Monday 28 September 2020

छत्तीसगढ़ी अउ आत्मकथा

 छत्तीसगढ़ी अउ आत्मकथा 

      राजा रानी , गरीब बाम्हन , चिरई चुरगुन अउ बहुत अकन कथा कहत , सुनत , पढ़त , लिखत रहिथन फेर अपन कहानी अपन जुबानी कहना लिखना जब होथे त ओला आत्म कथा  कहिथें । गद्य साहित्य के नवा विधा आय , त मोर नज़र मं अभी तक  छत्तीसगढ़ी मं कोकरो आत्मकथा नई आए हे , गुनी मानी मन  सही बात बताये सकहीं । 

    डॉ . हरिवंश राय बच्चन के अनुसार " आत्मकथा लेखन की वह विधा है जिसमें लेखक ईमानदारी के साथ आत्म निरीक्षण करता हुआ अपने देश काल परिवेश से सामंजस्य अथवा संघर्ष के द्वारा अपने को विकसित और स्थापित करता है । " 

    इंकर लिखे आत्मकथा क्या भूलूं क्या याद करूं , नीड़ का निर्माण फिर , बसेरे से दूर अउ दशद्वार से सोपान तक ल पढ़ के जाने बर मिलथे के आत्मकथा सिर्फ अपन जीवन के कहानी नोहय बल्कि जेन समाज मं जेन परिस्थिति मं रहिथे ओ सब के लेखा जोखा घलाय आय । 

   ओशो कहिथें आत्मकथा " मैं " के विस्तार आय । 

आत्मकथा दू तरह के पाये जाथे पहिली जेमा लेखक स्वकेन्द्रित होथे ,अपने बारे मं लिखथे त अइसन लेखन हर अपने च बड़ाई करत दीखते एकर से साहित्य या समाज या पाठक ल कोनो प्रेरणा नई मिलय ...। बकलम खुद लेखक मोहन राकेश अउ रसीदी टिकट लेखिका अमृता प्रीतम के आत्मकथा पढ़ के पाठक जानथे के अपन कमी , कमजोरी ल बिना लाग लपेट के लिखना घलाय हर आत्मकथा के एक रूप आय जेहर बहुत कठिन होथे । 

  दूसर तरह के आत्मकथा होथे जेमा लेखक अपन कथा जनम , लइकाई  , पढ़ाई असन घटना जेन हर आदमी के जीवन मं घटथे ओकर उपर जादा ध्यान न दे के ओ समय के सामाजिक , राजनैतिक , धार्मिक स्थिति के वर्णन उपर जादा ध्यान देते , अइसन आत्मकथा हर साहित्य के भंडार भरथे , पाठक बर रोचक उपयोगी जानकारी देवइया होथे । महात्मा गांधी के आत्मकथा " सत्य के प्रयोग " अउ पंडित जवाहर लाल नेहरू के " मेरी कहानी " उत्तम आत्मकथा माने जाथे । 

आत्मकथा के तत्व होथें वर्णन के विषय वस्तु , देशकाल , चरित्र चित्रण , उद्देश्य , भाषा शैली । 

सहज रूप मं कहिन त स्वकेन्द्रित होते हुए भी अपन मुंह अपन बड़ाई से बंचते हुये , नितांत व्यक्तिगत मानवीय भावना के भी  तटस्थ वर्णन  , खुद के प्रति ईमानदार रहते हुए ओ समय के सामाजिक  , राजनैतिक , धार्मिक , शैक्षिक  साहित्यिक संगति - विसंगति के निष्पक्ष चर्चा । 

नांव भले आत्मकथा हे फेर जीवन मं शामिल मनसे- तनसे , घटना - दुर्घटना , लाभ - हानि , जस - अपजस के सोला आना सही सही वर्णन , विश्लेषण हर आत्मकथा के मोल बढ़ा देथे । 

  आत्मकथा लिखना बहुत कठिन होथे काबर के मनसे अपन मन के अंधियारी कोठरी मं खुदे जाए बर तियार नई होवय त पाठक ल कइसे जाए दिही ? 

  सरला शर्मा

आत्मकथा--विमर्श*


*आत्मकथा--विमर्श*


 जेन ह सबके हित करय ओला साहित्य कहे गे हे। साहित्य म खुद के (लेखक के) अउ आन के (पाठक के) हित समाये  रहिथे।

   लेखक के हित के मतलब ओला मिलने वाला आत्मिक सुख अउ कभू-कभू कुछ धन के संग मिलने वाला मान सम्मान ले हे।साहित्य ले लेखक ल स्वयं आत्म दर्शन करे के अवसर मिलथे। ये ह साहित्य के महिमा आय कि एक फकीर ल समाज में वो मान- सम्मान मिल जाथे जेन कोनो राजा, महाराजा अउ धनकुबेर  ल नइ मिल सकय। असली मान सम्मान ल भला कोन पइसा म खरीद सकथे?

    साहित्य ह पाठक के तको हित करथे। जब  कोनो सहृदय पाठक साहित्य के रसपान करथे त वोला  अलौकिक आनंद के अनुभव होथे। नवाँ-नवाँ, सुंदर-सुंदर, शुभ-शुभ विचार वोकर मन भीतर जनम लेथे। वोकर जिनगी म कहूँ कमी-बेसी हे त सुधार करे के प्रेरणा मिलथे। कतको साहित्य पाठक के हिरदे म घपटे धुंध ला हटाके निर्मल कर देथे।   ये साहित्य के कई रूप हे जेमा *आत्मकथा* ह  तको एक ठन आय।


*आत्मकथा काला कहे जाथे* ----

ये सृष्टि म दूये कथा हो सकथे--- एक तो *आत्मकथा*( खुद के कथा) अउ दूसर  *पर के(आन के) कथा* ।

  जब कोनो मनखे ह  अपन जीवन कहानी ल जेमा घर-परिवार, जिनगी म पाये सुख-दुख, मान -अपमान, सफलता -असफलता ,  संघर्ष ल समाजिक भलाई के भावना ले बताथे या लिखथे त उही ह *आत्मकथा* कहलाथे। 

  कुल मिलाके जब मनखे ह समाजिक भलाई के इच्छा ले अपन जीवन के खट्टा-मीठा अनुभव ल बताथे या लिखथे त वोला आत्मकथा कहे जाथे।


*आत्मकथा के रूप*  -- मोटी-मोटा आत्मकथा के *दू रूप*  होथे।

 *1कमजोर आत्मकथा* कमजोर आत्मकथा वोला कहि सकथन जेमा - आत्म कथाकार ह अपन गुण या उपलब्धि मन के बढ़-चढ़कर के वर्णन करे हे।अपन अवगुण ल घलो कुतर्क के मुखौटा पहिनाके सुंदर देखाये हे। पीतल म सोन के पालिश चढ़ाके चोबीस कैरेट के सोन ठहराये हे।

  अइसन *आत्मश्लाघा* वाले आत्मकथा पाठक के आनंद म बाधा बन जथे। अइसन आत्मकथा *व्यक्ति निष्ठ* हो जथे।मतलब लेखक के सत्य ह (व्यक्त विचार ह) ,संसार के सत्य ले मेल नइ करय।

   कुछ आत्म कथाकार मन अपन कमजोरी ल नइ बताके जान-बूझके, तोप के, गुणे के वर्णन कर देथें।उहू का काम के ? संसार म कोनो बिन अवगुण के नइ हो सकय। चंदा म तको दाग हे। 

      कोनो आत्म कथाकार ह अगर  सहानुभूति बटोरे बर अपन असफलता, संघर्ष अउ बुराई ल आत्मकथा म भर डरे हे त उहू *कमजोर आत्मकथा* हो जथे।


*2 सजोर आत्मकथा*--- 

 जेन आत्मकथा म *संतुलित रूप म सफलता-असफलता, संघर्ष संग आन ले पाये सहयोग आदि के निर्भिक अउ निरपेक्ष भाव ले(नीर-क्षीर विवेक ले)  वर्णन होथे तेला सजोर आत्मकथा कहे जाथे।* 

 मोर हिसाब ले ककरो *आत्मा के कथा* ह सजोर आत्मकथा बनथे काबर के आत्मा ह कभू झूठ-लबारी नइ मारय। वोकरे अनुभव ह असली अनुभव होथे ।

      अइसन आत्मकथा ह *वस्तुनिष्ठ होथे*। मतलब संसार के अन्य मनखे मन के अनुभव ले ,अटल सत्य ले मेल खाथे। 

*आत्मकथा के प्रकार*--


विद्वान मन आत्मकथा के  तीन मुख्य प्रकार बताथें--

1राजनैतिक आत्मकथा

2धार्मिक आत्मकथा

3 साहित्यिक आत्मकथा


*आत्मकथा के इतिहास*--

 जइसेअन्य साहित्यिक विधा मन पहिली वाचिक रूप म रहिन हें ओइसने आत्मकथा ह तको वाचिक रूप म आइस होगी ।

  जेन दिन कोनो पुरखा ह पहिली बार ये काहत कि मोर चूँदी ह फोकट घाम न नइ पाके ये जी या महूँ ह घाट- घाट के पानी पिये हँव कहिके या नाती नतुरा मन ल अपने जिनगी के किस्सा बनाके, अपन अनुभव ल सुनाइस होही उही ह पहिली आत्मकथा आय।

लिखित रूप में आत्मकथा ह जादा पुराना नोहय।  येला हमर देश के अनुसार हम दू ढंग ले समझ सकथन।

*संस्कृत साहित्य म आत्मकथा*---

आत्मकथा के आधुनिक परिभाषा के अनुसार संस्कृत साहित्य म आत्मकथा नइये फेर शुरुआती चिनहा जरूर हे।

 *6वीं सदी के महाकवि भट्टि के भट्टिकाव्य(रावण बध) म*।

*7वीं सदी के महाकवि बाणभटृ ह अपन महाकाव्य हर्ष चरितम अउ कादम्बरी म अपन बचपन,देशाटन अउ शिक्षा के बारे म थोर-बहुत लिखे हे।*

*7वीं सदी के संस्कृत कवि माघ ह अपन कृति शिशुपाल बध म अपन कुल के परिचय लिखे हे।*


*8वीं सदी के महाकवि भवभूति ह अपन रचना महावीर चरित के प्रस्तावना म अपन परिचय लिखे हे--दादा के नाम- भट्ट गोपाल,पिता-नीलकंठ, माता-जातुकर्णी।*

*12सदी के कवि श्रीहर्ष ह अपन कृति नैषध चरित के सबो सर्ग के अंत म अपन नाम श्रीहर्ष ,पिता के नाम-श्री हरि, माता के नाम-भामल्ल देवी लिखे हे।*

कुल मिला के संस्कृत साहित्य म आत्मकथा ह अइसने छुटपुट बीज रूप म हाबय।

*हिंदी साहित्य म आत्मकथा*-----

हिंदी साहित्य म आत्मकथा बहुतायत ले पाये जाथे।


*हिंदी के प्रथम आत्मकथा श्री बनारसी दास जैन के सन् 1641 म लिखे 'अर्द्धकथा' जेन ल 'संकाय कथानक ' तको कहे जाथे हर आय। ये ह पद्य रूप म हे*।

 वोकर बाद के आत्मकथा मन ल चार युग-

*1पूर्व भारतेंदु युग अउ भारतेंदु युग।*

*2 द्विवेदी युग।*

*3 छायावादी युग।*

*4 छायावादोत्तर युग।(आधुनिक युग)*

      म बाँट के अध्ययन करे जा सकथे।


*छत्तीसगढ़ी भाषा म आत्मकथा*---

हम अभी तक पढ़े नइ अन।हो सकथे मोला मालूम नइ होही।

फेर हाँ, छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री स्व श्री अजीत जोगी जी ह कोरोना काल म अपन आत्मकथा *सपनों का सौदागर* लिखत रहिन।वोकर प्रकाशन के अगोरा हे।

🙏🙏🙏🙏


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी अउ आत्मकथा*

 *छत्तीसगढ़ी अउ आत्मकथा*

        साहित्य चाहे कोनो भी भाषा के होय, गद्य साहित्य के सूची थोरिक लम्बा हो जथे। कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी मन शुरुआती गद्य रहिन। निबंध लिखे गिस। निबंध के विषय अउ लेखन शैली ले अउ कतको विधा मन ल स्वतंत्र विधा के रूप म पहचान मिलिन।अउ स्थापित घलो होइस।जेमा संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, डायरी, ललित निबंध, जीवनी, आत्मकथा, पत्र लेखन प्रमुख हें। साहित्य म जीवनी लेखन अउ आत्मकथा लेखन दूनो म प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व के चरित्र वर्णन रहिथे। अइसे बताय के  । डायरी म दैनिक जीवन के खास बात रोज लिखे जाथे। आत्मकथा म अपन पूरा जीवन के महत्वपूर्ण घटना मन ल ईमानदारी के संग लिखे जाथे। 

         मनखे दुख पीरा म रहे ले अपन हितवा मितवा मन ले अपन रामकहानी कहिथे। कहे जाथे दुख बाँटे ले मन हल्का होथे। सुख बाढ़थे त दुख घटथे। शारीरिक अउ मानसिक दुख  खाय पीए के चीज बरोबर बँटै तो नइ फेर मन हरू जरूर हो जथे। फेर कतको झन के मानना हे, अपन दुख ल बता जना के दूसर ल का दुखी करना। कतको मन सुने बर तियार नइ होय, कहे लगथे तोर राम कहानी ल राहन दे। बड़े बुजुर्ग अउ सुजानिक मन के कहना हे, अपन राम कहानी अउ कोनो ल जतका गारी गुफ्तार करना हे तउन ल कागज म लिख डारव, मन के पूरा भड़ास निकाल लव। जब मन शांत हो जही त कागज ल चीर दौ नइ त लेस दौ। एकर ले काकरो ले संबंध नइ बिगड़ै। जीवन के सँझौती के  बात सुने बिहनिया अउ मँझनिया तिर समय नइ राहय। जीवन नदिया कस ए। बहत हे त अस्तित्व हे। सुक्खा नदिया देखे कोनो नइ जाय। पूरा आय नदिया ल देखे कतको आथे। उतरती नदिया देखे नइ जाय। सुर ताल के रहिते जीवन हे। थमे लगिस त पुछारी नइ होय। थमिस त जै राम जी की। इही तरह जीवन के सँझौती म कतको अपन मन के बात ल सुरता करथे। छोटे बड़े सबो घटना बेरा बेरा म आँखीं म झूले लगथे। कतको मन लिखे के उदीम करथे अउ लिखथे घलो। कतको मन स्वांतःसुखाय लिखथे। कतको समय अउ सोच दूनो के कमी ले  नइ लिखैं। कतको मन जीवन के उतार चढ़ाव ल पूरा ईमानदारी के संग लिखे के उदीम करथे। इही तरह ले आत्मकथा चलन म आय होही। मोर मन म विचार आथे। आत्मकथा शब्द ऊपर विचार करे म यहू लगथे कि आत्म अउ कथा दूनो मिले ले आत्मकथा बने हे। आत्म याने खुद अउ कथा याने कहना या कथन। अपन स्वयं के बारे म कहना ही आत्मकथा ए। इहाँ कहना या कथन विस्तार ले हुए हे। व्यापकता समोए। खुद के जीवन के जम्मो उतार चढ़ाव ले भरे समय के बारे म लिखना ही आत्मकथा ए। आत्मकथा के लेखक एक तरह ले हीरो होथे। खुदे अपने बारे म लिखना आत्मकथा ए, त विश्वसनीयता अउ वास्तविकता के प्रश्न खड़ा जरूर होथे। पूरा ईमानदारी के साथ लिखना रहिथे। ए ला लिखे म कल्पना बर कोनो जगह नइ राहै। अपन अच्छाई के सं बुराई ल भी लिखना पड़थे। एक तरह ले आत्मकथा खुद के विश्लेषण करना घलो आय। 

      आत्मकथा के बारे म

*डॉ. श्याम सुंदर घोष जी* मन कहे हे *"आत्मकथा समय प्रवाह के बीच तैरने वाले व्यक्ति की कहानी है। इसमें जहाँ व्यक्ति के जीवन का जौहर प्रकट होता है, वहाँ समय की प्रवृत्तियाँ और विकृतियाँ भी स्पष्ट होती है।इन दोनों घात प्रतिघात से ही आत्मकथा में सौंदर्य और रोचकता का समावेश होता है। "*

       आज साहित्य जगत ह पाठक के कमी ले जूझत हे। एकर कारण पाठक के संगेसंग साहित्यकार भी हो सकत हे। अभी ए ऊपर चर्चा करे बेरा नइ हे। पाठक आज उही आत्मकथा पढ़ना चाही जेकर लेखक के बारे म ओ पहिली ले जानथें। जीवनी अउ आत्मकथा दो अइसे विधा ए, जेला पाठक संबंधित ले पहिली परिचित होय म ही पढ़े के सोचथे। ए दूनो विधा म सफल सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता, अभिनेता, साहित्यकार, खिलाड़ी, उद्योगपति जइसे चर्चित व्यक्तित्व के जीवन वृत्त प्रकाशित होथे। कतको चर्चित व्यक्तित्व मन खुदे लिखे म सक्षम नइ रहे ले लिखवा लेथे, तब जीवनी कहाथे। जीवनी लेखक एक कलम के धनी होथें। उहें आत्मकथा के लेखक कलम के धनी होना जरूरी नइ राहै। वो अपन कर्मक्षेत्र म सफल रहिथे। भाषा शैली आत्मकथ्यात्मक ही रहिथे। भाषा सहज सरल अउ बोधगम्य होना चाही। 

       एक आत्मकथा  देश दुनिया अउ समाज बर उपयोगी होथे। देश दुनिया अउ समाज ल प्रेरणा देथे। नवा दिशा देथे। नवा विचार देथे। एक ऊँचाई प्रदान करथे। भीड़ म एक अलग पहचान देथे।

       आजकल देखे सुने मिलथे कि कई झन मन अपन आत्मकथा ले विवाद म आ जथे। चर्चित होय अउ बिक्री के चक्कर म भी अइसन  लिख जाथे, जेकर खंडन ओकर समकालीन व्यक्ति अउ सहयोगी ले करे जाथे। ए तब होथे जब लिखे गे बात सच्चाई ले कोस भर दूरिहा रहिथे। वास्तविकता ले कोनो संबंध नइ रहै। अपन चरित्र ल उज्जर बताय अउ कोनो आन ल अपन ले कम बताय के फेर म घला अइसन होथे। आत्मकथा लेखन बर ईमानदारी अउ वास्तविकता दो मूल जरूरी तत्व हे। एकर बिना आत्मकथा बेमानी हो जथे। आत्मकथा म लिखे विषय अइसे होना चाही कि विवाद ल जन्म झन दै। विवादित विषय लिखे जाना जरूरी हे तब पूरा साक्ष्य के साथ होना चाही। नइ तो आप के समकालीन ओकर खंडन कर सकथे।अउ आपके लेखन के मोह ले आपके बने छवि म दाग लग सकत हे।

      छत्तीसगढ़ी साहित्य म आत्मकथा के दिशा अउ दशा का हे, जानकारी के अभाव म कुछु कहना मुश्किल हे। ए विषय म ए लेखन केवल गद्य लेखन म आत्मकथा लिखे बर एक रस्ता अउ प्लाट तियार करना भर आय।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी

जनकवि दलित जी ला पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि




 जनकवि दलित जी ला पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि 


अत्याचार करइया मन ला खूब ललकारय दलित जी हा 


जब हमर देश हा अंग्रेज मन के गुलाम रिहिस ।वो समय हमर साहित्यकार मन हा लोगन मन मा जन जागृति फैलाय के गजब उदिम करय ।  हमर छत्तीसगढ़ मा हिन्दी साहित्यकार के संगे संग छत्तीसगढ़ी भाखा के साहित्यकार मन घलो अंग्रेज सरकार के अत्याचार ला अपन कलम मा पिरो के समाज ला रद्दा देखाय के काम करिस ।छत्तीसगढ़ी के अइसने साहित्यकार मन मा स्व. लोचन प्रसाद पांडेय, पं. सुन्दर लाल शर्मा, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, स्व. कुंजबिबारी चौबे ,प्यारे लाल गुप्त, अउ स्व. कोदूराम दलित के नाम अब्बड़ सम्मान के साथ लेय जाथे ।येमा विप्र जी अउ दलित जी  हा मंचीय कवि के रुप मा घलो गजब नाव कमाइस। छत्तीसगढ़ी मा सैकड़ो कुंडलिया लिखे के कारण वोला छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय कहे जाथे ।


जन कवि कोदू राम दलित के जनम बालोद जिले अर्जुन्दा ले लगे गांव टिकरी मा एक साधारण किसान परिवार मा होय रिहिस ।पढ़ाई पूरा करे के बाद दलित जी हा प्राथमिक शाला दुर्ग मा गुरुजी बनिस । बचपन ले वोकर रुचि साहित्य डहर रिहिस हवय ।वोहा अपन परिचय ला सुघर ढंग ले अइसन देहे -


लइका पढ़ई के सुघर, करत हवंव मैं काम ।

कोदूराम दलित हवय मोर गंवइहा नाम ।।

मोर गंवइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया ।

जनहित खातिर गढ़े हवंव मैं ये कुंडलियां ।।

शउक महूँ ला घलो हवय, कविता गढ़ई के ।

करथव काम दुरुग मा मैं लइका पढ़ई के ।।

        दलित जी सिरतोन मा हास्य 

व्यंग्य के जमगरहा कवि रिहिस हे । शोषण करइया मन के बखिया उधेड़ के रख देय ।दिखावा अउ अत्याचार करइया मन ला वोहा नीचे लिखाय कविता के माध्यम ले कइस अब्बड़ ललकारथे वोला देखव - 


   ढोंगी मन माला जपयँ, लमभा तिलक लगायँ 

हरिजन ला छूवय नहीं, चिंगरी मछरी खाय ।।

खटला खोजो मोर बर, ददा बबा सब जाव ।

खेखरी साहीं नहीं, बघनिन साहीं लाव ।।

बघनिन साहीं लाव, बिहाव मैं तब्भे करिहों ।

नई ते जोगी बनके तन मा राख चुपरिहौं ।।

जे गुण्डा के मुँह मा चप्पल मारै फट ला ।

खोजो ददा बबा तुम जा के अइसन खटला ।।


   ये कविता के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नारी मन के स्वभिमान ला सुग्घर ढंग ले बताय गेहे । संगे संग छत्तीसगढ़िया मन ला साव चेत करिस कि एकदम सिधवा बने ले घलो काम नइ चलय ।अत्याचार करइया मन बर डोमी सांप कस फुफकारे ला घलो पड़थे ।

 दलित जी के कविता मा गांव डहर के रहन सहन अउ खान पान के गजब सुग्घर बखान देखे ला मिलथे -


भाजी टोरे बर खेतखार औ बियारा जाये ,

नान नान टूरा टूरी मन धर धर के ।

केनी, मुसकेनी, गंडरु, चरोटा, पथरिया, 

मंछरिया भाजी लाय ओली ओली भर के । ।

मछरी मारे ला जायं ढीमर केंवटीन मन, 

तरिया औ नदिया मा फांदा धर धर के ।

खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी, धरे ,

ढूंटी मा भरत जायं साफ कर कर के । ।


   दलित जी हा 28 सितंबर 1967 मा अपन नश्वर शरीर ला छोड़ के स्वर्गवासी होगे ।अइसन जन कवि ला आज  53 वीं पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन हे. विनम्र श्रद्धांजलि. 


दलित जी के सुपुत्र आदरणीय गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी हा अपन पिता जी के मार्ग ला सुग्घर ढंग ले अपना के साहित्य सेवा करत हवय । संगे संग" छंद के छंद "जइसे साहित्यिक आंदोलन के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नवा पीढ़ी के साहित्यकार मन ला 

छंद सिखा के सुग्घर ढंग ले छंदबद्ध रचना लिखे बर प्रेरित करत हवय । येहा एक साहित्यकार पुत्र द्वारा अपन पिता जी ला सही श्रद्धांजलि हरय ।


               ओमप्रकाश साहू" अंकुर "

   सुरगी  ,राजनांदगांव

Friday 25 September 2020

28 सितम्बर, पुण्यतिथि विशेष*-अजय अमृतांशु

 *28 सितम्बर, पुण्यतिथि विशेष*-अजय अमृतांशु


संघर्ष ले उपजे जनकवि : कोदूराम "दलित"

                               

छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय के नाम ले मशहूर जनकवि कोदूराम "दलित" जी के जन्म 5 मार्च 1910 के ग्राम-टिकरी (अर्जुन्दा) जिला दुर्ग के  साधारण किसान परिवार म होय रहिस। किसान परिवार म पालन पोषण होय के कारण पूरा बचपन किसान अउ बनिहार के बीच म बीतिस।  ।आजादी के पहिली अउ बाद उन कालजयी सृजन करिन। समतावादीविचार, मानवतावादी दृष्टिकोण अउ यथार्थवादी सोंच के कारण आज पर्यन्त उन प्रासंगिक बने हवय।


दलित जी के कृतित्व मा खेती किसानी के अदभुत चित्रण मिलथे। खेती किसानी ल करीब से देखे अउ जिये हवय येकर सेती उँकर गीत म जीवंत चित्रण मिलथे :- 


पाकिस धान-अजान,भेजरी,गुरमटिया,बैकोनी,

कारी-बरई ,बुढ़िया-बांको,लुचाई,श्याम-सलोनी।

धान के डोली पींयर-पींयर,दीखय जइसे सोना,

वो जग-पालनहार बिछाइस,ये सुनहरा बिछौना।

दुलहिन धान लजाय मनेमन, गूनय मुड़ी नवा के,

आही हंसिया-राजा मोला लेगही आज बिहा के।


स्वतंत्रता आंदोलन के बेरा लिखे उँकर प्रेरणादायी छन्द -

अपन देश आजाद करे बर,चलो जेल सँगवारी,

कतको झिन मन चल देइन,आइस अब हमरो बारी। 


गाँधीजी के विचारधारा ले प्रभावित अंग्रेजी हुकूमत  खिलाफ साहित्य ल अपन हथियार बनाईन शिक्षक रहिन तभो ले लइका मनके मन मे स्वतंत्रता के अलख जगाय खातिर राउत दोहा लिख-लिख के प्रेरित करिन :- 

हमर तिरंगा झंडा भैया, फहरावै असमान।

येकर शान रखे खातिर हम,देबो अपन परान।


अपन मन के उद्गार ल बेबाक लिखइया दलित जी के रचना मन कबीर के काफी नजदीक मिलथे। जइसन फक्कड़ अउ निडर कबीर रहिन वइसने कोदूराम दलित जी। समाज म व्याप्त पाखण्ड के उन जमके विरोध करिन। एक कुण्डलिया देखव :- 


ढोंगी मन माला जपैं, लम्हा तिलक लगायँ ।

हरिजन ला छीययँ नहीं,चिंगरी मछरी खायँ।।

चिंगरी मछरी खायँ, दलित मन ला दुत्कारैं।

कुकुर – बिलाई ला  चूमयँ – चाटयँ पुचकारैं।

छोड़ - छाँड़ के गाँधी के, सुग्घर रसदा ला।

भेद-भाव पनपायँ , जपयँ ढोंगी मन माला। 


कोदूराम "दलित" ला जनकवि कहे के पाछू खास वजह ये भी हवय कि उँकर रचना म आम जनता के पीरा हे,आँसू हे,समस्या हे। उँकर कविता सुने के बाद आम अउ खास दूनो मनखे प्रभावित होय बिना नइ रह सकिस। उँकर कविता लोगन मन ला मुँह जुबानी याद रहय। उँकर रचना  समाज म व्याप्त बुराई उपर सीधा चोट करय। जेन भी बात उन लिखिन बिना कोई लाग लपेट के सीधा-सीधा कहिन। छत्तीसगढ़िया के पीरा ल दलित जी अपन जीवनकाल म उकेरिन जेन आज भी प्रासंगिक हवय। उँकर लिखे एक एक शब्द छत्तीसगढ़िया मनखे के हक के बात करथे :-


छत्तीसगढ़ पैदा करय, अड़बड़ चाँउर दार।

हवय लोग मन इहाँ के, सिधवा अउ उदार।।

सिधवा अउ उदार, हवयँ दिन रात कमावयँ।

दे दूसर ला भात , अपन मन बासी खावयँ।

ठगथयँ बपुरा मन ला , बंचक मन अड़बड़।

पिछड़े हवय अतेक, इही करन छत्तीसगढ़।


कवि हृदय मनखे प्रकृति के प्रति उदात्त भाव रखथे काबर कि उँकर मन बहुत कोमल होथे । दलित जी के प्रकृति प्रेम घलो ककरो ले छुपे नइ रहिस। उँकर घनाक्षरी मा प्रकृति के अदभुत चित्रण अउ संदेश मिलथे:-


बन के बिरिच्छ मन, जड़ी-बूटी, कांदा-कुसा

फल-फूल, लकड़ी अउ देयं डारा-पाना जी ।

हाड़ा-गोड़ा, माँस-चाम, चरबी, सुरा के बाल

मौहां औ मंजूर पाँखी देय मनमाना जी ।

लासा, कोसा, मंदरस, तेल बर बीजा देयं

जभे काम पड़े, तभे जंगल में जाना जी ।

बाँस, ठारा, बांख, कोयला, मयाल कांदी औ

खादर, ला-ला के तुम काम निपटाना जी ।


विद्यालय कइसन होना चाही दलित जी जे सपना रहिस उँकर कविता मा साफ झलकथे  :- 

अपन गाँव मा शाला-भवन, जुरमिल के बनाव

ओकर हाता के भितरी मा, कुँआ घलो खनाव

फुलवारी अउ रुख लगाके, अच्छा बने सजाव

सुन्दर-सुन्दर पोथी-पुस्तक, बाँचे बर मंगवाव ।


खादी के कुर्ता, पायजामा,गाँधी टोपी अउ हाथ मा छाता देख के कोनो भी मनखे दुरिहा ले दलित जी ल पहिचान लय। हँसमुख अउ मिलनसार दलित जी के रचना संसार व्यापक रहिस। गांधीवादी विचार ले प्रेरित होय के कारण सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के संदेश अक्सर अपन रचना म दँय। हास्य व्यंग्य के स्थापति कवि होय के कारण समाज के विसंगति ल अपन व्यंग्य के हिस्सा बनावय। राजनीति उपर उँकर धारदार व्यंग्य देखव :- 


तब के नेता जन हितकारी ।

अब के नेता पदवीधारी ।।

तब के नेता काटे जेल ।

अब के नेता चौथी फेल ।।

तब के नेता लिये सुराज ।

अब के पूरा भोगैं राज ।।


दलित जी अपन काव्य-कौशल ला केवल लिख के हे नहीं वरन् मंच मा प्रस्तुत करके घला खूब नाव बटोरिन। अपन बेरा मा मंच के सरताज कवि रहिन। सटीक शब्द चयन, परिष्कृत भाखा अउ रचना मन व्याकरण सम्मत रहय जेकर कारण उँकर हर प्रस्तुति प्रभावशाली अउ अमिट छाप छोड़य ।कविता काला कहिथे येकर सबसे बढ़िया अउ सटीक परिभाषा दलित जी के ये मात्र दू लाइन ल पढ़ के आप समझ सकथव : - 


जइसे मुसुवा निकलथे बिल से,

वइसने कविता निकलथे दिल से।


छत्तीसगढ़ी कविता ल मंचीय रूप दे के श्रेय पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी "विप्र" अउ कोदूराम "दलित" ला जाथे। 50 के दशक म दलित जी के छत्तीसगढ़ी कविता के सरलग प्रसारण आकाशवाणी भोपाल, इंदौर,ग्वालियर अउ नागपुर ले होइस जेकर ले छत्तीसगढ़ी कविता ल नवा ऊँचाई मिलिस। समाज सुधारक के रूप में दलित जी के संदेश अतुलनीय /अनुकरणीय हवय :-


भाई एक खदान के, सब्बो पथरा आँय।

कोन्हों खूँदे जाँय नित, कोन्हों पूजे जाँय।।

कोन्हों पूजे जाँय, देउँता बन मंदर के।

खूँदे जाथें वोमन फरश बनयँ जे घर के।

चुनो ठउर सुग्घर मंदर के पथरा साँही।

तब तुम घलो सबर दिन पूजे जाहू भाई ।।


दलित जी के कुल 13 कृति के उल्लेख मिलथे जेमा- (१) सियानी गोठ (२) हमर देश (३) कनवा समधी (४) दू-मितान (५) प्रकृति वर्णन (६)बाल-कविता - ये सभी पद्य में हैं. गद्य में उन्होंने जो पुस्तकें लिखी हैं वे हैं (७) अलहन (८) कथा-कहानी (९) प्रहसन (१०) छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियाँ (११) बाल-निबंध (१२) छत्तीसगढ़ी शब्द-भंडार (13) कृष्ण-जन्म (हिंदी पद्य) फेर दुर्भाग्य से उँकर जीवनकाल में केवल एक कृति- "सियानी-गोठ" ही प्रकाशित हो सकिस जेमा  ७६ हास्य-व्यंग्य के कुण्डलियाँ संकलित हवय। बाद में बहुजन हिताय बहुजन सुखाय‘ अउ ‘छन्नर छन्नर पैरी बाजे‘ के प्रकाशन होइस। विलक्षण प्रतिभा के धनी लगभग 800 ले आगर रचना करे के उपरांत भी दलित जी आज भी उपेक्षित हवय ये छत्तीसगढ़ी साहित्य बर दुर्भाग्य के बात आय।  प्रचुर मात्रा म साहित्य उपलब्ध होय के उपरांत भी  दलित जी उपर जतका काम होना रहिस वो आज पर्यन्त नइ हो पाय हवय। कभू कभू तो अइसन भी महसूस होथे कि पिछड़ा दलित समुदाय हा सदियों से जेन उपेक्षा के शिकार रहे हे उही उपेक्षा के शिकार दलित जी भी होगे । 


दलित जी साहित्यकार के संग एक आदर्श शिक्षक, समाज सुधारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अउ संस्कृत के विद्वान भी रहिन । उमन छत्तीसगढ़ी के संगे संग हिंदी के घलो शसक्त हस्ताक्षर रहिन दलित जी साक्षरता अउ प्रौढ़ शिक्षा के प्रबल पक्षधर रहिन। दबे कुचले मनखे मन के पीरा  लिखत दलितजी 28 सितम्बर 1967 के नश्वर देह ल त्याग के परमात्मा म विलीन होगे,फेर अपन रचना के माध्यम ले आज भी अपन मौजूदगी के अहसास कराथें । दलित जी के जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण अउ अभाव म बीतीस ,शायद येकरे कारण उमन अपन रचना के प्रकाशन नइ करवा पाइन। आज जरूरत ये बात के हवय कि नवा पीढ़ी उँकर साहित्य के प्रकाशन करवा के गहन अध्ययन भी करयँ। 


अजय अमृतांशु 

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

काकर सहीं हे*-चोवा राम वर्मा बादल

 *काकर सहीं हे*-चोवा राम वर्मा बादल

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(कहानी)


अपन दाई-ददा के एके झन संतान ,नरेश ह जब ले गलत संगती म परिस तब ले निचट दरूहा होगे रहिस।अपन घर ल नरक बरोबर बना डरे हे।रात दिन झगरा-लड़ई म, कलर कइया म कोनो ल खाये अंग नइ लागय।

     वोकर बाई बेचारी रमेसरी, जेन ह बने घर ले आये हे के जिनगी ह दुख म बूड़गे हे। एक-दू दिन आड़ नइ परय,मार-पीट म अउ संसो-फिकर म सुखाके काँटा होगे हे।

   नरेश ह आजो रतिहा कसके पी के लड़भड़- लइया करत घर आये हे।आइस तहाँ ले परछी म हाथ-गोड़ लमाके बइठत अपन बेटी मोतिम ल कहिस--ये टूरी एक गिलास पानी लान।

हव बाबू कहिके मोतिम ह जेन पढ़े-लिखे बर बइठे रहिसे, अपन कापी-किताब ल सकेले ल धरलिस।

अरे मर जहूँ त पानी लाके देबे तैं टूरी।बड़ा पढ़हंतीन बने हस--काहत नरेश ह उठिस अउ तड़ाक ले एक चटकन मोतिम ल दे दिस।

बेचारी ह कल्लाके रोये ल धरलिस।

बेटी ल रोवत सुनके रमेसरी ह अइस अउ चुप करावत अपन गोंसइया ल कहिस--आजो पी-खाके आये हस अउ फोकट के मार-पीट चालू कर देच।पानी देये म दू मिनट देरी होगे त का होगे?जादा  पियासे रहे त खुदे हेर के पी लेते।

अतका ल सुनके नरेश ह मनमाड़े जँजीयावत कहिस--हाँ-हाँ पी के आये हँव। तोर भिखमंगा ददा के पइसा म पी के नइ आये हँव।

     अपन ददा ल भिखमंगा काहत सुनके रमेसरी ह भन्नावत कहिस--मोर ददा भिखमंगा नइये। भिखमंगा तो तैं हस।वोकर पहिराये जम्मों गहना-गुरिया ल बेंच बेंच के पी खा डरे तेन ह शरम नइ लागय? एक ठन चिरहा ओनहा बर तरसत रहिथौं।बेटी ह एक ठन कापी-पेन

बर लुलवावत रहिथे। लाँघन-भूँखन जीयत हन तेकर चेत नइये। गोठियाथच त लाज घलो नइ लागय?

मोला शरम नइ लागय काहत हस रे निशरमी।तोर जीभ ल अभी सुरर देहूँ --काहत नरेश उठिस अउ बपरी ल दू-चार थपरा दे दिस।

बहू ल मारत देख के अस्सी साल के सियनहा रामलाल ह छोंड़ावत कहिस--अरे बेटा काबर अइसन अतियाचार करथस गा।निरपराधिन ल काबर फोकट के मारत हस।छोंड़ एला। बने तो कहिस हे।का गलती कइ परिस?

देख ददा तैं हट जा।आज एकर जीव ल मैं लेके रइहूँ काहत नरेश ह हटकारिस त बेचारा सियनहा ह थरथराके गिरगे।

नशा चढ़े राक्षस नरेश के मन नइ माढ़िस त रमेसरी के चूँदी ल धरके गिरा दिस अउ लात मुटका म मारे ल धरलिस।

नोनी मोतिम अउ रमेसरी बोमफार के रोये ल धरलिन।

 जर-बुखार म खटिया धरे नरेश के दाई सियनहिन सुकवारो ह कइसनो करके उठिच अउ छोंड़ावत कहिस--तोर हाथ-पाँव जोरत हँव बेटा झन मार पीट कर गा।

चुप रा डोकरी।तैं मरत तक नइ अच।तोरे चढ़ाये म ये ह अतका चढ़गे हे। नशा म पगलाये नरेश ह कहिस।वोला का तमीज हे।महतारी -बाप जेन मन ल भगवान सरूप कहे गेहे तिंकर ले कइसन बरताव करना चाही।

हाँ डोकरी कहिले अउ कुछु गारी दे ले।तोला बियाये के सेती पथरा बिया ले रहितेंव तेन बने रहिसे। रोवत रोवत सुकवारो कहिस।

       हल्ला-गुल्ला अउ रोवई -धोवई ल सुनके हम पारा -परोसी मन सकलागेंन।कुछ झन नरेश ल डाँटिन फटकारिन ,कुछ झन वोला समझाइन-बुझाइन तहाँ ले वो कुरिया म जाके सुतगे।

परोसिन काकी ह रमेसरी ल धीर धराके चुप करइस ।वोकर पीठ अउ बाखा म जेन-जेन जगा ल दुष्ट नरेश ह मारे राहय तेमा माटी तेल लगाके अपन घर ले दरद माढ़े के गोली ला के खवाइस। तेकर पाछू लेवन खावव -पीवव अउ चुपचाप सुत जवव कहिके हमन लहुटगेंन।

     अइसन म भला काकर मुँह म कौंरा जाही। सबो झन सात धार आँसू बोहावत परछी म बइठे रहिन। एकाध घंटा पाछू  सियनहिन ह अपन बहू ल कहिस--जा बेटी वोला खाना खाये बर उठा दे।नशा फाटगे होही त एको कौंरा खा लेही।

हव दाई काहत अउ आँसू ल अँचरा म पोंछत रमेसरी ह कुरिया म गेइस त ओकर चेत हरागे।

  नरेश ह कतका बेर मेयार म फाँसी ले ले राहय। वो हतभागिन ह बोमफार के कल्लई असन रोये ल धरलिस।

 का होगे सोंच के सियान, सियनहिन अउ नोनी ह कुरिया म गिन त देख के अकबका गे। सुकवारो ह गश खाके गिरगे फेर सबो कोई जोर-जोर से रोये ल धरलिन।

  फेर का होगे सोंचके हम पारा-परोस के मन तुरते जुरियागेंन। घटना ल देख के सब सन्न होगेन। सरपंच ,कोतवाल अउ गाँव के सियान मन ल बलाये गिस।

  नरेश के फाँसी लगाये के खबर दसे मिनट म पूरा गाँव म फइलगे। खमाखम लोगन सकलागें। सौ मुँह ,सौ प्रकार के बात होये ल धरलिस।बाहिर निकलेंव त चौरा म बइठे चार झन गोठियावत राहँय।

नरेश ह बहुत बड़े गलती कर दिस। अपन मरिस ते मरिस ,संग म अपन दाई-दाई, बाई अउ बेटी ल जीते जी मार डरिस।एक झन कहिस।

मरिस त बने होगे।मुक्ति तो मिलिस।सबके जिनगी ल नरक बना दे रहिस।बाँचे हे ते मन पेज-पसिया पी के कइसनो करके जी जहीं। दूसरा ह कहिस।

 मैं तो सुने हँव नरेश ह अपन बाई के दुख म फाँसी ले लिस। तिसरइया ह काहत राहय।

नहीं जी।हम जानत हन ।अइसन बात नोहय।नरेश ह दारू के नशा म अपन मसमोटी म मरगे।चौथा मनखे ह कहिस।

उँकर गोठ ल सुनके मैं गुने ल धरलेंव --काकर गलत हे ।काकर सहीं हे ?


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद,छत्तीसगढ़

कहिनी: *लक्ष्मण रेखा* पोखन लाल जायसवाल

 कहिनी: *लक्ष्मण रेखा*

          पोखन लाल जायसवाल

        मया तो मया होथे, मया ले जिनगी म सुघरई आथे। मया जिनगी बर बसंत होथे। बसंत आय ले जइसे रुख राई मन नवा डारा पाना संग फूलथे, फरथे, अउ सजथे। फबथे घलो।वइसने मया दुलार के गहना पहिने जिनगी फुदरथे, सजथे अउ सँवरथे। बिन मया के जिनगी बेरंग जनाथे।

        मया मनखे के बनाय जिनिस नोहै, जउन बउरे ले खिरा जै।हाँ अतका जरूर आय मया ले मनखे मनखे कहलाथे। मया जतेक बाँटबे ओतेक मिलथे, अउ बाढ़थे।

        सुनहर गरमी के दिन आय के सँघराती पोरा अउ कटोरी म पानी भर के चिरई पीये के उदीम करथे। रद्दा बाट म पानी भरे करसी के बेवस्था घलो करथे। बटोही मन बर घाम पियास के चिंता राहय। इही म हमर भलाई हे कहि सबो ल सिखौना देत ए उदीम करे के गोठ गोठियात रहिथे। सुनहर मास्टर जउन बनगे हे।

     ननपन के उतलइन सुनहर के मारे कोनो खार कोनो पीपर, बमरी अउ कसही कौहा म बने खोंधरा के अण्डा अउ चिरई पिला नइ बाँचत रहिस। कतको ऊँच म खोंधरा राहे,चाहे कतको पतला डारा म राहै, चढ़ना हे मतलब चढ़ना हे। सरसरउवन चढ़तिस अउ अण्डा निकाल बे करतिस। बर पीपर ले कौवा के अण्डा निकाले म ओला बड़ मजा आवै। कौवा के काँव काँव सुने बर जइसे तरसत रहिथे। खेत खार के कुआँ उतरई ओकर बर ठठ्ठा दिल्लगी के खेल राहै। फेर महतारी के मया के जादू चलगे। महतारी के सिखौना बात ले सुनहर ए सब ल छोड़ दिस। बड़ सुजानिक होगे। जम्मो जीव जंतु ले मया करैया होगे। पढ़ लिख के मास्टर के नौकरी घला पागे। अपन ननपन ल भुलावत नान्हें लइका मन ल बरजत कहिथे--" मया तो प्रकृति के वरदान आय जउन प्रकृति के जम्मो जीव जंतु बर हरे।जीव जनावर मन घला हमरे मन सही एक दूसर ले मया करथे। इही ए बात ल साफ बताथे मया प्रकृति के वरदान आय। चिरई चिरगुन ल हरहिन्छा जीयँन दौ।

 " 

       महतारी के मया अउ कोरा ल बड़ नजीक ले जानथे। भाई बहिनी म सबले छोटे होय ले सबो मया जइसे ओकर बर ढकलागे राहै। सबो ओला बड़ मया करैं। अइसे भी महतारी के मया कभू बँटाय नहीं, भलुक बाढ़थे। महतारी अउ बड़े भाई बहिनी मन के मया पावत मया के मरम ल सुनहर जानगे रहिस। तभे सबो ल मया करे अउ मया ले रहे के संदेश देवत रहिथे।

       एक दिन के बात ए, सुनहर दाई ल कहिथे--" दाई जा जल्दी नहा डर। अउ झट ले तियार हो जा, बड़े भैया घर जाबो।  " दाई ह सियानापन म  अपन बूता म लगे भुलागे।अइसे भी सियानापन म भुलाय के बीमारी ले कोन बाँच पाय हे। सुनहर नहा के आगे फेर दाई हर अपन बूता म भुलाय हे। ए ल देख फेर कहिथे- " दाई जा न झटकुन तियार हो,घाम हो जही तहान चाम धर लिही। " अतका कहिके अपन तियारी म लग्गे। दाई ह एती उत्ताधुर्रा नहाइस अउ जुन्नटहा लुगरा पहिने काँचा कपड़ा मन ल सुखोवत रहिस। एल देख सुनहर कहिस " मास्टर अउ डॉक्टर के महतारी हरच, गाँव जाय बर बने नवा सही लुगरा पहिन ले न दाई।" अउ संदूक म रखाय अपन पसंद के नवा लुगरा ल दे दीस। 

   जादा उमर के होय ले आँखी अउ कान थोकिन पातर हो जथे। जाँगर घलो जुवाब दे हे धर लेथे। फेर दाई चार कोरी उमर म जाँगर ले थके नइ रहिस। तियार होवत होवत बेटा ले आँखी चुरा के गाय गरु के जोखा करे कोठा चल दीस। पैरा रख अउ कोटना म पानी डार के आ घलो  गे।

         बइसाख के महिना राहै। घाम लाहो तपत राहय। तात तात हवा अउ घाम ल देख के घर ले निकले के मन नइ होय। फेर घाम अउ काम डर्राय ले नी बनै। कहे हे, जस-जस चाम तिपे, तस-तस काम बाढ़े। काम तो करे पड़ही, काम के बिना जिनगी ह एके ठउर म ठहर जही। जिनगी अपन अरथ ल खो दिही। जिनगी साँसा के चलत ले हे,साँसा थमिस कि जिनगी थम गे। इही गोठ ल सुरता करत सुनहर के बड़े   भाई डॉक्टर मार मँझनी मँझनिया खच्चित बूता निपटाय बर सोच शहर जात रहिस। भागती बइसाख के घाम जान करसी के पानी पी मुँह कान तोपे हेलमेट लगाय निकले रहिस। सड़क म बड़ सावचेत ले गाड़ी चलावत रहिस। दाई के सीख जउन रहिस, हड़बड़ हड़बड़ कभू आना जाना मत करहू। अपन रस्ता आहू जाहू। फेर कहे हे न होनी अनहोनी बता के नइ आवै। सड़क तिर बसे बस्ती पार करत बखत नान्हें लइका सड़क पार करत दौड़ के गाड़ी के आगहू आगे। ओला बचाय के चक्कर म गाड़ी बिजली खम्भा म टकरागे। बड़े अल्हन तो नइ होइस। हेलमेट पहिने  ले चोट नइ आइस। सावचेती अउ धीरलगहा गाड़ी चलाय ले खरोच भर आय रहिस। मरहम पट्टी कराके घर लहुट गे।

        एती भैया संग आय अल्हन ल बिन बताय सुनहर ह दाई ल गाँव ले चार कोस दूरिहा भैया घर लेके पहुँचगे। महतारी के मया  बेटा-बहू अउ नाती नतनीन बर उमड़गे। मया छलछलाय लगिस अउ आँखी ले बोहाय धर लिस। दाई नाती नतनीन  ले पूछे लगिस- " तोर पापा कति हे नइ दिखत हे, का बूता ले नइ लहुटे हे। " कोनो कुछु नइ बता पावत रहिस तब डॉक्टर बेटा कुरिया ले निकलिस। बेटा के हाथ गोड़ म लगे पट्टी ल देख दाई ह बोम फार के रोय लगिस। 

"दाई!झन रो मोला कुछु नइ होय हे , बड़े अल्हन ले बाँचगे हँव। तोर मया अउ आशीर्वाद ले मोला कुछु नइ होइस। तोरे सिखौना ले मोला दूसर जनम मिले हे।"

  " दाई तोर कहना हे न, जिनगी म कोन काय करत हेमत देख, तोला काय करना हे, ए देख। रस्ता चलत काँटा बिनत चलबे, रस्ता चतवारत चलबे। दे के सोच बे,दे म सुख हे,खुशी हे। काखरो बिगाड़ झन अउ  सोचबे मत। एखर लेतोर कभू बिगाड़ नइ होय।"

   सच दाई जिनगी के कोनो ठिकाना नइ हे।काकरो अहित नइ करे ले मोर अहित नइ होइस।

      मोर महतारी के मया अउ सिखौना यमराज बर लक्ष्मण रेखा बनगिस। तभे तो मोला नवा जनम मिले हे।

     पोखन लाल जायसवाल

पलारी

पुरषोत्तम महिना के महत्तम-चित्रा श्रीवास

 पुरषोत्तम महिना के महत्तम-चित्रा श्रीवास


     हमर हिंदू धरम जेला सनातन धरम कहे जाथे दुनिया के सबले जुन्ना धरम आय।हिंदू कलेन्डर मा हर तीन बछर मा एक ठन महिना हा जादा होथे जेला अधिक मास, मल मास या फेर पुरषोत्तम  मास कहे जाथे। ये महिना के अब्बड़ महत्तम हावय।महिना भर पूजा -पाठ,उपास,दान-पुन्न करे के बिधान हे।अइसन माने जाथे के ये महिना  मा करे धरम -करम  के काम हा आन महीना ले दस गुना जादा फल देथे।ये पुन्न प्रतापी महीना हा आखिर तीन साल मा काबर आथे एखरो कारन हावे-–-


              हमर कलेन्डर हा सूर्य महिना अउ चंद्र महिना के गणना  के अधार मा चलथे ।*अधिक मास हा चंद्र बछर के जादा भाग ये जेहा 32 महिना 16 दिन अउ 8 घड़ी के अंतर ले आथे*।ये महिना हा सूर्य  बछर अउ  चंद्र बछर के बीच मा संतुलन बनाये बर आथे।

•| *भारत के गणना पद्धति मा हर सूर्य बछर हा  365 दिन  6 घंटा के रहिथे।उहे चंद बछर हा 354  दिन के माने जाथे।दुनो बछर मा 11 दिन के अंतर होथे जेहा हर तीन साल मा एक महीना के बराबर होथे एहि अंतर ला पाटे बर हर तीन साल मा एक चन्द्र महीना जादाआथे जेला अधिक( जादा) होय के कारन  *अधिक मास* कहे जाथे।


*मल महीना काबर कहे जाथे*


अधिक मास होये के कारन येमा बर बिहाव , गृहप्रवेश ,यज्ञोपवीत जईसे पवित्र बुता नही करे जाए। शुभ काम नइ होय के कारण येला मलिन या फेर मल मास माने जाथे ।


*पुरुषोत्तम महीना काबर कहे गए हे*


पुराण मा कहे गय हे की हर  चंद्र मास के एक झिन देवता हवे। अधिक मास हा सूर्य अउ चन्द्रमा के बीच संतुलन बनाए बर परगट होइस ता ओखर देव बने बर कोनो देवता तियार नइ होइन ता ऋषि मुनि मन भगवान विष्णु ले बिनती बिनोइन अउ भगवान विष्णु हा ये महीना के देव बनिन तभे एला पुरुषोत्तम महीना कहे जाथे काबर की भ *भगवान विष्णु के एक नाव पुरुषोत्तम घलो हे।*


       हमर हिन्दू धरम के अनुसार सबो जीव के देह हा पंच महाभूत से बने हे। *ये पंच महाभूत पानी , आगी, आकाश , हवा अउ हमर पृथिवी* आय ये पांचो तत्व मन जीव के प्रकृति ला निर्धारित करथे। पुरुषोत्तम मास मा मनखे ध्यान योग चिंतन मनन करके अपन देह के पांचो तत्व मा संतुलन बनाए के परयास करथे।


चित्रा श्रीवास

बिलासपुर छत्तीसगढ़

Thursday 24 September 2020

सरकारी काम काज बर अवेदन*

 **सरकारी काम काज बर अवेदन* 

हमर बोली भाखा म होवय 

बहुत सुघ्घर विषय मन कति सबो के सुरता करावत ध्यान दिलाये हवव  परम आदरणीय श्री निगम गुरुदेव  ,बहुत महत्वपूर्ण विषय सरकारी विभाग मन के पत्राचार अउ आवेदन आवय |

       

हितग्राही मन के पसिना निकर जथे, पनही घिस जथे रेंगत रेंगत |

नइ पढ़े लिखे मन आवेदन लिखात जीव करला जथे हिन्दी अंग्रेजी के चक्कर म | बाबू भइया , सचिव ,अर्जीनवीस अउ कोट कछेरी के काग जात बड़ कठिन होथे समझे नइ आय त गँवतरिहा मन का जानही|

उँकर अपन बोली भाखा म अनुवादित कागज पाथर के अलगे बात होही| अउ सबो राज म अपन बोली भाखा म व्यवहार अउ व्यपार होवत हे त छत्तीसगढ़ म भी होना चाही| साशन सरकार घलो चाहथे के आम जन अपन बोली भाखा ले अपन बात रखय |

ये उदिम ले हमर भाखा पोठ होही 

सरकारी काम काज के जानकारी सुलभ होही , इहाँ विकास के गंगा सबो कति बोहाही|

🙏🙏💐💐💐💐

कार्यालयीन पत्र-व्यवहार-बलराम चन्द्राकर

 कार्यालयीन पत्र-व्यवहार-बलराम चन्द्राकर


परिपत्र/गश्तीपत्र(Circular)


जब एके सूचना आदेश, निर्देश या संदेश ला कई व्यक्ति अथवा कार्यालय ला भेजना होथे तब अइसन परिस्थिति मा लिखे गे पत्र *परिपत्र या गश्तीपत्र* कहे जाथे। 


*परिपत्र* /गश्तीपत्र, एक पत्र या प्रतिलिपि (लिखे चीज के नकल /कॉपी) या स्मृति-पत्र के रूप मा होथे। एकर उपयोग नीचे लिखे परिस्थिति मा होथे:-


1)जब कोनो सूचना बहुत अकन व्यक्ति या अधिकारी मन ला प्रसारित करना होथे।

2)जब बहुत अकन व्यक्ति या अधिकारी मन ला कोनो आदेश देना होथे।

3)जब एके विषय मा बहुत अकन अधिकारी या व्यक्ति मन ले कोनों विषय मा सम्मति /सुझाव लेना होथे।


उदाहरण -

भारत-सरकार राज्य - सरकार मन ला परिपत्र भेजथे। राज्य - सरकार मन अपन अधिकारी ;जइसे कोनो विभाग के प्रमुख या आयुक्त/कमिश्नर मन ला परिपत्र भेजथे। एक विभाग के प्रमुख/विभागाध्यक्ष अपन अधिनस्थ कर्मचारी मन ला परिपत्र भेज सकत हे।


एक उदाहरण :-


          *परिपत्र*


ए बात बर ध्यान देवावत कि एको पंखा के व्यर्थ उपयोग झन होय, महालेखाकार हा हर साल 15 मार्च ले कार्यालय मा पंखा के प्रयोग बर अनुमति दे दे हवै। ए वास्ते अधीक्षक अउ कार्यालय के कर्मचारी मन ले घलो प्रार्थना करे जावत हे कि पंखा मन के व्यर्थ प्रयोग झन होवन दैं।

                   आर. डी. साहू


अधीक्षकगण,

महालेखाकार कार्यालय, छत्तीसगढ़,

रायपुर




*परिपत्र-2*


संख्या 1409/8/415-2020

प्रेषक


      श्री पी. के. ठाकुर 

      उपसचिव, 

      छत्तीसगढ़-सरकार ।


          दि., रायपुर 11/08/2020

   

सेवा मा, 

 1-रजिस्ट्रार,उच्च न्यायालय बिलासपुर 

 2)-कमिश्नर रायपुर डिविजन 

 3)-कमिश्नर दुर्ग डिविजन 

4)-कलेक्टर महासमुंद 

 5)जिलाधिकारी अउ न्यायाधीश, बलौदाबाजार 

    महोदय! 

    मोला ये आदेश करे के निवेदन होय हे कि सम्मानीय न्यायालय के आज्ञा ले गवर्नर महोदय कुछ विषय मा हिन्दू - सम्पत्ति विधान मा परिवर्तन करत हुए समिलात हिन्दू - परिवार मा बँटवारा के बाद महिला मन ला सम्पत्ति के कुछ भाग दे खातिर बने नियम मा माननीय हिन्दू नेता अउ हिन्दू- मत के सामाजिक प्रतिनिधि मन ले परामर्श ले के बदलाव करे के प्रस्ताव रख सकत हे। ये बदलाव के प्रस्ताव के सूचना सरकार ला प्रेषित करे जाना चाही। ये प्रकार के सूचना तीनों प्रणाली मा अधिक - से - अधिक 01 नवंबर, 2020 ई. तक पहुंच जाना चाही। 

            आपके विश्वासपात्र 

                   पी. के. ठाकुर

                         उपसचिव

छत्तीसगढी म अनुवाद परंपरा: एक विवेचना*

 *छत्तीसगढी म अनुवाद परंपरा: एक विवेचना* 

डॉ विनोद वर्मा


    *छत्तीसगढ़ी म अनुवाद परंपरा के शुरुआती दौर म शेक्सपियर के अंग्रेजी नाटक 'काॅमेडी आफ एरर्स' के छत्तीसगढ़ी म पद्यानुवाद ' पुरु-झुरु' के नाम से शुकलाल पाण्डे जी करिन।संभवतः एही अनुवादित रचना हा छत्तीसगढी अनुवाद के प्रस्थान बिन्दु हे।* पं. सुन्दरलाल शर्मा कृत 'छत्तीसगढ़ी दानलीला' ला छत्तीसगढ़ी के प्रथम खंडकाव्य माने जाथे, फेर एहा अनुदित रचना नो हे बल्कि श्रीकृष्ण लीला उपर आधारित श्रृंगार प्रधान खंड काव्य हे।

      छत्तीसगढ़ी म कुल तीन प्रकार के अनुवाद मिलथे-

 1)  *गद्य ले गद्य अनुवाद* 

2) *पद्य ले गद्य अनुवाद* 

3) *पद्य ले पद्य अनुवाद*


 1)  *गद्य ले गद्य अनुवाद* - कथा-कहानी, नाटक, उपन्यास,   शासकीय पत्र के छत्तीसगढ़ी म अनुवाद एखर अन्तर्गत आही। शासकीय पत्र मन के केवल शब्दानुवाद होथे। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा प्रकाशित ' *लोकव्यवहार एवं कार्यालयीन छत्तीसगढ़ी ' ( डाॅ विनय कुमार पाठक)* म शासकीय पत्र,

परिपत्र, निदेश, अनुदेश,  प्रतिवेदन  प्रमाण पत्र, विज्ञापन आदि के 40-50 नमूना (हिन्दी ले छत्तीसगढ़ी) दिए हुए हे। 

      साहित्यिक अनुवाद केवल शब्दानुवाद नो हे बल्कि भावानुवाद कठिन होथे। कथा-कहानी , नाटक, उपन्यास मन मा आँचलिक शब्द अउ वाक्य मन के प्रयोग बहुतायत ले होथे। चोवाराम बादल के कहानी- 'अजादी आगे' के कुछ अंश ला देखव अउ गुनव........ *बड़े बिहनिया इही गुड़ी म हमर गाँव के बइगा बुधारु ह डाँड़ नहकवाही ! ले तो बइगा बता तो डाँड़ नहकवाये बर काय करे ला परही? '- रावण कस ठहाका लगावत गौंटिया कहिस।*

    एखर अंग्रेजी या आन भाषा म अनुवाद करे मा कहानी के भाव पक्ष के रक्षा करना कतेक कठिन होथे-एला अनुवादक हर ही समझ पाथे।प्रेमचंद के हिन्दी  के कई ठिन कहानी मन के छत्तीसगढ़ी म भावानुवाद डाॅ परदेशी राम वर्मा जी करे हें। *रामनाथ साहू के छत्तीसगढ़ी उपन्यास 'भुइयाँ  के अभी हाले म अंग्रेजी अनुवादित पुस्तक 'THE*  *COOL* *LAND* ' *छपे* *हे* ।


2) *पद्य ले गद्य अनुवाद* -


      अनेक पौराणिक संस्कृत ग्रंथ मन के हिन्दी गद्य अउ पद्य म अनुवाद उपलब्ध हे।अइसने ग्रंथ मन के छत्तीसगढ़ी गद्य म अनुवाद के साहित्यिक दृष्टिकोण ले विशेष महत्व तो नि हे काबर कि एहा शब्दानुवाद ही माने जाही।फिर भी एखर ले छत्तीसगढ़ी अनुवाद के कोठी तो भरबेच्च करत हे।

         *गीता शर्मा द्वारा 'शिवमहापुराण' अउ 'इशादि नौ उपनिषद' संस्कृत महाकाव्य के छत्तीसगढ़ी म गद्यानुवाद करे गे हे। अइसने 'कातिक महात्म्य' के छत्तीसगढ़ी म गद्यानुवाद गिरिजा शर्मा करें हें ।ए तोनों पुस्तक ला -'छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग' द्वारा प्रकाशित  किये गे हे।*


3) *पद्य ले पद्य अनुवाद-* संस्कृत के अनेक वैदिककालीन संस्कृत महाकाव्य के छत्तीसगढ़ी म काव्यानुवाद के महत्व बहुत जादा हे।काबर कि काव्य म सृजन मौलिक रचना ही माने जाही , भलेहि कहानी या लिखित घटना आदिकाल के हे। तुलसी कृत 'रामचरित मानस' हिन्दी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाला महाकाव्य हे। त एमा का मौलिकता नि हे? - वास्तव म एला मौलिक महाकाव्य ही माने जाही ।एमा मूल ग्रंथ के तथ्य मन ला छेड़छाड़ किए बिना ही बहुत अकन परिवर्तन तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था ला देखते हुए समाज के हित बर किए गे हे।

      संप्रति, छत्तीसगढ़ी म सृजित महाकाव्य के जानकारी नीचे देवत हौं-

1) *गीत माधव - रेवाराम बाबू* (संस्कृत महाकाव्य) छत्तीसगढ़ के कवि द्वारा सृजित प्रथम संस्कृत महाकाव्य।  

2) *श्रीराम कथा- कपिलनाथ कश्यप* 

3) *श्रीकृष्ण कथा- कपिलनाथ कश्यप* 

4)श्री *महाभारत- कपिलनाथ कश्यप* 

5) *छत्तीसगढ़ी रमायन- प्रभंजन शास्त्री* 

6) *साकेत संत- बल्देव प्रसाद मिश्र* 

7) *रामराज्य- बल्देव प्रसाद मिश्र* 

8) *सत्संग विलास- मेदनी प्रसाद पाण्डेय* 

9) *कुमार सम्भव-शकुन्तला शर्मा* 

10) *कौशल्या के कोसला- शकुन्तला शर्मा* 


 एखर अलावा अनेक खंड काव्य के सृजन भी करे गे हे-

1) *मेघदूत- पं.मुकुटधर पाण्डेय* 

2) *छत्तीसगढ़ी दानलीला- पं. सुन्दर लाल शर्मा* 

3) *कंसवध- पं. सुन्दर लाल शर्मा* 

4) *चाणक्य नीति- शकुन्तला शर्मा ( हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दुनों* *भाषा* *म* )

5) *विदुर नीति- शकुन्तला शर्मा (हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दुनों भाषा म)*


       *वर्तमान परिपेक्ष्य म  अनुवाद के परम्परा ला विकसित करे म सर्वाधिक योगदान विदुषी शकुन्तला शर्मा के हे जेन मन पौराणिक महाकाव्य ला आधार बना के दू महाकाव्य के सृजन करे हें।*🙏🌹


                विनोद कुमार वर्मा

पुरखा के सुरता -ओमप्रकास साहू


 पुरखा के सुरता -ओमप्रकास साहू


नाचा के सियान - मंदराजी दाऊ 


नाचा के समर्पित कलाकार जेकर आज 36 वीं पुण्यतिथि हे 




धान के कटोरा छत्तीसगढ़ के लोक कला अउ संस्कृति के अलग पहचान हवय । हमर प्रदेश के लोकनाट्य नाचा, पंथी नृत्य, पण्डवानी, भरथरी, चन्देनी के संगे संग आदिवासी नृत्य के सोर हमर देश के साथ विश्व मा घलो अलगे छाप छोड़िस हे। पंथी नर्तक स्व. देवदास बंजारे ,पण्डवानी गायक झाड़ू राम देवांगन, तीजन बाई, ऋतु वर्मा, भरथरी गायिका सुरुज बाई खांडे जइसन कला साधक मन हा छत्तीसगढ़ अउ भारत के नाम ला दुनिया भर मा बगराइस हवय. रंगकर्मी हबीब तनवीर के माध्यम ले जिहां छत्तीसगढ़ के नाचा कलाकार लालू राम (बिसाहू साहू),भुलवा राम, मदन निषाद, गोविन्द राम निर्मलकर, फिदा बाई  मरकाम, माला बाई मरकाम हा अपन अभिनय क्षमता के लोहा मनवाइस. ये नाचा के नामी कलाकार मन हा एक समय नाचा के सियान मंदराजी दाऊ के अगुवाई मा काम करे रिहिन ।मंदराजी दाऊ हा नाचा के पितृ पुरुष हरय. वो हा एक अइसन तपस्वी कलाकार रिहिस जउन हा नाचा के खातिर अपन संपत्ति ला सरबस दांव मा लगा दिस ।

    नाचा के अइसन महान कलाकार मंदराजी का जन्म संस्कारधानी शहर राजनांदगांव ले 5  किलोमीटर दूरिहा रवेली गांव मा एक माल गुजार परिवार मा होय रिहिस ।मंदरा जी के पूरा नांव दुलार सिंह साव रिहिस । 1922 मा ओकर प्राथमिक शिक्षा हा पूरा होइस।दुलार सिंह के मन पढ़ई लिखई मा नई लगत रिहिस । ओकर धियान नाचा पेखा डहर जादा राहय । रवेली अउ आस पास गांव मा जब नाचा होवय तब बालक दुलार सिंह हा रात रात भर जाग के नाचा देखय ।एकर ले 

ओकर मन मा घलो चिकारा, तबला बजाय के धुन सवार होगे. वो समय रवेली गांव मा थोरकिन लोक कला के जानकार कलाकार रिहिस । ऊंकर मन ले मंदराजी हा 

चिकारा, तबला बजाय के संग गाना गाय ला घलो सीख गे । अब मंदरा जी हा ये काम मा पूरा रमगे ।वो समय नाचा के कोई बढ़िया से संगठित पार्टी नइ रिहिस । नाचा के प्रस्तुति मा घलो मनोरंजन के नाम मा द्विअर्थी संवाद बोले जाय ।येकर ले बालक दुलार के मन ला गजब ठेस पहुंचे ।वोहा अपन गांव के लोक कलाकार मन ला लेके 1928-29 मा रवेली नाचा पार्टी के गठन करिस ।ये दल हा छत्तीसगढ़ मा नाचा के पहिली संगठित दल रिहिस ।वो समय खड़े साज चलय । कलाकार मन अपन साज बाज ला कनिहा मा बांधके अउ नरी मा लटका के नाचा ला करय ।

 मंदराजी के नाचा डहर नशा ला देखके वोकर पिता जी हा अब्बड़ डांट फटकार करय ।अउ चिन्ता करे लगगे कि दुलार हा अइसने करत रहि ता ओकर जिनगी के गाड़ी कइसे चल पाही । अउ एकर सेती ओकर बिहाव 14 बरस के उमर मा दुर्ग जिले के भोथली गांव (तिरगा) के राम्हिन बाई के साथ कर दिस ।बिहाव होय के बाद घलो नाचा के प्रति ओकर रुचि मा कोनो कमी नइ आइस ।शुरु मा ओकर गोसइन हा घलो एकर विरोध करिस कि सिरिफ नाचा ले जिनगी कइसे चलही पर बाद मा 

वोकर साधना मा बाधा पड़ना ठीक नइ समझिस ।अब वोकर गोसइन हा घलो वोकर काम मा सहयोग करे लगिन अउ उंकर घर अवइया कलाकार मन के खाना बेवस्था मा सहयोग करे लगिन ।

 सन् 1932 के बात हरय ।वो समय नाचा के गम्मत कलाकार 

सुकलू ठाकुर (लोहारा -भर्रीटोला) अउ नोहर दास मानिकपुरी (अछोली, खेरथा) रिहिस ।कन्हारपुरी के माल गुजार हा सुकलू ठाकुर अउ नोहर मानिकपुरी के कार्यक्रम अपन गांव मा रखिस ।ये कार्यक्रम मा मंदरा जी दाऊ जी हा चिकारा बजाइस ।ये कार्यक्रम ले खुश होके दाऊ जी हा सुकलू

अउ नोहर मानिकपुरी ला शामिल करके रवेली नाचा पार्टी के ऐतिहासिक गठन करिस ।अब खड़े साज के जगह सबो वादक कलाकार बइठ के बाजा बजाय लागिस ।

सन् 1933-34 मा मंदराजी दाऊ अपन मौसा टीकमनाथ साव ( लोक संगीतकार स्व. खुमाम साव के पिताजी )अउ अपन मामा नीलकंठ साहू के संग हारमोनियम खरीदे बर कलकत्ता गिस ।ये समय वोमन 8 दिन टाटानगर मा  घलो रुके रिहिस ।इही 8 दिन मा ये तीनों टाटानगर के एक हारमोनियम वादक ले हारमोनियम बजाय ला सिखिस ।बाद मा अपन मिहनत ले दाऊजी हा हारमोनियम बजाय मा बने पारंगत होगे । अब नाचा मा चिकारा के जगह हारमोनियम बजे ला लगिस ।सन् 1939-40 तक रवेली नाचा दल हमर छत्तीसगढ़ के सबले प्रसिद्ध दल बन गे रिहिस ।

   सन् 1941-42 तक कुरुद (राजिम) मा एक बढ़िया नाचा दल गठित होगे रिहिस ।ये मंडली मा बिसाहू राम (लालू राम) साहू जइसे गजब के परी नर्तक रिहिस । 1943-44 मा लालू राम साहू हा कुरुद पार्टी ला छोड़के रवेली नाचा पार्टी मा शामिल होगे ।इही साल हारमोनियम वादक अउ लोक संगीतकार खुमान साव जी 14 बरस के उमर मा मंदराजी दाऊ के नाचा दल ले जुड़गे ।खुमान जी हा वोकर मौसी के बेटा रिहिस ।इही साल गजब के गम्तिहा कलाकार मदन निषाद (गुंगेरी नवागांव) पुसूराम यादव अउ जगन्नाथ निर्मलकर मन घलो दाऊजी के दल मा आगे ।अब ये प्रकार ले अब रवेली नाचा दल हा लालू राम साहू, मदन लाल निषाद, खुमान लाल साव, नोहर दास मानिकपुरी, पंचराम देवदास, जगन्नाथ निर्मलकर, गोविन्द निर्मलकर, रुप राम साहू, गुलाब चन्द जैन, श्रीमती फिदा मरकाम, श्रीमती माला मरकाम जइसे नाचा के बड़का कलाकार मन ले सजगे ।

   नाचा के माध्यम ले दाऊ मंदराजी हा समाज मा फइले बुराई छुआछूत, बाल बिहाव के विरुद्ध लड़ाई लड़िस अउ लोगन मन ला जागरुक करे के काम करिस ।नाचा प्रदर्शन के समय कलाकार मन हा जोश मा आके अंग्रेज सरकार के विरोध मा संवाद घलो बोलके देश प्रेम के परिचय देवय ।अइसने आमदी (दुर्ग) मा मंदराजी के नाचा कार्यक्रम ला रोके बर अंग्रेज सरकार के पुलिस पहुंच गे रिहिस । वोहर मेहतरीन, पोंगा पंडित गम्मत के माध्यम ले छुअाछूत दूर करे के उदिम, ईरानी गम्मत मा हिन्दू मुसलमान मा एकता स्थापित करे के प्रयास, बुढ़वा बिहाव के माध्यम ले बाल बिहाव अउ बेमेल बिहाव ला रोकना, अउ मरानिन गम्मत के माध्यम ले देवर अउ भौजी के पवित्र रिश्ता के रुप मा सामने लाके समाज मा जन जागृति फैलाय के काम करिस ।

1940 से 1952 तक तक रवेली नाचा दल के भारी धूम रिहिस ।


 सन् 1952 मा फरवरी मा मंड़ई के अवसर मा पिनकापार (बालोद )वाले दाऊ रामचंद्र देशमुख हा रवेली अउ रिंगनी नाचा दल के प्रमुख कलाकार मन ला नाचा कार्यक्रम बर नेवता दिस । पर ये दूनो दल के संचालक नइ रिहिस । अइसने 1953 मा घलो होइस ।ये सब परिस्थिति मा रवेली अउ रिंगनी (भिलाई) हा एके मा शामिल (विलय) होगे ।एकर संचालक लालू राम साहू बनिस ।मंदराजी दाऊ येमा सिरिफ वादक कलाकार के रुप मा शामिल करे गिस । अउ इन्चे ले रवेली अउ रिंगनी दल के किस्मत खराब होय लगिस ।रवेली अउ रिंगनी के सब बने बने कलाकार दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा संचालित छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल मा शामिल होगे ।पर कुछ समय बाद ही छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल के कार्यक्रम सप्रे स्कूल रायपुर मा होत रिहिस।ये कार्यक्रम हा गजब सफल होइस ।ये कार्यक्रम ला देखे बर प्रसिद्ध रंगककर्मी हबीब तनवीर हा आय रिहिस ।वोहर उदिम करके रिंगनी रवेली के कलाकार लालू राम साहू, मदन लाल निषाद, ठाकुर राम, बापू दास, भुलऊ राम, शिवदयाल मन ला नया थियेटर दिल्ली मा शामिल कर लिस ।ये कलाकार मन हा दुनिया भर मा अपन अभिनय ले नाम घलो कमाइस अउ छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य नाचा के सोर बगराइस । पर इंकर मन के जमगरहा नेंव रवेली अउ रिंगनी दल मा बने रिहिस ।

  एती मंदरा जी दाऊ के घर भाई बंटवारा होगे ।वोहर अब्बड़ संपन्न रिहिस ।वोहर अपन संपत्ति ला नाचा अउ नाचा के कलाकार मन के आव भगत मा सिरा दिस ।दाऊ जी हा अपन कलाकारी के सउक ला पूरा करे के संग छोटे छोटे नाचा पार्टी मा जाय के शुरु कर दिस । धन दउलत कम होय के बाद संगी साथी मन घलो छूटत गिस । वोकर दूसर गांव बागनदी के जमींदारी हा घलो छिनागे ।स्वाभिमानी मंदरा जी कोनो ले कुछ नइ काहय ।


मंदराजी दाऊ ला नाचा मा वोकर अमूल्य योगदान खातिर  जीवन के आखिरी समय मा भिलाई स्पात संयंत्र के सामुदायिक विकास विभाग द्वारा मई 1984 मा सम्मानित करिस । अंदर ले टूट चुके दाऊ जी सम्मान पाके भाव विभोर होगे ।

 सम्मानित होय के बाद सितंबर 1984 मा अपन दूसर गांव बागनदी के नवापारा मा पंडवानी कार्यक्रम मा गिस । इहां वोकर तबियत खराब होगे ।वोला रवेली लाय गिस । 24 सितंबर 1984 मा नाचा के ये पुजारी हा अपन नश्वर शरीर ला छोड़के सरग चल दिस ।

स्व. मंदरा जी दाऊ हा एक गीत गावय - "


 दौलत तो कमाती है दुनिया पर नाम कमाना मुश्किल है ".दाऊ जी हा अपन दउलत गंवा के नांव कमाइस ।

 मंदराजी के जन्म दिवस 1 अप्रैल के दिन हर साल 1993 से लगातार मंदरा जी महोत्सव आयोजित करे जाथे ।1992 मा ये कार्यक्रम हा कन्हारपुरी मा होय रिहिस ।जन्मभूमि रवेली के संगे संग कन्हारपुरी मा घलो मंदराजी दाऊ के मूर्ति स्थापित करे गेहे ।वोकर सम्मान मा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लोक कला के क्षेत्र मा उल्लेखीन काम करइया लोक कलाकार ला हर साल राज्योत्सव मा मंदराजी सम्मान ले सम्मानित करे जाथे ।नाचा के अइसन महान कलाकार ला आज 36 वीं पुण्यतिथि के बेरा मा कोटि कोटि नमन हे। विनम्र श्रद्धांजलि।


    🙏🙏🙏💐💐💐

          

                      ओमप्रकाश साहू" अंकुर "

कार्यालयीन अउ निजी प्रतिष्ठान के व्यवहार म छत्तीसगढ़ी अनुवाद के उपयोगिता :एक विमर्श*

 *कार्यालयीन अउ निजी प्रतिष्ठान के व्यवहार म छत्तीसगढ़ी अनुवाद के उपयोगिता :एक विमर्श* 

      पोखन लाल जायसवाल


       आज कार्यालय चाहे सरकारी होय त प्राइवेट कंपनी मन के कार्यालय होय। कार्यालय म बूता करैया सबो मनखे कम पढ़े लिखे नइ राहै। आज शिक्षा के महत्तम सबो जानथें। इही पाय के सब बड़े बड़े डिग्री धारी मिलथे। चपरासी अउ गार्ड के नौकरी बर घलो बड़े डिग्री धरे बेरोजगार मन आवेदन करथें। सरकारी नौकरी के आस लगाय बहुतेच पढ़ लिख डारथें। बाढ़े अबादी म सबो ल सरकारिच नौकरी मिलही जरूरी नइ हे। तब पढ़े लिखे के मुताबिक नौकरी रहै चाहे मत रहै, बेरोजगारी के धब्बा मिट जै कही, जेन मिल जथे उही ल करे पड़थे। सरकारी होय त प्राइवेट। सुपरवाइजर होय ते चपरासी। *पेट के नाँव जग जीता, बिहनिया खाय संझा रीता।* इही किसम ले कार्यालय मन म सबो किसम के मनखे मिलथे। आने आने प्रदेश के मनखे घलो मिलथे। बूता करत सब आपस म अतेक घुल मिल जथे कि आपस म गोठबात अपन महतारी भाषा म ही होथें। आन प्रदेश के मन इहाँ रहना हवै कही, बाजार-हाट, मेल-जोल करत जरूरत के मुताबिक भाषा सीखीच लेथें। *कार्यालय के मनखे  आपस म छत्तीसगढ़ी म गोठबात जरूर करथे। फेर जइसे कोनो बाहरी मनखे आफीस म आथे, उँखर टेस बाढ़ जथे।* कोनो कोनो मेर देखे मिलथे, कि कम पढ़े  लिखे हमरे गँवई गाँव के भाई मन न हिंदी म, न बरोबर अँग्रेजी अउ न तो छत्तीसगढ़ीच म गोठियाय। सबो मिला के हमेरी झाड़थे। जब आने प्रदेश के मनखे हमर संग हमर भाषा म गोठियाय तियार हे, त हम हमरे भाई मेर अपन महतारी भाषा म काबर नइ गोठियान। अइसन करे ले हमरे नुकसान हे, काबर नइ समझ पान। हम कोन ल का बताना चाहथन समझ नइ आय। कतको बड़े अधिकारी मन जउन बाहरी रहिथे, वहू आम आदमी ले उँखर भाषा म गोठ-बात अउ सवाल-जुवाब करथे। हीन भावना छोड़े ले कार्यालय छत्तीसगढ़ी बोले जा सकत हे अउ गाँव के मनखे कहूँ अधिकारी ले छत्तीसगढ़ी म गोठियात हवै त ऊँखर अनुवाद कर साहब ले बात रखन, अउ साहब के बात ल छत्तीसगढ़ी म रखन। अइसे भी हिंदी भाषी होय ले छत्तीसगढ़ी समझे म दिक्कत नइ होय। आने भाषी अधिकारी मन दूभाषिया रखबे करथें। उँखर सेकेटरी ए काम ल कर लेथें। 

       कार्यालय जइसे ही निजी प्रतिष्ठान के बात करिन। प्रतिष्ठान म बड़े बड़े होटल, कपड़ा दूकान, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के दूकान, माल, मेडिकल जइसे सँस्थान आथे। कोनो भी प्रतिष्ठान मालिक के व्यवहार ले चलथे। व्यवहार अउ आपसी संबंध संवाद ले मजबूत होथे। संवाद बर एके भाषा भाषी होना भी जरूरी होथे। लेकिन ए हरदम संभव नइ होय। जब प्रतिष्ठान के मालिक ग्राहक ले आने भाषा भाषी होथें, तब ग्राहक खुश करे, उँखर भाषा सीखे म मालिक संकोच नी करँय।  सरलग संपर्क म रहे ले उँखर ले मधुर संबंध राखे के उदीम करथे। अपन कर्मचारी मन ले मधुर संबंध उँखर भाषा म ही बनाय जा सकथे। अपन पेट भरे बर जगह के मुताबिक भाषा सीखना जरूरी आय, मानना चाही। पर्यटन के नाँव ले घुमैया आने प्रदेश के मन पर्यटन स्थल म दूकानदारी करे गाइड के सहारा लेथें। गाइड के भरोसा दुनियाभर ल घूमे जासकत हे। एक गाइड पर्यटन स्थल के पूरा जानकारी संबंधित ल उँखर भाषा म बता पाथे, तभे ओखर महत्ता हे। छत्तीसगढ़ म घलो कतको पर्यटन स्थल हे जिहाँ देश के आने प्रदेश के पर्यटक मन के संगेसंग विदेशी पर्यटक आथे।

        भाषा संवाद के साधन हरे, विचार विनिमय के  माध्यम हरे त जरूरत परे ले दूभाषिया(अनुवादक) अउ अनुवाद के जरूरत ल नकारे नइ जा सके। ए दृष्टि ले कहँव त कार्यालयीन अउ निजी प्रतिष्ठान के व्यवहार म छत्तीसगढ़ी अनुवाद के उपयोगिता सरलग बने रही।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी

Tuesday 22 September 2020

छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता-एक विमर्श*

  सरला शर्मा: छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के आवश्यकता

अनुवाद हर दू भाषा के संगे संग दू संस्कृति के बीच पुल के होथे । अंग्रेजी के शब्द ट्रांसलेशन अउ हिंदी के अनुवाद मं रंचक फ़र्क होथे । 

अनुवाद बर भाषिक संरचना , विषयवस्तु के तथ्यात्मक ज्ञान के संग शिल्प विधान उपर ध्यान देना जरूरी होथे । मौलिक लेखन मं साहित्यकार के स्वतंत्र विचार , चिंतन - मनन के दर्शन होथे त अनुवाद मं एकर कमी दिखथे काबर के मूल लेखक के मन्तव्य ल जस के तस पाठक तक अनुवाद के भाषा मं पहुंचाना जरूरी होथे । 

 अनुवाद हर विशुद्ध कला नोहय काबर के एमा तकनीकी पक्ष उपर जादा ध्यान देहे जाथे , इही पाय के कभू कभू अनुवाद हर भावहीन असन लागथे । जेन अनुवाद मं  कला ( शिल्प विधान ) संग विज्ञान ( तर्क संगत तकनीक ) दूनों के बरोबर उपयोग करे जाथे उही हर श्रेष्ठ अनुवाद कहे जाथे । प्रो . जी . गोपीनाथन " अनुवाद समकालीन जीवन की अभिव्यक्ति है । " 

 यूरोपीय ( पाश्चात्य ) साहित्य मं अनुवाद के तीन सीमा पहिली भाषा परक दूसर सामाजिक सांस्कृतिक तीसर पाठ परक सीमा ...। फेर कोनो भी क्षेत्र या अंचल के लोगन के सहज , आचरण , बोली -  बानी के अनुवाद बर पर्यायवाची शब्द मिलना कठिन होथे जइसे हमन मथानी लिखबो त अंग्रेजी अनुवाद करत समय कोन पर्यायवाची या समानार्थी शब्द के प्रयोग करबो ? 

थोरकुन अनुवाद के जुन्ना रूप डहर देखिन त देखबो के जब अंग्रेजी भाषा के जनम होइस त लेटिन अउ फ्रेंच के कई ठन रचना मन के अनुवाद होइस , अपन भाषा के बढ़ोतरी बर उनमन चीनी , रशियन भाषा के किताब मन के भी अनुवाद करिन । जरूरत हर भी अनुवाद कराथे इही देखव न बाइबिल के अनुवाद संसार के कई ठन भाषा मं होये हे । साहित्य मं मैक्सिम गोर्की के किताब " मदर " अउ टॉलस्टाय के किताब " वॉर  एंड पीस " के अनुवाद आप मन भी पढ़े च होहव । अब सुरता करिन भारतीय किताब मन के त दारा शिकोह हर उपनिषद के अनुवाद फ़ारसी मं करे रहिन , विद्वान गेटे , मैक्समूलर मन संस्कृत के कई ठन किताब  जइसे कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम् आदि के अनुवाद करे हंवय ...। नोबल पुरस्कार पाये किताब  रवींद्र नाथ ठाकुर के लिखे " गीतांजलि " घलाय हर तो अनुवाद आय । 

कालिदास के मेघदूतम् के छत्तीसगढ़ी अनुवाद छायावाद के संस्थापक मुकुटधर पांडेय करे हंवय । आप सबो झन रवींद्र नाथ ठाकुर अउ शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ल उनमन के किताब के हिंदी अनुवाद पढ़ के ही तो जानथव न ? 

    अनुवाद के भारतीय पद्धति के तीन विशेषता मुकुटधर पांडेय बताये हें ...

पहिली ...भावानुवाद ....जेमा मूल किताब के भाव ल जस के तस रख के अनुवादक अपन शिल्प विधान के अनुसार अनुवाद करथे । 

दूसर .... छायानुवाद ....अनुवादक मूल विषय के छांव ल नई छोड़य फेर अनुवाद के भाषा के शब्द विधान उपर ध्यान देते , वाक्य विन्यास भी आंचलिक से प्रभावित रहिथे । 

तीसर .... शब्दानुवाद ...एहर चिटिक सरल होथे काबर के शिल्प अउ तकनीक उपर ध्यान देना जरूरी नई होवय इही ल ट्रांसलेशन कहि सकत हन । 

    एक जरुरी बात के अनुवाद के उपयोगिता आज के समय मं काबर बढ़ गये हे ...। 

पहिली बात के भारत जइसे बहुभाषी , विविध संस्कृति वाला देश मं लोगन एक दूसर के संस्कृति , साहित्य ल जाने , समझे , पढ़े पाहीं , राष्ट्रीय एकता मजबूत होही । 

दूसर विज्ञान के परसादे आवागमन के सुविधा तो आजकल बढ़ी गए हे पूरा संसार हांथ मं रखे जिनिस असन हो गए हे त अनुवादे हर तो आने आने देश के शिक्षा , राजनीति , व्यापार , सभ्यता , संस्कृति , साहित्य के जानकारी हमन ल देही ,एकरे बर अनुवाद बहुमुखी प्रयोजनकारी विधा के रूप मं प्रतिष्ठित होये हे । 

  अनुवाद हमर आघू मं दू रूप मं आये हे पहिली आने भाषा के रचना मन के छत्तीसगढ़ी भाषा मं अनुवाद । दूसर छत्तीसगढ़ी रचना मन के आने भाषा मं अनुवाद ...। संगवारी मन ! आप मन अनुवाद के कोनो भी रूप ल अपनावव भरही तो छत्तीसगढ़ी के साहित्य भंडार ही न ?  

विविध भाषा के जानकार गुनी -  मानी , बुधियार साहित्यकार मन से बिनती हे उनमन अनुवाद उपर ध्यान देवयं ...।

  सरला शर्मा

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जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता


            सरी जगत म विविधता भरे पड़े हे, सबे चीज म विविधता हे, वइसने भाषा म घलो देखे बर मिलथे। विश्व के सबे मनखे अपन देशकाल, वातावरण या फेर चलन- चलागन के हिसाब ले भाँखा ल सीखथे। सबे मनखे बहुभाषी होय, यहू सम्भव नइहे। त फेर एक दूसर के ज्ञान-विज्ञान,साहित्य अउ संस्कृति ल जाने पर हमला जरूरत पड़थे अनुवादक के या अनुवाद के। मनखे मन अपन चेत ल बढ़ात अपन प्राथमिक भाषा के साथ साथ कतको किसम के भाषा घलो जाने बर लग गेहे। फेर सबके बस म घलो नइहे।अनुवाद के प्रक्रिया बनेच जुन्ना हे। मनखे मन अपन सुविधा बर समझ से परे विषय-वस्तु के अनुवाद कोनो जानकार ले करा के , खुद संग अउ जमे जनमानस ल ओखर से परिचित कराथे, इही अनुवाद के ख़ासियत आय। अनुवादक के भूमिका घलो चुनोती ले भरे रहिथे, काबर की भाव म यदि बिखराव होगे तभो वो साहित्य या विषय वस्तु के महत्ता समाप्त होय बर धर लेथे। अनुवादक दूनो भाँषा(जेन भाषा म अनुवाद करना हे, अउ जेन भाषा के अनुवाद करना हे) के खाँटी जानकार होथे, तभे अनुवाद प्रभावशाली अउ जस के तस मनखे मन के अन्तस् म विचरण करथे। अनुवाद तो आवश्यकता पड़े म होबेच करथे, फेर पहली ले दू चार भाषा म अनुवाद होय ले वो विषय वस्तु, फ़िल्म या साहित्य के माँग बढ़ जथे। आजकल सिनेमा जगत ल ही देख लव, कोई भी पिक्चर के दू ले जादा भाषा म डबिंग होके, आवत हे येखर कारण ओखर माँग घलो बढ़ जावत हे।

              छत्तीसगढ़ी साहित्य-संस्कृति  घलो बड़ पोठ हे, फेर आन राज ल छोड़ दी, हमरे राज म कतको झन छत्तीसगढ़ी भाँखा नइ जाने, येखर संगे संग हमर भाँखा के साहित्य संस्कृति ल आन तक पहुँचाये बर छत्तीसगढ़ी साहित्य के आन आन प्रचलित भाषा म अनुवाद घलो जरूरी हे। *अनुवाद अपन साहित्य ल आन ल जनवाये बर जतके उपयोगी हे, ओतके उपयोग आन साहित्य ल जाने बर घलो हे, कहे के मतलब अनुवाद दोनों माध्यम म जरूरी हे, जाने बर अउ जनवाये बर घलो।* कतको झन के विचार घलो आथे कि हिंदी जनइय्या मन छत्तीसगढ़ी पढ़ डरथे अउ छत्तीसगढ़ी बोलइया मन हिंदी त ये दुनो भाषा म अनुवाद के कोनो जरूरत नइहे। फेर मोर विचार म सही अउ गलत दूनो हो सकत हे, काबर कि कई साहित्यकार मन अपन अपन साहित्यिक भाषा के प्रयोग करथे जेला बगैर अनुवाद के समझ पाना मुश्किल होथे, माने हिंदी(विशुद्ध) के घलो हिंदी(सरल) म अनुवाद  के जरूरत पड़थे। वइसने छत्तीसगढ़ी म घलो कई लेखक कवि मनके ठेठ भाषा सहज  समझ नइ आय, एखरो सरलीकरण के आवश्यकता पड़थे। अब अइसन स्थिति म तो अनुवाद जरुरिच हो जथे। चाहे हिंदी, होय छत्तीसगढ़ी होय या फेर कोनो आन भाषा के साहित्य अनुवाद आज के माँग आय, लोगन तक सरल सहज रूप से पहुँचे बर।

           वइसे देखा जाय त हम छत्तीसगढिया मन लगभग हिंदी ल समझ जथन फेर हमर छत्तीसगढ़ी ल आन मन नइ समझ पाय, त येखर बर छत्तीसगढ़ी के हिंदी म अनुवाद जरूरी हे। अउ कोई भी भाषा साहित्य के जतके भाषा म अनुवाद होथे वो साहित्य के माँग वोतके बढ़ जथे। चाहे रामायण महाकाव्य होय चाहे विष्णुशर्मा के पंचतन्त्र होय , हमर आघू म उदाहरण स्वरूप जगर मगर करत हे। कई दफा अइसनो होथे, जेला उही भाषा म पढ़े के चुलुक रथे, एखर बर वो भाषा ल पढ़े लिखे ल लगथे, एखर उदाहरण देवकीनंदन खत्री के चन्द्रकान्ता उपन्यास हे। जेखर विशालता ल देखत पाठक मन अनुवाद के अपेक्षा करे बगैर हिंदी ल सीखिन अउ वो उपन्यास ल पढ़िन, आज भले चंद्रकांत के कई भाषा म अनुवाद हो चुके होही, फेर जब ये उन्यास लिखाइस तब हिंदी के पाठक घलो बड़ बाढ़िस। हिंदी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद अउ छत्तीसगढ़ी के हिंदी अनुवाद कस अंग्रेजी, बांग्ला, तेलगु, तमिल अउ आदि कतको भाषा म अनुवाद होना चाही। तभे छत्तीसगढी भाखा साहित्य चारो मुड़ा बगरही। येखर बर बहुभाषी व्यक्तिव के कलमकार मन ल आघू आना चाहिए, काबर की ये हमर साहित्यिक अउ सांस्कृतिक महत्ता बर उपयोगी साबित होही। हिंदी के छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी के हिंदी दूनो भाषा म अनुवाद लगभग नही के बरोबर हे, त इंग्लिश या कोनो आन भाषा म अनुवाद के बारे म का कही। अनुवाद समय के माँग आय, येमा घलो आज काम करे के आवश्यकता हे। अउ हमर साहित्कार संगी मन करत घलो हे, येखर बर ओमन बधाई के पात्र हे।

                 *अब एक प्रश्न मन म आथे कि, का अनुवादक होय बर साहित्यकार होना जरूरी हे? एक साहित्यकार एक अच्छा अनुवादक हो सकथे, पर एक अनुवादक गीत कविता या कहानी लिखे म घलो महारत हो ये आवश्यक नइहे। पर अनुवादक होय बर भाषा के साथ साथ साहित्य के ज्ञान घलो जरुरी हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

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 *छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता  : एक विमर्श*

    पोखन लाल जायसवाल

     कोनो भी देश प्रदेश अउ क्षेत्र के अपन एक निश्चित भाषा होथे। जेकर ले वो क्षेत्र के लोकजीवन अपन विचार व्यापार करथें। दुनिया ह कतको देश म बँटे हे। देश प्रदेश मन म बँटे हे। प्रदेश हर प्राकृतिक रूप ले कई खंड म बँटे हवै, जिहाँ बहुते विविधता पाय जाथे। सबके अपन एक भाषा हे। राज काज करे खातिर देश प्रदेश के भाषा शासन स्तर ले तय करे जाथे। लोकजीवन के भाषा उँखर अपन विचार विनिमय के होथे। जेन म क्षेत्र के साँस्कृतिक, सामाजिक आर्थिक, धार्मिक अउ राजनैतिक विचार के व्यापार सरलग चलथे। मनखे अपन सोच ले विकास के रस्ता गढ़थे। अपन स्तर ल उठाय उड़ान भरथे। अपन लक्ष्य ल पाय बर जरूरत के मुताबिक यात्रा घलो करथे। ए यात्रा म कभू कभू क्षेत्र अउ देश प्रदेश बदल जथे। अइसन होय ले भाषा घलुक बदल जथे। तब मनखे ल विचार व्यापार करे म दिक्कत होथे। ए दिक्कत ल दूर करे अइसन मनखे के जरूरत पड़थे जे दूनो के विचार ल समझै अउ एक दूसर ल बता सकै। ए ला दूभाषिया कहे जाथे। कहे के मतलब संसार म अइसन कतको आदमी होथें, जे कई ठन भाषा के बने जानकार होथें। इही दूभाषिया ल अनुवादक कहे जाथे। ए ढंग ले कहे जाय त *अनुवाद एक भाषा के विचार ल दूसर भाषा म व्यक्त करे के प्रक्रिया आय।*

एक विचारक न्यूमार्क के मुताबिक-- *"अनुवाद एक ऐसा शिल्प है जिसमें एक भाषा के व्यक्त संदेश के स्थान पर दूसरी भाषा में उसी संदेश को व्यक्त किया जाता है।"*

      छत्तीसगढ़ के कतको जगा ले इहाँ के गरीब परिवार जीविका बर कमाय खाय आने आने प्रदेश जाथे। वइसने आने आने प्रदेश के मनखे इहों आथे। सब एक दूसर ले संवाद कर लेथे। पहिली बार जाय आय बर चिन्हार लेके आथें जाथें। ते पाय के जादा समस्या नइ झेले लागै। 

        अनुवादक के मौलिक विचार इहाँ काम नइ आय। अनुवाद तो एक भाषा के गोठ ल दूसर भाषा म बदलना आय। अइसन म अनुवादक ल वो दूनो भाषा के जानकार होना जरूरी आय, जउन दू भाषा म संवाद स्थापित करे के जरूरत हे।

 *अनुवाद के आवश्यकता अउ क्षेत्र* 

      एक भाषा ले दूसर भाषा म अनुवाद के आवश्यकता अउ क्षेत्र के बात करिन त ए क्षेत्र बहुत हें। दू अलग अलग क्षेत्र के सँस्कृति के अध्ययन, सभ्यता के विकास यात्रा अउ पर्यटन के जानकारी, राजनीतिक यात्रा म वार्ता जइसे कई क्षेत्र म  अनुवादक के भूमिका बढ़ जाथे। एक बने अनुवादक ही सही सही जानकारी प्रस्तुत कर पाही। अनुवादक ल जरूरत के मुताबिक ही भाव अनुवाद, शब्द अनुवाद, अर्थ अनुवाद अउ सार अनुवाद करना होथे। कहाँ कोन अनुवाद करना हे एकर जानकारी भी अनुवादक ल होना चाही।

      अनुवाद ले संबंधित भाषा के बीच अंतर संबंध स्थापित होथे अउ  शब्द भंडार म वृद्धि होथे।

*अनुवाद काकर हो*

        तत्कालिक संवाद के अनुवाद ल छोड़ अउ काकर अनुवाद हो अउ करे जाय? यहू ल धियान रखे के जरूरत हे। नइ तो अनुवाद के पूरा मेहनत अउ समय बेकार हो जही। गाँव गाँव म रामायण के आयोजन अउ राम लीला, कृष्ण लीला के आयोजन ल लन, ए मनोरंजन के संग धार्मिक, सामाजिक अउ साँस्कृतिक  एकता के संगम राहय। हाँ पाठ के छत्तीसगढ़ी अनुवाद सुने मिलै या मिलथे। कहे के मतलब हे समाज हित म अनुवाद जरूरी हे। समाज ले जुड़े अनुवाद रही तभे अनुवाद के आनंद उठइया मिल पाही।

*कइसन साहित्य के अनुवाद जरूरी*

       साहित्य अपन समय के समाज के जीवंत चित्र प्रस्तुत करथे। लिखित दस्तावेज होथे। साहित्य ले समाज म जागरूकता लाए जा सकै, अइसन साहित्य के अनुवाद होना चाही। जेन साहित्य के चर्चा जादा जगा हे, वइसन साहित्य हमर भाषा म भी उपलब्ध हो सकै, एकर बर अनुवाद होना चाही।जेकर ले वो किसम साहित्य साहित्यकार ल पढ़े बर मिलैं, अउ वो लिखे के उदीम करैं। समाज म मनखे के चारित्रिक निर्माण ल लेके साहित्य सृजन या अनुवाद भी जरूरी हे। ए तो होइस आने भाषा ले अपन भाषा म अनुवाद के। छत्तीसगढ़ी के कतको रचना हे, जेकर आने भाषा म अनुवाद ले छ्त्तीसगढ़ी साहित्य ल मान मिलही। पहिचान मिलही।  पुरखा मन के रचे साहित्य के चर्चा जब हमीं नइ करबो त हमर साहित्य के जानकारी कोन ल मिल पाही। अउ आने भाषा म लिखाय बने रचना के छत्तीसगढ़ी अनुवाद हे त ओकर चर्चा भी जरूरी हे।

        आज रेडियो अउ टीवी म साहित्यिक क्षेत्र के अनुवाद ले नौकरी भी हासिल करे जा सकत हे।जिहाँ नाटक के रूप म कहानी अउ उपन्यास के नाट्यानुवाद सुने मिलथे।

     एक साहित्य अनुवादक एक अच्छा पाठक, भाषा ज्ञानी अउ साहित्य के मर्मज्ञ होथे। वोकर साहित्यकार होना नइ होना मायने नी रखै। अनुवादक ल मालूम रहिथे कि वोकर गिनती कभू साहित्यकार के रूप म नइ होय। काबर कि लिखाय जिनीस ल वो हर दुबारा लिखथे। याने नकल करथे।  जे एक भाषा ले दूसर भाषा म लिखे के नकल होथे। जे नकल ल साहित्य क्षेत्र म नवा नाम दे गे हे अनुवाद। अनुवाद बहुत सरल नइ हे त कठिन नइ हे, फेर मूल लेखक के लिखे भाव भूमि म पहुँच के लिखे ले ही अनुवाद ल सफल माने जाथे।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी

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छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता-एक विमर्श*


मूर्धन्य आचार्य मन मोटी मोटा 16 ठन कला बताय हें। एला अउ फइला दे जाथे त 64 ठन कला हो जाथे। ए कला मन म चित्र कला, नृत्यकला, संगीतकला, स्थापत्य कला , *लेखन कला(काव्य कला)* --आदि शामिल हें।

        काव्यकला ह मौखिक या लिखित ढंग ले दू रूप म पद्य नहीं ते गद्य रूप म दिखथे। ये काव्यकला ह बहुत कस विधा म दिखथे जइसे--महाकाव्य, खण्डकाव्य ,चम्पू काव्य, कहानी , उपन्यास नाटक, एकांकी,निबंध, आत्मकथा,जीवनी, *अनुवाद* आदि।

      ए विधा मन म कोनो बहुते पुराना त कोनो नवाँ नवाँ हें। कोनो विधा अबड़ेच प्रसिद्ध हे त कोनो ह अपन सहीं मान सम्मान के बेरा जोहत हें।

  जहाँ तक *अनुवाद विधा* के बात करन जेला आजकल विद्वान मन *अनुवाद शिल्प , अनुवाद विज्ञान* तको कहिथें कोनो न कोनो रूप म पुराना विधा आय तो फेर लेखन कला वाले मन वोला जादा नइ अपनाइन। अनुवाद ल बने पौष्टिक आहार नइ मिलिच तेकर सेती  बनेच *दुब्बर-पातर* होगे।

दुब्बर पातर भले हे फेर जइसे सेतू बनाये म नानचुक गिलहरी के योगदान बड़े हे ओइसने *साहित्य के भंडार भरे म, ज्ञान के अँजोर बगराये म* अनुवाद विधा कमतर नइये।

        *छत्तीसगढ़ी साहित्य म अनुवाद विधा के का स्थिति हे ,वोकर योगदान कतका हे ,अउ छत्तीसगढ़ी भाखा म अनुवाद करे बर का उदिम चलत हे तेला जाने समझे के पहिली अनुवाद के काया माया ल समझना जरूरी लागत हे।*


*अनुवाद आय का*---अनुवाद म वाद हाबय । वाद ह संस्कृत के *वद* धातु  ले बने हे जेकर मत होइच *बोलना*।एमा *अनु* उपसर्ग लगगे त अर्थ होगे  आन बोलिच तेला कोनो आन भाषा म बोलना।जेन ल *दूभाषिया* कहिथन तेन मन इही काम करथें।

    अनुवाद ह बोलइ तक सिमित नइये ।त एला अइसे भी कहि सकथन कि *आन भाषा म बोले या लिखे ल आन भाषा म बोलना या लिखना अनुवाद आय।*

      अनुवाद ल हिंदी म *उल्थी* तको कहिंथे जेकर मतलब उलटना होथे।

*शब्दार्थ चिंतामणि ग्रंथ* म उल्लेख हे--- *प्राप्तस्य पुनः कथने$नुवाद:।* मतलब ककरो कहे/लिखे ल दुबारा आन भाषा म कहना/लिखना अनुवाद आय।


*जैमिनी न्यायमाला* ग्रंथ ह कहिथे-- *ज्ञातस्य कथनंनुवाद:।* पहिली ले मालूम हे तेला फेर (आन भाषा म) कहना/लिखना अनुवाद आय।


*अनुवाद के जरूरत काबर*-- अनुवाद के जरूरत दू कारण ले हे ---

1स्वरूचि---अपन ज्ञान ल बढ़ाय बर।स्वांत:सुखाय(खुशी)बर। 

आधुनिक काल के प्रसिद्ध अनुवादक, जेला कई विद्वान आधुनिक काल के पहिली अनुवादक मानथे- *रोम के दार्शनिक सिसरो* ह कहे हे--अपन वकृत्वकता( अभिव्यक्ति क्षमता) ल बढ़ाये बर ग्रीक भाषा के लैटिन भाषा म अनुवाद करे हँव।


2 सामाजिक आवश्यकता---अनुवाद करे के ये मुख्य जरूरत आय। आन भाषा मन के ज्ञान ल, साहित्य ल आन भाषा म समझे बर अनुवाद जरूरी हे।

       आजकल पढ़े लिखे बर, रोजी मजदूरी बर ,व्यापार बर एक जगा ले दूसर जगा ,आय जाय ल परत हे त विचार विनमय बर अनुवाद जरूरी होगे हे।

 आधुनिक युग म विज्ञान, प्रौद्योगिकी के भाषा के पुस्तक मन आन भाषा म हे त वोला समझे बर तको अनुवाद जरूरी हे।

          ओइसने विश्व के निवासी मन के, एक दूसर के संस्कृति ल समझे बर अनुवाद जरूरी हे।


*अनुवाद के प्रकार*-- अनुवाद ल अलग अलग आधार ले के कई प्रकार ले बाँटे गे हे जइसे--

*गद्यानुवाद*--गद्य के गद्य म अनुवाद(भाषा बदल के)

महाकवि नागार्जुन द्वारा मेघदूतम(संस्कृत)के अनुवाद।

*पद्यानुवाद*--पद्य के पद्य म अनुवाद(भाषा बदल के)

मेघदूत, ऋतुसंहार, कुमार संभव,गीतांजलि आदि के कई भाषा म पद्यानुवाद होये हे।

*नाट्यानुवाद*-- संस्कृत भाषा के नाटक मन के या शेक्सपियर के नाटक मन के आन भाषा म नाटक रूप म।

*कथानुवाद*--उपन्यास या कहानी मन के अनुवाद।

आधुनिक युग म कहानी के पिता *मोपासाँ* अउ कथा सम्राट *मुंशी प्रेमचंद जी* के कहानी मन के अनुवाद।

*शब्दानुवाद*---लिपि भर ल बदल के शब्दस: लिख देना। जइसे हिन्दी ल रोमन लिपि म।

ए अनुवाद ह साहित्य के दृष्टि ले ऊँचा नइ माने जाय।

*भावानुवाद*--मूल भाषा(स्रोत भाषा) के कृति म व्यक्त भाव /विचार ल बिना बदले आन भाषा( के वाक्य म ढाल के अनुवाद। एमा शब्द अउ भाव ल ओइसने रखे जाथे।

*छायानुवाद*-- एमा स्रोत भाषा के शब्द, भाव के संग अनुवादक ह मूल वक्ता/लेखक के कल्पना के तीर पहुँचके अपनो कल्पना करत अनुवाद करथे।

*सारानुवाद*--सार सार बात के अनुवाद। समाचार पत्र,छत्तीसगढ़ी म समाचार आदि

*व्याख्यानुवाद*-- ए अनुवाद म मूल स्रोत म व्यक्त विचार ल अनुवादक अपन अनुसार(लक्ष्य भाषा म) समझावत लिखते। कभू कभू अनुवादक के विचार हावी हो जथे।

पं बाल गंगाधर तिलक जी के गीता भास्य एकर उदाहरण रूप म समझे जा सकथे।

*आशु अनुवाद*--तुरते ताही अनुवाद।जइसे दुभाषिया मन करथें।

*आदर्श अनुवाद*--एमा अनुवादक तटस्थ रहिथे।

*रूपांतरणअनुवाद*---भाषा के संगे संग विधा बदल के अनुवाद। जइसे कोनो पद्य कृति ल नाटक म बदल देना।


*अच्छा अनुवाद बर विद्वान मन अनुवादक म ये तरह के गुण बताये हें*--

अच्छा अनुवादक म भाषा ज्ञान(व्याकरण आदि के), विषय ज्ञान, अभिव्यक्ति क्षमता के संग प्रमाणिकता अउ मौलिकता के गुण होना चाही।

 हमर देश म अनुवाद विधा तो हे फेर जादा जोर नइये।अब हैदराबाद के दू ठन केन्द्रीय विश्वविद्यालय म एकर पढ़ाई तको होथे।


*हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी सजोर होवय तेकर बर एमा आन भाषा के कृति मन के अउ आन भाषा के छत्तीसगढ़ी म अनुवाद के बीड़ा उठाये ल परही*।


 *हम तो छत्तीसगढ़ी म जादा अनुवाद पढ़े ,देखे नइ अन फेर लोकाक्षर परिवार के विदुषी दीदी प्रणम्य शकुंतला शर्मा जी के दू अनुवाद कृति पढ़े ल मिले हे।श्री रामनाथ साहू भैया जी,श्री बलराम चंद्राकर जी म बड़े संभावना झलकत हे*।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 चित्रा श्रीवास: *छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता*


"अनेकता मा एकता' हमर भारत देश के सबले बड़े बिशेषता आय।

इहाँ कई ठन भाषा बोले जाथे।एक भाषा के रचना ला दूसर भाषा मा लिखना अनुवाद कहे जाथे।अनुवाद हा संस्कृत  के वद् धातु ले बने हे वद् के अर्थ बोलना  होथे।वद् धातु मा अ प्रत्यय जोड़े ले भाववाचक संज्ञा वाद बनथे जेकर अर्थ होथे बात कहना । वाद मा अनु उपसर्ग जोड़ के अनुवाद शब्द बनथे जेकर  अर्थ होथे कहे बात  ला फेर कहना । मोनियर विलिअम्स हा अंग्रेजी शब्द  ट्रांसलेशन के उपयोग अनुवाद बर करे हे।

        वस्तु अउ बिचार के लेन देन बर अनुवाद सभ्यता के शुरुआत ले होवत रहिस। उपनिषद् काल मा ज्ञान अउ धर्म के संचार बर अनुवाद करे गिस । तुलसीदास के रामचरित मानस के कई भारतीय भाषा मा अनुवाद होइस।

आठवी सदी मा विष्णु शर्मा रचित पंचतंत्र के अरबी फ़ारसी पहलवी अनुवाद होये रहिस । मुगल काल मा दाराशिकोह हा उपनिषद् के अनुवाद करिस।आधुनिक काल मा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी मन 1889 -1907 के बीच मा 14 ठन परसिद्ध रचना के अनुवाद करिन जेमा *शिक्षा* अउ *स्वाधीनता ( 1906 मा हर्बट स्पेन्सर* के रचना *एजुकेशन अउ 1907 मा जॉन स्टुअर्ट मिल*  के *ऑन लिबर्टी के अनुवाद करीन। स्वतंत्रता आंदोलन मा ए दुनो ग्रन्थ के विशेष भूमिका रहिस।आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी अन्सर्ट हैकल के रचना द रिडल्स ऑफ़ यूनिवर्स* के अनुवाद *विश्व प्रपंच* शीर्षक ले करिन।जेन समय मा शुक्ल जी अनुवाद करीन ओ समय हिंदी मा वैज्ञानिक शब्द कोष नइ रहिस ता शुक्ल जी उन शब्द मन बर खुद शब्द मढ़ाइन। *भारतेंदु हरिश्चंद्र जी* महान नाटककार शेक्सपीअर के रचना *मर्चेंट ऑफ़ वेंनिस* के अनुवाद *दुर्लभ बंधु* शीर्षक ले करिन।हमन रवीन्द्र नाथ टैगोर अउ शरतचंद्र के बंगाल अउ उहाँ के संस्कृति ला अनुवाद करे गय पुस्तक ला पढ़ के समझ जाथन।साहित्य समाज के दर पन होथे अउ दरपन मा उही दिखथे जो सही मा रहिथे।

     हमर छत्तीसगढ़ी भाषा मा भी अनुवाद के परंपरा जुन्ना हवे ।पं.मुकुटधर पांडे, दीदी शकुंतला शर्मा जइसे कई विद्वान विदुषी मन ये परंपरा ला आघू बढ़ात हें।कोनो अंग्रेजी रचना के छत्तीसगढ़ी अनुवाद होय हे के नही तेखर जानकारी मोला नइ हे।हा  छत्तीसगढ़़ी रचना के हिंदी चाहे आने भाषा मा अनुवाद के अगोरा हम सबो ला हावय।



चित्रा श्रीवास

बिलासपुर  छत्तीसगढ़

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 बलराम चन्द्राकर : *छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता*

(भावनात्मक पक्ष) 


छत्तीसगढ़ी नेवरिया भाषा कहे जा सकथे। अब तक एला हिंदी के ही एक भाग पूर्वी हिंदी के रूप मा मान के इहाँ के जम्मो निवासी मन ला हिंदीभाषी माने जाय। अनपढ़ अउ पढ़े लिखे दोनों हिंदीभाषी। भले बोले गोठियाय बर आवय - झन आवय।काबर आम बोलचाल के सिवाय तमाम काम पठन-पाठन से लेकर सबो  हिंदी अउ अंग्रेजी मा ही होथे।जब ले छत्तीसगढ़ बने हे अउ छत्तीसगढ़ी राजभाषा के रूप मा प्रतिष्ठित होय हे, तब ले एक रूझान छत्तीसगढ़ी ला भाषा के रूप मा प्रतिष्ठित करे बर दिखत हे।सोशल मिडिया के कारण छत्तीसगढ़ी मा लिखे के चलन गजब बाढ़िस। साहित्य ले जुड़े नवा पीढ़ी आज खूब लिखत हे छत्तीसगढ़ी मा ।साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार मन जिंकर  हिंदी साहित्य अउ भाषा मा घलो बरोबर अधिकार हे,उहू मन मा छत्तीसगढ़ी ला ऊंचाई प्रदान करे बर लगन लगे हे। ये बात शुभ  संकेत देवत हें। आज छत्तीसगढ़ी मा लघुकथा,व्यंग्य, कहानी, उपन्यास, एकांकी से लेके काव्य विधा मा गीत गजल कविता के साथ साथ छंदमय पद्य प्रचुर मात्रा मा लिखे जावत हे।जेकर ले छत्तीसगढ़ी मा भविष्य बर बहुत अकन संभावना के दुवार खुलना अवश्यंभावी दिखत हे। छत्तीसगढ़ मा जन - जन ला शिक्षित अउ भाषायी रूप मा मजबूत करे के प्रयास नवा नोहै। परगट मा काव्योपाध्याय ले शुरू होय ये उदीम ला समय समय मा इहाँ के साहित्य- कला जगत के मनसे मन खाद-पानी देवत अइन तब जा के आज छत्तीसगढ़ के जन भाखा-बोली हा राजभाषा के रूप मा हिंदी के संग सम्मान ले खड़े हो पाइस। 


 फेर अब दूसरा सफर शुरू होगे। छत्तीसगढ़ी ला  लिखे पढ़े के तमाम विधा के लाइक भाषा बनाय के। यहू एक चुनौती ले कम नोहै जबकि छत्तीसगढ़ के पूरा 💯%राजकीय, प्रशासनिक शैक्षणिक विधिक सहित सबो काम अभी हिंदी अउ अंग्रेजी मा होथे। मान्य रूप मा हिन्दी मा । आम आदमी आज भी इहाँ के भाषायी दिक्कत के कारण आधा कोंदा हे। अपन वाजिब बात ला घलो बोले बताय बर अक्षम हो जथे। अपन मन के भाव ला जताय मा हमेशा  कमजोरहा पाथे।ए खातिर क्षेत्रीय भाषा छत्तीसगढ़ी के विकास अपरिहार्य हे। काबर वास्तव मा इही इहाँ के जनभाषा हरे जेन ला सबो आसानी से ब्यवहरित करथे। दिक्कत बाहिर ले आय मनखे मन ले नइ हे, दिक्कत इहें के पढ़े लिखे मन ले हे जेन मन क्षेत्रीय भाषा के विकास के महत्व ला समझे नइ हे।छत्तीसगढ़ी हिंदी संस्कृत के बहुत अकन जटिलता ले मुक्त हे जे हा ए भाषा ला आसान बनाथे। उभयलिंगी भाषा होय के कारण जनता बहुत जल्दी ए भाषा ला समझ सीख के अच्छा से बतियाये ला धर लेथे।छत्तीसगढ़ी के पोठ होय ले छत्तीसगढ़िया के मान सम्मान अउ विकास मा स्वाभाविकता आही। एकर सेती छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार मन उपर घलो पोठ जिम्मेदारी हे।

    नवा- नवा भाषा होय ले ओकर सबो अंग के विकास बर दूसर प्रसिद्ध भाषा अउ साहित्य  के बहुत अकन जिनिस के नकल जरूरी हे; व्याकरण  गद्य, पद्य के साथ साथ तमाम दैनिक व्यवहार बर।अनुवाद एक उत्तम माध्यम आय। विश्व के जम्मो भाषा पोठ बने बर साहित्य के अनुवाद के सहारा ले हे। छत्तीसगढ़ी घलो आज करवट लेवत हे। कल जरूर ये भाषा दौड़त दिखही। जे राज्य के नाव छत्तीसगढ़ लिखागे ता उहां ले छत्तीसगढ़ी जाही तो जाही कहां। हर शासक ला कही न कहीं मजबूरी अउ जरूरी होही एला उपर उठाय के। तब साहित्यकार मन ला दो कदम आगू चले के समय आ गे हे। भाषा के समृद्धि बर अनुवाद एक अनिवार्य उदीम आय। अनुवाद के माध्यम ले  हम छत्तीसगढ़ी ला दुनिया भर के हजारों विषय मा हम लिखित साहित्य दे सकथन। भाषा ला पोठ करे के बढ़िया आधार आय अनुवाद । कभू कभू अनुवाद हा असली ला घलो पछाड़ देथे। ये कलमकार के कुशलता उपर हे। छत्तीसगढ़ी मा अधिक से अधिक अनुवाद आज के जरूरत हरे। बाहिर के साहित्य जब अपन भाषा मा आही त विविधता लाही। हमर भाषा घलो हर दृष्टि ले सक्षम नजर आही तब आम आदमी के साथ साथ सत्ता के घलो रूझान एती बाढ़त जाही। रामनाथ जी तमाम चिकित्सा होम्योपैथी, आयुर्वेदिक, एलोपैथी के छत्तीसगढ़ी मा अनुवाद करके आप ला देखा चुके हे जबकि कुछ कलमकार मन छत्तीसगढ़ी के छमता उपर संदेह करे रिहिन। 

विश्वास करौ छत्तीसगढ़ी पूर्ण सक्षम भाषा ये। जतके भरोसा करहू छत्तीसगढ़ ओतके आपके करीब आवत जाही। भाषायी संदर्भ मा जतके अनुवाद के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी मा अन्य भाषा के साहित्य आही अउ अन्य भाषा मा छत्तीसगढ़ी साहित्य जाही ओतके ज्यादा छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया देश - दुनिया मा स्थापित होही। साथ ही छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन घलो बंगला तमिल उड़िया मराठी गुजराती.... के साहित्यकार मन जइसे नाव कमाही ।आंचलिक प्रवृति ला प्रादेशिक प्रवृति बनाय बर भाषा शास्त्र के सबो गुण ला धारण करबो तभे तो सहीं मायने मा छत्तीसगढ़िया होबो। 

बलराम चंद्राकर भिलाई

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Sunday 20 September 2020

सुरता पुरखा के-बलराम चन्द्राकर

 





सुरता पुरखा के-बलराम चन्द्राकर

छत्तीसगढ़ के दशा दिशा आज ले १२० साल पहिली कइसे रहिस समझना हे तो ये लेख जरूर पढ़ना चाही।) 


*छत्तीसगढ़ - मित्र*


छत्तीसगढ़ ले प्रकाशित पहिली हिंदी मासिक पत्रिका 


प्रकाशन वर्ष :1900

अंक - 1 ला जनवरी


संपादक :

पं रामराव चिंचोलकर

*

पं माधवराव सप्रे


प्रोपराइटर :

श्रीयुत वामन बलिराम लाखे।


वार्षिक मूल्य १।।अग्रिम


पता - पेंढरा, जिला बिलासपुर (सीपी)


विषय प्रवेश :आत्म परिचय


अनुवाद: हिन्दी ले छत्तीसगढ़ी

- बलराम चंद्राकर


प्रिय पढ़ईया साथी हो! लेवौ, अपन परिचय दे बर छत्तीसगढ़ मित्र आपके सेवा मा उपस्थित होय हे।आप ला प्रेषित अउ भेजे गए हस्तपत्रक मा छपे विज्ञापन ला पढ़े ले आप ला अंशत:मालूम होइस होही कि मित्र के जन्म के उद्देश्य का हे? उही उद्देश्य ला नियमावली मा अउ बने स्पष्ट रूप मा दिखाय गए हे, अउ एला फलीभूत करे के निमित्त कई ठन नियम के रचना करे गे हे।अब इहाँ मित्र के आवश्यकता अउ ओकर जन्म के उद्देश्य के सार्थकता ला बताय बर ए लेख मा विस्तार पूर्वक लिखे के साहस करत हन, आशा हे आप खचित ए कोती ध्यान देहू।

आज अइसे कोनो मनखे नइ हे जउन पाठशाला मा जा के भारत वर्ष के इतिहास ला थोड़ बहुत नइ जानत होही ।

*जउन समय पूरा यूरोप खण्ड अज्ञान के अंधकार मा बूड़े रहिस, अउ इंग्लैंड के निवासी निचट जंगली अवस्था मा रहिन वो समय भारत भूमि  बड़े बड़े महात्मा ऋषि मुनि मन के ज्ञान के अॅजोर ले जगमग जगमग करत रहिस। आध्यात्मिक ज्ञान अउ वेदांत विषय मा, विज्ञान अउ साहित्य मा कहाँ कोनो हमर देश के बराबरी कर पावय । सभ्यता के शिखर मा पहुंचे यूनानी मन ले अउ जगत विजेता रोमन मन ले हमर पूरखा आर्य मन कउनो कम नइ रहिन। फेर दुर्भाग्य के बात हरे कि ये सुदशा बहुत लम्बा समय नइ रहि पाइस। बेचारा हमर अभागा देश, जिहां विदेशी मन बार बार आक्रमण कर के प्रजा ला अपन दासता स्वीकार करे बर मजबूत कर दिस। अउ इही धूम - धड़ाका ले इहां के अनुपम ग्रंथ मन के विध्वंस  होगे।खुशी के गोठ ये हे कि अइसन कठिन समय मा घलो आर्य महानुभाव मन अपन आर्यत्व ला नइ छोड़िस ।बड़े बड़े पराक्रमी राजा मन अपन कोषबल ले याचक मन ला संतुष्ट करिन, बाहुबल ले पीड़ित मन के रक्षा करिन, नीति अउ न्याय बल ले राज्य के प्रबंध चलाइन। सद्गुण के ग्रहण शक्ति ले विद्या के प्रति अभिरुचि बढ़ाइन। अउ विद्वान मन ला आश्रय दे के अपन यश कीर्ति के पबरित पताका पूरा भूमंडल मा फहराइन।

ये इहीं प्राचीन पुरुष मन के सद्सद्विवेक बुद्धि के परम प्रताप आय कि कई हजार साल बीते के बाद भी आज भारत वर्ष मा अनेक शास्त्र, विविध पुराण अउ भांति भांति के कला कौशल के सर्वमान्य ग्रंथ उपलब्ध हे। जउन महर्षि मन पुरान-इतिहास सरीख ग्रंथ के निर्माण करिन उंकर कीर्ति भारत मा ही नहीं ये धरती के सबो भाग मा निनादित हो गए हे। इंग्लेंड के टेम्स नदी मा जर्मनी के विश्वविद्यालय मन मा, अउ अमेरिका के स्वतंत्र राज्य मन मा जउन भी वेद के मनमोहिनी अति सुहावनी देववानी सुने हे उही मन हमर पूरखा के चिरकालिक यश के साखी देहीं। अउ बुद्धि वैभव ला सराहहीं। प्राचीन समय के विद्वान मन के यश के विषय मा जतके लिखबे कम हे।

अब यदि ए पूछा जाय कि पुरातनकाल के ग्रंथकार मन के नाव काबर आज के अवधि मा घलो अमर हे तो उत्तर हे कि उॅकर रचे शास्त्र के अध्ययन सब लोगन करथें अउ सिरिफ इही देश मा नहीं देशांतर मा घलो उंकर कृति मन ला पढ़े अउ सराहे जाथे।हमर समझ मा इही जवाब जान पड़थे कि वो समय के राजा महाराजा मन साहित्य प्रेमी संपंन श्रीमान मन अपन भब्य कोष के विनियोग विद्या के उन्नति करे मा, विद्वान मन के उत्साहवर्धन मा अउ आम आदमी के बीच ज्ञान के प्रचार प्रसार मा बहुतायत मा करैं। हमर उक्त कथन के तात्पर्य इही हे कि विद्योन्नति के लिए प्रथम द्रव्याश्रय, दूसर मा लोगन के श्रद्धा चाही। अउ जब तक विद्या के वृद्धि नइ होही, देश मा सुधार कदापि नइ हो सकै। वर्तमान स्थिति ला अवलोकन करबे त पता चलथे कि इंगलिस्थान, अमेरिका, जर्मनी अउ यूरोप के अन्य देश जउन मन कुछ कालखंड पूर्व अज्ञान के अंधकार मा पड़े सड़त रहिन उही मन आज विद्या देवी के प्रसाद से ज्ञान के उच्च शिखर मा बइठे हें। अउ इहां ए आर्यावर्त जउन एक समय संपूर्ण विद्या कला अउ कौशल मा आगू रहिस उहां अब सरस्वती के भयंकर कोप ले अत्यंत नीचे अउ अवनति के दशा मा आ पहुंचे हे।

कहे के मतलब हे, हमर दुर्दशा के जउन- जउन कारण हे ओमा मुख्य ये हे कि हमर देश के धनिक मन विद्या के उन्नति बर - अर्थात उत्तम अउ लाभदायक पुस्तक के प्रसिद्धि बर, ज्ञान के प्रसार बर द्रव्याश्रय दे मा अउ सर्वसाधारण मा विद्या के प्रति अभिरुचि बढ़ाय मा - तन मन धन ले प्रयत्न नइ करै। जउन गरीब, साधनहीन अउ निराश्रित हें बहुधा उही मन के मन मा विद्या उन्नति के नाना प्रकार के विचार आथे। समाचार - पत्र अउ मासिक पुस्तक ला प्रसिद्ध करे के उद्यम, सभा लाइब्रेरी क्लब निकाले - बनाय के खटपट, नूतनशाला स्थापित करे के प्रयत्न, अधिकतर आधुनिक पढ़े लिखे मन के द्वारा ही होवत हे। अइसन श्रीमान बहुत कम हे जउन ए कार्य मा सहायता करंय, या कोनो जिम्मेदारी निर्वहण बर आगू आवँय। उंकर संपत्ति प्राय:अनुत्पादक व्यय करे मा अउ ऐश आराम ले पूरखा मन ले अर्जित धन के नाश करे मा चल देथे।परन्तु हमर राजा महाराजा मन ला स्मरण रहै कि उन विद्या उन्नति के मुख्य आधार स्तम्भ हरे। यदि भारतवर्ष के पूरातन समृद्ध सभ्यता ला फिर से जीवित करना हे, या नवा सुधार के संस्कार के प्रभाव ला इहाँ देखना हे त इहीं मन ला अगुवा बनना पड़ही। काबर सत्य इही हरे कि जब तक ए देश के प्रधान भूमि मा स्वामित्व रखैया वर्ग हा (अर्थात महाराजा, रईस, जमींदार, तालुकदार वगैरह, जिंकर आम आदमी मन उपर बहुत कुछ बोझ अउ दबाव पड़त रहिथे) स्वयं अपन करतूत ले सन्मार्ग के दर्शक नइ बनहीं तब तक साधारण स्थिति के लोगन मा ज्ञान प्राप्ति के इच्छा कदापि जागृत नइ होवै। ठीक इही मत हमर लोकप्रिय राज्य कार्य धुरंधर लार्ड कर्जन महोदय के घलो हे। हम बड़ खुशी के साथ मानथन कि बड़ौदा, मैसूर, ग्वालियर, जयपुर जइसे की संस्थान मन मा राजा के आश्रय ले विद्योत्तेजन के बहुत अकन प्रथा प्रचलित हो गए हें।परन्तु अत्यन्त शोक अउ कष्ट के साथ कहना पड़त हे कि मध्य प्रदेश के छत्तीसगढ़ विभाग मा राजा महाराजा श्रीमान अउ जमींदार मन अतेक विपुल धन संपंन होके भी एको झन अइसन काम उपर ध्यान नइ दै। ये मन ए बात के विचार नइ करैं कि विद्या के उन्नति करे मा जब तक इन उदासीन रइहीं अउ पर के मुख देखत रइहीं तब तक हिंदू समाज के प्रगति नइ हो सकै। इंकर ये अनास्था अउ उदासीनता एक छत्तीसगढ़ विभाग बर ही नहीं सम्पूर्ण देश बर घातक होहीं। अतएव सारांश मा, इंकर चित्त ला ए महत्वपूर्ण विषय मा खींचे बर अउ इंकर सहायता ले विद्या उन्नति के समान महत्वकार्य सम्पादन करे बर *छत्तीसगढ़ - मित्र* हा जन्म ले हे।

        हिन्दुस्तान मा अंग्रेज मन के राज होय ले जउन बहुत अकन फायदा हमन ला दिखथे- वोमे विद्या  लाभ ला प्रमुख समझना चाही। परमेश्वर हा उन मन ला पूरा जग  मा शासन करने वाला बनाय हे अउ उन मन खुद घलो विद्या अउ पठन-पाठन के महत्व ला जानथे। *उंकर प्रोत्साहित करे भर ले ए देश के मातृभाषा मन सजीव होय ला धर लिन।* अउ जउन मरहा हो गए रहिन, वो मन मा जान आगे। गोंड़ खोंड अउ संथाल कस वनवासी मन के साधन सून्य अउ उपेक्षित भाषा मन ला घलो हमर परम दयालु राज्यकर्ता मन के प्रयत्न ले नवा स्वरूप अउ उजास मिल गे। जब  जंगली भाषा मन मा अइसन बदलाव दिखत हे ता हिंदी, मराठी, बंगाली, गुजराती, तेलगू जइसन चतुर भाषा मन मा आजकल बहुत ही अभिनन्दनीय, रमणीय अउ चित्ताकर्षक स्वरूप आवत हे, ये ला लिखे के जरूरत हे का? वर्तमान समय मा हिन्दुस्तान के जतका प्रचलित भाषा हे, उंकर पचास साल पहिली के स्वरूप अउ आजकल के स्वरूप ला कोनो मिलान किया जाय, तो जमीन आसमान के फरक नजर आही। फेर पाठक मन ले ये बात नइ छूपे हे कि हमर राज्यकर्ता अब ए विषय ले दिन प्रतिदिन अपन हाथ खींचत जावत हे।बात अतकेच नोहै, उंकर चित्त अब प्रतिकूल होत जावत हे। अइसन समय मा अब लोगन ला एक चित्त होके मन लगा के प्रयत्न ला जारी रखना चाही।

देखौ! शिक्षा विभाग के अधिकारी मन जउन वार्षिक रिपोर्ट पेश करथे वोमा ए बात के जानकारी हो गेहे कि बंगाल, मद्रास, बम्बई, पंजाब, पश्चिमोत्तर  देश, अवध सहित हिन्दुस्तान के अउ भाग मन मा जिहां - जिहां शिक्षण दिये जाथे, उन सबो के अपेक्षा मध्यप्रदेश  के आदमी मन शिक्षा के काम मा बहुत ही पीछु हे।प्रत्यक्ष मध्यप्रदेश के जब ए दशा हे तब उंकर अंतर्गत आने वाला ये छत्तीसगढ़  विभाग  सुदशा के भागी कइसे हो सकथे? लोकशिक्षण के पूर्ण अभाव के कारण छत्तीसगढ़ के समान शोचनीय अवस्था दूसर कोनो प्रांत के नइ होही।यहां के जनता अत्यंत दरिद्र स्थिति के कारण , उच्च स्तरीय ज्ञान ले हमेशा वंचित रहिथे। एकर सेती, विद्या उन्नति मा जउन मन पीछु हे वोमा हे मध्य प्रदेश अउ खासकर छत्तीसगढ़ विभाग जउन आज घलो लइकुसहा अवस्था मा हे। हमर मुख्य हेतु इही हे कि ए मन हर प्रकार के विद्याकला अउ हूनर मा प्रवीण होके उच्च पद मा पहुंचे। जउन मध्य प्रदेश मा लोकशिक्षा के फैलाव बिलकुल कम हे अउ ओकर जउन विभाग छत्तीसगढ़ हे वो हा बिल्कुल सून्य हे उहां विद्या वृद्धि बर *आधुनिक नूतन मार्ग* निकाला जाय :-अर्थात नवा-नवा पाठशाला मन के स्थापना किया जाय, विद्यार्थी मन ला आर्थिक सहायता दिया जाय, भाषा के सुलेखक मन ला उत्साहित किया जाय, ग्रंथ के प्रकाशन करने वाला संस्था - मंडली अस्तित्व मा लाया जाय, प्रकाशित ग्रंथ के समालोचना करइया ग्रंथ परीक्षक सभा के गठन किया जाय साथ ही समाचार पत्र अउ मासिक पुस्तक प्रसिद्ध किये जाय - इही हमर अंतीम उद्देश्य हे। सारांश, अइसे - अइसे उपाय करे के हमर योजना हे, जेकर से हमर ये वनाच्छादित प्रदेश (छत्तीसगढ़) आत्मोन्नति कर के देश के अन्य प्रदेश मन के योग्यता मा पहुंचै अउ  अपन संपूर्ण आर्य समाज ला सुखी करै। फेर ए काम धनिक मन के आश्रय के बिना कदापि सिद्ध नइ होवै।


उपर कहे गे उद्देश्य के पूर्ति बर हमन जउन बात के निश्चय करे हन, नीचे लिखाय हे:-


*पहिली* - ए समय छत्तीसगढ़ विभाग ला छोड़ के अउ कोनो अइसे प्रांत नइ हे जिहां दैनिक, साप्ताहिक, मासिक या त्रैमासिक पत्रिका नइ प्रकाशित होवत होही। एमा कोनो संदेह नइ हे कि सुसंपादन पत्र - पत्रिका मन के द्वारा हिंदी भाषा के उन्नति होय हे। इही कारण से इहाँ भी "छत्तीसगढ़ मित्र" हिंदी भाषा के उन्नति बर विशेष प्रकार से धियान देवै, जहां तक हो सकै भाषा मा अच्छा - अच्छा विषय के संग्रह करै, अउ आजकल भाषा मा बहुत अकन कूड़ा करकट जमा होवत हे वो ला रोके बर प्रकाशित ग्रंथ मन के प्रसिद्ध मार्मिक विद्वान मन के द्वारा समालोचना घलो करै।


*दूसरा बात*-हिंदी भाषा के साहित्य बहुत ही संकुचित हे अउ केवल हिंदी जानने वाला मन के भिन्न-भिन्न ग्रंथ के रस ले स्वाद पूरा नइ होवै। ए कारण हिंदी लिखित साहित्य के संग्रह ला पुष्ट करे बर अउ दूसर भाषा मन के ग्रंथ मन के अनुवाद कर के सर्व उपयोगी विषय मन के संग्रह खचित जरूरी हे। एकर बर पदार्थ विज्ञान, रसायन, गणित, अर्थशास्त्र, मानसिक शास्त्र, नीतिशास्त्र, आरोग् शास्त्र जइसन अनेकानेक शास्त्रीय विषय मन के अउ प्रसिद्ध स्त्री पुरुष के जीवन चरित्र, मनोरंजक कथा कहानी, ज्ञान प्रचुर आख्यान, लइका - सियान सबो स्त्री पुरुष मन के पढ़े के लइक अच्छा हितकर उपन्यास जइसे मनोरंजक अउ लाभदायक विषय - आंग्ल, महाराष्ट्र, गुर्जर, बंगदेशीय अउ संस्कृत आदि के ग्रंथ के अनुवाद करके हिंदी प्रेमी मन ला अर्पित करे के हमर बिचार हे। 


तिसरा - छत्तीसगढ़ के गरीब विद्यार्थी मन ला उच्च प्रकार ले शिक्षा मिलै अउ ये छत्तीसगढ़ क्षेत्र मा विद्या के प्रसार ले उद्योग- धन्धा बाढ़ै, ए निमित्त मा *"छत्तीसगढ़ मित्र"* के छपाई वगैरह के खर्चा निकाल के जो कुछ प्राप्त धन राशि बचही वोकर ले स्कॉलरशिप दे के प्रबंध किये जाही। ग्राहक अउ आश्रयदाता मन के उत्साह देख के अउ पहिली साल के अनुभव के बाद ठीक - ठीक नियम बनाये जाही। अभी ए विषय मा अउ ज्यादा कुछ लिखई ठीक नइ हे।


हालांकि देखे मा उपर व्यक्त विचार मन सपना कस लागथे फेर कोनो काम ला शुरू करे बर अइसन काम बहुत ही जरूरी हे। उपर बताये गे कार्य मन के सीमा ला एकदम से बढ़ाना अउ उचित प्रबंध न होय के दशा मा फेर गोता लगावत रहना अभी हम ठीक नइ समझत हन।जतका बोझ हमन अभी उठाय के निश्चय करे हन वहू ला हमन स्वयं के बल मा नइ कर सकन। सबो देशहित के चिंतक मन ला हम अवगत कराना चाहत हन कि कोनो पइसा कमाय बर हमन ए कार्य ला शुरू नइ करे हन। एला हमन एक महान अनुष्ठान कर्म समझ के, भाषा के उन्नति खातिर अउ छत्तीसगढ़ मा विद्या वृद्धि के निमित्त तन मन धन ले प्रयत्न करे के दृढ़ निश्चय करे हन। ए कारण से  देश के प्रति अभिमान रखने वाला सबो स्त्री पुरुष मन ले अउ खासकर छत्तीसगढ़ के राजा महाराजा, श्रीमान जमींदार मन ले हमर इही प्रार्थना हे कि - "अज्ञान के अंधकार मा पड़े अपन छत्तीसगढ़ विभाग ला कोनो एक नवा, सर्वांग सुंदर, हितकर मासिक पुस्तक ले विभूषित करना चाहत हौ, हितभागिनी देवनागरी भाषा के उन्नति मा कुछ गरब अउ श्रद्धा के भाव रखत होहू, साथ ही अपन अशिक्षित गरीब पीड़ित प्रांत मा विद्या वृद्धि करके लोकहित के भागी बनना चाहत होहू, अउ कोनो अपन छात्र वर्ग के उच्च शिक्षा बर सहायता देना चाहत होहू "- *तो किरपा कर के ये आरंभिक कार्य ला सफल करे बर सहभागी बनौ अउ अपन यश अउ प्रसंशा पाय के लाइक काम मा परम परोपकार के भागी बन के पुन्यात्मा बनौ ।हमर पूरा विश्वास हे कि भारतवर्ष मा विद्या उन्नति के निमित्त आजतक कोनो कभू अपन कोष के द्वार ला बंद नइ करे हे। त आजे काबर इहाँ के धनवान प्रजा अपन नाक मरोड़ही? अउ काबर राजा महाराजा उदार आश्रय दे ले हिचक देखाही?* 


आखिर मा हम जगत के चलैया परमात्मा ले इही प्रार्थना करत हन जउन हा हमर मन मा ये कार्य ला करे के प्रेरणा दिइन कि - हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! हमर मन मा जउन आजतक तरह - तरह के विचार उमड़त रहिन ओकर ले उत्साहरूपी बीज के अंकूर होय के समय आ गेहे। ये अंकूर मा लोकाश्रय रूपी जल के सिंचन होवै, जेकर ले जल्दी पुष्पित होके निज कर्म के फल ले सर्व साधारण ला संतुष्ट किये जा सकै। 


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अनुवाद :20/09 /2020 रविवार 

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Friday 18 September 2020

छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी के अंतर सम्बन्ध*-- *एक विमर्श*

 *छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी के अंतर सम्बन्ध*-- *एक विमर्श*

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हमर बहुतेच मीठ महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी के इतिहास हजारों साल पुराना हे। एकर विकास यात्रा म अनेक पड़ाव आय हे। आज जेन स्वरूप म एला बोलथन ,पहिली ओइसन नइ रहिसे। भाषा ल कलकल बोहावत पानी कस कहे जाथे। भाषा ह कभू ठहरे नइ राहय।

   छत्तीसगढ़ी के विकास कइसे होइच तेला जाने के पहिली वोकर उतपत्ति कहाँ ले होइच तेला समझना जरूरी हे।

  भाषाशास्त्री मन के कहना हे कि-- छत्तीसगढ़ी के जन्म *पूर्वी हिंदी* के एक रूप *अर्ध मागधी* ले होये हे। अर्ध मागधी के दू झन बेटी--अवधी अउ छत्तीसगढ़ी।

   ए दुनों सहोदरा( अवधी अउ छत्तीसगढ़ी) के रूप-रंग, हाव- भाव अउ संस्कार ह अबड़ेच मेल खाथे।

  इन दुनों के समानता ल अइसे भी समझे जा सकथे कि अवधी बोली जेन अवध क्षेत्र म बोले जाथे तेला प्राचीन काल म कोशल अउ अभी छत्तीसगढ़ी जेती बोले जाथे तेला दक्षिण कोशल कहे जाय।दुनों म कोशल हे। तइहा त्रेता युग ले दुनों के राजा अउ प्रजा मन के बीच निकट के राजनैतिक अउ पारिवारिक सम्बन्ध हे।वो समे के दक्षिण कोशल के राजा भानुमंत के दमाद राजा दशरथ ह अवध के राजा रहिसे।

     अभी एक हजार साल पहिली तक हमर छत्तीसगढ़ के राजधानी रतनपुर  रहिसी अउ हैहयवंशी राजा मन के राज रहिसे ।ए वंश के राजा मन ए भाखा ल फैलाये म अब्बड़ योगदान दे हें।

       उपर के लिखे बात मन ले पता चलत हे कि पूर्वी हिंदी  या अर्धमागधी जेला हमन *हिंदी* कहिथन तेकर अउ *छत्तीसगढ़ी* के बीच जइसे एक महतारी अउ बेटी म सम्बन्ध होथे ओइसने *अंतर सम्बन्ध* हे।

  जइसे बेटी ह अपन दाई के गहना ल पहिन लेथे ओइसने छत्तीसगढ़ी के बहुत अकन शोभा हिंदी जइसे दिखथे।

 दूनो के लिपि *देवनागरी* हे।

संस्कार एके हे। जहाँ तक *वर्णमाला* के बात हे त एमा भले मतभेद होही फेर ५२ वर्ण ह आज बोले अउ लिखे दूनो जावत हे।

       *हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म न तो कभू विरोध रहे हे न होना चाही।*

 जेला हमन छत्तीसगढ़ी के प्राचीन कवि कहिथन उन मन  संस्कृत अउ हिंदी म जादा लिखे हें।

     आज जरूरत हे महतारी भाखा म साहित्य के कोठी ल   भरे के। ए उदिम म आप ,हम सब लगे हावन।

*जय छत्तीसगढ़ी-- जय हिंदी*


चोवा राम वर्मा ' बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के सम्बंध*

 

*हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के सम्बंध* 

वइसने ही हे

जइसे माँ अउ बेटी के बीच मे रहिथे।

हर मनखे के एक स्वतंत्र अस्तित्व होथे पर थोकिन थोकिन परिवार दाई ददा के गुण समाय ही रहिथे।


छत्तीसगढ़ी भाखा हा हिंदी के दुलौरिन आय,

ममता मया ले सनाय भाखा हा सीधा अंतस में उतरथे।

वइसने ही जब हिंदी दाई के मया भाखा हा उंखर मन से फूटिस तब

छत्तीसगढ़ी के अस्तित्व आइस।

अउ ये भाखा हर एक प्रान्त ,राज्य के महारानी बनगे।

जे जन जन तक राज करत हे,

ये भाखा के मया ल का कहय

कभू भाजी पाला के मिठास,कभू कुम्हार के गगरी ,कभू खेत के खुशहाली,कभू सुआ कर्मा के ताल ।

कहाँ तक बखान करे जाय

हर जिनिस में गुत्तुर समाय हे।

कहूँ कहूँ जगह छत्तीसगढ़ी हा अपन महतारी हिंदी के हाथ धरके चलथे।

दुनो के सँग सँग चलई हा अब्बड़ सुख देथे जन मानस ल।


दुनो भाखा के अपन स्वतंत्र अस्तित्व होत हुए भी

दुनो में गहरा संबंध हे।



मँय अलप बुद्धि आप सबो बुधियार मन के बीच अपन विचार मढ़ाय हँव।

गलती के लिए माफी चाहत हँव।




आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा के अंतर्संबंध*

 *हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा के अंतर्संबंध*

-बलराम चंद्राकर 


जहाँ जहाँ हिन्दी के प्रभाव हे, उहाँ छत्तीसगढ़ी हे।'सास गारी देथे ननद मुहुं लेथे, देवर बाबू मोर' हिन्दी सिनेमा मा जब आइस त दिल्ली अउ लंदन मा बसैया हिंदुस्तानी मन ला घलो ठूमकत देखे हन।छत्तीसगढ़ी मा अतका तरलता हे कि छत्तीसगढ़ के सीमा पार कर के खुसरे खुसरे हे।महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाका मन मा, उड़ीसा के कतको गांव हे जेमन भाषायी समानता के कारण छत्तीसगढ़ उपर आश्रित हे। सहडोल मंडला बालाघाट सिवनी अनुपपुर मन मा स्थानीय भाषा के साथ - साथ छत्तीसगढ़ी के बरोबर प्रभाव हे। चेतन देवांगन जब पंडवानी गाथे मुंबई मायानगरी के प्रतिष्ठित मुम्बईया मन के कार्यक्रम- जलसा मा तब हर मिनट वाह - वाह होथे, ताली बजथे। हबीब तनवीर छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी कलाकार के बलबूता देश- दुनिया मा परचम फहरइन। तीजन बाई अपन बोली- भाखा के बल मा पद्मश्री, पद्मभूषण, डाक्टरेट सब होगे, दुनिया घूम डारिन। सुरेंद्र दूबे जी करिथें कि वाइट हाऊस मा छत्तीसगढ़ी कविता पढ़े हंव, सिरतो अमेरिका कई बार गे हें। अमेरिका मा हमर छत्तीसगढ़ के हिंदी अग्रेजी के माहिर प्रवासी मन 'नाचा' नाव के संस्था के गठन करे हें। असम के बहुत बड़े हिस्सा मा छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया मन के प्रभाव हे, तभे तो उहाँ विधायक, मंत्री, सांसद सबो बनत आवत हें।छत्तीसगढ़ के बेटी करुणामयी मिनी माता असम ले आके पुन:छत्तीसगढ़ के पूजनीय बन गे । ये जम्मो कहूँ न कहूँ हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के अंतर्संबंध ला देखाथे कि हम इहाँ रहन या बाहिर, हिंदी के संग छत्तीसगढ़ी ला घलो जिंदा रखेन तभे हमर पहिचान सुरक्षित रहिन। हिंदी के अपन कोनो कल्चर नइ हे। जम्मो हिंदी बोली- भाषी क्षेत्र के  कल्चर येकर धरोहर हरे, कल्चर हरे। हिंदी महासागर हरे त छत्तीसगढ़ी सागर हरे। सागर- सागर मिल के महासागर हो जथे, कोनो सीमा रेखा खींचना मुश्किल हो जथे। गजब देश हे। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश ले सरकत - सरकत बहुत अकन बोली मन स्वतंत्र रूप पा गे। छत्तीसगढ़ी घलो करवट लेवत हे अपन अस्तित्व बताय बर। छत्तीसगढ़ी के नाव मा छत्तीसगढ़ बन गे। छत्तीसगढ़ी घलो संवरत हे अपन लोक ला शास्त्र मा ढाले बर।हर आदमी इहाँ के मुखर होना चाहत हे। अपन मन के भाव ला सहजता देना चाहत हे। प्रवाहमान होना चाहत हे। राज मिले के बाद अब अपन बोली - भाखा, संस्कार, तीज- तिहार ला सहेजे बर छटपटावत हे। विद्वान मन ए इशारा ला समझौ, भला होही।

          कृष्ण लोक के प्रतीक हरे जब गोकुल बृंदाबन मा रहिथे। कृष्ण शास्त्र के प्रतीक हे जब मथूरा अउ द्वारिका वासी हो जथे। इही मेर हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के अंतर्संबंध ला बूझे ला पड़ही। राधा अउ रुक्मिणी ला जाने ला पड़ही।चक्र अउ मुरली के एके व्यक्तित्व मा वास ला ग्राह्य करे ला लगही ।तभे, तभे पार पाबो। मुरली अउ चक्र में से एक ला बाहिर कर के कृष्ण के व्यक्तित्व के परख कर पाना सम्भव नइ हे। 

छत्तीसगढ़िया मनखे मन ला हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दोनों ला साधे ला परही।हिंदी तो परिपक्व होके आपके साथ खड़े हे फेर छत्तीसगढ़ी?


छत्तीसगढ़िया के रूप मा ही हमर पहिचान हे। हमर तीज तिहार संस्कार सब छत्तीसगढ़ी। बोली तक छत्तीसगढ़ी। लेकिन देश दुनिया ले संपर्क मा आय के बाद समझ मा आथे अउ संसार के सफ्सो विद्वान मन एक सूर ले कहिथे कि प्रारंभिक शिक्षा अपन महतारी भाषा मा होना चाही। तब ये छत्तीसगढ़ी हमर महतारी बोली ला का भाषा के पूर्ण रूप दे बर हमर विद्वान - विदुषी मन ला पीछु रहना चाही? मन मा टेक ला हटा के नवा पीढ़ी ला प्रशिक्षित करे मा जीवन समर्पित कर देना चाही। किंतु परन्तु त्याग छत्तीसगढ़ी बर जतके खड़े दिखहीं, ये प्रांत के प्रभाव अउ सुभाव वोतके मजबूत होही, अउ दुनिया मान देही।आप के विद्वता ले बाहिर के दुनिया मा आप ला व्यक्तिगत मान मिल सकथे फेर छत्तीसगढ़ के आम मनसे ला स्वाभिमान के साथ जीयत देखना हे त छत्तीसगढ़ी बर बीड़ा उठायेच ला पड़ही ।अगर लइका अपन महतारी भाषा ले शिक्षित- प्रशिक्षित होही तो हिंदी अग्रेजी के प्रति ग्राह्य क्षमता अपने आप कई गुणा बढ़ जाही।

हिन्दी जइसे समृद्ध भाषा के संरक्षण मा छत्तीसगढ़ी दिन- दुनी रात- चौगुनी तरक्की करही, बस गुनी मन ला अपन मन के गांठ ला थोकन ढिल्ला करे बर लागही ।मन हर्षित हे आज बहुत अकन सकारात्मक रूख दिखत हे। भाषा उपर चिंतन सतत चलत हे। सरकार के घलो रूझान हा दिखत हे। फेर कोनो सरकार होय उंकर रूझान जनता के दबाव उपर निर्भर करथे।विद्वान मन दरबारी हो के तटस्थता छोड़ देथे त नुकसान घलो संभव हे। हमर दबाव नइ रइहीं त बहुत अकन नकारात्मक कारण मन राजधानी मा घूमरत हे। ए बात ला आप अउ नवा पीढ़ी गांठ बांध के रख लौ, समझ लौ। 

आज, जे मन हिंदी के विद्वान रहे हें, अंग्रेजी के जानकार  हें, उन मन अपन मया पलो के छत्तीसगढ़ी बर जमीन ला नित उपजाऊ बनावत हे।ताकि हमर जुबान हमर बोली, हमर भाषा पोषित होवै, घपटै- फूलै- फलै।निश्चित ही भारत माता के बेटी छत्तीसगढ़ी महतारी घलो   सर ऊंचा करके देश-देशान्तर मा गोठियावत एक दिन दिखही, विश्वास हे।


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हमर भाषा - हमर गोठ*

 *हमर भाषा - हमर गोठ*

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   छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी के अंतर-सम्बन्ध एके  बगीचा के फूल जइसन हे । बहुत पहिली ले हमर देश म बहुत अकन बोली -भाषा मन अपन- अपन क्षेत्र म बोले जावत रहिन  हें अउ आज घलो अलग- अलग प्रदेश के तको अलग -अलग बोली- भाषा हावय। फेर सब्बो एक्के बगीचा के फूल आय अउ एही फूल ला चुन चुन के ज्ञानी- विज्ञानी, विद्वान साहित्यकार मन 17-18 ठिन बोली मन के माला गुथिन अउ हिन्दी भाषा ला आकार दिन।एमा सबले गुरतुर बोली छत्तीसगढ़ी हा घला शामिल हे। तभे सुग्घर , सरल अउ समृद्ध हिन्दी भाषा बनिस, जेला पूरा देश के मनखे बोले अउ समझे लगिन ।हिन्दी के सम्पर्क बहुत बड़े क्षेत्र म होय के कारण ओला *राष्ट्रभाषा* के  पदवी मिलिस जइसे *गाँधी* *जी* ला *महात्मा* अउ *बापू* कइथन , *मैथिलीशरण गुप्त* अउ *रामधारीसिंह* *दिनकर* जी ला *राष्ट्रकवि* कहिथन-ठीक वइसने। एहा  कोनो संविधान लिखित बात तो नोहय।

     *हमर  छत्तीसगढ़ी भाषा ह हिन्दी मा गुथें वोही माला के एक ठिन फूल आय जेमा चंदैनी गोंदा के कहर-महर, चिरईया फूल के सुघराई अउ*  *महुआ फूल के मिठास* *भरे हे।* 

     *भारत माता के फुलवारी  मा आनि-बानी भाषा-बोली के सुग्घर फूल लगे हे जेमा छत्तीसगढ़ी हा मधुरस कस सबले गुरतुर बोली-भाषा हे; सदा दिन ले एही फूल मन के रस के मिठास ह हमर देश के संस्कृति म रस घोलत हे। एही अमृत रस के कारण हमर देश ला सदा युवा र* *हे* *के* *वरदान मिले हे* । 

   *जय हिन्दी,  जय छत्तीसगढ़ी* 🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻


 *वसन्ती वर्मा* 

 *बिलासपुर*