Sunday 5 June 2022

पर्यावरण मित्र

 पर्यावरण मित्र

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"अरे  !कहाँ मर गए हो?सुनाई नहीं देता क्या?" नेताजी हा अपन बीस बछर पुराना,मुँहलग्गा पी० ए० चतुरसिंग ला--जेन वोकर खाँटी चमचा घलो हे-- गुस्सा मा चिल्लावत कहिस।

मजकिया चतुरसिंग हा लकर-धकर आवत कहिस- "नइ मरे अँव भइया।सब सुनावत हे।तोरे आर्डर ला पूरा करत रहेंव।"

"अच्छा-अच्छा कोई बात नइये। ये बता सब व्यवस्था होगे हे।" नेताजी पूछिस।

"हाँ सब होगे हे भइया।राँपा-झँउहा-कुदारी वो दे माँढ़े हे।सरकारी नर्सरी ले तोर नाम लेके दू हजार पौधा काली के नान डरे हँव।परोसी के टेकटर मा जोराये माढ़े हे।सरपंच ला कहिके वोमा डीजल तको भरवा दे हँव। टेंट-माइक वाले ला तको चेता दे हँव।एक हजार आदमी के नाश्ता पानी बर , तोला कहे हे कहिके बजार चँउक के वो होटल वाले सेठ जेन नकली मेवा के मिठाई बेंचत पकड़ाये रहिसे-- जेला तैं खर्चा-पानी लेके छोंड़वाय रहे --- ला बोल दे हँव।" पी०ए० कहिस।

नेताजी हा खुश होवत कहिस "वाह वाह बहुतेच बढ़िया। बहुत चलाक होगे हस।संगति के जोरदार असर होये हे। अच्छा ये बता ये मन पइसा थोरे माँगत रहिसे ?"

"का कहे भइया ---वोमन पइसा माँगही? सब फोकट मा होये हे। नेताजी दुर्जन सिंग ले पइसा ----वोमन ला जीना खाना नइये का? अउ अइसे भी माँगतिन त का तैं हा दे थोरे देते?" पी०ए० हा थोकुन कन्नेखी देखत, मुस्कावत कहिस।


"अरे ! चुपकर बहुत बोले ल धर लेहच। ये बता पानी बाटल अउ पाउच के व्यवस्था होगे हे धन नहीं?" थोकुन गुस्सा जतावत फेर मने मन खुश होवत नेताजी बोलिस।

"एहू कोनो पूछे के बात ये भइया।मोर माथा मा भूँसा नइ भरे ये।दू दिन पहिली ले होगे हे। अउ कुछु कमी हे तेला सुरता करके बता ?" चतुरसिंग कहिस।

 "हाँ-- सब तो ठीक लागत हे।प्रचार-प्रसार सब ठीक-ठाक होये हे ना? फोटो ग्राफर अउ पेपर वाले संवाददाता मन के व्यवस्था होगे हे?" नेताजी अपन मूँड़ ला खजुवावत पूछिस।


"एमा चिंतित होये के का बात हे भइया ? चार दिन ले गाँव-गाँव पोंगा वाले गाड़ी हा ---चलौ चलौ पर्यावरण दिवस मनाबो, पेड़-पौधा लगाबो, धरती के भाग जगाबो, नेताजी संग पुण्य कमाबो----अइसे नारा लगावत घूमत हे। भोला-भाला कहि ले या भोकवा मान ले--जनता जनार्दन तो आबेच करही----पेपर मन मा चार दिन ले एडवरटाइज तको छपत हे।" चतुरसिंग कहिस।

"हाँ --ठीक हे।तीन बजने वाला हे --कवि कका नइ दिखत ये? चार बजे समारोह हे।जातो देख कहूँ बइठक मा बइठे होही? " नेताजी बोलिस।

अतका ला सुनके पी०ए० अचकचागे अउ सोंचे ला धरलिस के -- कवि कका ला कभू पेड़ लगावत नइ देखे अँव ।वोकर भला इहाँ का काम ?

 नेताजी हा अपन पी० ए० के दुविधा ला ताड़गे अउ कहिस--" कवि कका हा पेड़ नइ लगावय जी। वो हा पर्यावरण जागरूकता अउ पेड़-पौधा के महत्व, पेड़ लगाये के फायदा उपर लाजवाब कविता लिखथे। पाछू बछर तको वोकरे लिखे ला मोर ये कहिके समारोह मा पढ़े रहेंव।अबड़े ताली बाजे रहिसे।एहू साल लिखे ला कहे हँव। जा तो देख आगे हे का।"

 सिरतो मा कवि कका हा आके एक ठन कागज धरे बइठका मा बइठे गुनगुनावत राहय। पी० ए० हा देखिस तहाँ ले आके नेताजी ला बताइस। नेताजी हा एक ठन नरियर अउ साल जेन हा वोला कोनो समारोह मा मिले रहिस हे--ला धरके गिस अउ कवि कका के माथा मा तिलक लगाके, साल-श्रीफल भेंट करके ---कविता लिखाये कागज ला धरिस अउ अब समारोह मा जावत हँव कका, बहुत-बहुत धन्यवाद काहत  अपन पी०ए० दूनों कार मा बइठ के फुर्र होगे।

   एती बर पट्ट भाँठा मा मंच बने राहय। टेंट -माइक सब चकाचक। पेंड़ पौधा पहुँचगे राहय। जनता मन सैंकड़ो गड्ढा-- पेंड़ लगाये बर खन के राखे राहँय। इंतजार हे ता बस नेताजी के पहुँचे के।

   नेताजी दुर्जनसिंग के गाड़ी जइसे पहुँचिस तहाँ ले -- " हमारा नेता कैसा हो, दुर्जन भइया जैसा हो।" के गगनभेदी नारा गूँजे ला धरलिस। उदघोषक हा दू-चार ठन मीठलबरई मा शायरी मारिच। स्वागत सत्कार होइस। नेताजी फूल-माला मा लदकागे। नेताजी हा पानी पी-पी के लच्छेदार भाषण झाड़िस। एक पेड़ ला दस पुत्र ले तको श्रेष्ठ बताइस। पेड़ लगाना कतका बड़ पुण्य के कारज ये तेला समझाइस।कागज मा लिखाये कविता के लाजवाब पाठ करिस। सुनके जनता जनार्दन मोहागें।पटपिट-पटपिट ताली पिटिन। तहाँ ले सबझन पेड़ लगाके ---नाश्ता पानी झोर के घर लहुटगें।

 वापसी मा पी०ए० हा कहिस--"भइया जी दू बछर पहिली इही पट्ट भाँठा मा जेमा न तो घेरा ये , न तो पानी सींचे बर नल-बोरिंग ये तेमा पेड़ लगाये अउ लगवाये रहे। जम्मों पेपर मन मा फोटो सहित समाचार छपे रहिस।अउ वोकरे सेती तोला "पर्यावरण मित्र" के बड़का खिताब मिले रहिस। ए साल पद्म श्री मिल जही तइसे लागत हे?"

नेताजी कुछु नइ कहिस बस जोर से खलखला के हाँस दिस।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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