Tuesday 8 September 2020

लघुकथा- जनमदिन के केक

 लघुकथा- जनमदिन के केक

    सुजल हा शहर के अवासपारा के गरीब बस्ती मा अपन दाई ददा संग रहिथे।ओखर दाई हा उकील कलोनी मा बरतन माँजेबर जाथय अउ ददा हा किराना दुकान मा समान तउलथे। सुजल पारा के सरकारी इस्कूल मा तीसरी पढ़त हे।ओखर दाई हा बुता ले लहुटथे तब अपन लइका बर मालिक मन घर के बाचे केक ला लाथय।सुजल ला केक खाय के अबड़ सऊँख रहय। जौन दिन दाई हा केक लानतिस, सुजल हा खावत खावत अपनो जनमदिन मनाय बर दाई ददा ला कहितिस। दाई हा ओला भुलवार के मना देतिस। चार दिन होगे सुजल ला बुखार होय,सरकारी अस्पताल मा  भरती हे।दू दिन ददा हा अउ दू दिन दाई हा अपन मालिक ले छुट्टी माँग के देख रेख करत रहिन।आज छुट्टी होवइया हे फेर दाई ला आज बड़े उकील के बेटी के जनमदिन मा बुता काम करेबर तुरते बुलावा आय हे। सुजल ला समझावत ओखर दाई हा केक लाहूँ कहिके भुलवारके मालिकघर बुता करे चल दिस।ददा हा संझौती छुट्टी कराके घर जाय बर सुजल ला मनइस तब सुजल हा नट दिस कि दाई हा केक लाही तभे जाहूँ। 

   रात आठ बजगे तभो ले दाई ला नइ आवत देख सुजल हा ददा ला जनमदिन वाले घर लेगे के जिद करिस।लइका के जिद आगू थर खाके सुजल ला धरके कलोनी चल दिस। उहाँ जगमग जगमग  बिजली अउ डीजे मा नान्हे बड़े सबो नाचत अउ खावत पीयत रहय। लइका सियान मन उज्जर उज्जर कपड़ा लत्ता पहिरे रहय, माँहगी खेलउना धरे, चस्मा टोपी लगाय रहय।सुजल अपन कपड़ा अउ उँखर कपड़ा ला देख अपन ददा ला कहिस - चल घर जाबो..।

रतिहा गियारा बजे दाई हा लुगरा मा ढाँक के केक ला लाइस अउ उठा के देवत रहिस तब सुजल हा रोनहू होके कहिस- दाई अब ले केक झन लाबे.....



हीरालाल गुरुजी "समय"

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