Saturday 21 December 2019

छत्तीसगढ़ी व्यंजन - डॉ. मीता अग्रवाल

"पुष्टई ले भरपूर छत्तीसगढ़ी व्यंजन"

छत्तीसगढ़ी संस्कृति, कला अउ साहित्य के अपन एक अलग पहचान हवे, इही गोठ ला चेत करके घर के रँधनी ले अपन गोठ के शुरुआत करत हँव । हमर जिनगी म खानपान के बहुतेच महत्व हवे।  छत्तीसगढ़ी जेवन के ररँधई जब महमहाथे तव मुँह मा पानी भर जाथे। "धान के कटोरा" कहाए वाला छत्तीसगढ़ मा किसम -किसम के चाँउर के उत्पादन होथे। लगभग 1000 ला आगर धान के पैदावार हमर खानपान के महत्वपूर्ण जिनिस हवे। चाँउर - दार, साग- भाजी के अलावा,  आनी बानी के कलेवा घलो बनाए जाथे, जेमा- फरा, दूध फरा, चीला, चौसेला चाँउर-पिसान ले रोजेच बनाय जाथे।
          तीज तिहार मा बनने वाला पकवान अउ जेवन  मा, चाँउर पिसान संग गँहूं पिसान, बेसन भी प्रयोग करें जाथे। इन पकवान मा ठेठरी ,खुरमी, देहरवरी ,अइरसा, गुझिया, कुसली, पिडिया,  बिडिया, खाजा, पपची, कुर लाड़ू ,बरा ,बोबरा प्रमुख हवें।
खान पान मा इहाँ विविधता के कमी नइये। रँधनी मा रोजेच
भाजी के बड़ महत्व हे।,कहावत घलो जनजीवन में प्रचलित हवे -"छत्तीसगढ़ के भाजी, जेमा भगवान राजी"।  छत्तीसगढ़ मा बासी संग भाजी सबे झन खाथें। बटकी मा बने बासी के सेवाद संग भाजी खाय के अलगे मजा हवे। इहाँ पचास ले ज्यादा किसम के भाजी गाँव अउ शहर मन मा राँधे जाथे, जउन विटामिन ले भरपूर रथे। प्रमुख भाजी मा- सरसों भाजी ,खेड़ा भाजी, बोहार भाजी , कुरमा भाजी, चाटी भाजी, चरोटा भाजी, बथुआ भाजी, खोटनी भाजी, खट्टा भाजी, मुनगा भाजी, मुरई भाजी, गोंदली भाजी, गोल भाजी, तिनपनिया भाजी, करमत्ता भाजी, चेंच भाजी, चौलाई भाजी, पाला भाजी, लाल भाजी ,अमारी भाजी, गुमी भाजी, उरीद- मूंग भाजी ,मछरिया भाजी, गुडरु भाजी,  मुस्केनी भाजी उल्ला भाजी, बर्रे भाजी चना भाजी ,मेथी भाजी ,तिवरा भाजी ,पोई भाजी, मखना भाजी, कांदा भाजी, कुसुम भाजी छत्तीसगढ़ मा ये भाजी मन अधिकतर बनाये जाथें।

कुछ भाजी ल कम बनाए जाथे ,ऐमा- भाजी मिरचा भाजी, पीता भाजी, लमकेनी भाजी, कुलफा भाजी, खोटलिइया भाजी, धरकूट भाजी ,बरेजहा  भाजी, कुरमा भाजी, कौवकानी भाजी, इमली भाजी, पटवा भाजी, कोईलार भाजी, कोचई भाजी, गिरहुल भाजी पत्थरी भाजी, सेमी भाजी, लेड़गा भाजी ,लेवना भाजी, बर्रा भाजी , उल्ला भाजी ये सबो भाजी ला बिशेष बिंध ले राँधे जाथे, जेमा फोरन मा लसून, लाल मिरचा, तिली, पताल नून डार के पकाये जाथे।
साग म जिमीकाॅदा इहाँ के राजा साग हवे जे बरबिहाव के समधी भोज मा खवाना जरुरी रथे अउ देवारी अनकूट मा घर-घर राँधेन जाथे। सुक्सा साग मा भाटा, गोभी, बुंदेला मुरई, दही मिर्चा, किसम किसम के बरी-रखिया तूमा, पपीता, कोहडा के अलावा,भात ,लाई, अदौरी बरी, विशेष कर बनाय जाथे। चाँउर पापर,चाँउर कुरेरी, रखिया बीजा के बिजौरी ला तर के पहुना ला खवाय के चलन हवे। अथान गुराम, चटनी, अरक्का के  सेवाद ह, खाना के सेवाद ला बढ़ाथे।

छत्तीसगढ़ में बनने वाला ये व्यंजन के सेवाद, केवल प्रदेश मा ही नही, पूरा देश मा, बगरे हवे, काबर कि ये व्यंजन, छत्तीसगढ़ के पहचान के संगे संग पुष्टई मा प्रोटीन, विटामिन, खनिज- लवण, कार्बोहाइड्रेट, वसा आदि ले घलो भरपूर हवे। राँधे गढ़े  मा आज के जमाना मा एकर तरीका आसान हवे। मेला- मँडई मा लोगन व्यंजन के सेवाद ल लेके आनी बानी के जेवन के प्रशंसा करत नइ थकँय।
 इही कोशिश मा मँय हर 2002 छत्तीसगढ़ी व्यंजन-"आनी बानी के जेवन" के नाम ले पुस्तक लिखे हँव , उन हमर राज्य के व्यंजन ला घरोघर बगराय म फलित होवत हवे । हमर छत्तीसगढ़ के खानपान के तरीका अपन आप मा बिशेष महत्व रखथे।

लेखिका -  डाॅ. मीता अग्रवाल मधुर, रायपुर
 छत्तीसगढ़

Tuesday 10 December 2019

सोनाखान के शान: वीर नारायण महान - कन्हैया साहू "अमित", चोवाराम "बादल"


(1) सोनाखान के शान: वीर नारायण महान
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        छत्तीसगढ़ राज हा अपन पोठ खनिज संपत्ति के कारन देश-बिदेश मा प्रसिद्ध हावय। इहां चारो खुँट जंगल के हरियाली अउ अन-धन के अगाध खुशहाली बगरे हावय। धान-पान अउ ओनहारी बर हमर राज मा भन्डार आगर भरे रथे। एखरे सेती धान के कटोरा हमर छत्तीसगढ़ राज हा कहाथे। धरम-करम अउ दान-पुन मा घलाव हमार ए राज हा अघुवा हावय। मंदिर-देवाला,मेला-मङई,तीरथ-बरथ के कोनो कमी नइ हे। प्रकृति  हा घलो हमर राज ला अंतस ले मया लुटाय हावय तभे तो इहां
नंदिया-नरवा,कछार-भाँठा,मइदान,घाटी अउ खेत-खलिहान के भरमार हे। सबले बङे बात हमर ए नेवरिया राज हा बिकास के रद्दा मा सरलग दउड़त हावय। नवा राज बने सोला बच्छर होगे हे फेर बिकास के रद्दा मा रेंगई हा अजादी बिन बड़ मुसकुल रहीस। हमर देश ला अजाद होय सत्तर बच्छर होगे हे अउ बिकास के रथ मा सवार होके समे के संगे संग सुग्घर भागत हावय। फेर ए अजादी के बरदान हा तन-मन अउ धन के लाखों बलिदान ले मिले हावय। अइसने सोज्झे फोटईहा कोनो रद्दा मा परे नइ मिले हे हमर ए अजादी हा। देश के संगे संग हमर छत्तीसगढ प्रदेश मा ए अजादी मा सरबस निछावर करईया *दधीचि* मन के कोनो कमी नइ हे। अजादी के अमर शहीद बलिदानी मा हमर राज के नांव के अलख जगईया मा सबले अघुवा अमर वीर नारायण सिंह के नांव हा अव्वल हावय।
               छत्तीसगढ के गरब अउ गुमान वीर नारायण सिंह हा
आदिवासी जमींदार परवार के सपूत रहीन। ए मन हा अपन बाहर ददा के जमीन-जयदाद मा बड़ अराम ले एश-अराम के जिनगी ला बिता सकत रहीन। वीर नारायण हा अराम ले जादा परहित मा, देशहित मा अजादी ला अपन मन मा रमा लीन। अपन जनमभूमि अउ जनता के रक्षा बर ए मन हा अपन परान हाँसत-हाँसत निछावर कर दीन। इंखर इही करनी हा इनला अमर बना दीस। छत्तीसगढ के असल अउ सरल निवासी आदिवासी बंस मा
जनम लेवईया नारायण सिंह हा बिंझवार समाज के बीर बेटा रहीन। इंखर जनम हा महानदी के घाटी अउ छत्तीसगढ के माटी सोनाखान मा बछर 1795 मा होय रहीस। इंखर ददा रामसाय हा सोनाखान के जमींदार रहीन। बछर 1818-19 के बखत मा
अंग्रेज अउ भोंसले राजा मन हा बड़ अतियाचार करत रहीन। इही अतियाचार के बिरोध मा जमींदार रामसाय हा तलवार उठाय रहीन फेर ए बिदरोह ला केप्टन मैक्सन हा दबा दे रहीन। बिदरोह के बाद मा रामसाय हा अपन बिंझवार आदिवासी समाज के समरथन अउ सहजोग ले अपन दल-बल ला सकेल के पोठ करीन। इंखर बाढ़त
दल-बल ला देख के अंग्रेज मन हा जमींदार रामसाय ले राजीनामा कर लीन। देशभक्ति अउ बहादुरी नारायण सिंह ला अपन बाप ले बपउती मा मिले रहीस। ददके मृत्यु पाछू ए मन हा बछर 1830 मा सोनाखान के जमींदार बन गीन।
                     नारायण सिंह हा अपन आदत बेवहार ले जन-जन के हितवा,नियाव धरमी, बहादुर जमींदार के रुप मा लोकप्रिय बन गीन। लोगन मन के अंतस मा नारायण सिंह प्रजा पालक,अनियाव ले लड़ईया अउ जनता के पोसईया के रुप
मा जघा बनाईन। ए मन हा जन-जन के अघुवा अउ हितवा जमींदार बन के अपन अंचल मा लोकप्रिय अउ जनप्रिय होगें। इंखर इही प्रसिद्धि हा परोसी जमींदार मन ला फुटहा आँखी मा घलाव नइ सुहावत रहीस। तीर तखार के इंखर संगी जमींदार मन हा इंखर ले बैर अउ जलन भाव रखंय। बछर 1854 मा अंग्रेज मन हा कर वसूली बर एक ठन नवा कर *टकोली* ला लागू कर दीन। ए *टकोली* कर के नारायण सिंह हा जनता के हित मा बड़ भारी बिरोध करीन। एखरे सेती रइपुर मा वो समे के डिप्टी मिशनर इलियट हा इंखर सबले बङे बिरोधी अउ बैरी बनगे।

बछर 1856 मा सरी छत्तीसगढ मा पानी नइ गिरीस ता सुख्खा के संग अकाल परगे। लोगन भूखन-लाँघन मरे ला धर लीन। खाये-पीये के अब्बङ समसिया समागे। नारायण सिंह हा बिपदा के ए घड़ी मा अपन प्रजा के संग खाँध मा खाँध डारके खङे होगीन। अपन अंचल ले भुखमरी ला मिटाय बर ए मन हा सरी उदिम करीन। अपन मालगुजारी के सरी माल अउ अनाज ला जनता के दुख-पीरा ला मेटाय बर बाँट दीन। अपने जइसन भुखमरी मेटाय के उदिम करे के बिनती परोसी जमींदार मन ले करीन फेर कोनो मानीन ता कोनो नइच मानीन। जनता के भुखन-लाँगन रहई हा एमन ला घातेच जियानीस। इही दरद-पीरा ला ले के नारायण सिंह हा अपन परोसी जमीदार कसडोल के बैपारी माखन ले मदद के गोहार लगाईन। एमन बिनती करीन के अपन गुदाम मा भरे अनाज ला इहां के गरीब मन ला बाँट दंय। ए बात ला बैपारी हा नइ मानीच। एखरे सेती नारायण सिंह हा वो बैपारी के गोदाम के तारा ला टोरवा के उहां भरे सरी अनाज ला गरीब जनता मा बटवा दीन। वो बैपारी हा ए बात के सिकायत अंग्रेज अधिकारी ले कर दीस। अंग्रेज सरकार हा नारायण सिंह ला 24 अक्टूबर 1856 मा संबलपुर ले पकड़ के रइपुर के जेल मा बन्द कर दीस। इही समे मा देशभर मा अजादी के लड़ई मात गे ता वो अंचल के लोगन मन हा जेल मा बन्द नारायण सिंह ला अपन अघुवा मान लीन अउ अजादी के लड़ई मा सामिल होगें। नारायण सिंह हा घलाव अंग्रेज के बाढ़त अतियाचार ले लड़े बर अजादी के लड़ई मा कूद दीन अउ जेल ले भाग गीन।
अंग्रेज मन संग लड़ई लड़ीन अउ अपन आप ला अंग्रेज ला संउप दीन। अगस्त 1857 मा देशभक्त सैनिक अउ अपन सहजोगी के मदद ले वीर नारायण सिंह एक बेर फेर जेल ले निकल भागीन अउ ए दरी अपन गांव सोनाखान जा पहुँचीन। अपन गाँव मा
पाँच सौ बंदुक वाले मन के सेना बनाइन। अंग्रेथ घलाव कलेचुप नइ बईठीन। एहू मन हा अपन दल-बल के संघरा सोनाखान बर निकल गीन। अंग्रेज मन ला सोनाखान के बारा मा कुछु जादा जानकारी नइ रहीस फेर लालची अउ गद्दार जमींदार मन के
मदद ले सोनाखान आ पहुँचीन। सोनाखान के जंगल मा वीर नारायण सिंह के सेना अउ अंग्रेज मन के भारी लड़ई मात गे। अंग्रेज मन हा हारे ला धर लीन। एखर ले अंग्रेज मन खखुवागें अउ जनता उपर अतियाचार ला बढ़ा दीन। वीर नारायण सिंह
हा अपन जनता ला अंग्रेज के अतियाचार ले बचाये खातिर अपन आप ला सोनाखान ले निकाल के लकठा के एक ठन पहाड़ी मा जाके सरन ले लीन। अंग्रेज मन हा सोनाखान मा खुसर के सरी गांव भर मा आगी लगा दीन। नारायण सिंह मा जब तक  शक्ति अउ समरथ रहीस अपन छापामार बिधि ले अंग्रेज मन ले लड़त अउ पदोवत रहीन। बड़ दिन ले ए लुकाय-चोराय लड़ई बिधि ले लड़ई चलते रहीस फेर तीर तखार के जमींदार मन हा गद्दारी करके नारायण सिंह ला पकड़वा दीन। वीर नारायण सिंह उपर राजद्रोह
के मुकदमा चलाय गीस। एक परजा पालक,जन-जन के हितवा उपर राजद्रोह के मुकदमा हा सरासर गलत अउ लबारी रहीस फेर अंग्रेज मन के नियाव के नाटक अइसनहे होवय। अपन मनमरजी नियाव के नाव मा अनियाव करंय।
                      अंग्रेज मन हा राजद्रोह के नांव मा वीर नारायण
सिंह ला मृत्युदंड के रुप मा फाँसी के सजा सुना दीन। 10 दिसम्बर 1857 के दिन रइपुर के जयस्तंभ चउक मा वीर नारायण सिंह फाँसी मा टाँग दे गीन। फाँसी मा झुलत इंखर देंह ला तोप ले उङा दीन। ए हमर भाग हे के अइसन वीर सपूत हा हमर छत्तीसगढ महतारी के कोरा  बलौदाबाजार मा जनम धरे रहीन। भारत देश अउ छत्तीसगढ राज घलाव अमर शहीद बलिदानी वीर नारायण के करजा लागत हे। इही करजा ला चुकाय खातिर भारत सरकार हा बछर 1987 मा 60 पइसा के डाक टिकिट छापे रहीन। ए डाक टिकिट मा वीर नारायण सिंह ला तोप के आगू मा बंधाय देखाय गे हे। छत्तीसगढ हा घलाव अपन राज के एकलउता अंतराष्ट्रीय
क्रिकेट स्टेडियम के नांव ला वीर नारायण सिंह के नांव मा राख के सनमान दे हावय। एखरे संगे संग छत्तीसगढ सरकार हा खाद्य सुरक्षा अधिनियम ला सबले पहिली अपन राज मा लागू करीन हे। ए अधिनियम ले सस्ता अनाज गारंटी जन-जन ला मिलथे। ए योजना ला देश भर मा सबले पहिली हमर राज मा लागू करे के पाछू वीर नारायण सिंह के सबला अनाज मिलय, कोनो भूख झन मरय ए सोच अउ समझ हा हावय। अइसन जन-जन के अघुवा अमर बलिदानी अजादी के मयारू वीर नारायण सिंह ला ए
छत्तीसगढ राज हा 10 दिसम्बर के दिन हर बछर अपन श्रद्धांजलि अरपित करे जाथे। छत्तीसगढ के आन बान शान सोनाखान के माटी अउ उंखर सपूत वीर नारायण सिंह ला जींयत भर सत-सत पयलगी।
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*कन्हैया साहू "अमित"*
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(2)
*शहीद वीर नारायण सिंह*

छत्तीसगढ़ के पावन भुइयाँ जेला तइहा के जुग मा दक्षिण कौशल घलो काहयँ, बड़े-बड़े संत, गुरु, ज्ञानी अउ वीर सपूत मन ला अपन गोदी में खेलइया महतारी आय । ए महतारी के अँचरा मा घन जंगल घटते हे  त  हीरा, सोना ,चाँदी  के खदान घलो हाबय । इहाँ के नदिया मन मीठ पानी ले भरे कुलकत- गावत रहीथें ।किसान के कोठी ह अन्न मा भरे  छलकत रहिथे ।भगवान राम के महतारी माता कौशिल्या के मइके ए भुइयाँ मा सदा  धरम-करम के अलख जागे रहिथे। इहाँ के रहवासी मेहनती, सरु किसान मन ला  देख के कतको झन काहत रहिथें-- छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया।
     जुन्ना जुग ले ए भुइयाँ  मा देशभक्ति के पुरवइया तको फुरुर-फुरुर चलत हे।अन्याय, अत्याचार के विरोध करें मा छत्तीसगढ़िया कभू पिछू नइ राहयँ। भारत के पहली स्वतंत्रता संग्राम ले घलो पहिली इहाँ के सपूत मन अंग्रेज मन के मुकाबला करे  हें।उही कड़ी मा सोनाखान के वीर सपूत नारायण सिंह अउ ओकर  पूर्वज मन ला भुलाये नइ जा सकय।
  वर्तमान मा बलौदाबाजार जिला मुख्यालय ले लगभग 70 किलोमीटर दूरिहा मा डोंगरी पहाड़ के बीच, घन जंगल मा सोनाखान  नाम के गाँव, जेला सिंघगढ़ घलो काहयँ, हाबय। जेन हा 17 वीं शताब्दी मा सारंगढ़ के राजा के वंशज मन के जमीदारी के राजधानी बने रहिसे। इहें के परजा हितैषी वीर जमीदार रामराय के धर्मपत्नी  रानी रामकुँवर देवी के  कोंख ले सन 1795 मा महान प्रतापी बालक नारायण सिंह के जनम होइच।
     कहे गे  हे--होनहार बिरवान के होत चिकने पात। सोला आना सहीं बात आय। बालक  नारायण सिंह ला खून मा दाई के धार्मिक संस्कार और पिता के दयालु पन ,वीरता के गुण मिले रहिसे। जमीदार रामराय परजा के हित करे बर कई बेर अंग्रेज मन ले झगरा लड़ाई करिच ।अपन बिंझवार आदिवासी सेना के संग मा सन 1818- 19 म अंग्रेज अउ भोंसले राजा के विरोध मा तलवार उठाइच। तेकर सेती  कैप्टन मैक्सन हा ओला अपन बड़े दुश्मन मानय।
    परोपकारी जमीदार राम राय के सन 1830 मा इंतकाल होये के बाद 35 साल के  उमर मा  युवराज नारायण सिंह हा सोनाखान के जमीदार बनिच अउ अपन जिनगी ला परजा मन के सेवा मा खपाये ल धरलिच । ओकर निस्वार्थ सेवा अउ राजकाज ला देख के जम्मों परजा अब्बड़ खुश राहयँ । 
    जमीदार नारायण सिंह ह अपन दुलरुवा घोड़ा म बइठ के, कनिहा मा तलवार खोंचे, घूम-घूम के  अपन परजा के सुख-दुख के सोर -सन्देशा लेवत राहय। एक दिन एक झन आदिवासी हा गोहराइच-- जमीदार महराज, रक्षा करव। एक ठन बघवा हा  अबड़ेच उतपित करत हे। हमर पाले-पोंसे गाय-गरुवा, छेरी-बोकरा मन ला हबक-हबक के खावत हे।अतका  ला सुन के वीर नारायण हा  अपन जान के बाजी लगाके तुरते बघवा ला खोज के मार देइच ।चारों मुड़ा जय जयकार होगे। बताये जाथे उही दिन ले वोला चालबाज अंग्रेज मन वीर के उपाधि देये रहिन।
  सन 1856 के बात आय। भारी दुकाल परगे।लोगन दाना-दाना बर मोहताज होके भूँख मा मरे ल धरलिन। वीर नारायण सिंह  ले उँकर दुख देखे नइ जाय। अपन कोठी के जम्मों धान कोदो ला  बाँट दिच  फेर कतका झन ला पुरतिच भला ? वोहा बड़े-बड़े सेठ साहूकार  मन सो हाथ पसार के अन्न माँगय।जेन मिलय तेला बाँट दय।सहीं बात ये - पाँचों अँगुरी एके बरोबर  नइ होवय। कतको के हिरदे पथरा कस निष्ठुर होथे।ओइसने काइयाँ कसडोल के सेठ माखन रहिसे। वीर नारायण सिंह ह उहू ला गोहरावत कहिच-- सेठ जी! लोगन भूख मा  मरत हें। तोर गोदाम मा  अबड़े  धान-चाउँर भरे हे।  किरपा करके ओला  बाँट दे ।आगू बछर धान- पान होगी तहाँ ले तोला लहुटा देबो।ओतका ला सुन के माखन भन्नागे अउ इंकार करत हाथ हलादिच । तब तो वीर नारायण सिंह हा आव देखिच न ताव ,  गोदाम के तारा ल टोर के धान -चाउँर ला बाँट दिच।वोती  माखन ह रायपुर जाके अंग्रेज कैप्टन इलियट करा शिकायत कर दिच। अंग्रेज मन तो ओखी खोजत राहयँ। चोरी अउ डकैती के आरोप मा 24 अक्टूबर 1856 के संबलपुर मा वीर नारायण ला पकड़ के रायपुर के जेल मा डारदिन।
  फेर शेर हा पिंजरा मा कतका दिन ले धँधाये रतिच ? 28 अगस्त 1857 ई. मा वीर नारायण सिंह हा अपन तीन झन साथी मन संग जेल ले फरार होके सीधा  सोनाखान पहुँच गिच। वो हा अंग्रेज मन ले निपटे बर तीर-कमान वाले सेना के संग 500 बंदूकधारी सेना के गठन  करिच ।एति एलियट हा कैप्टन स्मिथ ला आदेश देवत कहिच--जा नारायण ला जिंदा या  मुर्दा लाके देखा।आदेश पाके कैप्टन स्मिथ हा भारी सेना लेके  सोनाखान ला चारों मुड़ा ले घेरलिच।वीर नारायण सिंह हा कुर्रूपाट के डोंगरी ऊपर मोर्चा संभाले राहय।भारी लड़ाई होइच। स्मिथ अउ ओकर सेना के पाँव उखड़े ल धरलिच। बहुँते सैनिक मरगें।उही समय देवरी के गद्दार जमीदार हा आके स्मिथ सँग मिलगे। भारी मारकाट मातगे।फेर वीर नारायण हाथ आबे नइ करत रहिच। तब अंगेज मन गाँव मन मा आगी लगाये ल धरलिन। निहत्था परजा मन ला मारे काटे ल धरलिन।जेला देख के अपन परजा ला बँचाये खातिर वीर नारायण हा आत्म समर्पण कर दिच।
      कैप्टन स्मिथ ला ओला पकड़ के रायपुर के जेल मा ओलिहा दिच। अंग्रेज मन ओकर उपर चोरी अउ डकैती के देखवटी  मुकदमा चलाके, मौत के सजा सुनाके 10 दिसम्बर 1857 के दिन आज के रायपुर मा जेन जगा जयस्तम्भ चौंक हे उही जगा तोप मा बाँध के उड़ा दिन।
       अपन परजा अउ महतारी भुइयाँ खातिर जान गवाँके  वीर नारायण सिंह हा अमर होगे। जब ले ए धरती रइही, जब ले सुरुज- चन्दा रइही ,तब ले वीर नरायन सिंह के नाम अम्मर रइही।
      छत्तीसगढ़ महतारी के वीर सपूत , प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी ला कोटि कोटि प्रणाम हे।

 चोवा राम 'बादल '
 हथबन्द (छत्तीसगढ़)
9926195747

Thursday 21 November 2019

अगहन बिरसपति के पूजा

अगहन बिरसपति के पूजा

हिन्दू पंचाग मा अगहन महीना के बहुत महत्व हे। कातिक मास के बाद अगहन मास में बिरस्पत (गुरुवार)  के दिन अगहन बिरसपति के पूजा करे जाथे।
बिरसपति देव के पूजा करे ले घर मा सुख शांति,  समृद्धि, धन वैभव अउ सबो मनोकामना पूरा हो जाथे। अइसे लोगन मन के धार्मिक मान्यता हे।

पूजा के तैयारी  ------- अगहन बिरसपति पूजा के तैयारी ल बुधवार के साँझकुन ले ही शुरु कर देथे। सबले पहिली घर दुवार , अँगना , खोर ला बढ़िया लीप बहार के साफ सुथरा करे जाथे। घर के बाहिर दरवाजा मा बढ़िया रंगोली बनाय जाथे।  घर मा लक्ष्मी माता के आसन बनाय जाथे। लक्ष्मी दाई के पाँव बनाय जाथे। घर ल तोरण पताका से सजाय जाथे।

लक्ष्मी माता के आसन ------- अगहन बिरसपति के दिन बृहस्पति देव अउ लक्ष्मी माता के चित्र आसन मा रखे जाथे।
आसन के तीर मा रखिया, अँवरा (आँवला), अँवरा के डारा, केरा पत्ती, धान के बाली आदि सामान रखे जाथे।
ये पूजा मा रखिया अउ अँवरा के बहुत महत्व हे।
एकर अलावा गेंदा के फूल,  पीला चाँऊर , चना ,पीला कपड़ा अउ मीठा पकवान रखे जाथे।
पूजा के बाद मँझनिया (दोपहर) कुन कथा सुने जाथे तभे पूजा पूरा होथे।
पूजा पाठ करे के बाद प्रसाद बाँटे जाथे ।

बिरसपति देव के कथा ------- बहुत दिन के बात हरे। एक राज्य मा एक बहुत प्रतापी अउ दानी राजा राज करत रिहिसे । वोहा रोज गरीब मन ल दान देवय अउ ओकर सहायता करे। फेर ये बात ह रानी ल अच्छा नइ लगत रिहिसे ।।वोहा न तो कभू दान देवय न काकरो सहायता करे।
एक दिन राजा ह शिकार करे बर जंगल गे रिहिसे , उही बेरा भगवान बृहस्पति देव ह साधु के भेष मा महल मा भिक्षा माँगे बर आइस। रानी ह भिक्षा देबर इंकार कर दीस, अउ बोलथे -- हे साधु महराज मेहा तो राजा के दान पून करे ले तंग आ गे हँव। रोज के रोज दान करत रहिथे। आप ह मोला कुछु अइसे उपाय बतावव जेकर से ये सब धन दौलत ह खतम हो जाये। न रहे बाँस न बजे बाँसुरी । ताकि मेंहा चैन से रहि सँकव।
साधु महराज बोलथे --- रानी तेंहा तो अजीब बात करत हस। आज तक तो कोनों धन दौलत से दुखी नइ होय हे। फेर ते तो उल्टा बोलत हस।
रानी बोलीस के- --' हाँ महराज मँय सचमुच में तंग आ गे हँव।
तब साधु महराज बोलथे कि ------ अइसे करबे बिरस्पत के दिन घर ल लीपबे पोतबे, पीला माटी से केश धोबे, माँस मदिरा के सेवन करबे, धोबी ल कपड़ा धोय बर देबे। अइसे करे ले सब धन ह नष्ट हो जाही।
जइसे ही साधु महराज गीस रानी ह ओइसने करे ल धर लीस। बिरस्पत के दिन माँस मदिरा खाय के शुरु कर दीस। धीरे धीरे सब धन दौलत कम होय ल धर दीस। तीन बिरस्पत बीते के बाद राजा के सबो धन नष्ट हो गे। राजा रानी के ऊपर भारी विपत्ती आ गे। राजा रानी बहुत गरीब हो गे। खाय पीये बर तरसे लगीस।
ये सब ल देख के राजा ह काम करे बर दूसर देश चल दीस।
एक दिन रानी ह अपन दासी ल बोलीस के पास के नगर मा मोर बहिनी रहिथे। वोहा अब्बड़ धनवान हे। ओकर तीर ले कुछ अनाज माँग के ले आतेस त हमर कुछ दिन के गुजर बसर  चल जाही।
दासी ह ओकर बात मान के रानी के बहिनी के घर मा गीस। वो दिन बिरस्पत रिहिसे । रानी के बहिनी बृहस्पति देव के कथा सुनत रिहिसे ।
दासी ह रानी के संदेश ल ओकर बहिनी ल बताइस। फेर ओकर बहिनी ह कुछु जवाब नइ दीस।
दासी ह वापिस आ के रानी ल बताइस। रानी ह बहुत दुखी होइस।
रानी के बहिनी ह पूजा पाठ पूरा करके जब उठीस त ओहा सीधा रानी के महल मा गीस, अउ बोलीस  -- मेंहा बृहस्पति देव के कथा सुनत रेहेंव तेकर सेती दासी ले कुछु नइ बोलेंव। का बात हे अब बता। दासी काबर गे रिहिसे?
तब रानी ह अपन बहिनी ल सब बात ल बताइस अउ दुख ल सुनाइस।
तब रानी के बहिनी ह बृहस्पति देव के पूजा करे के सलाह दीस अउ सब विधि -विधान ला बताइस।
रानी ह ओकर बात मान के बृहस्पति देव के विधि - विधान से पूजा करे ल धरलीस। धीरे-  धीरे ओकर घर मा धन संपत्ति बाढत गीस। कुछ दिन बाद राजा भी घर मा आ गे। अब राजा अउ रानी सुख से रहे ला धर लीस। फिर से दान पुन करे ला धर लीस।
लोक मान्यता हे कि ये कथा ला सुने से सब प्रकार के मनोकामना पूरा होथे , अउ घर मा लक्ष्मी के वास होथे।
बोलो बृहस्पति देव भगवान की जय ।

लेख
महेन्द्र देवांगन "माटी" (शिक्षक)
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
8602407353

Tuesday 22 October 2019

नान्हे कहिनी - श्री मोहन कुमार निषाद


नान्हे कहिनी (पीरा कइसे मनाबो देवारी )


एक ठन गाँव रहिस परसाडीह ओ गाँव मा एक झन कुम्हार रहिस बंशी नाव के बंशी कुम्हार अपन परिवार संग गाँव मा राहय , बंशी कुम्हार के दू झन बेटी अउ एक झन बेटा रहिस हे।
बंशी कुम्हार अपन परिवार संग माटी के जतेक भी जिनिस बनय सबो ला चलागन समय के अनुसार बनावय अउ अपन परिवार संग बने सुग्घर जिनगी ला बितावय ।
धीरे धीरे समय हर आघू बाढ़त गीस , छोटे - छोटे गाँव मन हर सब बड़का होवत गिन , अउ फेर समय के संगे संग सब पुराना जिनिस मनके जगा नवा नवा चलागन के जिनिस मन सब आय लगीन ,
अब गाँव मन हर सब धीरे धीरे शहरी रूप ला धरे लगीन।
पहिली जतेक भी हमर तीज तिहार आवय ओ सब मा जतेक भी माटी के जिनिस  लगतिस तेला कुम्हार मन हर अपन गाँव के संगे संग आस पड़ोस के गाँव मन  मा घलो घरो घर जा जाके पहुचावय , अउ ओ समान के 
भाव के हिसाब ले घर वाला मन जतेक भी दार चाउँर अउ रुपया पईसा दय ओला दान पुन समझ के राख लय , अउ सुग्घर असीस देके तिहार ला हंसी खुशी ले जुरमिल के मनावय ।
समय अउ आघू बाढ़त गीस अब तो अइसन समय आगे की हमर देशी अउ देश के पुराना जिनिस मन सब नंदावत जावत हे , अउ ये नवा जमाना हर अपन चलागन के जम्मो जिनिस मन ला शहर ले लेके गाँव गाँव तक फइलावत जावत हे , येखर चलते आज कल बिदेशी समान मन के चलागन अब्बड़ बाढ़े लगिस । आज कल कोन गाँव वाले कहिबे कोन शहर वाले कहिबे , सबे झन बिदेशी समान मन ला  बउरे ला धरलीन ।
आज कल के मनखे मन गाँव जे गाँव घर मा बनय रोटी पीठा - हमर चीला फरा खुरमी ठेठरी अइसा बरा पुड़ी सोंहारी चौसेला ये सबो के सेवाद मन ला  धीरे धीरे लोगन मन भुलावत जावत हे । आज कल के लइका मन ला पुछबे ये गिल्ली भौरा बाटी 
फरा चीला चौसेला काय कहिके ता ओ बता नइ पावय ।
काबर ये सब नवा नवा चलागन आय के कारण 
हमर गाँव देहात मन के जउन सवाद हे अउ हमर मन के जउन पुराना रीती रिवाज हे ओ सब जम्मो नंदावत जावत हे ।

 गाँव गाँव अब नइ रहिस , शहर लीन अवतार ।
जम्मो जिनिस भुलात हे ,  संगे सबो तिहार ।।

देवारी के तिहार आइस बंशी हर हर साल बनाथे तइसने फेर एहु साल अपन काम मा बनाये बर भीड़गे , जम्मो माई - पिला सुमत लगाके सुग्घर मिहनत करके कमावय ।
बंशी के गोसइन तिहार मा  दिया पहुँचाय बर घरो घर जावय तइसने गीस उँहा मनडलीन हर कहिथे बड़ महंगा लगाथव ओ तुमन हर , ओ दिन मोर बेटा हर बजार ले लेके लान डरे हे कहिदिच , बपुरी हर का करतीच , कलेचुप बाहिर आगे । अब एक घर ले दूसर घर दूसर ले तीसर घर घूम डरीन सबे घर मा उनला उहिच जुवाब मिलय ।
ले देके थोड़े बहुत दिया हर बेचावय , सबे दिया मन ला महतारी बेटी मुड़ मा बोहे - बोहे बेचे बर किजरै ।
 बाजार घलो लेके गीन बाजारों मा लगाइन , लेकिन आज कल सब मशीनी अउ चाइना के चका चौंध ले भरे जिनिस  मन के बाजार मा जादा मांग अउ चलन रहिस तेपाय के उखर दिया मन उहो जादा नइ बेचाइस ।
का करतीन बपुरी मन जतेक भी बेचाइस ओत के ला बेच के घर आ गीन , महंगाई के समय सबो जिनिस मनके बाढ़े भाव अउ ऊपर ले अइसन मन्दी के समे मा कइसे एक गरीब परवार के मनखे मन बढ़िया ढंग ले तिहार मना सकत हे ।
ओतका मा बंशी के एके झन लड़का रहय ओहर जींद करे ला धरलिस बंशी ला कपड़ा लेहे बर ,  अब बंशी बड़ अचरज मा पड़गे करव ता का करव भगवान कहिके , तीन तीन झन लइका अब एके झन बर ले देहु उहू हर नइ बनय कहिके बड़ सोचे ला धरलिस ।
एक तो आज कल अतका आमदनी घलो नइये , तेमा ये रोजगार हर घलो बड़ मन्दा हे , ता लइका मन अपन ददा के गरीबी हालात अउ ये सब परस्थिति मनला देख के कहिथे नही ददा भइगे हमन ला काही नइ चाहि , हमन अइसने देवारी मना लेबोन , कहिके सबे झन कलेचुप हो होंगे । बंशी अपन अइसन हाल ला देख के रो डरिस , का आसो अइसने मनाहव देवारी कहिके ।
संगवारी हो अगर हमर मन के थोड़कीन सहयोग करे ले अगर कखरो परिवार मा खुशहाली आथे , ता आवव हम सब मिलके दूसर मनला खुशी देके अपन परम्परा मन के संग एसो हाँसीअउ खुशी ले भरे देवारी मनाथन। 

कहानीकार - श्री मोहन कुमार निषाद
              गाँव लमती , भाटापारा , 
             बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

Friday 18 October 2019

छत्तीसगढ़ी कहानी - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


                             कहानी - उजास

             संझौती अउ रतिहा के संगे संग बिहना अउ मंझनिया बेरा म घलो कुरेल गाँव ल अँधियारी के अगजर लीलत हे तइसे दिखथे।चारो मुड़ा पसरे कुलुप अँधियारी अउ साँय साँय करत  जंगल , कतको दमदार आदमी के पछीना निकाल देथे।अगास ल अमरत बड़े बड़े पेड़ अउ बड़े बड़े पहाड़ के पँउरी म नान नान आस धरे कुरेल गांव के मनखे मन जिनगी जीयत नइहे,बल्कि दिन ल गिन गिन के काटत हे।अइसने अँधियारी अउ अभाव म कई पीढ़ी आइस अउ चल दिस।फेर कोनो ल घर,गाँव,ठिहा-ठौर अउ जिनगी म उजास के आरो घलो नइ मिलिस।कोनो कुलुप अँधियार कुरिया म टिमटिमावत दीया, कखरो दुख भरे जिनगी म सुख के सुगबुगाहट,कखरो उदास मन म उछाह,अनपढ़ कारी जिनगी म शिक्षा के जोती,व्याकुल टकटकी नैनन म ससन भर नींद,उन्ना कोठी काठा म छलकत अन्न धन,सुन्ना कोरा म लइका के किलकारी,बरसत नैना म उमंग के सपना,उबड़ -खाबड़ अउ काँटा खूंटी वाले डहर के सपाट अउ साफ होना,डर म निडर,कुँवा म खुसरे मेढ़क के बाहिर निकल के तरिया नन्दिया म कूदना,छेल्ला जिनगानी म मीत मितानी, फूल फुलवारी  ये सब उजास तो आय।अउ इही सब  उजास ल कुरेल गाँव के किसोरहा लइका अल्दू कभू ऊँच पेड़ के फुलिंग म,त कभू पहाड़ के मूड़ म नाचत गावत सपनावत रहय।ओखर मन अइसन कुलुप सुनसान अँधियार जिनगी ले तंग आगे रिहिस।तभे तो उजास अउ ऊँचाई खोजे बर कभू पेड़ के फुलगी म चढ़के आगास ल झाँके त कभू पहाड़ म बइठे, नाना जाति के उड़ावत जिनिस ल देखे,अउ अपन दिमाक म उजास के दीया बारे।अल्दू के करिया,गठीला अउ ऊँच पुर देह,खांद तक झूलत लंबा करिया चुन्दी, कारी कारी आँखी,चमचम चमकत  दाँत,अपार बल अउ पवन कस फुर्ती सबके  मन ल मोह लेवय।गाँव म कोनो भी विकट स्थिति आय अल्दू सबे काम बर अघुवाय राहय।कुरेल गांव जेन जंगल के सिरिफ चार गाँव के अलावा अउ कोनो गाँव ल नइ जानत रिहिस,कभू शहर,अउ कभू बने डहर घलो नइ देखे रिहिस,उँहा अल्दू के मन ये सब कमी ल पूरा करे के आशा जागिस।अल्दू हवा म उड़ात हवाई जहाज,राकेट अउ पंछी मन ला देख के सोचे के कास मोरो पाँख होतिस त महूँ ये घनघोर जंगल ल, चीर के दुनिया के संग खाँद ले खाँद मिलाके चलतेंव अउ अइसन अभाव अउ दुख भरे जिनगी म उछाह उजास भरतेंव।अल्दू देखे रिहिस बीमारी म तड़प तड़प के प्राण गँवावत अपन कतको संगी साथी मन ला,कांदा कुशा म पेट भरत पूरा गाँव ल,दुख दरद ल किस्मत समझ के झेलत अउ जिनगी ल बोझा कस ढोवत।कुरेल गाँव के चारो मुड़ा जंगले जगंल हे ,चाहे कहूँ कोती जाये जाय, न कोनो गाँव हे न अइसन  एको रद्दा बाट जेन समाज के प्रमुख धारा ले उँहा के मनखे मन ल जोड़ सके।बने ढंग के सुरुज के रोशनी घलो नइ आय।कतको तेज हवा गरेरा होय बड़े बड़े ठाढ़े पेड़ पौधा के बीच ओखर दाल नइ गले।कहे के मतलब ये कि, हवा घलो बंध के चले।
हवा के सरसर तो नही बल्कि साँप बिच्छू अउ जीवलेवा जंगली जानवर ले पूरा जंगल साँय साँय करे। चाहे बिहना होय या फेर रतिहा झिंगरा ,हुँड़ड़ा,बघवा,भलुवा अउ कई किसम के जंगली जानवर मनके दहाड़ अउ शोर गूँजत रहय।भले नन्दिया अउ झरना के कलकल आवाज मन ल मोह लेवय,फेर ओखर अम्बार जल धारा,भँवरी मारत दहरा,तंग घाटी,पाताल लोक तक खोदाये खोह, मन ल मातम के दरिया म बोर देवय।कभू कभू, का बल्कि आय दिन जंगली जानवर अउ साँप बिच्छु, इँहा के मनखे मन ला अपन शिकार बना लेवय।फेर गाँव वाले मन जइसे कोनो परिवार म घलो कभू लड़ई झगड़ा हो जथे वइसने कोनो अलहन समझ के मन ला मना लेवय।हाथी ,बघवा,भलुवा,साँप,बिच्छू जेन रोज कोनो परिवार के सदस्य कस उंखर घर द्वार के चक्कर लगात दिखय।बरसात म चारो मुड़ा आसा विस्वास ल बोरत पानीच पानी,जड़काला म काल कस जाड़ ,कुरेल के मनखे मनला जीयन नइ देवय।अउ हाँ गरमी के मौसम थोर बहुत ठीक ठाक रहय।उंखर बर तीर तखार म बसे गाँव,घर अउ जंगल झाड़ी सबे चीज आय ।येखर बाहिर अउ कुछु नइ जाने।पीढ़ी दर पीढ़ी चलत आवत रीति रिवाज अउ परपंरा उंखर शिक्षा अउ संस्कार आय,सियान मनके गोठ बात ,ग्यान - ध्यान आय,अउ अइसन घोर अभाव ,आफत अउ अँधियार म जिनगी जीना साहस अउ बल।फेर ये साहस सबे कोनो ल नसीब नइ हो पाय।अउ जेखर अंग अंग म साहस अउ अपार शक्ति हिलोर मारत राहय ,वो लइका रिहिस,अल्दू।
         अल्दू एक दिन बड़ बड़का सइगोन के पेड़ म चढ़े आजू बाजू के चार गाँव के अलावा अउ कोनो गाँव कस्बा शहर ल ताकत रिहिस,ततकी म देखथे की बीच जंगल म धुँवा उठत हे।हब ले उतर के अल्दू वो मेर पहुँचथे त देखथे कि दू झन मनखे जहाज के पेड़ म फँस जाये ले बेहोश अउ जख्मी पड़े हे।जहाज के कुछ हिस्सा म आगी लग गे रिहिस,अल्दू कोनो काम बर कमती नइ रिहिस तुरते दूनो ल खाँद म लाद के तिरियाइस अउ जइसे तइसे करके जहाज के आगी ल घलो बुताइस।घर म लाके उंखर दवा पानी करिस, वो दूनो अब एकदम ठीक होगे।फेर एक दूसर ले बात कर पाना सम्भव नइ रिहिस।वो दूनो मनखे शहरिया वैज्ञानिक अउ अल्दू मन जंगल के रहवइया।अल्दू संग वो गाँव के अभाव अउ दुख दरद ल दूनो वैज्ञानिक मन घलो देखिस अउ झेलिस।वो तो जंगली जड़ी बूटी अउ गाँव के सियान मनके किरपा ए जेन बिना डॉक्टर अउ अस्पताल के उंखर घाव भरगे।अल्दू उंखर मनके तीर अपन गाँव म उजास के कल्पना ल रखथे,वोमन वादा करथे की गाँव म उजास जरूर आही।फेर वो वैज्ञानिक म बीहड़ जंगल ले अपन शहर जाये कइसे।नक्शा खसरा ले वोमन गाँव के बसाहट ल पता करथे अउ अपन अउ साथी मन ला वो मेर बलाथे।कुछ दिन बाद दूनो वैज्ञानिक म कुरेल गाँव ले गाँव के तरक्की के वादा करके वापस चल देथे।जावत बेरा अल्दू ल शहर लेगे के घलो बात वोमन करथे,फेर दाई ददा अउ गाँव वाले मनके  मया के अँचरा ले नइ निकल पाय।दूनो मनखे मन ल देखे के बाद कुरेल के मनखे मन जानिस कि  सुख सुविधा वाले आदमी अउ शहर,नगर घलो होथे।दूनो वैज्ञानिक ले मिले के बाद अल्दू के आत्मविश्वास अउ बढ़गे।वोला कई ठन कस्बा अउ शहर के घलो पता चलिस।पता लगते साथ जम्मो गाँव वाले मन संग रद्दा बनाये म भिड़ गे।बनेच दुरिहा रद्दा बने के बाद जम्मो गाँव वाले मन अपन आँखी ले तीर के कस्बा अउ शहर देखिन।अल्दू आघू आघू अउ गाँव के आने मनखे म पाछु पाछु।अब आय दिन अल्दू अपन ठिहा ले कस्बा, शहर आना जाना करे लगिस।अल्दू जेन चीज ल एक घांव देखे ओला वइसने गढ़े के उदिम करे।डॉक्टर ,मास्टर के महत्ता वोला समझ आगे रिहिस।फेर न मोटर गाड़ी अउ न पइसा कौड़ी बपुरा करे त काय करे।उंखर गाँव ले वो कस्बा बनेच दुरिहा राहय अउ ओतको में रेंगत जाना,बनेच बेरा लँग जावय।कभू कभू बइठे सोचे के वो वैज्ञानिक मन देव दूत कस आही अउ कुरेल गाँव ल विकास के मुख्य धारा ले जोड़ देही।फेर ये सिरिफ सपना कस लागय,काबर कि सालभर बीत जाय राहय अउ उंखर अता पता घलो नइ राहय।अल्दू खाय पीये के समान ,दवई दारू,अउ अँधियारी भगाय बर कई चीज ,चार ,चिरौंजी,तेंदू के बदला लाये लगिस। जेन जहाज गिरे पड़े रिहिस वोला लेगे बर एक दिन फेर वो वैज्ञानिक मनके,अल्दू के सपना ल सिरजाय बर आना होवस।जले जहाज के स्थिति ल देख के ओमन  हक्का बक्का हो जथे,अल्दू लगभग जहाज ल पूरा बना डरे रहिथे।दूनो वैज्ञानिक ल अबड़ खुशी होइस।वोमन अल्दू ल जहाज म चढ़ा के ए दरी शहर ले जाना चाहथे।सब ले विदा लेके झटकुन आये के किरिया खाके अल्दू चल घलो देथे।अब अल्दू अउ वैज्ञानिक एकदूसर के भाँखा ल समझ पावत रिहिस।अल्दू के उमर काय रिहिस,चार पाँच बरस बड़े शहर म पढ़ई लिखई करे के बाद वोला वोखर हुनर अउ आत्मविश्वास अनुसार बड़का वैज्ञानिक के नवकरी घलो मिल जथे।
                  कुरेल गाँव ले अल्दू के जाये के बाद गाँव सुन्ना पड़ गे राहय।दाई ददा संग गाँव वाले मनके रो रो के हाल बेहाल राहय।आठ नव बरस ले तरसत कुरेल गाँव म अचानक अल्दू के पाँव पड़थे।फेर ओखर पहिनावा ओढ़ावा ल देख  पहिचाने म भोरहा हो जावत रिहिस।कथे दाई ददा के आँखी कभू धोखा नइ खाय, ओमन अपन बेटा अल्दू ल काबा म पोटार लिन।गाँव म उमंग छागे,अइसन उमंग अउ उछाह उँहा कभू नइ होय रिहिस।अल्दू संग दूनो वैज्ञानिक घलो अल्दू के सपना ल पूरा करे म लग गे।अल्दू अपन लगन महिनत ले जतका कमावै सबला अपन गाँव के विकास म लगावै। देखते देखत पानी,बिजली,स्कूल,अस्पताल सड़क,अउ नाना जाति के सुख सुविधा ले कुरेल गाँव जगमगाये बर लग गे।दस बछर पहली देखे उजास के सपना ल साकार होवत देख अल्दू अड़बड़ खुश होवय।अल्दू कस सपना सँजोये अउ कतको लइका गाँव कुरेल म दिखे लगिस,वो दिन अल्दू के छाती गरब ले फूल गे।फेर आज ओ लइका मन बर सुख सुविधा हे,जेन उंखर आशा अउ विश्वास ल बढ़ावत हे।अल्दू तीर तखार के कुरेल कस जम्मो गाँव म उजास भरे म लग जथे।बीहड़ घनघोर जंगल म भले सुरुज के रोशनी नइ जा पाय फेर जेन रद्दा ले अल्दू रेंगे वो डहर अउ गाँव घर उजास ले लबालब हो जावय।चारो मुड़ा चाहे बीहड़ गाँव होय,कस्बा होय,या फेर शहर होय,अल्दू के गुणगान होय लागिस।आज कुरेल कस कतको गाँव म खुशी हे, सुख शांति हे, धन धान्य हे,स्कूल कालेज हे, डॉक्टर मास्टर हे,चैन सुकून हे,कुल मिलाके कहे जाय त उजासे उजास हे।

कहानीकार- श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

Saturday 5 October 2019

छत्तीसगढ़ी आलेख - चित्रा श्रीवास












"प्रकृतिस्वरूपा नवरात मा दाई के नव रूप"

जेठ के तीपत भुइँया के पियास ला बरखा रानी आके बुझाथे। बादर पानी ला देख के किसान मन अब्बड़ खुश होथें अउ खेती किसानी के काम शुरु करथे। सावन भादों मा बढ़िया पानी पा धान लहलहाय लागथे। इही बेरा मा हमर तीज तिहार मन घलौ शुरु होथें । हरेली ,तीजा, पोरा मनाय के बाद बिघ्न हर्ता  गनेस जी बिराजथें । गजानन के जाय के बाद पितर पाख मा हमन अपन पुरखा मन ला सुरता करथन। हमर जिनगी पुरखा मन के देहे आय तेखर सेती पंदरा दिन पितर मन के मान गौन कर असीस लेथन।पितर मन ला बिदा करे के बाद आथे नवरात। नव दिन के परब मा दुर्गा दाई के नव रुप के पूजा करे जाथे।

                कुँवार के महीना मा प्रकृति अपन सबले सुंदर रुप मा रहिथे । चारों कोती  भुइँया हरियर रहिथे। खेत के धान हा छटके लगथे । भादों के करिया बादर लहुटे लगथे । दूरिहा ले मेढ़ खार मा फूले उज्जर काशी मुस्काथे । सावन भादों रात दिन काम बुता कर किसान थोरिक सुसताय लगथे इही बेरा मा नवरात आथे। नवरात के नव दिन दाई के नव रुप शैलपुत्री, ब्रम्हचारणी,चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी अउ सिद्धिदात्री के पूजा करे जाथे।

                  देखे जाय ता प्रकृति जेमा हम सब झिन रहिथन  शक्तिच आय अउ शक्ति ला नारी रुप माने गय हे। शक्ति के पूजा माने प्रकृति पूजा। महतारी जेहर हमला जनम दिहिस, जेन भुइँया मा खेलेंन , अन्न जेला खाथन,, तरिया नदियाँ के पानी से पियास बुझाथन। बरखा जेहर सब ला जिनगी देथे ,सबो नारी रुप मा माने गय हे। देवी या शक्ति जेला हमन कहिथन प्रकृतिच आय अउ प्रकृति दाई के हमर उपर अब्बड़ करजा हे ।

प्रकृति शक्ति आय अउ शक्ति प्रकृति आय। पर मूरख मनुज अपन सुआरथ बर प्रकृति के नास करत हे । रुख राई काटके नवा शहर बसात हे , नदियाँ नरवा ला दूषित करत हे । बेरा बेरा मा प्रकृति दाई हमला चेतावत घलौ हे फेर हम ओखर इशारा नइ समझत हन या समझना नइ चाहत हन।

शक्ति उपासक देश मा शक्ति रुप प्रकृति के उपेक्षा होवत हे। येखर पहिली के प्रकृति दाई अपन काल रात्रि रुप मा आवय अउ सास्त्र मा बरनन करे गय परलय आवय ये नवरात शक्ति रुप मा प्रकृति के पूजा करीन  ओला उजरे ले बचावन। हर बछर रुख राई लगा सेवा करिन , दूसर जीव बर करुना के भाव रखन तभे देवी पूजा सफल होही ।

           हे शक्ति रुप प्रकृति दाई हमला असीस दे तोर कोरा मा सब झन सुख शांति  सद्भाव ले रहिन।

आलेख -          
चित्रा श्रीवास         
दीपका कोरबा, छत्तीसगढ़

Wednesday 2 October 2019

जनकवि कोदूराम "दलित" जी के गाँधी बबा


"बापू जी अउ बाबू जी"

आज हमर देश महात्मा गाँधी के 150 वाँ जनमदिन मनावत हे। संगेसंग दुनिया के आने देश में मा घलो बापू जी के जयंती मनत हे। ये मंगल बेरा म छत्तीसगढ़ के जनकवि कोदूराम "दलित" जी के रचना के सुरता करना प्रासंगिक होही। दलित जी के अनेक रचना मन मा महात्मा गाँधी के महातम ला रेखांकित करे गेहे। उनकर विचार ला छत्तीसगढ़ी कविता के माध्यम ले बगराए गेहे। विशेष उल्लेखनीय बात ये हे कि दलित जी परतंत्र भारत ला देखिन, आजादी ला देखिन अउ आजादी के बाद के भारत ला घलो देखिन। आजादी के पहिली आजादी पाए के संघर्ष, आजादी के दिन के हुलास अउ आजादी के बाद नवा भारत के नवा सिरजन बर उदिम, उनकर रचना मन मा देखे बर मिलथे। उनकर रचना मा महात्मा गाँधी के विचार के अनेक झलक देखे बर मिलथे। उनकर रचना मन मा जहाँ-जहाँ गाँधी जी के उल्लेख होइस हे, संबंधित पद ये आलेख मा रखे के कोशिश करे हँव। पूरा रचना इहाँ देना संभव नइ हो पाही।

सब ले पहिली सुराज के बेरा मा भारत के नागरिक मन ला संबोधित गीत के अंश देखव -

(1)"जागरण गीत"

अड़बड़ दिन मा होइस बिहान।
सुबरन बिखेर के उइस भान।।

छिटकिस स्वतंत्रता के अँजोर।
जगमगा उठिस अब देश तोर।।

सत् अउर अहिंसा राम-बान।
मारिस बापू जी तान-तान।।

आजादी के पहिली सत्याग्रह करे के आह्वान करत सार छन्द आधारित कविता के अंश -
(2) "सत्याग्रह"
अब हम सत्याग्रह करबो।
कसो कसौटी-मा अउ देखो,
हम्मन खरा उतरबो।
अब हम सत्याग्रह करबो।।

जाबो जेल देश-खातिर अब-
हम्मन जीबो-मरबो।
बात मानबो बापू के तब्भे
हम सब झन तरबो
अब हम सत्याग्रह करबो।।

चलो जेल सँगवारी घलो आजादी के पहिली के कविता आय, सार छन्द आधारित ये कविता के एक पद -
(3) "चलो जेल सँगवारी"
कृष्ण-भवन-मा हमू मनन, गाँधीजी साहीं रहिबो
कुटबो उहाँ केकची तेल पेरबो, सब दुख सहिबो।।
चाहे निष्ठुर मारय-पीटय, चाहे देवय गारी
अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल सँगवारी।।

आजादी के बाद आत्मनिर्भर बने बर गाँधी जी स्वदेशी अपनाए आह्वान करिन। चरखा अउ तकली के प्रयोग करे बर कहिन। इही भाव मा चौपई छन्द आधारित कविता के अंश -
(4) "तकली"

सूत  कातबो   भइया , आव।
अपन - अपन तकली ले लाव।।

छोड़व आलस , कातव सूत।
भगिही  बेकारी  के भूत।।

भूलव  मत  बापू के बात।
करव कताई तुम दिन-रात।।


तइहा के जमाना मा खादी के टोपी के खूब चलन रहिस। इही टोपी ला गाँधी टोपी घलो कहे जात रहिस। खादी टोपी कविता के कुछ पद -

(5) "खादी टोपी"

पहिनो खादी टोपी भइया
अब तो तुँहरे राज हे।
खादी के उज्जर टोपी ये
गाँधी जी के ताज हे।।

येकर महिमा बता दिहिस
हम ला गाँधी महाराज हे।
पहिनो खादी टोपी भइया !
अब तो तुम्हरे राज हे।।

गाँधी बबा कहँय कि भारत देश ह गाँव मा बसथे। उनकर सपना के सुग्घर गाँव के कल्पना ला कविता मा साकार करिन दलित जी -

(6)  सुग्घर गाँव के महिमा"
सब झन मन चरखा चलाँय अउ कपड़ा पहिनँय खादी के।
सब करँय ग्राम-उद्योग खूब, रसदा मा रेंगँय गाँधी के।।

आज के सरकार "गरुवा, घुरुवा, नरवा, बारी" के नारा लगाके छत्तीसगढ़ के विकास के सपना देखता हे। सरकार ला दलित जी के "पशु पालन" कविता ला पूरा जरूर पढ़ना चाही। ये कविता मा उनकर सपना साकार करे के मंत्र बताए गेहे। यहू कविता सार छन्द आधारित हे -

(7) "पशुपालन"
पालिस 'गऊ' गोपाल-कृष्ण हर दही-दूध तब खाइस
अउर दूध छेरी  के, 'बापू-लाबलवान बनाइस।।

लोकतंतर के तिहार माने छब्बीस जनवरी के हुलास के बरनन हे ये कविता मा, एक पद देखव -
(8) "हमर  लोकतन्तर"
चरर-चरर गरुवा मन खातिर, बल्दू लूवय काँदी
कलजुग ला सतजुग कर डारे,जय-जय हो तोर गाँधी।।
सुग्घर राज बनाबो कविता के ये पद मा गाँधी के संगेसंग देश के महान नेता मन के मारग मा चलके समाजवाद लाए के सपना देखे गेहे -

(9) "सुग्घर राज बनाबो"
हम संत विनोबागाँधी अउ नेहरु जी के
मारग मा जुरमिल के सब्बो झन चलीं आज।
तज अपस्वारथ, कायरी, फूट अउ भेद-भाव
पनपाईं जल्दी अब समाजवादी समाज।।

धन्य बबा गाँधी गीत सार छन्द आधारित हे। चौंतीस डाँड़ के ये गीत महात्मा गाँधी ऊपर लिखे गेहे। कुछ पद देखव -

(10) धन्य बबा गाँधी  

चरखा -तकली चला-चला के ,खद्दर पहिने ओढ़े।
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।

सबो धरम अऊ सबो जात ला ,एक कड़ी मा जोड़े
अंगरेजी कानून मनन- ला, पापड़ साहीं तोड़े।।
चरखा -तकली चला-चला  के, खद्दर पहिने ओढ़े।
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।

रहिस जरुरत  तोर  आज पर चिटको नहीं अगोरे
अमर लोक जाके दुनिया-ला दुःख  सागर मा बोरे।।
चरखा -तकली चला-चला  के ,खद्दर पहिने ओढ़े।
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।

एक के महातम कविता दलित जी के सुप्रसिद्ध कविता आय। यहू कविता मा गाँधी जी के चर्चा होइस हे -

(11) एक के महातम
एक्के गाँधी के मारे, हड़बड़ा गइन फिरंगी।
एक्के झाँसी के रानी हर, जौंहर मता दे रहिस संगी।।
एक्के नेहरु के मानँय तो, दुनिया के हो जाय भलाई।
का कर सकिही हमर एक हर ?अइसन कभू कहो झन भाई
जउन "एक" ला  हीनत रहिथौ, तउन "एक" के सुनो बड़ाई।।
आजादी ला पाए बर कतको नेता मन प्राण गँवाइन, अघात कष्ट सहिन। ये आजादी बड़ कीमती हे। इही भाव आधारित ये कविता के कुछ अंश देखव -
(12) "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय"
फाँसी मा झूलिस भगत सिंह
होमिस परान नेता सुभाष।
अउ गाँधी बबा अघात कष्ट
सहि-सहि के पाइस सरगवास।।
कतकोन बहादुर मरिन-मिटिन
तब ये सुराज ला सकिन लाय
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय।।
ये कविता मा सत्य-अहिंसा के संदेश के संगेसंग भारत भुइयाँ ला गौतम अउ गाँधी के कर्म-भूमि निरूपित करे गेहे -
(13) वो  भुइयाँ  हिन्दुस्तान आय 
लाही जग-मा सुख शांति यही,कर सत्य-अहिंसा के प्रचार।
अऊ आत्म-ज्ञान,विज्ञान सिखों के देही सब ला यही तार।।
गौतम-गाँधी के कर्म भूमि , जग के गुरु यही महान आय
वो  भुइयाँ  हिन्दुस्तान आय ।।

गुलामी का जमाना मा राष्ट्र प्रेम के बात करे के मनाही रहिस। वो जमाना मा दलित जी इस्कुल के लइका मन के टोली बनाके छत्तीसगढ़ी भाषा मा राऊत नाचा के दोहा के माध्यम ले गाँव गाँव मा जाके गाँधी जी के विचार बगरावत ग्रामीण मन मा राष्ट्र प्रेम के भावना भरत रहिन। ये काम आजादी के बाद घलो जारी रखिन। छत्तीसगढ़ी के राऊत नाचा के दोहा छन्द शास्त्र के दोहा विधान ले अलग होथे अउ सरसी छन्द जइसे होथे फेर बोलचाल मा दोहा कहे जाथे -
(14) "राऊत नाचा के दोहा"
गाँधी-बबा देवाइस भैया  , हमला  सुखद सुराज।
ओकर मारग में हम सबला ,चलना चाही आज।।

(15) "राऊत नाचा के दोहा"

गाँधी जी के छापा संगी, ददा बिसाइस आज।
भारत माता के पूजा-तैं, कर ररूहा महाराज।।

(16) "राऊत नाचा के दोहा"

गोवध - बंदी  सुनके  भैया, छेरी बपुरी रोय।
मोला कोन बचाही बापू, तोर बिन आफत होय।।

(17) "राऊत नाचा के दोहा"
गाँधी जी के छेरी भैया, में में में नरियाय रे
एखर दूध ला पी के संगी बुढ़वा जवान हो जाये रे।।
दलित जी के लोकप्रिय गीत छन्नर छन्नर पैरी बाजे, खन्नर खन्नर चूरी, उनकर धान लुवाई कविता के एक हिस्सा आय। सार छन्द आधारित यहू कविता मा गाँधी बबा के सुरता करे गेहे -
(18) "धान लुवाई"
रहय पावय इहाँ करलई,रोना अउर कलपना
सपनाए बस रहिस इहिच,बापू- हर सुन्दर सपना।।


सुआ गीत, छत्तीसगढ़ के लोकगीत आय। एकर लोकधुन मा घलो दलित जी राष्ट्र-प्रेम अउ भाईचारा के संदेश देवत गाँधी जी ला स्मरण करिन हें -

(19) "तरि नारि नाना"

भाई संग लड़ना कुरान हर सिखाथे ?
कि भाई संग लड़ना भगवान हर सिखाथे ?
मिल के रहव जी, छोड़व लेड़गाई
जीयत भर तुम्मन-ला गाँधी समझाइस।
अउ जीयत भर तुम्मन ला नेहरू मनाइस।।

"पढ़इया प्रौढ़ मन खातिर" रचना एक लंबा रचना आय जेला चौपाई छन्द मा लिखे गेहे। आजादी के तुरंत बाद दलित जी अपन संगी गुरुजी मन के साथ आसपास के गाँव मा प्रौढ़ शिक्षा के कक्षा लगावत रहिन। उनकर अधिकांश रचना मा गाँधी जी के जिक्र होए हे -

(20) "पढ़इया प्रौढ़ मन खातिर"

बने रहव झन भेंड़वा-बोकरा।
यही सिखाइस गाँधी डोकरा।।
वो अवतार धरिस हमरे बर।
जप तप त्याग करिस हमरे बर।।

(21) "दोहा"

गाँधी जी के जोर मा, पाए हवन सुराज।
वोकर बुध ला मान के, चलना चाही आज।।


दलित जी कभू श्रृंगार रस के कविता नइ गढ़िन। उँकर रचना मा प्रकृति चित्रण, देश अउ समाज निर्माण, सरकारी योजना के समर्थन अउ सामाजिक बुराई मिटाए बर जागरण के बात रहिस। मद्य निषेध कविता ला मध्यप्रदेश शासन के प्रथम पुरस्कार मिले रहिस। यहू काफी लंबा रचना हे। अइसन रचना मन मा घलो गाँधी जी के उल्लेख होइस हे -

(22) "मद्य-निषेध"

काम बूता कुछु काहीं, तेमा मन ला लगाहीं
जर-जेवर बनाहीं, धोती लुगरा बिसाहीं वो
मनखे बनहीं, अब मनखे साहीं, खूब
मउज उड़ाहीं, गाँधी जी के गुन गाहीं वो।।

(23) "पियइया मन खातिर"

मँद पीए बर बिरजिस गाँधी महाराज जउन लाइन सुराज।
ओकर रसदा ला तज के तँय, झन रेंग आज, झन रेंग आज।।
का ये ही बुध मा स्वतंत्र भारत के राजा कहलाहू तुम ?
का ये ही बुध मा बापू जी के, राम-राज ला लाहू तुम ?


आजादी के बाद देश के नवा निर्माण होइस। सब झन भारत ला बैकुंठ साहीं बनाये के सपना सँजोये रहिन। अइसने एक कविता मा गाँधी जी ला देखव -

(24) "भारत ला बैकुंठ बनाबो"

अवतारी गाँधी जी आइन
जप-तप करिन सुराज देवाइन
हमर देश ला हमर बनाइन
सुग्घर रसदा घलो देखाइन।
उँकरे मारग ला अपनाबो।
भारत ला बैकुंठ बनाबो।।


दलित जी रवींद्रनाथ टैगोर, लोकमान्य गंगाधर तिलक, जवाहर लाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, विनोबा भावे जइसे अनेक महापुरुष ऊपर घलो कविता गढ़िन हें। तिलक के कविता मा घलो गाँधी जी के उल्लेख होइस है -

(25) "भगवान तिलक"

बापू जी जेकर चेला।
श्रद्धांजलि अर्पित हे तेला।।


दलित जी के रचना मन मा गाँधी के विचार के संगेसंग दीगर महापुरुष जइसे संत विनोबा के भूदान यज्ञ असन आंदोलन के उल्लेख दीखथे -

(26) "हम सुग्घर गाँव बनाबो"

गाँधी बबा बताइस रसदा, तेमा रेंगत जाबो।
संत विनोबा के भूदान-यज्ञ ला सफल बनाबो।


देश के विकास मा छुआ-छूत सब ले बड़े बाधा आय। ये कविता काफी लंबा हे, इहाँ घलो गाँधी जी के विचार देखे बर  मिलथे।1

(27) "हरिजन उद्धार"

गाँधी बबा सबो झन खातिर, लाए हवय सुराज।
ओकर प्रिय हरिजन मन ला, अपनाना परिही आज।।


देश मा किसान अउ मजूर के राज होना चाही, इही भाव के कविता आय सुराजी परब, कविता के कुछ अंश -

(28) "सुराजी परब"

घर-घर मा हो जाही सोना अउ चाँदी।
ए ही जुगत मा भिड़े हवै गाँधी।।
किसान मँजूर मन के राज होना चाही।
असली मा इँकरे सुराज होना चाही।।
गाँधी बबा ये ही करके देखाही।
फेर देख लेहू, कतिक मजा आही।।

.
ददरिया राग आधारित कविता बापू जी के दू डाँड़ -

(29) "बापू जी"

बापू जी तोला सुमिरौं कई बार।
आज तोर बिना दीखथे जग अँधियार।।


किसान अउ मजूर मन ला जगाए खातिर लिखे कविता मा गाँधीवादी विचार देखव -

(30) "जागव मजूर जागव किसान"

बम धर के सत्य अहिंसा के
गाँधी जी बिगुल बजाइस हे।
जा-जा के गाँव-गाँव घर-घर
वो जोगी अलख जगाइस हे।।

आही सुराज के गंगा हर
झन काम करव दुखदाता के।
जय बोलव गाँधी बाबा के
जय बोलव भारत माता के।।


गाँधी जी गृह उद्योग अउ कुटीर उद्योग के समर्थक रहिन। उनकर विचार ला जन-जन तक पहुँचाए बर दलित जी के घनाक्षरी के एक हिस्सा देखव -

(31) "गाँधी के गोठ"

गाँधी जी के गोठ ला भुलावव झन भइया हो रे
हाथ के कूटे पीसे चाँउर दार आटा खाव।
ठेलहा बेरा मा खूब चरखा चलाव अउ
खादी बुनवा के पहिनत अउ ओढ़त जाव।।


अंग्रेज के राज मा उँकर सेना मा हिंदुस्तानी मन घलो रहिन। अइसन सिपाही मन ला गाँधी जी के रसदा मा चले बर सचेत करत कविता झन मार सिपाही के चार डाँड़ -

(32) "झन मार सिपाही"

फेंक तहूँ करिया बाना ला, पहिन वस्त्र खादी के।
सत्याग्रह मा शामिल हो जा, चेला बन गाँधी के।।
तोर नाम हर सोना के अक्षर मा लिक्खे जाही
हम ला झन मार सिपाही।।


जनकवि कोदूराम "दलित" जी के छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी भाषा ऊपर समान अधिकार रहिस। अब उनकर हिन्दी के कविता देखव जेमा गाँधीवादी विचारधारा साफ-साफ दिखथे -

"दलित जी के हिन्दी कविता के अंश जेमा महात्मा गाँधी के उल्लेख हे"

आजादी मिले के बाद देश के नेता मन लापरवाह अउ सुखवार होवत गिन, उँकरे ऊपर व्यंग्य आय ये कविता -

(33) "तब के नेता-अब के नेता"

तब के नेता को हम माने |
अब के नेता को पहिचाने ||
बापू का मारग अपनावें |
गिरे जनों को ऊपर लावें ||


महात्मा गाँधी के महातम बतावत कविता विश्व वंद्य बापू, दोहा अउ चौपाई छन्द मा लिखे गेहे -

(34) विश्व वंद्य बापू
दोहा
जय-जय अमर शहीद जय, सुख-सुराज-तरु-मूल।
तुम्हें  चढ़ाते आज हम , श्रद्धा  के दो फूल।।
उद्धारक माँ - हिंद के, जन - नायक, सुख-धाम।
विश्व वंद्य बापू तुम्हें , शत् -शत् बार प्रणाम।।

चौपाई
जय जय राष्ट्र पिता अवतारी।जय निज मातृभूमि–भय हारी।।
जय-जय सत्य अहिंसा -धारी। विश्व-प्रेम के   परम पुजारी।।
जय टैगोर- तिलक अनुगामी।जय हरि-जन सेवक निष्कामी।।
जय-जय कृष्ण भवन अधिवासी। जय महान , जय सद्गुण राशी।।
जय-जय भारत भाग्य-विधाता। जय चरखाधर,जन दुख: त्राता।।
जय गीता-कुरान –अनुरागी। जय संयमी ,तपस्वी, त्यागी।।
जय स्वातंत्र्य -समर -सेनानी। छोड़ गये निज अमर कहानी।।
किया देश हित जप-तप अनशन। दिया ज्ञान नूतन , नव जीवन।।
तुमने घर-घर अलख जगाया। कर दी दूर दानवी  माया।।
बापू एक बार  फिर आओ। राम राज्य भारत में लाओ।।
अनाचार - अज्ञान मिटाओ। भारत भू को स्वर्ग बनाओ।।
बिलख रही अति  भारत माता। दुखियों का दु:ख सुना न जाता।।
दोहा
दीन-दलित नित कर रहे, देखो करुण पुकार।
आओ मोहन हिंद में  , फिर लेकर अवतार।।
विश्व विभूति, विनम्र वर,अति उदार मतिमान।
नवयुग - निरमाता, विमल, समदरशी भगवान।।

मादक पदार्थ के त्याग करे बर निवेदन करत ये कविता के कुछ पद देखव -
(35) "स्वतंत्र भारत के राजा"
बापू के वचनों को न भूल
मादक पदार्थ मतकर  सेवन।
निर्माण कार्य में जुट जा तू
बन सुजन, छोड़ यह पागलपन।।

सुराजी परब के बेरा मा गाँधी अउ संगी महापुरुष ला सुरता करत ये कविता मन के कुछ डाँड़ -
(36) "पंद्रह अगस्त"
आज जनता हिन्द की, मन में नहीं फूली समाती
आज तिलक सुभाष गाँधी के सुमंगल गान गाती।
(37) "पंद्रह अगस्त फिर आया"
जिस दिन हम आजाद हुए थे
जिस दिन हम आबाद हुए थे
जिस दिन बापू के प्रताप से
सबल शत्रु बरबाद हुए थे
जिस दिन घर घर आनंद छाया।
वह पंद्रह अगस्त फिर आया।।
(38)  आठवाँ पन्द्रह अगस्त
इसी रोज बापू के जप तप ने आजादी लाई थी।
इसी रोज नव राष्ट्र ध्वजा, नव भारत में लहराई थी।
बापू के पद चिन्हों पर चलना न भुलावें आजीवन।
आज आठवीं बार पुनः आया पंद्रह अगस्त पावन।।
(39) "स्वाधीनता अमर हो"
हम आज एक होवें। कुल भेदभाव खोवें।।
बापू का मार्ग धारें। सबका भला विचारें।।

बापूजी के महिमा के बखान ये चरगोड़िया मा देखव -
(40) "मुक्तक (चरगोड़िया) छत्तीसगढ़ी"
बापू हर  हमर सियान आय।
बापू हर हमर महान आय।
अवतरे रहिस हमरे खातिर।
बापू हमर भगवान आय।।

ये मुक्तक मा आजादी के बाद के हकीकत ला देखव -
(41) "मुक्तक (चरगोड़िया) छत्तीसगढ़ी"
बबा मोर गाँधी, ददा धर्माधिकारी।
चचा मोर नेहरू अउ भारत महतारी।
कथंय मोला - "तँय तो अब बनगे हस राजा",
पर दुःख हे, के मँय ह बने-च हँव भिखारी।

कविता के ये चार डाँड़ , बापू के सीख के सुरता देवावत हें -
(42) "राह उन्हीं की चलते जावें" -
बापू जी की सीख न भूलें
सदा सभी को गले लगावें
सत्य अहिंसा और शांति का
जन-जन को हम पाठ पढ़ावें।

गाँधी जी के सहकारिता के समर्थन करत घनाक्षरी छन्द के अंश देखव -
(43) सिर्फ नाम रह जाना है -
सहकारिता से लिया गाँधी ने स्वराज्य आज
जिसके सुयश को तमाम ने बखाना है।
उसी सहकारिता को हमें अपनाना है औ
अनहोना काम सिद्ध करके दिखाना है।।

कविता के इन डाँड़ मा लोकतंत्र ला बापू के जिनगी भर के कमाई बताए गेहे -
(44) हो अमर हिन्द का लोकतंत्र-
जो बापू की अमर देन
जो सत्य अहिंसा का प्रतिफल
उपहार कठिन बलिदानों का
जिसका स्वर्णिम इतिहास विमल
परम पूज्य बापू जी के जीवन
भर की यही कमाई है
नव उमंग उल्लास लिए
छब्बीस जनवरी आई है।

दलित जी के बाल-साहित्य मा नीतिपरक रचना के संगेसंग राष्ट्रीय भाव ला जगाए के आह्वान घलो मिलथे -
(45) बच्चों से -
अब परम पूज्य बापू जी का
है राम राज्य तुमको लाना
उनके अपूर्ण कार्यों को भ
है पूरा करके दिखलाना।

गाँधीवादी कवि कोदूराम "दलित" गाँधी जी ला अवतार मानत रहिन -
(46) बापू ने अवतार लिया -
भारत माता अति त्रस्त हुई
गोरों ने अत्याचार किया।
दुखिया माँ का दुख हरने को
बापू जी ने अवतार लिया।।
पद-चिन्हों पर चल कर उनके
हम जन-जन का उद्धार करें।
अब एक सूत्र में बँध जाएँ
भारत का बेड़ा पार करें।।

गो वध के संदर्भ मा कविताई करत दलित जी ला गाँधी जी के सुरता आइस -
(47) "गोवध बन्द करो"
समझाया ऋषि दयानन्द ने गो वध भारी पातक है
समझाया बापू ने गो वध राम-राज्य का घातक है।

जनकवि कोदूराम "दलित" जी के कविता "काला" अपन समय के बहुते प्रसिद्ध कविता रहिस ओकरे दू डाँड़ देखव -
(48) "काला"
काला ही था रचने वाला पावन गीता।
बिन खट-पट के काले ने गोरे को जीता।।

नीतिपरक ये कविता मा बताए गेहे कि बापू के मार्ग मा चले ले हर समस्या के समाधान होथे -
(49) "होता है उसका सम्मान"
बापू के मारग पर चल,
करें समस्याएँ अब हल।

वह मोहन और यह मोहन कविता मा "वह मोहन" माने कृष्ण भगवान अउ "यह मोहन" माने मोहनदास करमचंद गाँधी के कर्म अउ चरित्र के समानता बताए गेहे। यहू बहुत लंबा कविता आय। इहाँ कुछ पद प्रस्तुत करत हँव -
(50) "वह मोहन और यह मोहन"
वह मोहन था कला-काला
यह मुट्ठी भर हड्डी वाला।।
कारागृह में वह आया था।
कालागृह इसको भाया था।।
उसका गीता-ज्ञान प्रबल था।
सत्य-अहिंसा इसका बल था।।
दोनों में है समता भारी।
दोनों कहलाते हैं अवतारी।।
इनके मारग को अपनाएँ।
लोकतंत्र को सफल बनाएँ।।
ये आलेख एक शोध-पत्र असन होगे। जब बाबूजी के गाँधी जी के उल्लेख वाला कविता खोजना चालू करेंव तब अधिकांश कविता बापू के उल्लेख वाला मिलिस। पचास कविता के उदाहरण खोजे के बाद मँय थक गेंव। मोर जानकारी मा छत्तीसगढ़ी मा अइसन दूसर कवि अभिन ले नइ दिखिस हे जिनकर अतका ज्यादा रचना मा गाँधी बबा के उल्लेख होइस हे। आपमन के नजर मा अइसन कोनो दूसर कवि हो तो जरूर बतावव।
बहुत पहिली छत्तीसगढ़ के विद्वान साहित्यकार हरि ठाकुर जी, जनकवि कोदूराम "दलित" ऊपर एक आलेख लिखे रहिन जेकर शीर्षक दे रहिन - गाँधीवादी विचारधारा के छत्तीसगढ़ी कवि - कोदूराम "दलित"। आज मोला समझ में आइस कि हरिठाकुर जी अइसन शीर्षक काबर दे रहिन।
महात्मा गाँधी के 150 वाँ जनम दिन बर ए आलेख ले सुग्घर अउ का लिख सकत रहेंव ? मोला विश्वास हे कि छत्तीसगढ़िया पाठक मन ला ये आलेख जरूर पसंद आही।

आलेख के लेखक - अरुण कुमार निगम
सुपुत्र श्री कोदूराम "दलित"
आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़
संपर्क - 9907174334