगमग जोत जले...


देवी के सोलह सिंगार के वर्णन


पचरंग मइया के सिंगार हो मां...

सेत-सेत तोर ककनी बनुरिया, अहो महामाई सेते पटा तुम्हारे

सेत हवय तोर गर के हरवा अउ फूलन के हारे

पिंयर पीताम्बर पहिरे महामाई, पिंयर कान के ढारे

पिंयर हवय तोर नाक के नथनी, रहे ओट म छाये...


हरियर-हरियर हाथ के चूरी, हरियर गला के पोते

हरियर हवय तोर माथ के टिकली, बरे सुरूज के जोते...


लाली लाल लहर के लहंगा, लाली चोले तुम्हारे

पान खात मुंह तोर भवानी, सिर के सेंदुर लाले...


कारी कोर लगे अचरन म, कारी कजर के रेख

कारी हवय तोर भंवर पालकी, कारी सिर के केस...


मइया के जस गावत सेउक मन ढोल, मंजीरा अउ झांझ बजावत मगन रहिथे। कतनो मन थपरी पीटत माता के सेवा गावत रथे। त कतनो मन देवता चढ़ जथे। देवता चढ़े के बाद झूम-झूम के नाचत रिहिथे। देवता चढ़े रहिथे तेह कांटा वाले साकड़ ले अपन पीठ ल पीटत रहिथे। देवता चढ़े रहिथे ओ सेउक के जोश ल देख के ओकर उत्साह बढ़ाये बर जस मण्डली ह गीत गाथे-


तुम खेलव दुलरूवा रन बन, रन बन हो...

का तोर लेवय रइयां बरम देव, का तोर ले गोरइया

का लेवय तोर बन के रक्सा, रन बन, रन बन हो

नरियर लेवय रइयां बरम देव, बोकरा ले गोरइया

कुकरा लेवय बन के रक्सा, रन बन, रन बन हो...



काकर पूत हे रइयां बरम देव, काकर पूत गोरइया

काकर पूत हे बन के रक्सा, रन बन रन बन हो...

बाम्हन पूत हे रइयां बरम देव, गहिरा पूत गोरइया

धोबी पूत हे बन के रक्सा, रन बन रन बन हो...


नवरात्रि के बाद दसराहा ल सब झिन गाँव के खइरखा डाढ़ म सकला के बड़ा धूमधाम ले मनइन। दसराहा मनाये के बाद सब झिन देवारी माटी करे बर भीड़ गे। घर दुवार के साफ-सफाई के संगे-संग कोठार (बियारा) डाहर धियान घलो जाय रहाय। लगे लगे बियारा के छोलई-चचई घलो शुरू होगे। काबर कि हरहुना धान मन ह लुए के लइक हो जय रहिथे। मड़िया ह घलो काटे के लइक हो जय रहिथे। गौटिया हनौकर चाकर मन ल घलो धोती सलूखा दिस। देवारी मनाए के बाद किसानी काम बूता म भीड़ गे। धान लुवाये मिंजाये के बाद गोरखनथिया मन भजन गावत चिकारा धर के गाँव-गाँव म घूमय। बसदेवा मन घलो झुनझुना बजावत, झोली अरो के गाँव गाँव घुमथे। गोरखनथिया अउ बसदेवा मन ल देवता स्वरूप मानथे। तभे तो उमन ल सूपा भर धान अउ पइसा दे के बिदा करय। बसदेवा ह मुड़ी म मंदिर असन पहिरे झोली ओरमाय गली खोर होवत कोलकी-कोलकी लगरा गाँव, गौटिया के डेरौही म पहुंचीस। बसदेवा के आरो पा के गौटनीन ह बाहिर निकलिस ताहन बसदेवा ह झुनझुना बजावत गायन शुरू करिस-


जय हो गौटनीन, जय हो तोर

चूरी अम्मर रहे तोर

धरमी चोला के जय हो तोर

सुखऊ गौटिया के उड़े सोर, जय गंगान...


अन्न धन्न ले भरे भण्डार

नाती नतरा खेले अंगना दुवार

जय होवय तुंहर केवट परिवार

महामाया के किरपा हवय अपार, जय गंगान...


रामभक्त गुहा निषाद

ओकर वंशज करव राज

असीस हवय तुमन ल मोर

झोली ल ते भर दे मोर, जय गंगान...


जय हो गौटनीन, जय हो तोर

चूरी अम्मर रहे तोर

धरमी चोला के जय होय तोर

सुखऊ गौटिया के उड़े सोर, जय गंगान...


गौटनीन ह सुपा भर धान म रूपिया पइसा दे के बसदेवा ल बिदा करिस। बसदेवा के बिदा करे के बाद ओकर मन म नाती खेलाय के इच्छा जागिस। मने मन गुनिस परसुराम के ददा करा मौका देख के बेटा के बर-बिहाव करे बर गोठियाहंू।

सुखऊ अउ सुखवन्तीन के कोरा म जब बेटा खेलिस त सुखऊ ह सुखवन्तीन ल पूछीस- बेटा के का नाम रखबोन? सुखवन्तीन किहिस- बेटा ह पेट म रिहिस त परसा पान म अंगाकर रोटी सेंक के बिक्कट खाय हँव तेकर सेती ओकर नाम परसा रख देथन।

सुखऊ कथे- लइका के नाम कोनो पाना पतई ले थोरे राखे जाथे। सुखवन्तीन कथे- तिंही बता का राखन? सुखऊ कथे- बेटा के नाम परसा नइ राख के परसु रखबोन। काबर कि नाम के प्रभाव जिनगी उपर परथे। सुखवन्तीन कथे- बने काहत हस बाबू के ददा फेर मोर एक ठन बिनती हे ओकर नाम के पाछु म राम घलो जोड़े देते। बेटा के संग म भगवान राम के नाम ल जपत जपत तर जतेन। सुखऊ कथे- बने काहत हस सुखवन्तीन, बेटा के नाम ल परसुराम रख देथन। सुखवन्तीन कथे-मोला तो नाम ले म मुश्किल जाही काबर कि नाम ह बड़े हे। सुखऊ कथे- तहंू ह निच्चट भकली हवस। तिहीं तो काहत रेहे न राम भगवान के नाम ल लेवत तर जबोन कहिके। सुखवन्तीन कथे त घर के नाम का राखन? सुखऊ कथे-घर के नाम 'रामाÓ रखथन। घर म रामा-रामा कहिबोन। सुन के दुनो झन खलखला के हंस डरथे।


                                          दू


परसुराम ह अपन ददा के अंगोछ म रिहिसे। बिक्कट टन्नक बानी के रिहिसे। अपन संगवारी मन संग तरिया-नरवा म मछरी मारे बर चल देवय। परसु के ददा चाहत रिहिस हे कि परसु ह अपन बइदई के गुन ल सीख जतिस कहिके। तिही पाय के सुखऊ ह लइका पन ले परसु ह जड़ी-बूटी खोजे बर अपन संग म जंगल लेगे। धीरे-धीरे परसु ह जड़ी-बूटी ले इलाज पानी करई ल अपन ददा ले सीख डरिस। ननपन म तो परसु बिक्कट उतलंगहा रिहिस। बरसात म कागज के डोंगा बना के रेला म ढिल देवय। मछरी मरई अउ डोंगा चलई ह ओकर आदत म शामिल हो गे। नरवा म पटनी के डोंगा बना के ए पार ले ओ पार नहाकय। गाँव के तीर म नरवा रेहे के सेती ओह तउंरे बर घलो सीख गे रिहिसे। एक दिन तो चार पांच झिन संगवारी मन संग पटनी अउ लकड़ी के डोंगा बना के नहाकत रिहिन हे ओइसने म इंकर डोंंगा ह जादा पानी के सेतीे डगमगाये बर धर लिस। परसु ह सब झिन ल बचाये रिहिसे। सुखऊ गौटिया गाँव गउंतरी चल देवय त मरीज मन के इलाज पानी ल परसु ह करय।

सुखऊ गौटिया ह बाजार के दिन चिल्हाटी गाँव गे रिहिसे। घरेलू सामान बिसाय बर खासर म गे रिहिसे। एक झिन नौकर ह घलो संग म गे रिहिसे। चिल्हाटी गाँव केवट मन के बस्ती आय। उहें के गौटिया के नाम सांवत केवट रिहिस हे। सांवत गौटिया बड़ा व्यवहारिक रिहिसे। गाँव वाले मन सांवत गौटिया ल बिक्कट मानय। सांवत गौटिया घलो गाँव के बाजार आये रिहिसे उहें सुखऊ गौटिया संग भेंट हो गे। दूनो गौटिया जै जोहार करिन तहान सांवत गौटिया ह सुखऊ गौटिया ल चाहा पियाय बर अपन घर लेग गे। सांवत गौटिया के एके झिन बेटी बैसाखा रिहिस। सुन्दर संस्कारिक नोनी रिहिस। पहिली तो सगा मन ल लोटा म पानी दिस ताहन देखते-देखत बैसाखा के महतारी घलो परोसी घर ले आ गे। वहू ह सबो झिन के पाय पलागी करिस ताहन धनेसरी गौटनीन ह चाहा बना के बैसाखा ल धरवा के भेज दिस। सुन्दर रूपस बैसाखा ल सुखऊ ह देखिस तहान ओकर मन आ गे। ओह मने मन गुने बर धर लिस बैसाखा अउ परसु के जोड़ी बने फभही। एला परसु बर बहू बनाहंू। फेर ए बात ल सुखऊ ह मने म राखिस। चाहा पानी पी के सुखऊ ह खासर म बइठ के लगरा गाँव लहूट गे। बाजार ले साग भाजी के संगे-संग चना, मूर्रा, लाड़ू, कांदा घलो लाने रिहिसे तेला सुखवन्तीन ल दिस तहान सबो झिन बइठ के खजानी खइन।

सुखऊ गौटिया ह घर म इलाज करे के संगे-संग घर म घलो जा के दवई बूटी दे के मरीज मन के इलाज पानी परय। खेत खार डाहर के काम बूता ल निपटा के सुखऊ ह घर पहुंचीस। घर म सुखन्वतीन ह भात साग रांध डरे रिहिसे। ताते-तात खाय बर दिस। सुखऊ गौटिया खा के आराम करय। आराम करे बर गौटिया ह अपन कुरिया म गिस ताहन गौटनीन ह घलो चल दिस। गौटनीन ल देख के गौटिया कथे-कइसे गौटनीन कुछु कहना हे का?

सुखवन्तीन-हव।

सुखऊ-बोल न का बात हे?

सुखन्वतीन-काली बसदेवा मन आय रिहिन हे।

सुखऊ-ओ तो बने बात हे। दान-धरम करई ह तो बढ़िया बात आय। दान धरम करे ले असीस मिलथे।

सुखन्वतीन-उमन असीस देहे तिही ल तो बताय बर आये हँव।

सुखऊ-का असीस दे हे?

सुखवन्तीन-बसदेवा काहत रिहिसे-


अन्न धन्न ले भरे भण्डार

नाती-नतरा खेले अंगना-दुवार

जय होवय तुंहर केवट परिवार

महामाया के हवय किरपा अपार, जय गंगान...


सुखऊ ह अपन गोसइन ल किहिस बने तो असीस दे हे अन्न-धन्न ले भण्डार भरे हे, हमर परिवार के जय जयकार होवत हे ए सब महामाया मइया के किरपा ले तो होवत हे। सुखवन्तीन कथे-फेर अंगना म नाती नतरा कहां खेलत हे?

सुखऊ-(मजाक करत) त खेला न

सुखवन्तीन-काला खेलाहूं? रही त तो

सुखऊ-ले काली चिल्हाटी बाजार ले पुतरा-पुतरी लान दुहंू तेला खेलाबे।

सुखवन्तीन-मोला पुतरा-पुतरी नही बल्कि सही म नाती नतरा खेलाना हे।

सुखऊ-त परोसी के नाती-नतरा ल लान के खेला कूदा।

सुखवन्तीन-दूसर के नाती-नतरा ल नही, मोर नाती-नतरा ल खेलाना हे?

सुखऊ-एकर बर मोला का करे बर परही तेला बता?

सुखवन्तीन-एकर बर परसु के बिहाव करे बर परही।

सुखऊ- महंू ल फिकर हे सुखवन्तीन अउ मोरो सउंख हे नाती-नतरा खेलाय बर।

सुखवन्तीन-त ऐसो परसु बर बहू खोजे बर निकलते।

सुखऊ-खोजे बर का कहिथस सुखवन्तीन। बहू खोज डरे हँव।

सुखवन्तीन-(खुस हो के) कोन गाँव म देखे हवस?

सुखऊ-काली चिल्हाटी गाँव गे रेहेंव उहें सांवत गौटिया के नोनी ल देख के आय हँव। सुग्घर राम सीता कर जोड़ी फभही।

सुखवन्तीन-का नाम हे नोनी के?

सुखऊ-बैसाखा नाव हे। बिक्कट सुन्दर हे।

सुखवन्तीन-त के झिन भाई-बहिनी होथे।

सुखऊ-बैसाखा ह एकलौती बेटी आय।

सुखवन्तीन-हमरो बेटा ह तो एके झिन हे, इंकर एक ले एक्कइस बाढ़य।

सुखऊ-अभी तो देखे भर हँव। बात बाढ़े कहां ले हे।

सुखवन्तीन-त बात ल बढ़ा न।

सुखऊ-हव। अब ए दरी अपन बेटा बर बैसाखा के हाथ ल मांगे पर जाहंू।

जेठौनी के बाद सुखऊ गौटिया ह अपन संगवारी संग खासर बइठ के चिल्हाटी गाँव सीधा सांवत गौटिया घर पहुंचीस। धनेसरी गौटिनीन ह सगा मन ल देख के चिन्ह डरिस तहान मुड़ी ल ढाकत हड़बीड़-हड़बीड़ घर म खुसरिस। भीतरी ले अपन गोसइया ल सगा आए हे कहिके मुहाटी म भेजिस। सांवत गौटिया ह जोहार भेंट करके सुखऊ गौटिया ल घर भीतरी लेगिस। धनेशरी गौटनीन ह फूलकांच के लोटा म पानी दे के पलागी बनइस। चाहा पानी पीये के बाद सुखऊ ह गोठबात शुरू करिस-

सुखऊ-एक ठन बूता बर आये रेहेंव सगा।

सांवत-बता न, का बूता ए ते?

सुखऊ-ओ दरी आए रेहेंव त बैसाखा बेटी ल देख के गे रेहेंव ए दरी मोर बहू बनाहूं कहिके आपले बैसाखा के हाथ मांगे बर आए हँव।

सांवत-लेव न आज मंझनिया भोजन करके जाहू तब तक हमू मन जुग जोड़ी सुन्ता-सलाह हो जथन। 

सांवत ह घर भीतरी जा के सुखऊ गौटिया के बात ल धनेशरी गौटनीन करा रखिस। सुखऊ ह लगरा गाँव के  गौटिया आय एके झिन बेटा हे, बिक्कट धनीमानी हे। सुखऊ ह सज्जन आदमी आय महंू ह ओकर लड़का ल जानत हँव। बहुत बढ़िया लड़का आय। सुखऊ ह अपन लड़का परसुराम बर बैसाखा के हाथ मांगे बर आये हे। बैसाखा बेटी ह सुखऊ गौटिया घर बड़ खुस रही। अब तिहीं बता धनेसरी तोर का बिचार हे? धनेसरी ह कथे- जब महामाया मइया के किरपा ले हीरा कस लड़का मिलत हे त हव कहि दव जोड़ी। अउ फेर लगरा गाँव ह जादा दुरिहा घलो नइहे। जब मन करही बेटी ल देखे बर चल देबोन। धनेसरी ह हामी भर के तेलई बइठगे। बरा सोंहारी अउ खीर रांध डरिस। 

खाना खा के बइठक खोली म बइठ के गोठ बात शुरू होइस-

सुखऊ-त का सोचे हव सगा?

सांवत-ए रिश्ता हम्मन ल मंजूर हे। आप जइसे सगा पा के हम्मन धन्य हो गेन

सुखऊ-त फेर बिहाव के जोरा ल शुरू कर देथन।

सांवत-हव गौटिया।

सुखऊ-मंय गुनत हँव अकती भाँवर लुहंू कहिके।

सांवत-ओ तो अउ बढ़िया बात आय। अकती ह तो देव लगन आय।

हंसी खुसी दुनो पक्ष के चेहरा म उछाह के लहरा ह दउड़त रिहिस। गोठ बात पूरा होय के बाद सुखऊ गौटिया ह लगरा गाँव पहुंच गे।

सुखऊ गौटिया अपन सब बात ल गौटनीन ल बतइस बात पक्का हो गे हे। अकती म भांवर लेबोन कहिके सुन्ता सलाह होय हन। सुने के बाद सुखवन्तीन ह भारी खुस होगे। महामाया मइया ह मोर बिनती ल सुन लिस कहिके महामाया मइया के सुमिरन करके असीस मांगिस।

दुनो पक्ष ह बिहाव के तैयारी म लग गे। दुनो झिन गाँव के गौटिया रिहिन हे तिही पाय के अपन-अपन शान के ध्यान रखत तैयारी करत रिहिन। लगरा गाँव म नेवता बटई सुरू हो गे। राजा, दीवान, दाऊ अउ तीर-तखार के गाँव मन म चिन्ह पहिचान मन करा घलो नेवता पठोइस। सुखऊ गौटिया ह अपन बेटा के बराती जाय बर बीस ठन गाड़ा बइला के अउ दस ठन खासर के बेवस्था करे रिहिसे। दुल्हा बर घोड़ी मंगवाये रिहिस हे। सगा-सोदर मन के संग नेवतहार मन घलो बरात जाय बर तइयार रिहिन दाऊ, दीवान मन बरात जाय बर घोड़ा म बइठ के आये रिहिन हे। अब परसुराम दुल्हा के रूप म घोड़ी म बइठिस त अइसे लागत रिहिसे कि सीता ला बिहाय बर राजा राम ह जावत हे। सबले सुरू म दुल्हा ह घोड़ी म, ओकर बाद दीवान मन ओकर बाद दाऊ मन ओकर बाद खासर ताहन गाड़ा म बरतिया मन बइठे रिहिन हे अब बरात बिदा करत माईलोगन मन खुसी के मारे गीत गावत रिहिन हे। आज तो लगरा गाँव ह अवधपुर कस अउ चिल्हाटी ह जनकपुर कस लागत रिहिस हे-


गाँव अवधपुर ले चले बरतिया

गाँव जनकपुर जाये

ये हो राम गाँव जनकपुर जाये

राजा जनक के जनकपुरी ह

स्वर्ग कस सुग्घर लागे

ये हो राम स्वर्ग कस सुग्घर लागे

राजा जनक जो मिलने को आये

दशरथ अंग लपटाये

ये हो राम दशरथ अंग लपटाये

करे अगवानी ले जावय बरतिया

गाँव जनकपुरी जावय

गाँवे जनकपुरी के सोभा ल देखे

ब्रह्मा भये अकचकाए

बने रसोई देवगन खाये

सुभ घड़ी सुन्दर लगिन धराये ओ

सीता के रचे हे बिहावे

ये हो राम-सीता के रचे हे बिहावे

कौन चढ़े वह डॉडी-डोलवा

कौन चढ़े सुख पलना

ये हो राम कौन चढ़े सुख पलना

काकर सिर में अओ चंवर होवत हे

कौन टिकौरे बाने

ये हो राम कौन टिकौरे बाने

राम जो चढ़िथे डॉडी अऊ डोलवा

ओ भरत चढ़े सुख पलना

ये हो राम भरत चढ़े सुख पलना

दशरथ के सिर में चंवर होवत हे

ओ लखन टिकौरे बाने

ये हो राम लखन टिकौरे बाने

गाँव जनकपुर म बाजे बधावा

ओ घर-घर मंगल गाये

ये हो राम घर-घर मंगल गाये।


सांवत गौटिया घलो बने पंूजी पसरा वाले रिहिस हे। सांवत गौटिया के घलो अतराब म बिक्कट मान-सम्मान रिहिसे। सांवत गौटिया के एकलौती बेटी। खरचा म कोनो किसम के कमी नइ करिस। जतना जान पहिचान वाले रिहिन उमन ल बिहाव के नेवता दे रिहिस हे। गाँव वाले मन ल झारा-झारा नेवता दे रिहिस हे। खाना बनाय बर रतनपुर ले रंधइया बलवाये रिहिस हे। आनी बानी के मिठई, कलेवा तैयार करवाये रिहिस हे। बराती मन के स्वागत म कोनो किसम के कमी झन राहय कहिके खुदे निगरानी करत रिहिस।

देखते-देखत बराती मन चिल्हाटी पहुंच गे। बराती मन के शान-शौकत ल चिल्हाटी गाँव वाले मन देखते रहिगे। बराबर के सगा जुड़े रिहिसे। बड़ा धूमधाम ले सांवत गौटिया ह बराती मन ल परघइस। का बाजा ल कहिबे, का फटाका ल कहिबे। सब खुसी के मारे नाचत कूदत बराती मन ल परघइन। बिक्कट सेवा सत्कार करिस। ओकर बाद अकती के दिन लगन के तय समय म भांवर लिन। भांवर के बाद पींयर चाँऊर ले टीकावन टीक के असीस दिन। जेकर ले जतना बन सके अपन बेटी ल सगुन स्वरूप रूपिया पइसा, लुगरा, पोलखा, बरतन-भाड़ा टिकावन टिकत रिहिन। गीत गवइया माईलोगन मन टिकावन गीत गावत रिहिन -


कोन तोर टिके नोनी

अचहर-पचहर वो

कोन तोर टिके धेनु गाय

के अवो नोनी कोन तोर...


दाई तोर टिके नोनी

अचहर-पचहर वो

ददा तोर टिके धेनु गाय

के अवो नोनी ददा तोर...


कोन तोर टिके नोनी

लिली हंसा घोड़वा वो

कोन तोर टिके कनक थार

के अवो नोनी कोन...


भईया तोर टिके नोनी

लिली हंसा घोड़वा वो

भउजी तोर टिके कनक थार

के अवो नोनी भउजी...


टिकावन होय के बाद सांवत गौटिया ह टिकावन के सबो जिनिस ल अपन समधी महाराज सुखऊ गौटिया ल सौंपत किहिस- हम तो आप मन ल कुछु नइ दे सकन समधी महाराज हमर बेटीच ह सोला आना धन आय। अपन दुलौरिन बेटी ल आप ल सौंपत हन। काहत-काहत सांवत गौटिया ह रो डरिस, ओला रोवत देख के सबो झिन रो डरिन। सुखऊ गौटिया ह सावंत गौटिया ल किहिस-तुमन थोरको फिकर झन करव समधी महराज। मँय बेटी बरोबर राखहूं। ओकर पांव म कांटा गड़न नइ दँव। अब तो बिदाई के बखत हो गे। माहोल गमगीन हो गे। पूरा परिवार बोल-बोल के बैसाखा संग गुजारे दिन ल सुरता कर-कर के रोवत हे। महतारी बाप ल तो करेजा फटत हे तइसे लागत रिहिसे। सगा-सोदर मन उंकर आंसू ल पोंछ के चुप करावत रिहिन हे। गाना गवइया मन घलो रोवत-रोवत बिदाई गीत गावत रिहिन-


घर के दुवारी ले दाई मोर रोवथे

आज नोनी हो गे बिराने वो

घर के दुवारी ले ददा मोर रोवथे

रांध के देवइया बेटी जाथे

अपन कुरिया के दुवारी ले भइया मोर रोवथे

मन के बोधइया बहिनी जाथे

भीतर के दुवारी ले भऊजी मोर रोवथे

लिगरी लगइया नोनी जाथे

दाई मोर रोवथे नदिया बोहाथे

ददा रोवय छाती फाटत हे

हाय-हाय मोर दाई

भइया रोवय समझाथे

भऊजी के नयना कठोर।


बिदाई के बखत बैसाखा ह फूट-फूट के रोवत रिहिसे। ननपन ले अब तक चिल्हाटी गाँव म खेल कूद के बाढ़े रिहिसे, आज गाँव ले बिदा होवत हे। बैसाखा भले गौटिया-गौटनीन के बेटी रिहिसे फेर ओह अपन व्यवहार ले सबके हिरदे म समा गे रिहिसे। जब बैसाखा ह अपन मइके ले बिदा होवत रिहिसे त बिसाखा ह रोवई ले नई उबर पावत रिहिस हे फेर ओकर अन्तस के बात ल गीत गवइया मन उजागर करत रिहिन-


आजि के चंदा नियरे ओ नियरे

दाई मँय आज जाहंू बड़ दूरे

ओ दाई मँय

आज जाहंू बड़ दूरे।

अपन दाई के राम दुलौरिन

ये दाई मोला

आजि के चंदा...


अपन काकी के राम दुलौरिन

ये काकी मोला

छिन भर कोरा म ले ले।

आजि के चंदा...


अपन मामी के राम दुलौरिन

ये मामी मोला छिन भर कोरा म ले ले

आजि के चंदा...


अपन फुफु के राम दुलौरिन

ये फुफु मोला छिन भर कोरा म ले ले

आजि के चंदा...


अपन दीदी के राम दुलौरिन

ये दीदी मोला छिन भर कोरा म ले ले

आजि के चंदा...


रोवत बिखलत असीस देवत सांवत गौटिया अउ धनेसरी गौटनीन अपन दुलौरिन बेटी बैसाखा ल बिदा करिन। सुखऊ गौटिया अउ परसुराम बैसाखा ल बिहा के लगरा गाँव पहुंच गे। सुखवन्तीन ह चंदा कस सुंदर बहू पा के खुस हो गे। अब परसुराम अउ बैसाखा ह अपन घर गृहस्थी म व्यस्त हो गे।


तीन


घर म बैसाखा के आए ले घर ह भरे-भरे कस लागे। नारी लक्ष्मी के रूप आय। घर अब तो धन धान्य ले पनके बर धर लिस। बैसाखा के आय ले सुखन्वतीन के काम हल्का हो गे। घर बूता ल अब तो बैसाखा ह जल्दी निपटा डरे। सास बहू मिल के घर के बूता ल करे। बहू के आय ले सुखवन्तीन ह अब बारी बखरी अउ गाँव-गँवतरी घलो घुमे बर धर लिस। सुखवन्तीन ह गौटनीन होय के बाद घलो गाँव म जेचकी निपटाय बर घलो जावय। जेचकी निपटाय के आवय त अपन बहू बर तीली अउ ढूड़ही (लाड़ू) जरूर लावय। अपन बहू ल देवत काहय ए ले लाड़ू ल खा सेहत बर बने होथे। खून ह साफ होथे। मने मन सुखवन्तीन ह गुने कि अब महंू ह जल्दी नाती नतरा खेलाहंू। बैसाखा ह संझा बिहनिया तुलसी के पूजा करथे, आदिशक्ति महमाया के तो भक्तिन रहिसे। क्वांर अउ चैत नवरात्र म उपास राहय। नौ कन्या मन के पूजा करय। कन्या भोज करा के मइया मन ले घर के सुख शांति अउ समृध्दि बर बिनती करय। 

परसु ह बैसाखा के आये के बाद अब घर के जिम्मेदारी ल उठाये बर धर लिस। गाँव म परसुराम अउ बैसाखा के जोड़ी के बिक्कट बड़ई होवय। परसु ह धीरे धीरे अब अपन ददा के बूता के जिम्मेदारी ल सम्हालेे बर धर लिस। सुखऊ गौटिया के सियानी के प्रभाव ह परसुराम उपर परिस। अब गाँव के सबो बूता के अगुुुवाई ल परसु ह करे बर धर लिस। अब लगरा गाँव वाले मन ह परसु उपर बिक्कट भरोसा करय वोह गाँव वाले मन ल गाँव के हित म जउन बात काहय ओला जरूर मानय। लगरा गाँव ह जंगल के बीच म रिहिसे तिही पाय के जंगली जानवर मन ले खतरा बने राहय। गाँव के गाय गरू, मन ल हबक के जंगली जानवर लेग जय। जंगली जानवर ले गाँव वाले मन बिक्कट परेसान राहय। परसु एक दिन गाँव म बइठक सकेलिस। परसु बइठक म किहिस कि हमला गाँव के सुरक्षा बर हम्मन ल कोनो उपाय करे बर परही। अब हम सब झिन ल जंगली जानवर ले बांचे बर हथियार चलाये बर, धनुष बान चलाये बर सीखे बर परही। परसु के बात म सब झिन हामी भर दिन। अब गाँव के जवान मन ल भाला, बरछी अउ तीर चलाये के ट्रेनिंग दे गिस। इमन सिख डरिन ओखर बाद दस-दस झिन के टोली बनइस। सबो दल ह ओरी पारी गाँव के रखवाली बर पहरा दे बर धर लिन। इंकर पहरा ले ए फायदा होइस कि अब गाँव म जान माल के हानि होना बंद होगे। रात कन तो गाँव के चारों  मुड़ा भपका जलावय जेला देख के जंगली जानवर मन गाँव के तीर म ओधे के हिम्मत नइ करय। परसु के ए बूता ले सब झिन खुस हो गे। दिन म सब अपन अपन काम बूता म लग जाय। अब तो कोनो ह अपन खेत खार बिना हथियार के नइ जावय। सुखऊ गौटिया ह पहिली ले अखाड़ा, हथियार बाजी, धनुष तीर चलई अउ तलवार चलई म माहिर रिहिसे। उही सब ल लगरा गाँव के नौजवान मन ल घलो सिखोय रिहिसे। अपन पिता जी के सबो गुन ल परसुराम ह पा डरे रिहिसे। सेवा मंडली म घलो जस गीत गाये बर सीख गे रिहिसे। चैत नवरात्रि म बैसाखा ह नवरात्रि व्रत करे के बाद नौ कन्या के भोज करइस। संझा कना सेउक मन ल माता जी के जस गाय बर घर म सादर नेवता दे रिहिस हे। आज तो परसुराम ह जस गाये के सुरू करिस। जस मण्डली मन संग सुखऊ गौटिया ह घलो करताल बजावत झूम झूम के गावत रिहिसे -


नवरात नौ जोत जला ले, नौ कन्या ल भोज करा ले

बड़ भागमानी हवन हम्मन, देवी मन दरसन देहे आज 

 

शैल पुत्री के महिमा भारी, जग म हवय मइया न्यारी

ब्रम्हचारणी के जप तप ले, तर जावय सब नर अउ नारी

चंद्रघंटा के घंटा ले, कांपय दानव अत्याचारी

देवी के किरपा ले भागे, घर घर के कुलुप अंधियारी

बड़ भागमानी हवन हम्मन, देवी मन दरसन देहे आज


कुष्माण्डा मइया ह उतारे, भवसागर ले बेढ़ा पार

स्कंद माता के परताप ले, सुख पावय कुल परिवार

फलदायिनी कत्यायनी के, पूजा कर ले विधि विधान

मइया के परसन्न हाये ले, जिनगी म होवय नवा बिहान

बड़ भागमानी हवन हम्मन, देवी मन दरसन देहे आज


कालरात्रि के भय ले भागे, भागे, भय अउ मरी मसान

महागौरी के पूजन ले, दुख पीरा के होवय निदान

सिद्धी दात्री ह पूरा करथे, सब झिन के पूरा अरमान

देवी मन के अदभूत महिमा ल, सुग्घर गावय देवी पुरान

बड़ भागमानी हवन हम्मन, देवी मन दरसन देहे आज


जस गीत पूरा होय के बाद पूरा परिवार सेउक मन के बिदा करिन। बिहनिया सब अपन अपन काम बूता म लग गे। परसु ह खेती बारी के काम म लग गे, नौकर चाकर मन ल घलो बूता तियार दे रिहिसे। बैसाखा ह घर बूता म लग गे अउ सुखन्वतीन ह घर बर साग सिल्होय बर धर लिस। सुखऊ गौटिया ह जड़ी बूटी के खोज म जंगल डाहर निकल गे। संग म एक झिन रमेसर नाव के नौकर ल लेगे रिहिसे। गौटिया ह कभू अकेल्ला कहूँ नइ जावय। कोनो न कोनो ल संग म जरूर लेगय। जंगल डाहर जावय त जंगली जानवर मन ले बाँचे बर तीर कमान अउ टंगिया घलो धर ले जावय। सुखऊ गौटिया ह रमेसर  संग जड़ी बूटी खोजत-खोजत जादा दुरिहा चल दे रिहिसे। जड़ी बूटी खोजत खोजत धियान ह एती ओती ले हट गे। ओती भालू ह शिकार के तलास म रिहिसे। ओकर नजर सुखऊ गौटिया उपर परगे। रमेसर थोकिन दुरिहा म रिहिसे। भालू ह सुखऊ गौटिया उपर हमला कर दिस। सुखऊ गौटिया उपर भालू के हमला ल देख के रमेसर ह भालू उपर तीर चलइस। भालू उपर तीर परिस ताहन भालू ह सुखऊ गौटिया ल छोड़ के अपन परान बचा के भागिस ताहन रमेसर ह कइसनो करके अपन मालिक ल घर लइस। सुखऊ गौटिया ह लहुलूहान हो गे रिहिसे। सुखऊ गौटिया ल घर लाने के बाद परसु ह जड़ी बूटी ले बिक्कट सेवा जतन करिस फेर गौटिया ह खटिया ले नइ उबर पइस। धीरे-धीरे सुखऊ गौटिया ह कमजोर होवत गिस। आखिर म एक दिन भगवान के बुलावा आ गे अउ आंखी ल मंूद दिस। सुखऊ गौटिया के इंतकाल के खबर ल गाँव वाले मन सुनिन ताहन रोहा राही परगे। अपन देवता सरिक गौटिया ल घर परिवार, सगा सोदर के संगे-संग गाँव वाले मन रोवत बिखलत अंतिम संस्कार करिन।

सुखऊ गौटिया के इंतकाल के खबर ह दीवान करा गिस त लगरा गाँव के गौटिया के जिम्मेदारी ल ओकर बेटा परसुराम ल सौंपिस। अब लगरा गाँव के गौटिया के जिम्मेदारी परसुराम ल मिलिस ताहन गाँव वाले मन घलो खुस हो गे। काबर कि गाँव वाले मन घलो चाहत रिहिन हे कि गौटिया के बेटा परसुराम ह गौटिया बने। माता रानी गाँव वाले मन के बिनती ल सुन लिस।

सुखऊ गौटिया के इंतकाल के बाद सुखवन्तीन गौटनीन बंबाये बर धर लिस। गौटिया के सुरता म गौटनीन के आंसू ल थम्हबे नइ करय। हाथ ह खाली होय के बाद जिनगी ह सुन्ना लागय। दिन रात जोड़ी के सुरता ह सतावत रिहिसे। अब तो खाना घलो अंग नइ लागत हे। बैसाखा ह अपन सास ल समझावय-होनी ल कोन टार सकथे दाई, तँय खाबे पीबे नहीं त कइसे बनही। ददा ह संग ल छोड़िस ते छोड़िस फेर तोला सही सलामत रेहे बर लागही। तेंहा बने रहिबे त हमु मन बने रहिबोन। अब सुखवन्तीन ह अपन बहू के सेवा जतन म सम्हले बर धरिस। परसुराम ह घलो जड़ी बूटी ले अपन दाई ल सम्हालिस। सुखवन्तीन ह अपन बेटा परसु ल किहिस- बैसाखा कस बहू सब ल मिलय बेटा, जेहा अतेक सेवा जतन करत हे। परसु किहिस- हमर राहत ले चिन्ता फिकर झन कर दाई। समय के संग सब ठीक हो जही।

रतनपुर पार वाले मन ल रायपुर जाये बर अरपा नदिया ल नहाक के जाये बर एके ठन रद्दा रिहिसे। सुक्खा के दिन म तो आ चल देवय फेर बरसात म आना-जाना बिल्कुल बंद हो जावय। तिही पाय के बरसात बर घरेलू जिनिस के जोरा पहिली ले कर लेवय। चार महीना बर सब ल सकेल के राख लेवय। सब झिन ल गुजारा करे म भारी तकलीफ होवय। रतनपुर राज के जनता ए संकट ले उबारे बर आदिशक्ति महामाया मइया के सुमिरन करे। हे मइया बरसात म घलो अरपा नदिया ल नाहके के बेवस्था बनाये के किरपा करतेव। भगत मन के सुमरनी ल महामाया मइया ह सुनत रिहसे। इमन ल संकट ले उबारे बर महामाया मइया ह बिचार करत रिहिसे।

सुखऊ गौटिया ह रामायण के बड़ा प्रेमी रिहिसे। जब भी समय मिलय रामायण ल घंटा भर जरूर पढ़य। अपन ददा के आत्मा के शान्ति खातिर ओकर बरसी के दिन रामायण के कार्यक्रम रखिस। रामायण मण्डली वाले मन सुमरनी के बाद श्री राम सखा गुहा निषाद राज (केवट) प्रसंग ल सुनइन-


चौपाई-


मांगी नाव न केवटु आना, कहहू तुम्हार मरमु मैं जाना।

चरण कमल रज कहु सब कहई, मानुष करनि मूरि कछु अहई।।

छुवत सिला भई नारी सोहाई, पाहेन तेन काठ कठिनाई।

तरनि मुनि धरनि होइ जाई, बाट परइ मोरी नाव उड़ाई।।

एहि प्रतिपालउँ सबु परिवारू, नहि जानव कुछ अउर कषारू।

जौ प्रभु पार अवसि गा चहहु, मोहि पद पदुम पखारन कहहू।।


छंद-


पद कमल धोई चढ़ाई, नाव न नाथ उतराई चहौं।

मोहि राम राउरि आन, दशरथ शपथ सब साची कहौं।।

वरू तीर मारहू लखनु पै, जब लगि न पाय परवारि हौं।

तब लगिन तुलसीदास नाथ, कृपालु चारू उतिरि हौं।।


सोरठा-


सुनि केवट के बेन, प्रेम लपेटे अटपटे।

बिहसे करूनाऐंन चितई जानकी लखन तनु।।


चौपाई-


कृपा सिंधु बोल मुसुकाई, सोई करू जेहिं तव नाव न जाई।

बेगि आनु जल पाय पखारू, होत विलंबु उतारहि पारू।।

जासु नाम सुमरित एक बारा, उतरहिं नर भवसिंधु अपारा।

सोई कृपालु केवटहि निहोरा, जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा।।

पद नख निरखि देवसरि हरषी, सुनि प्रभु बचन मोहँ मति करषी।

केवट राम रजायसु पावा, पानि कठवता भरि लेई आवा।।

अति आनंद उमगि अनुरागा, चरन सरोज पखारन लागा।

बरषि सुमन सुर सकल सिहाहीं, एही सम पुन्य पुंज कोउ नाहीं।।


दोहा-


पद पखारि जलु पान करि, आयु सहित परिवार।

पितर पारू करि प्रभुहि, मुदित गयउ लेइ पार।।


चौपाई-


उतरि ठाढ़ भए सुरसरि रेता, सीय रामु गुह लखन समेता।

केवट उतरि दण्डवत कीन्हा प्रभुहि सकुचि एहि नहि कछु दीन्हा।।

पिय हिय की सिय जाननिहारी, मनि मुदरि मन मुदित उतारी।

कहेउ कृपाल लेहि उतराई, केवट चरन गहे अकुलाई।।

नाथ आजु में काह न पावा, मिटे दोष दुख दारिद दावा।

बहुत काल मैं कीन्ह मजूरी, आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी।।

अब कछु नाथ न चाहिउ मोरंे, दीनदयाल अनुग्रह तोरें।

फिरती बार मोहि जो देबा, सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा।।


दोहा-


बहुत कीन्ह प्रभु लखन, सियँ नहिं कछु केवटु लेई।

बिदा कीन्ह करूनायतन, भगति बिमल बरू देई।।


रामायण के विसर्जन करे के बाद रामायण मण्डली ल बिदा करिन। ओकर बाद खाना खा के सब झिन सूत गे। परसुराम दिन भर के थके मांदे रिहिसे। जल्दी नींद ह परगे। पहाति पहाति महामाया ह परसुराम ल सपना दिस-परसु बेटा तँय भक्त गुहा निषाद राज के वंशज अस तुंहर पुरखौती धंधा डोंगा चलाई आय तिही पाय के भगवान राम ल माँ गंगा पार कराये रेहे। आज रतनपुर राज के जनता ल तोर जरूरत हे बेटा। रतनपुर ले रायपुर जाय बर बरसात म अरपा नदी ल हमर राज के मनखे मन नइ नाहक सकत हे एकर ले रतनपुर राज के विकास ह रूकत हे अउ आम जनता ल परेसानी होवत हे। अब तिंही ह उमन ल डोंगा म अरपा नदिया ल पार करा के इंकर संकट ल दूर कर सकथस। मोर असीस सदा तोर संग रही। तँय जा बेटा अरपा के डिलवा म बस के जनसेवा के संगे संगे मछरी मारे के व्यापार घलो करबे। जा बेटा तँय बहुत बड़े आदमी बनबे अवईया समय इतिहास म तोर नाव लिखाही कहिके, आदिशक्ति महामाया जी ह अंतर्ध्यान हो गे। महामाया मइया के अंतर्ध्यान होय के बाद ओकर नींद ह टुटिस त कोनो नइ रिहिस। सपना म महामाया जी के दरसन पा के परसुराम ह अपन चोला ल धन्य समझिस।

अब तो परसुराम के नजर म महामाया जी ह झुलत रिहिसे। अब महामाया जी के बात ल टारे नई जा सकय अउ गाँव ल छोड़े नइ जा सकय। बस इही फिकर ह ओला सतावत रिहिसे। महतारी ह अपन बेटा के उदसहा चेहरा ल देख के किहिस- कइसे परसु तँय ह आजकल उदास -उदास दिखथस। तँय ह हमर मन के हिम्मत अस। तँय ह टुट जबे त कइसे बनही। बात चलते रिहिसे कि बैसाखा ह घलो आ गे। बैसाखा ह घलो किहिस सही काहत हस दाई महंू ह कहवइया रेहेेंव कि आजकाल कइसे कलेचुप गुमसुम-गुमसुम रहिथस कहिके- 

परसुराम-मँय धरम संकट म फंस गे हँव दाई।

सुखवन्तीन - का धरम संकट म फंस गे हस? 

परसुराम   - रतिहा महामाया जी ह सपना दे हे।

बैसाखा    - का सपना दे हे ?

परसुराम   - महामाया जी ह सपना म किहिस हे कि रतनपुर अउ रायपुर जाय के रद्दा म अरपा नदिया ल बरसात म नाहके बर कोनो साधन नइ हे। तोला अपन पारम्परिक धन्धा डोंगा चलई अउ मछरी मरई ल उही करा जा के शुरू करबे केहे हे। जन सेवा के संगे-संग मछरी मारे के व्यापार घलो करबे। इही ल सोचत हँव कइसे करँव कहिके। 

सुखवन्तीन - एमा सोचे के का बात हेे। महामाया जी के असीस हम्मन ल मिलत हे एकर ले अउ बड़े बात का हो सकत हे। जउन जघा माता रानी ह बसे बर केहे उहें जाय के तइयारी कर

परसुराम  - त घर परिवार अउ गाँव ल कोन देखही दाई?     

सुखवन्तीन - एकर देखईया तो महामाया मइया हे। ओह सब रद्दा बनाही। तँय ह बैसाखा के संग अरपा नदिया करा बसे के तैयारी कर।

बैसाखा - त तोला कइसे अकेल्ला छोड़ देबो दाई?

सुखवन्तीन - ले न मँय ह नौकर चाकर मन संग खेती खार ल सम्हाल लुहूं।

बैसाखा - नही दाई तहंू ल संग म लेगबो।

परसुराम - बैसाखा बने काहत हे दाई। संग म तहंू ल लेगबो। फेर

सुखवन्तीन - अउ का फेर।

परसुराम - लगरा गाँव के देख-रेख कोन करही? 

सुखवन्तीन - गाव के देख-रेख बर गाँव के नौजवान मन ल तैयार कर डरे हवस। बीच-बीच म आवत जावत रहिबे। रही बात गौटिया के जिम्मेदारी के त साल म एके घांव तो लगान वसूल के जमा करे बर परथे, माता रानी के किरपा ले वहु ह हल हो जही।

बैसाखा - दाई ह बने काहत हे जोड़ी। महामाया जी ह हम्मन ल जउन जिम्मेदारी दे हे ओकर ले बड़े जिम्मेदारी दुसर नोहे। हम्मन बड़ भागमानी अन।

महतारी अउ गोसइन के बात ल मान के महामाया जी के दे जिम्मेदारी ल निभाए बर परसुराम ह तैयार हो गे। अब गाँव म परसुराम ह बइठका सकेलिस। बइठक म परसुराम ह महामाया मइया के सपना के बारे म बतईस अउ किहिस मोला अपन जिम्मेदारी ल निभाये बर अरपा नदिया के डिलवा म जा के बसे बर परही उहें बस के डोंगा ले लोगन मन ल ए पार ले ओ पार नहकाहूं अउ मछरी मारे के व्यापार घलो करहंू। ऐती गाँव के देख-रेख ल कोतवाल ह करहीसंग म इहें के नौजवान मन घलो अपन-अपन जिम्मेदारी ल निभाही। कोनो भी किसम के सुख-दुख के खबर ल कोतवाल ह मोर करा पहुंचावत रही। मँय गाँव के समस्यिा के निदान बर हमेसा खड़े रहंू। 

अरपा नदिया के तीर ह घनघोर जंगल रिहिसे तिही पाय के एके परिवार ओ करा जाये के हिम्मत नइ होइस। परसुराम ह गाँव वाले मन करा प्रस्ताव रखिस कि मोर संग अउ कोन-कोन अरपा नदिया करा डोंगा चलाये के अउ मछरी मरई के व्यापार करे बर जाहू। परसुराम संग अरपा नदिया के तीर जाये बर दस परिवार राजी हो गे। अब बिहान दिन परसुराम संग जाये बर दसो परिवार जोरा म लग गे। गाँव के खेती खार ल अधिया रेघहा म कमाये बर गाँव वाले मन ल दे दिन। अब बिहान दिन गियारा ठन बईला गाड़ी म जंगल-जंगल होवत अपन परिवार संग जाये बर निकल गे। मुल आदिवासी केवट(निषाद) मन होय के सेती तीर कमान बरछी-भाला चलाय बर सब ल आवत रिहिसे। नइ आवत रिहिस हे उमन सब सीख गे रिहिन हे। जंगली जानवर मन ले बांचे बर अउ हथियार धर के महीना भर बर राशन पानी धर के अरपा के तीर जाय बर निकल गे।


चार


महामाया मइया जी ह जउन जघा ल परसुराम ल बताय रिहिसे उही करा अरपा नदिया के करार म सब झिन बस गे। घनघोर जंगल रिहिसे। नदिया म जलरंग पानी राहय। सब मिल के अपन-अपन रेहे बसे बर कुंदरा बनइन। जंगल के लकड़ी ल काट के सब झिन मिल के सबो झिन बर डोंगा बनइन। अब बेटा जात मन डोंगा म मछरी मारे बर जावय। एती माईलोगन मन चार चिरौंजी महुआ के संगे-संग लासा घलो सकेलय। अरपा नदिया ह मंगलापासिद करा शिवनाथ म अउ शिवनाथ ह भुईगाँव करा महानदी म मिलथे। बेटा जात मन मछरी मारत मारत व्यापार करे बर शिवरीनारायण अउ आरंग तक चल देवय। एती धीरे-धीरे सब के लोग लइका बाढ़त गिन। माता रानी के किरपा ले सब पनपे बर धर लिन। अब तो अरपा के कछार म कोदो कुटकी के खेती घलो करे बर धर लिन। अब सबके आर्थिक स्थिति सुधरे बर धर लिस। परसुराम ह तो गौटिया रिहिसे ओह तो पहिली ले धनीमानी रिहिसे। एकर व्यापार ह सबले जादा पनपे बर धर लिस। अब रतनपुर ले ओ पार नाहके बर डोंगा के बेवस्था परसुराम ह कर दिस। नहकाये बर बांस अउ पतवार खोवइया दू झिन नौकर घलो रख दिस। अब तो धीरे-धीरे लोगन मन ल पता चलिस रतनपुर ले रायपुर जाये के रद्दा म अरपा नदिया म डोंगा चले बर धर ले कहिके- सब सुनिन ताहन सबके आवागमन बाढ़ गे। आवागमन बढ़िस ताहन अब धीरे-धीरे दुरिहा-दुरिहा के केवट मन घलो व्यापार करे बर अरपा नदिया के तिर बसे बर धर लिन। अब तो बस्ती के रूप ले लिस। बस्ती म अब ग्राम देवी देवता के  घलो स्थापना करिन। चुंकि परसुराम ल सब झिन सियान मानय तिही पाये के गाँव के मुखिया के रूप म परसु राम के मुड़ी मा पागा बांधिन। अब तो अपन संगे-संग पूरा गाँव वाले मन के सुख-दुख, अउ सुरक्षा के धियान रखय। परसुराम अपन व्यापार ल एक डोंगा ले सुरू करे रिहिसे अब दस डोंगा के मालिक हो गे। परसुराम के सबो संगवारी मन के घर म नोनी बाबू खेले बर धर लिन। सब के घर म लोग लइका ल देख के बैसाखा के मन ह घलो नोनी बाबू बर तरसत रिहिस। सुखवन्तीन घलो नाती नतरा ल देेख लेतेंव कहिके सउंख करत रिहिसे। एक दिन परसुराम ह बैसाखा ल किहिस - देख महामाया जी के असीस ले हमर व्यापार ह बाढ़गे। सुन के बैसाखा ह किहिस व्यापार ह तो बाढ़गे फेर परिवार ह तो नइ बाढ़त हे जोड़ी। माता रानी के कब किरपा होही ते। परसुराम कथे देवी करा देर हे फेर अन्धेर नइ हे। ओह हमर मनोकामना ल जरूर पूरा करही।

परसुराम कथे - मँय गुनत हँव ।

बैसाखा - का गुनत हस जोड़ी ?

परसुराम - मँय गुनत हँव कि महामाया मइया के दरसन करे बर खोर्रा पांव रेंगत-रेंगत रतनपुर जातेन।

बैसाखा - हव बने काहत हस। आठ-दस झिन मन ल घलो संघेर लेथन। 

परसुराम - त दाई ल

बैसाखा - ओहा सियान हो गे हे ओला नइ लेगन ओह घर म रही। ओकर देख-रेख बर बेवस्था कर देबोन।  

परसुराम - एसो के चैत नवरात्रि म देवी दरसन के योजना बनाथन।

योजना के मुताबित चैत्र नवरात्रि म परसुराम अउ बैसाखा ह आठ दस झिन मन ल संघेर के माता के जस गावत महामाया मइया के दरसन करे बर सेवा गीत गावत रतनपुर बर पदयात्रा शुरू करिन -


छत्तीसगढ़ म अजब बिराजे हो देवी दाई हो माँ

अजब बिराजे मईया, अजबे बिराजे हो

महिमा हे अपरम्पारे 

छत्तीसगढ़ म अजब बिराजे, देवी दाई हो माँ


कोन सहर म महामाया बिराजे 

महामाया बिराजे, महामाया बिराजे

कोन गढ़ म बमलाई

छत्तीसढ़ म अजब बिराजे, देवी दाई हो माँ


रतनपुर म महामाया बिराजे 

महामाया बिराजे, महामाया बिराजे 

डोंगरगढ़ म बमलाई

छतीसगढ़ म अजब बिराजे, महामाई हो माँ


कोन सहर म बिलाई माता बिराजे 

बिलई माता बिराजे, बिलई माता बिराजे

कोने जघा म डिड़हिन दाई 

छतीसगढ़ म अजब बिराजे, देवी दाई हो माँ


धमतरी म बिलई माता बिराजे

बिलई माता बिराजे, बिलई माता बिराजे

मल्हार म डिड़हिन दाई

छतीसगढ़ म अजब, बिराजे महामाई हो माँ


कोने जघा म माता दंतेश्वरी बिराजे 

दंतेश्वरी बिराजे, माता दंतेश्वरी बिराजे

कोने ठऊर म चण्डी माई

छतीसगढ़ म अजब बिराजे, देवी दाई हो माँ


दंतेवाड़ा म माता दंतेश्वरी बिराजे 

दंतेश्वरी बिराजे, माता दंतेश्वरी बिराजे

दुरूग म चण्डी माई बिराजे

छतीसगढ़ म अजब बिराजे, देवी दाई हो माँ


कोन सहर म कंकाली बिराजे

कंकाली बिराजे, माता कंकाली बिराजे

कोन जघा म चन्द्रहासिनी 

छतीसगढ़ म अजब बिराजे, देवी दाई हो माँ


रइपुर सहर म माता कंकाली बिराजे 

कंकाली बिराजे हो, कंकाली बिराजे

चद्रंपुर म चन्द्रहासिनी

छतीसगढ़ म अजब बिराजे, देवी दाई हो माँ


लगरा गाँव ले गावत बजावत परसुराम के संग सबो पदयात्री मन रतनपुर म महामाया मइया के दरबार म पहुंच गे। पदयात्री मन ल पता घलो नइ चलिस कि कइसे महामाया मइया के देवाला म पहुंच गे। थोरको थकासी घलो नइ लागिस। महामाया मइया के दरबार म पहुंच के सब झिन बइठ के सेवा गइन -


तोर सरन म आयेन, महामाया हो मइया

तोर सरन म आयेन, महामाया हो मइया


मइया जी के नाक म सुग्घर नथनी बिराजे

नथनी बिराजे हो मइया, नथनी बिराजे

नथनी म रतन जड़ाये, महामाया हो मइया तोरे सरन म आयेन 

तोरे सरन म आयेन, महामाया हो मइया


मइया जी के गर म सुग्घर माला बिराजे

माला बिराजे हो मईया, माला बिराजे

माला म रतन जड़ाये, महामाया हो मइया तोरे सरन म आयेन

तोर सरन म आयेन, महामाया हो मइया


मइया जी के माथे म, सुग्घर टिकली बिराजे

टिकली बिराजे हो मइया, टिकली बिराजे 

टिकली म रतन जड़ाये, महामाया हो मइया, तोरे सरन म आयेन

तोरे सरन म आयेन, महामाया हो मइया


मइया जी के पाँवे म, सुग्घर पैरी बिराजे

पैरी बिराजे हो मइया, पैरी बिराजे

पैरी म रतन जड़ाये, महामाया हो मइया, तोरे सरन म आयेन

तोरे सरन म आयेन, महामाया हो मइया


मइया जी के जस गा के माता के दरसन खातिर परसुराम, बैसाखा अउ संग म आये सब पदयात्री मन आगु बढ़िन। सब झिन जानत रिहिस हे कि माहामाया जी के देवाला ले कोनो खाली हाथ नइ जावय। महामाया जी ह सबके मनोकामना ल जरूर पुरा करथे। माता जी के आघु म सब झिन अपन-अपन बर बरदान मांगिन। परसुराम अउ बैसाखा के घर माता के किरपा ले तो अन्न धन्न ले भण्डार रिहिसे बस अब एके ठन कमी रिहिसे ओह संतान के। ओकरे बर आस लगाये माता के सरन म आये रिहिन हे। दुनो परानी महामाया मइया ले विनती करीन किहे मइया हम्मन ल महतारी बाप बना देते। महामाया मइया ह इंकर मन के जप तप ले खुस हो के असीस दिस। अब सबो झिन माता के दरसन करके खुसी-खुसी लगरा गाँव पहुंच गे। अब सब झिन अपन-अपन कारोबार म लग गे। सुखवन्तीन ह घलो मने मन माता जी के सुमिरन करय। बहू के गोदी ल भर दे माता जी। अब धीरे-धीरे सुखवन्तीन ह घलो थके बर धर लिस। बस ऐके ठन आस रिहिसे नाती नतरा देख लेतेंव कहिके। महामाया मइया ह सब झिन के पुकार ल सुन लिस। कुछ दिन बाद महामाया मइया के किरपा ले बैसाखा अम्मल म रहिगेे। जब बैसाखा ह उल्टी करे बर धरिस ताहन सुखवन्तीन ह जान डरिस कि बहू के पांव भारी हो गे हे। अब तो बैसाखा ल आमा अमली के खाय के बिक्कट मन करय। परसुराम ह घलो बिक्कट खुस राहे। अब हमरो घर नवा मेहमान अवइया हे कहिके। बैसाखा ल तो पूजा पाठ ह संस्कार म मिले रिहिसे। ससुराल म घलो कभु पूजा पाठ ल नइ बिसरिस। संझा बिहनिया तुलसी चौरा म दिया बाती जरूर करय।


हे तुलसी मइया मँय सुमिरँव तोला

ममता के छइँहा म रखबे मोला


पुन्नी कस चंदा अंजोरी रहय

किरपा ले तोर सुख के नदिया बहय

दे दे दाई तँय असीस मोला

हे तुलसी मइया मँय सुमिरँव तोला

सालिकराम कस जोड़ी बने रहय

सुख दुख म संग संग खड़े रहय


घर दुवारी मोर बर मंदिर हरय 

परिवार मोर बर देवता धामी हरय

तोर किरपा ले दाई तर जाही चोला

हे तुलसी मइया मँय सुमिरँव तोला


बैसाखा घलो अब बिक्कट खुस राहय। नारी जात के सबले बड़े सपना रहिथे महतारी बनना। अब तो बैसाखा ह महतारी बनइया हे। आज बैसाखा ल बिक्कट खुस देख के परसुराम ह किहिस कइसे बैसाखा आज तँय बिक्कट खुस दिखत हस? 

बैसाखा - काबर खुस नइ रहूं।

परसुराम - ओकर कारन ल बताबे ते बेंझियावत रहिबे।

बैसाखा - आज सपना म महामाया ह दर्शन दे रिहिसे।

परसुराम- ए ह तो बड़ खुसी के बात आय।

बैसाखा- महामाया मइया ह काहत रिहिसे-

परसुराम- काय काहत रिहिसे?

बैसाखा- महामाया मइया काहत रिहिसे। तोर कोख म जउन लइका संचरे हे ओह शक्ति स्वरूपा आय। ओहा कुल ल तारही। केवट समाज के नाम ल रोशन करही। नोनी ह देवी के रूप म स्थापित होही काहत रिहिसे। फेर ए बात ल अपन गोसइया के सिवाय कोनो ल झन बताबे, न तो तोर गोसइया ह कोनो ल बताही। 

परसुराम - महामाया मइया के जय हो। ए बात ल हम्मन कोनो ल नइ बतावन। 

बैसाखा - भइगे गोठियाते रहिबे ते कुछु खाबे पीबे। 

परसुराम - हव बैसाखा मँय रतनपुर जवइया रेहेंव।

बैसाखा - काबर ?

परसुराम- घोड़ा बिसा के लाने बर।

बैसाखा- काबर?

परसुराम - अब कारोबार बाढ़ गे हे, लगरा गाँव के संगे-संग चिल्हाटी घलो देख-रेख करे बर परथे। अब सबो काम ल बइला गाड़ी म नइ देखे जा सकय। घोड़ा रही ते सबो डाहर के जिम्मेदारी ल बने निभा डरहंू। 

बैसाखा - रतनपुर जाबे त मोर बर जलेबी लान लेबे।

परसुराम - यहु ह कहूं केहे के बात आय। तँय नइ कहिते तभो ले तोर बर आनी-बानी के जिनिस लाहूं। खाय बर ,श्रृंगार बर, लुगरा पेालखा संग म दाई बर घलो खजानी लाहंू। मँय गुनत रेहेंव।

बैसाखा - काय गुनत रेहे? 

परसुराम - मँय गुनत रेहेंव तोरो महतारी बाप मन सियान हो गे हे वहु मन ल हमर करा लान के सेवा सटका करबोन।

बैसाखा - बने काहत हस। फेर पहिली खाना तो खा ले ताहन रतनपुर ले घोड़ा लाने के बाद महतारी बाप ल लाने बर चिल्हाटी चल देबे।

खाना खा के खासर म नौकर मन संग रतनपुर गिस। दाऊ दीवान के संग बेवहार ह बने राहय तिहि पाय के उंकर मन के संग पहिलिच ले घुड़सवारी सीख गे रिहिसे। घोड़ा बिसा के खई खजाना बिसा के अरपा तीर म डोंगा घाट पहुँचिन। डोंगहार मन के बस्ती के सेती अब ओ बस्ती ल डोंगा घाट के नाव ले जाने बर धर लिन। घर म परसुराम ह जब घोड़ा म सवार हो के अइस त बस्ती म देखनउट हो गे रिहिस। बिसाखा, सुखवन्तीन ह घोड़ा के आरती उतारिन। बस्ती वाले मन घलो घोड़ा के पूजा पाठ करिन। बस्ती वाले मन जानत रिहिन हे कि घोड़ा ह ऊँच नीच म हमरो काम आही कहिके बिक्कट खुस रिहिन हे। परसुराम नाड़ी के बिक्कट जानकार रिहिस। चिल्हाटी गाँव ले खबर अइस कि बैसाखा के महतारी के तबियत जादा खराब हो गे हे। परसुराम अउ बैसाखा ह देखे बर आ जही कहिके। सुनते भार परसुराम ह घोड़ा म बइठ के धनुस तीर धर के अपन ससुरार गिस। उंहे जा के अपन सास के नाड़ी ल छू के देखिस त लगिस, एकर इलाज के जरूरत हे कहिके घोड़ा म अपन ह आघु म बइठिस ओकर, बाद अपन सास ल बइठारिस ओला सम्हाले बर अपन ससुर ल सबले पीछु बइठारिस। अपन सास ससुर ल घोड़ा म बइठार के अरपा करा अपन बस्ती म पहुंच गे। बैसाखा ह घलो महतारी के हालत ल देख के रोए बर धर लिस। परसुराम ह बैसाखा ल समझइस अइसन हालत म तोर रोना ठीक नइ हे। मोर राहत ले तँय चिन्ता झन कर मँय ह जड़ी बूटी ले ठीक कर दुहूं। सबो झिन मिल के अच्छा सेवा जतन करिन ताहन बैसाखा के महतारी ह जल्दी सम्हल गे। अब तो देखते देखत देवारी लकठाये बर धर लिस। सब झिन अपन अपन काम बुता म लग गे। एसो के देवारी तो परसुराम के परिवार बर खास रिहिस। अब गौरा-गौरी के बिहाव रचाये बर गाँव के माईलोगन मन सुवा नाचे बर अइन - 


तरी नरी नहा ना री नहा नारी ना ना रे

सुअना मोर कहि आते पिया ल संदेश 

रइगढ़ नगर ले तँय उड़ि-उड़ि जाबे 

रे सुअना कि आगु हे सम्बलपुुर राज...

खाड़ा-मसुरिया ल पेट भर खइहव 

रे सुअना कि भरिहँव रइपुर के उड़ान...

गिंंजर-गिंजर आरी-बारी ल खोजिहव 

रे सुअना कि खोज लेहव तरिया के पार

नींद भर सुतिहव, किल्ला ल देख लेइहव

रे सुअना जइहव रतनपुर देस...

मोर सिरी पाना ल संग-संग लेजिहव 

रे सुअना बिन पाती नइ बिसवास

सइयां के बइँहा के छइंहा मे रइहव 

रे सुअना पतरेंगवा सुग्घर जवान...

कटमेछिया घुंघरू बलम सोहे धनी ल 

रे सुअना पाती ल देहव गहाय...

एक अठोरिया में कहूं नइ अइहव

रे सुअना कि मार कटारी मर जांव...

अतका ल सुन कहे मि_ू हीरामन 

रे सुअना सुन बहिनी किरिया तुहांर...

खोज के संदेसवा ल मँय लेइ अइहव 

रे सुअना कि जिंहा होहय धनी रे तुहार...


गौरी-गौरा बिहाव रचाये के बाद बस्ती वाले मन देवारी तिहार ल मनइन तहान अपन-अपन काम बूता म लग गे। गाँव ह जंगल झाड़ी के बीच म राहय तिही पाय के सब ल जान-माल के फिकर हमेसा लगे रहय। चूंकि परसुराम ह ग्राम व्यवस्था म हुसियार रिहिसे तिही पाय के बस्ती के सबो नर-नारी मन ल तीर कमान, परसा अउ तलवार सिखना अनिवार्य कर दे रिहिसे। अखाड़ा के सबो पैतरा ल लड़का मन के संगे-संग सब नोनी मन ल घलो सिखना जरूरी कर दे रिहिसे। ताकि सब मिल के बस्ती के जान-माल के सुरक्षा करे जा सके।


पांच


गरमी के दिन रिहिसे। गरमी के मारे पाना-पतई मन घलो सुखाय बर धर ले रिहिसे। नदिया नरवा पानी घलो अटा गे रिहिसे। अब बस्ती वाले डोंगहार मन बस्ती के तीरे म मछरी मारत रिहिन हे। संगे-संग चउमास के बेवस्था के जोरा म लगे रिहिसे। ताते-तात झांझ चलय फेर जंगल झाड़ी के सेती ओतेक नइ जनावय। अब तो बैसाखा ह जेचकी बर अबक-तबक रिहिसे। बैसाखा अम्मल रिहिस तभो ले काम बूता ल बरोबर करत राहय। सुखवन्तीन ह गाँव म जेचकी निपटाय बर जावय तिही पाय के घर अपन बहू बर ओला थोरको फिकर नइ रिहिसे। बैसाखा के महतारी धनेसरी घलो बराबर अपन बेटी के धियान देवय। दुनो समधीन मिल के सोंठ ढूड़ही के लाडू़ ल बना डरे रिहिन हे। क ाकें पानी बर पहिली ले लकड़ी के जोरा कर डरे रिहिन हे। बैसाखा के जेचकी के दिन ह तिरियागे हे कहिके एती-ओती आना-जाना बंद करे दे रिहिसे। बराबर ओकर धियान ह बैसाखा डाहर रहाय। अब बैसाखा ल रात म जेचकी बर पीरा जनाये बर धर लिस। बैसाखा ह परसुराम ल जगइस। परसुराम ह दीया ल बारिस। धनेसरी घलो सुखवन्तीन संग बैसाखा के जेचकी निपटाय बर धर लिस। महामाया के किरपा ले बैसाखा ल जादा तकलीफ पाय के मौका नइ अइस फेर जेचकी पीरा ह तो जेचकी पीरा आय जेला सबो माईलोगन मन ल सहे बर परथे। खोली के बाहिर परसुराम ह बेचैन हो के आगू-पाछू घुमत राहय। पहाती-पहाती लइका के रोए के आवाज अइस। आवाज ल सुन के परसुराम ह खुस होगे। सुखवन्तीन ह परसुराम ल बतइस कि नोनी अँवतरे हे बेटा, नोनी अँवतरे हे। नोनी के चेहरा ह चमकत रिहिसे। बिहनिया-बिहनिया बस्ती भर हल्ला हो गे। बैसाखा के कोरा म बेटी अँवतरे हे। बस्ती भर खुसी के माहोल बन गे।

बिहाव के बिक्कट दिन बाद आज परसुराम अउ बैसाखा घर नवा सगा अवतरे हे। परसुराम के खुसी के ठीकाना नइ रिहिसे। गौटिया रिहिसे गौटिया। नाम भर के गौटिया नही बल्कि धन दौलत म घलो गौटिया रिहिसे। खुसी के मारे छ_ी के दिन बस्ती भर के मन ल बरी मुनगा खाय बर नेवता दे रिहिसे। परसुराम ह तो अब तो कतनो डोंगा के मालिक हो चुके रिहिसे। नोनी के छ_ी ल बस्ती भर के मन बड़ा धुम-धाम ले सोहर गा के मनइन -


बेटी जनम लिन्हे बेटी जनम लिन्हे 

बइसाख म बेटी जनम लिन्हे...


सुईन आवय नेरूवा छिनै 

नेरूवा छिनऊनी देबो मन के मड़वनी

बइसाख म बेटी जनम लिन्हे...


सास मोर आवय लड़ुवा बांधय

लडु़वा बँधवनी देबो मन के मड़वनी  

बइसाख म बेटी जनम लिन्हे...


ननदी आवय काजर आँजय 

काजर अँजउनी देबो मन के मड़वनी

बइसाख म बेटी जनम लिन्हे...


जेठानी आवय कांके मड़ावय 

कांके मड़वनी देबो मन के मड़वनी

बइसाख म बेटी जनम लिन्हे...


देवरा आवय गोदी बइठावय

गोदी बइठवनी देबो मन के मड़वनी

बइसाख म बेटी जनम लिन्हे...


सखियाँ आवय सोहर गावँय

सोहर गवँउनी देबो मन के मड़वनी

बइसाख म बेटी जनम लिन्हे...


छ_ी बरही उठे के बाद अब सब झिन अँगना म गोठियावत बतावत बइठे रिहिन। परसुराम ह अपन महतारी ल पूछिस-कइसे दाई नोनी के का नाम रखन? परसुराम के महतारी सुखवन्तीन ह किहिस- अउ का नाम रखबोन। मँय तो नाम ल धर डरे हँव। बैसाखा ह किहिस- का नाम धरे हस दाई? सुखवन्तीन कथे- बैसाख म जनम धरे हे तिही पाय के नोनी के नाम बिलासा धरे हँव। बैसाखा ह किहिस-बने तो काहत हस दाई। नोनी के नाम ल बिलासा रख देथन। अब बिलासा नाम उपर परसुराम के ससुर सांवत गौटिया, ओकर सास धनेसरी अउ बैसाखा ह घलो अपन हामी भर दिन। परसुराम किहिस जब सब झिन ल ये नाम ह पसंद आ गे हे त नोनी के नाव बिलासा धर देथन। दुनो समधीन मिल के  बिलासा के बिक्कट जतन करय। एक झिन ह छेना आगी के अंगरा म अपन हाथ ल आँच देखा- देखा के नोनी के पेट म सरसों तेल ले फदर-फदर सेंके त एक झिन ह हाथ गोड़ के सुग्घर मालिस करे। नोनी ह रोवय त गाना गा-गा के, ओकर संग गोठिया गोठिया के भुलवार-भुलवार के सेंके। नोनी ल भुख लागत हे वो, तेंह गौटिनीन बनबे बेटी गौटनीन बनबे, मोर नोनी ह राज करही राज कहिके काहत-काहत पेट ल खलखल ले साफ कर डरे। बने देख-रेख म लइका ह टन्नक हो गे। अब सांवत गौटिया किहिस मँय ह चिल्हाटी जातेंव अब तो धनेसरी ह घलो बने हो गे हे, उहों के काम बूता ल देखे बर लागही। परसुराम ह अपन सास-ससुर ल घोड़ा म बइठार के चिल्हाटी पहुंचा के आ गे।

अरपा के तीर-तीर मछरी कोतरी के व्यापार के संगे-संग चना, मुर्रा अउ कांदा के व्यवसाय ह घलो पनपे बर धर लिस। बिलासा ननपन ले टन्नक बानी के रिहिसे। बिलासा ह अब ठुबुक-ठाबक रेंगे बर धर लिस, बिलासा ल रेंगाय बर गुलढुली बनवाय रिहिसे। उही ल धर के रेंगे बर धरिस। अब तो परसुराम ह घलो, गोदी म पा के बस्ती घुमाये बर घलो लेगे। कभु डोंगाघाट डहार घलो लेग जय। बिलासा ह कुछु ल नई डर्रावय। किरा मकोरा देखे त कोचके बर धर लेवय, मेचका ल हुदरे बर धर लेवय। अब बिलासा ह खेले-कुदे के लइक हो गे। अपन सहेली मन संग खेले बर धर लिस। खो-खो, रेस टीप, फुगड़ी खेलय। बिलासा ह सबो जगा अगुवई करय। काबर कि ओला तो अगवई करई के संस्कार ह अपन ददा ले मिले रिहिसे। दयालु घलो रहाय। कोनो कुकुर माकर देखतिस त ओला अपन रोटी ल घलो खवा देवत रिहिसे। बिलासा के ए सब हरकत ले घर वाले मन बिक्कट परेसान राहय। ए लइका ह किरा मकोरा, कुकुर माकर मन संग लगे रथे कहुं चाब दिही त। पोरा तिहार के दिन गाँव म फुगड़ी प्रतियोगिता रखिन ओमा आठ-दस झिन नोनी मन भाग लिन फुगड़ी गीत गा के फुगड़ी के शुरूआत होईस-


गोबर दे बछरू गोबर दे 

चारो खुंट ल लीपन दे 

चारो देरानी ल बइठन दे 

अपन खाही गुदा-गुदा 

हमला देथे बीजा 

ये बीजा ल का करबो

रहि जबो तीजा 

तीजा के बिहान दिन, घरी-घरी लुगरा

चींव-चींव करे मंजुर के पिला

हेर दे भउजी कपाट के खिला

एक गोड़ म लाल भाजी

एक गोड़ म कपूर

कतेक ल मानँव मँय 

देवर-ससुर 

फुगड़ी रे फूँ-फूँ

फुगड़ी रे फूँ-फूँ...


 सबो झिन नोनी मन एक के बाद एक थक-थक के बइठ गे। बिलासा ह फुगड़ी म जीत गे। बिलासा ह अपन सहेली मन संग अरपा म नहाये बर जावय त पानी म घलो चित्ता-तउर, पनबुड़ी, छितउल, कुकरा-कुकरी अउ छुवउल के संगे-संग कूद अउ खपरैल घलो खेलय। सबो खेल म बिलासा ह अपन संगवारी मन उपर भारी परय। पानी म खेल खेलत खेलत तउँरे बर घलो सीख गे। गोटा ले आठी अउ सत गोटिया। धुर्रा माटी ले जुड़े खेल फोदा अउ घरघुंदिया। चुरी ले जुड़े खेल चुरी बिनउल, चुरी लुकउल। बिल्लस ले जुड़े बिल्लस रीतिक , बिल्लस दुच्छ। गोटी ले जुड़े खेल नौ गोटिया, सोलह गोटिया, अठारह गोटिया, भारत टिप्पा, भोटकुल। ध्वनि ले जुड़े लोक खेल चरखी, तुतरू। गेंद ले जुड़े गिदिगादा, पिट्ठुल। पत्ता ले जुड़े फिलफिली दऊँड़, पानालरी अउ तुतरू कस सबो खेल म भाग लेवय। आठे के दिन तो नरियर फेंक म हमेसा जीतय। रस्सी दऊँड़ म घलो हुसियार रहय। लड़की अउ लड़का मन के रस्सी खिंचई म तो लड़की मन जीतय। अब बिलासा ह खेल के संगे-संग ओकर रूझान ह गीत संगीत डाहर घलो रहाय। संझा बेरा बस्ती के सियान मन रामायण, पंडवानी गावय ओला सुन के अपन सहेली मन करा जइसने के तइसने सुनावय। बिलासा ह अब तो अपन सहेली मन संग सुवा, करमा, ददरिया, गउरा के संगे-संग सबो लोकगीत ल गावय। बिलासा ह खेलकुद ,गीत , नृत्य के संगे-संग डोंगा चलाना घलो सीख गे। घर म घोड़ा रिहिसे तिही पाय के परसुराम ह अपन दुलौरिन बेटी ल घुड़सवारी घलो सिखा दे रिहिसे। आत्म रक्षा खातिर परसुराम ह बिलासा के संगे-संग गाँव के बेटी मन ल अखाड़ा के सबो पैतरा ल सिखो दे रिहिसे। धनुष, बान, भाला, बरछी चलाये बर घलो सिखो दे रिहिसे ताकि खुद के संगे-संग म बस्ती के जान-माल के रक्षा हो सकय। एक घांव भलुवा ह बस्ती म बंधाय छेरी ल उठा के लेगत रिहिसे अउ बिलासा के नजर ह भलुआ उपर परिस, भलुवा उपर तीर चला दिस, भलुवा ह छेरी ल छोड़ के भागिस, एक झिन लइका ल हुड़रा ह उठा के लेगे के कोसिस करत रिहिस बिलासा ह अपन सहेली मन संग हुड़रा उपर हमला करके लइका ल बचा लिस अब तो बिलासा के बहादुरी के गोठ ह गाँव भर होय बर धर लिस।

डोंगाघाट म जब- जब मछली मारे बर चल देवय तब बिलासा ह अपन सहेली मन संग यात्री मन ल फोकट म नहका देवय। बिलासा के बहादुरी अउ सेवा भाव ले सब खुस राहय। हरेली के दिन डोंगा के सब झिन पूजा करय अउ उही दिन डोंगा दौड़ के प्रतियोगिता घलो होवय वहू म बिलासा के दल ह जीत जाय। बिलासा ह जउन भी काम के सुरूवात करे पहिली महामाया मइया ल सुमिरय ताहन अपने आप शक्ति आ जाय। जंगल म बिलासा ह जड़ी बूटी के खोज म निकलय त कहूं हुड़रा ह काकरो उपर झपट परय त बिलासा के अचूक निसान ले हुड़रा ल मार गिरावय। बिलासा के राहत ले सहेली मन ल कोनो किसम के चिन्ता नइ राहय। बिलासा ह हर काम ल हांसत कुलकत करय। बिलासा ह अपन सहेली मन संग भोजली बोंइस। सबो सहेली भोजली के बिक्कट सेवा करिन। भोजली म पानी छिंचत भोजली गीत गाथे -


देवी गंगा, देवी गंगा लहर तुरंगा, हो लहर तुरंगा

हमर भोजली दाई के भींजे आठो अंगा


माड़ी भर जोंधरी पोरिस कुसियारे

जल्दी-जल्दी बाढ़व भोजली होवय हुसियारे

आ गई पूरा बोहाई गई मलगी

हमरो भोजली देवी के सोन-सोन के कलगी


लिपी डारेन पोती डारेन छोड़ी डारेन कोनहा

सबो पहिरय लाली चुनरी, भोजली पहिरय सोनहा

आ गई पूरा बोहा गई झिटका

हमरो भोजली दाई ल चंदन के छिटका


पानी बिना मछरी पवन बिना धाने

सेवा बिना भोजली के तरसे पराने

कुटि डारेन धान, पछिनी डारेन भूसा

लइके लइका हावन भोजली, झनि करिहव गुस्सा।


छै


मोपका गाँव म जगेसर केवट राहत रिहिस हे। ओह अपन गोसइन संग सुग्घर जिनगी बितावत रिहिसे। अरपा नदिया के तीर बसे केवट मन के बढ़ोतरी ल सुनिन त यहू मन उहें आ के बस गे। पहिली जब अइस त चना मुर्रा, कांदा-कुसा बेच भांज के अपन जिनगी चलावत रिहिन हे। जगेसर अउ पुनिया के बेटा के नाव बंशी रिहिसे। ओकरो जनम ह इहें अरपा तीर म होय रिहिसे। बंशी ह बिलासा ले दु-चार साल के बड़े रिहिस हे। बंशी ह हट्टा-कट्टा लड़का रिहिसे। अखाड़ा के तो सबो पैतरा ल अपन संगवारी मन संग देखावय। कभू- कभू जंगल डाहर शिकार करे बर अपन संगवारी संग धनुष बान, कटार अउ फरसा धर के चल देवय। बंशी घलो चना, मुर्रा, कांदा, कुसा के व्यापार म अपन महतारी बाप के सहयोग करय। धीरे-धीरे व्यापार म बढ़ोतरी होय के बाद बंशी घलो डोंगा लीस। अब तो डोंगा चलाय के बेवसाय करे बर धर लिस। खाली समय म जंगल म शिकार करे के संगे संग तेंदू, चार, चिरौंजी घलो बिने बर अपन महतारी बाप के संग जावय। गाँव म जब तीज तिहार होवय त कबड्डी खेलय। गाँव म तिहार के दिन कबड्डी के आयोजन होइस। कबड्डी म अपन टीम के कप्तान बंशी रिहिसे जब बंशी ह खु डु डु डु करत खुड़वाये बर गाना गावत गिस -


चल कबड्डी ताले-ताल, मोर मेछा लाले-लाल

खुमरी के आल-पाल, खा ले बेटा बिरो पान

मँय चलावँव गोटी, तोर दाई पोवय रोटी

मँय मारँव मुटका, तोर ददा करे कुटका


आमा लगे अमली, बगइचा लगे झोर

उतरत बेंदरा, खोंदरा ल टोर

राहेर के तीन पान, देखे जाही दिन मान

तुआ के तूत के, झपट भूर के


बिच्छी के रेंगना, बूक बाय टेंगना

तुआ लगे कुकरी, बहरा ला झोर

उतरत बेंदरा, खोंधरा ल टोर

चल कबड्डी ताले-ताल, मोर मेछा लाले-लाल


विरोधी दल वाले मन बंशी ल क्रास पार करन नइ देवत रिहिन हे फेर बंशी ह क्रास पार कर के एक झिन ल छु के दुसर ल छुए के कोसिस करत रिहिस अइसने म चार-पांच झिन खिलाड़ी मन बंशी ल दबोचे के कोसिस करिन फेर कबड्डी-कबड्डी काहत सब झिन ल तीरत माई डाढ़ ल छू डरिस। ताहन अपन संगवारी मन ल जिया डरिस। विरोधी दल वाले जब नरोत्तम ह खुड़वाए बर अइस त बंशी ह ओकर गोड़ ल कैची फांस  मार के पकड़ लिस। अब तो बस्ती म बंशी के बड़ई होय बर धर लिस। बंशी ह कबड्डी के संगे-संग अपन संगवारी मन संग भांवरा, बांटी, गिल्ली डंडा, डंडा पचरंगा, छुवउल, हड़ेहप, कस कतनो खेल-खेलय। अब तो बंशी ह गाँव के हिरो हो गे रिहिसे। अब नोनी मन के नेतृत्व ल बिलासा करय अउ बेटा मन के नेतृत्व ल बंशी करय। डोंगा चलाये के प्रतियोगिता म बिलासा के टीम ह अक्सर जीतय फेर दुनों झिन कभू पाछू पाँव दे बर नई जानिन।

पुनिया अपन बेटा के बिक्कट फिकर करय। ए बंशी ह बड़ा बहादुर तो हे फेर जिद्दी घलो हे। पुनिया ह अपन बेटा के सुरक्षा बर कमरछठ उपास रिहिसे। अपन बेटा के जुग-जुग जिये कहिके सगरी मइया ले बिनती करिस -


सुनव सगरी मइया के महिमा के महान

दीदी वो पूजा करबोन, कमरछठ के विधि-विधान

दाई वो पूजा करबोन, कमरछठ के विधि-विधान


पूजा खतिर मँय सगरी कोड़ाये हवँव

डबडब ले सगरी म पानी भराये हवँव

सगरी मइया के असीस ह मिलत रहय

लइका मन के उमर दिनों दिन बढ़त रहय

नोनी बाबू ल देवय सगरी मइया बरदान

दीदी वो पूजा करबोन, कमरछट के विधि-विधान

दाई वो पूजा करबोन, कमरछठ के विधि-विधान


सगरी तीर बइठ गौरी व्रत करे हवय

सगरी के चारो मुड़ा कांसी म सजे हवय

माटी के खिलौना सगरी म चघावत हन

गहूं, लाई, उरिद, मंूग चना ल चघावत हन

महतारी के ममता ह करत हवय परनाम

दीदी वो पूजा करबोन, कमरछठ के विधि-विधान

दाई वो पूजा करबोन, कमरछठ के विधि-विधान


पचहर चाँउर अउ लमेरा भाजी

भंइस के दूध, दही सगरी होवय राजी

मउंहा के पतरी-दतुन मउंहा के दोना

जीव-जन्तु ल भोग लगाबोन चारो कोना

पोथी मार के करबोन संकट के निदान

दीदी वो पूजा करबोन, कमरछठ के विधि-विधान

दाई वो पूजा करबोन, कमरछठ के विधि-विधान


कमरछठ के दिन सगरी पूजा ल बस्ती भर के माईलोगन मन एके जघा सकला के करय अपन बेटी बेटा के दीर्घायु खातिर सगरी पूजा करे बर सबो माईलोगन उपास रथे, ओ दिन बिन जोताये भुइयाँ के भाजी अउ पचहर चाँउर के फरहारी करथे। बिलासा के महतारी बैसाखा ह घलो सगरी पूजा बर आये रिहिस हे। बैसाखा ह घलो बिलासा के जादा उमर बर सगरी मइया ले वरदान मांगिस। बंशी के महतारी पुनिया अउ बिलासा के महतारी बैसाखा ह एक दूसर के घर दुवार के  हालचाल ल पुछिक-पूछा होइन।

बस्ती वाले डोंगहार मन सब मछरी मारे बर दूरिहा चल दे रिहिन हे। गाँव म यात्री मन ल नहकाये बर अउ गाँव के देख रेख खातिर बंशी ह अपन संगवारी संग रिहिसे। रोज बंशी ह यात्री मन ल ए पार ले ओ पार नहकावत रिहिसे। एक दिन बंशी ह ओ पार ले  एक पार डोंगा म बइठार के लानत रिहिसे। डोंगा म बड़े जन छेदा हो गे डोंगा ले पानी ल धमेला म छिंचत-छिंचत लानत रिहिसे। छेदा म पहिली डामर म नही ते माटी छाब के कइसनो कर के लान लेवत रिहिसे फेर आज तो ओकरो बेवस्था डोंगा म नइ रिहिसे। पानी ह डोंगा म भरत जावत रिहिसे। छिंचे ले कम नई होवत रिहिसे। अब बंशी ल डोंगा के फिकर हो गे। डोंगा म बइठे मनखे मन ल कइसे बचाये जाय कहि के। बंशी ल अपन चिन्ता नई रिहिसे काबर कि ओला तउँरे बर आवत रिहिसे। अब डोंगा म हालाकार मचे बर धर लिस। ओतके बेर बिलासा ह अपन सहेली मन संग नहाये बर अरपा नदिया के डोंगाघाट म उतरत रिहिसे ओकर नजर ह बंशी के डोंगा उपर गिस। डोंगा ह बुड़े बर धरत रिहिसे। बंशी के नजर ह घलो बिलासा उपर परिस। तहान बंशी ह बिलासा, बिलासा कहिके चिल्लइस। बिलासा ह अपन सहेली मन संग डोंगा म गिस अउ बंशी के डोंगा ले सबो यात्री मन ल अपन डोंगा म कइसनो करके बइठार के ए पार लइस। सब यात्री मन बिलासा ल असीस दिस तँय ह देवी के अवतार अस बेटी आज तँय नइ रहिते त हम्मन अरपा के धार म बोहा जय रहितेन। बिलासा किहिस- एमा मोर कोनो हाथ नइ हे ए सबो महामाया मइया के किरपा आय। बंशी घलो बिलासा ल किहिस- आज तोर सेती सब झिन के जान बांच गे बिलासा। बिलासा- ए सब महामाया मइया के किरपा आय बंशी। बिलासा के बहादुरी ह चारो मुड़ा बगरे बर धर लिस।

लोक कथा के मुताबिक करम सेन नाव के राजा रिहिस। ओकर उपर विपत्ति आ गे। ओहा मनौती मान के गीत गा-गा के नृत्य करिस जेकर ले ओकर विपत्ति दूर हो गे। उही समे ले करमा नृत्य गीत के सुरूआत होइस। बस्ती वाले मन घलो कोनो किसम के विपत्ति झन आय कहिके करम (कर्म) देवता ल मनाये बर कदम के डंगाली ल गड़िया के करमा नृत्य गीत के आयोजन करिन-करमा नृत्य म स्त्री पुरूष दुनो भाग लेथे। स्त्री पुरूष एक लकीर ल गावत झुक के आगू डाहर बढ़थे अउ दूसर पंक्ति ल गावत सीधा हो के उत्ती डहार लहूूट जथे। बंशी ह अपन संगवारी मन संग अउ बिलासा ह अपन सहेली मन संग करमा नाचे बर आये रिहिन हे। करमा गीत ल जब मांदर बजा के गाथे त सब झिन झूम जथे। बस्ती वाले स्त्री पुरूष घलो सुमरनी गीत गावत करमा गीत नृत्य के सुरूआत करिन -


हरे सुमिरन करँव रे...

यही अंगनइयां म सुमिरन करँव


एक सुमरन म चंदा सुरूज

एक सुमिरँव धरती आकास

हरे सुमिरन करँव रे...


एक सुमिरन चारो देवता ला

गाँव के गंवटिया ठाकुर देवता ए

हरे सुमिरन करँव रे...


कलकत्ता के काली माई, संबलपुर के समलाई

लाफा के बुढ़वा देव, रतनपुर के महामाई

हरे सुमिरन करँव रे...


करम पूजा करे के बाद परसुराम ह अब अपन धरम निभाए बर गुनथे। बिलासा ह खेलत-खुदत बड़े हो गे। अब बिहाव के योग्य हो गे बिलासा ह। बिलासा के डोकरी दाई घलो गुनथे। नतनीन के चाँउर टिक लेतेेंव कहिके। अब तो सुखवन्तीन ह जादा सियान हो गे रिहिसे। सुखवन्तीन ह अपन बेटा ल कथे - 

सुखवन्तीन- परसु।

परसुराम- काये दाई?

सुखवन्तीन - मँय ह गुनत रेहेंव।

परसुराम - का गुनत रेहे बता न दाई?

सुखवन्तीन - मँय ह अब जादा सियान हो गे हँव। मँय ह चाहत रेहेंव बिलासा के चाँउर टिक लेतेंव कहिके।

परसुराम - बने गुनत हस दाई, उही बात ल महूं ह गुनत रेहेंव। योग्य लड़का मिलतिस ते बिहाव कर देतेन कहिके।

बैसाखिन - त लड़का के पता कर।

परसुराम - लड़की वाले हो के लड़का कइसे पता करबो। कोनो लड़का वाले मन बिलासा ल देखे बर आतिस त सोचतेन।

ओतके बेर परसुराम के संगवारी फिरंता ह आइस।

फिरंता - का गोठ चलत तुंहर मन के?

परसुराम - दाई ह काहत रिहिस हे बने सहीं सगा उतरतिस ते बिलासा के हाथ ल पिंवरा देतेन कहिके।

फिरंता - एह तो बने बात आय। सगा उतरगे जान।

परसुराम - कहां के?

फिरंता - इहें के आय।

परसुराम - कोन आय?

फिरंता - जगेसर काहत रिहिसे? एसो जम जतिस ते बहू हाथ के पानी पितेन कहिके। बंशी बर बहू आ जातिस ते घर सम्हाले बर हो जतिस, बात ल चलावँव का?

परसुराम - कइसे बैसाखा?

बैसाखा - हव बंशी तो बने लड़का आय बिलासा संग जोड़ी बने फभही।

परसुराम - कइसे दाई बात चलाये बर काहँव फिरंता ल।

सुखवन्तीन - लड़का तो बने हे बेटा। मेहनती हे, निडर हे अपन मेहनत के बदौलत अपन व्यापार ल बड़हा घलो डरे हे। बिलासा ह सुख पाही।

परसुराम - ले त फिरंता जगेसर करा बात चला के देख का कथे ते?

फिरंता - हव भइया। मँय ह जगेसर करा पूछ के बताहूं।

फिरंता ह गोठिया बता के नदिया नहाय बर गिस। नहा के आये के बाद पूजा पाठ करिस। खाना खाय के बाद थोकिन आराम करिस। ताहन फिरंता ह जगेसर घर आरो ले बर गिस।

घर म जगेसर अउ पुनिया गोठियावत बइठे रिहिन हे ठउका ओतके बेर फिरंता ह पहुंच गे। फिरंता ल देखिस ताहन चूप हो गे। फिरंता देख के किहिस का गोठियावत रेहेव भइया। मोला देख के काबर चूप हो गेव।

जगेसर - चूप रेहे के लइक कोनो बात नइ हे फिरंता।

फिरंता - त बता डरव न काय गोठियावत रेहेव तेला ।

जगेसर - हम्मन दुनो जुग जोड़ी गोठियावत रेहेन कोनो बने सहीं नोनी मिलतिस ते बंशी के बिहाव कर देतेन कहिके। एसो बहू हाथ के पानी पी लेतेन कहिके। 

फिरंता - समझव तुंहर मनोकामना पूरा हो गे।

जगेसर - कइसे?

फिरंता - मँय ह बंशी के लइक नोनी देखे हँव। तुमन कहू ते बात चलाहूं।

जगेसर - कोन गाँव के?

फिरंता - इही बस्ती के आय। दुनों के जोड़ी ह राम सीता कस फभही।

जगेसर - काकर नोनी आय?

फिरंता - परसु गौटिया के।

जगेसर- बिलासा ल काहत हस का।

फिरंता - हव।

जगेसर - तँय कइसे गोठियाथस फिरंता, सगा अपन बराबर संग बनाये जाथे। दसो बीसो ठन डोंगा के मालिक ह का हम्मन ल अपन बेटी ल दे दिही? ले दे के तो हमर करा एके ठन डोंगा हे ओकर भरोसा जिनगी ल गुजारत हन।

फिरंता - एमा तोर हमर गुने ले कुछु नइ होवय। जनम बिहाव अउ मरन ल विधि ह पहिली ले लिख देथे। जुग जोड़ी उपर ले बन के आय रहिथे। ब्रम्हा ह इंकर जोड़ी ल रचे होही त संबंध ह जरूर जुड़ही।

जगेसर -देख रे भई तिंही जान

फिरंता-  परसु गौटिया के एके झिन बेटी हे बेटी के भरोसा ओला व्यापार अउ खेत खार ल सम्हाले बर दमांद मिल जही।

जगेसर - एक बात कान देके सुन ले फिरंता, परसु गौटिया ह मोर बेटा ल घरजिंया दमांद बनाहंू किही त रिश्ता ल मना कर देबे। कइसे पुनिया?

पुनिया - बने काहत हवस बंशी के ददा। हमर असन घर अपन बेटी ल दिही ते सोच बिचार के दिही वोइसे बिलासा अउ बंशी के जोड़ी ह सुग्घर फभही।

फिरंता - तिही पाय के तो महंू काहत रेहेंव। बिलासा बेटी ह सर्वगुण सम्पन्न हे।

तुंहर बिक्कट सेवा करही।

पुनिया - एक घांव बंशी ल घलो पूछ लेतेन।

जगेसर - तहूं ह धनेसरी, कहीं न कुछ अउ छट्टी बर दार-भात। अरे भई हमर परम्परा चले आवत हे जेला सियान मन तय कर देथे ओकरे संग बिहाव होथे। एमा बंशी ल पूछे के कोनो जरूरत नइ हे।

फिरंता - भइया बने काहत हे भउजी। पहिली बात ल तो आगू बढ़न दे ताहन बंशी ल मिही ह पूछ लुहूं। 

धनेसरी - ले त तिही जान। बंशी के संबंध जोड़ना तोर हाथ म हे।

फिरंता - लड़की लड़का के संबंध जोड़ना तो बड़ धरम के काम बूता आय भउजी। मोर हाथ म धरम लिखाय होही ते बिलासा अउ बंशी के संबंध ह जरूर जुड़ही।

जगेसर - तोर हाथ म जस लिखाये होही ते जरूर भगवान हमर मन के मनोकामना ल पूरा करही।

(फिरंता ह इंकर राय ल सुन के परसुराम घर गिस। एती के सबो बात ल बतइस। उमन काहत रिहिसे।)

परसुराम - का काहत रिहिसे?

फिरंता- उमन काहत रिहिसे। हम्मन ह तो सपना म नइ सोचे हवन कि परसु गौटिया ह हमर असन गरीब ल अपन बेटी ल दे दिही।

परसुराम - संबंध ह गरीबी अउ अमीरी ले नइ चलय। बस जुग जोड़ी के मन मिलना चाही ताहन कम आमदनी म बढ़िया जिनगी बिता सकत हे। फेर बेटी के घर दुवार जिंहा भाग म लिखाय होही उहें जाही कइसे बैसाखा तोर का विचार हे?

बैसाखा- बने तो काहत हस बिलासा के ददा। बंशी ह हमर बिलासा ल पोस डरही। अउ फेर बिलासा ह तो सबो काम बूता ला जानथे। दुनो झिन मिल के एक ले एक्कइस डोंगा के मालिक बन जही।

फिरंता - फेर उंकर एक ठन शर्त हे

परसुराम - का शर्त हे?

फिरंता - तुमन कहूं सोचत होहू कि बंशी ल घरजिंया दमांद बनाबोन कहिके त फेर संबंध ल नइ जोड़न केहे के।

परसुराम - ले रे भई बंशी ल घरजिंया दमांद नइ बनावन।

बिलासा अउ बंशी ह अपन मेहनत ले कमा के जिही खाही। बाकि सब भगवान के मरजी।

भगवान के मरजी ले फिरंता के सियानी म बिलासा अउ बंशी के रिश्ता जुड़गे। परसुराम अउ बैसाखा एकर सेती खुस रिहिस के बेटी कि ससुरार ह गाँव म रिही ते ओला देखत सुनत रहिबोन। परसु के एके झिन दुलौरिन बेटी। गाँव ले सबले बड़े बड़हर आदमी। कोनो किसम के कमी झन होवय कहिके बिहाव के तइयारी म जुड़ गे। एती जगेसर अउ पुनिया के घलो एके झिन बेटा बंशी रिहिसे। बेटा बिहाव बर अपन सकउ जतना बढ़िया हो सके बिहाव के जोरा म लग गे। बंशी अउ बिलासा के बिहाव म गाँवे के मन घराती अउ गाँवे के मन बराती रिहिन। पूरा बस्ती वाले मन मिल के बड़ा धूमधाम ले बंशी अउ बिलासा के बिहाव करिन।    

लगन के हिसाब ले परसुराम ह बिहाव म सगा सोदर के संगे-संग लगरा गाँव, चिल्हाटी गाँव, बस्ती अउ चिन्ह पहिचान वाले मन ल नेवता दे रिहिसे। अब बिलासा के बिहाव बर परसुराम घर मड़वा छवागे। नेंग जोग के हिसाब ले गीत गवईया मन मड़वा छववनी गीत गइन-


सरई सइगोना के दाई

मड़वा छवई ले

बरे बिहे के रहि जाय

कि ये मोर दाई, सीता ल

बिहावे राजा राम

धरती के तीर-तीर दाई

पड़की परेवना

कनकी ल चुनि-चुनि खाये

कि ये मोर दाइ्र्र, सीता ल बिहावे राजा राम

सरई सइगोना के दाई

मड़वा छवई ले 

बरे बिहे के रहि जाय

कि ये मोर दाई, सीता ल बिहावे राजा राम।


    एती बिलासा के नेंग जोंग होवत हे। ओती जगेसर ह अपन बेटा बंशी के बरात धर पहुंच गे। परसुराम बराती मन के जोरदार स्वागत करिस। ओकर बाद बिलासा अउ बंशी के भांवर शुरू होइस। गीत गवइया मन भांवर गीत गइन -


मधुरि-मधुरि पग धरव हो

दुल्हिन नोनी

तुंहर रजवा के

अंग झन डोलय हो


मधुर-मधुर पग धरव हो...

दुल्हा बाबू

तुंहर रनिया के 

अंग झन डोलय हो


सुरहीन गइया के

गोबर मंगई के

ओ तो खूंट धरि

अंगना लिपइ ले हो...


अगरी चाँउर के

बगरी पिसाने हो

ओ तो मोतियन चउँक पुराये हो

झांके देखथे दुल्हा बाबू

ढारथव आंसू हो...


दाई अउ ददा रानी

जनमन देहे हो

ओ तो रूप दिये भगवाने हो...


खाबो कमाबो

रानी राजन करिबो ओ

दाई-ददा के नाम जगाबो हो....


भांवर पूरा होय के बाद टिकावन होइस। सब झिन वर वधु ल असीस दिन ताहन बंशी संग बिलासा ल बिदा करिन। अपन दुलौरिन बेटी बिलासा ल बिदा करे के बखत परसुराम अउ बैसाखा हा फूट-फूट के रोए रिहिन हे। फेर परम्परा ल निभावत बिलासा बेटी ल बिदा करिन। अपन बहू बिलासा ल बिहा के जगेश्वर बराती संग घर लहूट गे।



सात


बिहाव के बाद अब बंशी घर गृहस्थी के मया म बंधा गे। जगेसर अउ पुनिया के घलो बहू हाथ के पानी पिये के साध ह पूरा हो गे। बिलासा ल तो सेवा भाव ह संस्कार म मिले रिहिसे। अपन सास-ससुर के बिक्कट सेवा करत रिहिसे। बिलासा अउ बंशी एक दुसर ल जल्दी समझ गे। दुनो के उद्देश्य राहय अपन मेहनत के बदोलत व्यवसाय ल आगू बढ़ाये के संगे-संग गाँव के विकास कइसे करे जाय। गाँव के सुरक्षा कइसे करे जाय बस इही सोच विचार म दुनो झिन लगे राहय। अब तो जगेसर अउ पुनिया के एके साध रहिगे के कि नाती-नतरा जल्दी से खेलातेन कहिके। बंशी अउ बिलासा ह जिंहा जावय संगे-संग जावय चाहे मछरी मारे बर होवय चाहे जंगल म चार चिरांैजी बिने बर। अब धीरे-धीरे दुनो झिन के मेहनत ले इमन पनपे बर धर लिन।

एक दिन अखाड़ा के मैदान म घलो बंशी ह बिलासा संग पहुंचिस। सब देख के दंग रहिगे। अखाड़ा ह तो बेटा मन के खेल आय एमा माईलोगन ल लाये के का जरूरत हे। बंशी ल थोरको समझ नइ हे कि बेटा जात के खेल के बीच एक झिन माईलोगन ल नई लाना चाही। सबके मन म आनी बानी के विचार के पीकी फूटे बर धर लिस। अब अखाड़ा सुरू होइस ताहन उमेंद ह तलवार बाजी म सब झिन ल हरा के दहाड़त रिहिसे कि अउ कोनो हे- दाई के बेटा जउन ह अपन महतारी के दूध पीये हे। अतका ल सुनिस ताहन बिलासा के जी बगिया गे वहू दहाड़िस एक झिन बेटा नहीं बल्कि बेटी हे। बिलासा के आवाज ल सुन के सब झिन खलखला के हांस डरिन। उमेंद किहिस आ जा तहंू ह अजमा ले। बिलासा ह कछोरा भीर के चमकत तलवार धर के मैदान म उतरिस। उमेंद संग अपन तलवार के पैतरा ल बिलासा ह अइसे घुमइस कि उमेंद ह चित हो गे। सब झिन बिलासा के जय-जयकार करे बर धर लिन। उमेंद ह नखमरजी हो गे। ओहा बेज्जति ल नइ सहि सकिस। उही दिन मन म ठान लिस के अब बिलासा अउ बंशी ल अपन रद्दा ले हटाये बर परही। बस्ती भर चरचा के विषय हो गे कि काली गाँव के बहू बिलासा ह अखाड़ा के मैदान म गे रिहिस। अब तो घरों घर के बहू मन अखाड़ा खेले बर जाही अउ बेटा जात मन बिल्लस खेलही। सब झिन गोठिया-गोठिया के मजा लेवत राहय। जे झिन मनखे ते ठन गोठ। हड़िया होतिस ते परई म तोप लेते फेर मनखे के  मुंह ल कामे तोपबे?

बिहनिया जगेसर ह घर के आघु म चोंगी पियत बिइठे रिहिस। ओइसने म जगेसर के मितान समारू हा अइस। जगेसर ह समारू ल आवत देख के किहिस- आ समारू आ बइठ। समारू ह आ के बइठ गे। अखाड़ा म बंशी अउ बिलासा ह गे रिहिसे कहिके जगेसर अउ पुनिया नइ जानत रिहिन। जगेसर ह समारू ल किहिस -अउ का हालचाल हे समारू

समारू - हाल ह तो बने हे फेर गाँव के चाल-चलन ह बिगड़त हे।

जगेसर - वो कइसे।

समारू - आजकाल तो गाँव के बेटा ह बहू ल अखाड़ा खेले बर लेगे बर धर ले हे।

जगेसर - काकर बेटा आय? अपन बेटा बहू ल बरजतीस नही ग।

समारू - तोरे बेटा बहू ताय अब तिंही बरज। बहू मन ल मर्यादा म रहना चाही। घर के काम बूता ह फभथे फेर अखाड़ा खेलई ह नइ फभे। अब तिंही बता, आज बंशी ह बहू ल लेगे रिहिसे ओकर बाद गाँव भर के टूरा मन बहू मन ल अखाड़ा खेलाय बर लेगही। उहें बहू मन तलवार अउ तीर चलाही बेटा मन भात रांधही। अतका ल सुनिस ताहन जगेसर के मुंह ले बक्का नइ फूटिस। सरम के मारे मुड़ी ल झूका लिस।

डोंगा घाट म माईलोगन मन नहावत रिहिन हे। ओतके बेर पुनिया घलो नहाये बर पहुुंचिस। पुनिया ल सुनवात सुखिया किहिस अई सुनत हस या दुखिया अब तो महूँ ह अपन गोसइया संग अखाड़ा म तलवार भांजे बर अउ तीर कमान चलाये बर जाहूं।

दुखिया - अई तँय कइसे गोठियाथस या, बेटा मन के खेल म बेटी जात हो के कइसे जाबे?

सुखिया - जब बेटा मन बहू ल लेग सकथे त सास ह काबर नइ जा सके।

दुखिया - जाये के बेर महूं ल बला लेबे।

सुखिया - तँय ह तलवार चला डरबे?

दुखिया - नइ चला पाहूं त तुमन चलाहू तोला देखहूं। धीरे-धीरे सीख जहूं।

ताना मरई ल सुन के पुनिया ह जान डरिस कि इमन मोला सुनावत हे कहिके कलेचूप नहा खोर के घर आगे। काबर ए बात ल जगेसर ह पहिली ले बता डरे रिहिसे। ताना सुने के बाद जगेसर अउ पुनिया के मुंह ह फूल गे। बिलासा ह मंझनिया सब झिन बर भात रांध डरे रिहिसे। बंशी घलो मछरी मार के घर अइस। बिलासा ह तीनों झिन ल खाय बर लोटा म पानी देवत किहिस 'ए लो पानी खाना बरÓ अतका ल सुनिस ताहन पुनिया ह बगिया गे। खिसिया के किहिस आज हम्मन दुनो झिन भात नइ खावन -

बंशी - काबर दाई?

पुनिया - लोगन मन के ताना मरई म हमर पेट ह भर गे हे।

बंशी - काबर ताना मारत हे दाई?

पुनिया - अउ काबर ताना मारही। तुमन तो हमर नाक ल कटवावत हव। गली-गली फधित्ता करवावत हव।

बंशी - काकर फधित्ता होवत हे दाई?

पुनिया - अरे जउन बूता ल हमर पुरखा नइ करिस तेला करत हस।

बंशी - का बात ए तेला बताबे?

पुनिया - बस्ती म कोन बेटा ह बहू ल अखाड़ा खेलवाए बर लेगथे।

बंशी - त एमा अतेक रिसाए के का बात हे?

पुनिया - कइसे नइ रिसाबे? अब तिंही बता बहू ल अखाड़ा खेलवाय बर लाये हवन कि भात रांधे बर। नारी ह घर म सोभा देथे बंशी अखाड़ा म नई देवय। कुछु कहीं अनहोनी हो जही त।

बंशी - अनहोनी काबर होही दाई मँय तो ओकर संग रहिथँव।

पुनिया - त का सबो जगह संग म लेगबे।

बंशी - उहीच ल तो तोला समझाना चाहत हँव, मँय हा ओकर सुरक्षा बर हमेशा तो नइ रहि सकँव बिलासा ल अपन सुरक्षा बर खुदे हथियार चलाये बर परही।

जगेसर - अच्छा अब बहू ह पुरूष मन कस हथियार घलो चलाही।

बंशी - ददा जब नारी मन पुरूष मन के संग म खेती किसानी कर सकथे, चार चिरौंजी बिन सकथे, मछरी मार सकथे अउ डोंगा चला सकथे नारी मन ह भाला बरछी, तीर कमान काबर नई चला सकय? कब तक ले नारी ल अबला बना के घर म राखे रहू। अब नारी मन ल सबला बनाये बर परही तभे तो ओह अपन संगे-संग परिवार के घलो सुरक्षा कर पाही।

पुनिया - ए सब बात ल मँय नई जानँव बेटा, तँय ह बहू ल जादा छूट देबे त ए घर बहू रही या मँय रहूं।

जगेसर - बने काहत हस पुनिया जउन बेटा बहू अपन महतारी बाप के बात नइ सुनय उंकर संग हम्मन नइ राहन। अब हम्मन अलग खाबो।

बिलासा - अइसे झन करव ददा। मँय तुमन त अलग नई होवन दँव, ले मँय ह तुंहर बात ल मानहूं । तुमन जइसन कहू ओइसने करहूं। फेर मँय तुमन ल अलग नइ होवन दँव। काली ले मँय ह कोनो डाहर नइ जावँव। घरे म रहूं।

बंशी - नही बिलासा ए तँय का काहत हस। हमर उद्देश्य के का होही। अपन संगे-संग गाँव के सुरक्षा दुनो झिन मिल के करबोन कहिके किरिया खाये हन तेकर का होही? 

बिलासा - नही जोड़ी, मँय ह सास-ससुर के आत्मा ल दुखा के कोनो काम-बूता नइ करना चाहत हँव। अतका ल सुनिस ताहन पुनिया अउ जगेसर ह खुस हो गे। ताहन फेर भात खाये बर बइठिन। खाना खा के बंशी ह डोंगा घाट चल दिस। एती समारू के बछरू ल हुंडरा ह हबके बर धरत रिहिसे। समारू ह दउंड़त-दउंड़त अइस मोर बछरू ल बचाव, बचाव, बचाव कहिके हुंडरा के नाम ल सुन के सब झिन डर के मारे कपाट ल बंद कर के घर म लुका गे फेर बिलासा ह तीर कमान निकाल के बछरू ल बचाये बर दउंड़त चल दिस। बिलासा के नजर ह हुड़रा उपर परिस। महामाया मइया के नाम ले के बिलासा ह तीर चलइस तीर के लगे ले हुड़रा ह अपन परान बचाये बर उहां ले भागिस। बिलासा के बहादुरी ल समारू ह दुरिहा ले देखत रिहिस हे। जब बिलासा के बहादुरी ल देखिस ताहन समारू ह बिलासा करा जा के कहिस आज तँय नइ रहिते ते मोर बछरू ल हबक के हुड़रा ह लेग जय रहितिस बिलासा।

बिलासा - ए तो सब महामाया मइया के किरपा आय कका।

(समारू ह बिलासा संग उंकर घर गिस घर जा के जगेसर ल किहिस) 

समारू - आज बिलासा बहू ह हुंडरा ल नइ भगातिस ते मोर बछरू ल लेग जतिस भइया। मिंही ह तोला बिलासा के खिलाफ भड़काए रेहेंव मोला माफी दे दे।

जगेसर - एमा भड़काए के का बात हे समारू। तँय तो नीत के बात ल केहे हस। अरे भई नारी ह घर म सोभा देथे। तीर तलवार चलई ह इमन ला सोभा नइ देवय।

समारू - नहीं भइया नारी मन देवी के अवतार होथे। उमन ल घर म ही बांध के नइ राखना हे।

पुनिया - नारी मन ल घर म बांध के नई राखना हे त तेंह अपन घर के बहू बेटी ल अखाड़ा म भेज। हमला अपन बहू ल नई भेजना हे।

बिलासा के शौर्य के गोठबात गाँव भर होय लगिस। बंशी घलो खुस हो गे मोर नई रेहे ले घलो बिलासा गांव के मवेसी के सुरक्षा कर डरिस। अब तो गांव म बिलासा के बड़ई होय बर धर लिस। बंशी के घलो गुनगान होय बर धर लिस। बस्ती म बिलासा अउ बंशी के प्रभाव बाढ़े बर धर लिस अब उमेंद ह अपन अस्तित्व ल खतरा म देख के अपन संगवारी मन संग बिलासा ल अपन रद्दा ले हटाये बर सोचिस। अपन संगवारी मन के बइठक बलइस।

उमेंद - कइसे करे जाय संगवारी हो अब तो गांव म हमर मन के पुछारी ह खतम होवत जावत हे। हमर मन के सियानी खतम हो जही ताहन हम्मन ल कोने पूछही ।

बाबूलाल - हमर राहत ले काबर नइ पूछही भइया। हमर कर उपाय हे। बिलासा ल हमर रद्दा ले हटाय बर।

उमेंद - त का उपाय हे? बिलासा ल हमर रद्दा ले हटाय बर का करे बर परही?

बाबूलाल - ओकर हत्या करे बर परही।

उमेंद  - सीधा-सीधा बिलासा के हत्या करबोन ते गाँव वाले मन ल सक हो जही।

बाबूलाल-  त का करे बर परही?

उमेंद - बिलासा ल सब ले जादा सपोट कोन करथे। पहिले ओकर कमजोर नस ल पकड़व।

बेनीराम - बंशी ह बिलासा के सबले जादा सपोट करथे।

उमेंद - ए होइस न बात। पहिली बंशी के हत्या करथन। ताहन बिलासा अकेला हो जही ओकर बाद फेर ओकरो हत्या कर के अरपा म बोहा देबोन।

उमेंद - त बंशी के हत्या बर कुछु सोचव।

बेनीराम- मँय ह सोच डरे हँव।

उमेंद - का कइसे?

बेनीराम- बंशी संग बाबूलाल के बने बनथे। ओला आज जंगल म शिकार करे बर जाबोन कहिके लेगबोन। उहें ओकर हत्या कर के दफना देबोन।

उमेंद - ठीक काहत हस।

बिहान दिन बाबूलाल ह बंशी ल भूलवार के अपन योजना के मुताबिक शिकार करे बर जाबोन कहिके जंगल कोती लेगिन। उमेंद अउ बेनीराम ह घलो संग म गिन। सब झिन हांसत कुलकत जंगल डाहर जाये बर निकल गे। ऐती योजना ल बाबूलाल ह अपन गोसइन ल कोनो ल झन बताबे कहिके बता डरे रिहिसे। बेनीराम ह पूरा योजना ल कोनो ल झन बताबे कहिके सुखिया ल बता दे रिहिसे। सुखिया ह अपन सहेली समारू के गोसइन रमशीला ल बता दिस। कोनो ल झन बताबे कहिके। रमशीला ओ समे हव तो कहि दिस फेर सुखिया के जाये के बाद ओह घबरागे। घर म तुरते आ के अपन गोसइया समारू त बतइस। उमेंद ह अपन संगवारी मन संग बंशी के हत्या करे बर जंगल डाहर लेगे हे। समारू ह तुरते दउँड़त-दउँड़त जा के ए योजना के खबर बिलासा ल बतइस। बिलासा ह ओ समे साग रांधत रिहिसे। बंशी के हत्या के योजना के बात ल सुन के दउंड़त अपन ददा के घोड़ा म बइठ के तलवार अउ तीर कमान धर के निकलगे।

पुनिया ह घर बारी म बूता करत रिहिसे। जब साग के जरे के सुगंध ह अइस ताहन धरा पसरा रंधनी खोली म पहुंचिस। देखिस त कराही के साग ह जरे बर धर ले रिहिसे। बिलासा, बिलासा कहिके हुंत करइस फेर थोरको आरो नइ लगिस। घर म कोनो करा नइ दिखिस। पुनिया ह जगेसर ल खिसियाये बर धर ले रिहिसे। तँय ह बहू ल जादा छूट देबे त अइसने होही। घर काम ल छोड़ के दुसर के काम ल करत रिहि। ओतके बेर समारू ह अइस अउ किहिस। ए दरी भउजी तोर बहू ह दुसर के काम बर नही बल्कि अपन काम बर गे हे। 

पुनिया - अपन का काम आ गे हे?

समारू - आगे हे भउजी।

जगेसर - का बात ए तेला बताबे।

समारू - बताए के हिम्मत नइ होवत हे, अनहोनी झन हो जय।

जगेसर - का अनहोनी के बात करत हवस, बने फोर के बता।

समारू - मँय सुने हँव उमेंद ह अपन संगवारी मन संग बंशी के हत्या करे बर लेगे हे। बंशी ल बचाये बर बिलासा ह गे हे। महामाया मइया ले बिनती करव बंशी बेटा ल कुछु झन होवय। पुनिया ए सब ह बिलासा बहू के सेती होवत हे। ओहा अखाड़ा म उमेंद ल हरातिस नही ते अइसन बिपत्ति नइ आतिस।

समारू - एह बिलासा उपर दोस लगाये के समय नइ हे बल्कि देवी-देवता ले बिनती करव कि कइसनो करके हमर बेटा ह बांच जाय।

जगेसर - बने काहत हवस समारू। ए समय ह महामाया मइया ल सुमरे के बखत हे। तहूं पुनिया जब देखबे तब बहू उपर दोस लगावत रहिथस। 

समारू - कोनो दोस लागाये के समय नोहे ए समय ह बंशी के प्राण बचाये के समय आय।

जगेसर - त का करे जाय?

समारू - हमु मन ल बंशी ल बचाये बर जंगल जाये बर परही। अकेल्ला बिलासा कइसे करही?

जगेसर - बने काहत हस समारू चलो हमु मन हथियार धर के जाबोन।

जगेसर अउ समारू ह परसुराम संग बंशी के खोज म जंगल निकल गे। बंशी-बंशी कहिके आवाज देवय फेर आरो नइ लगे।

ओती उमेंद ह बाबूलाल अउ बेनीराम संग मिल के बंशी ल पेड़ म बांध दिन। पेड़ म बांध के मारे के शुरू करत रिहिन ठउंका ओतके बेर बिलासा ह घोड़ा म उही मेर पहुंचिस। बिलासा ह अकेल्ला उमेंद, बाबूलाल अउ बेनी ला पछाड़ दिस। अब तो इमन अपन प्राण बचाये बर भागत रिहिसे। ओइसने म जगेसर, समारू अउ परसुराम पहुंच गे। इमन ह उमेंद, बाबूलाल अउ बेनीराम ल धर दबोचिन ताहन तीनों झिन के हाथ ल बांध दिन। एती बिलासा ह बंशी ल पेड़ के बंधना ले छोड़ा के घोड़ा म बइठार के अउ ओ तीनों झिन के हाथ ल बांध के बस्ती पहुंचिन।

परसुराम ह अपन दमांद के घाव म जड़ी बूटी लगइस। एती इमन ल बस्ती के पीपर पेड़ म बइठार के राखिन। अब गांव म बइठक होइस। बस्ती भर के मन सकलागे रिहिन। बइठका म उमेंद ह अपन मंशा ल बतइस। बिलासा ल अपन रद्दा ले हटाये बर पहिली बंशी के हत्या करबोन ताहन बिलासा कमजोर हो जही ओकर बाद बिलासा के हत्या के योजना बनाये रेहेन। शिकार करे के बहाना बंशी के हत्या करे बर जंगल म लेगे रेहेन। हमर योजना के जानकारी बिलासा ल कइसे होइस येह समझ नइ आवत हे। बिलासा नइ आये रहितिस ते बंशी के हत्या कर डरे रहितेन। बस्ती वाले मन उमेंद के बात ल सुन के दंग रहिगे। अब गाँव के सियान मन किहिन कि ये तीनो ल का सजा दे जाय? कोनो मन किहिन कि यहू मन ल कुटकुट ले थुथरे जाय तब इंकर चेत ह चघही। कमाना न धमाना बस चोरी बदमासी म लगे रहिथे। अतका ल सुन के बिलासा ह किहिस- इमन ल मारबो पिटबो ताहन सुधर जही एकर का गारेंटी हे तेकर ले इमन ल सही रद्दा म लाने बर माफी दे देथन। अउ इमन ल किरिया खवाथन कि अब अइसन बूता नइ करन कहिके। गांव के विकास खातिर हम्मन ल शक्त नियम बनाये बर परही। सबले पहिली हमर बस्ती म आज के बाद कोनो नसा नइ करही, सब झिन मिल के आर्थिक विकास खातिर कोसिस करिंगे चाहे व्यापार हो चाहे खेती किसानी चाहे जंगल के उपज ल लान के बेचे के हो। आज के बाद कोनो ठेलहा नइ घुमय चाहे नर हो चाहे नारी, उही किसम ले बहू बेटी मन ल सशक्त बनाये बर अखाड़ा म हथियार चलाना सीखे बर परही। पुरूष ह हमेशा महिला के संग थोरे रही अब अबला नही सबला बनाये बर परही। गाँव म सब मिल के विद्यालय के स्थापना करबोन ताकि अवइया पीढ़ी पढ़-लिख के आगू बढ़ सकय। बिलासा के विचार ल सुन के सब झिन हामी भर दिन। ताहन उही दिन बस्ती के मुखिया बिलासा ल बना दिन। बिलासा के जय-जयकार होइस।

बिलासा ह घर म अइस त ओकर सास ह आरती उतारिस। हम्मन धन्य हो गेन बहू। तोर असन बहू पा के। बंशी ह अपन महतारी बाप ल बतइस आज बिलासा समय म नइ आये रहितिस ते मँय ह नइ बाचें रहितेंव  दाई। बिलासा किहिस- ए तो महामाया मइया के किरपा आय दाई जउन ह समय म समारू कका करा संदेश भेजवा के एला बचवा लिस। जगेसर किहिस- हमर दुनो झिन के असीस तुंहर दुनो उपर हे बहू। अब हम्मन तुमन ल नइ रोकन-टोकन। हम्मन ल तुंहर उपर पूरा भरोसा हे हमर मन के संगे-संग बस्ती के घलो सेवा करव।

                                          

आठ


अब परसुराम अउ बैसाखा ह सियान हो गे। दुनो झिन सुन्ता सलाह हो के सब करोबार अउ लगरा गाँव के सियानी ल बिलासा ल सौंपे बर सहमत होइन। अब तो बिलासा अउ बंशी के उपर अरपा के केवट बस्ती, लगरा गाँव, चिल्हाटी गाँव अउ मोपका गाँव के जिम्मेदारी आ गे। बिलासा ह अपन पिता जी के सलाह ल मान के रतनपुर ले नवा घोड़ा लइस। अब बिलासा अउ बंशी ह सबो जिम्मेदारी ल बढ़िया निभाए बर धर लिन। बिलासा ह बंशी ल घलो अपन सही घुड़सवारी सिखा डरिस। बिलासा अउ बंशी ह घोड़ा म सवार हो के ददरिया गावत लगरा गाँव जाय बर निकल गे। 


बंशी-     बटकी म बासी अउ चुटकी म नून

           मँय गावत हँव ददरिया तँय कान दे के सून

           लिये पोते सुग्घर हवे अंगना

           संग-संग जिबोन संगे म मरना


बिलासा- अरपा नदिया म कोड़े हँव झिरिया

           संग जिये मरे बर खाये हँव किरिया


बंशी -    तोर संतान हरन रतनपुरहीन महामाई 

           किरपा ल बनाये रखबे हमर उपर दाई


बिलासा - छत्तीसगढ़ के भुइयाँ ठइया हे के बलिहारी हे

            करँव जोहार उतारँव आरती मन फूलवारी हे


ददरिया गावत-गावत कइसे लगरा गाँव पहुंचिन ते पतच नइ चलिस। ए दरी बंशी ह घोड़ा हांकत रिहिसे अउ बिलासा ह पिछ़ु म बइठे रिहिस। बिलासा अउ बंशी ह लगरा गांँव पहुंचिन त गाँव वाले मन बिक्कट खुस हो गे। सब अपन-अपन घर खाये बर नेवता देवत रिहिसे फेर बिलासा ह अपन ददा के घर म गाँव भर बर भोज के बेवस्था करिस। पूरा गाँव भर के मन खुसी म मांदर के थाप म करमा गीत गावत झूम-झूम ले करमा नाचिन -


मँय नइ जियँव बिन राम ओ माता

मँय नइ जियँव बिन राम

राम लखन सिय बन पठवाये

नहीं किये भल काम


भल होवत मोर हमु बन जइहँय

अवध रहुहँय केहि काम

राम बिन मोर गद्दी हे सूना

लखन बिन ठकुराई


सिया बिन मोर मंदिर सूना

कोन करे चतुराई

कपटी कहिल कुबुड़ि अभागी

कोन हरय तोर ज्ञान


भल सुर नर मुनि सब दोस देखत हे

नहीं किये भल काम ओ माता

मँय नइ जियो बिन राम...


दू चार दिन लगरा गाँव म रहिके चिल्हाटी गिन ओकर बाद मोपका म घलो सब कारोबार ल व्यवस्थित करे बर रिहिन।

रतनपुर के राजा कल्याण साय ह अपन कुलदेवी महामाया मइया के बिक्कट भक्त रिहिसे। कुंवार अउ चैत नवरात्रि म महामाया मइया के सेवा बजावय। उहां के बेवस्था म पूरा धियान देवय ताकि माता के दरसन करइया मन ल कोनो तकलीफ झन होवय। दुनो नवरात म महामाया मइया के सेवा म बिधुन हो जय। तभे तो महामाया मइया के किरपा ले कल्याण साय अपन रतनपुर राज ल बढ़िया चलावत राहे। राजा कल्याण साय ह रानी के संग म महामाया मइया के आरती संझा बिहनिया उतारय -


आदिशक्ति महामाई के आरती उतारे हां....

आवो सब मील महामाई के आरती लेव उतारी

जगजननी, जग तारन माता, विपदा आये निवारी


दुई कर जोर के शीष नवाये, खड़े सकल नर नारी

रतन सिंहासन बैठे भवानी रूप मनोहर हां, जगमग छवी न्यारी

रूप मनोहर जगमग न्यारी, भूषण अंग सुहाये।

कटि केहरी सम उरज बिसाला, शीष मुकुट मन भाये

कर कुटार तोमर उर माला, महिमा शारद गावे


भारी असुर मही भार उतारे, आदि कुमारी हां सुर नर हरसाये

आदि कुमारी सुर नर हरसावे, गावत सुयस तुम्हारी

अतर अगर नौ वेद धूप ले, भर-भर कंचन थारी,

घंटी घड़ी सहनाई बजावे,

झांझ मृदंग चांग न्यारी


आरती गावय मन हुलसाये, नर अउ नारी हां, देवे करतारी

नर नारी देवे करतारी ज्योतिष रूपनी माई

ध्यान तुम्हारे निसी वासरे, अष्ठ भुजा हो सहाई

चहत अमर पद मंगल जननी, संतन के सुखदाई

पांच भगत अस पचरा गावे, दास बिलास हां सेवक चितलागे।


रतनपुर के राजा कल्याण साय ल शिकार करे के बिक्कट सउंख राहय। नवरात्रि के बाद राजा ह शिकार करे के खातिर जाय बर योजना बनइस। अपन आठ झिन सैनिक मन ल किहिस कि काली हम्मन ल शिकार करे बर जाना हे, सब तैयारी कर लुहू। संग म भाला, बरछी अउ तीर कमान ल धर के चलहू। राजा ह घलो शिकार म जाय बर तैयारी करिस। बिहान दिन बिहनिया राजा कल्याण साय ह भाला बरछी, तीर कमान धर के घोड़ा म चढ़ के सैनिक मन संग निकलिस। रतनपुर के पूरा क्षेत्र घनघोर जंगल रिहिसे। जंगली जानवर के भरमार रिहिसे। जंगली जानवर मन के पीछा करत-करत राजा ह अरपा के घनघोर जंगल म पहुंच गे। सैनिक मन पीछु डाहर छुट गे। जंगली जानवर मन ह राजा ऊपर हमला कर दिस। राजा हा बचाओ बचाओ कहिके चिल्लाय बर धर लिस। संयोग से उही समे बंशी अउ बिलासा ह उही रद्दा ले चिल्हाटी ले अरपा तीर डोंगा घाट आवत रिहिन हे। बिलासा अउ बंशी ह बचाओ-बचाओ के आवाज ल सुनिन ताहन अपन घोड़ा ल उही डाहर दउड़इस। बिलासा ह देखथे कि जंगली जानवर मन ह राजा उपर हमला करत हे। राजा घलो अपन रक्षा बर जंगली जानवर मन ले संघर्ष करत रिहिसे फेर जंगली जानवर मन के आघु म राजा कहां ले सक पातिस। चित हो के गिर गे। बिलासा ह आदिशक्ति महामाया मइया ल सुमर के तीर चला के जंगली जानवर मन ले राजा के जान बचइस। राजा ह अचेत हो गे रिहिसे। बिलासा ह राजा ल घोड़ा म बइठार के अपन बस्ती अरपा के तीर डोंगा घाट म लइस। परसुराम ह बइद रिहिसे। जड़ी बूटी ले राजा के इलाज करिस। बिलासा अउ बंशी ह घलो राजा ल बचाये बर दिन-रात एक कर दिन। इंकर मन के सेवा ले राजा ह सम्हले बर धर लिस। 

सैैनिक मन राजा कल्याण साय ल जंगल जंगल खोजिन फेर नई मिलिस तहन उमन उदास होके रतनपुर पहुंचिन त राजा ल संग म नइ देख के उहां हाहाकार मचगे। सब झिन पूछन लागे राजा कहां हे, राजा कहां हे? सैनिक मन करा जवाब नइ रिहिसे। सब झिन रानी करा मुड़ी ल गड़िया के खड़ा हो गे। रानी ह छाती पीट-पीट के रोए बर धर लिस। रानी ह सैनिक मन ल खिसिया के किहिस- कहां हे राजा ह? एक झिन सैनिक ह रोवत-रोवत किहिस- राजा ल जंगली जानवर मन ह उठा के लेगे। एला सुने के बाद पूरा रतनपुर शोक म बुड़ गे। रोहा राही परगे। अब सब सैनिक मन उपर दोस लगइन तुमन ह राजा के सुरक्षा करे बर गे रेहेव त का करत रहेव। तुमन राजा के सुरक्षा नइ कर सकेव। तुमन ल तो अपन जान ल बाजी लगा के राजा ल बचाना रिहिसे, तुमन बिना राजा के अपन सुरत देखाये बर रतनपुर कइसे आयेव। रानी किहिस- मँय कुछु नइ जानव तुमन कइसनो करके राजा ल खोज के लावव नहीं ते फेर तुमन ल सजा मिलही। फेर काकरो हिम्मत नइ होइस। अब एती राजा के क्रियाकर्म के तैयारी चलत रिहिसे ठउँका ओतके बेरा बंशी ह रतनपुर रानी करा पहुंचिस। रानी ह बंशी ल देख के पुछिस तँय कोन अस?

बंशी किहिस- मँय बंशी अँव खबर लाये हँव।

रानी- का खबर लाये हस?

बंशी- राजा ह हमर बस्ती म हवे। ओह जंगली जानवर मन के हमला ले घायल हो गे रिहिसे। राजा ल हमन बस्ती म लेग के ओकर इलाज पानी कर डरे हवन।

राजा के प्राण बांचे के खबर ल सुन के रानी ह बिक्कट खुस हो गे तुरते अपन सैनिक मन ल राजा ल लाये बर बंशी संग भेजिस। रानी ह रतनपुर म राजा के स्वागत के तैयारी म लग गे। सैनिक मन बंशी के संग अरपा नदिया के डोंगा घाट के बस्ती पहुंचिन। सैनिक मन राजा के आघु म मुड़ी ल गड़िया के खड़ा हो गे। इमन ल नखमरजी देख के किहिस- एमा तुमन ल नखमरजी होय के कोनो बात नइ हे। ओ समे परिस्थिति ओइसने रिहिसे। तुमन सही सलामत हव इही मोर बर बड़े बात आय। सैनिक मन घलो राजा के उदारता ल देख के खुस हो गे। सैनिक मन राजा ल किहिस कि रानी ह आप ल रतनपुर लाये बर भेजे हे। सुन के कथे- हमर संग म बिलासा अउ बंशी घलो जाही। सैनिक मन राजा के अगुवाई करत रतनपुर गिन। संग म बिलासा अउ बंशी घलो रिहिन। जइसने राजा ह राजमहल म पहुंचिस त राजा के उहां जोरदार स्वागत होइस। राज दरबार म राजा किहिस कि ए स्वागत के असली हकदार बिलासा हे। बिलासा नइ रहितिस ते मँय नइ बांचे रहितेंव। पुरा राज दरबार म बिलासा के जय जयकार होइस। राज दरबार म राजा ह घोषणा करिस कि रतनपुर राज ल बिलासा जइसे बहादुर नारी के जरूरत हे। आज ले बिलासा ल मोर खास सलाहकार के संगे-संग मंत्री के रूप म नियुक्त करत हँव। अउ एकर बहादुरी के एवज म अरपा नदिया के दुनो पार (खड़) के भुइयाँ ल जागीर (राजा द्वारा पुरस्कार स्वरूप म दे गे भुइयाँ) के रूप म बिलासा ला सौंपत हँव। राज दरबार म राजा ह बिलासा ल तलवार दे के सम्मानित करिस। बिलासा ह राजा के सलाहकार अउ मंत्री बने के बाद जब घोड़ा म बंशी संग अरपा तीर बस्ती म पहुंचिस त पुरा बस्ती जय जयकार करिन। राजा ह बिलासा ल अरपा के दुनो पार के भुइयाँ ल पुरस्कार के रूप म दे हे कहिके बस्ती वाले मन ल बिलासा उपर गर्व होइस। अब तो अरपा के दुनो पार के विकास बर बिलासा ह अपन विवेक ले बहुत अकन योजना बनइस ओ योजना ल पूरा करके अरपा के दुनो पार ह विकास करत गिस। बिलासा ह हर क्षेत्र म चाहे शिक्षा के क्षेत्र हो, चाहे आर्थिक क्षेत्र हो, चाहे अरपा नदिया के संरक्षण के काम हो, चाहे धार्मिक बुता होय अपन जनता ल आत्मनिर्भर बनाये के दिशा म दिन रात काम करत रिहिसे। बिलासा ह अलग-अलग सहर के गहना-गुरिया ले श्रृंगार करे त सउंहत छत्तीसगढ़ महतारी लागे -


चांपा के टोड़ा

रयपुर के सुतिया

नवागढ़ के नागमोरी

मल्हार के रूपिया

दुरूग के टिकुली

नांदगांव के चूरी

धमधा के करधन

जांजगीर के पहिरे पैरी

कोरबा के बिछिया

पेंड्रा के फूल्ली आय

पंडरिया के अंइठी

शिवरीनारायेन के माहूर लगाय

रतनपुर के कुहकु

डोंगरगढ़ के फीता

तन भर गाहना

नइ राहय कोनो कर रीता

सिंगार करके निकले

त लागे छत्तीसगढ़ महतारी

बैरी मन के नाश करे बर

धर के चले तलवार कटारी


बिलासा के शौर्य के गुंज ह दिल्ली तक पहुंचगे। अइसे केहे जाथे कि तत्कालीन शासक मुगल बादशाह जहांगीर ह राजा कल्याण साय ल ओकर योद्धा मन के संगे दिल्ली आय बर नेवता भेजवइस। खबर ल सुन के रानी ह घबरागे। काबर कि ओ समे दिल्ली वाले राजा के बुलावा आना मने खतरा के घंटी बजे। ओहा छोटे-छोटे राज मन ल कब्जा कर लेवत रिहिसे। राजा ह रानी ल किहिस कोनो फिकर के बात नइ हे रानी मोर संग म गोपाल, भैरो अउ बिलासा जइसे हमर राज के बहादुर मन जावत हे। हमला कोनो गुलाम नइ बना सके। राजा संग घोड़ा म तीनो झिन दिल्ली गिन। दिल्ली वाले राजा ह अपन योद्धा मन संग रतनपुर के राजा कल्याण साय के योद्धा मन ले तलवारबाजी के प्रतियोगिता करवईस। दिल्ली म घलो बिलासा ह हर मुकाबला म वीर साबित होइस। दिल्ली वाले राजा ह कल्याण साय ल किहिस-जउन राज्य म बिलासा असन बहादुर नारी हे वो राज हमेशा खुशहाल रही। कल्याण साय अउ बिलासा के जय जयकार होइस ओकर बाद दिल्ली वाले राजा ह कल्याण साय ल बिलासा, गोपाल अउ भैरो संग हीरा जवाहरात दे के बिदा करिस। राजा ह बिलासा, गोपाल अउ भैरो संग दिल्ली ले रतनपुर लहुटिस त भारी उत्साह के माहोल रिहिस। रतनपुर म चारो झिन के भारी मान-सम्मान होइस। चारो झिन महामाया मइया के शरण म जा के माथा टेकिन। माथा टेक के अपन राज के खुसहाली बर महामाया मइया ले बिनती करिन।


नौ


बिलासा के दिल्ली से आये के बाद अरपा के दुनो पार खुसी के माहोल रिहिसे। बिलासा के जय जयकार होइस। दुनो पार के रहवइया मन बिलासा के दिल्ली म शौर्य के प्रदर्शन खातिर बिक्कट मान-सम्मान करिन। एसो के देवारी ह तो दुगना खुसी धर के लइस हे। देवारी ल हर साल कस बड़ा धूम-धाम ले मनाये बर तैयारी सुरू होगे। सब तैयारी होय के बाद सुरहुति के सात दिन पहिली ले गौरा-गौरी के बिहाव बर गौरा चौरा म फूल कुचरे के शुरूआत करिन। फूल कुचरई म गीत गावत चाँउर चघाये -


एक पतरी रयनी भयनी

राय रतन ओ दुरगा देवी

तोरे सीतल छांव

चौकी चंदन पिढ़ुली

गउरी के होथय मान

जइसे गउरी ओ मान तुम्हारे

कोरवन जइसे धार

कोरवन असन डोहरी

बरस ससलगे डार


दू पतरी रयनी भयनी

राय रतन ओ दुरगा देवी

तोरे सीतल छांय

चौकी चंदन पिढ़ुली

गउरी के होथय मान 

जइसे गउरी ओ मान तुम्हारे

जइसे कोरवन धार

कोरवन असन डोहरी

बरस ससलगे डार


तीन पतरी रयनी भयनी

राय रतन ओ दुरगा देवी

तोरे सीतल छांय

चौकी चंदन पीढ़ुरी

गउरी के होथय मान

जइसे गउरी ओ मान तुम्हारे

जइसे कोरवन धार

कोरवन असन डोहरी

बरस ससलगे डार


चार पतरी रयनी भयनी

राय रतन ओ दुरगा देवी

तोरे सीतल छांय 

चौकी चंदन पिढ़ुरी

गउरी के होथय मान

जइसे गउरी ओ मान तुम्हारे

जइसे कोरवन धार

कोरवन असन डोहरी

बरस ससलगे डार


पांच पतरी रयनी भयनी

राय रतन ओ दुरगा देवी

तोर सीतल छांव

चौकी चंदन पिढ़ुली

गौरी के होथय मान

जइसे गउरी ओ मान तुम्हारे

जइसे गउरी ओ मान तुम्हारे

जइसे कोरवन धार 

कोरवन असन डोहरी

बरस ससलगे डार


छय पतरी रयनी भयनी

राय रतन ओ दुरगा देवी

तोरे सीतल छांव

चौकी चंदन पिढ़ुरी

गउरी के होथय मान

जइसे गउरी ओ मान तुम्हारे

जइसे कोरवन धार

कोरवन असन डोहरी

बरस ससलगे डार


सात पतरी रयनी भयनी

राय रतन ओ दुरगा देवी

तोरे सीतल छांव

चौकी चंदन पिढ़ुरी

गौरी के होथय मान

जइसे गउरी हो मान तुम्हारे

जइसे कोरवन धार

कोरवन असन डोहरी

बरस ससलगे डार


फूल कुचरे के नेंग ल सात दिन ले पुरा करे के बाद सुरहोती रात के गौरी-गौरा के बिहाव ल बस्ती भर मिल के बड़ा धूम-धाम ले करिन। गौरी-गौरा के बिसरजन के बाद देवारी तिहार के दिन गोवर्धन पूजा ल बड़ा धूम-धाम ले मनइन।

तिहार मनाये के बाद बिलासा ह अब अपन जागीर के विकास म लगगे। जागीर के सुरक्षा खातिर सेना तैयार करिस। महिला सैनिक मन के सेनापति बिलासा खुद बनिस अउ पुरूष सैनिक मन के सेनापति के जिम्मेदारी बंशी ल दिस। अब तो अरपा के दुनो पार ह जल्दी विकास करे बर धर लिस। बिलासा ह अपन जागीर म सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक विकास बर दिन रात लगे राहे। अब सब ल व्यापार बर प्रेरित करिस। अपन डाहर ले आर्थिक सहायता दे के सब नर-नारी ल आत्मनिर्भर बने बर सुविधा दिस। अब तो अरपा ह व्यापारिक केन्द्र के रूप म प्रसिद्ध हो गे। सब धन धान्य ले मजबूत हो गे। जब परजा सम्पन्न होइस त बिलासा के जागीर घलो ताकतवर होइस, एकर प्रतिष्ठा ह दुरिहा-दुरिहा तक बाढ़े बर धर लिस। बिलासा के बहादुरी के संगे-संग दया धरम के शोर ह चारो मुड़ा बगरे बर धर लिस। बिलासा के कुशल संचालन ले बिलासा के जागीर के ताकत बाढ़त गिस। बिलासा के ताकत अउ विकास के बढ़ोतरी ल देख के ओकर जागीर ले लगे परोसी राजा ह जले बर धर लिस। अब तो परोसी राजा ल ए डर हो गे कि बिलासा ह हमर राज ल हथिया तो नइ लिही। अब परोसी राजा ह डर के मारे बिलासा के जागीर ल हड़पे बर योजना बनइस। मान ले हम्मन ओकर राज ल नइ हड़पबोन त बिलासा ह हमर उपर चढ़ाई कर के हमर राज ल हड़प लिही। फेर बिलासा के अइसे कोनो मंशा नइ रिहिसे। ओह तो अपन जागीर के जनता मन के समुचित विकास चाहत रिहिसे। एकर अलावा ओकर धियान ह एती ओती नइ जावय। अब परोसी वाले राजा ह बिलासा के जागीर म हमला करे बर सही समय के मौका के अगोरा म रिहिस।

बिलासा ह हर साल बस्ती म रामलीला के भव्य आयोजन करवावय यहू साल रामलीला के आयोजन दस दिन तक करवइस। रामलीला के समे तो अइसे लागे कि भगवान श्री राम ह साक्षात दरसन देवत हे। राम जनम, पुष्प वाटिका, राम बनवास, राम केवट संवाद, शबरी मिलन, सीता हरन, राम सुग्रीव मिलन, राम सेतु निर्माण, लंका दहन, लक्ष्मण शक्ति, मेघनाथ कुंभकरन अउ रावन वध ओकर बाद राम सीता अउ लक्ष्मण के आयोध्या पहुंचना। आयोध्या आये के बाद आयोध्या म भगवान श्री राम के राज तिलक होथे। भगवान श्री राम के सखा भक्त गुहा निषादराज जी रिहिसे। भक्त गुहा निषाद के वंशज मन के आराध्य भगवान श्री राम रिहिसे। भक्त गुहा निषादराज ह भगवान श्री राम, लक्ष्मण अउ सीता मइया ल गंगा पार लगाये रिहिसे। तिही पाये के बिलासा ह अरपा ल गंगा नदी मान के रामलीला म केवट संवाद के दिन अरपा म श्री राम-सीता अउ लक्ष्मण ल डोंगा म बइठार के भक्त गुहा निषाद राज ह पार लगावत झांकी निकालय। जेला देखे बर जागीर के जनता सकलावय।

परोसी राज्य के राजा ह योजना बनइस के रामलीला म जउन दिन भगवान श्री राम के राज तिलक ल देखे बर जागीर के जनता एके जगह सकलाये रिही। उमन रामलीला देखे म मगन रही हम्मन उही दिन बिलासा के जागीर म धावा बोल देबोन। योजना के मुताबिक परोसी राज्य के भारी भरकम सेना बिलासा के जागीर म हमला कर  दिन। बिलासा हड़बड़ा गे। अपनो सैनिक मन ल हमला के जवाब दे बर आदेश करिस। दुनो डाहर ले बरछा, भाला, धनुष तीर अउ तलवार ले युद्ध मात गे। बंशी ह पुरूष सैनिक मन के अगुवानी करत बैरी मन के नास करत रिहिसे एती बिलासा ह घलो घोड़ा म चढ़ के सनन-सनन तलवार चलावत दुसमन मन ले टक्कर लेवत रिहिसे। महिला अउ पुरूष सैनिक अपन जागीर ल बचाये बर पूरा जान लगा दिन। बिलासा ह जब तलवार चलावत युद्ध म उतरिस ताहन ओकर बहादुरी ल देख के बैरी मन कांपे बर धर लिन।


रणचण्डी कस दिखिस बिलासा

लागिस देवी के अवतार

बघनीन असन दहाड़िस ओहा

सनन सनन चलइस तलवार


परोसी राज्य के राजा के अचानक हमला ले बिलासा ह सहयोग खातिर रतनुपर संदेश नइ भेजवा सकिस। अब परोसी राज के भारी भरकम सेना के आघु म बिलासा के छोटे से सेना ह कमजोर परे बर धर लिस। आखरी सांस तक लड़त-लड़त सबले पहिली पुरूष मन के सेनापति बंशी ह वीरगति पइस। एला सुन के बिलासा ह बहुत दुखी होइस फेर अपन जागीर ल बचाये बर आखरी समे तक संघर्ष करत रिहिस। अपन जागीर के रक्षा करे खातिर आखिरी दम तक संघर्ष करत वीरगति पा गे। अब परोसी राजा ह बिलासा के जागीर उपर कब्जा कर लिस। जब बिलासा अउ बंशी के वीरगति पाये के खबर ल रतनपुर के राजा कल्याण साय ह पइस ताहन बिक्कट दुखी होइस। राजा कल्याण साय ह तुरते अपन फौज ल रतनपुर ले बिलासा के जागीर अरपा के तीर भेजिस। राजा कल्याण साय के सेना ह परोसी राजा के सैनिक मन ल खदेड़ के राजा ल बंदी बना के रतनपुर लान के कोठी म बंद करके ओकर राज्य उपर कब्जा कर लिस।

एक दिन कल्याण साय राजा ल रतनपुर के कुलदेवी आदिशक्ति महामाया मइया ह सपना दिस कि बेटा बिलासा ह साधारण नारी नइ रिहिसे। ओहा शक्ति के अवतार रिहिसे। ओहा देवी स्वरूपा रिहिसे। ओहा शौर्य के प्रतिमूर्ति रिहिसे। ओहा कोशल प्रदेश के गौरव रिहिसे, ओहा नारी मन के मान-सम्मान अउ स्वाभिमान के प्रतीक रिहिसे। ओहा अपन जागीर (भुइयाँ) के रक्षा खातिर वीरगति ल प्राप्त कर के अमर हो गे। जउन जगह वोह वीरगति प्राप्त करे हे ओ करा ओकर नाव ले बिलासा चौरा (चबूतरा) स्थापित करके ओकर प्राण प्रतिष्ठा कर। राजा ह अरपा तीर केवट बस्ती म जउन जघा बिलासा ह वीरगति पाय रिहिसे उही करा बिलासा चौरा (चबूतरा) बनवइस। बिलासा चौरा म प्राण प्रतिष्ठा बर महायज्ञ अउ भण्डारा के आयोजन करिस। बिधि विधान ले प्राण प्रतिष्ठा होइस। राजा कल्याण साय अउ रानी ह महायज्ञ के जजमान रिहिन। बिलासा चौरा म प्राण प्रतिष्ठा के बाद राजा कल्याण साय ह घोषणा करिस- हमला बिलासा उपर गौरव हे जउन ह अपन प्राण के बाजी लगा के मोला बचइस, दिल्ली म जा के अपन शौर्य के प्रदर्शन करत हमर राज्य के मान ल बढ़इस, अपन जागीर के रक्षा बर बैरी मन संग लड़त-लड़त वीरगति ल प्राप्त कर लिस। अइसन वीरांगना ल मँय हमर राज्य के जनता डाहर ले प्रणाम करत हँव। बिलासा केवट ह साधारण नारी नई रिहिस वोह देवी के अवतार रिहिसे। अब बिलासा ल 'बिलासा देवी केवटÓ के नाम ले जाने जाही, अरपा के दुनो पार बिलासा के जागीर ल बिलासा के नाम से बिलासपुर के नाव ले जाने जाही अउ बिलासपुर म कुलदेवी के रूप म बिलासा देवी के पूजा होही। राजा कल्याण साय के घोषणा के बाद 'बिलासा देवी केवटÓ के जय जयकार होइस-


जोति जलावँव हो

बिलासा माता

आरती उतारँव हो

जोति जलावँव हो

बिलासा माता 

आरती उतारँव हो


केवट कुल के तँय ह माता

शक्ति के अवतारे

शक्ति के अवतारे हो माता

शक्ति के अवतारे

दुर्गा चण्डी कस तँय माता

बैरी मन के करे संहारे

बैरी मन के करे संहारे हो माता

बैरी मन के करे संहारे

राजा के जान बचाये हो माता

बिलासा माता

आरती उतारँव हो

जोति जलावँव हो

बिलासा माता 

आरती उतारँव हो


तोरे महिमा ल माता

सेवक जुरमिल गावय

सेवक जुरमिल गावय हो माता

सेउक जुरमिल गावय

बिलासपुर के नाम ह माता

बिलासा ले धरावय

अरपा पाँव पखारय हो

बिलासा माता

आरती उतारँव हो

जोति जलावँव हो

बिलासा माता

आरती उतारँव हो


बिलासा चौरा ल माता

सब झिन माथ नवावय

सब झिन माथ नवावय माता

सब झिन माथ नवावय

तोर किरपा ले सबके दाई

संकट दूर हो जावय

संकट दूर हो जावय माता

संकट दूर हो जावय

गुन ल तोर गावय हो

बिलासा माता

आरती उतारँव हो

जोति जलावँव हो

बिलासा माता 

आरती उतारँव हो


परसु अउ बैसाखा कस तँय ह 

ददा दाई पाये

ददा दाई पाये हो माता

ददा दाई पाये

ननपन ले बहादुर बेटी

जग म नाम कमाये

जग म नाम कमाये हो माता

जग म नाम कमाये

कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) के मान बढ़ाये हो 

बिलासा माता

आरती उतारँव हो 

जोति जलावँव हो

बिलासा माता

आरती उतारँव हो

लेखन प्रारंभ

क्वंार, शुक्ल सप्तमी (नवरात्रि)

12 अक्टूबर 2021

मंगलवार

लेखन पूरा 

कार्तिक कृष्ण सप्तमी

27 अक्टूबर 2021, बुधवार

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दुर्गा प्रसाद पारकर


जन्म     : 11 मई 1961

जन्म स्थान     : ग्राम-बेलौदी (मालूद), दुर्ग, छत्तीसगढ़

शिक्षा     : एम.कॉम., एम.ए. (हिन्दी)

प्रवर्तक     : एम.ए. (छत्तीसगढ़ी)

      पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर

प्रकाशित कृतियां     : चिन्हारी ''लोक-संस्कृति’‘ (2001), जस-जंवारा ''शोध’‘ (2002), मया पीरा के संगवारी ''सुवा’‘ गद्य (2011), मया पीरा के संगवारी ''सुवा’‘ पद्य (2013), छत्तीसगढ़ी नाटक ''शिवनाथ’‘ (2015), छत्तीसगढ़ी नाटक ''सुकुवा’‘ (2018), छत्तीसगढ़ी नाटक ''चंदा’‘ (2018), छत्तीसगढ़ी नाटक संग्रह ''सोन चिरई’‘ (2018), छत्तीसगढ़ी नाटक ''सुराजी गांव’‘ (2020), लोक अभिव्यक्ति के उपन्यास ''केवट कुंदरा’‘ (2020), पारिवारिक पृष्ठ भूमि के उपन्यास ''बहू हाथ के पानी’‘ (2021), छत्तीसगढ़ी उपन्यास ''शौर्य की प्रतिमूर्ति बिलासा देवी केवट’‘ (2022)


छत्तीसगढ़ी अनुवाद     : व्यंग्य संग्रह हरिशंकर परसाई के (2018), लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक-वीरेन्द्र तँवर (2021), चौरी-चौरा की कहानी-गौतम पांडेय (2021), भारतीय मूर्तिकला का परिचय-प्रभात रंजन (2021), निर्मला, उपन्यास-प्रेमचंद (2021)


छत्तीसगढ़ी स्तंभ     : ''आनी-बानी के गोठ’‘ छत्तीसगढ़ी व्यंग्य (दैनिक रौद्रमुखी स्वर) 1992-1994

      ''चिन्हारी’‘ छत्तीसगढ़ी निबंध (दैनिक भास्कर) 1995-2000


संपादन     :  ''लोक मंजरी’‘ छत्तीसगढ़ी-1995, ''छत्तीस लोक’‘ छत्तीसगढ़ी-1995, ''धरोहर’‘ छत्तीसगढ़ी-हिन्दी-1998, ''अपन कद काठी ले बड़का साहित्यकार-डुमन लाल ध्रुव’‘ व्यक्तित्व अउ कृतित्व-2019


सम्मान     : ''छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग’‘, छत्तीसगढ़ शासन, ''पद्मश्री पूनाराम निषाद’‘ सम्मान-2019, ''बिसम्भर यादव’‘ सम्मान-2013, ''प्रेम साईमन’‘ सम्मान-2014, ''केयूर भूषण’‘ सम्मान-2021, ''शिवनाथ स्वाभिमान’‘ सम्मान-2021, ''साहित्य पुरोधा’‘ सम्मान-2017, ''छत्तीसगढ़ी लोक कला रत्न’‘ सम्मान-2006, ''वीणापाणी साहित्य’‘ सम्मान-2015, ''साहित्य सृजन’‘ सम्मान-2013, ''छेरछेरा’‘ सम्मान-2018, ''धरती पुत्र’‘ सम्मान-2013, ''साहित्य’‘ सम्मान-2011, ''पं. दानेश्वर शर्मा स्मृति’‘ सम्मान (2022)


विशेष     : राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद रायपुर (एस.सी.ई.आर.टी.) द्वारा छठवीं ले आठवीं कक्षा तक कहानी संग्रह (2022) बर कहानी लेखन ग्रुप के सदस्य।

न्यूज 18 डॉट कॉम नई दिल्ली म 21 अक्टूबर 2021 ले सरलग छत्तीसगढ़ी लेखन प्रकाशित।


पता     : केंवट कुंदरा, प्लाट-03, सड़क-11, आशीष नगर (पश्चिम), रिसाली, भिलाई-दुर्ग, छत्तीसगढ़-490006

मोबाइल     : 98274-70653, 79995-16642, केतन पारकर (पुत्र) 93404-26863, 8878167832



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