Tuesday 8 September 2020

लघुकथा : *मेड़वा*(मथुरा प्रसाद वर्मा)

लघुकथा : *मेड़वा*(मथुरा प्रसाद वर्मा)


   बछरु ल घर के मुहाटी म बाँध के रमेसर गरुवा  बर पैरा लाने जावत रहय। तभे वोला देख के मोहन हर कहिस कस रे रमेसर आज सुरुज महराज कोन कोती ले उवे हे देखे हस का? 

रमेसर  ल कका के गोठ ह कच ले करेजा मा गढ़ गे। फेर

वोला कुछु काहत नइ बनिस। 

चुपचाप मुड़ी ल नवा दिस।

बहू के तबियत खराब हे का?

 मोहन पूछिस त रमेसर मुड़ ल नही कहिके डोला दिस। 

मोहन सोचे लागिस रमेसर तो कभू घर के काम बुता करबे नइ करय। उल्टा कोनो ल करत देखतीस त ओखर मजाक उड़ावत कहितीस - तय तो निच्चट मेड़वा हो गेस काका । ये सब  माई लोगन के काम हरे  माई लोगन के।

मरद ल सोभा नइ दय।  

सब ओखर सुभाव ल जानत रहय कोनो कुछु नइ काहय ।

फेर आज? 

रमेसर  के कका मोहन जिये- खाय गे रिहिस कानपुर। कालीच  दु महीना बाद आये हे। । बिहाना गाँव के सोर खबर ले बर निकले रिहिस त पहिली रमेसर ले भेट हो गे। वोखर बदले बदले सुभाव ल देख के कुछु समझ मा  नइ आइस। 

थोरिक देर बाद ओखर बड़े भाई बिसेसर  ले पूछिस । तब पता चलिस एक महीना पहिली उखर बटवारा हो गे हे। 

अब मोहन ल सब समझ मा आ गिस।   कि रमेसर ल का  हो गे हे।

 काबर मरद हा आज मेड़वा बन गे हे।


✍🏻मथुरा प्रसाद वर्मा

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