Wednesday 2 September 2020

व्यंग्य - गुलामी

 व्यंग्य - गुलामी 


      एक दिन मनखे कुछु बूता करत रहिस कि ओकर हाथ ले एकठन नानकुन मशीन बन गए,जेन ओखर कहे मा बुता करय अउ ओखर गुलामी करय।  जइसे पार्वती हा अपन मइल निकाल के गणेश ल बनाय रहिस।ओहा पार्वती के कहे मा मोहाटी मा रखवार बनके ओखर सब बात ला मानय।अइसनेच मशीन हा मनखे के सबो बुता मा अपन हाथ लगा के ओखर बुता लघियात कर देवय। मशीन के रहे ले घर के टेड़ियहा सदस्य मन ला मनाय के अउ हाथ गोड़ जोड़े के जरुरत नइ परय। फेर मशीन के रहे ले घर के सबो मनखे खुश रहय।काबर कि कोनों ला बुता के झेल नइ परय।मशीन के सेती अब ओ मनखे के मान गउन बाढ़े लगिस।एला देख के मशीन ला इरखा होगे।ओहा एक दिन परोसी घर बइठे चल दिस।उखरो बूता ला झटकुन निपटा दिस। परोसी एला देखिस तब इरखा करे लगिस। एला मशीन आकब कर लिस अउ ओखर कान मा कुछु कहिस.....। खुश परिवार ला देख मशीन ला घलाव मनखे ले इरखा होय लगिस कि एमन परिवार संग अबड़ खुश रहिथे एक दुसर के दुख सुख मा संग देथय, तब काबर महूँ हा अपन परिवार बढ़ाय के नइ सोंचव? मशीन हा अपन मालिक मनखे के कान मा लालच देवत कुछू कहिस.... अब लालच तो मनखे के भीतरेच मा रहिथे,ओ बाहिर निकलगे। मनखे बूझ नइ पइस अउ मशीन के संग पा के मशीन बनाय अउ बेचे के धंधा शुरू कर दिस।ओला बनेच आमदनी होगे। घर के सदस्य मन के सहयोग बिन मशीन संग अबड़ अकन मशीन बना के बेच डरिस।

          सबो घर अब मशीन आय लगिस।तब घरो घर मनखे ला अराम मिले लगिस। मनखे गुनिस कि एकठन मशीन ले अतका अराम मिलत हे तब सबो बुता करे बर काबर मशीन नइ बनाय जाय? अइसने परोसी मन घलाव गुनिन। सबो मन अलग अलग बुता करइया मशीन अपन जरुरत के हिसाब ले बनाय अउ बेचे लगिन।सबो मनखे ला अबड़ फायदा होय लगिस।अब नानम किसिम, अउ गुण, ताकत वाला   मशीन बने लगिस।एती मशीन के जनसंख्या घलाव बाढ़े लगिस।जीखर घर मशीन बिसाय नइ सकय उँखर घर परोसी के मशीन हा जाके एकोझन के कान फूँक देय ताहन रोज झगरा होवय।मशीन के आय ले अब कमाइया मन ला जादा झेल नइ परय।एखर ले सब खुश रहय।काम कम फायदा जादा।

        एती मशीन के जनसंख्या जादा होय ले ओहा राजनीति मा कूद गे। मनखे मन के ललचहा असन नेता ला अपन काबू मा कर लिस अउ अपन परभाव ला बढ़ाय बर गोहार करिस। नेता ला तो कमीशन से मतलब रहय, चाहे मनखे देवय चाहे मशीन। चुनाव पइत नानम परकार के मशीन देहँव कहिके घोषणा कर दिस। जइसन जइसन मनखे वइसने मशीन। का लइका, का चेलिक जवान, का बुढ़वा सियान, मोटियारी, महतारी सब ला मशीन मिलही कहिदिस।ओखर देय लालच मा जीता घलाव डारिन। नेता पाछू बताइस मोर जीते मा मनखे के जादा हाथ नइ हे,मैं तो मशीन के भरोसा जीते हँव।

      सब अपन अपन मशीन पा के खुश होगे।अब घर के दूसर सदस्य ले कोनों ला लेना देना नइ हे। सब बुता मशीन करत हे , ताकत वाला मनखे घलाव ठेलहा दूसर मशीन संग बइठे हे।अब मनखे के संगवारी मनखे नइ हे मशीन ला संगवारी, सगा बना डरे हे। सब रोजगार ला मशीन नंगा डारिस।एती मशीन खुश होगे हवय। पहिली मँय  मनखे के नउकर रहेंव,गुलामी करत रहेंव। फेर अब मनखे ला अपन गुलाम बना के राख डरे हँव। मोर बिन ओहा एक पाँव नइ रेंग सकत हे।अब तो ओखर सोंचे समझे पढ़े लिखे के सबो ताकत ला मँय हा अपन जगा गिरवी राख डारे हँव। अब मनखे झगरा लड़ई घलो मशीन मा होवत हे।पहिली मनखे ला गुनवान विद्वान कहे जाय।मनखे अपन बुद्धि अउ साथी मनखे के ताकत ले मशीन बनाय,लड़य अउ राजा महराजा बनय।अब मशीन के ताकत ले मनखे के ताकत के आकब करे जावत हे।सच अउ झूठ के निरनय बर मशीन हा संग देवत हे। अब मशीन ला मनखे बनाय के ठेका मिलत हे।वो दिन दुरिहा नइहे जब सत्यवादी, दानवीर, ईमानदार मनखे बनाय बर मनखेच मन ला मशीन के हाथ गोड़ जोड़े पर परही।


हीरालाल गुरुजी "समय"

छुरा, जिला-गरियाबंद 



   

No comments:

Post a Comment