Friday 4 September 2020

जहरा गोठ-संतोष साहू

 जहरा गोठ-संतोष साहू


एक दिन के बात हरे साँप मन के कटाकट जंगल मे भयानक मिटींग होइस,जेमा पीटपीटी ढोरिहा असोढ़िहा गँऊहा करायत सब गेरिहीन ।तब पीटपीटी हा कहिथे- देखो जी अब ये गँऊहा डोमी के जहर के असर कम होगे हे मनखे मन डर्राय नही,अउ कोनो ला कहूँ चाब दिस ते दवई खा के बाँच जथे अब तो गँउहा ला तको अपन नाम हमरे असन पीटपीटी सीटपीटी रख लेना चाही। अउ हो सके ते शंकर भगवान के गला ले तको उतर जाना चाही।अतका बात ला सुन के गँऊहा के दिमाग खराब होगे,अपन जगा ले उठिस अउ पीटपीटी ला एक तमाचा दिस पीटपीटी उहीकर चितिया के गिरगे। जब होस अइस तब उठ के कलेचुप अपन घर डाहन आवत रिहिस तब गँउहा कथे- अरे रूक !ध्यान लगा के सुन ये रोज सुने ला मिलथे फलाना मरगे ढेकाना मरगे तब ये मन ला हमर कहूँ न कहूँ संगवारी गऊँहाच ह तो चाबत होही। फेर काबर लबारी मारथस हमर जहर मे असर नइये किके।तब पीटपीटी काँपत काँपत कथे देख गँऊहा मोर आदरणीय,बात ला मोर मान, मेहा हरदम ककरो घरे तीर मे या तो घरे मे खुसर जथोँ ,मोला मारे नही भले बिदार देथे।मनखे के तीर मा रथो तब मनखे के बात ला जानथँव सुनथँव जतेक मनखे मरत हे न वोहा मनखे के गोठ ला सुन के ही मरत हे,ककरो गोठ हा अतेक करू हम पीटपीटी असन हा सुन के उछर डरेहन ते दूसर ला का कबो,कहूँ मनखे काकरो हूरसाहा गोठ ला सुन के फाँसी अरोथे, त कहूँ काकरो गारी गल्ला सुन के चिंता मे बी पी शुगर होवत हे अउ मरत हे समझे ।तोर ले जादा मनखे के गोठ मे जहर हे समझे।


संतोष कुमार साहू

रसेला,छुरा

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