Friday 18 September 2020

हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के अंतर संबंध* - *एक विमर्श*

 *हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के अंतर संबंध* - *एक विमर्श*

पोखन लाल जायसवाल

      कोनो भी दू भाषा के अंतर संबंध ल जाने बर दूनो भाषा के बोलइया मन के आपसी संबंध ल जाने ल परही। जब उँखर बीच कोनो संबंध रही तभे तो आचार-व्यवहार म संबंध दिखही। आचार-व्यवहार के संबंध ले  

ही उँखर भाषा म संबंध अइसने जुड़थे। अपन रीत-रिवाज अउ परम्परा ल निभावत व्यवहार म नेवता देथे त संवाद होबे करही, या सहज गोठ बात म एक दूसर के भाषा के शब्द मन प्रभावित करे ले एक दूसर के जुबान म रच बस जथे अउ इही हर कालांतर म वो भाषा म सहज स्वीकार कर ले जाथे। जउन ढंग ले नदिया नरवा के पानी ह निर्मल अउ शुद्ध होवत बहिथे, ओमा कोनो गंदगी नइ पाय जाय अउ सरलग अपन तीर के जीवन के पोषण करथे। इही तरह भाषा ह जनमानस रूपी नदिया म बोहावत पानी बरोबर होथे। तभे केहे गे हे *घाट घाट म पानी बदले अउ कोस कोस म बानी।* पानी अउ बानी (भाषा) के लक्षण एके जइसे हे कहि सकथन। जहर के मिले ले पानी जहर हो जथे, वइसने दुष्ट मन के भाषा दुख पहुँचाय के लइक हो जथे। समय के संग भाषा  के प्रवाह भाषा ल परिष्कृत करथे, कहे जाय त शायद अतिश्योक्ति नइ होही।     

        संस्कृत ले पाली, पाली ले अपभ्रंश रूप लेवत अर्द्धमागधी फेर हिंदी के उत्पत्ति होय हे।हिंदी म पूर्वी हिंदी म छत्तीसगढ़ी, अवधी अउ बघेली के उत्पत्ति भाषा विज्ञानी मन माने हें।

       पूर्वी हिंदी ले उत्पत्ति के सेती छत्तीसगढ़ी के बहुत अकन शब्द मन के अवधी अउ हिंदी म मिलना स्वाभाविक हे।इही स्वाभाविकता ह हिंदी के संग छत्तीसगढ़ी के अंतर संबंध ल परिभाषित करथे। तुलसीदास जी के रचना संसार अवध क्षेत्र के भाषा अवधी म हे इही पाय के कतको छत्तीसगढ़ी के शब्द उँखर लिखे रामचरितमानस म देखे जा सकथे। हो सकत हे भगवान राम जी के ममियारो छत्तीसगढ़(तत्कालीन कौसल प्रदेश) रहे ले छत्तीसगढ़ी के प्रभाव दिखत होही। 

      बालकाण्ड दोहा ३४ के बाद ६वाँ चौपाई ----

रचि महेस निज मानस *राखा* .......। राख या राखना के पूर्णकालिक रूप राखा।

     ३८वाँ दोहा बाद ५वाँ चौपाई देखन-

भयउ हृदय आनंद *उछाहू*...... उछाह मतलब उत्साह.

      कबीर दास जी के छत्तीसगढ़ ले प्रत्यक्ष संबंध रहे हे कि नइ? नइ मालूम। फेर ऊँखर प्रभाव छत्तीसगढ़ म बहुत बड़े वर्ग म देखे जाथे। ऊँखर दोहा म घला छत्तीसगढ़ी के पुट मोला नजर आथे। उदाहरण देखथँन ---

नहाए धोए क्या हुआ, जो मन मैल न जाय।

मीन सदा जल में रहे, धोए *बास* न जाय।

     

जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।

मैं *बपुरा बूड़न* डरा, रहा किनारे बैठ।।


रहीम जी के दोहा मन के एक ठिन उदाहरण घला देख लन---

निंदक नियरे *राखिए*, आँगन कुटी *छबाय*।

बिन पानी बिन साबुना,निर्मल करे सुभाय।


     हो सकत हे ये शब्द मन अपभ्रंश रूप म लिखे रहिन होही, फेर आज तो छत्तीसगढ़ी के प्रचलित शब्द आय।रामचरित मानस, कबीर जी अउ रहीम के दोहे मन पूरा भारतीय जनमानस ल प्रभावित करथे त छत्तीगढ़िया मन छोड़े नइ जा सकै।


छत्तीसगढ़ अपन सँस्कृति अउ परम्परा ले पूरा संसार म अपन अलग पहचान रखे हे। इही पहचान म *नाचा* एकर बड़े पहचान हरे। नाचा म दू जोक्कड़  निकलथे जिंकर संवाद ले हाँस हाँस के पेट म पीरा घला उमड़ जथे।ऊँखर संवाद हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म अइसे पगाय रहिथे कि ओला अलग करे नइ जा सके। नाचा म जउन प्रहसन होथे उँखर पात्र मन के संवाद म हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी समाज के झलक दिखाथे। कोटवार पुलिस जिहाँ हिंदी म बात करथे, उहें आने पात्र मन ठेठ छत्तीसगढ़ी म संवाद करथे।

     आज गाँव मन म ए बात देखे बर मिलथे, जब कोनो साहब(अधिकारी) अउ पुलिस मन गाँव जाथे ओमन अपन बात हिंदी म कहिथे लेकिन गाँव के मन छत्तीसगढ़ी म ही गोठ करथें।

       इही हर बताथे हमर छत्तीसगढ़ के लोकजीवन म हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के अंतर संबंध का हे।

     


पोखन लाल जायसवाल

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