Friday 4 September 2020

मोबाइल -दिलीप वर्मा

 मोबाइल -दिलीप वर्मा


लइका ह रोवत रोवत घर मा आइस।ददा देखिस त कहिथे।का होगे बेटा काबर रोवत हावस।दाई देखिस त रोये लागिस।ये दई मोर लइका ला कोन रोगही रोगहा मन मारिस हे।यहा दे मोर लइका रोहोन बोहोन होगे हे। 

   का होगे बेटा! काबर रोवत हावस, कोन तोला मरिस, कोनो काँही कहिस हे का?बता न कोन तोला मरिस हे। 

   ददा कहिथे, अरे राह तो, तहूँ ह! का होय हे, का नही अउ रोये ल धर लेस। ले बता बेटा का होगे। 

लइका ह अपन कागज ल दिखावत कहिस। 

मोला कोनो नइ मारे हे दाई, मँय परीक्षा मा फैल होगे हँव। 

  अइ कइसे फैल होगे बेटा, हर साल तो अउवल आवत रहे।एसो कइसे फैल होगे।दाई कहिस। 

  जाँचे म गलती होय होही मास्टर मन ले।तँय जब हर कक्षा मा अउवल आवत रहे त ये दरी कइसे फैल हो सकत हावस। ददा ह कहिस। 

   नही, सही म फैल होगेंव गो।मोर करा जादू वाला कलम रहिस हे, ते हर गंवा गे।कोन जनी कोन ह ओ कलम ल चोरा लिस। काबर की ओ कलम रहिस त सब प्रश्न के उत्तर लिखा जवत रहिस। ये साल एको ठन प्रश्न के उत्तर नइ लिखाइस हे। 

     बाबू गो! मोर जादू वाला कलम ल खोज के लान देते गो। नही ते मँय नइ पढँव।

    जादू वाला कलम कहाँ मिलथे बेटा,कहाँ ले लाहूँ।ददा कहिस।

   मोला चार साल पहिली इसकुल ले आवत रहेंव त भदहा पीपर मेर मिले रहिस। उही म लिखँव त हर साल अउवल आवत रहेंव। 

  भदहा पीपर, वोला तो अतिक्रमण करइया मन काट के ओ जगा घर बना डरे हे।ले फेर चिंता झन कर मँय तोर बर जादू वाला कलम जरूर ले के आहूँ। ले अब झन रो। 

   ले बेटा झन रो, तोर बाबू ह जादू वाला कलम ल ला दिही। 

  संझा कन लइका ह मोबाइल धरे विडियो गेम खेलत राहय। 

ददा हर आके कहिस। मँय तोर बर जादू वाला कलम ला दुहुँ फेर तोला मोर बात माने ल परही। 

  आज के बाद ये मोबाइल म कोनो गेम झन खेलबे। जब खेले के मन लागही त बाहिर जाके अपन सँगवारी मन सँग भौरा बाटी, गिल्ली डण्डा, खोखो कबड्डी रेस टिप डण्डा पचरंगा अइसन खेल खेलबे अउ पढ़े के बेरा पढबे तब तोर बर जादू वाला कलम लाहुँ 

  नही गो, मोबाइल म खेलबे त अबड़ मजा आथे। 

  त मँय जादू वाला कलम नइ लानव। फेर तँय जान, गुरुजी तोला मारही त। दिनभर घुटना टेके रहिबे। 

  नही गो बाबू! जादू वाला कलम लान दे न गो। 

  मोबाइल ल छोडबे त लानहुँ। 

 ठीक हे तें जइसे करबे करहूँ।ये मोबाइल ल अब नइ छूवँव। 

ओ दिन ले लइका (गौरव) मोबाइल ल नइ छुइस। अपन ददा के कहना मान के पढ़े के बेरा पढ़य अउ खेले बर अपन संगी मन करा चल दय। ददा हर बाजार ले ओखर बर नवा वाला कलम लाइस अउ कहिस! ये दे बेटा तोर कलम अब के बार येमा लिखबे। 

   लइका ह बढ़िया पढ़य लिखय अउ बाहिर म खेलय कुदय।एक दिन परीक्षा के परिणाम आइस त गौरव अपन जिला म अउवल आये रहय। 

ददा कहिस, बेटा! जादू के कोनो कलम नइ होवय। सब कलम एक समान होथे। तोर फैल होये के कारण मोबाइल ह रहिस हे।दिनभर उहिच म लगे राहस। जब ले मोबाइल छोड़े हस तब ले तोर मन पढ़ाई म बढ़िया लगिस।अउ आज तोर मिहनत के सेती अउवल आये हावस। 

  

खेल कूद ले तन मन चंगा, पढ़े लिखे ले बढ़े दिमाक। 

मोबाइल म जेमन रमथे, तेखर जिनगी होवय खाक।  

तेकर सेती कहिथौं भइया, लइका कोती करव धियान। 

मोबाइल ले दुरिहा राखव, झन देहू चिप लेवव कान।


रचनाकार-- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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