Thursday 24 September 2020

कार्यालयीन अउ निजी प्रतिष्ठान के व्यवहार म छत्तीसगढ़ी अनुवाद के उपयोगिता :एक विमर्श*

 *कार्यालयीन अउ निजी प्रतिष्ठान के व्यवहार म छत्तीसगढ़ी अनुवाद के उपयोगिता :एक विमर्श* 

      पोखन लाल जायसवाल


       आज कार्यालय चाहे सरकारी होय त प्राइवेट कंपनी मन के कार्यालय होय। कार्यालय म बूता करैया सबो मनखे कम पढ़े लिखे नइ राहै। आज शिक्षा के महत्तम सबो जानथें। इही पाय के सब बड़े बड़े डिग्री धारी मिलथे। चपरासी अउ गार्ड के नौकरी बर घलो बड़े डिग्री धरे बेरोजगार मन आवेदन करथें। सरकारी नौकरी के आस लगाय बहुतेच पढ़ लिख डारथें। बाढ़े अबादी म सबो ल सरकारिच नौकरी मिलही जरूरी नइ हे। तब पढ़े लिखे के मुताबिक नौकरी रहै चाहे मत रहै, बेरोजगारी के धब्बा मिट जै कही, जेन मिल जथे उही ल करे पड़थे। सरकारी होय त प्राइवेट। सुपरवाइजर होय ते चपरासी। *पेट के नाँव जग जीता, बिहनिया खाय संझा रीता।* इही किसम ले कार्यालय मन म सबो किसम के मनखे मिलथे। आने आने प्रदेश के मनखे घलो मिलथे। बूता करत सब आपस म अतेक घुल मिल जथे कि आपस म गोठबात अपन महतारी भाषा म ही होथें। आन प्रदेश के मन इहाँ रहना हवै कही, बाजार-हाट, मेल-जोल करत जरूरत के मुताबिक भाषा सीखीच लेथें। *कार्यालय के मनखे  आपस म छत्तीसगढ़ी म गोठबात जरूर करथे। फेर जइसे कोनो बाहरी मनखे आफीस म आथे, उँखर टेस बाढ़ जथे।* कोनो कोनो मेर देखे मिलथे, कि कम पढ़े  लिखे हमरे गँवई गाँव के भाई मन न हिंदी म, न बरोबर अँग्रेजी अउ न तो छत्तीसगढ़ीच म गोठियाय। सबो मिला के हमेरी झाड़थे। जब आने प्रदेश के मनखे हमर संग हमर भाषा म गोठियाय तियार हे, त हम हमरे भाई मेर अपन महतारी भाषा म काबर नइ गोठियान। अइसन करे ले हमरे नुकसान हे, काबर नइ समझ पान। हम कोन ल का बताना चाहथन समझ नइ आय। कतको बड़े अधिकारी मन जउन बाहरी रहिथे, वहू आम आदमी ले उँखर भाषा म गोठ-बात अउ सवाल-जुवाब करथे। हीन भावना छोड़े ले कार्यालय छत्तीसगढ़ी बोले जा सकत हे अउ गाँव के मनखे कहूँ अधिकारी ले छत्तीसगढ़ी म गोठियात हवै त ऊँखर अनुवाद कर साहब ले बात रखन, अउ साहब के बात ल छत्तीसगढ़ी म रखन। अइसे भी हिंदी भाषी होय ले छत्तीसगढ़ी समझे म दिक्कत नइ होय। आने भाषी अधिकारी मन दूभाषिया रखबे करथें। उँखर सेकेटरी ए काम ल कर लेथें। 

       कार्यालय जइसे ही निजी प्रतिष्ठान के बात करिन। प्रतिष्ठान म बड़े बड़े होटल, कपड़ा दूकान, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के दूकान, माल, मेडिकल जइसे सँस्थान आथे। कोनो भी प्रतिष्ठान मालिक के व्यवहार ले चलथे। व्यवहार अउ आपसी संबंध संवाद ले मजबूत होथे। संवाद बर एके भाषा भाषी होना भी जरूरी होथे। लेकिन ए हरदम संभव नइ होय। जब प्रतिष्ठान के मालिक ग्राहक ले आने भाषा भाषी होथें, तब ग्राहक खुश करे, उँखर भाषा सीखे म मालिक संकोच नी करँय।  सरलग संपर्क म रहे ले उँखर ले मधुर संबंध राखे के उदीम करथे। अपन कर्मचारी मन ले मधुर संबंध उँखर भाषा म ही बनाय जा सकथे। अपन पेट भरे बर जगह के मुताबिक भाषा सीखना जरूरी आय, मानना चाही। पर्यटन के नाँव ले घुमैया आने प्रदेश के मन पर्यटन स्थल म दूकानदारी करे गाइड के सहारा लेथें। गाइड के भरोसा दुनियाभर ल घूमे जासकत हे। एक गाइड पर्यटन स्थल के पूरा जानकारी संबंधित ल उँखर भाषा म बता पाथे, तभे ओखर महत्ता हे। छत्तीसगढ़ म घलो कतको पर्यटन स्थल हे जिहाँ देश के आने प्रदेश के पर्यटक मन के संगेसंग विदेशी पर्यटक आथे।

        भाषा संवाद के साधन हरे, विचार विनिमय के  माध्यम हरे त जरूरत परे ले दूभाषिया(अनुवादक) अउ अनुवाद के जरूरत ल नकारे नइ जा सके। ए दृष्टि ले कहँव त कार्यालयीन अउ निजी प्रतिष्ठान के व्यवहार म छत्तीसगढ़ी अनुवाद के उपयोगिता सरलग बने रही।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी

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