Sunday 20 September 2020

सुरता पुरखा के-बलराम चन्द्राकर

 





सुरता पुरखा के-बलराम चन्द्राकर

छत्तीसगढ़ के दशा दिशा आज ले १२० साल पहिली कइसे रहिस समझना हे तो ये लेख जरूर पढ़ना चाही।) 


*छत्तीसगढ़ - मित्र*


छत्तीसगढ़ ले प्रकाशित पहिली हिंदी मासिक पत्रिका 


प्रकाशन वर्ष :1900

अंक - 1 ला जनवरी


संपादक :

पं रामराव चिंचोलकर

*

पं माधवराव सप्रे


प्रोपराइटर :

श्रीयुत वामन बलिराम लाखे।


वार्षिक मूल्य १।।अग्रिम


पता - पेंढरा, जिला बिलासपुर (सीपी)


विषय प्रवेश :आत्म परिचय


अनुवाद: हिन्दी ले छत्तीसगढ़ी

- बलराम चंद्राकर


प्रिय पढ़ईया साथी हो! लेवौ, अपन परिचय दे बर छत्तीसगढ़ मित्र आपके सेवा मा उपस्थित होय हे।आप ला प्रेषित अउ भेजे गए हस्तपत्रक मा छपे विज्ञापन ला पढ़े ले आप ला अंशत:मालूम होइस होही कि मित्र के जन्म के उद्देश्य का हे? उही उद्देश्य ला नियमावली मा अउ बने स्पष्ट रूप मा दिखाय गए हे, अउ एला फलीभूत करे के निमित्त कई ठन नियम के रचना करे गे हे।अब इहाँ मित्र के आवश्यकता अउ ओकर जन्म के उद्देश्य के सार्थकता ला बताय बर ए लेख मा विस्तार पूर्वक लिखे के साहस करत हन, आशा हे आप खचित ए कोती ध्यान देहू।

आज अइसे कोनो मनखे नइ हे जउन पाठशाला मा जा के भारत वर्ष के इतिहास ला थोड़ बहुत नइ जानत होही ।

*जउन समय पूरा यूरोप खण्ड अज्ञान के अंधकार मा बूड़े रहिस, अउ इंग्लैंड के निवासी निचट जंगली अवस्था मा रहिन वो समय भारत भूमि  बड़े बड़े महात्मा ऋषि मुनि मन के ज्ञान के अॅजोर ले जगमग जगमग करत रहिस। आध्यात्मिक ज्ञान अउ वेदांत विषय मा, विज्ञान अउ साहित्य मा कहाँ कोनो हमर देश के बराबरी कर पावय । सभ्यता के शिखर मा पहुंचे यूनानी मन ले अउ जगत विजेता रोमन मन ले हमर पूरखा आर्य मन कउनो कम नइ रहिन। फेर दुर्भाग्य के बात हरे कि ये सुदशा बहुत लम्बा समय नइ रहि पाइस। बेचारा हमर अभागा देश, जिहां विदेशी मन बार बार आक्रमण कर के प्रजा ला अपन दासता स्वीकार करे बर मजबूत कर दिस। अउ इही धूम - धड़ाका ले इहां के अनुपम ग्रंथ मन के विध्वंस  होगे।खुशी के गोठ ये हे कि अइसन कठिन समय मा घलो आर्य महानुभाव मन अपन आर्यत्व ला नइ छोड़िस ।बड़े बड़े पराक्रमी राजा मन अपन कोषबल ले याचक मन ला संतुष्ट करिन, बाहुबल ले पीड़ित मन के रक्षा करिन, नीति अउ न्याय बल ले राज्य के प्रबंध चलाइन। सद्गुण के ग्रहण शक्ति ले विद्या के प्रति अभिरुचि बढ़ाइन। अउ विद्वान मन ला आश्रय दे के अपन यश कीर्ति के पबरित पताका पूरा भूमंडल मा फहराइन।

ये इहीं प्राचीन पुरुष मन के सद्सद्विवेक बुद्धि के परम प्रताप आय कि कई हजार साल बीते के बाद भी आज भारत वर्ष मा अनेक शास्त्र, विविध पुराण अउ भांति भांति के कला कौशल के सर्वमान्य ग्रंथ उपलब्ध हे। जउन महर्षि मन पुरान-इतिहास सरीख ग्रंथ के निर्माण करिन उंकर कीर्ति भारत मा ही नहीं ये धरती के सबो भाग मा निनादित हो गए हे। इंग्लेंड के टेम्स नदी मा जर्मनी के विश्वविद्यालय मन मा, अउ अमेरिका के स्वतंत्र राज्य मन मा जउन भी वेद के मनमोहिनी अति सुहावनी देववानी सुने हे उही मन हमर पूरखा के चिरकालिक यश के साखी देहीं। अउ बुद्धि वैभव ला सराहहीं। प्राचीन समय के विद्वान मन के यश के विषय मा जतके लिखबे कम हे।

अब यदि ए पूछा जाय कि पुरातनकाल के ग्रंथकार मन के नाव काबर आज के अवधि मा घलो अमर हे तो उत्तर हे कि उॅकर रचे शास्त्र के अध्ययन सब लोगन करथें अउ सिरिफ इही देश मा नहीं देशांतर मा घलो उंकर कृति मन ला पढ़े अउ सराहे जाथे।हमर समझ मा इही जवाब जान पड़थे कि वो समय के राजा महाराजा मन साहित्य प्रेमी संपंन श्रीमान मन अपन भब्य कोष के विनियोग विद्या के उन्नति करे मा, विद्वान मन के उत्साहवर्धन मा अउ आम आदमी के बीच ज्ञान के प्रचार प्रसार मा बहुतायत मा करैं। हमर उक्त कथन के तात्पर्य इही हे कि विद्योन्नति के लिए प्रथम द्रव्याश्रय, दूसर मा लोगन के श्रद्धा चाही। अउ जब तक विद्या के वृद्धि नइ होही, देश मा सुधार कदापि नइ हो सकै। वर्तमान स्थिति ला अवलोकन करबे त पता चलथे कि इंगलिस्थान, अमेरिका, जर्मनी अउ यूरोप के अन्य देश जउन मन कुछ कालखंड पूर्व अज्ञान के अंधकार मा पड़े सड़त रहिन उही मन आज विद्या देवी के प्रसाद से ज्ञान के उच्च शिखर मा बइठे हें। अउ इहां ए आर्यावर्त जउन एक समय संपूर्ण विद्या कला अउ कौशल मा आगू रहिस उहां अब सरस्वती के भयंकर कोप ले अत्यंत नीचे अउ अवनति के दशा मा आ पहुंचे हे।

कहे के मतलब हे, हमर दुर्दशा के जउन- जउन कारण हे ओमा मुख्य ये हे कि हमर देश के धनिक मन विद्या के उन्नति बर - अर्थात उत्तम अउ लाभदायक पुस्तक के प्रसिद्धि बर, ज्ञान के प्रसार बर द्रव्याश्रय दे मा अउ सर्वसाधारण मा विद्या के प्रति अभिरुचि बढ़ाय मा - तन मन धन ले प्रयत्न नइ करै। जउन गरीब, साधनहीन अउ निराश्रित हें बहुधा उही मन के मन मा विद्या उन्नति के नाना प्रकार के विचार आथे। समाचार - पत्र अउ मासिक पुस्तक ला प्रसिद्ध करे के उद्यम, सभा लाइब्रेरी क्लब निकाले - बनाय के खटपट, नूतनशाला स्थापित करे के प्रयत्न, अधिकतर आधुनिक पढ़े लिखे मन के द्वारा ही होवत हे। अइसन श्रीमान बहुत कम हे जउन ए कार्य मा सहायता करंय, या कोनो जिम्मेदारी निर्वहण बर आगू आवँय। उंकर संपत्ति प्राय:अनुत्पादक व्यय करे मा अउ ऐश आराम ले पूरखा मन ले अर्जित धन के नाश करे मा चल देथे।परन्तु हमर राजा महाराजा मन ला स्मरण रहै कि उन विद्या उन्नति के मुख्य आधार स्तम्भ हरे। यदि भारतवर्ष के पूरातन समृद्ध सभ्यता ला फिर से जीवित करना हे, या नवा सुधार के संस्कार के प्रभाव ला इहाँ देखना हे त इहीं मन ला अगुवा बनना पड़ही। काबर सत्य इही हरे कि जब तक ए देश के प्रधान भूमि मा स्वामित्व रखैया वर्ग हा (अर्थात महाराजा, रईस, जमींदार, तालुकदार वगैरह, जिंकर आम आदमी मन उपर बहुत कुछ बोझ अउ दबाव पड़त रहिथे) स्वयं अपन करतूत ले सन्मार्ग के दर्शक नइ बनहीं तब तक साधारण स्थिति के लोगन मा ज्ञान प्राप्ति के इच्छा कदापि जागृत नइ होवै। ठीक इही मत हमर लोकप्रिय राज्य कार्य धुरंधर लार्ड कर्जन महोदय के घलो हे। हम बड़ खुशी के साथ मानथन कि बड़ौदा, मैसूर, ग्वालियर, जयपुर जइसे की संस्थान मन मा राजा के आश्रय ले विद्योत्तेजन के बहुत अकन प्रथा प्रचलित हो गए हें।परन्तु अत्यन्त शोक अउ कष्ट के साथ कहना पड़त हे कि मध्य प्रदेश के छत्तीसगढ़ विभाग मा राजा महाराजा श्रीमान अउ जमींदार मन अतेक विपुल धन संपंन होके भी एको झन अइसन काम उपर ध्यान नइ दै। ये मन ए बात के विचार नइ करैं कि विद्या के उन्नति करे मा जब तक इन उदासीन रइहीं अउ पर के मुख देखत रइहीं तब तक हिंदू समाज के प्रगति नइ हो सकै। इंकर ये अनास्था अउ उदासीनता एक छत्तीसगढ़ विभाग बर ही नहीं सम्पूर्ण देश बर घातक होहीं। अतएव सारांश मा, इंकर चित्त ला ए महत्वपूर्ण विषय मा खींचे बर अउ इंकर सहायता ले विद्या उन्नति के समान महत्वकार्य सम्पादन करे बर *छत्तीसगढ़ - मित्र* हा जन्म ले हे।

        हिन्दुस्तान मा अंग्रेज मन के राज होय ले जउन बहुत अकन फायदा हमन ला दिखथे- वोमे विद्या  लाभ ला प्रमुख समझना चाही। परमेश्वर हा उन मन ला पूरा जग  मा शासन करने वाला बनाय हे अउ उन मन खुद घलो विद्या अउ पठन-पाठन के महत्व ला जानथे। *उंकर प्रोत्साहित करे भर ले ए देश के मातृभाषा मन सजीव होय ला धर लिन।* अउ जउन मरहा हो गए रहिन, वो मन मा जान आगे। गोंड़ खोंड अउ संथाल कस वनवासी मन के साधन सून्य अउ उपेक्षित भाषा मन ला घलो हमर परम दयालु राज्यकर्ता मन के प्रयत्न ले नवा स्वरूप अउ उजास मिल गे। जब  जंगली भाषा मन मा अइसन बदलाव दिखत हे ता हिंदी, मराठी, बंगाली, गुजराती, तेलगू जइसन चतुर भाषा मन मा आजकल बहुत ही अभिनन्दनीय, रमणीय अउ चित्ताकर्षक स्वरूप आवत हे, ये ला लिखे के जरूरत हे का? वर्तमान समय मा हिन्दुस्तान के जतका प्रचलित भाषा हे, उंकर पचास साल पहिली के स्वरूप अउ आजकल के स्वरूप ला कोनो मिलान किया जाय, तो जमीन आसमान के फरक नजर आही। फेर पाठक मन ले ये बात नइ छूपे हे कि हमर राज्यकर्ता अब ए विषय ले दिन प्रतिदिन अपन हाथ खींचत जावत हे।बात अतकेच नोहै, उंकर चित्त अब प्रतिकूल होत जावत हे। अइसन समय मा अब लोगन ला एक चित्त होके मन लगा के प्रयत्न ला जारी रखना चाही।

देखौ! शिक्षा विभाग के अधिकारी मन जउन वार्षिक रिपोर्ट पेश करथे वोमा ए बात के जानकारी हो गेहे कि बंगाल, मद्रास, बम्बई, पंजाब, पश्चिमोत्तर  देश, अवध सहित हिन्दुस्तान के अउ भाग मन मा जिहां - जिहां शिक्षण दिये जाथे, उन सबो के अपेक्षा मध्यप्रदेश  के आदमी मन शिक्षा के काम मा बहुत ही पीछु हे।प्रत्यक्ष मध्यप्रदेश के जब ए दशा हे तब उंकर अंतर्गत आने वाला ये छत्तीसगढ़  विभाग  सुदशा के भागी कइसे हो सकथे? लोकशिक्षण के पूर्ण अभाव के कारण छत्तीसगढ़ के समान शोचनीय अवस्था दूसर कोनो प्रांत के नइ होही।यहां के जनता अत्यंत दरिद्र स्थिति के कारण , उच्च स्तरीय ज्ञान ले हमेशा वंचित रहिथे। एकर सेती, विद्या उन्नति मा जउन मन पीछु हे वोमा हे मध्य प्रदेश अउ खासकर छत्तीसगढ़ विभाग जउन आज घलो लइकुसहा अवस्था मा हे। हमर मुख्य हेतु इही हे कि ए मन हर प्रकार के विद्याकला अउ हूनर मा प्रवीण होके उच्च पद मा पहुंचे। जउन मध्य प्रदेश मा लोकशिक्षा के फैलाव बिलकुल कम हे अउ ओकर जउन विभाग छत्तीसगढ़ हे वो हा बिल्कुल सून्य हे उहां विद्या वृद्धि बर *आधुनिक नूतन मार्ग* निकाला जाय :-अर्थात नवा-नवा पाठशाला मन के स्थापना किया जाय, विद्यार्थी मन ला आर्थिक सहायता दिया जाय, भाषा के सुलेखक मन ला उत्साहित किया जाय, ग्रंथ के प्रकाशन करने वाला संस्था - मंडली अस्तित्व मा लाया जाय, प्रकाशित ग्रंथ के समालोचना करइया ग्रंथ परीक्षक सभा के गठन किया जाय साथ ही समाचार पत्र अउ मासिक पुस्तक प्रसिद्ध किये जाय - इही हमर अंतीम उद्देश्य हे। सारांश, अइसे - अइसे उपाय करे के हमर योजना हे, जेकर से हमर ये वनाच्छादित प्रदेश (छत्तीसगढ़) आत्मोन्नति कर के देश के अन्य प्रदेश मन के योग्यता मा पहुंचै अउ  अपन संपूर्ण आर्य समाज ला सुखी करै। फेर ए काम धनिक मन के आश्रय के बिना कदापि सिद्ध नइ होवै।


उपर कहे गे उद्देश्य के पूर्ति बर हमन जउन बात के निश्चय करे हन, नीचे लिखाय हे:-


*पहिली* - ए समय छत्तीसगढ़ विभाग ला छोड़ के अउ कोनो अइसे प्रांत नइ हे जिहां दैनिक, साप्ताहिक, मासिक या त्रैमासिक पत्रिका नइ प्रकाशित होवत होही। एमा कोनो संदेह नइ हे कि सुसंपादन पत्र - पत्रिका मन के द्वारा हिंदी भाषा के उन्नति होय हे। इही कारण से इहाँ भी "छत्तीसगढ़ मित्र" हिंदी भाषा के उन्नति बर विशेष प्रकार से धियान देवै, जहां तक हो सकै भाषा मा अच्छा - अच्छा विषय के संग्रह करै, अउ आजकल भाषा मा बहुत अकन कूड़ा करकट जमा होवत हे वो ला रोके बर प्रकाशित ग्रंथ मन के प्रसिद्ध मार्मिक विद्वान मन के द्वारा समालोचना घलो करै।


*दूसरा बात*-हिंदी भाषा के साहित्य बहुत ही संकुचित हे अउ केवल हिंदी जानने वाला मन के भिन्न-भिन्न ग्रंथ के रस ले स्वाद पूरा नइ होवै। ए कारण हिंदी लिखित साहित्य के संग्रह ला पुष्ट करे बर अउ दूसर भाषा मन के ग्रंथ मन के अनुवाद कर के सर्व उपयोगी विषय मन के संग्रह खचित जरूरी हे। एकर बर पदार्थ विज्ञान, रसायन, गणित, अर्थशास्त्र, मानसिक शास्त्र, नीतिशास्त्र, आरोग् शास्त्र जइसन अनेकानेक शास्त्रीय विषय मन के अउ प्रसिद्ध स्त्री पुरुष के जीवन चरित्र, मनोरंजक कथा कहानी, ज्ञान प्रचुर आख्यान, लइका - सियान सबो स्त्री पुरुष मन के पढ़े के लइक अच्छा हितकर उपन्यास जइसे मनोरंजक अउ लाभदायक विषय - आंग्ल, महाराष्ट्र, गुर्जर, बंगदेशीय अउ संस्कृत आदि के ग्रंथ के अनुवाद करके हिंदी प्रेमी मन ला अर्पित करे के हमर बिचार हे। 


तिसरा - छत्तीसगढ़ के गरीब विद्यार्थी मन ला उच्च प्रकार ले शिक्षा मिलै अउ ये छत्तीसगढ़ क्षेत्र मा विद्या के प्रसार ले उद्योग- धन्धा बाढ़ै, ए निमित्त मा *"छत्तीसगढ़ मित्र"* के छपाई वगैरह के खर्चा निकाल के जो कुछ प्राप्त धन राशि बचही वोकर ले स्कॉलरशिप दे के प्रबंध किये जाही। ग्राहक अउ आश्रयदाता मन के उत्साह देख के अउ पहिली साल के अनुभव के बाद ठीक - ठीक नियम बनाये जाही। अभी ए विषय मा अउ ज्यादा कुछ लिखई ठीक नइ हे।


हालांकि देखे मा उपर व्यक्त विचार मन सपना कस लागथे फेर कोनो काम ला शुरू करे बर अइसन काम बहुत ही जरूरी हे। उपर बताये गे कार्य मन के सीमा ला एकदम से बढ़ाना अउ उचित प्रबंध न होय के दशा मा फेर गोता लगावत रहना अभी हम ठीक नइ समझत हन।जतका बोझ हमन अभी उठाय के निश्चय करे हन वहू ला हमन स्वयं के बल मा नइ कर सकन। सबो देशहित के चिंतक मन ला हम अवगत कराना चाहत हन कि कोनो पइसा कमाय बर हमन ए कार्य ला शुरू नइ करे हन। एला हमन एक महान अनुष्ठान कर्म समझ के, भाषा के उन्नति खातिर अउ छत्तीसगढ़ मा विद्या वृद्धि के निमित्त तन मन धन ले प्रयत्न करे के दृढ़ निश्चय करे हन। ए कारण से  देश के प्रति अभिमान रखने वाला सबो स्त्री पुरुष मन ले अउ खासकर छत्तीसगढ़ के राजा महाराजा, श्रीमान जमींदार मन ले हमर इही प्रार्थना हे कि - "अज्ञान के अंधकार मा पड़े अपन छत्तीसगढ़ विभाग ला कोनो एक नवा, सर्वांग सुंदर, हितकर मासिक पुस्तक ले विभूषित करना चाहत हौ, हितभागिनी देवनागरी भाषा के उन्नति मा कुछ गरब अउ श्रद्धा के भाव रखत होहू, साथ ही अपन अशिक्षित गरीब पीड़ित प्रांत मा विद्या वृद्धि करके लोकहित के भागी बनना चाहत होहू, अउ कोनो अपन छात्र वर्ग के उच्च शिक्षा बर सहायता देना चाहत होहू "- *तो किरपा कर के ये आरंभिक कार्य ला सफल करे बर सहभागी बनौ अउ अपन यश अउ प्रसंशा पाय के लाइक काम मा परम परोपकार के भागी बन के पुन्यात्मा बनौ ।हमर पूरा विश्वास हे कि भारतवर्ष मा विद्या उन्नति के निमित्त आजतक कोनो कभू अपन कोष के द्वार ला बंद नइ करे हे। त आजे काबर इहाँ के धनवान प्रजा अपन नाक मरोड़ही? अउ काबर राजा महाराजा उदार आश्रय दे ले हिचक देखाही?* 


आखिर मा हम जगत के चलैया परमात्मा ले इही प्रार्थना करत हन जउन हा हमर मन मा ये कार्य ला करे के प्रेरणा दिइन कि - हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! हमर मन मा जउन आजतक तरह - तरह के विचार उमड़त रहिन ओकर ले उत्साहरूपी बीज के अंकूर होय के समय आ गेहे। ये अंकूर मा लोकाश्रय रूपी जल के सिंचन होवै, जेकर ले जल्दी पुष्पित होके निज कर्म के फल ले सर्व साधारण ला संतुष्ट किये जा सकै। 


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अनुवाद :20/09 /2020 रविवार 

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2 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया अनुवाद।हार्दिक बधाई।

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  2. बहुत बढ़िया अनुवाद भैया जी

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