Tuesday 1 September 2020

व्यंग्य काबर, कइसे अउ काखर उप्पर-वीरेंद्र सरल

 व्यंग्य काबर, कइसे अउ काखर उप्पर-वीरेंद्र सरल

वीरेन्द्र सरल

व्यंग्य उप्पर अपन विचार लिखे के पहिली आप सबला ये बताना जरूरी हे कि मैं व्यंग्य के कोन्हों शिक्षक नहीं बल्कि पहली कक्षा के विद्यार्थी अंव। थोड़ बहुत हिन्दी व्यंग्य ल पढ़े अउ लिखे ले व्यंग्य ल जउन थोड़ बहुत समझ पाय हंव, उही विचार ल रखत हंव। अपन छत्तीसगढ़ी के व्यंग्य के संदर्भ म देखन त हम व्यंग्य ला ताना या बख्खानना कही सकत हन। उदाहरण बर देखन तब गांव गंवई म जब कोन्हों काखरो घर तीर गंदगी कर देथे, कचरा फेंक देथे या अउ कोन्हों किसम के नुकसान कर देथे तब घर के मनखे मन बिना नाम ले मनमाने बख्खानथे कि कोन रोगही रोगहा मन के आँखी फूटत हे जउन हमर नुकसान करत हे। येकर उद्देश्य ये होथे कि बिना झगड़ा लड़ाई के गलती करने वाले ला चेताना। गलती करने वाला ह गारी बखाना सुन के तिलमिलावत रहिथे फेर मोला काबर कहत हस नई कही सके, काबर की गारी ओखर नाव लेके तो कोन्हों देवत नई रहय। मोर समझ म व्यंग्य के इही काम आय। समाज ला जागरूक करना, समाज विरोधी काम करने वाला मन ला चेताना अउ विसंगति के विरोध बर जनमत तैयार करना, तार्किक अउ वैज्ञानिक सोच पैदा करना, ढोंग, आडम्बर अउ पाखंड के विरोध करना। रुढ़ि अउ कुरीति के विरोध कर के स्वस्थ समाज के निर्माण करना। राजनैतिक, सामाजिक अउ धार्मिक क्षेत्र के स्वार्थी मन के चेहरा ले नकाब उतार के असली चेहरा ला समाज के आघू म लान के समाज ला सावचेत करना। पीड़ित, शोषित, उपेक्षित मन के पीड़ा ल मुखरित करना ही व्यंग्य के काम आय। तिही पाय के अंग्रेज जमाना म व्यंग्य लिखने वाला सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक बालमुकुंद गुप्त जी ह व्यंग्ययकार म ल गूंगी प्रजा के वकील कहे हे। ये तो होईस व्यंग्य काबर लिखे जाय येखर बात।

अब दूसरा सवाल हे व्यंग्य कइसे लिखे जाय। व्यंग्य ला विद्वान मन विधा के रूप म स्वीकार कर ले हे। व्यंग्य के भाषा ह व्यंग्य ला आने विधा ले अलग करथे। जब तक भाषा तिर्यक नई होही तब तक व्यंग्य ह निशाना म नई लगे। साहित्य के सबो विधा ल अभिधा म लिखे जाथे फेर व्यंग्य ल व्यंजना म। हमर समूह के शिक्षक साथी मन अभिधा, लक्षणा अउ व्यंजना शब्द शक्ति के बारे मे भली भांति जानत हे एला जादा लमाय के जरूरत मैं जादा नई समझत हंव। हम पद्य म ब्याज निन्दा अउ ब्याज स्तुति अलंकार के बारे मे जानत हन। जो सुने म निंदा कस लागे फेर प्रशंसा होय। अउ प्रशंसा कस लागे फेर निंदा होवय। व्यंग्य ल बने समझना हे तब कबीर साहित्य के अध्ययन म सब बात मिल जहि। वइसे भी व्यंग्य अखाड़ा के प्रथम उस्ताद तो कबीर साहब आय। देश के जतेक व्यंग्यकार हे सब कबीर ल ही व्यंग्य के आदि गुरु मानथे। व्यंग्य म भाषा के बड़ा महत्व हे जइसे आज गणेश जी के आरती उतारबो के मतलब गणेश जी के पूजा पाठ से हे। फेर ये कहे जाय रहा ले ले आज तो तय मोला दिख भर जा तहन तोर आरती उतारत हंव। ये मेर आरती के मतलब सजा से होगे हे। इही हरे व्यंग्य भाषा के चमत्कार।

समूह के संगवारी मन के प्रश्न आवत हे हास्य अउ व्यंग्य म काय अंतर हे। साधारण उत्तर यही आय कि हास्य ह फ़िल्म के कॉमेडियन आय जउन मनोरंजन करथे अउ व्यंग्य ह फ़िल्म के हीरो आय जउन समाज ल दुख देवैया खलनायक संग लड़थे, ओला समूल नष्ट करे के जोखा जमाथे, आम आदमी के भीतर आततायी से लड़े के ताकत पैदा करथे। व्यंग्य के रचना म हास्य तो होना चाही। पाठक ल जोड़ के रखे बर, रचना ल पठनीय बनाए बर हास्य बहुत जरूरी हे। फेर ये साधन आय व्यंग्य के साध्य नो हे। निमगा व्यंग्य ह आसानी से पचय नहीं। फेर व्यंग्य के जउन लक्ष्य हम निर्धारित करे हन ऊंहा तक हम अपन बात पहुंचाए बर हास्य के आश्रय लेथन। हास्य ह साग में नून असन रचना के स्वाद ल बढ़ाए के काम करथे।

अब बात करथन व्यंग्य काखर उप्पर कई झन लेखक व्यंगय के नाम म अपन पत्नी, सारी, जीजा नहिते कवि, कवि सम्मेलन टी वी, कूलर, पंखा, ल व्यंग्य के विषय बनावत लिखथे, एहा व्यंग्य के धर्म नोहे। पीड़ित, शोषित, उपेक्षित, दिन हीन , असहाय मनखे उप्पर कभु व्यंग्य नई लिखे जाय। व्यंग्य हमेशा, शोषक, आततायी, समाज विघाती प्रवृति उप्पर लिखे जाथे, कथनी अउ करनी के असमानता म लिखे जाथे। 

भैया विनोद वर्मा जी काली मोला सशक्त व्यंग्यकार कही के चना के पेड़ म चढ़ा दिन ते पाय के मोर जोश चढ़गे अउ हुशियारी बघारत अतका पान लिख पारे हंव। वइसे भी मोर अध्ययन हिन्दी व्यंग्य म थोड़किन हे अउ थोड़किन हिन्दी मे ही लिखे हंव। छत्तीसगढ़ी व्यंग्य साहित्य के मोर अध्ययन अउ लेखन दुनो बहुत कम हे। कहीं आंय बांय लिख पारे होहुँ तब आप सबले हाथ जोड़ के क्षमा चाहत हंव।

वीरेन्द्र सरल

बोडरा, मगरलोड

पोष्ट  भोथीडीह

व्हाया मगरलोड

जिला, धमतरी, छत्तीसगढ़।

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