Wednesday 2 September 2020

व्यंग्य-संतोष साहू

 व्यंग्य-संतोष साहू

(छोटे अउ चिरहा कपड़ा)


एक दिन के बात हरे सुकालू मोला अचानक पुछिस-कहिथे भइया!मोला ये बता पहिली के जमाना बने रिहिस कि ये जमाना बने हे।मँय केहेँव कोन मामला मा कहिथस सुकालू,अगर कपड़ा पहिरई के मामला मा काहत होबे तब ये जमाना बने हे कहूँ कहूँ मनखे छोटे छोटे कपड़ा पहिर के घूमत हे बढ़िया। छोटे कपड़ा मा खर्चा तको कम हे अउ धोय बर निरमा साबुन तको कम लगथे अउ कहूँ कोती जाथस तब बड़े मोटरा धरे के जरूरत तको नइये अउ ते अउ छोटे कपड़ा ले तन ला बने हावा तको मिलथे अउ बने दिखत हे किके कतको लहूट के तको देखथे अउ अतकेच नही अउ चिरहा तको ठीक हे जिँस के माड़ी अउ जाँग चिराहे तभो वोहा सोला आना हरे वोहा गरीबहा नइ कहाय।मोर बात ला सुन के सुकालू एकदम खुश होगे अउ किहिस बने बताय भइया महू हा चार साल पहिली जुन्ना होगे किके मुरसरिया बना देहँव अब ओकर उपयोग करहूँ।ओकर बाद सुकालू मुरसरिया मे भराय कपड़ा ला निकाल डरिस अउ माड़ी अउ जाँग के जगा ला चिर डरिस अउ एती वोती घूमन लगिस ।फेर कुछ दिन बाद सुकालू मोर से अउ भेँट होगे तब कथे बने बताय भइया कपड़ा के बदले जमाना ला मँय मुरसरिया ले निकाले कपड़ा ला माड़ी अउ जाँग करा चीर फाड़ के  पहिरेँव अउ घुमेँव तब एकझन मोला कथे आप कोन कालेज मे हव, त एकझन कथे नमस्ते सर जी और क्या हाल चाल तब एकझन कथे हलो भाई साहब किके हाँथ मिलईस अबड़ सम्मान मिलिस मोला अइसे सब सुकालू मोला बतइस तब मे केहेँव अब जाने सुकालू कपड़ा के मामला मे ये जमाना बढ़िया हे।

संतोष कुमार साहू

रसेला छुरा

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