Saturday 4 June 2022

बासी महिमा -व्यंग्य

 बासी महिमा 

          एक बेर एक झन दाऊ ला जब पता लगिस के .. बासी म बहुत गुण होथे तब ओहा बासी ला विदेश तक अमराये के बीड़ा उचइस । देश विदेश के जम्मो अखबार म बासी के प्रचार होय लगिस । बासी के महिमा सुन बाहिर के मन घला छत्तीसगढ़ के तिरे तिर लुहुर टुपुर करे लगिन । 

          एक झन बड़का मनखे हा बासी के गुण के सऊँहत प्रमाण देखे के इच्छा जाहिर करिस । तब दाऊ हा एक दिन ला बासी के नाव म करके .. बासी के महिमा देखे बर सगा बला डरिस । सगा मन बासी के महिमा देखे बर परसार म बइठ के अगोरे लगिन । गाँव के मन .. परसार के भितरि खोली म .. बासी खाये बर निंगिन । थोकिन बेर म डकार लेवत एक एक करके मनखे मन बाहिर आवत गिन । पहिली मनखे जे बासी खाके बाहिर अइस तेहा अंधवा रिहिस । जिग्यासु मन बासी के गुण के बारे म ओकर ले कुछु पूछतिन तेकर पहिली अंधवा हा बताये लगिस – अतेक सुंदर रूप .. अतेक सुंदर .. के झन पूछ । गऊकिन हाथ म धरते साठ मोहनी कर दिस । अभू तक अइसन देखे नइ रेहे हँव । एक झन लुबुर लुबुर मरइया उही तिर बइठे रिहिस .. वोहा पूछ पारिस – तोला आज तक काकरो काँही दिखिस नइये .. बासी हा कइसे दिखगे .. जबकि तैं हा तो जनम के अंधरा अस । दाऊ बताये लगिस – बासी खातेच भार ओकर आँखी खुलगे । सब जान डरिन के .. भलुक अतेक दिन तक ओला काकरो दुख तकलीफ पीरा नइ दिखत रिहिस .. आज बासी खइस हे .. अब ओला सब जगजग ले नजर आही । 

          दूसर मनखे निकलिस । ओहा कोंदा रिहिस । लुबुर्रा के मुहुँ खजवात रिहिस । ओहा कोंदा ला पूछिस – तहूँ ला बासी म कुछु नावा दिखिस कोंदा ? कोंदा के मुहुँ उलगे । ओहा केहे लगिस – बासी तो हमन जनम धरे हन तबले खावत हन । बासी हमर मेहनत के फर आय । येमा हमर दुख पिरा सहजता सरलता सहृदयता अऊ धीरता सब सरमेटाये लिरबुटाये छबड़ाये हे । येहा हमर पछीना के परिणाम आय । येकर ले न केवल हमर बल्कि सरी दुनिया के धोंध भरे के ताकत हे । ओ अऊ कुछ कहितिस तेकर पहिली दाऊ के संगवारी मन .. ओकर मुहुँ ला तोपके बाहिर तनि के रसता देखा दिन । दाऊ हा अपन कालर ऊँच करके देखाये लगिस । लुबुर्रा ला केहे ला परिस – सहींच म बासी म बहुत गुण हे । जेला नइ दिखय तेला दिखे लगिस .. जे बोले नइ सकय तेकर बक्का फुटगे । 

          तभे उदुपले तीसर मनखे निकलिस । फेर ओला भितरि म खुसरत कोन्हो देखे नइ रिहिस । ओहा न अंधरा रिहिस न कोंदा । लुबुर्रा हा पूछ पारिस – तोला कइसे लगिस जी बासी हा ? जवाब म ओहा जोहार जोहार किहिस । लुबुर्रा फेर पूछिस – बासी के बारे म कुछ तो बोलव । ओहा फेर जोहार जोहार किहिस । दाऊ ला देख सब झन व्यंग मुहुँ बनावत हाँसिन । थोकिन बेरा म जोहार जोहार कहवइया भैरा हा .. संसद म पहुँचगे । 

          लुबुर्रा के मुहुँ म तारा लगगे । गाँव के मन जान डरिन के बासी म अतेक गुण घला हे के .. जे हमर दुख पिरा ला नइ सुन सकय .. जे हमर संग म नइ रहय .. ते हमर बासी खोली ले गुजरके .. संसद तक अमर जथे । हमर बासी हा अपमानित होय ले बाँचगे । 


हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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