Wednesday 2 September 2020

अमर बिमारी-सूर्यकांत गुप्ता

 अमर बिमारी-सूर्यकांत गुप्ता



             मोला तुमन रक्तबीज ले कम झन समझौ। गन गन के मनखे के परान लेहूँ। भस्मासुर कहि सकत हौ, फेर ओमाअभी फिट नइ बइठत हँव। मनखे तुरते भसम नइ होवय। मनखे ल थोकिन दिन के मोहलत देथौं, चेताथौं घलो के सावचेत रहौ, सावधान रहौ कहिके। हाँ जउन पहिलिच ले बड़े बड़े बिमारी ले परेसान हे, अउ कहूँ दूबर म दू असाढ़ कस  मैं पइध गेँव, त फेर समझौ उंखर जमलोक बर बुकिंग पक्का। अब अतका मोहलत दे के बाद  मसमोटी म परहेज झन करौ, मुँह नाक कान झन तोपौ, दूरी झन बना के रहौ, हाथ धोए के, सेनेटाइज करे के धियान झन रखौ, तौ भाई हो मोर ले नई बाँचे सकँव।"रामनाम सत्य हे" कहइया तक नई मिलय। 



           एक ठन अउ बिसेस बात। मैं स्वामी भक्त घलो आँव।जिहाँ जनमेँव, उहाँ के मालिक के मैं हमेसा करजदार रइहौं। अपन ईमान के किरिया खा के कहत हौं, ओला कभू नकसान नइ पँहुचावँव।। संसार म एक एक झन ल चीन्ह चीन्ह के नीछ डार कहिके मोला बगराए हे।



           हा हा हा हा.....अभी मोर ले बड़े बिमारी इहाँ कोन हे। महिच बड़े बिमारी आँव ए लोक के। 



            कोरोना के ए बात ल सुन के जम्मो बिमारी के मुँह बंद हो गै जी। जम्मो सकपकाए खुसरे हवैं। डॉक्टरो के धंधा मंदा होगे हे। ओइसे गौरमेंट के डॉक्टर मन के समरपन के दाद दे बर परही। उंखर स्टाफ के समरपन ल माने ल परही। कई झन बिचारन मरीज के परान बचावत अपन परान गँवा डरिन। पराइभेट डॉक्टर मन घलो दुबके रहँय। फेर धीरे धीरे मरीज देखत हें। ओइसे इंटरनेट के मदद ले के मरीज के परेसानी ल सुन के इलाज करत रहिन।  डिजिटल के जमाना ताय।  पैसा ऑन लाइन जमा करवा लेत रहिन। अब अपन अपन दवाखाना खोल के मरीज ल दू गज दूरिहा बइठार  के घलो देखे लगे हें। बहुत सतर्क होगे हें।  फेर शरीर म कहाँ पीरा हे, कइसे लगत हे एला नइ देखत हें। 



              शायद कोरोना के ये बात ल एक ठन अउ बिमारी सुनत रहिस। बघवा कस गुर्रावत कोरोना ल केहे लगिस;



                "हा हा हा हा हा ...तँय का बड़े बिमारी अस कोरोना। तोला मारे के, तैं कोनो मनखे भीतर झन घुसर कहिके लछमन रेखा सरिख, दवाई घलो बन जही फेर मोर काट के दवाइये नई बने हे। मैं जन जन म पइध गे हँव।"



                 आगू केहे लगिस; कानून तक ल अपन बस म कर लेथौं। मनखे मोर खियाल रखत, कानून ल अपन मन मुताबिक अपन फेभर म मोड़वा लेथे। मोर परभाव ले गलत काम करवइया,  हत्या जइसे, अपराध करवइया घलो साफ साफ बरी हो जथे। सरकारी दफ्तर त मोला बिमारी नई मानय ओमन मोला टॉनिक कस मान के पीथें। अब तँही देख ले, देखत घलो होबे; तोर सेती मोर फैलाव घलो कहाँ कहाँ नइ होय हे। तोर नाव लेके जतका दान पुन्न करिन मनखे मन ओमा ओकर कतका फायदा कष्ट सहइया ल मिलिस अउ कोन अपन खीसा भरिस इहू ल देखे होबे।कई झन के दान पुन्न त अपन करिया पूँजी ल गोरियाये म काम आइस होही। अभी घलो एक ठन अउ नवा बात पता चलिस ओही। जेन जेन ल धर पकड़ के लेजे हें उंखर मन म तोर एको ठिन लच्नछन नइये फेर कथें मोर उपासक मन एकर नाव म गौरमेंट ला चूना लगावत अपन खीसा भरे बर मरीज के संख्या बढ़ाये के  ए उदिम करत हें। मैं सबके रग रग म समा गे हँव। मोला ठीक 

करइया टीका बनेच नइये न बन सकै। मोर नाव ल जान गे होबे....मोला कथें ....भ्रष्टाचार। लोगन मन सम्मान पूर्वक

शिष्टाचार, सुविधा शुल्क घलो केहे लगे हें....



                  ए दूनो बिमारी के बात ल सुनत रेहेँव। अभी

अभी सरकारी फरमान घलो जारी होवत हे या होगे हे शायद; सरकारी कर्मचारी के रिटायरमेन्ट के उम्मर ल घटाये के, बड़े बड़े सरकारी विभाग के पराइभेटाइजेशन होय के...इहू ल पढ़ेँव.. एदे सरसती दाई चार लाइन लिखवा डारिस;



जारी    होगे  हे  नवा,   भाई   गो   फरमान।

बेचावय  ईमान झन, एकर  रखिहौ ध्यान।।

फेर!!!! अइसे लगथे...

उपरे   ऊपर  ऊपरी,  उड़ही अब तो यार।

तरी तरी बर बाँचही, देखव तुम मुँह फार।।



रुतबा  वो  प्रावेट  मा, राहय नहीं अबाद।

बनके मिलथे जे  मजा, सरकारी  दामाद।।



            सबो झन ल जोहारत...🌹🌹🙏🙏

सूर्यकान्त गुप्ता, 'कांत'

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

1 comment: