Tuesday 22 October 2019

नान्हे कहिनी - श्री मोहन कुमार निषाद


नान्हे कहिनी (पीरा कइसे मनाबो देवारी )


एक ठन गाँव रहिस परसाडीह ओ गाँव मा एक झन कुम्हार रहिस बंशी नाव के बंशी कुम्हार अपन परिवार संग गाँव मा राहय , बंशी कुम्हार के दू झन बेटी अउ एक झन बेटा रहिस हे।
बंशी कुम्हार अपन परिवार संग माटी के जतेक भी जिनिस बनय सबो ला चलागन समय के अनुसार बनावय अउ अपन परिवार संग बने सुग्घर जिनगी ला बितावय ।
धीरे धीरे समय हर आघू बाढ़त गीस , छोटे - छोटे गाँव मन हर सब बड़का होवत गिन , अउ फेर समय के संगे संग सब पुराना जिनिस मनके जगा नवा नवा चलागन के जिनिस मन सब आय लगीन ,
अब गाँव मन हर सब धीरे धीरे शहरी रूप ला धरे लगीन।
पहिली जतेक भी हमर तीज तिहार आवय ओ सब मा जतेक भी माटी के जिनिस  लगतिस तेला कुम्हार मन हर अपन गाँव के संगे संग आस पड़ोस के गाँव मन  मा घलो घरो घर जा जाके पहुचावय , अउ ओ समान के 
भाव के हिसाब ले घर वाला मन जतेक भी दार चाउँर अउ रुपया पईसा दय ओला दान पुन समझ के राख लय , अउ सुग्घर असीस देके तिहार ला हंसी खुशी ले जुरमिल के मनावय ।
समय अउ आघू बाढ़त गीस अब तो अइसन समय आगे की हमर देशी अउ देश के पुराना जिनिस मन सब नंदावत जावत हे , अउ ये नवा जमाना हर अपन चलागन के जम्मो जिनिस मन ला शहर ले लेके गाँव गाँव तक फइलावत जावत हे , येखर चलते आज कल बिदेशी समान मन के चलागन अब्बड़ बाढ़े लगिस । आज कल कोन गाँव वाले कहिबे कोन शहर वाले कहिबे , सबे झन बिदेशी समान मन ला  बउरे ला धरलीन ।
आज कल के मनखे मन गाँव जे गाँव घर मा बनय रोटी पीठा - हमर चीला फरा खुरमी ठेठरी अइसा बरा पुड़ी सोंहारी चौसेला ये सबो के सेवाद मन ला  धीरे धीरे लोगन मन भुलावत जावत हे । आज कल के लइका मन ला पुछबे ये गिल्ली भौरा बाटी 
फरा चीला चौसेला काय कहिके ता ओ बता नइ पावय ।
काबर ये सब नवा नवा चलागन आय के कारण 
हमर गाँव देहात मन के जउन सवाद हे अउ हमर मन के जउन पुराना रीती रिवाज हे ओ सब जम्मो नंदावत जावत हे ।

 गाँव गाँव अब नइ रहिस , शहर लीन अवतार ।
जम्मो जिनिस भुलात हे ,  संगे सबो तिहार ।।

देवारी के तिहार आइस बंशी हर हर साल बनाथे तइसने फेर एहु साल अपन काम मा बनाये बर भीड़गे , जम्मो माई - पिला सुमत लगाके सुग्घर मिहनत करके कमावय ।
बंशी के गोसइन तिहार मा  दिया पहुँचाय बर घरो घर जावय तइसने गीस उँहा मनडलीन हर कहिथे बड़ महंगा लगाथव ओ तुमन हर , ओ दिन मोर बेटा हर बजार ले लेके लान डरे हे कहिदिच , बपुरी हर का करतीच , कलेचुप बाहिर आगे । अब एक घर ले दूसर घर दूसर ले तीसर घर घूम डरीन सबे घर मा उनला उहिच जुवाब मिलय ।
ले देके थोड़े बहुत दिया हर बेचावय , सबे दिया मन ला महतारी बेटी मुड़ मा बोहे - बोहे बेचे बर किजरै ।
 बाजार घलो लेके गीन बाजारों मा लगाइन , लेकिन आज कल सब मशीनी अउ चाइना के चका चौंध ले भरे जिनिस  मन के बाजार मा जादा मांग अउ चलन रहिस तेपाय के उखर दिया मन उहो जादा नइ बेचाइस ।
का करतीन बपुरी मन जतेक भी बेचाइस ओत के ला बेच के घर आ गीन , महंगाई के समय सबो जिनिस मनके बाढ़े भाव अउ ऊपर ले अइसन मन्दी के समे मा कइसे एक गरीब परवार के मनखे मन बढ़िया ढंग ले तिहार मना सकत हे ।
ओतका मा बंशी के एके झन लड़का रहय ओहर जींद करे ला धरलिस बंशी ला कपड़ा लेहे बर ,  अब बंशी बड़ अचरज मा पड़गे करव ता का करव भगवान कहिके , तीन तीन झन लइका अब एके झन बर ले देहु उहू हर नइ बनय कहिके बड़ सोचे ला धरलिस ।
एक तो आज कल अतका आमदनी घलो नइये , तेमा ये रोजगार हर घलो बड़ मन्दा हे , ता लइका मन अपन ददा के गरीबी हालात अउ ये सब परस्थिति मनला देख के कहिथे नही ददा भइगे हमन ला काही नइ चाहि , हमन अइसने देवारी मना लेबोन , कहिके सबे झन कलेचुप हो होंगे । बंशी अपन अइसन हाल ला देख के रो डरिस , का आसो अइसने मनाहव देवारी कहिके ।
संगवारी हो अगर हमर मन के थोड़कीन सहयोग करे ले अगर कखरो परिवार मा खुशहाली आथे , ता आवव हम सब मिलके दूसर मनला खुशी देके अपन परम्परा मन के संग एसो हाँसीअउ खुशी ले भरे देवारी मनाथन। 

कहानीकार - श्री मोहन कुमार निषाद
              गाँव लमती , भाटापारा , 
             बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

33 comments:

  1. सुग्घर भाव।
    कहानी के अंत थोकिन अउ गंभीर होना रहीस

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    1. हव भइया सिरतोन कहत हव सादर आभार भइया 🙏🙏

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  2. अति सुन्दर कहानी भाई जी।बधाई ही

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    1. सादर अन्तस् ले आभार भइया धन्यवाद 🙏🙏

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  3. हार्दिक बधाई हो

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  4. हाँ भाई बहुते मार्मिक सत्य कहानी है

    सही म हमर देशी जिनिस मन ला ही बौरना चाही

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    1. सादर अन्तस् ले आभार आप मन के धन्यवाद 🙏🙏

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  5. कहानी सुघ्घर हे,पर कुछ कुछ जघा मा मात्रिक त्रुटि हे
    जैसे-रीती-रीति,
    आपके लेखन बर हार्दिक बधाई ।

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    1. सादर आभार भइया बताये बर अन्तस् ले धन्यवाद 🙏🙏

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  6. संदेश देवत बढिया कहानी लिखे बर बधाई

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  7. बड़ मार्मिक कहानी हे भाई ।👌👌👌

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  8. सुग्घर प्रयास भाईजी

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  9. बड़ सुग्घर
    गरीब किसान के जिनगी ल सुग्घर ढंग ले बताय हव जी
    जोरदार

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    1. सादर आभार संग धन्यवाद भइया 🙏🙏

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  10. अनंत बधाई भाई👌👍💐💐💐

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  11. बड़ सुग्घर कहनी हे पीरा भरे

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  12. बहुत ही सुघघर रचना हे मोहन भाई

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    1. सादर आभार संग अन्तस् ले धन्यवाद आप मन के 🙏🙏

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