Saturday 4 June 2022

भैंसी लेबो ददा //* =====०००===== (हास्य-व्यंग्य प्रहसन)

 *// भैंसी लेबो  ददा //*

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      (हास्य-व्यंग्य प्रहसन)

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       सात बच्छर के भकलू ह गली डहर ले संसभरहा दौड़त आईस अउ अपन ददा ल पोटार के कहिस- ददा गो-ददा गो-ददा गो .........

*मनबोध*- अरे का ए रे ? का ए रे ? का ए रे ......?


*भकलू*- सुन तो,सुन तो-सुन तो ......

*मनबोध*- बता न रे-बता न रे-बता न रे .........?

*भकलू*- बाल हठ करत कहिस-भैंसी लेबो ददा |

*मनबोध*- भैंसी ? 

*भकलू*- हां, भैंसी लेबो  ददा |

*मनबोध*- ए टुरा ल का होगे भला ? अचानक दौड़त आईसे अउ भैंसी लेबो कहत हे ! 

*भकलू*- ऊं हूं हूं हूं ........ आंय ददा भैंसी लेबो गो | सुनत हस के नहीं गो ? 

*मनबोध*- (जोर से खिसियाईस) अरे चुप तो रे,लपरहा टुरा |

*भकलू*- आंय ददा भैंसी लेबो गो, आजेच लेबो,अभीच्चे लेबो गो ........

*मनबोध*- (फेर जोर से खिसियाईस) अरे चुप तो रे,तोला का होगे  रे ? बैरासू धरे सहीं  गोठियावत हस -भैंसी लेबो-भैंसी लेबो-भैंसी लेबो ! ए का गोठ ए  रे ? न सुर-न मुर, अचानक भैंसी लेबो-भैंसी लेबो-भैंसी लेबो ! ए कुछु गोठ ए  रे ? काबर कहत हस अईसना ?

*भकलू*- सुन न ददा, आजेच मोर दोस्त चिंटू के ददा ह भैंसी बिसा के लानिस हवय | अब्बड़ सुग्घर हवय गो अउ ओकर पंड़वा ह तो अउ अब्बड़ेच सुग्घर हवय समझे ? 

*मनबोध*- हां समझ गयेंव, तेकरे सेती अहातरा रटन धरे हस- "भैंसी लेबो-भैसी लेबो-भैंसी लेबो-भैंसी लेबो"! 

*भकलू*- आजेच, अभीच्चे भैंसी लेबो ददा आंय |

*मनबोध*- अरे चुप रे अंड़हा टुरा |

*भकलू*- भैंसी लेबो लेबो लेबोच .........

*मनबोध*- सुन न बेटा,तोर दोस्त चिंटू के ददा तिर अत्तेक  बड़े झोला भर रूपीया हवय,तेकरे सेती ओमन लेहिन हवंय बेटा | हमर घर नून-तेल बर रूपीया नइ हवय,तव कइसे लेबो बेटा ? 

*भकलू*- नहीं ददा, मैं कुछ नइ जानौं, कईसनो करके आजेच भैंसी लेबो ऊं हूं हूं हूं ...........

*मनबोध*- अरे चुप  तो रे नौटंकीबाज, खूब नौटंकी करथस ! खीसा म रूपीया रहिही,तभे तो लेबो |

*भकलू*- रोवत-रोवत कहिस-मैं कुछ नइ सुनौं,कईसनो करके आजेच भैंसी लेबो ऊं हूं हूं हूं .........

*मनबोध* खेत ल बेंच के भैंसी लेबो का रे ?

*भकलू*-तैं कईसनो करके भैंसी ले,फेर आजेच लेबो ऊं हूं हूं हूं .........

*मनबोध*- खीसा म एको रूपीया नइ हवय,तव ए घर ल बेंच के भैंसी लेबो का रे ? 

*भकलू*- मैं कुछ नइ जानौं,  तैं कईसनो करके आजेच भैंसी ले, ऊं हूं हूं हूं ........


*मनबोध*- ए अलवाईन टुरा के मारे मैं परेशान हो गयेंव गा ! "मैं अपने-आप ल बेंच के भैंसी लेंव का रे ? "

*भकलू*- ऊं हूं हूं हूं ........... मैं कुछ नइ जानौं,तैं कईसनो करके आजेच भैंसी ले, सुनत हस गो ? 

*मनबोध*- सुनत हौं बेटा, सुनत हौं ददा | ले अब मोला छोड़, तोर बर भैंसी लेहे जाथौं, समझे ? 

*भकलू*-तव सुन तो ददा-ओ भैंसी के पंड़वा पीला होही ? तेकर ऊपर मैं चढ़हूं, खूब मजा आही गो |

*मनबोध*- अरे चुप रे, बदमाश कहीं के ! भैंसी के पंड़वा ऊपर चढ़बे,तव ओकर कनिहा तो टूट जाही रे ! तेकर ले भैंसी लेबे नइ करौं साले ला ! 

*भकलू*- ऊं हूं हूं हूं हूं .......... तैं भैंसी नइ लेबे, तव मैं जाथौं तालाब म डूब के मर जाहूं ऊं हूं हूं हूं ...........

*मनबोध*- अरे बाप रे ! ए टुरा ल आज का होगे भगवान ? ले जाथौं जाथौं -जाथौं -जाथौं ......... अभीच्चे तोर बर भैंसी अउ ओकर पंड़वा पीला लानहूं | तैं घर ले बाहिर झन निकलबे बेटा, तालाब म बड़े-बड़े जोंखवा रहिथे, तोला चाब डारही समझे ? 

*भकलू*- हव ददा, मैं घर ले बाहिर नइ निकलौं, तैं जल्दी भैंसी ले के आबे | 

*मनबोध*- हव | मैं जाथौं, जल्दी भैंसी ले के आहूं समझे ? 

*दुवसिया* (पड़ोसी) -जब ए बात ल सुनीस-के मनबोध ह भैंसी लेहे जावत हे, तब गुस्सा के मारे मनबोध घर आ के खूब लड़े लागिस- तुमन भैंसी लेहे मत जावौ, बड़ा भैंसी लेहे जाथस तेन, मैं सोजबाय समझा देवत हौं, नइते ठीक नइ होही ! 

*मनबोध*- अरे, तोला का होगे पड़ोसिन ? अत्तेक काबर झल्लावत हस ? 

*दुवसिया*- काबर नइ झल्लाहूं ? तुमन भैंसी लाहू,तव मोर धान ल चर नइ देही ? 

*मनबोध* - चराए जाहूं, तव तुंहर धान ल नइ चरावौं, समझे के नहीं  ? 

*दुवसिया*- मैं जानत हौं , मोरेच धान ल चराहू | सियान मन कहिथैं- "गरौंसा के खेती,रांड़ी के बेटी !" एक-दू मुंह मारिच देथें !" मोर खेत मन गरौंसा म हवंय, तुंहर भैंसी के मारे बांचही नहीं ! 

*मनबोध*- अरे, तैं शांत तो हो जाए देवी, तोर धान ल नइ चरावौं |

*दुवसिया*- बेर्रा, भड़वा तैं मर जा, सिरा जा ! मोर धान ल चराए बर भैंसी लानत हस अउ मोला नानचुन लईका सहीं भुलवारत हस ! 

*मनबोध*-तैं शांत हो जा पड़ोसी,जा तोर घर वाले ल भेजबे,ओकरे  तिर निपटहूं |

*दुवसिया*- तैं मर जा रे रोगहा, निपटहूं कहत हस ! जाथौं थाना  म रिपोट लिखाहूं, अउ तोला मजा चखाहूं ! 

    दुवसिया ह रतनपुर थाना जा के रिपोट लिखवा देहिस- "मनबोध के भैंसी ह मोर खेत के धान ल चर डारिस ! अउ रोगहा ह मोर संग निपटहूं कहत रहिस ! 

     थाना ले पुलूस-दरोगा आ गे | मनबोध ल बुला के खूब डांटे लगिस -

*दरोगा*- क्यों बे मनबोध, तुमने दुवसिया के धान को क्यों चरा दिया ? 

*मनबोध*- नहीं साहेब, मैं ओकर धान ल नइ चराए हौं |

*दरोगा*- क्यों दुवसिया, तुम्हारे धान को ये मनबोध चराया है कि नहीं ? 

*दुवसिया*- *अभी चराए नइ हवय साहब, फेर चरा देही !*

*दरोगा*- *चरा देही का मतलब क्या है ?*

*दुवसिया*- *जब मनबोध ह भैंसी बिसा के लाही,तब मोर धान ल चरा नइ देही साहेब ?*

*दरोगा*- *इसका मतलब मनबोध के पास अभी भैंसी नहीं है,जब खरीदकर लायेगा,तब तुम्हारे धान को चरा देगा ?*

*दुवसिया*- *हां साहेब, जब मनबोध ह भैंसी बिसा के लाही, तब मोर गरौंसा के धान ल चरा देही* ! 

*दरोगा*- *हूं ऊं ऊं ........ मामला बड़ा गंभीर है ! अच्छा चलो, तु्म्हारे गरौंसा के धान को दिखाना, कैसा है तुम्हारा धान ? कितना नुकसान हुआ है ?*

*दुवसिया*- *अभी धान बोयेंच कहां हौं साहेब ? जब धान बोहूं, तब  ओकर भैंसी ह चरीच देही !*

*दरोगा*- *अच्छा ठीक है, सुनो मनबोध, तुम भैंसी बिसा के ले आना, लेकिन दुवसिया के धान को मत चराना भाई, अन्यथा तुम पर ऐसी धारा लगाऊंगा कि तुम जीवन भर जेल में चक्की पीसोगे, समझे कि नहीं ?*

*मनबोध*- *समझ गयेंव साहेब, तेकर ले अब भैंसी बिसाबेच नइ करौं, ओ तो भकलू के जिद् कराई म बिसाहूं कहत रहेंव, बिसाए के पहिलीच ले चेत गयेंव*


 *हा हा हा हा हा .............!*


*सर्वाधिकार सुरक्षित*

दिनांक-03.05.2022


*गया प्रसाद साहू*

"रतनपुरिहा"

*उर्फ योगानंद*

मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

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