Wednesday 2 September 2020

बरदान-गजानन्द देवांगन

 बरदान-गजानन्द देवांगन


                भगवान राम हा जब बनवास गिस त ओकर संग म कतको जनता पिछू पिछू चल दिन । गंगा खंड़ म भगवान किथे के जम्मो नर नारी मन इही तिर ले वापिस हो जाओ । कन्हो ला बात नी मानत देख , रथिया  कुन सुते दसना म सबला छोंड़ के भगवान कलेचुप चल दिस । चौदा बछर पाछू ..... भगवान अइस त देखथे के ..... कुछ मन अभू घला उही तिर जमे हे । निसाद राज बतइस ....... तूमन जावत समे एक ठिन गलती कर पारेव भगवान ..... । नर नारी ला वापिस जाये बर केहेव तेकर सेती , जे नर अऊ नारी दुनों नोहे तेमन , इही तिर तुंहर अगोरा म लड़त झगरत बिलमगे । भगवान ओमन ला किथे – तूमन उही समे म कहितेव निही गा ..... के हमन का करन ? ओमन किथे – हमन सोंचेन के तैंहा जानत होबे .... । तूमन सोंचे होहू के .... तोर बिना हमन ला कोनेच हा पूछही ......। भगवान अपन गलती सुधारत किथे – मोर बिगन तूमन ला बहुत कस्ट झेले बर परिस । जब कलजुग म जनम धरहू तब मोर बिगन तुम बहुतेच सुख पाहू ..... । तूमन ला जम्मो राज पाठ मिलही । येमन किथे - हमन राज पाके एक दूसर ले लड़न झन । हमर दोस्ती जबर रहय ..... फेर हमन एक दूसर ला कइसे चिनबो ..... ? भगवान किथे – तूमन ला राज जइसे मिलही तइसे ...... तुंहर पुरूसत्व उदुपले गायब हो जही । ओकर जगा बीच वाले हा ले लिही ...... । जेकर जेकर पुरूसत्व मेटावत जाही ...... तेमन ...... एक दूसर के बात अऊ काम ला बिगन जाने सुने अऊ बिगन परखे , बिगन बिसलेसन करे , समरथन म थपड़ी पीटही ... तहन समझ जहू के उही मन आपस म त्रेताजुग के संगवारी आय । 

                ओमन चल दिन तब भगवान ला कुछ अऊ मनखे दिखीस । निसाद राज बतइस – येमन नर अऊ नारी आय भगवान ....... तुंहर बाट जोहत कुछ मन आंखी मुंदके खड़े हे ..... कुछ मन एक गोड़ म ..... । फेर आंखी मुंदइया मन बीच बीच म आंखी उघारके को जनी घेरी बेरी कति निहारत रहिथे । रामजी उंकर तिर म जाके केहे लगिस – बड़ तपसिया करत हव तूमन जी ...... । फेर तूमन ला जाये बर केहे रेहेंव ...... तूमन काबर नी गेव ....... ? ओमन किथे – हमन अजोध्या जाके कायेच करतेन भगवान । वापसी म तुंहर ले पहिली मुलाखात हो जहि सोंचके ........ इही तिर अगोरत हन । भगवान किथे – तूमन मोर बात नी मानेव ..... फेर मोर नाव के जाप करत तपस्या करेव ...... मांग लव तहूमन ...... । ओमन केहे लगिन - हमन ला का देबे भगवान । हमर पहिली जे नर अऊ नारी दुनों नोहे तेला कलजुग म राजपाठ देके बचन दे डरे हस । हमर बर काये बचाये हस ...... ? भगवान किथे – सरी दुनिया के सबर दिन बर राजपाठ थोरेन देहंव तेमा ...... अऊ कतकोन जगा अऊ समे बांचे हाबे ..... जिंहा के राजपाठ के सुख तहूं मन पा सकत हव । 

               भगवान येमन ला बरदान देवत किहीस – जे मनखे मोर अगोरा म अतेक बछर ले आंखी मूंद के खड़े रिहीस तेमन ... नाव जपन के अइसने उदिम म कलजुग म राज पा जही । आंखी मुंदइया मन किथे – सहींच में भगवान ... हमन सिरीफ तोर नाव के भरोसा म राज पा जबो ..... ! फेर कब पाबो ? भगवान किथे - जब नर अऊ नारी के बीच वाला मनखे मनके के हिरदे म पुरूसत्व जाग जही ...... अऊ तब ओमन स्वहित छोंड़ देस हित म फइसला लेहे बर धर लिही ..... अऊ एक दूसर ले बिगन बात के लड़े बर धर लिही तहन ओकर हांथ ले सत्ता छुट जही ..... तब तुम राज पाहू ...... । फेर तूमन जब राजा बनहू तब तुंहर आंखी मुंदा जही । येमन पूछे लगिन – त अइसन म राज करे के काये मजा ..... ? भगवान किथे – अरे .... आंखी हा देखे बर नी मुंदाये ....... नी देखे बर मुंदाही ....... । अपन मनखे के न चोरी दिखय न डकैती ...... न बईमानी दिखय न भरस्टाचार ..... । जे सड़क म दूसर के राज म चार दिन पहिली खंचका डबरा दिखत रइहि तेहा ..... अपने अपन बिगन कुछ करे चिक्कन दिखही । राज पाये के पहिली जेमा भस्टाचार दिखत रइहि ...... उहीच हा बाद म बिगन कहीं बदलाव के ईमान के बूता दिखही । सिरीफ दूसर के गलती दिखही ..... अपन हा कभू नी दिखय । वो समस्या जेकर नाव म तुम काकरो पुरूसत्व जगोहू .... तेहा ..... चुमुकले अपने अपन दिखना बंद हो जही ।  

               थोकिन आगू म , एक गोड़ म खड़े होके अगोरत मनखे ला देख के निसाद राज हा भगवान ला बतइस - अरे तोरो भगत मन बड़ अलकरहा हे भगवान । तपस्या के बीच म जब पाये तब गिरत हन कहिके .... बैसाखी कस लउड़ी के सहारा लेके रेंगे बर धर लेथे । भगवान ला तिर म आवत देख ...... एक गोड़ उचाके अगोरत मनखे मन थोकिन नराजगी देखावत ...... टेंग रेचेक रेंगे बर धरिन । चौदा बछर ले टांगे टांगे उंकर गोड़ चंगुरगे रिहीस । भगवान ओमन ला किथे – तूमन ला घला देहूं जी ...... तूमन काबर नराज होवत हव । जब तक ओमन राज करहीं तब तक तूमन बिपक्छ म रहू । येमन भड़कगे अऊ भगवान ला पूछथे – त असन म हमन सत्ता सुख कभू नी पावन भगवान ? तैंहा नर अऊ नारी के बीच वाले मनला सत्ता पाये के बरदान दे डरे ..... ओकर छोड़े के पाछू अंधरा होवइया ला सत्ता दे डरे ........ हमर बर काये बांचिस ? भगवान किथे – तहू मन सत्ता सुख पाहू जी ..... । जब अंधरा   मनखे के कुछ संगवारी मन ..... आंखी उघारके सच देखही अऊ तरी उपर अपने संगवारी के सरी पोल खोलही ......... तब सत्ता हा इंकरों हांथ ले खसल दिही । तब तुम गिरे बर धरहू ..... तहन तूमन ला मउका मिलही । फेर तूमन राज तब पाहू जब ...... ये दुनों में से कोई बइसाखी बनके तूमन ला गिरे बर मदद करही ....। येमन भगवान ला पूछथे – हमन सत्ता पाबो तहन ..... खोरवा लगंड़ा होके गिर जबो त .... राज कइसे करबो भगवान .....? भगवान किथे – गिरहू तभेच सत्ता पाहू । अऊ सत्ता तब तक बरकरार रइहि जब तक .... गिरत रइहू । येमन किथे – त अइसन गिरके कब तक रहिबो भगवान ? भगवान किथे – जब तक तुमला राज करे के इक्छा रहि तब तक ....... । तूमन ला गिरे बर तकलीप झिन होय ..... तेकर सेती तुंहर सिरीफ एके गोड़ काम करही .... । दूसर गोड़ ला उचा झिन सकव ...... तेकर बर इंकर बइसाखी धारन करे बर परही । एक बात अऊ ....... जइसे सत्ता तुंहर हांथ म आही तइसे ...... तहूं मन या तो नर नारी के बीच वाला मनखे बन जहू अऊ तुंहरों पुरूसत्व मेटा जही ..... या तुंहरों आंखी मुंदा जही अऊ तहूं मनला दूसर के कस्ट अऊ अपन गलती दिखना बंद हो जही ।  

               बरम्हा जी ला भगवान के बरदान ला सच करे बर बहुत पिचकाट करे बर परिस । वरदानी मन जे जगा म जनम धरिन ते जगा म ......... लोकतंत्र ....... के बेवस्था कर दिस । बरदान अनुसार सत्ता पातेच साठ ...... खुरसी पवइया ........ या तो नर नारी के बीच वाला हो जथे या अंधरा ...... अऊ खोरवा बिपक्छ हा सरी ला देखत हल्ला मचावत ....... कभू काकरो पुरूसत्व जागे के ..... त कभू काकरो आंखी उघरे के अगोरा करत रहिथे ........ । 


  हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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