Friday 25 September 2020

कहिनी: *लक्ष्मण रेखा* पोखन लाल जायसवाल

 कहिनी: *लक्ष्मण रेखा*

          पोखन लाल जायसवाल

        मया तो मया होथे, मया ले जिनगी म सुघरई आथे। मया जिनगी बर बसंत होथे। बसंत आय ले जइसे रुख राई मन नवा डारा पाना संग फूलथे, फरथे, अउ सजथे। फबथे घलो।वइसने मया दुलार के गहना पहिने जिनगी फुदरथे, सजथे अउ सँवरथे। बिन मया के जिनगी बेरंग जनाथे।

        मया मनखे के बनाय जिनिस नोहै, जउन बउरे ले खिरा जै।हाँ अतका जरूर आय मया ले मनखे मनखे कहलाथे। मया जतेक बाँटबे ओतेक मिलथे, अउ बाढ़थे।

        सुनहर गरमी के दिन आय के सँघराती पोरा अउ कटोरी म पानी भर के चिरई पीये के उदीम करथे। रद्दा बाट म पानी भरे करसी के बेवस्था घलो करथे। बटोही मन बर घाम पियास के चिंता राहय। इही म हमर भलाई हे कहि सबो ल सिखौना देत ए उदीम करे के गोठ गोठियात रहिथे। सुनहर मास्टर जउन बनगे हे।

     ननपन के उतलइन सुनहर के मारे कोनो खार कोनो पीपर, बमरी अउ कसही कौहा म बने खोंधरा के अण्डा अउ चिरई पिला नइ बाँचत रहिस। कतको ऊँच म खोंधरा राहे,चाहे कतको पतला डारा म राहै, चढ़ना हे मतलब चढ़ना हे। सरसरउवन चढ़तिस अउ अण्डा निकाल बे करतिस। बर पीपर ले कौवा के अण्डा निकाले म ओला बड़ मजा आवै। कौवा के काँव काँव सुने बर जइसे तरसत रहिथे। खेत खार के कुआँ उतरई ओकर बर ठठ्ठा दिल्लगी के खेल राहै। फेर महतारी के मया के जादू चलगे। महतारी के सिखौना बात ले सुनहर ए सब ल छोड़ दिस। बड़ सुजानिक होगे। जम्मो जीव जंतु ले मया करैया होगे। पढ़ लिख के मास्टर के नौकरी घला पागे। अपन ननपन ल भुलावत नान्हें लइका मन ल बरजत कहिथे--" मया तो प्रकृति के वरदान आय जउन प्रकृति के जम्मो जीव जंतु बर हरे।जीव जनावर मन घला हमरे मन सही एक दूसर ले मया करथे। इही ए बात ल साफ बताथे मया प्रकृति के वरदान आय। चिरई चिरगुन ल हरहिन्छा जीयँन दौ।

 " 

       महतारी के मया अउ कोरा ल बड़ नजीक ले जानथे। भाई बहिनी म सबले छोटे होय ले सबो मया जइसे ओकर बर ढकलागे राहै। सबो ओला बड़ मया करैं। अइसे भी महतारी के मया कभू बँटाय नहीं, भलुक बाढ़थे। महतारी अउ बड़े भाई बहिनी मन के मया पावत मया के मरम ल सुनहर जानगे रहिस। तभे सबो ल मया करे अउ मया ले रहे के संदेश देवत रहिथे।

       एक दिन के बात ए, सुनहर दाई ल कहिथे--" दाई जा जल्दी नहा डर। अउ झट ले तियार हो जा, बड़े भैया घर जाबो।  " दाई ह सियानापन म  अपन बूता म लगे भुलागे।अइसे भी सियानापन म भुलाय के बीमारी ले कोन बाँच पाय हे। सुनहर नहा के आगे फेर दाई हर अपन बूता म भुलाय हे। ए ल देख फेर कहिथे- " दाई जा न झटकुन तियार हो,घाम हो जही तहान चाम धर लिही। " अतका कहिके अपन तियारी म लग्गे। दाई ह एती उत्ताधुर्रा नहाइस अउ जुन्नटहा लुगरा पहिने काँचा कपड़ा मन ल सुखोवत रहिस। एल देख सुनहर कहिस " मास्टर अउ डॉक्टर के महतारी हरच, गाँव जाय बर बने नवा सही लुगरा पहिन ले न दाई।" अउ संदूक म रखाय अपन पसंद के नवा लुगरा ल दे दीस। 

   जादा उमर के होय ले आँखी अउ कान थोकिन पातर हो जथे। जाँगर घलो जुवाब दे हे धर लेथे। फेर दाई चार कोरी उमर म जाँगर ले थके नइ रहिस। तियार होवत होवत बेटा ले आँखी चुरा के गाय गरु के जोखा करे कोठा चल दीस। पैरा रख अउ कोटना म पानी डार के आ घलो  गे।

         बइसाख के महिना राहै। घाम लाहो तपत राहय। तात तात हवा अउ घाम ल देख के घर ले निकले के मन नइ होय। फेर घाम अउ काम डर्राय ले नी बनै। कहे हे, जस-जस चाम तिपे, तस-तस काम बाढ़े। काम तो करे पड़ही, काम के बिना जिनगी ह एके ठउर म ठहर जही। जिनगी अपन अरथ ल खो दिही। जिनगी साँसा के चलत ले हे,साँसा थमिस कि जिनगी थम गे। इही गोठ ल सुरता करत सुनहर के बड़े   भाई डॉक्टर मार मँझनी मँझनिया खच्चित बूता निपटाय बर सोच शहर जात रहिस। भागती बइसाख के घाम जान करसी के पानी पी मुँह कान तोपे हेलमेट लगाय निकले रहिस। सड़क म बड़ सावचेत ले गाड़ी चलावत रहिस। दाई के सीख जउन रहिस, हड़बड़ हड़बड़ कभू आना जाना मत करहू। अपन रस्ता आहू जाहू। फेर कहे हे न होनी अनहोनी बता के नइ आवै। सड़क तिर बसे बस्ती पार करत बखत नान्हें लइका सड़क पार करत दौड़ के गाड़ी के आगहू आगे। ओला बचाय के चक्कर म गाड़ी बिजली खम्भा म टकरागे। बड़े अल्हन तो नइ होइस। हेलमेट पहिने  ले चोट नइ आइस। सावचेती अउ धीरलगहा गाड़ी चलाय ले खरोच भर आय रहिस। मरहम पट्टी कराके घर लहुट गे।

        एती भैया संग आय अल्हन ल बिन बताय सुनहर ह दाई ल गाँव ले चार कोस दूरिहा भैया घर लेके पहुँचगे। महतारी के मया  बेटा-बहू अउ नाती नतनीन बर उमड़गे। मया छलछलाय लगिस अउ आँखी ले बोहाय धर लिस। दाई नाती नतनीन  ले पूछे लगिस- " तोर पापा कति हे नइ दिखत हे, का बूता ले नइ लहुटे हे। " कोनो कुछु नइ बता पावत रहिस तब डॉक्टर बेटा कुरिया ले निकलिस। बेटा के हाथ गोड़ म लगे पट्टी ल देख दाई ह बोम फार के रोय लगिस। 

"दाई!झन रो मोला कुछु नइ होय हे , बड़े अल्हन ले बाँचगे हँव। तोर मया अउ आशीर्वाद ले मोला कुछु नइ होइस। तोरे सिखौना ले मोला दूसर जनम मिले हे।"

  " दाई तोर कहना हे न, जिनगी म कोन काय करत हेमत देख, तोला काय करना हे, ए देख। रस्ता चलत काँटा बिनत चलबे, रस्ता चतवारत चलबे। दे के सोच बे,दे म सुख हे,खुशी हे। काखरो बिगाड़ झन अउ  सोचबे मत। एखर लेतोर कभू बिगाड़ नइ होय।"

   सच दाई जिनगी के कोनो ठिकाना नइ हे।काकरो अहित नइ करे ले मोर अहित नइ होइस।

      मोर महतारी के मया अउ सिखौना यमराज बर लक्ष्मण रेखा बनगिस। तभे तो मोला नवा जनम मिले हे।

     पोखन लाल जायसवाल

पलारी

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