Friday 18 September 2020

छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी भाषा के अंतरसंबंध*

 *छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी भाषा के अंतरसंबंध*


हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा के विद्वान मन दुनों भाषा के उत्पत्ति ला लगभग 1000 साल के मानथें, कुछ साल के छोटे-बड़े हो सकथें फेर दुनों भाषा के उमर लगभग एके बरोबर हे। हम-उमर रहे के कारण कहव कि एके माटी के संस्कार के कारण कहव, दुनों आपस मा वइसने मिंझर गे हवँय जइसे दार मा घीव। सुवाद दुनों के आथे, दिखे मा अलग-अलग दिखै नइ, तभो ले दार के अस्मिता अलग हे अउ घीव के अस्मिता अलग। छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी साँझर-मिंझर होए के बावजूद दुनों के स्वतंत्र अस्तित्व बने रहिस, बने हवय अउ बने रहिस। 


इनकर अंतरसंबंध ला साहित्य के नजर मा देखहू त पाहू कि छत्तीसगढ़ के अधिकांश साहित्यकार मन हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा ऊपर समान अधिकार रखके दुनों भाषा के सेवा करिन। छत्तीसगढ़ मा गिनती के साहित्यकार होहीं जिन मन निमगा हिन्दी या निमगा छत्तीसगढ़ी के सेवा मा अपन जिनगी गुजार दिन। छत्तीसगढ़ी के आधुनिक काल सन् 1900 के बाद के काल माने जाथे। ये काल के शुरुआत मा कविता के भाषा "ब्रज-भाषा" ला मानत रहिन। पं. सुन्दरलाल शर्मा जी शुरुआती काल मा ठेठ छत्तीसगढ़ी भाषा मा छन्दमय "दान-लीला" के रचना करके ये भरम ला तोड़िन अउ बताइन कि कविताई बर छत्तीसगढ़ी भाषा सर्व गुण सम्पन्न अउ समर्थ भाषा हे। दोहा, सवैया, त्रोटक अउ चौपाई - इन चार शास्त्रीय छन्द के प्रयोग होइस हे दानलीला मा। 


वर्तमान पीढ़ी ला "दानलीला" के महत्तम बताए बर, छत्तीसगढ़ी भाषा के शब्द-सामर्थ्य ला जन-जन तक पहुँचाये बर, जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी दान-लीला ला  संगीतबद्ध करवाइन। गायक के रूप मा छाया चंद्रकार के संग मा खुद मस्तुरिया जी अपन आवाज मा रिकॉर्ड करवाइन। सफल अउ सुप्रसिद्ध गीतकार होए के बावजूद अपन पुरखा गीतकार के गीत ला जन-जन तक पहुँचाये बर बड़का कलेजा चाही। हम तो देखत हन, कतको झन *मँय-मँय-मँय* के बीन बजावत आत्म मुग्धता मा जिनगी बितावत हें। हिन्दी भाषा ऊपर जबरदस्त पकड़ रहे के बावजूद मस्तुरिया जी छत्तीसगढ़ी भाषा ला समृद्ध करे बर अपन जिनगी ला होम कर डारिन। ओमन कभी ये बात के ढिंढोरा नइ पीटिन कि पं. सुन्दरलाल शर्मा के दानलीला के मँय रिकार्डिंग करवाये हँव। जउन मन दानलीला नइ पढ़ें हें वोमन यूट्यूब मा दान-लीला लिख के सर्च करके संगीतबद्ध दानलीला सुन सकथें। 


पं. सुन्दरलाल शर्मा जी के बाद छत्तीसगढ़ी भाषा के सोनहा युग पचास के दशक मा देखे बर मिलथे। पचास के दशक के शुरुआत मा द्वारिका प्रसाद तिवारी "विप्र" जी अउ कोदूराम "दलित" जी के काल मा छत्तीसगढ़ी भाषा आकाशवाणी नागपुर, भोपाल, इंदौर मा देश के कोना-कोना तक पहुँचिस। आकाशवाणी रायपुर के स्थापना 60 के दशक मा होइस। इहाँ घलो छत्तीसगढ़ी भाषा विराजिस। ये दुनों कवि मन के प्रताप ले छत्तीसगढ़ी भाषा, कविसम्मेलन के मंच मा विराजिस। कोनो मन सोचे नइ रहिन कि हिन्दी कवि सम्मेलन के मंच मा छत्तीसगढ़ी भाषा समानांतर लोकप्रियता प्राप्त कर पाही। कवि सम्मेलन के मंच मा छत्तीसगढ़ी भाषा ला स्थापित करे के श्रेय विप्र जी अउ दलित जी ला जाथे। एकर प्रभाव ये पड़िस कि नान नान गाँव अउ कस्बा मा नाचा के अलावा छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के मांग बढ़गे। इंकरे मन के प्रताप ले आज छत्तीसगढ़ी भाषा मा बड़े बड़े कवि सम्मेलन होवत हें। उल्लेखनीय हे कि विप्र जी अउ दलित जी के हिन्दी भाषा ऊपर समान अधिकार रहिस। छत्तीसगढ़ी भाषा के समृद्धि के ये सोनहा काल पचास अउ साठ के दशक मा अपन चरम मा रहिस। 


सत्तर के दशक के शुरुआत मा भाषा-समृद्धि के एक सुनामी आइस। 07 नवंबर 1971 के बघेरा के दाऊ रामचंद्र देशमुख के "चंदैनी-गोंदा" के प्रथम प्रदर्शन का होइस, जम्मो छत्तीसगढ़ मा सांस्कृतिक चेतना, स्वाभिमान अउ जागरण के भूचाल आगे। 29 जनवरी 1972 मा ग्राम पैरी (बालोद) के चंदैनी गोंदा के प्रदर्शन, छतीसगढ़ी भाषा बर अमृत-कलश साबित होगे। लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत, छत्तीसगढ़ी भाषा के सौंदर्य के दर्शन करा दिस। खुमानलाल साव के संगीत मा छत्तीसगढ़ी भाषा अलंकृत होगे। "चंदैनी गोंदा" के प्रदर्शन छत्तीसगढ़ के बाहिर अलग अलग प्रान्त मा होइस। जब दाऊ जी ला लगिस कि अब उद्देश्य छत्तीसगढ़ मा सांस्कृतिक चेतना आगे, कलाकार अउ साहित्यकार मन ला पहचान मिलना चालू होगे, लोगन के स्वाभिमान जागगे, छत्तीसगढ़ी भाषा के सुंदरता, संप्रेषणशीलता जम्मो झन ला दिखगे तब 22 फरवरी 1983 के वोमन "चंदैनी गोंदा के विसर्जन के अधिकृत घोषणा कर दिन। 


सन् 1971 के पहिली छत्तीसगढ़ी भाषा ला पाठ्यक्रम मा शामिल करे के सुगबुगाहट चालू होगे रहिस। "चंदैनी-गोंदा" के जागरण के कारण ये सुगबुगाहट एक जबरदस्त "मांग" बनगे। मांग अतिक पुरजोर रहिस कि छत्तीसगढ़ के एक मात्र विश्व विद्यालय "पं.रविशंकर शुक्ल विश्व विद्यालय, रायपुर ला एम.ए. हिन्दी (अंत्य) के आठवाँ प्रश्न पत्र "विशिष्ट अध्ययन" मा एक वैकल्पिक विषय "जनपदीय भाषा" के रखना पड़िस। छत्तीसगढ़ के जनपदीय भाषा "छत्तीसगढ़ी" रहिस तेपाय के आठवाँ प्रश्न पत्र मा "छत्तीसगढ़ी भाषा" पाठ्यक्रम के रूप मा सम्मिलित होगे। जब एम. ए. अंतिम के आठवाँ प्रश्न पत्र के वैकल्पिक विषय के रूप मा छत्तीसगढ़ी भाषा शामिल होइस तब रविशंकर विश्व विद्यालय के कुलपति जगमोहन मिश्र जी रहिन। छत्तीसगढ़ी भाषा ला पाठ्यक्रम मा शामिल करे मा कुलपति महोदय के बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहिस।


एकर बर सन् 1973 मा पाठ्य ग्रंथ के रूप मा "संकलन क्रमांक -17, रविशंकर विश्व विद्यालय, रायपुर "छत्तीसगढ़ी काव्य संकलन" प्रकाशित होइस। येकर संपादक रहिन श्री हुकुम चंद गौरहा, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, जांजगीर स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जांजगीर (बिलासपुर, म. प्र.)

किताब के मुख पृष्ठ, अनुक्रमणिका सहित 4 पन्ना के स्कैन चित्र संलग्न करत हँव। 

रविशंकर विश्वविद्यालय,रायपुर  के "संकलन क्रमांक - 18" सन् 1978 मा प्रकाशित होए रहिस जेकर संपादन डॉ. पालेश्वर शर्मा जी करे रहिन। ये संकलन देखे के सौभाग्य मोला नइ मिल पाइस फेर ये जानत हँव कि ये संकलन मा लक्ष्मण मस्तुरिया जी के कविता घलो संकलित रहिस। जब एम ए के कोर्स मा छत्तीसगढ़ी भाषा वैकल्पिक विषय के रूप मा रहिस वो काल मा हमर महान साहित्यकार डॉ. परदेशीराम वर्मा जी के छत्तीसगढ़ी उपन्यास "आवा" घलो पाठ्यक्रम मा शामिल रहिस। 


अब एक मजेदार किस्सा अउ जान लेवव। पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी जी के छत्तीसगढ़ी कविता "बेटी के बिदा" उँकर पहचान माने जाथे, ये कविता छत्तीसगढ़ी साहित्य के सुप्रसिद्ध कविता के रूप मा पहचान बना चुके हे। पं. श्यामलाल चतुर्वेदी जी सन् 1976 मा *स्वाध्यायी छात्र* के रूप मा एम. ए. के परीक्षा मा शामिल होए रहिन। आठवाँ प्रश्न पत्र मा *बेटी के बिदा* कविता ऊपर प्रश्न पूछे गए रहिस अउ उन मन एक परीक्षार्थी के रूप मा अपने कविता के व्याख्या करके उत्तर लिखे रहिन। अइसन संजोग ला दुर्लभ संजोग माने जाथे। अइसने दुर्लभ संजोग डॉ. बशीर बद्र अउ श्री देवधर दास महंत संग जुड़ चुके हे। महंत जी के संग ये दुर्लभ संजोग 1980 मा बने रहिस जब उन एम.ए. हिन्दी (अंतिम) के आठवाँ प्रश्न पत्र के परीक्षा मा बइठे रहिन। 


अब आवव चर्चा करीं सन् 2013  के जब छत्तीसगढ़ी भाषा एम. ए. के पाठ्यक्रम मा स्वतंत्र रूप से आइस। दुर्ग के वयोवृद्ध साहित्यकार पं. दानेश्वर प्रसाद शर्मा जी के जनम दिन उपलक्ष मा स्वामी स्वरूपानंद कालेज हुडको मा एक साहित्यिक आयोजन रहिस जेमा श्री व्यास नारायण दुबे जी घलो पधारे रहिन। ये मंच मा छत्तीसगढ़ी भाषा ला एम.ए. के पाठ्यक्रम मा शामिल करे के मांग उठे रहिस। श्री दुबे जी उहाँ कहे रहिन कि अगर आप साहित्यकार मन के सहयोग रही त हमर रविशंकर विश्व विद्यालय छत्तीसगढ़ी भाषा मा एम. ए. के कोर्स जरूर चालू करही। ए बेरा मा श्री शिवकुमार पांडे जी कुलपति रहिन। उन मन अमेरिका गए रहिन अउ श्री व्यास नारायण दुबे जी कार्यवाहक कुलपति रहिन। व्यास नारायण दुबे जी सिरतोन मा अपन प्रस्ताव भेज के स्वीकृति दिलवाइन अउ सिरतोन मा सन् 2013 से रविशकर विश्व विद्यालय मा एम. ए. (छत्तीसगढ़ी) चार सेमेस्टर मा चालू होगे। हमन ला श्री व्यास नारायण दुबे जी के आभार मानना चाही कि उन मन विशेष रुचि लेके के छत्तीसगढ़ी भाषा ला पाठ्यक्रम मा शामिल करे मा अमूल्य योगदान प्रदान करे रहिन। 


छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के ये दुर्भाग्य हे कि जउन मन राज्य अउ भाषा ला स्थापित करे बर दिन-रात एक करके अपन सरबस अरपन कर दिन तउन मन ढिंढोरा नइ पीटिन। ढिंढोरा पिटइया मन अइसन मन ला हाशिया मा ला के खड़े कर दिन फेर सच्चाई कभू न कभू सामने जरूर आथे। 


अब आखिर मा एक बात अउ कर लेथंव - छत्तीसगढ़ी भाषा के एम. ए. के पाठ्यक्रम मा शामिल होना सम्मान अउ गौरव के बात आय फेर ये एक भावनात्मक पक्ष आय। छत्तीसगढ़िया होए के कारण अउ छत्तीसगढ़ी भाषा बर मया होए के कारण गर्व जरूर करना चाही फेर अगर व्यावहारिक पक्ष मा सोचे जाय त ये सवाल मन मा आथे कि एम.ए. छत्तीसगढ़ी के डिग्रीधारी स्नातकोत्तर विद्यार्थी मन के भविष्य बर नौकरी के, का कोनो प्रावधान हे ? अगर प्रावधान हे तब तो बहुत बढ़िया बात हे अउ अगर कोनो प्रावधान नइये तब ? तब मन मा ये सवाल उठना स्वाभाविक हे कि अइसन पाठ्यक्रम अउ पढ़ाई के का फायदा ? का शिक्षा ला रोजगारोन्मुख नइ होना चाही ? ये सवाल आप मन बर छोड़त हँव। 


*आलेख - अरुण कुमार निगम*

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