Wednesday 2 September 2020

छत्तीसगढ़ी म व्यंग्य बिरवा वीरेन्द्र सरल

 आलेख

छत्तीसगढ़ी म व्यंग्य बिरवा

वीरेन्द्र सरल

कोन्हों भी भाषा के महत्व के मूल्यांकन ओखर साहित्य ले करे जाथे। साहित्य जतका पोठ होही, भाषा ह वतकी रोठ होही। छत्तीसगढ़ी साहित्य के संदर्भ म मैं जब विचार करथंव तब मोला लागथे कि इहाँ पद्य में तो बहुत काम होय हावे फेर गद्य के कोठी अभी उन्ना हे। छत्तीसगढ़ी के गद्य साहित्य के उप्पर जब चर्चा होथे तब कुछ गिने चुने नाम आथे। कहानी, लेख ,  उपन्यास, निबंध अउ गद्य के आने विधा के बाद जब व्यंग्य के बात आथे तब तो फेर लेखक मन के संख्या ह अंगरी म गिना जाथे। सम्भव हे मोर विचार ह गलत होही काबर कि मैं साहित्य के अध्येता नहीं बल्कि विद्यार्थी अंव। एक बेर मोला एक झन विद्वान ह पूछे रिहिस छत्तीसगढ़ी व्यंग्य म आप अपन आदर्श लेखक कोन ल मानथव। मैं अकबका गेंव। मैं क्षमा माँगत कहेव मोर अध्ययन ह कम हे भैया जउन पढ़े हंव ओमा विशुद्ध व्यंग्य कम अउ हास्य ज्यादा पाय हंव। हास्य ल व्यंग्य माने बर मोर जीव गवाही नई देवत हे। आजकल तो हास्य के नाव म चुटकुलेबाजी चलत हे, अश्लील, फूहड़,  दोअर्थी चुटकुला म घला बड़े बड़े सम्मान मिल जावत हे अउ सम्मान पवैया ह हास्य व्यंग्यकार होय के तमगा पहिरे इतरावत हे। भाई विदूषक अउ साहित्यकार म कहीं अंतर होथे कि नहीं।

छत्तीसगढ़ी म व्यंग्य लेखन के कमी के एक बड़का कारण मोला लगथे कि इहाँ थोड़ बहुत व्यंग्य तो लिखे गिस फेर व्यंग्य उप्पर विमर्श नई होय पाइस। व्यंग्य उप्पर सभा संगोष्ठी विचार के कमी के कारण लिखे के शौख करैय्या लेखक मन ल हास्य अउ व्यंग्य लेखन के दिशा नई मिल पाइस। पढ़े के रुचि के अभाव के सेती लेखक मन घला कोन्हों परसाई, जोशी, श्रीलाल शुक्ल , लतीफ घोंघी जइसे बड़का लेखक मन के लिखे ल पढ़ नई पाइस। भले ये बड़का लेखक मन हिन्दी म व्यंग्य लिखे हे फेर व्यंग्य लेखन के तासीर ल जाने समझे बर इंखर लेखन ल पढ़ना जरूरी हे, तभे उत्तम व्यंग्य लिखे के कोशिश करे जा सकत हे। 

दूसर बात यहु आय कि कोई भी लेखन ह एकदम से उत्कृष्ट नई हो जाय। करत करत अभ्यास के मामला सबो जगह फिट अउ हिट हे। कोई भी कला ल छोटे बन के ही सीखे जा सकत हे। सर्वोच्चता अउ सर्वज्ञता के दम्भ ह विकास के रद्दा ल बंद कर देथे अउ हमन सबो झन इही बीमारी ले ग्रस्त हन। कोन्हों कोन्हों अतेक ग्रस्त हो जथे कि उठे बइठे बर नई सकय। सशक्त होय के चक्कर म अशक्त हो जथे।

व्यंग्य ह कोन्हों नवा बात तो नोहय। हमर छत्तीसगढ़ी के हाना अउ ठेही भर ल एक नजर देख लेबो तब व्यंग्य के भंडार नजर आही। एक लाइन म तगड़ा व्यंग्य। जउन ल आजकल व्यंग्य म वन लाइनर कहे जावत हे उदाहरण बर एक उदाहरण निकम्मा पन बर व्यंग्य देखव , हाथ म घड़ी कान म सोन, तेखर बुता ल करही कोन। छत्तीसगढ़ी लोकोक्ति अउ मुहावरा म व्यंग्य विषय म एक लंबा अउ ठोस लगहा लेख लिखे के विचार मन म आवत हे। बाद म लिखहूँ।

व्यंग्य ल सुशिक्षित मस्तिष्क के विधा माने जाथे। व्यंग्य ल समझे बर संवेदना अउ समझ के जरूरत होथे। व्यंग्य ह समाज सुधार के विधा आय तिही पाय के कबीर ल भक्त कवि होय के पहिली समाज सुधारक माने गे हावे। व्यंग्य ह करुणा के कोख ले उपजथे। समाज के असमानता, विसंगति, विद्रूपता ल देख बे तब मन ह आक्रोशित हो जथे तब नियामक सत्ता ल फटकारे के अउ अपन आक्रोश ल व्यक्त करे के सबसे उत्तम माध्यम व्यंग्य ह बनथे।

कबीर साहेब किहिन कि साधो जग बौराना, साँच कहे तो मारन धवायै, झूठे जग पतियाना। सोज सोज सच बात ल कहिबे तब लोगन पागल समझथे। फेर उही करु बात ल हास्य के चासनी म बोर के दे बे तब गटक जथे तिही पाय के व्यंग्य के संग हास्य के जरूरत होथे। व्यंग्य उप्पर विचार करे के मौका लोकाक्षर समूह ह दिस। महू अपन मति अनुसार अपन विचार रखेव तब हमर नवा संगवारी मन के सुघ्घर व्यंग्य समूह म आय लगिस। नवा संगी मन के व्यंग्य ल पढ़ पढ़ के मन गदगद होगे। लिखइया के कमी नई हे, जरूरत बस व्यंग्य लेखन के समझ विकसित करे के हावे। आवव हम सब मिलके समय समय म व्यंग्य के बारे मे अपन समझ ल साझा करन। व्यंग्य के नवा नवा जानकारी खोजन, व्यंग्य के बढ़िया बढ़िया किताब पढ़न अउ अपन लेखन के खाद पानी दे के व्यंग्य के बिरवा ल छत्तीसगढ़ी व्यंग्य के विशाल रखवा बनाय बर जी जान ले जुट जावन।

वीरेन्द्र सरल

बोडरा, मगरलोड

जिला धमतरी, छत्तीसगढ़।

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