Thursday 31 August 2023

28 अगस्त पुण्यतिथि म सुरता// सोनहा बिहान के सपना ल जीवंत करइया कलावंत दाऊ महासिंह चंद्राकर


 

28 अगस्त पुण्यतिथि म सुरता//

सोनहा बिहान के सपना ल जीवंत करइया कलावंत दाऊ महासिंह चंद्राकर

    हमर इहाँ जब कभू  छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच के सोनहा बेरा के सुरता करे जाही, त सन् 1970 अउ 80 के दशक ल हमेशा गौरव काल के रूप म चिन्हारी करे जाही. 'चंदैनी गोंदा' अउ 'कारी' के माध्यम ले जिहां दाऊ रामचंद्र देशमुख जी एकर नेंव रचे के बुता करिन, उहें दाऊ महासिंह चंद्राकर जी 'सोनहा बिहान' अउ 'लोरिक चंदा' के माध्यम ले वो नेंव म जबर महल-अटारी बनाए के कारज ल सिध पारिन. मैं इन दूनों पुरखा ल गंगा-यमुना के पवित्र संगम बरोबर इहाँ के सांस्कृतिक मंच ल उज्जर-निरमल करइया के रूप म देखथौं. एक बेर मैं उनला ए बात ल कहे घलो रेहेंव. मोर भेंट इंकर मन संग पहिली बेर तब होए रिहिसे, जब छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन खातिर पहुना के रूप म बलाए बर दूनों झन के सहमति लेना रिहिसे. 

    बात सन् 1987 के नवंबर-दिसंबर महीना के आय. तब मोर सलाहकार रहे वरिष्ठ साहित्यकार-पत्रकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी के रद्दा बताय म दूनों पुरखा के इहाँ जाना होवत राहय. तब घंटो चर्चा घलो चलय. छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत, कला अउ साहित्य के संगे-संग छत्तीसगढ़ी समाज के दशा-दिशा ऊपर घलो गोठबात होवय. दूनों आरुग छत्तीसगढ़ी सांचा म ढले राहयं, तब मैं उनला काहवं- आप दूनों मोला गंगा-यमुना के संगम बरोबर जनाथव. दाऊ रामचंद्र देशमुख जी जिहां गंगा बरोबर तेज-तर्रार जनाथें, उहें दाऊ महासिंह चंद्राकर जी यमुना बरोबर धीर-गंभीर लागथें. उन दूनों मुस्कुरा देवत राहयं.

    वइसे मोर बइठकी तो दूनों संग होवय, फेर जादा गोठबात दाऊ महासिंह चंद्राकर जी संग जादा होवय. कतकों बखत तो उन अपन कोनों आदमी ल भेज के घलो मोला बलवा लेवत रिहिन हें. एक पइत तो 'लोरिक चंदा' के प्रदर्शन देखाय खातिर अपन संग बिलासपुर जिला के एक गाँव लेगे रिहिन हें, जिहां वरिष्ठ साहित्यकार श्यामलाल चतुर्वेदी जी के सम्मान करे रिहिन हें. उंकर मनके ए बुता मोला गजब सुग्घर लागय. वो मन अपन हर मंच म कोनो न कोनो साहित्यकार के सम्मान जरूर करयं, तेकर पाछू फेर कार्यक्रम के प्रस्तुति देवयं.

    दाऊ रामदयाल चंद्राकर के सुपुत्र के रूप म गाँव आमदी म 19 मार्च 1919 के जनमे दाऊ महासिंह चंद्राकर के जुड़ाव कला डहार बचपन ले रिहिसे. उंकर प्राथमिक शिक्षा तो आमदीच म होइस. आगू के पढ़ई खातिर दुरुग भेजे गइस. उहाँ के स्कूल म उंकर पढ़ाई होए लागिस, फेर उंकर चेत कला डहार जादा जावय. अपन संगी मन संग रात-रात भर जाग के नाचा-गम्मत देख देवयं. लेद-बरेद छठवीं कक्षा पास करिन अउ पढ़ेच बर छोड़ दिन. सियान मन घलो थक-हार के वोला कुछु बोले बर छोड़ दिन.

    पढ़ई छोड़े के बाद तो महासिंह जी पूरा के पूरा कला खासकर के लोककला के विकास खातिर समर्पित होगें. कलागुरु मनके संगति करना अउ लोककला ल उजराना, नवा-नवा कलाकार मनला मांजना उनमा निखार लाना इही सब उंकर मिशन बनगे राहय. वोमन खुद सरवन केंवट ले तबला अउ बालकृष्ण ले हारमोनियम बजाए बर सीख लेइन. जब 40 बछर के रिहिन तब पं. जगन्नाथ भट्ट के मार्गदर्शन म तबला म शास्त्रीता के ज्ञान लेइन अउ फेर 1964 म प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद ले तबला म डिप्लोमा प्राप्त करिन.

    दाऊ जी हमेशा गुनिक कलाकार मनके सम्मान करयं. जब कभू कोनो बड़का कलाकार के छत्तीसगढ़ आना होवय, त उन दाऊ जी के पहुनई म जरूर राहयं. नवा कलाकार मनला तो अपन घरेच म राख के खवाना-पियाना, कपड़ा-लत्ता सबो के ब्यवस्था ल कर देवत रिहिन हें. 

    वोमन बीसवीं सदी के 70 के दशक म एक नाचा पार्टी के गठन कर के पारंपरिक कला के संरक्षण के बुता के नेंव रखिन. इही दौरान उंकर भेंट छत्तीसगढ़ के यशस्वी साहित्यकार रहे डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा संग होइस. दूनों के गोठ-बात म फेर 'सोनहा बिहान' के सपना गढ़े गिस. जे हा 7 मार्च 1974 के ग्राम ओटेबंद म पहला प्रदर्शन के रूप म साकार होइस. ए लोकनाट्य ह डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा के उपन्यास 'सुबह की तलाश' ऊपर आधारित रिहिस. इही म आज छत्तीसगढ़ राज के 'राजगीत' बन चुके गीत 'अरपा पइरी के धार' के सिरजन अउ प्रस्तुति होइस. ए गीत ल सुनते लोगन भाव-विभोर होके सुने लागयं. 

    डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा ल दाऊ महासिंह चंद्राकर जी 'नरेंद गुरुजी' काहयं. दाऊ जी संग मोर जब कभू भेंट होवय त उन डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा के संबंध म जरूर गोठियावयं, अउ काहयं- 'नरेंद तो मोर गुरु, सलाहकार अउ बोली-भाखा सब रिहिसे. वो ह जब ले ए दुनिया ले गये हे, तब ले मैं कोंदा-लेड़गा बरोबर होगे हौं. न बने ढंग के कुछु बोल सकौं न बता सकौं.'

    दाऊ महासिंह चंद्राकर जी सोनहा बिहान के संगे-संग लोरिक चंदा अउ लोक रंजनी कार्यक्रम के माध्यम ले लगभग तीन दशक तक छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहारबिहार अउ ओडिशा आदि के जम्मो प्रमुख जगा मन म छत्तीसगढ़ी लोककला के झंडा लहराईन. एक पइत मोला एकर संबंध म कहे रिहिन हें- 'सुशील, मैं एक हाथ म सरस्वती अउ एक हाथ म लक्ष्मी ल लेके चलथौं, तब जाके अतका बड़ बुता ल कर पाथौं.'

    जिनगी के आखिरी बेर तक उन शारीरिक रूप ले चुस्त दुरूस्त रिहिन. 28 अगस्त 1997 के उन न ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी ले लेइन. आज बिदागरी तिथि के बेरा म उंकर सुरता ल डपैलगी.. जोहार...

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

राजनीतिज्ञ के आत्मकथा

 राजनीतिज्ञ के आत्मकथा 

               मेंहा कुछु भी करथँव या कुछु भी गोठियाथँव .. जम्मो झन मोला राजनीति करत हस कहिथे । मेहा राजनेता अँव .. राजनीति नइ करिहँव त काय करहूँ .. । न मोला कुदारी धरे ला आय न रापा .. कलम हा मोर हाथ म फबय निही .. पढ़े लिखे हँव फेर नौकरी लइक योग्यता नइहे .. । अतके पढ़े हँव के .. दादागिरि .. चमचागिरि .. बईमानी अऊ धोखाधड़ी .. बहुत आसानी से कर लेथँव ... चाहे जनता रोज कतको गारी बखाना करय । उँकर ले लुकाय अऊ तोपे बर .. जे करथँव तिहि ला लोगन राजनीति के नाव दे देथे । जनता अऊ पुलुस ले बाँचे बर अऊ काय करँव ... ? इँकर चक्कर ले निजात पाय बर तो राजनीति म खुसरेच ला परथे । अब तुँही मन बतावव .. अइसन बुता के पाछू .. राजनीति म नि रइहूँ त पुलुस मोला धाँध नइ दिही का .. ?  जनता मोला जियन दिही .. ? सरी दुनिया हा अपन पेट बिकारी बर कुछ न कुछ करथे .. महू ओकरे बर करथँव ... नइ करहूँ ... त कोन फोकट म खाय बर दिही .. ?  एक बात अऊ ... ये जम्मो बुता काम के पाछू ...  दूसर जगा म सुरक्षित रहि सकतेंव त ... एमा काबर आतेंव ?  गऊकिन .. मोला समझ नइ आय .. लोगन काबर मोर आलोचना करत फिरत रहिथे ?  जनता के आलोचना समझ आथे ... फेर जे खुदे उही हमाम म बुड़े नंगरा खुसरके पगुरात हे तहूमन  .. मोला राजनीति करत हे कहिके घेरी बेरी हुदेलत कोचकत बखानत रहिथे । राजनीति करना हा बुरा काम आय का तेमा .. ?  अऊ यदि बुरा काम आय त मोला राजनीति करत हे कहवइया मन .. काबर खुदे उही म निंगे तऊरत डफोरत हे । 

               कोन्हो भूख म मरगे तभो हम कुछ कहि नइ सकन .. कुछ भी कहिबो ... तहन राजनीति करत हे कहिके झंझेटथे । जे मरगे तेकर घर के मन ला न्याव देवाना हमर कर्तव्य नोहे का .. ? जे मारिस तेला बचाना घला हमरे धरम आय .. येमा कति मेर राजनीति हे तेमा ... ?  कोन्हो   अपमान पा के जियत हे ... कोन्हो सम्मान पाके मरत हे .. यहू ला कहि देथन तहन ... राजनीति करत हे कहिके हमर सातों पुरखा म पानी रितोय ला धरथे । काकरो समस्या उचा नइ सकन ... कन्हो ला का उचाबो ? हम ननपन ले .. बबा ददा ला राजनीति के सागर म डुबकी लगावत डफोरत देखे हन .. हमू ओकरे सेती राजनीति म आय रेहेन .. फेर ओमा बात बात म राजनीति करत हे कहिके .. हमर दिल ला अतका दुखा देथे के .. हम राजनीति म राजनीति करे बर मजबूर हो जथन । हम जानत हन येमा कतका का हे .. । अपन जिनगी सँवारे बर अऊ अपन लइका लोग के भविष्य बनाय बर हम राजनीति म खुसरे हन .. त काबर राजनीति नइ करबोन ? पाँच बछर म .. पचास बछर बर सरग बनाय के ताकत केवल अऊ केवल इही धंधा म हे .. त हम काबर छोंड़बो ... ?  हम योग्य रहितेन त दूसर बुता नइ करतेन गो .. काबर येमा आतेन .. अऊ सुनतेन ... ?  

               राजनीति ले जादा पबरित बुता काय आय .. तुँही मन बोलव भलुक .. ?  काकर घर काय होवइया हे .. कोन कतका दुख म परे हे .. कोन गाँव शहर म काय समस्या हे ... इही सबो के जनाकारी राखना अऊ ओला उजागर करके ओकर समाधान बर पहल करना हा बने बुता नोहे का .. ?  कोन कोन हमर रहत ले सुख म जियत हे .. कति गाँव काकर सेती समस्याविहीन बनिस .. ते बात मन ठीक थोरेन आय तेमा ... ? सत्ताधारी हा लोगन ला मुसेट के अकेल्ला अपन धोंध भरत हे तिही ला .. जनता ला बताना मोर हिसाब ले बने बुता आय .. फेर यहू ला कहि दे मा राजनीति के महक बगर जथे । कोन कतका खइस .. कोन कतका लीलिस .. काकर पेट म कतेक जगा म काय काय भराये हे .. येला कहि देबे ते राजनीति करत हे कहिथे । नइ कहिबे त ... सबो इही समझथे .. येकरो पेट म कुछ भाग खुसरे होही .. तभे कलेचुप बइठे हे ।  

               जम्मो मनखे मोला फोकट के खाथे समझथे ... मोर बारे म कतेक गलत खयाल रखथे .. । भगवान कसम फोकट म कभू नइ खाये हँव । एक नानुक उदाहरण बतावत हँव .. गाँव म सरकारी स्कूल बर भवन बनत रहय .. इंजीनियर हा दिन भर खड़े होके अपन आगू म बनवावत रहय .. फेर ओहा अतका नइ बता सकय के .. कतेक सीमेंट रेती के मसाला डराय हाबे । मेहा बिगन देखे बता देथँव के ओमा अतका कमजोर या अतका सजोर मसाला डराय हाबे .. अब तुमला लागत होही के येमा का मेहनत .. ?  यदि हम मेहनत नइ करतेन त कइसे जानतेन ... ?  हम जे तिर मेहनत करेन तेहा ... कोन्हो ला दिखिस निही .. तेला हम का करबो ... ? 

               बिहिनियाँ ले उचथन तहन इही सोंचथन के आज के दिन अच्छा बीतय .. । फेर जब मरे रोवइया हा हमर तिर म नइ आवय .. त हमर अच्छा दिन कतिहाँ ले आही .. । तब हमीं ला बाहिर निकले बर परथे .. हम जइसे बाहिर निकलथन .. त सबो इही समझेथे के काकरो टेंटवा ला मसके बर बाहिर निकले हे । जे गरीब ला राशन कार्ड नइ मिले हे तेला देवाये के उदिम करथन .. त ओमा काय गलत आय । अब बिहाने ले निकले हन त दू चार पइसा तो पाबेच करबोन ..  । नइ कमाबो त हमरो तो अबड़ अकन परिवार हे .. कइसे चलही ?  इँकर भरण पोषण के जुम्मेवारी हमरे आय । अतका हकर हकर के कमाथन तभो चारो मुड़ा ले ... बखानत .. फोकट म खावत हे कहिके ... हमर छाती म मूंग दरे ला धरथे । 

               कोन हिंसा बगराथे कोन अहिंसा ... कोन लोगन ला रोजगार दे सकत हे कोन बेरोजगार बनावत हे .. कोन लोगन ला बइठे बइठे खवा सकत हे कोन बिगन मेहनत हाथ नी लगावन देवत हे .. कोन अमीर तनि हे कोन गरीब तनि .. कोन कर्मचारी ला मुसेटत हे कोन सहलावत हे .. कोन साव आय कोन चोर ... कोन हमर बर उपयोगी हे अऊ कोन अनुपयोगी ... समे देख .. हम सबो ला आजमा लेथन । आज जे हमर संग हे काली दूसर संग चल देथे .. परन दिन फेर हमरे तिर म लुहुर टुपुर करे ला धर लेथे ।. कोन कतका खावत हे .. कोन पचोवत हे .. कोन बिगन खाय हल्ला करत हे .. कोन सरी चाँट के खाय के पाछू ... । सब हिसाब लगाके कुर्सी म विराजमान होके जनता के सेवा करे बर हम जे बुता म हाथ अऊ मुँहु लगाथन ... कुर्सी ले वंचित हमर संगवारी मन बर .. इही सब राजनीति बन जथे । हम कोन्हो ला नमस्ते घला नइ कर सकन ... जब करथन त सबो ला इही लागथे के चुनाव आगे हे का .. ?  बीच म कर देथन त .. सबो ला राजनीति करे के भ्रम हो जथे । 

               हम राजनीति करे बर राजनीति म नइ आय रेहेन । हम खावव अऊ खावन दव म विश्वास करइया मनखे आन .. फेर कुछ समे ले न खाँव न खावन दँव कहत कहत .. कुछ मन घरोघर टायलेट ला खा डरिन । हम इही ला कहि पारेन .. तहन हमू राजनीति करइया बन गेन । गाँव के सेवा करबो .. गाँव के विकास करबो सोंच हम येमा उतरे रेहेन .. विकास करेन घला । गड्ढा म खचकेदार चिखला मतइया शानदार सड़क बना देन .. कागज म तरिया .. मुहुँ म कुँवा .. स्कूल भवन के भितर म पानी के भंडारन क्षमता बढ़वा देन .. गरीब ला राशन बर लाइन झन लगे ला परय कहिके .. ओकर राशन ला हम अपन घर ले आनेन .. । अऊ कतेक विकास करतेन गा तेमा .. ? गऊकिन अतका के करत ले हमर कनिहा सोझियागे अऊ विकास हा हमर तिर ले झन भागय कहिके .. तोलगी म लुकाके राखेन .. रोगही महँगाई कस हमू ला बढ़ो दिस । हमर हाथ हा सइकिल ले स्कूटर तक पहुँच गिस । अतेक ईमानदारी के पाछू ... पाँच बछर म केवल बीस एकड़ भुँइया बना पायेन । हमर मेहनत ले अइसन फसल हा केऊ गुना बाढ़ गिस । हमर मन हा .. अब उन्नत फसल कोति दऊँड़े लगिस । हम जनपद अध्यक्ष के कुर्सी तक पहुँच गेन । पाँच बछर म उत्पादन क्षमता म बहुतेच बढ़्होत्तरी होइस .. हमर घर म एक ठिन कार जामगे । उपर डहर विराजित मनखे मन ला पता चलिस । ओमन हमला चिन्ह डरिन अऊ अपन संग संघेरे बर उपर ले गिन । हम विधायक बन गेन अऊ ओकरो ले जादा उन्नत फसल लगा डरेन । हमर मेहनत के फसल के एक एक दाना बेंचाय लगिस .. हमर घर के बेड रूम म एक ठिन पइसा के पेंड़ धर लिस ?  हम मंत्री .. सांसद बन गेन । फेर जब तक केवल खाय बर .. मुहुँ उलत रिहिस अऊ कलेचुप सबो के धोंध भरत रिहिस तब तक ... सब खुश रिहिन । कुछ कारण से मुहुँ खजवाय ला धर लिस अऊ लोगन के धोंध हा कोटना के रूप धर लिस तहन .. हमर खुशी ला गरहन तिरना शुरू कर दिस । हम सोज सोज जीतत रेहेन तेकर सेती .. हमला अऊ दूसर बुता के आवसकता नइ परिस .. केवल खात रेहेन अऊ खवात रेहेन ... । फेर कुछ लोगन मन .. हमर से जनता ला नाखुश रेहे बर मजबूर करिन ... तहन हमला दूसर उदिम करे ला परिस ... तब लोगन हमला राजनीति करत हे कहिके जगा जगा बदनाम करे ला धरिन । हम इँकर आरोप ला झेलत भर ले झेलेन .. तहन जवाब देना शुरू करेन ... कोई जगा हाथ ले जवाब निकलिस कोई जगा मुँहु ले ... । हम अतेक दिन ले केवल नेता रेहेन ... अब राजनीति करइया राजनेता बन गेन । 


हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

संक्रमण काल चलत हे* (ब्यंग)

 *संक्रमण काल चलत हे*              

                                               (ब्यंग)

                        जब संस्कार हर संक्रमित होइस तब टूरी टूरा मन कटत नाक ला लुकाए बर, गमछा मा मुँहूँ ढाँक के, अपन मुँह बोला जोड़ी सँग, फटफटिया सवार होके भागे के शुरू कर दिन। सपुरन तन ढँकाय वाले कपड़ा नवा संस्कृति के नाक काटे बर भरपूर हे। एक यहू समय देखे ला मिलिस कि ये धरती मा महामारी अतका पाँव पसारिस कि धरती छोटे परगे। जेकर प्रतापी किरपा ले सब नकाबधारी होगे। छोटे बड़े मानव प्रजाति के जीव के मुँह मा मास्क नाम के कलेंडर झूलत मिलिस। हम सोचत रेहेंन कि ये संक्रमण मनखे देख के आही। फेर ये धन बली पद बली कँगला खली सबला मुँह मा तोपरा बाँधे बर लचार कर दिस। हमरे परोसी मंडल चीन जी अइसे फोरन बघारिस कि चुकता दुनिया खेर्र खेर्र खाँसे ला धरलिस। आसा करत रेहेंन कि बड़े दाऊ अमेरिका जी ये संक्रमण ले लड़े बर अपन सबो अस्त्र सस्त्र ला संक्रमण वाहक डहर ढिलही। फेर वोकरो एको हथियार काम नइ आइस। काम आइस तो मुँहूँ के तोपरा जेला मास्क के नाम ले जानेंन। ये कोरोना तो बड़े बड़े ब्रम्हास्त्र धारी अहंकारी के अभिमान ला टोर देय रिहिस। आज वो हथियार यूक्रेन के सद्भावना सेवा मा लगे हे।

           जिंकर उपर अगरबत्ती, मोमबत्ती, अउ लोभान के धुँवा देखावत रेहेन। वो किरपा बरसाय ला छोड़ के क्वारिंटिन हो गेय रिहिन। किरपा के नाँव मा सेनेटाइजर बरसिस। कोरोना दू चार साल अउ रतिस ते आरती अउ चघावा मा मजा उड़ाने वाला कला मंडली मन मिहनतके कमाई खाय के आदत तो बना डारतिन। कोरोना ला धन्यवाद एकर सेती देथँव कि संक्रमण काल मा मुँहूँ मा तोपरा लगाय के आदत तो पार देय रिहिस। फायदा ये रिहिस कि एकर ले मनखे के चित्र अउ चरित्र हर ढँकाय रिहिस। एकरे सेती लोगन के करुवाहा इरखाहा भाखा हर छना छना के मीठ मीठ निकले। काल जब मुँड़ी मा उलानबाँटी खेले के रियाज करिस तब मनखे प्रेम दया करुणा अउ सद्भावना के रसा बाँटत फिरिन। जुट्ठा हाथ मा कउँवा नइ खेदे तेमन के दान मा राज खजाना छलकत मिलिस।

                 मोर कयराहा मितान हर सवाल करत कथे - - - - - - - - - कस जी वो गनपत के गोठ आजकल फेर बदल गेहे। मास्क के उपकार ले मीठ बोल सँग छै हाथ दुरिहा ले पैलगी करत दुनिया देखे के आसिस देवय, तेन हर आज राष्ट्रवादी के कट्टर विचारधारा के वायरस मा संक्रमित करके बिमार करत हे। मँय केहेंव--------देख जी इँहा हर आदमी काहीं ना काहीं बिमारी ले संक्रमित हे। कोनों ला समाज सुधारे के, कोनों ला देश सुधारे के। बस्सौना नैतिक मानसिकता ले संक्रमित मनखे चाहथे कि वोकर मनोरोग के सिकार होके सब संक्रमित हो जाय। दू मुँहा अउ बहुरूपिया के असल सुभाव ला मनखे समझ नइ पाय। एकरे सेती अइसन सुभ चिंतक मनके मुँह मा थया नइ रहय। अब जब मुँहूँ के ढकना निकल गेहे तब अपार जन हितैसी के वायरसी खादा ला खेखार खेखार के थूँकत हे। जेकर ले कुछ ना कुछ मन तो संक्रमित होके महा अभियान मा जुड़ही। अउ फेर हाँड़ी के मुँहूँ बर परई बने हे। मनखे के मुँह मा काला ढाँक डारबे। बोल बचन करके बखेड़ा खड़ा करना जिंकर धरम हे वो कउँवाँ कभू  कोइली के बोल बोलथे तभो संका होय लगथे कि, एकर बोल मा कते संगत के असर हे। जे कउँवाँ कोलिहा के लहू मा सदा दिन समाज ला संक्रमित करे के वायरस खुसरे हे, वो अपन सुभाव ला बदल तो नइ डारे।

            छोटे बड़े बिमारी ले बाँचे बर जीवन दायनी अस्पताल के खटिया मा आसंदी होना परथे। सरदी खाँसी मा घलो पाँच पच्चीस हजार के सेनेटाइजर डाक्टर के जेब मा छिड़कना परथे। तभो इँकर  सेवा भाव नइ मरे। अउ अपन मन भावन गोठ ले कहीं कि  (साॅरी) यमराज के आगू मा हम ढिल्ला परगेन।

                प्रेम रोगी मन उढरिया भगाथे नइते पइठू खुसरथे। अइसन उदाहरण नवा पीढी ला घोर संक्रमित तो कर हीसकथे। हम तो अइसन प्रेम रोगी ला सोसल डिस्टेंस के सलाह घलो नइ देवन। कारण ये हे कि एकर ले उढरिया अउ पइठू परम्परा के प्रासंगिकता खतरा मा आ सकथे। अउ फेर कुकुर मन ला कुकुर गत के होय के का आसिस देना।

             जेमन राज धरम के रोग ले पीड़ित हें, वो मन सिंघासन ला कपुरखौती खेती समझ के अपन  नाम मा फौती उठाना चाहत हे।हमला जेमन लोभ लालच देके फाँसिन वोला पाँच साल बर भेज पारेन। आज वो मन अहंकार के रोग ले संक्रमित होके संविधान के बाप बने मा लगे हे। खुशखबरी ये हे कि जेला जनता के दरद निवारक कहिथन। वो आडंबर अउ अंधभक्ति के वायरस ले संक्रमित हे। इँहा एक पेड़ के अलग अलग डारा मा अलग अलग किसम के फूल फुलथे। ये कलम अउ सर्जरी के असर आय। बेसरम के डारा मा गोंदा फूलो सकथन इही दुहरा चरित्र के दरसन हर समाज के दरपन हे।

           साम्प्रदायिकता अउ धार्मिकता ले संक्रमित मानव मानवता ला हाथ के कठपुतरी बनाके नचावत हे। जे काबा भर पोटारे हे वो मन ला कट्टरता के केपसूल खवाये जाथे। ईश्वर बड़े हे कि अल्ला, जीजस बड़े हे कि नानक? सामंती सोच वाले मन सब ला अपन ले छोटे ही बताथे। आज हम वो विचार धारा के संक्रमण काल मा फँसे हवन जिंहा मुड़ी डोलाके हामी भर सकथन। संवेदना के पेड़ संक्रमित होके सुखा गेहे। ठुड़गा पेड़ के छाँव मा बइठके मुरझाय मनोदसा ले कइसनो करके उमर भर जीये के संसो मा समय काटना सार हे। वोहू मा झूठ लबारी सहे के टीका लगाके। अपन भावना विचार ला चपक के राखे के इम्युनिटी होही तब बाँच जबे। इन्कलाबी बनके समाज के सरदी मा बोहावत नाक नइ पोछ सकस। इहाँ तो हाना जुमला तानाशाही साम्राज्यवाद कुटिल राष्ट्रवाद हर ब्लड सुगर अउ ब्लड केंसर बनके देश के रग रग मा बोहावत हे। साँस मा अविलोम बिलोम करबे तभो संक्रमित हवा हर ही बाहिर भीतर होही। सदाचार अउ नैतिकता के सेनिटाइजर बेंचबे तब पोसवा उत्पाती वायरस मन तोर घर भूँज दिहीं। तोर बागी बने के पहिली बगोनिया मा जीमी काँदा कस उसन दिहीं। समाजिक समरता के रसा ला सरो सरो के वुहानी लैब असन आपसी लड़ाई के वायरस बनावत रथे। राजनीति के लैब मा ये प्रयोग होवत रथे कि कुरसी तक अमरे बर कते चुनावी वायरस ला ढिलना हे। धरम आस्था राष्ट्रीयता अउ सम्प्रदाय मा झूठे सहानुभूति के वायरस बगराके नास्तिक ला अपन विचारधारा के आस्तिक तो बना ही सकथे।

              मोर एक झन मितान किहिस कि--------धरम के ठेकेदार मन उपासना के मास्क पहिरे राजनीति के घोड़ी चढ़के दुलहा असन संसद के आसंदी होगे। राजनीति हर धरम के रिक्सा मा सवारी करत साम्प्रदायिकता के पालनहार बनत हे। इँकर बर तोर तिर कोनों सेनिटाइजर हावे का? तब मँय केहेंव----------जेन ग्रीन जोन मा हम हरियात रेहेंन, आज वोला अतका संक्रमित कर डारे हे कि जम्मो मानवता रेड जोन के घेरा मा साँस गीनत हे। बुद्धिजीवी होय के नाता ले पाव डेढ पाव गारी वाला कविता ला पुड़िया बाँधके पत्थरबाज असन फेंक तो सकथन। फेर वो मितान कथे----------   १८५७ से लेके १९४७ तक कविता नवा जागरन लाके चेतना जगाइस। तोला भरोसा हे कि ये तोर पुड़िया नवा क्रांति लाही? आज अराजकता असमानता बैमनस्यता कट्टरता ले उपजत हिंसा राजनीति के आसिस ले फलत फूलत हे। इँकर संक्रमण ले नव जवान युवा चेतना तको सहीद होवत हे। एकता अखंडता के घोल वाला सेनिटाइजर ले समाज मा भीषण सुधार आये के संभावना बनथे। फेर ये उपचार उन मनके सहन सक्ति ले बहिर हे जेमन लार्ड डलहौजी खानदान के हें। आज हर अस्पताल थोपे विचारधारा के संक्रमित मरीज ले भरे परे हे। आगू मा अउ चुनाव आवत हे। माने फेर नवा संक्रमण काल आही, फेर रेड जोन के घेरा परही। छुटकारा पाये बर हे त रसता रेंगत पथरा मा हपट के मर।साबित तो करि दिहीं कि कते वायरस के संक्रमण ले मरे। हम तो अति संवेदनशील जगा मा बइठके बगरे वायरस के टरे बर हवन कराय के बिचार रखे हन। पूर्ण आहूति बर बिना संक्रमित मनखे के खोज चलत हे।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

पावन राखी के धागा --------------------

 पावन राखी के धागा

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राखी तिहार के दिन बिहनिया ले गाँव भर मा उछाह हे। शादी-शुदा बेटी मन के अपन मइके म भाई ल राखी बाँधे बर आना जाना लगे हे त कतको घर दमाद बाबू नहीं ते भाँचा ह राखी पहुँचाये ला आये हे।

 कुँवारी नोनी मन जेकर सगे भाई भइया हें ते मन ल राखी बाँध के पारा-बस्ती के रिश्ता नाता के भइया मन ल तको घूम-घूम के राखी बाँधत हें। गाँव के पुरोहित ह तको अपन यजमान मन ला आज घर आके आशिर्वाद देवत राखी बाँधत हे।

 फेर आज द्रोपदी के मन अच्छा नइ लागत ये।घर के काम-बुता ल मनढ़ेरहा कर तो डरे हे फेर बेरा चढ़गे तभो ले नहाये-धोये नइये। रोवासिच-रोवासी लागत हे। काबर नइ लागही ---उहू ह तो अपन अबड़ मयारुक भइया कन्हैया ल राखी बाँधे बर हर बछर जावत रहिसे ।कन्हैया ह वोकर सग्गे भइया नइ रहिस --- बिन बताये कोनो नइ जान पातिन --अतका गहिरा पवित्र प्रेम रहिसे दूनो मा।

द्रोपदी ह तो अपन महतारी-बाप के एकलौती बेटी आय।मइके के  चार घर के आड़ म कन्हैया के घर । वोकर बेटी उर्मिला ह द्रोपदी के सहेली रहिस।अपन घर ले जादा तो द्रोपदी ह उँहेच समे बितावय।उँहे खावय-पियय अउ उँहे रात के सुत तको जवय।दुलौरिन भउजी ह तको अपन ये ननद ल बेटी ले जादा मया देवय। 

      द्रोपदी ल सुरता आवत हे के जब वो कालेज म पढ़त रहिसे त शहर के एक झन बदमाश टूरा ह अबड़ेच छेंड़छाड़ करे ल धर ले रहिसे।नइ सहइच त एक दिन डर-डरके अपन भइया ल बताये रहिसे तहाँ ले वोकर भइया ह जाके वो टूरा ल समझाइच फेर वो बदमाश टूरा ह उल्टा अपन संगवारी मन संग मिलके भइया ले कसके मारपिट करके अउ चाकू मारके भागगे रहिन।भइया ह महिना भर अस्पताल में परे रहिस---लटपट म जान बाँचे रहिस फेर ये घटना बर भइया ह कभू वोला दोसी नइ मानिच।

      द्रोपदी के बिहाव ल कन्हैया ह अपन घर म मड़वा गड़िया के करे रहिस। अउ भाई के जम्मों नेंग ल निभाये रहिसे।

 तीजा-पोरा म लेगे ल कन्हैया भइयच हा आवय अउ वो हा उँहे सगा उतरय।

 पिछू साल ताय करोना मा चारे दिन म वोकर इंतकाल होगे। लाखों रुपिया लगगे फेर वोकर भइया नइ बाँचिस।

    आज राखी के दिन वोकर रहि-रहि के सुरता आवत हे।घेरी-भेरी आँखी ले आँसू टपक जावत हे। कुछु म मन नइ लागत हे।

     द्रोपदी के पति रमेश ह वोकर मन के दशा ल समझ गे रहिस।वो ह समझावत कहिस---कन्हैया भइया के सुरता आवत हे का वो ? भगवान के मर्जी के आगू ककरो भला का चलथे? ले मन ल बोध के नहाँ धोले अउ वो दे राखी अउ मिठाई नाने हँव ,पूजा-पाठ करके भइया के फोटू म बाँध के भोग लगा दे।

  मया के फुहारा कस बरसत ढ़ाँढ़स के बोली ल सुनके द्रोपदी के हिरदे म भरे दुख के नदिया म पूरा आगे। वोह बोमफार के रोये ल धरलिस। रमेश ह लटपट म चुप कराइस ।

      कुछ समे पाछू वोकर आत्मा थिरालिस तहाँ ले स्नान करके नवा लुगरा पहिन के --घी के दिया जलाके अपन मयारुक भइया के फोटू के आरती उतारके पावन राखी के धागा ल अरपित करदिस।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

श्रद्धांजलि अउ सरकारी छुट्टी*. (ब्यंग)

 *श्रद्धांजलि अउ सरकारी छुट्टी*.                                      (ब्यंग)

            कुकुर मन के रोवई ला सियान मन शुभ नइ माने। काली चार छै ठन कुकुर मन तरिया पार मा  ओं------ -ओं---------- कहिके रोवासन करत रिहिस। आरो सुनके गुरुजी खुसी मा अइसे झूमत रिहिस जइसे बिहाव के पँदरा साल बाद बाप बने के खबर सुने हे। कुकुर मन रोवत हे माने काली कोनों ना कोनों नेता जी के परलोक सिधारे के खबर आही। अइसन राष्ट्रीय स्तर के दुख मा एक दिन शोक छुट्टी तो मिल ही जही। छुट्टी सरकार डहर ले होगे तब तो तनखा कटे के डर ही नइये। सरकारी करमचारी होय के नाते ये तो हक बनथे। अउ फेर नहा धो के अगरबत्ती घुमावत यहू मांग लेथन कि अइसन दिन आते रहय।

       कलेंडर मा लाल निसान घेरा परे तिथि के अगोरा सरकारी नौकरी पेसा वाले मन भुँजावत सुखावत फसल बर बरसात के अगोरा सहीं करत रथे। निजी संस्थान कम्पनी ठेला टपरी रिक्शा वाला मजदूर किसान के कभू इतवार नइ होवय। तब कलेंडर के पइसा बचा के गमछा बिसाथे। ये कामगार मन ला राष्ट्रीय शोक दिवस ले ना कलेंडर के लाल निसान वाले तिथि से कोनो मतलब रहय। इँकर जिनगी मा रोज वो घड़ी आथे कि कंधा देवत देवत खाँध एक बाजू झुलगे हे। परोसी भूख मा मरगे, तंगी अउ बेरोजगारी ले कोनों ना कोनों रोज अपन शुभ हाथ ले  अबादी कम करत रथे। करजा के खेती बचावत हलधर बँबूर पेड़ मा झुलना झूलत मिलथे। दाईज डोर के जोरा करत बाप चिता मा जोरावत मिलथे। लालची ससुरार के दुलार पाये बर बेटी जोरन मा माटी तेल माचिस धरके जाये बर मजबूर हे। तब हमर बर तो रोजे शोक हे। राष्ट्रीय शोक के छुट्टी मा सरकार हमला सामिल कर लिही तौ संझाकुन के पसिया तिपोय बर रुँधना टोरे बर परही। ओइसे भी सरकार ले जुड़े मनखे के मरनी मा सरकारी करमचारी के श्रद्धांजलि ले आत्मा ला जादा शांति मिलथे। घर परिवार के दुखद खबर फोन संदेश आगे। अउ मालिक तिर छुट्टी मांगे ले एके ठन जवाब मा काठी निपटा देथे कि तोर छुट्टी करके जाये जे मरइया जिंदा नइ हो जाय। तब अइसन खैंटाहा विचारधारा वाले मालिक के शोक सभा के मंगल कामना करे के छोड़ अउ कोनो दूसर रसता नइ बाँचे।

         राष्ट्रीय शोक दिवस सनिच्चर दिन परगे तब मरइया बर सरकारी करमचारी के मन मा श्रद्धा नदिया के पूरा पानी कस उफान मारत रथे। श्रद्धांजलि देय बर छटपटाहट जइसे नवा नवा बिहाव होय लइका दुलहिन के मुँहूँ देखे बर छटपटात रथे। बोनस के रूप मा मिले शोक श्रद्धांजलि के छुट्टी अउ इतवार छुट्टी। माने साढू सारी घर तो किंजर के आये जा सकथे। नेता जी के मरनी मा देश कतका दुखी हे कतका खुशी मनाथे अपन शोध प्रबंध मा विस्तार दे डारे हवँ। आखरी इसकुल के लइका मन के विचार जाने बर घर ले निकलेंव। रसता मा रामाधार साइकिल मा खाना डब्बा चपक के कम्पनी डहर भागत मिलगे। रसता छेंक के कहेंव------- भाई आज तो राष्ट्रीय शोक मनाये जावत हे अउ तैं काम मा जावत हस। तब रामाधार किहिस-------ओकर शोक मनाहूं तब नाँगा के भरपाई मरइया हर कर दिही का? सरकारी तनखा भोगी सँग हमर कहाँ ले बराबरी होही जी। जतका बड़े बड़े फेक्टरी कम्पनी हे उँहा के आधा हिस्सेदारी तो नेता मन के रथे। तभे तो हमर असन कम्पनी के फेक्टरी के कमइया आज ले चौंथा वेतन मान मा कटौती के सँग झोंकत हन। अउ सरकारी मन दसवां वेतन आयोग के बाढे भत्ता सँग जीयत हे। हमर जिनगी मा अतका शोक अउ दुख हे कि रोज एक झन ला श्रद्धांजलि देथन तब काम धरथन। इही कम्पनी के राखड़ धुँगिया अउ जहरीला पानी ले खेती मरत हे। इही कम्पनी के दुसित जहरीला हवा ले  बिमारी पोटारे बिना इलाज के मरत हे। इही कम्पनी मा होवत दुर्घटना मा मजदूर के जान परान के मोल सस्ता हे। जिंकर लाश उपर श्रद्धांजलि देवइया कोनों नइये। बेवस्था ला धन्यवाद अतके बर देथन कि मुक्तिधाम के काया कल्प करके हँसी खुशी किरिया करम करे के सुविधा दे देय हे।विरोधी मन के कतको बछर ले हाजमा खराब रिहिस अपच बदहजमी के दरद ले खुलासा नइ होवत रिहिस श्रद्धांजलि दिवस के खबर ले खुलके खुलासा होय ले हलका जनाथे ओइसने जनावत रिहिस। 

           हमर जतका अबादी हे ओकर आधा ले जादा बर कभू इतवार नइ आय। तब बीच के सरकारी छुट्टी ले का लेना देना? बैपारी संघ मनके एकता समूह ले फैसला लेय गिस कि हप्ता मा एक दिन इमानदारी ले धंधा करे जाही। बिना मिलावट बिना काँटामारी के। फेर जिंकर ममहाती देंह मा बइमानी के बस्सौना लहू बोहाबत हे अइसन कुकुर के पूछी सोज नइ होवय। इन मन तो सग बाप ला सक के नजर ले देखथे कि गल्ला के गुलाबी पत्ती मा हाथ तो साफ नइ कर देहे। तब हप्ता मा एक दिन बुधवारी बजार बंद। जेकर ले ईमानदारी के संकलप के लाज बाँचगे। फेर बजार भीतर नान नान पसरा वाले ठेला रिक्शा वाला मजदूरी अउ हमाली करके पेट चलइया बर एक दिन के छुट्टी बंदी घलो मरनी के खबर असन बियापत रथे। काबर कि रोज कुँआ कोड़ के पानी पियइया मन ला चुलहा के श्रद्धांजलि देय के डर घेरे रथे। तभो ले कुँआ के अमटाहा कसाय पानी ला पीना परथे। पाँव से लेके कपार तक, पेट से लेके हाथ के लकीर तक मा रोज कुँआ कोड़ना लिखाय हे। तब इतवारी के घले मुखाग्नि देना परथे।

             मोर अधूरा शोध प्रबंध के मसाला बर इसकुल के पावन प्राथना भूमि मा चल देंव। नेता जी के मरनी के शुभ संदेश कानाफूसी के प्रसार तंत्र ले बगरगे। अउ सब लइका घरे ले श्रद्धांजलि देके छुट्टी के शुभ दिन ला सफल बनाये मा लग गे। गुरुजी मन ला घलो वो काम के सुरत आगे जेकर निपटाये भर इही अच्छा दिन के अगोरा रिहिस। ओहू मन लकर धकर भगागे। जिंकर काहीं काम नइ रिहिस ओहू मन अइसे भागिन जानो मानो इसकुल मा एक दिन बर भुतहा खँड़हर के परेतिन समा गेहे। जादा देरी ले रुकही तब इँकरे उपर सवार हो जाही।

            365 दिन मा 52 इतवार, तिहार दिवस जयंती। उपर ले सनिच्चर के आधा कमाव अउ सइघो पावव। मन चाहा इ एल /सी एल के अलग बेवस्था। कुल मिलाके साल मा डेढ सौ दिन छुट्टी मा चल दिस। क्इसे मितान हमर डहर आये बर भुलागे कबे तौ एके जवाब----कहाँ जी छुट्टीच नइ मिले। दस बजे दफ्तर खुलही। ग्यारा बजे काम के बोहनी होही। फेर चाहा पानी अउ टिफिन उरकाय के जवाबदारी ला पूरा करना परथे। चार बजे के पहिली बाई जी के फोन आ जथे कि सँजकेरहा बजार होवत आबे तब------। काम के बीच मा सारी सखा मितान के फोन के बीच मा टोका टोकी करना माने जानबूझ के साँप के पूछी मा पाँव मँड़ाना हे। अइसन सघन वार्ता के बीच टोके ले कच्चा चबाए के कातर भाव ले देखही। तब मुँहूँ बाँधके अगोरा सफल रसता रथे। एकरे सँग  वाट्सअप फेसबुक के करजा चुकाए ला परथे। फेर श्रद्धांजलि दिवस के दिन सहानुभूति के शब्द मुख के मोहाटी मा रथे। तब कहीं कि आज श्रद्धांजलि दिवस के छुट्टी परगे जी नइते तोर काम जरूर होय रतिस।आम जनता के काम सदा अधर मा झूलत रथे। इँकर हलाकानी ला समझ लेना दफ्तरी बाबू के दिनचरिया मा नइ आय। ये उँकर शान अउ स्वाभिमान के खिलाफ़ हे। काम के सरकई ला देखके लगथे कि चिबरी भात ला अदर कचर करके जबरन खावत हे।

                 जतका पढ़े लिखे हे सब सरकारी नौकरी के पाछू पानी पसिया धरके खेत खार बेंचके घूँस घाँस देके भागत रथे। जेन योग्य हे फेर सौभाग्य से गरीब हे तब वो 365 दिन खटे वाला जगा मा अपन तकदीर अजमथे। घूँस देके नौकरी पाये वाला बाबू के घाँस हरियर ही रथे। कम तनखा हर उपरी कमाई के झरोखा ले भरपाई होवत रथे। फेर साल के डेढ सौ दिन छुट्टी तो मिलथे। इही छुट्टी के सुख भोगे बर ही तो सरकारी नौकरी के पाछू परे ला परथे। बैंक के सँग अउ कतको दफ्तर बर सरलग तीन दिन छुट्टी के शुभ मौका साल मा दू तीन बखत तो आइच जाथे। अइसन दसा मा फाईल पोथी पत्तर सँग मुसवा दिंयार मन कुस्ती खेल के स्वतंत्रता दिवस मनाके कतको केस के तिज नहावन तो करी देथे। सरकारी अस्पताल बर इतवार के कोनों बिमार नइ परय। बिमारी घलो छुट्टी के ताक मा रथे। ग्राम विकास अधिकारी के आफिस शहर मा हे। मँगलू तीन दिन होगे शहर कोती लकर धकर अइसे जाथे जानो मानो मालिस के जपानी तेल लेय बर जपान जावत हे। सरकारी छुट्टी नेताजी के मरनी अउ बाबूजी के गैरहाजरी ले थोथना ओरमाय आथे तब लगथे कि चुनावी टिकट ले नाम कटे के बाद भावी नेता के होगे।

              हमर असन मनखे जेकर इतवार घलो नइ होय तब कलेंडर लेके का करबो। खूँटी मा टाँगे बर दिवाल तो घलो होना। कतको अइसन हे जे दिसंबर उरके के पहिली नवा कलेंडर लेके लाथे तब लगथे कि घर मा एल ई डी टी बी धरके लानत हे। नवा महिना के पन्ना पलटते ही ये देखे जाथे कि अवइया महिना मा कै ठन इतवार कै ठन छुट्टी आउ कोन कोन दिन परत हे। मोर शोध किताब ला जब जब पूरा करे बर निंकलेंव सरकारी छुट्टी हर घर ले निकलते ही छींक पार दिस।

              आज पहिली बखत गुरुजी के मन मा पोसे सबो उत्साह के हतिया होगे। कुकुर तो रोइस फेर कोनो कोती ले श्रद्धांजलि छुट्टी के खुशखबरी नइ आइस। कुकुर मन ला कोसत अपन दिन ला निकालिस। कवि सुभाव के मास्टर जी इसकुल मा गंभीर चिंतन के चार ठन कविता लिख डारे।आदमी कहूँ सरकारी कर्मचारी गुरूजी हे तब तो महा कवि बने मा कोनो नइ रोक सके।फेर आज दुखी मन ले कलम नइ धर पाइस। भरोसा करे के लाइक आदमी तो नइये। फेर आज कुकुर घलो दगा दे दिस। हम तो कथन कि कुकुर के रोवइ कभू सच झन होवय। ना कोनो ला श्रद्धांजलि देय के नाम मा छुट्टी मिले। जेकर ले मँगलू के एक दिन के भगई हर तो बाँचही।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

आऊटसोर्सिंग

 आऊटसोर्सिंग 

                              मंगलू अऊ बुधारू खुशी के मारे पगलागे रहय । लोगन ला बतावत रहय के , हमर प्रदेश के क्रिकेट टीम ल रणजी ट्राफी खेले के मौका मिलगे । गाँव के महराज किथे - ये काये जी ? एमा खुश होये के काये बात हे ? सरकार ल खुश होना चाही । क्रिकेट के समान बेंचइया अऊ खेलइया ल खुश होना चाही । बुधारू कहत रहय - हमर बेटा मन कालेज के बड़े क्रिकेट खेलाड़ी आय , ऊँखर खेल ल देखके , ऊँखर चयन , प्रदेश के टीम म होवइया हे । समारू किथे - निचट भकला हो जी तूमन । नानुक सरकारी कालेज , जिंहा खेले के सुभित्ता एक डहर , पढ़हे के सुभित्ता तको निये , तेमा पढ़हइया ल , कोन बड़े जिनीस नाव अऊ काम मिल जही ? कोन ओकर खेल ल देखके , मोहा जही तेमा ? मान लो कन्हो मोहाइचगे , त ये रणजी – फनजी ट्राफी बर मेच खेले ले का होही ? मंगलू जवाब दिस - तूमन ल कहींच समझ निये खेलकूद के । तूमन जिनगी भर नांगरजोत्ता के नांगरजोत्ताच रहू । अरे ऊँहा बने खेलही त , आई. पी. एल. के कन्हो टीम मालिक के नजर में नइ आही जी ...... । 

                कभू बाप पुरखा सुने नइ रहय समारू , पूछ पारिस - ये आई. पी. एल. खेले ले काये होही ? मंगलू किथे - जिंहा एकेक रन बनाये के अऊ टीम म सिर्फ नाव लिखाये के , बड़ पइसा मिलथे कथे बइहा ……. उही आई.पी.एल.आय । बिहान दिन मंडल बने बर , गाँव म बइठका सकलागे । जम्मो झिन अपन अपन लइका ल क्रिकेट खेले बर भेजे लागिस । खुडवा , खो-खो , गुल्ली-डंडा सब नंदागे ।  

                                गरमी छुट्टी बिता के बड़े गुरूजी अइस त इहाँ के नावा चरित्तर ल देखके पूछिस - कस जी , तुँहर लइका मन के नाव प्रदेश के रणजी टीम म आगिस , अऊ हमला कहीं जनाबा तको नइ करेव । बुधारू किथे - निही , अभू कहाँ आहे गुरूजी । अभू टेम लगही तइसे लागथे । गुरूजी पूछिस - त क्रिकेट के नाव ले खरचा करे बर , रणजी टीम चुनइया मन तूमन ला पइसा दीस होही न .....? मंगलू मुड़ी गड़िया के धिरलगहा किथे - तहूँ अच्छा मजकिया कस गोठियाथस गुरूजी , अपने मारे बाँच लेले त हमन ल दिही । गुरूजी फेर पचारिस - त सरकार डहर ले , क्रिकेट बर या कनहो अऊ बूता बर , फोकट म पइसा बाँटे के योजना चलत होही ... ? बुधारू किथे – गुरूजी घला , बड़ मजाक करथे गा ...... , अभू चुनई थोरेन आहे गा , तेमे फोकट देवइया मन आही ? इहाँ पइसा धरके , राशन कार्ड म , चऊँर नइ मिलत हे ..... फोकट म कोन दिही ... उही मन रात दिन खाँव खाँव करथे ।  

                                गुरूजी पूछत रहय - बता मंगलू , रामू के लइका काये पढ़े हे ? मंगलू जवाब दिस -ओ हा कालेज पढ़ पुढ़ा के बइठे हे गुरूजी , अपन यूनिवर्सिटी म अव्वल रिहिस । गुरूजी फेर पूछिस - अऊ होशियार सिंग के लइका ? समारू किथे – वो काला पढ़ही गा , ले दे के कालेज पूरा करिसे । गुरूजी फेर पचारिस - त नौकरी कोन ल मिलिस । बुधारू किथे - होशियार सिंग के लइका ल । गुरूजी फेर प्रश्न करिस - काबर मिलिस ? मंगलू मुड़ी डोलावत किहिस - ओला नइ जानों गुरूजी । गुरूजी भन्नाये रहय - अब तैं बता बुधारू , दुलारी के नोनी काये पढ़े हे ? बुधारू किथे - वा .... नइ जानबो गुरूजी । बिचारी भउजी हा , कुटिया पिसिया करके नोनी ल नर्स बई बने बर लिखइस , पढ़हइस । गुरूजी किथे - फेर का होइस ? ओला तो अपन कालेज म सोन के मेडल घला मिलिस का ? बुधारू किथे - वा .... गुरूजी , सब्बो बात ल जानत हँव । उही मेडल के भरोसा , नोनी हा शहर के प्राइवेट अस्पताल म नौकरी घला करथे । गुरूजी पचारिस - अऊ तोर परोसी परदेसिया के नोनी ? बुधारू किथे - ओहा सरकारी अस्पताल म नौकरी करथे । गुरूजी किथे - अरे मुरूख , दुलारी के नोनी के प्राइवेट अस्पताल म शोषण होवत हे , अऊ परदेसिया के गदही टूरी सरकारी अस्पताल म मजा मारथे । अब तूहीं मन बतावव , एकर काये अर्थ हे ? कन्हो समझिन निही । समारू किथे - तिंही बता गुरूजी .... काबर बेंझावत हस । गुरूजी बतावन लागिस - बेटा तैं छत्तीसगढ़िया अस , तोर भाग म सिर्फ दूसर के गुलामी , शोषण ..... लिखाहे । तोर लोग लइका , जेन दिन कमजोर अऊ अक्षम रिहीन तेन दिन तक , लुका लुका के , बाहिर के मनखे मन ल , इहाँ नौकरी दिन । अभू तुँहंरों लोग लइका मन , बाहिरी मन ले जादा सक्षम अऊ सजोर होगिन , तेकर सेती , बाहिरी मन ल भरती करे खातिर , नियम पास करे बर परगे । इही ल येमन आऊटसोर्सिंग कहि दिन । जम्मो झिन के कान खड़े होगे , कलेचुप सुनत हे । मंगलू पूछिस - ये आऊटसोर्सिंग काये गुरूजी ? गुरूजी बतइस - एकर मतलब , इहाँ के सोर्स ल , इहाँ ले बाहिर करना , अऊ इहाँ के मनखे मन ला , इहाँ के सोर्स ले दूरिहा देना आय । गुरूजी सरलग केहे लागिस - लइका मन क्रिकेट खेलही , रणजी टीम म चयन हो जही , आई. पी. एल. खेले ल मिल जही , अऊ तुँहर घर पइसा के खजाना आ जही , सोंचत हव तूमन ? मुरूख हव जी । जेन समे रणजी टीम के चयन होही , तुँहर नोनी बाबू के कन्हो कका बन के आगू म ठाढ़ नइ रही , हाँ नाव कटवाये बर जरूर हमरे कन्हो बड़े भई , आगू खड़े मिल जही । हमर प्रदेश के रणजी टीम म , एको छत्तीसगढ़िया नइ चुने जा सके , यहू मा पूरा आऊटसोर्सिंग चलही । 

                               बुधारू किथे - गुरूजी , तैं कहत हस तेमें सचाई हे , फेर हम छत्तीसगढ़िया मन , जब लड़ भिड़ के अपन बर प्रदेश बना सकत हन , अपन राज लान सकत हन , तब का हमन अपन टीम म अपन लइका के चयन नइ करवा सकबो ? गुरूजी पूछिस - कोन कथे तूमन अपन प्रदेश बनवाये हव कहिके , अऊ कोन कथे तुँहर राज चलत हे कहिके ? तोर गाँव के मुखिया कति आय ...? तूमन अपन लइका ल मास्टरी के या नर्स बई के नौकरी देवा नइ सकत हव , अऊ बात करथव ....... । रिहिस बात तुँहर मेहनत ले प्रदेश बने के ? तूमन तो अपन भाखा तक ल राजभाखा नइ बनवा सकत हव , अतेक बड़ प्रदेश कइसे बनवा डरहू ? समारू हाँसत किहिस - ओकर बर तो आयोग बनाये हे शासन । गुरूजी किथे - आयोग के काये माने हे तेमा , इहाँ बइठने वाला ल लालबत्ती धरा के ओकर मुहूँ ल टोनही कस धर देथें , जब तक खुरसी म रिथें ....... मुहूँ तोपायेच रिथे । अब तो उहू दिन बादर दूरिहा निये बेटा , जब तुँहर राजभाखा आयोग म , दिल्ली के मनखे आके बइठही , अऊ केहे जाही , इहाँ के मनखे म योग्यता निये , तेकर सेती आऊटसोर्सिंग करे गे हे...........। 

               समारू पूछिस - त अब काये करे जाये गुरूजी ? गुरूजी उपाय बतावत किहिस - ये समस्या ले दू तरहा ले निपटे जा सकत हे । पहिली ये के , अपन नाव ल , छत्तीसगढ़ के भुँइया ले कटवा दव । गुरूजी चल गे हे कारे .... फुसुर फुसुर गोठियाये लागिन सबोझिन .....? बुधारू किथे - समझेन निही गुरूजी ? गुरूजी जवाब दिस - मोर केहे के मतलब ये आय के , अपन आप ल बहिरी मनखे बताहू तभे , तुँहर लइका मन के नौकरी लगही , रणजी टीम म खेले बर मिलही , उही बहाना आई.पी.एल. म जाही , तभे तहूँ मन मंडल बनहू , अऊ इहाँ के राज पाठ घला सम्हालहू । दूसर उपाय बड़ कठिन आय । किटकिट ले मुठा बांधत मंगलू किहिस - कतको कठिन रही , अपन लइका लोग के खातिर वहू कर लेबो । गुरूजी बतइस - त अभू ले , जऊन खांधी म बइठे हव , तेला पोट्ठ बनावव , ओमा आरी झिन चलावव , निही ते , नकसानी झेलत रहिहौ , अऊ दूसर मन , मजा ले ले के अमरबेल कस चुँहकत रहि तुँहर लहू ल , अऊ तूमन , धान के कटोरा धरे , दाना दाना बर लुलवावत किंजरत रहू ....., कहत कहत गुरूजी पट ले गिरगे , परान निकलगे ..... । कोन जनी अऊ का बतातिस ..... गुरूजी चल दिस । फेर कन्हो ऊँकर एको बात ल नइ मानिस ...। कतको झिन अभू घला अपन आप ल छत्तीसगढ़िया बता के अपनेच नकसानी करे म लगे हाबें , अऊ कतको झिन थोरकुन लालच म फँस के , अपने गोड़ म पथरा कचारत , इहाँ ले आऊट होये के अगोरा करत हे ......... । 

     हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

Saturday 26 August 2023

महतारी के पीरा..* (लघुकथा )

 *महतारी के पीरा..*

(लघुकथा )


                 भुरी (घर के बाहिर गली म घुमइया कुतिया) ह 2 दिन ले सरलग  घर के गेट म आके कूँ...कूँ...कहिके नरियाय (रोवय) । रोही काबर नहीं ...?  आज अपन आखिरी पिला ल घलो गँवा डरिस ।  नरियाय त अइसे लगय मानो पूछत हवय मोर पिला ह कहाँ हे..? घर के जेन मनखे गेट के बाहिर निकलतिस तेकर तीर मा आ के नरियाय, आँखी ले आँसू तरतर तरतर बोहात रहय । 

              भुरी ह 3 ठन पिला बियाय रहिस तेमा के एक ठन ल पहिलिच कोनो उठा के लेगे।  दू ठन पिला ल गली के एक कोंटा मा खम्भा के तिर मा पोसत रहिस । कोनो रोटी देदय ता कोनो रात के बाँचे खोंचे भात ला। लईकोरहिन रहिस तेकर सेती कोनो ना कोनो खाय बर देच दय । घर के गेट ले बुलक के नान-नान पिला मन घर भीतरी आ जतिस ता भुरी घलो पाछू-पाछू भीतरी आय बर छटपटातिस। पिला संग लइका मन खेल के गेट ले बाहिर निकाल दय ,भुरी वोला ले के लहुट जाय । कुतिया हा सफेद रंग के चकचक ले दिखय तेखर सेती दाई ह ओला भुरी कहिके बलाय। 

                भुरी के दुसरिया पिला ह एक दिन गाड़ी म रेता के मरगे, भुरी ह मरे पिला ल राखत बइठे रहय । कोनो ल तीर म नइ आवन देत रहिस भूँकय, चाबे-कोकने ल करय। कोनो मनखे तीर मा नइ जा सकत रहिस। फेर कइसनो करके पालिका वाले मन मरे पिला ल लेगे। भुरी के आँखी ले आँसू ढरकत रहय। महतारी तो महतारी होथे येमा मनखे लागय न कुकुर-बिलई महतारी के पीरा एके होथे। 

                 दुसरिया दिन तो अतिच होगे, भुरी के आखरी पिला ला कोनो उठा के लेगे। भुरी येती ओती दउँड़ दउँड़ के पिला ला खोजय । घर के गेट मेर आके  उँ..उँ..उँ..उँ.. कहिके जोर जोर से नरियाय मानो पूछत हे -  मोर पिला कहाँ हे...?  

गेट ल खोलव... तुँहर घर आय तो नइ हे ...? ओकर नरियय ल सुन के बाहिर निकलेंव । गेट ल खोल देंव,गेट खुलते साट भूरी सर्राटा भागिस अउ अँगना मा जा के फेर  उँ..उँ..उँ..उँ.. कहिके नरियाय लगिस । दाई तीर,भाई तीर घर के सबो मनखे तिर जा-जा के उँ..उँ..उँ..उँ.. कहिके जोर जोर से नरियाय मानो पूछत हवय कि मोर पिला कहाँ हे...? इहाँ आय तो नइहे ..? भगवान दुनिया के कोनो जानवर ल मुँह तो नइ दे हे फेर भुरी के उँ..उँ..उँ..उँ.. कहिके नरिययी अउ आँखी ले झरत आँसू ला कोनो भी मनखे सफा सफा पढ़ लेतिस के वोहा अपन पिला के दुःख मा बही होगे हे। 

                 भुरी ल बिस्वास देवाय बर दाई ह घेरी भेरी कहय- तोर पिला ल हमन नइ लॉय हन भुरी देख ले....नइ लाय हन वो....। फेर भुरी कहाँ मानय ..!  पिला गँवाय ले बेसुध होके  धँ आय धँ जाय, येति वोती खोजय... पाँव ल खुरचय उँ..उँ..उँ..उँ.. कहिके नरियाय फेर पिला रहय तब ना। अपन आखरी पिला ल गँवाय के दुःख मा भुरी के आँसू तरतर-तरतर गिरत रहय ।


अजय अमृतांशु

भाटापारा

सबले बढ़िया – छत्तीसगढ़िया

 सबले बढ़िया – छत्तीसगढ़िया         

       नानकुन गाँव धौराभाठा के गौंटिया के एके झिन बेटा – रमेसर , पढ़ लिख के साहेब बनगे रहय रायपुर म । जतका सुघ्घर दिखम म , ततकेच सुघ्घर आदत बेवहार म घला रहय ओखर सुआरी मंजू हा । दू झिन बाबू – मोनू अउ चीनू  , डोकरी दई अउ बबा के बड़ सेवा करय । बड़े जिनीस घर कुरिया के रहवइया मनखे मन ल , नानुक सरकारी घर काला पोसाही , नावा रायपुर म घर ले डारिन अउ उंहीचे रेहे लागिन । 

              कालोनी म , किसिम किसिम के , अलग अलग राज ले आय मनखे रहंय ।‍ धीरे धीरे मन माढ़े लागिस , लोगन मन ले परिचय होवन लागिस , तइसने म घाम के महीना बईसाख आगे । लइकामन के स्कूल के छुट्टी के समे आगे । दूरिहा – दूरिहा के रहवइया मनखे मन , अपन अपन देसराज जाए के तियारी करे लागिन । रमेसर पूछत रहय , जम्मो झिन छुट्टी म चल दिहीं त हमन कइसे करबो मंजू ? मंजू किथे - का करबोन जी ? हमूमन माईपिल्ला , अपन गाँव जाबोन अउ अपन घर दुआर के मराम्मत कराबोन , अउ अपन खेतखार ल दुरूस्त करवाबोन , उँहीचे अपन लोग लइका ल किंजारबो  , अउ खेतखार के जानकारी देबोन । रमेसर किथे - तेकर ले कहाँचो दूसर ठउर जातेन का , थोरकुन समे बर ? गाँव म लइकामन बोरिया जथे , दाई-बाबू मन के किंजरे के सउँख घला पूरा हो जही । एक काम करे जाय मंजू , जम्मो परोसी मन ल घला किथौं , अपन अपन देसराज त हर बछर जाथौ , ये बखत जुरमिल के अलग अलग परदेस जाबोन , इही बहाना परिचय घला पोट्ठ हो जही । जम्मो योजना घरे म  बनगे ओतकिच बेरा ।

                 तिर तखार के जम्मो लइका सियान तियार होगे , बइठका सकलागे ,  तारीख तिथि निच्चित होगे । मराठी बाबू ठाकरे ल पूरा यात्रा के प्रभारी बना दिन । बड़े जिनीस बस किराया कर डारिन । कोन कोन जाहीं , कतका संख्या होही – तेकर हिसाब होए लागिस । संख्या अउ सीट के हिसाब ले , रमेसर के महतारी-बाप छूटत रहय । रमेसर – मंजू के बनाए योजना , ओकरे महतारी बाप के जाए के मनाही म , इँखर दिल टूटगे । यहूमन , नइ जाए के घोसना कर दिन । एमन ल ठाकरे साहेब बड़ समझाइस , फेर एमन नइ मानिन ! मंजू के कहना अतकेच रिहिस के बिगन सास ससुर के , नइ जावन । एडवांस पईसा डूबे के घला फिकर नइ करिन । तारीख लकठियागे , उही समे भाटिया साहेब के छुट्टी निरस्त होगे , पइसा घला जमा नइ करे रहय ओमन । भाटिया साहेब हा बिगन जाय , फोकट फोकट पइसा देबर मना कर दिस । आर्थिक बोझा जवइया मन उप्पर बाढ़हे लागिस । जाए के एक दिन पहिली , ठाकरे साहेब हा मजबूरी म , रमेसर करा पहुँच गिस । ओला महतारी बाप सम्मेत जाए बर मनाए लागिस । रमेसर गाँव जाए के तियारी करत रहंय । ददा के आदेश ले , इंखरे संग यात्रा निच्चित होगे ।

                   बड़े जिनीस बस ईँखर घर के आगू म आके ठाढ़ होइस । रमेसर मन जम्मो झिन , आगू ले चइघ के सीट पोगरा डारिन । धीरे धीरे मोहल्ला भर के मनखे जुरिआए लागिन , अउ अपन अपन सीट म बइठे लागिन । राव साहेब आतेचसाट , रमेसर अउ ओखर परिवार ल देखके , बम होगे । राव साहेब बग्यावत केहे लगिस - आगू के दूनों सीट मोर नाव ले बुक हे , ओकर पाछू बेहरा बाबू के नाव ले । तूमन ल अपन सीट के होश हवाश नइये का ? डोकरा डोकरी ल झिन लेगहू केहे रेहेन , उहू मन ला धर के ले आने । रद्दा म इँखर नाव लेके कहीं तकलीफ होही त तुंहर मजा ल बताहौं , घुचो हमर सीट ले । रमेसर के चेहरा तमतमागे , कुछु बोलतिस तेकर पहिली , ओकर ददा केहे लागिस – तुँहरे संगवारी मन जाय बर किहिन , तब जावथन बेटा । रिहिस बात सीट के , हमन ल जनाकारी नइ रिहिस के , सीट म जम्मो यात्री मन के नाव लिखाहे । ले तूमन तुँहर सीट म बइठव , पाछू कोती के सीट खाली दिखत हे उही हमर होही - कहिके माई पिल्ला अपन सूटकेस मोटरी - चोटरी ल धर के पाछू डहर रेंग दिन । रमेसर अपमान के घूँट पीके रहि गिस , फेर अपन ददा के सेती मुहूँ नइ खोलिस । 

                  गाड़ी चले लागिस । रद्दा म जगा-जगा बोर्ड टँगाए रहय , जेमे लिखे रहय , छत्तीसगढिया सबले बढिया । राव के लइका जइसे देखय , जोर जोर ले पढ़य । बेहरा बाबू – राव साहेब आपस में गोठिआए लागिस – हुँह , का खाक बढ़िया ? केवल नारा आय एहा , न लोक में ठिकाना , न रंग में , न संस्कृति में दम , न सभ्यता म । दई-ददा ल चिपका के घूमत हे आनंद मनाए के दिन म । हमर दाई ददा नइहे का । बहाना बना के छोड़ देतिन , घर के रखवारी घला हो जतिस । इँकर तिर कायेच हे तेकर रखवाली बर कन्हो ल छोड़ही । रहितीस तभ्भो , एमन काहीं के इज्जत करे ल नइ जानय । ये छत्तीसगढिया मन , कतको बड़ पद पा जांए भाई साहेब , फेर रही अड़हा के अड़हा । साले परबुधिया मन यहा उम्मर म दई ददा के अँचरा ल धरके घूमथें । खाली दुनिया भर में प्रचार प्रसार हाबे कि – छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । फेर मोला लागथे इंहा काँहीच बढ़िया नइये , तेकर सेती प्रचार प्रसार  के जरूरत परथे ।

                  एक झिन कहत रहय - हमन अपन अपन प्रदेश ल देखथन त , अइसे लागथे के एमन अभी घला पथरा जुग म जियत हे । कोन्हो अपन प्रदेश के लोक  , रंग  , संस्कृति के गुन गावत नई अघात हे , त कोन्हो अपन समृद्धि के । कोन्हो अपन राज के , दूध दही के नदिया के , बखान करत हे , त कोन्हो मंदिर देवाला के  । कोन्हो अपन देशराज ल अनाज के भंडार बतावत नइ अघावत हे , त कन्हो खनिज के । चरचा चलत हे जात्रा संग , फेर रहि रहि के छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के ऊप्पर व्यंग्य घला । अपन देस राज के गुन गवइ ले जादा , लोगन ल इहां के हाँसी उड़ाए म मजा आवत रहय । कुछ मन कहय - हमर देस राज ल आवन दव , तब देखाबो – काला किथे सबले बढ़िया । सफर के पहिली पड़ाव म पुरी पहुंचगे जात्रा दल । सफर के थकान उतरे के पाछू , जगन्नाथ भगवान के दर्शन बर तैयार होवत हे जम्मो झिन । उड़ीसा निवासी बेहरा सेठ भारी उत्साहित रहय । अपन प्रदेश के गौरव के भारी बखान करत रिहिस । थोरेच समे में एकर सहयोग ले मंदिर के बड़ सुघ्घर दर्शन घला पागिन । बेहरा के छाती फूलत रिहिस घेरी बेरी । थोरेच पाछू ओकर पूरा हवा निकल गे । कोन जनी कोन पंडा बनके बेहरा बाबू ल अइसे लूटिस के , पूरा जेबेच सफाचट होगे । जतका डिंगरई मारत रिहिस , जम्मो घुसड़गे । मजाक या हाँसी उड़ई तो धूर .. बोलती तको कमतियागे | रमेसर ह , ओला बहुत अकन पइसा देके मदद कर दिस ।   

                  भगवान तिरूपति के दर्शन बर अबड़ उछाह रिहिस जम्मो के मन म । जइसे जइसे मंदिर लकठियाये लागिस , मनखे मन के उछाह सरसरऊँवा बाढ़तेच गिस । कन्हो अपन मनौती के बिसे सोंचत रहय , त कन्हो भगवान ल मने मन धन्यवाद देवत रहय । मंदिर तिरेच आये के उमीद म एक जगा बिलमके पूजा गाजा के समान बिसाये लागिन । इही म देरी होगे । थोकिन आगू गिन तहन .. उदुप ले आंधी तूफान बरोड़ा सुरू होगे । पानी के बड़े बड़े बूँद चुचुवाये ल धर लिस । ड्राइबर हा आघू गाड़ी चलाये म अपन समस्या बताइस । मजबूरी होगे , तिर के गाँव म समे काटे के । बस के मैनेजर हा समय बचाये बर , इही गाँव म खाना पीना , सोंच डरिस । स्कूल के छपरी देख के बस ल ठाड़ करिस । गाँव के जवान मन स्कूल के परछी म तास खेलत रहय । मैनेजर ह राव साहेब ल , इही लइका मन के मदद माँगे बर भेजिस । मदद त दूर , लइका मन अस डरवइस ओला के , तुरते हाँफत हाँफत आके , बस ला जल्दी चलाये बर केहे लागिस ला । ड्राइबर घला ओकर हालत ल देखिस , त पूछिस न गँवछिस , सटासट गेयर लगइस अऊ गाड़ी ल भगइस इहाँ ले । थोरकुन बेर म राव साहेब बतइस - वो टूरा मन असमाजिक मनखे कस लागिस , उहाँ थोरकुन बिलमतेन ते लूट पाट हो सकत रिहिस । साले मन मदद त दूर , मुँही ल लूटे बर कुदाये ल धरत रिहिन । रमेसर के बाबू हा ओकर तिर म आके .. ओकर गिला चूंदी ल पोंछिस अऊ समझइस । जम्मो झिन बस म , भगवान तिरूपति के प्रार्थना शुरू करिन , सहींच म देखते देखत बादर कते कोती छँटागे , सुरूज के चमक दिखे लागिस । पानी के बेवस्था देख के खाये पिये के उदिम पूरा करिन , तेकर पाछू भगवान तिरूपति के दर्शन बर मई पिल्ला आगू बढ़ गिन । 

                 सफर के अगले पड़ाव म बेंगलूरू शहर म प्रवेश कर डरिन । एक ठिन होटल म रूके के बेवस्था रहय । सफर के थकान नइ जियानत रहय कन्हो ल । वृन्दावन गार्डन , भव्य बजार जाये के सऊँख म लकर धकर तैयार होवत हे । रमेसर कभू देखे नइ रहय । वोहा कन्नड़ शेषाद्रि भाई के संगत ल धरिस । दूनों झिन घूम के आबो , तंहंले अपन परिवार ल घुमाहूँ सोंच के चल दिस शेषाद्रि संग । गार्डन म शेषाद्रि हा एक झिन सुघ्घर नोनी के हाथ ल धर दिस । मार परिस रमेसर ल । काबर के उही गलती करिस तइसे सारी बोल पारिस । पछीना छूटगे – रमेसर के । घेरी बेरी छमा माँगिस तब बड़ मुश्किल ले छूटिन । वापिस होटल आये के पाछू शेषाद्रि हा , रमेसर अइसे करिस तेकर सेती मार परिस अऊ में बचायेंव , कहत रहय । कतको झिन रमेसर ल गारी दिन । अपन गलती नोहे - बताये के कतको कोशिस करिस फेर , रमेसर के गोठ सुने बर कन्हो तियार नइ होइस । कन्हो कन्हो तुरते उलाहना दे बर सुरू कर दिन – इही ल कथे छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । 

                बहुत कष्टदायी होगे यात्रा हा इँकर मन बर । देश के व्यवसायिक राजधानी मुम्बई जाये के कन्हो उछाह नइ रहिगे मन म अभू । अऊ मनखे मन हीरो – हीरोइन ले मिले बर उत्साहित रहय , त कन्हो चोर बजार ले जिनीस बिसाये बर । कन्हो चौपाटी म मजा ले के सपना देखत रहय , त कन्हो फिलिम सिटी म समे बिताये के । तेकर ले ठाकरे साहेब अऊ जादा उत्साहित रहय । अऊ रहिबेच करही – अपन प्रदेश के गरब देखाना हे । बड़ घूमिन फिरिन । रंग रंग के जिनीस बिसा डरिन । फेर घूम के आये के पाछू , ठाकरे के बाई के मुहूँ तूमा बरोबर लटके रहय । न हूँके न भूँके । पता चलिस – पैसा के थैली चोरी होगे । अऊ ते अऊ , उही म ठाकरे के पर्स , ए टी एम कार्ड , मोबाइल जम्मो गे । कहींच नइ बांचिस । दूनो परानी रोवत बइठे रहय । मंजू अबड़ समझइस । ठाकरे भाऊ भड़कगे – तोर होये रहितिस त जानते , तेंहा हमन ला लान के दे देबे का , बड़ समझइया बने हस ? मंजू बड़ दायसी ले गोठियात , अपन ए. टी. एम. ल देवत किहिस - जतका जरूरत हे ततका निकाल सकत हव । ठाकरे हा , मंजू के बेवहार ले अवाक रहिगे । 

                यात्रा चलत हे । रमेसर के परिवार , हरेक दारी काकरो काकरो मदद करके , अपन आप ल धन्य अनुभौ करय । तभ्भो ले छत्तीसगढिया सबले बढिया कहिके , कन्हो कन्हो बेर कमेंट सुने ल मिलीच जावत रिहिस । मध्यप्रदेश पार करत उत्तरप्रदेश पहुंचगे । इलाहाबाद के संगम म खल खल ले नहा धोके बिहार कति जावत रहय बस । रात के दू बजे । नींद अपन बांहाँ म पोटारे हे सबो मनखे ल । बिधुन चलत बस , उदुप ले ठाड़ होगे । सुनसान जगा , हड़बड़ागे जम्मो झिन , सुकुरदुम होगे । कुछू समझतिस तेकर आगू , चारो मुड़ा ले कोलिहा के निही , बल्कि मनखे के भाखा सुनई दे लागिस । कन्हो ड्राइबर या मैनेजर ल पूछतिन तेकर पहिली समझगे , डाकू मन छेंके रहय । बस ले उतार दिन जम्मो झिन ल , बस म चढ़के तलासी ले डरिन । मोबाइल , पइसा , ए टी एम कहींच नइ बाँचिस । गहना गुठा तको उतरवा लिन । पूरा लुटागे । सुसवाये धीरे धीरे बस म चघत हे फेर । लोग लइका के हियाव करत , अपन अपन सीट म बइठगे । जइसे तइसे बस रेंगे लागिस । पोहाये के अगोरा म रथिया बीतत नइ रहय । दू पहर बाँचे रथिया , जुग ले बड़का होगिस । बैजनाथ बाबा के दर्शन करबो , भात बासी खाबो अऊ निकलबो – इही योजना बाँचे रहय । कोन जनी कइसे पूरा होही । तभे मालिक बतइस के सिर्फ एक टेम के रासन बांचे हे , अभू काये करना हे बतावव । बिहारी बाबू श्रीवास्तव जी केहे लागिस – इहीच तिर हमर भाई के घर हे , चलो उंहे जाबोन , खाये पिये अऊ आघू जाये बर पइसा कौड़ी के बेवस्था हो जही । मई पिल्ला खुस होगिन । सिर्फ छत्तीसगढ़िया थोरेन बढ़िया होथे जी ‌- श्रीवास्तव के व्यंग्य बान रमेसर कोती चलगे । रमेसर हरेक दारी मन ला मार के रहि जाये , कहींच जवाब नइ देवय । रमेसर के दई पोलखा म लुका के धरे पइसा ल हेरत , श्रीवास्तव बाबू ला देवत किहिस – तुंहर भई घर जाबोन त , दुच्छा थोरिन जाबो , ये पइसा के खई खजाना बिसा डरव , सगा जाबे त लइका मन झोला ला निहारथे  । पइसा धरके , श्रीवास्तव उतरगे , ओकर संग कतको झिन उतर गिन पानी पिये बर । खई लेवत उदुपले भेंट होगे इंकर भई संग । सबो गोठ घला होगे इहीच तिर । अपन घर लेगही कहिके , खई ल घला दे डरिस , फेर वोहा एक्को घाँव अपन घर जाये बर नइ किहिस , खई ल धरिस  , अऊ जरूरी बूता म जाना हे – कहिके , टरक दिस । चुचुवागे सबो । 

               भगवान परीक्षा लेवत हे बेटा , तूमन फिकर झिन करव , बैजनाथ बाबा के दर्शन करबो , उही हमर वापसी ल सरल बनाही ‌- रमेसर के ददा के अइसन गोठ कन्हो ल नइ सुहावत रहय । एक झिन कहत रहय - पइसा कौड़ी कहींच निये , खाये पीये बर रासन निये , लइका मन तरस जही , तोला काहे डोकरा ....... याहा उम्मर म घूमे के उसरथे । सियान किथे - तूमन चलव तो , भगवान सब पूरा करही । बस के मैनेजर घला उनिस न गुनिस , सियान के बात मान के चल दिस । बाबा के दर्शन होगे । एक टेम के बाँचे रासन ले कलर कलर करत पेट कहाँ भरही । काकरो पेट नइ भरिस । झारखंड नहाके के समे डीजल सिरागे । अभू अऊ बड़े समस्या ...... । मुड़ धरके बइठगे । मैनेजर बतावत हे - पेट्रोल पँप तिरेच म हाबे बबा , फेर का काम के ? पइसा निये एको कनिक । सियान ला बखाने लागिन कतको झिन मई लोगन मन .. । तोरे सेती वो पार गेन , वोती नइ जातेन त , कइसनो करके छत्तीसगढ पहुँच जतेन । अभू का करे जाये ........ । मुड़ी खजवात सोंचत , पेट्रोल पँप के मालिक करा गोठियाये अऊ किलौली करे बर चल दिन । नान - नान नोनी बाबू के रोवई गवई ल बताबो तंहले , पँप मालिक पसीज जही अऊ जरूर हमर मदद करही । पँप मालिक किथे - तुंहर कस कतको झिन तीरथ यात्री मन रोजेच आवत - जावत रिथे , मेंहा खैरात म बाँटे धर लुंहूँ , त धंधा कइसे करहूं । कहींच किलौली काम नइ अइस । पंप मालिक किथे - तुंहर करा सोन चांदी होही तिही ल दे दव । राव बतइस - कहां ले देबो बाबू , सब ल लूटके लेगे हे डाकू मन । रमेसर के छोटे बेटा अपन बबा संग पाछू पाछू पेट्रोल पँप म पहुंचे रहय । पेट्रोल पँप मालिक के गोठ सुनके , नानुक लइका अपन गला ले सोन के चैन उतारिस अऊ अपन दादू ल देवत डीजल भराये बर केहे लागिस । डीजल भरागे , फेर ये चैन कइसे बांचिस सोंचत रहय , तभे दादू ला सुरता अइस , डाका के बेरा लइका , बस म सुते रिहिस , अऊ डाकू मन , सुते लइका के गला के खाना तलासी नइ करिन होही ।  

               गाड़ी म डीजल भरागे । तब तक मनखे के पेट म मुसवा हमागे । भूख के मारे हाल बेहाल हे । पोट पोट करत हे । रमेसर के दई , अपन मोटरी ल डर्रा - डर्रा के हेरिस । दस बारा दिन पहिली , कतको झिन ल खवाये बर , दे के प्रयास करे रिहिस , तब कोन्हो नइ खइन अऊ नाक मुंहूँ ल एती वोती करिन । एक झिन मई लोगिन खिसियात केहे रिहिस – अतेक मइलहा फरिया म लपेट के धरे हस , कोन खाही ऐला । टीपा म आने आने फरिया म ठेठरी , खुरमी , कटवा , खाजा , बिड़िया रोटी ल लपेट के धरे रहय । दई के उही खई अभू अतेक मिठावत रहय ..... झिन पूछ । पेट भरगे , जी जुड़ागे । गाड़ी निर्बाध चले लगिस । रोटी नइ चलिस । फेर हमागे भूख बैरी हा । 

               छत्तीसगढ़ के सीमा लकठियाये लागिस । पेट के मुसवा के पदोना अऊ बाढ़गे । झारखंड पार करत अऊ कतको गाँव गँवई परिस । फेर काकरो हिम्मत नइ होइस , सहायता मांगे के । तभे , बड़े जिनीस बोर्ड दिखिस – छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । रमेसर के ददा हा , ड्राइबर के बाजू म आके बइठगे , अऊ ड्राइबर ला केहे लागिस – पहिली जे गाँव परही , तिहींचे ठाड़ करबे , कुछु न कुछु वेवस्था करबो । हाँसिन कुछ मन , गजब वेवस्था कर डरही तइसे गोठियाथे डोकरा हा । रसता भर अतेक प्यार अऊ सहयोग करे के पाछू घला , कतको झिन रमेसर के परिवार ल नइ समझ पइन । दम ले पहुंचगे एक ठिन नानुक गाँव । सियान किथे - रोक ... रोक .... इही करा । इंहीचे बेवस्था होही । अऊ यात्री मन सोंचत रहय - नान नान झोपड़ पट्टी के बने घर कुरिया म रहवइया मनखे मन , काये मदद करही । खुदे मरत होही खाये पीये बर , हमन ल काला दिही – कानाफूसी गोठियाथे लोगन मन ।

               बर रूख करा छाँव देख , बस ल ठाढ़ करिस । बर रूख के तरी म , ग्राम सभा के बईसका सकलाये रहय । बस ल ठाढ़ होवत देखिस त उहू मन अपन अपन जगा म ठाढ़ होगिन । मनखे मन ल , बस ले उतर के अपन कोती आवत देखिस , त उहू मन बस कोती अइन । कुछ यात्री मन के मन म डर हमागे , जतका बाँचे हे तहू झिन लुटा जाये कहिके । जइसे तिर म गिन , गाँव वाला मन हाथ जोर के जोहारिन जम्मो झिन ल । रमेसर के बाबू के उमर देख के पाँव घला परिन । पानी पियइन , लिमऊ के शर्बत घोर डरिन । गोठियात बतात जइसे पता चलिस के , एमन तीरथ बरथ करके आवत हें – मई लोगिन मन घला जुरियागे , चरन पखारत अपन भाग ल सँहराये लागिन । तिर के स्कूल म माई मन के नहाये बर पानी के बेवस्था कर डारिन । पुरूष मन तरिया म नहा डरिन । इँकर नहा धो के तियार होवत ले , बर तरी , दार – भात - साग सब चुरगे । मसूर संग सेमी भांटा अऊ आमा के खुला , डुबकी कढ़ही , उरिद के दार लसून धनिया संग , रसहा चेंच भाजी अदौरी बरी मिंझरा , माड़ी भर झोर में मुनगा - रखिया बरी .... काला खाये काला बचाये तइसे होगे । ररूहा सपनाए दार भात – कस स्थिति होगे । पेट के फूटत ले कसके झेलिन । अऊ ले लौ ..... एक कनिक अऊ ले लौ ...... थोर कुन मोर कोती ले ....... कहिके अतेक प्रेम से आग्रह करके खवइन पियइन के , यात्रा के जम्मो दुख कोन जनी कते करा हरागे , पता नइ चलिस । इँकर भात ह एक कोती पेट ल छकाबोर करिस , त दूसर कोती प्रेम – मया हा , इँकर हिरदे ल सराबोर कर दिस ।   

                    भात खाये के पाछू जानिन के , रमेसर के बड़े बाबू निये । खोजा खोज माचगे । तभे लइका आमा चुचरत आवत दिखिस । पोटार के रो डरिस मंजू हा । लइका किथे - मां , अब्बड़ भूख लागत हे । गाँव के एक झन डोकरी दाई खाये बर पछवाये रहय , ओकरे बाँटा के आधा ल दिस , तइसने म एक झिन मंगइया , घोसरत घोसरत भूख म बिलबिलावत पहुँचगे तिर म । डोकरी दाई शुरू कर डरे रहय । लइका हाथ गोड़ धो के जइसे बइठिस , देख पारिस मंगइया के करलई ला .. । तुरते किथे - मोला भूख नइये मां .... मेंहा बगीच्चा म बड़ अकन आमा चुचरे हँव । अपन भात साग ला मंगइया ल देवा दिस । यात्री मन के आँखी ले आँसू धार बनके निथरे लागिस । रमेसर के परिवार के त्याग , सेवा समर्पण अऊ तपस्या के कायल होगिन जम्मो झिन । मुड़ी ल गड़ियाये , अपन करनी के पश्चाताप करत सुबकत रिहिन । रमेसर के पूरा परिवार के प्रति कृतज्ञता के भाव रहि रहि के हिलोर मारे लागिस । ठाकरे के मन के बात जुबान तक पहुंचगे । केहे लागिस – हमन रद्दा भर तुंहर हाँसी उड़ाएन , तूमन ल परेशान करेन । अपन प्रदेश के बड़ तारीफ करेन , फेर असलियत इही आय , जेला सबो देखेन , अऊ अभू देखत हन । इहां के मान सम्मान आदर सत्कार ल जिनगी भर नइ भुला सकन । गाँव के गरीब मनखे मन जेन आत्मीयता ले हमर स्वागत करिन , तेला मरत ले नइ भुलावन । वाजिम म छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया आय । फकत नारा नोहे , सचाई इही आय । समर्थन म थपड़ी पीटे लागिन बाकी यात्री मन । सरपंच खड़ा होके केहे लागिस – हमर फर्ज आय भइया , सगा के सेवा करना । फेर तूमन तो तीरथ बरथ ले घला आवत हव । तुँहर चरन धोके हमूमन तरगेन । बल्कि तुंहर स्वागत म कोन्हो गलती होगिस होही ते ... हमन ल क्षमा करहू ।    

                    बर रूख के छाँव म थोकिन आराम के पाछू बिदाई के समे आगे । यात्री मन बड़ भावुक रिहिन । लाल चहा अगोरत , गोठ बात चलत रहय । गाँव के सरपंच , रमेसर के बाबू ल अपन सम्बोधन म , ममा कहत रहय । एक झिन ला भ्रम होगे के , येहा सहीच म एकर भांचा आये का ? रेहे नइ गिस , पूछ पारिस । सियान किथे – मोर भांचा नोहे बेटा , फेर येहा हमर छत्तीसगढ़ राज के रिवाज आय , दुनिया के हरेक मानुस संग अपन रिश्तेदारी बना डरथन । ये बाबू ला , न कभू देखे हँव , न जानत हंव । अऊ यहू मोला कभू नइ देखे या जानत हे । फेर मनखे यहू आय अऊ मनखे महू आँव , इही ल दूनो झिन जानत अऊ देखत हाबन । सरपंच बीच म बोलत , बताये लागिस – ये फकत हमर प्रदेश के संस्कार नोहे ममा । में हा बतावथौं आप मन ल , आप मन बर पानी डोहरइया तेलगू आय , लिमऊ के सरबत घोरत रिहिस ते कन्नड़ आय । तुँहर चरन पखरइया कतको झिन महतारी मन उड़ीसा , झारखंड अऊ उत्तरप्रदेश बिहार के रहवइया आय । तुँहर बर साग भात रंधइया मराठी आय । तुँहर जूठा उठइया , बरतन मंजइया घला इहां के मूल निवासी मनखे नोहे । फेर ईँकर संस्कार अतका सुंदर हे के , एमन ल अतिथि के सेवा करे बर , कन्हो काम म लाज बिज निये । सियान किथे - हां भांचा , तैं सिरतोन कहत हस । मोर जम्मो संगवारी मन घला , बहुतेच संस्कारी प्रदेश के निवासी आय । यात्रा के बेरा म जेन गलती होइस या जेन बुरा बात होइस , ओमे वो प्रदेश के संस्कार के कन्हो दोष निये । उड़ीसा म लुटइया पंडा उड़िया होइच नइ सकय । तूफान म हमन ल अपन ठऊर म रूकन नइ देवइया हो सकत हे हमरे हितवा तेलगू भाइ होही । ओहा हमन ल सावधान करिस होही । बंगलोर म अपन गलती के सजा पाये हन हमन । बम्बई म हमर लापरवाही आय , कन्हो लूटे बर नइ आये रिहिस हमन ल । बिहार – उत्तरप्रदेश के सीमा म लुटइया मनखे उहां के नोहे , ओमन बाहिर के आये जेमन ओ प्रदेश ल बदनाम करके राखे हे । वाजिम म देखे जाये , त उन प्रदेश हा , हमर प्रदेश ले कतको अगुवा अऊ बेहतर घला हे । फेर असमाजिक मनखे मन के जमावड़ा उन ला बदनाम करे हे । येहा हिंदुस्थान के माटी आय भांचा – जिंहा प्रेम , भाईचारा अऊ सौहार्द - नदिया कस बोहावत हे , जेन ल जतका मन ततका झोंक लौ । हाँ एक बात जरूर कहूँ के मोर छत्तीसगढ़ म रहवइया संगवारी मन , अभू जेन सेवा करिन , ओकर बर मय कृतज्ञ हंव । येहा कन्हो एहसान थोरेन आय ममा , हमर परम्परा अऊ फर्ज आय – सरपंच जवाब दिस । 

               चहा चुँहक डरिन । जाये के समे होगे । फेर काकरो गोड़ नइ उचत रहय । इँहींचे बस जतिस तइसे लागत रहय जम्मो ला । गाँव के मई लोगिन मन , माथ म तिलक लगा के , नरियर अऊ द्रव्य दक्षिणा घला भेंट करिन । बस में बइठे अऊ सीट पोगराये के होड़ परागे । अभू नावा होड़ माचगे – रमेसर अऊ ओकर परिवार के तिर बइठे के । रमेसर के दाई ददा मन , डोकरी डोकरा ले कका – काकी होगे । जम्मो मनखे , अपन करनी बर , माफी मांग मांग के अपन पाप धोवत रहंय । अभू घला चर्चा चलत रहय ... छत्तीसगढ़िया के ... फेर चर्चा के स्वरूप बदलगे । कन्हो कहत हे – वाजिम म इहाँ के मनखे बढ़िया होथें , एमन केवल अपन प्रदेश के निही , जम्मो देश के बात करथें । कन्हो कहत रहय – इहाँ के मनखे भारत ला , छत्तीसगढ़ अऊ छत्तीसगढ़ ल भारत समझथें , अऊ कन्हो भी गिरे परे अटके भटके ल अँगिया लेथें , तभे कन्हो प्रदेश के मनखे , इहां आसानी ले घुल मिल जथें । अभू बोर्ड , सड़क ले जादा इंकर दिल म जगजगाये लागिस - सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया । 

   हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा

कहानी-ढेखरा

 ढेखरा

                    धमतरी जिला म मगरलोड नाव के कसबा तिर धौंराभाँठा नाव के नानुक गाँव रहय जिंहा रामाधीन नाव के मनखे रहय । ओकर सुवारी परबतिया हा धमतरी ले आये रहय तेकर सेती रामाधीन ला गाँव के मन धमतरिहा कहय । धमतरिहा हा हटर हटर खेती किसानी के बुता करय तब ले दे के बछर भर खाये पिये के पुरतन फसल हो पाये । फेर रात दिन के अकाल दुकाल म कोठी डोली हा जुच्छा के जुच्छा हो जाय । दूसर कोति परिवार घला बाढ़हत रहय .. । पेट के संख्या अऊ आकार दुनों के बढ़होत्तरी म उधारी बाढ़ही के नौबत आये लगिस । धमतरिहा हा बईगा कस रहय .. धीरे धीरे बइदई बुता घला सीखगे रहय । पेट चलाये बर किसानी संग गाँव गाँव किंजर किंजरके बइदई अऊ बइगई दुनों बुता म महारत हासिल कर डरे रहय । थोकिन पढ़े लिखे रहय तेकर सेती पुस्तक संग घला मितानी रहय । ज्ञानिक धमतरिहा हा अपन लोग लइका मनला घला गाँव ले धुरिहा स्कूल म पढ़े भर घला भेजय । राम रमायन नाटक लिल्ला म अव्वल रहय तेकर सेती चारों खुँट म रामाधीन के नाव बगरे रहय । सब कुछ भगवान के दया ले बने बने चलत रहय .. तइसने म एक ठिन दुख के बड़ोरा अइस अऊ ओकरे उपर खपलागे । ओकर सुवारी परबतिया हा नवजात बाबू ला जनम देवत पुट ले आँखी ला मुँद दिस । धमतरिहा के न तो बइदई काम अइस न बइगई .. । धमतरिहा हा टूटगे । चार झन बड़े लइका के जतन के ओतेक फिकर नइ रिहिस जतका फिकर दुधपिया बाबू के रिहिस । बपरा हा घर बाहिर परिवार सम्हालत सम्हालत जवानी म बुढ़ा गिस । ओला कुछ बछर म बुढ़ापा के रोग रई धर लिस .. खुद बइद रिहिस जरूर फेर अब सरी बइगई अऊ बइदई बुता ला अतेक बड़ परिवार के जुम्मेवारी उचावत उचावत भुला चुके रिहिस । परिवार ला सम्हाले बर ओकर भाई बंधु मन दूसर बिहाव करे के सलाह दिन फेर धमतरिहा हा ओला नइ मानिस अऊ जिनगी भर साधु जीवन जिये के सनकलप ले लिस । ईमारी बीमारी के सेती बहुत जल्द रामाधीन हा काम बुता बर अशक्त होगे तब घर के सरी जुम्मेवारी हा बड़े बेटा कातिकराम के खांध म आगे । तब तक कातिकराम हा पंद्ररा बछर के हो चुके रिहिस । जम्मो लइकामन के स्कूल छूटगे ।  

                    कातिकराम हा निचट मनचलहा रिहिस । दिन भर एती वोती संगवारी मन संग स्कूल जाये के बहाना लठंग लठंग किंदरना ओकर दिनचर्या रिहिस । उदुपले ओकर खांध म घर के जुम्मेवारी खपलागे । ओकर सरी बुध पतरागे । का करे का नइ करय .. समझ नइ आवत रहय । घर म चीज बस रहय निही । कमाना धमाना मजबूरी रहय । रोज कमाये धमाये के नाव म बिहिनिया ले घर ले रापा कुदारी धरके निकलय .. दिन भर गाँव के बाहिर तरिया खालहे के आमा बगीच्चा म संगवारी मन संग ताश खेलय । बेरा ढरके ले वापिस लहुँट के सुक्खा हाथ झर्रावत इही कहय के आज काम बुता नइ मिलिस । धमतरिहा ला रोज रोज के इही बहाना म अपन बेटा उपर शक होगे .. ओहा अपन ईमारी बीमारी ले उबर नइ सकत रहय तेकर सेती कुछ कहि नइ सकत रहय । एती घर मा  दार चऊँर सिरावत रहय । एक टेम चुरय एक बेर लांघन ..... घर के नावा मुखिया कातिकराम के मन म उथल पुथल माते रहय । ओहा परिवार के जुम्मेवारी उचाये बर अपन आप ला खपाना नइ चाहत रहय । अपन जुम्मेवारी छोंड़के घर ले भाग जाये के मन बनावत रहय । फेर नान नान भाई बहिनी मनला भूख म कलपत देख ओकर मन हा भागे बर गवाही नइ दे । कभू मर जाँव तइसे सोंचय । रात रात भर सुत नइ सकय । कातिकराम का करथे तेहा धमतरिहा ला पता लगगे रहय । दसना म सुते सुते हफरत धमतरिहा हा ... कातिक राम ला एक दिन बड़ खिसियइस ... अतेक बड़ ढेखरा कस बाढ़गे हस । कहीं काम के न धाम के । बइठे बइठे तरिया के पानी नइ पुरय , घर के जमा पूंजी हा कतेक दिन पुरही ......... । खेत खार बेंच के कतेक दिन ले खाबो । कहूँ काम बूता करते तब घर म दू पइसा आतिस तब घर के रंधनी म कुहरा गुंगुंवातिस । नान नान भाई बहिनी मन भूख म मर जही तब तोला बने लागही ...... ? कमाये के नाव म जाके तरिया खाल्हे के आमा बगीच्चा म बइठ के ताश खेलथस .. गांजा बिड़ी पियत बइठे रहिथस .. एकर ओकर बर माखुर रमंजथस .. तोला बने लागथे रे .. । हमन भूख पियास म मरीच जबो तभे तोर सुसी बुताही । कातिकराम के मन तो कहूँ अऊ रहय .. ओला ददा के बात ले कोई फरक नइ परिस .. । ओहा जुम्मेवारी के बोझा तरी अपन ददा कस मरना घिलरना नइ चाहय । 

                    कुछ दिन म .. घर म बांचे खोंचे दार चऊँर कोदो कनकी जम्मो सिरागे । एक दिन अइसे अइस जब ... न मंझनिया हाँड़ी चइघिस न रथिया । जम्मो झिन फकत पानी पीके सुतिन । रथिया पहाड़ होगे । कातिकराम हा घर ले भागे के तै कर डरिस । रात भर नइ सुतिस । एती भूख के मारे नान नान भाई बहिनी मन कलकलागे रहय । दु बछर के नानुक भाई हा भूख के मारे रात भर कलपिस । अतका देखके घला .. ओकर मन नइ पसीजिस .. बिहिनिया बिहिनिया जम्मो झिन ला सुते दसना म छोंड़ कातिकराम हा बखरी के रसता ले भागे लगिस । भागत भागत रसदा म माढ़हे पथना म हपटगे । मनमाने अकन नार बियार बखरी भर बगरे रहय । नार बियार म हांथ गोड़ फँसगे । नार बियार हा नइ छेंकतिस त आगू म माढ़हे बढ़का पथना म मुड़ी फूट जतिस अऊ अतका जोर ले लागतिस के बाँचतिस घला निही । तिर म गड़े ढेखरा ला बाँहां भर पोटारके .. दहाड़ मारके रोय लगिस । जुम्मेवारी ले भागे के सजा देवत रेहे का भगवान ..... चिंतन सुरू होगे । तैं अतेक बड़ ढेखरा कस बाढ़गे हस कहींच कमावस धमावस निही .......... ददा के बात हा मन ला रहि रहिके उदवेलित करे लगिस । नान नान भाई बहिनी के आँसू हा कातिक राम के हिरदे म सूल कस गड़े लगिस । दिशा परिवरतन होय लगिस । नार बियार मन ढेखरा म चइघके कइसन फरत फूलत अपन मंजिल पावत रहय तेला धियान लगाके देखे लगिस कातिक हा । तैं मोला ढेखरा केहे न ददा ....... सहींच म तोला ढेखरा बनके देखा देहूँ ताकि मोर संग रहवइया मन अपन अपन मंजिल तक पहुँचके खूब फरय फूलय ......... मने मन ढेखरा बने के सनकलप ले डरिस ।

                    नान नान भाई बहिनी के मुहुँ म चारा डारे बर काकरो तिर माँगे बर हाथ नि लमइस ..  मंडल घर बिहिनिया ले रकस रकस कमाके .. दु पैली चऊँर ले आनिस । कातिकराम के छोटे बहिनी हा चौदा बछर के होगे रहय । ओकरे हाँथ म घर के हाँड़ी रहय । अपन मुहुँ म बिगन पसिया डारे .. रापा अऊ गैंती धर मंडल के खेत म मंझनी मंझना कमाये बर निकलगे । ये खेत ले वो खेत .. दिन बुड़त ले गोदी खनिस । पहिली दिन के खाये नइ रहय । गोदी के खनत ले केऊ बेर चक्कर अइस । हांथ भर फोरा परगे । दरद पिरा के मारे गैंती ला फटिक दे के मन होत रहय .. फेर भूख म कुलबुलावत नान नान भाई बहिनी के चेहरा हा नजर भर झूलगे । हाँथ म परे फोरा ले पानी चुचुवाये बर धर लिस फेर गैंती हा तब रूकिस जब डेचकी के पानी पियत पियत उरकगे । एती घर म हाँड़ी चुरिस जरूर .. फेर कमइया के घर बिगन ..  काकरो मुहुँ म जेवन नइ गिस । सांझकुन अइस तब पता लगिस के ओकर बिगन घर म कोन्हो नइ खाये हे ... मई पिल्ला एक दूसर ला पोटारके एक परत के रो डरिन । ताते तात भात चुरिस । थारी म पोरसागे । फेर हाँथ भर फोरा परे रहय । कइसे भात खवाय । भात म माड़ी भर पानी रुको लिस अऊ नून मिंझारके गटर गटर पी डरिस । हांथ ला कन्हो ला देखा नइ सकिस । अब इही दिनचर्या बनगे । जे दिन दूसर घर बुता नइ मिलय ते दिन अपन बाँचे खोंचे खेत ला सुधारे बर भिड़ जाय । फेर एको कनिक एको दिन सुरताये के नइ सोंचय । दिन भर खेत बाहिर म कमावय अऊ अधरतिया होवत ले घर म माढ़े माँगा मँगठा म लग जावय । घर के जम्मो मुहुँ ला दुनों बेर चारा मिले लगिस । चौंथी पास कातिकराम ला जिनगी के बहुत समझ आ चुके रहय । ओहा अपन भाई बहिनी मनला ... गाँव तिर के स्कूल म फेर भर्ती करा दिस । ओकर मेहनत के आगू म गरीबी हारे लगिस । सच म मेहनत म समे के चक्र बदले के बहुत ताकत हे । भाई बहिनी मनला खड़ा करे बर मेहनती कातिकराम हा ढेखरा बनगे । घर के कन्हो मनखे ला कोनो बुता करन नइ दिस । भाई बहिनी मन पढ़हे लगिन । बने सगा देख सग्यान होवत बहिनी के बिहाव कर दिस ... संगे संग ददा के इच्छा अऊ आज्ञा ले .. कातिकराम के बिहाव घला होगे । बहुरिया के संग घर म लछमी खुसरगे । कातिकराम के किसमत बदले लगिस । चौंथी पढ़हे कातिकराम हा बिगन ट्रेनिंग .. मास्टर बनगे । रापा कुदारी के जगा हाथ म चाक आगे । कातिकराम के सेवा म ददा बाँचगे । मंझला भाई घला पढ़ लिख के तियार होके मास्टरी के नौकरी पागे । घर सम्हले लगिस तइसने म ददा हा .. उदुपले आंखी मूंद दिस । कातिकराम के मजबूत खांध हालगे । फेर ओहा अपन सनकलप ले भागिस निही । छोटे भाई ला घला एक दिन खड़ा करके दुनिया ला देखा दिस । कातिकराम के अनुसासन सीख मया अऊ दुलार म भाई बहिनी मन ओकर गोड़ पीठ पेट म फलंगके चढ़के बिगन बिघन बाधा के छतराये फरे फूले लगिन । कातिकराम हा अपन चाहतिस तो खुदे बहुत आगू बढ़ सकत रिहीस .. फेर फकत ढेखरा बने के सनकलप म अपन भाई बहिनी ला ऊँकर मंजिल तक पहुँचाके दम लिस ।

                    भाई मन नौकरी चाकरी के चक्कर म दूसर दूसर जगा बस गिन । फेर कातिकराम हा उही जगा म ढेखरा कस गड़े रहय । अब ओकर बेटी बेटा मन .. नावा नावा नार ब्यार बनके सनसनऊँवा बाढ़े लगिस ।  अब बेटा बेटी मन बर ढेखरा बनगे कातिकराम हा ....... । येमन ला बढ़हाये बर अपन जान लगा दिस । अतेक सार सम्भाल करत ले बाँचे खोंचे सरी खेत खार बेंचा चुके रिहिस । मास्टरी के तनखा कतेक पुरय । जाँगर के चलत ले ... कभू हांथ नइ लमइस फेर जब अपन नोनी बाबू ला फरे फूले छतराये के आवसकता परिस .. तब लजइस निही । गुरूजी ला देखत हस गा ... माँगत फिरत हे .. अइसन कहवइया के कमी नइ रिहिस .. तभो काकरो परवाह नइ करिस । बेटा मनके कालेज के फीस भरे बर गाँव के मंडल तिर अपन मान ला गिरवी रख के उधारी ले आने । बेटा मन काये करत हे अऊ काये कर सकत हे तेकर पूरा ध्यान देवत अपन सरी देंहे अऊ समे ला खपा दिस । उहू दिन आगे जब बेटा मन कातिकराम कस हरियर धरती के फरियर पानी निरोगिल हवा अऊ घाम पीके .. बाढ़त मोटावत कनसावत अपन अपन जिनगी ला सफल करत ढेखरा छोंड़ परवा के साध म लगगे । 

                    जिनगी के गाड़ी बने दू कदम रेंगे पाये निही के फेर कन्हो मुसीबत ठड़ा हो जाये । ये पइत चालीस बछर के उमर म बड़े बहिनी ला ओकर गोसईंया हा घर बइठे बर मजबूर कर दिस । तैं ससुराल म दुख पावत झिन रहा नोनी अइसन घर म .. कहत बहिनी ला अपन घर म बिरोध के बावजूद सरन दे दिस । जम्मो के सहारा ढेखरा आय न ओहा । दुब्बर होइस त का होइस । फेर अब्बड़ चेम्मर ........ बिगन कांटा के देंहे पाये .. ढेखरा कातिकराम हा बहिनी फिरन ला .. अपन बाँचे खोंचे संसा तक राखे के भरोसा दे दिस । असमय म छोटे बहिनी के बैधव्य के सहारा बनके ओकर बिपदा म सिनसिनहा रेहे ले बंचा लिस । बेटा मन उड़ानुक हो चुके रिहिस । भाई मन कस .. वहू मन बाहिर चल दिन । अब उनला कातिकराम रूपी ढेखरा के सहारा के कोई आवसकता नइ रिहिस । बेटा मन अपन अपन परिवार धरके शहर म बस गिन । कातिकराम हा सरकारी नौकरी ले रिटायर होगिस अऊ अभू घला अपन बई अऊ बइठे बहिनी संग गाँव के टुटहा फुटहा घर म रेहे बर मजबूर हे । बेटा मन ओला अपन तिर म रेहे बर बलावय जरूर फेर ओकर संग न बात करे के फुरसत न बइठे के । कातिकराम घला अपन बेटा मन तिर रहि के ओमन ला ढेखरा बनके सहारा देना चाहय .. फेर ओकर सहारा ला बेटा मन काये करही .. । ओमन अपन गोड़ म खुदे तान के खड़े रहय । घर म बइठे बहिनी हा .. आजो नार बियार कस ओकर छाती ला लपेट के अपन पोसन अऊ संरक्षण बर कातिकराम कोति निहारत रहय । एक दिन वहू छोंड़ दिस । अब कातिकराम हा केवल नाव के ढेखरा रहिगे ।        

                    जेकर भाग म दुख संघर्स अऊ पीरा लिखाये रहिथे तेला .. कभू सुख के कल्पना करना चाही .. फेर उम्मीद नइ राखना चाहि । कभू परिवार बर .. कभू समाज बर जिनगी भर ढेखरा के अभिनय निभावत कातिकराम के पोहाती उमर म ओकर सुवारी बिसा बाई ला दुनिया ले बिदा कराके भगवान हा ओकर एक ठिन बाँहा ला टोर दिस । बाँहां टूटगे फेर हिम्मत अऊ भगवान उपर भरोसा नइ टूटिस । जिनगी के गाड़ी एक पहिया म कइसे चल सकत हे ......... ? फेर यहू ला अपन किसमत मान भगवान ला धन्यवाद देवय कातिकराम हा ...... । समय पहाड़ ले जादा भारी हो चुके रिहीस । नार बियार मन ढेखरा छोंड़ चुके रिहीन । अकेलापन हा ओला भितरे भितर खाय लगिस । ढेखरा अभू भी अगोरय के कन्हो आतिस ओकर उपर चइघतिस अऊ अपन मंजिल पातिस । फेर अभू नार बियार ला परवा के सवाद मिल चुके रिहीस । नार बियार ला ढेखरा तिर म ओधे म .. ओकर सुखाये देंहें के महक आय लगिस । जिनगी भर दूसर ला सहारा देवइया हा अतेक बाटुर के बीच नितांत अकेल्ला होगे । एक कनिक प्यार .. मीठ बोली के चार आखर .. संग म रेहे बर दू फुरसत के पल बर तरसगे ओहा । ओला लगे जे तिर गड़े हँव ते तिर ला छोंड़ के जाहूँ त ओकर अस्तित्व खतम हो जहि .. । बेटा मन लेगे के कोशिस करिन फेर कातिकराम हा काकरो संग जाये के बजाय अकेल्ला रहना स्वीकार करिस । ओकर ये सोंचना रिहिस के काकरो तिर बोझा बनके नइ रहना हे .. जिनगी भर ढेखरा रेहे के सनकलप ला मरे के पहरों म काबर टोरँव ? अपन तिर रेहे बर गोठियाये बर .. अपन देंहे म लिपटाये बर .. बेटा नाती मनला पुचकारे बर गाँव म बलाये .. फेर कोन नानुक झोफड़ी म आही ?  

                    कातिक महिना म जनम धरे रहय तेकर सेती ओकर नाव कातिक रहय । नब्बे बछर उमर होवत रहय । बेटा मन ला देवारी तिहार के बहाना ... अपन जनमदिन म बलाये बर सोंचिस । बेटा बहू मन .. मरे के पहरो म .. यहा का जनमदिन कहिके .. एक परत के हाँसिन घला । तुकड़ा तुकड़ा बंट चुके परिवार हा इही बहाना सकला जाये के भीतरे भीतर खुसी म कातिकराम हा जिनगी म पहिली बेर अपन बर उपहार के इच्छा जाहिर करिस । बेटी बेटा मन सोंचिन .. बुढ़हापा सहींच म बचपन के पुनरागमन आय । ओमन ददा बर काये उपहार लेना हे तेकर बिचार मंथन म लगगे । परिवार के हरेक जोड़ी मन आपस म चरचा करत रहय । कन्हो कहय का लेबो सियान बर । ये उमर म ओला का चाही तेमा ......... लइकामन कस मुहुँ फुटकार के मांगत हे ..... । दू जून के रोटी अऊ दू जोड़ी कपड़ा के अलावा ये उमर म दूसर समान ला कायेच करही तेमा ...... ? सोन चांदी के कहीं समान बिसाबो तहू कायेच काम के ....... । तेकर ले उही ला पूछ लेथन के ओला का चाही ..... ? बेटा बहू मन किथे .. लिस्ट बनाके दे देतेव तहन ओमा के एकेक समान अपन अपन हैसियत मुताबिक ले आनतेन ....। कातिकराम किथे .. लिस्ट ला बना डरे हांबव फेर ओला उही दिन देखाहूँ जे दिन तूमन सकलाहू ...... । 

                    जनमदिन के दिन कातिकराम के हांथ म बहुत लम्बा चौंड़ा लिस्ट देख जम्मो दिल धकधकागे । लिस्ट एक ले दूसर हांथ घूमे लगिस । कन्हो पढ़े के हिम्मत नइ करिन । आखिर म कागज ओकर बेटी के हांथ म अइस । ओहा बांचे लगिस ... “ जिनगी भर मेंहा ढेखरा बनके एक जगा खड़े रेहेंव । जे अइस ते मोर देंहें म चइघके अपन मंजिल तक अमर गिस । मेंहा अपन बर आज तक कुछ नइ मांगेंव फेर आज तुँहर से कुछ चाहत हँव ...... । हो सके तो मोर बर कन्हो दुकान ले एक कनिक प्यार बिसा लातेव । मोर खोये सममान ला गिरवी ले छोंड़ा लातेव । मोर बर इज्जत ला कहूँ तिर नपवाके ले लेतेव । बजार म परे फुरसत के एक पल बीन आतेव । “ एक हांथ खो चुके हँव बेटा ...... । मोर गोड़ घला भुँइया के साथ छोंड़त हे । को जनी कोन दिन पटले गिर जहूँ ... ठिकाना निये । मोला मौत से डर नइ लागे । घर म होवत अंधियार से मोला डर होगे हे । मरना तो शास्वत हे । ओला टारे नइ जा सके । जिनगी भर भीड़ म रहिके रंग रंग के नार बियार ला अपन देंहें म चइघाके बढ़हायेंव तेकर सेती .. मोला अकेलापन ले घबराहट होथे बेटा । हो सके तो कन्हो दुकान ले दू जून के साथ जुटा देतेव ........ । मोर देंहें ला एक कन छू देतेव बेटा ....... मोर मन भर जतिस । तुँहर आँखी के एक बूंद मोती म मोर अंग अंग भीज जतिस ....... । मोर संग कुछ देर खड़े हो जतेव .. बिगन दिया बारे मोर जिनगी रोशन हो जतिस । बचपन म पथरा म हपटके मरे ले मोला नार बियार मन बचाये रिहीन । अब तुँही मन नार बियार अव । मोला मालूम हे अब मोर देंहे म चइघके कोनो ला अपन मंजिल नइ मिल सकय .. तभो ले केवल एक बार अऊ मोर सुखाये देंहें म लिपटके .. जनम भर ढेकरा रेहे के मोर परन ला सच साबित कर देतेव ताकि में तुँहर घेरा के बीच अराम से आँखी मूंद सकँव .......... । मोला जनमदिन के इही उपहार दे दव बेटा ............... । 

                    ददा ला जनमदिन म भेंट दे खातिर बेटा बेटी मनके हांथ म धराये साल स्वेटर अऊ काजू किसमिस हा .. हाथेंच म धराये रहिगे । ददा के अइसन इकछा अऊ अइसन आस के कलपना नइ करे रिहीन । लइकामन ला पहिली बेर समझ अइस के .. ददा रूपी ढेख़रा ला भौतिक पोसन निही बलकि मानसिक संरक्षन चाही । नार बियार रूपी हरेक लइका हा ..  ढेखरा रूपी ददा ले लिपटना चाहिस .......... तब तक बहुत देर हो चुके रिहीस । ढेखरा टूटके गिरके बिखरके माटी म मिल चुके रिहीस ........... ।

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन  छुरा .

गाँधी चौरा चन्द्रहास साहू



गाँधी चौरा

                                   चन्द्रहास साहू

                             मो- 8120578897

                             

जब ले जानबा होइस कि मेहाँ अपन पार्टी के युवा प्रकोष्ठ के मुखिया बन गेंव-अहा ह... अब्बड़ उछाह होइस। अतका उछाह तो तीसरइया बेरा मा बारवी पास करेंव तब नइ होइस। सिरतोन मोर मन अब्बड़ गमकत हावय। ये पद के दउड़ मा दसो झन रिहिन। बड़का अधिकारी के बेटा, नेता बैपारी अउ विधायक के टूरा मन घला रिहिन फेर पद मिलिस- मोला। 

                     महुँ पद पाये के पुरती अब्बड़ बुता करे हँव। टोटा के सुखावत ले नारा बोलाये हँव। पार्टी के बैनर पोस्टर बांधे हँव, झंडा ला बुलंद करे बर अब्बड़ पछिना बोहाये हँव.... लहू घला बोहाये हँव। आज युवा प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष...काली मूल पार्टी मा जगा ..परनदिन विधायक.. मंत्री... मुख्यमंत्री अउ बने-बने होगे तब प्रधानमंत्री। अब्बड़ सपना सजत हे मन मा। जब चायवाला हा बड़का खुरसी मा बइठ सकत हे तब मेहाँ काबर नही.....? बन सकत हँव, लोकतंत्र मा सब हो सकथे। मुचकावत ददा ला बतायेंव, मोर पद प्रतिष्ठा ला।

"ददा ! मोला ढ़ाई हजार रुपिया देतो गा। मोर पार्टी वाला मन ला मिठाई बाँटहू।''

ददा भैरा होगे। कोन जन ओखर कान कइसे बने हाबे ते...? पइसा मांगबे तब नइ सुनाये अउ फायदा वाला गोठ करबे तब झटकुन सुना जाथे। अभिन दुसरिया दरी के तब सुनिस।

"येमा का उछाह के गोठ आय बाबू ! नेता गिरी तो सबसे घटिया बुता आवय। बेटा सुनील चपरासी  के बुता करतेस... पनही खिलतेस  तभो उछाह होतिस मोला फेर...?''

ददा ला टोंकत केहेंव।

"तेहाँ काला जानबे। कुँआ के मेचका ..? आजकल नेता मन के जतका मान-गौन हाबे ओतका काखरो नइ हाबे। भुइयाँ के भगवान आवय ये कलजुग मा इही मन।''

"लुहुंग-लुहुंग नेता मन के पाछू-पाछू जाना, जय बोलाना.. कोनो भक्ति नोहे सुनील। चापलूसी आवय...।''

ददा रट्ट ले किहिस।

"तेहाँ तो जीवन भर मोर बिरोध करथस ददा ! ओखरे सेती तो आगू नइ बढ़ सकेंव। गुजरात कमाये ला जाहू केहेंव तब छत्तीसगढ़ ला छोड़ के झन जा कहिके बरजेस। आर्मी मा जाहू केहेंव तब एकलौता हरस केहे। दारू ठेकेदारी मा अब्बड़ पइसा कमाये ला मिलत रिहिस तब जम्मो बुता ला बिगाड़ देस...। तब का करो...?''

ददा संग तारी नइ पटिस कभू, आज घला होगे बातिक-बाता। दुलारत तीन हजार रुपिया दिस दाई हा अउ मेहाँ चल देव बाजार-हाट कोती।

                   सबले आगू मोर बुलेट मा पार्टी के नाव ला चमकायेंव। रेडियम ले यूथ प्रेसिडेंट लिखवायेंव। पाछू कोती नेम प्लेट मा शहीद भगत सिंह के फोटू छपवायेंव। फटफटी दुकान ले हाई-साउंड वाला भोपू लगवायेंव -वीआईपी हॉर्न। मार्केट मा नवा उतरे हाबे भलुक कमजोर दिल वाला मन झझकके मर जाही फेर जियाईया मन जान डारही यूथ प्रेसिडेंट के गाड़ी आय अइसे।

               अब सब जान डारिस। अब्बड़ स्वागत वंदन होइस मोर। बाइक रैली निकलिस, जय बोलाइस.... माला पहिराइस।  पोस्टर बेनर सब लग गे मोर नाव के। घर मा मिलइयाँ-जुलइयाँ के भरमार होगे।

 शहर के बड़का अखबार मा मोर फोटू छपे रिहिस आज। दाई के चेहरा मा गरब रिहिस, मुचकावत रिहिस फेर ददा तो मुरझाये रिहिस।

"देख मोर बेटा सुनील ला ! पेपर मा छपे हे। टीवी मा आथे। कतका नाव कमावत हाबे मोर दुलरवा हा। तोर तो... मास्टर जीवन मा एके पईत फोटू आइस- बइला बरोबर मतदान पेटी ला लाद के चुनाव करवाये बर जावत रेहेस।''

दाई किहिस छाती फुलोवत। ददा रगरागये लागिस तभो ले- मुक्का। कुछु नइ किहिस। ससन भर दाई ला देखिस अउ भगवान खोली कोती चल दिस। 

"बाबू अइसनेच आय मम्मी ! दीदी मन पचर्रा साग रांधही तहुँ ला हाँस- हाँस के गोठियाही,चांट-चांट के खाही, तारीफ करही अउ मोर बर.... कंतरी हो जाथे। मुहूँ उतरे रहिथे। सौहत ब्रम्हदेव ले वरदान मांगे के होही तब न दाई... बाबू ला उछाह होये के वरदान माँगबो। दिन भर हाँसत रही।''

ददा के खिल्ली उड़ाये लागेंव मेहा।

"टार रे तहुँ हा..., मोर तबियत बने नइ लागत हे तोर धरना प्रदर्शन ला निपटा ताहन डॉक्टर करा लेके जाबे मोला, चार दिन होगे काहत...।''

दाई हुकारु दिस अऊ हाँसत अपन कुरिया मा चल दिस।

                 फोन बाजिस। प्रदेश अध्यक्ष के फोन रिहिस।

"हलो ! भइया जी परनाम।''

" देख सुनील ! बाढ़त मँहगाई उप्पर सरकार ला जगाये बर धरना प्रदर्शन करना हे। मंत्री जी के पुतला दहन करना हे। तोर नेतृत्व मा होही गाँधी चौक मा। बढ़िया परफॉर्मेंस करबे। जादा ले जादा मिडिया कवरेज होना चाही भलुक सरकारी संपत्ति ला जतका जादा ले जादा नुकसान हो जावय ओतकी जादा मिडिया कवरेज मिलही..।''

"जी भइया जी ! जिला भर के जम्मो यूथ अउ महिला विंग ला घला संघेरबो अउ सरकार ला जमके घेरबो फेर ..पुलिस के तगड़ा बंदोबस्त रही तब ...?'' 

संसो करत पुछेंव मेहाँ।

"संसो झन कर। पुलिस के बुता ही हरे मारना, नही ते... मार खाना। यूथ मन ला मारही तभो बने हे अउ मार खाही तभो बने हे। चीट घला हमर अउ पट्ट घला हमर। रायपुर अम्बिकापुर कोरबा कवर्धा के घटना ला जानथस। जतका हंगामा ओतकी प्रसिद्धि...। देश भर मा गोठ-बात होवत हे आज ले...। जादा संसो झन कर एसपी ले बात कर लुहु अपनेच आदमी हरे ओहा। अरे हा ...गाँधी जी के मूर्ती ला कुछु नइ होना चाही..। धियान राखबे एक खरोच घला नइ होना हे। आजकल बिचारा गाँधी जी वाला मामला बहुत संवेदनशील होगे हे।''

"जी भइया जी ! परनाम।''

प्रदेश अध्यक्ष भइया जी हा मंतर दे दे रिहिस।

                       गाँव-गाँव ले गाड़ी निकलिस। भर-भर के जवनहा मन आइस अउ गाँधी चौक मा सकेलाये लागिस। मंच साजगे। सफेद कुरता वाला मन अब माइक मा आके संसो करत हे नून-तेल, दार-आटा, पेट्रोल-डीजल के बाढ़े कीमत उप्पर। जवनहा मन के लहू मा उबाल मारत हे तब मोटियारी मन कहाँ पाछू रही...? अवइया-जवइया मन ला आलू गोंदली के माला पहिराके समर्थन मांगत हे। कोनो थारी बजावत हे तब कोनो बेलन धरे हे। अब्बड़ क्रिएटिव हाबे ये पढ़े-लिखे जवनहा मन। मार्केटिंग करे ला बढ़िया जानथे। चौमासा मा हाइवे के गड्डा मा रोपा लगाके बिरोध प्रदर्शन करिस। देश भर मा छा गे,अभिन सड़क मा जेवन बनाथे। पाछू दरी तो एक झन जवनहा हा पेट्रोल डीजल के बाढ़त कीमत के बिरोध करत पेट्रोल मा नहा डारिस। धन हे पुलिस वाला मन बेरा राहत ले अपन कस्टडी मा ले लिस नही ते तमासा देखइया बर काखरो जान तो संडेवा काड़ी आवय... कभू भी बार ले।

              भीड़ बाढ़े लागिस। सादा ओन्हा वाला के भाषण अब बीख उलगत रिहिस।  पुलिस वाला मन घला अपन लौठी ला तेल पीया डारे हे। भीड़ ले मंत्री जी के पुतला ला आनिस जी भर के बखानिस अउ पेट्रोल डार के बारे के उदिम करिस। पुलिस डंडा भांजे लागिस। अब झूमा-झटकी, धर-पकड़, लड़ई-झगरा, गारी-बखाना होये लागिस। पुलिस वाला मन पुतला ला नंगाये अउ यूथ नेता मन लुकाये लागिस। मैदान ले अब सदर मा आगे। दुकान साजे हे-किराना,कपड़ा, लोहा, सोना-चांदी,मेडिकल अस्पताल, बुक डिपो ...।

मंत्री जी के पुतला मा आगी लगगे। अब छीना-झपटी अउ बाढ़गे। कतको झन बाचीस कतको झन रौंदाइस।...अउ अब बरत पुतला अइसे उछलिस कि अस्पताल के मोहाटी मा ठाड़े माईलोगिन के काया मा चिपकगे। गिंगिया डारिस। ....बचाओ ! बचाओ के आरो । पागी-पटका, लुगरा-पाटा बरे लागिस। पुलिस वाला मन बचाइस अउ अस्पताल मा भर्ती करिस। अब जम्मो जवनहा मोटियारी मन जीत के उछाह मनावत हे। मिडिया वाला मन घला मिरचा- मसाला लगाके जनता ला बतावत हे। अउ मेहाँ ..? महुँ बतावत हव।

"हलो, भइया जी परनाम ! भैया जी टीवी मा न्यूज देख लेबे। अब्बड़ कवरेज मिलत हाबे। जम्मो कोती हमर प्रदर्शन के गोठ-बात होवत हे।

"हांव, तोर असन कर्मठ जुझारू अउ माटीपुत्र के जरूरत हे। लगे रहो.. अब्बड़ तरक्की पाबे।''

           भइया जी आसीस दिस अउ फोन कटगे। 

                    तभे मोर  गाल मा काखरो झन्नाटेदार थपरा परिस। आँखी बरगे। गाल लाल होगे। लोर उपटगे।आँखी उघारेंव बाबूजी आगू मा ठाड़े रिहिस। हफरत रिहिस, खिसियावत रिहिस। 

"बेटा ! तोला पहिली मारे रहितेंव ते बने होतिस। समाज बर कलंक तो नइ होतेस। मंत्री जी के पुतला दहन करत मोर गोसाइन ला आगी लगा देस आज। अपन दाई ला मार डारेस। ददा रोवत रिहिस। अउ चीर घर कोती रेंग दिस। मेहाँ अब गाँधी चौरा मा ठाड़े हावव...अकेल्ला। सब चल दिस मोला छोड़के।....थरथराये लागेंव।....बइठ गेंव गाँधी चौरा मा।

                         अब गुने लागेंव जम्मो ला, धरना प्रदर्शन के बहाना हम का करत रेहेंन......?  गांधी जी के मूर्ति के आगू मा का होवत रिहिस...? महामानव गाँधी जी के  आत्मा रोवत होही जम्मो ला देख के। कतका बलिदान दिस। साधु बनके एक धोती पहिरके जिनगी पहाइस। सत्य अहिंसा के पाठ पढ़ाइस अउ हमन......? मोटियारी-जवनहा हो तुही मन भारत के भविस आवव। काखर भभकी मा आके मइलावत हव। जौन डारी मा ठाड़े हव उँही ला कांटहु तब भकरस ले गिर नइ जाहू...? जौन घर मा हाबो तौने ला बारहु तब भूंजा लेसा नइ जाहू तँहु मन.....? भलुक भगतसिंह बरोबर फांसी मा झन झूल, सुभाष चन्द्र बोस बरोबर कोनो सेना टोली झन बना, शहीद वीर नारायणसिंह  बरोबर काखरो गोदाम ला झन लूट...। बस एक बुता कर मोर मयारुक जवनहा मोटियारी हो ! लांघन ला जेवन करा दे, पियासा ला पानी पीया दे, आने के दुख ला अपन मान अउ सरकारी सम्पति ला अपन मान के हिफाजत कर...। 

आनी-बानी के बिचार आवत हे। जइसे गाँधी जी सौहत गोठियावत हे मोर संग। आँखी ले ऑंसू बोहावत हे कभू दाई के दुलार आँखी मा झूलत हे तब कभू ये गाँधी चौरा के गाँधी जी के चेहरा...। 

         अब मन ला धीरज धराके उठेंव संकल्प के साथ। इस्तीफा दुहूँ अपन पार्टी ले। अउ इहीं गाँधी चौरा के चार झन गरीब मन ला दू-दू रोटी दुहूँ। बाल्टी भर पानी पियाहूँ अउ सरकारी संपत्ति ला  अपन मानहूं। तब मोर दाई के आत्मा ला मोक्ष मिलही...। संकल्प आवय जौन कभू नइ टूटे...। 

"दाई !''

आरो करत चीर घर कोती रेंग देव अब ददा के सहारा बने बर।


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com


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पोखनलाल जायसवाल:


 सपना सबो देखथें, सपना देखे म कोनो पइसा-कौड़ी तो लगनच नइ हे। इही सपना के थाँगा ल धरे लोगन जोर आजमाइस करथें। अउ सरग ल छुए के कोशिश करथें। आज दुए ठउर दिखथे, जिहाँ लोगन अपन किस्मत जादा अजमाथें, एक पीएससी के परीक्षा पास कर अधिकारी बने के अउ दूसर राजनीति के घोड़ा म सवार हो टसन दिखाय के। अधिकारी बने अउ राजनीति के भ्रमजाल अतेक लुभावना हे कि नवापीढ़ी फँसत चले जाथे। इही च दूनो म सरग अमरे के चांस बड़ हे। फेर पहलइया बर दिन-रात पढ़े ल लागथे, खाय के फुरसत राहय न अपन हितवा मन ले गोठियाय के बेरा। दूसरइया बर तो बस जी हुजूरी ले काम आगू बढ़त रहिथे। बस.. पार्टी के झंडा थामे के शर्त रहिथे। आजकल दूसरइया ठउर म भीड़ भारी हे, तब ले नाना किसम के पार्टी के चलत अवसर झटकुन मिल जथे। हर्रा लगे न फिटकरी, रंग चोखा के चोखा। नवा पीढ़ी झंडा थामे बड़ आस ले जुड़ जथे। छोटे मोटे पद पाके मगन रहिथे अउ बड़का सपना सँजोये लगथे।

          मनखे के मन बड़ चंचल होथे, एक ठन ठाँव या पड़ाव मिलिस तहान ले पाँव भुइयाँ म नि माढ़े ल धरय। अधरे अधर चले लगथे। हवा म उड़े लगथे।

          राजनीति के बाट चलइया मन ल घर ले जादा पार्टी बर मोह हो जथे। घरवाले मन बर समय नइ राहय अउ पार्टी बर नेता जी के बुलावा आइस समय ए समय रहिथे। कतको ह एक पाँव म खड़े च नजर आथे। जना मना उही ह सिपाही हरे। घर परिवार के बलिदान ले राजनीति के सरग निसैनी चढ़े जा सकत हे। 

           लोकतंत्र के स्वतंत्रता अउ राजनीतिक महत्वाकांक्षा ल लेके चंद्रहास साहू ह 'गाँधी चौरा' शीर्षक ले सुग्घर कहानी गढ़े हे। कहानी म बीच-बीच म व्यंग्य के सुघर समाव हे। राजनीति म एक ल मात देबर दूसर ह का का प्रपंच रच सकथे? कइसे आगू बढ़ सकथे, एकर मनोवैज्ञानिक पहलू कहानी म मिलथे। सत्ता बर राजनीतिक दल कोन हद तक दलदल म उतर सकथे यहू ल कहानीकार बड़़ साफगोई के संग लिखे हे।

             ए कहानी एक सामान्य कार्यकर्ता के राजनीतिक महत्वाकांक्षा के आगू पार्टी बर ओकर समर्पण भाव के प्रकटीकरण करे म सक्षम हे, त अति उत्साह म पार्टी के झंडा धरइया उत्साही युवा मन अपन नकसान कर डारथें, एकर आरो घलव कहानी म हे। अभी तक राजनीति के घोड़ा म सवार सिरिफ गिनती के मनखे ह सरग के ऊँचई म अपन पाँव जमा पाय हे। सरग ल छुए के सबो के सपना सच नइ होवय। सरग के ऊँचई छूना अतका आसान नइ हे, जतका मनखे सोंच लेथे।

            राजनीति विरोध प्रदर्शन के बिगन चमकय नहीं। जनता ल अपन जागत रहे के सबूत दे बर प्रदर्शन जरूरी हे। ए प्रदर्शन के पीछू राजनीतिक मंशा का रहिथे, ए कहानी ए बात के भेद उजागर करथे। अपना काम बनता, भाड़ म जाय जनता।

             प्रदर्शन के आगी आँच म जब अपन घर लेसाथे, त सब नशा एक छिन म उतर जथे। राजनीति कतेक मइलाहा होगे हे यहू विचारे के मौका देवत कहानी म क्रिएटिविटी, कस्टडी, मार्केटिंग जइसे अँग्रेजी शब्द मन के सुघर प्रयोग हे। कहानी के विस्तार अपने तिर तखार के जाने पहचाने युवा पीढ़ी के उत्साह अउ जोश के आरो देथे।

          कहानी अपन शिल्प के संग पाठक ल मिल्की मारन नइ देवय अउ एक साँस म पाठक ले पढ़वाय म सफल हे। कहानी आज के राजनीति के म गाँधीजी के महत्तम ल बताथे, उहें राजनीतिक दल मन ऊपर एक ठन व्यंग्य बाण घलो हे, कि उन मन कति मेर ले कइसन बुता करत हे, एक पइत जरूर विचारैं। अउ इही कहानी के उद्देश्य के केंद्रीकरण आय। राजनीति ल आड़े हाथ लेवत बढ़िया कहानी बर सादर बधाई पठोवत हँव

पोखनलाल जायसवाल जी

           

पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा

नान्हें मुहू बड़े बात: अपन बिचार*

 *नान्हें मुहू बड़े बात: अपन बिचार*


     आज छत्तीसगढ़ के वरिष्ट साहित्यकार श्री दुर्गा प्रसाद पारकर जी के 'घोषणा पत्र 2023 बर सुझाव' पढ़ के बहुते बढ़िया लगिस। जब दूसर राज्य मन मा उहाँ के भाखा बोली मा पढ़ई-लिखई हो सकत हे त हमर छत्तीसगढ़ मा घलो हमर राजभाषा मा पढ़ई-लिखई होना ही चाही। बाकी राज्य मन में प्राथमिक शाला ले अपन भाखा मा पाठ्यक्रम के अनुरूप पढ़ई होवत हे, त कम से कम हमरो राज्य मा प्राथमिक शाला ले तो शुरुआत होवय। अउ होना घलो चाही। हमर राष्ट्रीय शिक्षा नीति तो घलो कहिथे कि लइका मन के घर के भाखा-बोली मा प्राथमिक शिक्षा हा होना चाही।

 

अभी जुलाई महिना में मेंहा 3 दिन ले  SCERT रायपुर में "बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान" के प्रशिक्षण लेहो। जेमा प्रमुख बात रिहिस की लइका मन ला हिंदी पढ़े-लिखे बर अउ गणित के संक्रिया मन के ज्ञान सबले पहली करना जरूरी हे। येमा अब्बड़ जोर के दे केहे गीस कि अपन महतारी भाखा मा लइका मन ला सीखना हे। जेकर के ओमन जल्दी सीखथे। फेर का करबो हमर सबो पाठ्यक्रम हा हिंदी मा आथे। ता घर के भाखा-बोली छत्तीसगढ़ी अउ स्कूल के किताब हिंदी में होय ले लइका मन बर मुसकुल होथे। अभी कम से कम एक किताब तो बिल्कुल छत्तीसगढ़ी मा होना चाही। ओसने आघू कक्षा मन में घलो एकक ठन छत्तीसगढ़ी के किताब होय ले अभी के सबो लइका मन छत्तीसगढ़ी ला पढ़ही अउ अपनाही घलो।


पं. रविशंकर शुक्ल विवि.ये दिशा मा सन 2013 ले सहराय के लाईक काम करे हे। अइसने छत्तीसगढ़ के सबो विश्वविद्यालय में मा स्नातक के एक विषय अउ एम. ए. छत्तीसगढ़ी के पाठ्यक्रम जरुर होना चाही। अउ येला रोजगार ले जोड़ना घलो जरूरी हे। तभे लइका मन जुड़ही। अउ छत्तीसगढ़ महतारी के सेवा, संवर्धन होही।


9 जुलाई 2023 के स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय भिलाई मा दुर्गा प्रसाद पारकर जी द्वारा आयोजित चिन्हारी सम्मान कार्यक्रम मा संसदीय सचिव माननीय विधायक कुँवर निषाद जी ला माननीय मुख्यमंत्री जी के नाव मा ज्ञापन दे गीस। जेमे हमर छत्तीसगढ़ के सबो विवि में एम.ए. छत्तीसगढ़ी शुरू करे के साथ रोजगार ले जोड़े बर उदिम के उद्देश्य रिहिस। मोला लगथे इही ज्ञापन के सेती माननीय मुख्यमंत्री जी हा 23 जुलाई 2023 के छत्तीसगढ़ी बर सरकारी वैकेंसी निकाले के घोषणा करिस होही। येकर सेती दुर्गा प्रसाद पारकर जी ला तो बिल्कुल येकर श्रेय जाही। उँकर छत्तीसगढ़ी बर जुड़ाव देखते बनथे। ओहा तन-मन-धन ले छत्तीसगढ़ी बर लगे हवे।


अब तो पारकर जी के अइसन उदिम ला देखके लगथे कि छत्तीसगढ़, छत्तीगढ़िया अउ छत्तीसगढ़ी बर बांचे बुता ला घलो करे के समे आगे। या अब सबझन मिलके कर देना ही चाही। मेहा अपन पातर बुद्धि ले कहे के पहली आप सबले दस अंगरी ले हाथ जोड़ लेवत हो, कि कहीं गलती मत हो जाय। हम सब मन छत्तीगढ़िया अउ छत्तीसगढ़ी बर जुड़े हन। अउ भाखा ला पोठ करे बर जी-जान ले अपन-अपन ढंग ले सेवा करे के जतन करत हन। मेहा अइसे सोचत रेहेंव कि जब पारकर जी खुदे कार्यक्रम आयोजन करके अपने अगुवाई मा ज्ञापन देके छत्तीसगढ़ी वेकेंसी निकाले के जतन कर डरिस त हमर इही पटल मा तो नान्हें ले लेके सियान तक छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर कलम चलैया अब्बड़ अकन जुड़े हन। सबो मिलके एक दिन हमर उदार हृदय के माननीय मुख्यमंत्री जी ला उँकर निवास मा जाके नहिते कोनो कार्यक्रम मा ज्ञापन देके गोहार करतेन कि छत्तीसगढ़ मा छत्तीसगढ़ी भाखा के पाठ्यक्रम प्राथमिक स्तर ले शुरू करे जाय, कॉलेज के पाठ्यक्रम मा घलो रहय, पाठ्यक्रम रोजगार ले जुड़े रहय अउ राजभाषा आयोग के मुखिया के खाली पद मा घलो कोनो उचित सियान के चयन करके बइठारे जाय। काबर के मुखिया बिना कोनो काम बने ढंग ले नइ हो पाय। मोला अइसे लगथे राजभाषा आयोग के मुखिया तो इही ग्रुप के कोई न कोई सियान ही बन जाही। 


हमर मुख्यमंत्री जी हा छत्तीसगढ़ के संस्कृति, परंपरा ला आघु बढ़ाय बर बहुते सुग्घर काम करत हे। ये दिशा मा अइसने बात ला रखके उँकर धियान मा लाय जा सकथे। कहीं नइ करे ले प्रयास करे मा का हे। येकर ले हमर पहली के छत्तीसगढ़ राज के सपना देखइया पुरखा मन के सपना घलो पूरा हो जहि। येहा बनही ते ऐतिहासिक बुता घलो हो जहि। अउ छत्तीसगढ़ के रतन बेटा माननीय मुख्यमंत्री जी ये बात बर कहीं न कहीं सोचे बर जरूर मजबूर होही।


हेमलाल सहारे

मोहगाँव, छुरिया

राजनांदगाँव

छत्तीसगढ़ म इतवारी तिहार मनाय के परम्परा*


*छत्तीसगढ़ म इतवारी तिहार मनाय के परम्परा* 



*- दुर्गा प्रसाद पारकर* 


                        

छत्तीसगढ़ म महाभारत ल प्रस्तुत करे के सबले बढ़िया तरीका आय पंडवानी। पंडवानी गवइया मन एदे प्रसंग ल मनमोहक ढंग ले सुनाथे-'बोल दव बिन्दा बन बिहारी लाल की जय | पांचो पांडो नाव अउ भेस बदल के बिराट नगर के राजा घर अज्ञात वास काटत रिहिन हे रागी। उहें सहदेव ल सैनिग्वाल के नाव से जानय। जऊन ह बरदी चरावय। एक दिन कौरव दल राजा बिराट के गरुआ ल चोराए बर सुन्ता बांधिन। सैनिग्वाल ह कौरव मन ल गरुआ लेगत देख तो डरिस फेर सक नइ चलिस उंखर ले लड़े के। गरुआ ल रोके खातिर मंत्र पढ़ के धनुष बान बना के ढिल दिस बान ताहन सना नना मोर नना नना कका। बान ह जा के जब गरूआ मन के खुर म लगत गिस रागी। लगते भार जिही मेर के तिही मेर खड़ा होगे। काबर कि बान लगे ले मवेशी मन ल खुरहा बीमारी होगे। गरूआ ल टस के मस नइ होवत देख के, पांडो के बेटा ह दउड़त जावय भइया। राजा ल घटना सुनावन लागे कका। गरुआ के चोरी ल सुन के राजा बिराट तमतमागे। चोर मन के बूता बनाए बर राजा बिराट अपन हिरदे के कुटका उत्तरा कुमार ल पठोथेे। उत्तरा कुमार के रथ हंकइया कोन रिहिस रागी? जानत हस। रागी-नही। ओखर नाव वृहन्ला रिहिस जऊन असली के अर्जुन आय। अर्जुन अपन हिसाब से रथ ल दउंडावन लागे। उत्तरा कुमार ल पता घलो नइ चलिस कि रथ ह कते डाहर जात हे। अर्जुन ह रथ ल जंगल म लेगे जिंहा ओहा गांडिव धनुष ल लुकाए रिहिस हे। अर्जुन ह जब गांडिव धनुष ले धरती म बान मारिस। बान के परते भार पताल गंगा परगट होगे। छरछीर-छरछीर पताल गंगा के पानी ह वृहन्ला ऊपर परत गीस ताहन अर्जुन ह अपन असली रूप म आवत गिस तस-तस गरुआ मन के खुरहा बीमारी ह मिटावत गिस। इसी पाए के छत्तीसगढ़ के किसान सउनाही के दिन अर्जुन के दसो नाव (अर्जुन, पार्थ, विजयी, किरीट, विभत्स, धनंजय, सब्यसांची, श्वेतबाजी, कपिध्वज, शब्द भेद) लिख के गरुआ मन ल खुरा चपका बीमारी मनले बचाए बर बिनती करथे। खुरा बीमारी ह सावन-भादो म जादा होथे। बिमरहा मवेशी के खुर म अंडी, अरसी नही ते मिलवा के तेल ल लगा के इलाज करथे। मान ले अइसन करे ले फुरसुद नइ लागे त बइगा ह कोठा म घी, गुड़, नही ते गंगुल (दसांग) के हुम दे के तिली तेल, अरसी तेल नहीं ते फल्ली तेल के दीया बार के गरुआ के आरती उतार के बने होय बर बिनती करथे। कतको मन अइसनो कथे कि खपरा के गाड़ी, पांच ठन करिया कुकरी अऊ नरियर ल एके संघरा गांव के बाहिर बरोए ले बीमारी के अंत हो जथे। एक बात जरूर हे कि बीमारी ह भभूत अऊ ठुवा-ठामना ले नइ माड़े। फिर भी जन भावना ल एकाएक नइ उधेने जा सकय। मवेशी मन ल सावन-भादो म खुरहा चपका, दांवा धक्का, माता मताही, बघर्रा, एकटंगी, मेंह पाठ के बीमारी झन अभरय कहिके असाढ़ के सिराती शनिच्चर रात के पहाती सउनाही बरो के गांव बनाथे। सउनाही बरोए बर पोंई, कुकरी अंडा, कठवा के गाड़ा, खड़ऊ, लिम्बू, बंदन, एक्कइस ठन धजा (तीन रंग के), एक्कइस ठन नरियर, चार ठन नांगर के नास के जरूरत परथे, करिया रंग के धजा खडऊ अऊ लिम्बू ल काली माई के सनमान म चघाथे। सादा रंग के धजा ल शीतला माता अऊ सत्ती माता के नाव ले देथे। लाली रंग के धजा, बंदन ल महावीर के नाव ले सोपरित करथे। बइगा गांव के देवी-देवता म हूम धूप दे के लिम्बू भारथे अऊ नरियर फोरथे। एखर बाद बइगा अऊ ओखर संगवारी मन तीन सिया जाथे। उहां पूजा-पाठ करके कारी पोंई (कुकरी पीला) के माथ म बंद बुक के ओरियाए सामान के बीचों-बीच बरो देथे। गांव के जतेक अएब हे ओहा कुकरी के संग चले जाय गांव म सउनाही बरोइया मन के गांव म आय के बाद कोतवाल हांका पार के इतील्ला देथे-'पानी कांजी भर सकथव, गोबर कचरा कर सकथव हो....।इतवार के दिन मनखे मन अपन घर के चारो मूड़ा कोठ म गोबर के घेरा बना के बीच-बीच म पुतरा-पुतरी बना के घर के रखवारी करवाथे। ताकि घर म मरी मसान झन झपा सकय। असाढ़ के आखरी इतवार ले सरलग पांच इतवारी ताहन बुधवारी तिहार मनाना जरूरी हे। काम बूता के दिन म इतवारी अऊ बुधवारी तिहार कहां तक उचित हे। मनाना हे त एक इतवार ल जोरदार मना के बाकि इतवारी तिहार ल कुकरी के संग बरोए ल परही ताकि हमर किसानी काम म तिहार ह बाधक झन बन सकय। तभे तो हमन सर्व सम्पन्न छत्तीसगढ़ राज के कल्पना कर सकथन नही ते फूस्का।

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पोल खोल

 पोल खोल 

                    पोल खोल देबो के नारा जगा जगा बुलंद रहय .... फेर पोल खुलत नइ रहय । गाँव के निचट अड़हा मनखे मंगलू अऊ बुधारू आपस म गोठियावत रहय । मंगलू किथे - काये पोल आये जी , जेला रोज रोज , फकत खोल देबो , खोल देबो कहिथे भर बिया मन , फेर खोलय निही । रोज अपन झोला धर के पिछू पिछू किंजरथंव ..... । बुधारू हाँसिस अऊ किहिस – पोल काये तेला तो महू नइ जानव यार , फेर तोर हमर लइक पोल म कहींच निये अइसन सुने हंव । मंगलू किथे – तैं कुछूच नइ जानस यार ....... नानुक पेटारा खुलथे त अतेक अकन समान रहिथे तब , जेकर अतेक हल्ला हे  , जेला खोले बर , अतका अकन मनखे मन जुरियावत हे , ओमा कइसे कहींच नइ होही यार । बुधारू किथे – तैं नइ जानस ..... पोल म न कहीं खाये के समान हे न पिये के , काबर फोकट इँकर मनके पिछू पिछू झोला लटकाये लठंग लठंग किंजरत रहिथस । मंगलू किथे – कहींच नइ होतिस , त पोल खोलइया मन , पोल खोले बर खाली हाथ नइ आतिन जी , वहू मन अपन बर , झोला धरके काबर आथे , फेर को जनी , कती तिर हाबे पोल ...... महू ला समझ नइ आवत हे यार । 

                    दूसर दिन पोल खोले के कार्यक्रम दूसर गाँव म रिहिस । मंगलू झोला धरके कुछु पाये के उम्मीद म फेर पहुँचगे । बुधारू फकत देखे बर गे रहय । गाँव के मन मंगलू ला देखिस , त झोला धर के आये के कारण पूछ दिस । मंगलू लजावत किथे – एसो के अकाल दुकाल के मारे , घर म दार चऊँर सिरागे हे .....। पोल खुलतिस त , कुछ न कुछ खाये पिये के मिलबे करही , उही ला महू ,  एकात कन रपोट लेतेंव सोंच के , झोला धर के किंजरत हँव । गाँव के मन किथे – तोर गाँव म बोनस नइ बाँटे हे जी ... ? मंगलू किथे – बोनस बँटइस तो जरूर , फेर धान बेंचइया ला कमती अऊ ईमान बेंचईया ला जादा मिलिस हे । गाँव के एक झिन मनखे किथे – यहू बछर के बोनस तो घला दिही सरकार हा , ओतको तोला पुर नइ आवत हे । मंगलू किथे – गदगद ले धान होइस ते बछर , बोनस ला ओस कस बूंद चँटा दिस , येसो फसल के दाना नइ लुवे हन , तेमा सरकार ला का बेंचबो अऊ बोनस के का मांग करबो ..... ? 

                     तभे बड़े बड़े मनखे मन , लामी लामा गाड़ी घोड़ा म , पोल खोले बर उतरिन । मंगलू हा अपन झोला के मुहुँ खोले , सपट के ताकत रहय । तभे बड़े जिनीस गोठ के पोल जामगे । पोल खोलइया मनला , अबड़ बेर ले तो समझेच नइ आवत रहय के , पोल जाम तो गे .... फेर , कती ले खोलना हे । जे तिर ले खोले बर धरतिस , तिही तिर , ओकरे मनखे मन के , कतको कच्चा चिट्ठा दिखे बर धर लेतिस । पोल ला येती ओती उनडा के देख डरिन , तभे ऊप्पर ले आदेश अइस के , पोल ला सोज खड़े करव , अऊ उप्परे ले खोलव , भोरहा म तरी कोती हाथ परगे अऊ पोल म टोंड़का होगे त , आंजत आंजत कानी हो जही अऊ पोल ला खोले के बदला तोपे के पहिली उदिम करे बर पर जही । आदेश सुन उप्पर ले ढकना खोलना शुरू होगे । बीते कुछ बछर ले चलत , लूट , डकैती , बलात्कार अऊ भ्रस्टाचार के प्रमाण मन बाहिर आये लगिस । पूरा पोल खुलगे त ओमा के बड़का नेता किथे – सरकार के पोल हरेक गाँव म जामे हे , येला खोल के , देश म गंदगी बगरइया संग अइसन कचरा काड़ी मनला , बाहिर करव , तब तुँहर गाँव के मनखे ला पेट भर खाये बर मिलही , पहिरे बर कपड़ा मिलही अऊ रेहे बर घर मिलही , तभेच तुँहर गाँव सुंदर बनही । जेकर भी गाँव म अइसन गंदगी होही ते मोला बतावव , कालीचे हमन आके सफ्फा कर देबो ....। मंगलू किथे – हमर घुरवा ला ये बखत सफ्फा नइ कर सके हन मालिक , एक ठिन पोल गड़ियाके सफ्फा कर देतेव का ......? कन्हो झिन सुनय कहिके , बुधारू लकर धकर , ओकर मुहुँ ला तोप दिस । 

                    पोल खोले म कोन ला काये मिलिस यार बुधारू .....? मंगलू के प्रश्न हा बुधारू ला हूल मारे कस गड़त रहय । बुधारू किथे – पोल खोले म गरीब ला का मिलही बइहा ..... ? येहा बड़का मनखे मनके चोचला आय । ओमन ला दार चऊँर के भूख थोरहे लागथे तेमा ..... ओमन ला खुरसी , पद अऊ प्रतिष्ठा के भूख पदोथे । जे जतका पोल खोलही तेकर झोला म ओतके वोट आही अऊ ओतके बड़ खुरसी म बिराजित होही । मंगलू ओकर बात ला समझिस निही । अपन घर म निगतेच साठ अपन सुवारी ला कहत रहय , तोरो कहूँ पोल होतिस तेला बताते का वो .......। जगा जगा महूँ ओला खोलतेंव अऊ पद प्रतिष्ठा के हकदार बनतेंव । हतरे लेड़गा गारी सुनत ...... पोल गड़ाये के अऊ ओला खोले के उदिम सोंचत मंगलू के नींद परगे .......।  

 हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

दुस्सासन के साहस*. ब्यंग.

 *दुस्सासन के साहस*.          

                                            ब्यंग.

              जेन देश राज मा पुरूष के प्रधानता हे उँहा नारी जात ला पिड़हा मा बइठार के पूजा करना सृष्टि रचइता के सँग मजाक हो सकथे। जे मन इँकर पाँव धो के पीये हें उही मल लिख दिन कि "यत्र पूज्यन्ते नारी तत्र रमन्ते देंवता" अइसन पूजनीय नारी के सम्मान वस्त्र दान करके नहीं वस्त्र उतार के करे जावत हे। वस्त्र हरण के गरिमा ला दुस्सासन जइसे साहसी पुरूष हर देख लगाइस। जे हर आज के समाज बर प्रेरणादायी हे। जेकर नतीजा आय कि दुर्योधन अउ दुस्सासन जइसे कीरा काँटा दिनोदिन पनपत रथे। पति पीड़ित मन नारी उत्पीडन केंद्र के सुविधा ले तलाक ले सकथे। फेर कोंवर पीकी ला रमजे के, डोंहरू ला मुरकेटे के, अउ छतनार काया ला चील गिधान असन झपट के लहू-लुहान करे के नवाचार चलत हे। भुगतमान देंह ला सरकारी सहानुभूति के घुनघुना मिलथे। अउ दुस्सासन ला सुरक्षा। इही मन घुनघुना बजा बजा के बताथें किये दुनिया मा जइसे बिना कपड़ा के आए हव ओइसने ही तुमला सोभा देथे। (ये कायदा पुरूष बर लागू नइये।

                     नारी जात के कोख ले जनम धरने वाला मन ही तिरिया जात ला पाँव के पनही कहिके सम्मान देथे। संसार के सबो नारी परानी ला बहिनी बनाना नैतिक अपराध मा गिने जाथे। ओकरे सेती ये नत्ता ला स्वीकार कर पाना आदमी अउ आदमीयत बर खतरा माने गेय हे। उपर वाला स्त्री जात ला भोग विलास के समान बनाके भेजे हे तब सँगे सँग दुर्योधन अउ दुस्सासन घलो भेजे हे। पेट के भूख कइसनो करके मारे जा सकथे। फेर हवस अउ वासना के भूख दाँत झरे अउ चूँदी पाके वाला के घलो नइ मरे। ना उमर के सीमा हे ना जात धरमके ना तो नाता रिस्ता के। चील गिधान कस मास चिथोल के भूख मेंटाना मानव कर्तव्य मा आथे। ३६४ दिन तिरिया जात समाज के दुधारी तलवार मा नरी  टेकाय मिलथे। बाँचे राखी के एक दिन सुरक्षित हे  अइसे कल्पना करे मा का  सिराही।

                  चार दिवारी सुन्ना घर मा छेड़खानी करे ले मनखे ला वो सम्मान नइ मिले जतका खुले बजार मा मिलथे। अउ कहूँ सामुहिक सहकारी भाव ले होगे तब प्रसंसा के फोटू अखबार तक नइ गिस माने चउँथा स्तंभ के खोरवापना उजागर हो जही। नारी ला अबला कहि कहिके उँकर मनोबल उपर चंदन लेप करत रथें। नारी सबल होथे ये बात के परिचय फूलन देवी हर देय रिहिस। मरियादा के निठल्लापन के गवाही देय बर दाई ददा के संस्कार घलो रूधना बारी के ओधा ले हुँकार भरत मिल सकथे। ३३% के कोटा मा पुरूष मन के दुख के कारन ये हे कि ३ परसेंटी वाले के कद काबर बाढ़गे? राजनीति के कुरसी बचाय बर नारी जात के इज्जत अस्मिता के हत्या करवाना अउ चार छै बालटी आँसू बोहाना ये दूनों के आपसी अंदरूनी संबंध गहरा हे। नारी जात के दुखड़ा उपर बहे आँसू के सुद्धता पैथोलॉजी मा पता नइ चले ओकरे सेती आँसू ला राजनीति के रंग घोर के बोहाना परथे। कोनो तिरिया इन्साफ न्याय के लड़ाई करत करत दुनिया ले तिरियागे तब ये लड़ाई ला लड़त रेहे बर कोनों दूसर ला अपन इज्जत इही वहसी कामी दुराचारी समाज के हवाला करना परथे। कोख भितर हत्या से लेके तलाक, चीर हरन से लेके नबालिक सँग कुकरम इज्जतदार समाज के बेटी बचाओ नारा ला बल देथे। कबीर तुलसी दयानंद विवेकानंद अउ कतको नंद समाज बर प्रेरणा तब तक रिहिन जब तक मनखे के चेतना अउ सतबुद्धि नइ जागे रिहिस। अब जाग गेहे तब दुर्योधन अउ दुस्सासन असन पात्र मन ही जवान पीढी के आदर्श हो सकथे। चरित्रहीन पति अपन घरवाली ला ये बताथे कि भाईचारा के नाता ले परोसी सँग हाँस के गोठियाना स्त्री अधिकार मा नइ आय।

                महिला हिमालय मा चढगे, चंदा मा चल दिन। फौजी अउ पायलट बनगे, नेता मंत्री बनगे। नारी नारी के दुख मा संसदीय आँसू बोहाय के दम घलो रखथें। फेर नारी के आँसू पोंछे बर फूलन बने के हिम्मत नइये। कुस्ती कला मा धोबी पछाड़ के गुन नइ सीखे ले अउ फूलन के जीवनी नइ पढ़े के सेती ही हल्ला मँचिस। सीखे रतिस त कुकरमी कुरिया भीतर ले स्टेक्चर के सवारी करत गुप्तांग के इलाज बर बिदेश जातिस। मणिपुर के मामला एतिहासिक नोहे ना निर्भया पहिली केस आय। आसाराम एके ठन उदाहरण नोहे ना आंध्रा बिहार एके बखत लहूलुहान होय हे। दास प्रथा अउ हरिजन शब्द के  परिभाषा जानके अब के घटना मा भारतीय परम्परा के भान होथे। जे मन जानत हे वो मन नाक तमड़ के आँसू नइ बोहाय। वो मन जानत हे कि ये आदर्श परम्परा ला जिया के राखे बर दुस्सासन जइसे साहसी मानव धरती मा होना जरूरी हे।

                 नारी जात फूल असन कोंवर होथे। नारी माया ममता के मुरती आय। नारी गऊ हे। नारी अबला होथे नारी खेलौना हे। जे मन जइसन नजर ले देखिन परिभाषा मा बाँध दिस। नवा नाम यहू हे कि तिरिया जात माने बच्चा जने के मशीन। जेकर कोख मा खराब सिरजन होथे तब वोला उँहिचे मारके कूड़ादान के नीला हरा डब्बा मा विसर्जित करे जाथे। बहिनी तो फकत खून के रिस्ता ले ही बनाये जा सकथे। सबो ला बनाही तौ दरिंदगी के सार्थकता बर दूसर लोक खोजे बर परही। फेर ये कलजुगी धरा मा आज मोर बहिनी नइ बाँचिस माने काली तहूँ राखी के दिन अगास कोती रसता देखबे। राजनीति एक फलत फूलत दुकान आय जिंहा संवेदना के आँसू मोफत मिलथे। जिंहा पल पल करके न्याय मरत हे वो न्यायपालिका सडक बाजू के खोमचा टपरी आय। इहाँ न्याय के एक कप चाय बर धन अउ इज्जत दुनों के चघावा देय बर परथे।

           नारी सम्मान नारी अस्मिता नारी विमर्श नारी संवेदना नारी उत्पीड़न अउ नारी सुंदरता के पाठ रट रट के कतको झन पी एच डी कर डारिन। फेर उँनला पाँव के पनही माने छोडत नइये। पाँव के जगा मूँड़ मा चघाहीं तब मरद जात के मरदानगी के का होही? सहिर लुधियानवी जी नारी जात के वकालत मा गीत लिख डारिस कि---------

औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया।

जब जी चाहा मसला कुचला, जब चाहा धुत्कार दिया।

फेर हास्य कवि बर नारी जात अच्छा पात्र बिषय बन गेहे। पुरूष के पुरसारथ अउ पराक्रमी पना हर तिरिया जात ला घरके पोसे कुकरी असन पोइले बर कटारी धरे मिलथे। फाइल दफ्तर दफ्तर नाचत रही, राजनीतिक दया के आँसू नाली मा जावत रही। पक्ष विपक्ष बैमनस्यता के आँच मा इंसानियत ला लडवाते रही। तिरिया जात के चीर हरन  दुस्सासन कुल के मन करते रहीं।  दुर्योधन के जंघा अकुलाते रही। रावन के पुष्पक छानी उपर मँडरात रही। काबर कि ये करम हमर परम्परा अउ पहिचान बन चुके हे। नारी सम्मान नग्नावस्था मा जादा सोभादायी हे। देंह निंचोय अउ चिथोले बर चील गिधान बनके लहूलुहान करना नारी उपर आदमी के आदर्श संस्कार के दर्शन कराथे। विश्व महिला दिवस के दिन एको ठन घटना नइ घटे ले मरद  समाज अपन नामरदानगी के सरम ले मूड़ नँवा के रेंगथे। मुँहूँ के कथनी ला मन मा उतार के देख। वो अभागिन तोर अपन के सगे तो घलो हो सकत हे। कलंकित समाज के आँसू धरे बजार मा राखी के जगा मंदी के जमाना मा कफन सस्ता होना तय हे। रोज चार ठन घटना घटे के डर ले पुरूष प्रधान समाज के प्रस्ताव ला स्वीकार करके बइठे हें। भले संताप के आँच मा समूचा सृष्टि के बिनास बर बिनती बिनोवत हें।

          राजनीति के पिसान साने बर पीड़िता के अँगना मा आँसू बोहाना परथे। जेकर छिटका अखबार अउ मिडिया तक जाना जरूरी हे। नइते कोन जानही कि सुभ चिंतक कोन कोन हे? अपराधी  खून के रिस्ता या सगा होगे। अउ नही ते पारटी ले गहरा रिस्ता रखथे। तब उही डरे सहमे दबे कुचले महिला थाना मा रिपेट लिखवा दे। जम्मो जिनगी ठसन ले जी के मरही तब आजीवन कारावास के फरमान  आही। हमर चिंता अवधपुर के भव्यता उपर हे। मणिपुर तो चुकता देश हे तब फोकट चिंता करके समय गँवाना अकारथ हे। दुस्सासन कुल के अबादी जम्मो देश मा बगरे हे। जेकर करनी उपर लोहा पथरा ले कड़ा शब्द मा निंदा भर ही करे जा सकत हे। दूसर कोनों उपाय ही नइये। तभे तो दुस्सासन मन के साहस दिनो दिन बाढ़ते हे। जावत जावत एक झन बढ़िया शायर के दू लाईन घलो गठिया लव कि---------

किसी को काटों से चोट पहुंचा किसी को फूलों ने मार डाला।

जो इस मुसीबत से बच गये उसे तो उसूलों ने मार डाला।।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।