Thursday 3 September 2020

प्रशंसाचार्य साहित्यविद-चोवाराम वर्मा बादल

 प्रशंसाचार्य साहित्यविद-चोवाराम वर्मा बादल

---------------------------(हास्य व्यंग्य)


 आजकल पुरस्कार देने और लेने वालों की कोई कमी नहीं है। बस अंटी ढीली करने की कला आनी चाहिए ।इन अनेक प्रकार के पुरस्कारों के प्रमुख उद्गम स्रोत के रूप में फेसबुक और व्हाट्सएप समूह में शीर्ष स्थान पर सुशोभित होने के लिए गला काट प्रतिस्पर्धा है ।इनसे प्रतिपल पुरस्कार अविरल झरते रहते हैं। यकीन न हो तो आप रात्रि के 2:00 बजे हो या ब्रह्म मुहूर्त हो, इन्हें खोल कर देख लीजिए- पटल पर नाना रंग के सुवासित पुरस्कार- पुष्प झरे मिलेंगे। मैंने फेसबुक पटल पर पढ़ा कि-- मिस्टर हँसमुख लाल को लगातार दो दिनों तक रोने का रिकॉर्ड बनाने पर प्रसन्न चित्त होकर 'करुणानिधि' खिताब से नवाजा गया है ।उसी तरह से दूसरे ख्यातिलब्ध मंच पर लगातार पाँच दिनों तक हँसने के लिए किसी को 'हास्य सम्राट' इनाम दिया गया है। मैं सोचता रहा कि लगातार हँसना तो निर्लज्जता या पागलपन की निशानी है उस पर भी पुरस्कार ---। हे भगवान! --- -एक व्हाट्सएप समूह में मेरे परिचित को 'कथावीर' सम्मान प्रदान किया गया था। जिस कथा के लिए उसे यह पदक प्रदान किया गया था वह मेरे अन्य मित्र का लिखा हुआ है। जिसे वह चोरी कर अपने नाम से पोस्ट किया था। अब चोर को भी वीर बना दिया गया। हो सकता है,पुरस्कार दातागण सीता हरण करने वाले लंकाधिपति रावण से प्रेरित हुए हों।

       इस मामले में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए सार्वजनिक मंच भी कम नहीं हैं। आप किसी दिन पचास -सौ कुत्तों को रोटी का टुकड़ा चाहे वह बिस्कुट समान छोटे-छोटे ही क्यों न हो, खिला दीजिए और किसी भी उपाय से सचित्र समाचार छपवा दीजिए फिर कमाल देखिए--' पशु प्रेमी शिरोमणि', 'मूक हितैषी संत',  'श्वानों  का मसीहा' आदि न जाने किस किस उपाधि से महिमामंडित पुरस्कार मिलते देर नहीं लगेगी ।आज सुबह-सुबह चाय की चुस्कियों के बीच अखबार पढ़ते हुए एक फोटो को देख कर मैं चौंक गया। कारण था कि मेरे ही मोहल्ले में रहने वाले श्रीमान मीठालाल जिसे सब लोग चापलूसी में माहिर व्यक्ति मानते हैं, को 'प्रशंसाचार्य साहित्यविद' पुरस्कार प्रदान किया गया है ।उसे बधाई देने को मेरा मन मचल उठा ।थोड़ी देर में गुलदस्ता लिए उनके दरवाजे पर मैं हाजिर था। मुझे देखते ही मीठा लाल जी चहक उठे।  कानों में मधुरस घोलते हुए बोले-- आइए मेरे पूज्य चाचा जी। सादर चरण वंदन। आसन ग्रहण कीजिए। बताइए मैं आपकी क्या सेवा करूं? मैंने कहा सेवा तो मुझे करनी चाहिए। सबसे पहले मेरी तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए। आपको अनंत हार्दिक बधाईयाँ। आपको 'प्रशंसाचार्य साहित्यविद' पुरस्कार मिलना हमारे लिए बहुत ही गौरव का विषय है। 

     उन्होंने अतीव विनम्र भाव से भेंट स्वीकार कर लिया। मैं जैसे ही वापस होने लगा , उसने हाथ पकड़ते हुए कहा- क्या चाचा जी, बैठिए --- मुँह मीठा करके ही जाइएगा। मैंने बैढ़ते हुए कहा- इस सम्मान निधि के बारे में कुछ प्रकाश डाल देते तो मेरा कुछ ज्ञान वर्धन हो जाता। मैं देख रहा था उनका चेहरा चमक उठा। वे बोले कि-- ऐसा है चाचा जी! हिंदुस्तान में जितने भी फेसबुक और व्हाट्सएप समूह हैं उनमें से अधिकांश का घोर सक्रिय सदस्य हूँ।ऐसा कोई पोस्ट नहीं होता होगा जिसे मैं लाइक करते हुए हार्दिक बधाई, वाह वाह की टिप्पणी नहीं लिखता होऊँगा ।यहाँ तक कि शोक संदेश पोस्ट करने वाले को भी उसके इस मेहनत के लिए हार्दिक बधाई देना हरगिज़ नहीं भुलता हूँ।यही कारण है कि ईश्वर और आप सब के आशीर्वाद से मुझे यह अद्वितीय पुरस्कार मिला है ।मैंने कहा- प्रशंसाचार्य का खिताब तो समझ में आ गया किंतु साहित्यविद पल्ले नहीं पड़ा? वे करबद्ध बोले- क्या है चाचा जी! मैं पोस्ट हुए सभी रचनाओं को पढ़ता हूँ ।भले ही कविता, कहानी, उपन्यास आदि नहीं लिखता ।इसी कारण लोगों का अडिग विश्वास है कि मैं साहित्य मर्मज्ञ हूँ। 

               मैंने सहमति में सिर हिलाते  परोसे गए गुलाब जामुन के संग हँसी को मुँह में दबाते हुए विदा माँग कर लौट आया।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

2 comments:

  1. बहुत सुग्घर गुरुदेव जी

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  2. गज़ब सुग्घर गुरुजी

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