Tuesday 27 April 2021

सुरता : श्रद्धेय नारायण लाल परमार


 

सुरता : श्रद्धेय नारायण लाल परमार

(01 जनवरी 1927 - 27 अप्रैल 2003)

संदर्भ : दाऊ रामचन्द्र देशमुख कृत "चंदैनी गोंदा"


29 जनवरी 1972, ग्राम पैरी (बालोद) के बस स्टैंड में लगभग 70 सवारियों से भरी यात्री बस रुकती है। अनेक यात्री उतरते हैं। इन्हीं यात्रियों में चार सवारियाँ धमतरी से भी आयी हैं। ये चारों, पैरी नदी की ओर बढ़ते हैं। रास्ते में लोगों का हुजूम भी चल रहा है। बच्चे, किशोर, तरुण, अधेड़, वृद्ध ग्रामीण बढ़े जा रहे हैं पैरी नदी की ओर। धमतरी से आये ये चारों सज्जन मुख्य मार्ग छोड़कर शॉर्टकट पकड़ते हैं। खेतों के बीच से जाती हुई पगडंडी। बैलगाड़ियाँ और गाड़ा भी सवारियों से भरे हुए इसी दिशा में जा रहे हैं। यह सफर समाप्त होता है चंदैनी गोंदा के शामियाने के निकट जाकर। 


जी हाँ, आज पैरी में चंदैनी गोंदा का द्वितीय भव्य प्रदर्शन है। इसी के कारण यह गहमागहमी और भीड़भाड़ है। शामियाने के निकट आने के बाद ये चारों सज्जन सुरेश देशमुख का पता लगाते हैं। खबर मिलते ही सुरेश देशमुख लपक कर आते हैं। खिला हुआ चेहरा। चंदैनी गोंदा देखने का आमंत्रण उनका ही था। शायद उन्हें विश्वास नहीं था कि उनके गृह नगर धमतरी से ये चारों आमंत्रित सज्जन यहाँ आएंगे इसीलिए उनके चेहरे पर संतोष और उल्लास कुछ ज्यादा ही अभिव्यक्त हो रहा था। चाय के लिए पूछा। स्टेज के सामने बैठने की व्यवस्था करने के बाद स्टेज के पीछे ओझल। मुख्य उद्घोषण की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी। कार्यक्रम के विभिन्न दृश्यों को पिरोने वाला सूत्रधार - सुरेश देशमुख।


ये सारा दृश्य, सारा संस्मरण आदरणीय त्रिभुवन पांडेय जी के आलेख "छत्तीसगढ़ : एक आत्मसाक्षात्कार : चंदैनी गोंदा" से लिया गया है। इस सम्पूर्ण आलेख में तो पैरी में आगमन से लेकर चंदैनी गोंदा के प्रदर्शन की समाप्ति तक का इतना रोचक व सूक्ष्म वर्णन है कि पैरी की वह चाँदनी रात आँखों के सामने सजीव हो उठती है। सुरेश देशमुख जी के आमंत्रण पर धमतरी से पधारे ये सज्जन कौन-कौन थे, यह भी बता दूँ - सर्वश्री नारायणलाल परमार जी, त्रिभुवन पांडेय जी, शेषनारायण चंदेले जी और गिरधारी अग्रवाल जी। इन चारों विभूतियों का चंदैनी गोंदा से यह प्रथम साक्षात्कार था। सुबह-सुबह आयोजन समाप्त हुआ। सुरेश देशमुख जी ने दाऊ रामचन्द्र देशमुख जी को बताया कि धमतरी से सर्वश्री नारायणलाल परमार जी, त्रिभुवन पांडेय जी, शेषनारायण चंदेले जी और गिरधारी अग्रवाल जी आये हैं। दाऊ जी ने कहा - उन्हें हमारे साथ हमारी बस में बघेरा चलने को बोलो। वहाँ विश्राम करेंगे। भोजन में उपरान्त उनके धमतरी लौटने की व्यवस्था कर दी जाएगी। परमार जी, पांडेय जी, चंदेले जी और अग्रवाल जी चंदैनी गोंदा की टीम के साथ बस में बैठकर बघेरा आ गए। विश्राम करने के बाद दाऊ जी से चर्चाएँ हुईं फिर उनके धमतरी लौटने का प्रबंध कर दिया गया। यह प्रथम मुलाकात थी दाऊ रामचंद्र देशमुख जी और आदरणीय नारायणलाल परमार जी और त्रिभुवन पाण्डेय जी की।


चंदैनी गोंदा के प्रदर्शन के प्रारंभ में मंच पर किसी न किसी साहित्यकार का स्वागत व सम्मान किया जाता था।  दाऊ जी के अपने मंच पर कभी भी किसी राजनैतिक हस्ती को आमंत्रित नहीं किया था। 04 मार्च 1972 को सिविक सेंटर भिलाई में चंदैनी गोंदा के मुख्य अतिथि श्रध्देय नारायणलाल परमार जी का सम्मान किया गया था। इस मंच पर स्वागत का दायित्व चंदैनी गोंदा की प्रमुख गायिका श्रीमती संगीता चौबे ने निभाया था। उस अवसर का चित्र भी पोस्ट किया गया है। (आदरणीय सुरेश देशमुख जी की फेसबुक वॉल से साभार)


आपको विदित ही है कि चंदैनी गोंदा का प्रथम प्रदर्शन ग्राम बघेरा में 07 नवम्बर 1971 को हुआ था। दाऊ जी ने चंदैनी गोंदा की स्थापना के पाँच वर्ष पूर्ण होने पर "छत्तीसगढ़ की एक सांस्कृतिक यात्रा : चंदैनी गोंदा" शीर्षक से एक स्मारिका प्रकाशित करवायी थी जिसका सम्पादन श्रद्धेय-द्वय श्री नारायण लाल परमार जी और श्री त्रिभुवन पाण्डेय जी ने किया था। इस स्मारिका का मुख पृष्ठ और प्राम्भिक कुछ पन्ने, संपादकीय सहित यहाँ पोस्ट किए गए हैं ताकि नयी पीढ़ी चंदैनी गोंदा के वैभवशाली इतिहास से परिचित हो सके। इस स्मारिका के अंत में गीत कुंज के नाम से कुछ पन्ने भी हैं जिसमें गीतकार श्री रविशंकर शुक्ल जी के दो गीतों सहित कुल पन्द्रह गीतकारों के एक-एक गीत प्रकाशित हैं। इसी में गीतकार श्री लक्ष्मण मस्तुरिया जी के 10 गीत भी प्रकाशित हैं। इस गीत कुंज में श्री नारायणलाल परमार जी का गीत "गाँव अभी दुरिहा हे" भी प्रकाशित है। इन्हीं स्मृतियों के साथ आज हम श्रद्धेय नारायणलाल परमार जी की पुण्यतिथि पर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करते हैं। 


"गाँव अभी दुरिहा हे" - श्री नारायणलाल परमार


तीपे चाहे भोंभरा, झन बिलमव छाँव मा

जाना हे हम ला ते गाँव अभी दुरिहा हे। 


कतको तुम रेंगव गा, रद्दा हा नइ सिराय

कतको आवंय पड़ाव, पांवन जस नइ थिराय।

तइसे तुम जिनगी मा , मेहनत सन मीत बदव

सुपना झन देखव गा, छाँव अभी दुरिहा हे।


धरती हा माता ए, धरती ला सिंगारो।

नइये चिटको मुसकिल, हिम्मत ला झन हारो।

ऊँच नीच झन करिहव, धरती के बेटा तुम

मइनखे ले मइनखे के नांव अभी दुरिहा हे।


गीतकार - श्री नारायणलाल परमार


सुरता आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़

सुरता -श्रीवास जी(ओमप्रकाश साहू अंकुर)


 

सुरता -श्रीवास जी(ओमप्रकाश साहू अंकुर)



रंग कर्म के क्षेत्र मा उदय राम एक बड़का कलाकार रिहिस 


नाचा ले शुरू करे रिहिस अपन अभिनय यात्रा 


विदेश मा घलो अपन काम के लोहा मनवाइस 

जनम - 01-08-1945      देहाहवसान - 25-04-2021

नाचा हमर छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य हरे. नाचा ह मनोरंजन के साधन के संगे संग जन जागरण के पोठ माध्यम हरे. येमा एक कोति हमर छत्तीसगढ़ के रहन- सहन,खान-पान अउ संस्कृति के दर्शन होथे त दूसर कोति छुआछूत, भेदभाव, अज्ञानता, शोषण सहित कतको बुराई पर जमगरहा व्यंग्य रहिथे.वादक कलाकार, गायक गायिका के संगे संग परी अउ जोकर के हाव भाव हा जनता ला खूब भाथे. जोकर मन हंसी मजाक करके दर्शक मन ला खुश कर देथे. नाचा के दुनिया मा स्व.मंदराजी दाऊ, स्व. मदन निषाद, स्व. गोविन्द राम निर्मलकर,  स्व. लालू राम साहू ,

माला मरकाम, फिदा बाई मरकाम, निहाईक दास, झुमुक दास बघेल जइसे कला के पुजेरी होय हे. नाचा ले अपन कला यात्रा शुरू करके रंग मंच अउ फिल्म के क्षेत्र म जउन कलाकार मन अपन एक अलग पहिचान बनइस वोमा स्व. उदेराम श्रीवास के नाँव घलो आदर के साथ लेय जाथे. 

      उदेराम श्रीवास के जनम  राजनांदगॉव ले 17 किलोमीटर दूर खरखरा नदी के किनारे बसे गाँव बेलटिकरी (सुरगी) मा 1 अगस्त 1945 मा होय रिहिस. वोकर बाबू जी के नाँव नन्दू लाल श्रीवास अउ महतारी के नाँव श्रीमती बन्नीन बाई रिहिस. श्रीवास जी हा मात्र 5 वीं तक पढ़ाई करिस. वोकर शादी झाबिन बाई के साथ होइस. 


  नाचा ले कला यात्रा शुरू करिस.. 

 राम सिंग साहू अउ मंदराजी दाऊ के सान्निध्य मिलिस...


मदन -मंदराजी के नाच ला देख के वोकरो मन मा नाचा कलाकार बने के भूत सवार होगे. मात्र 16 वर्ष के उम्र मा नाचा ले जुड़गे. बेलटिकरी के ही नाचा अउ पण्डवानी कलाकार राम सिंग साहू के संग 1961 से 1968 तक जुड़ के  नाचा पार्टी मा अभिनेता के काम करिस. फेर 1968 से 1974 तक ख्यातिप्राप्त नाचा पार्टी लखोली (स्व. मंदरा जी दाऊ के संग) मा अभिनय करिस. नाचा के नकल राजकुमार, माया -परीक्षा, कुम्हड़ा चोर, बुड़रा साधू, लमसेना, साहब -चपरासी, भाई बंटवारा, लेड़गा, जानी चोर, महाप्रसाद, पोंगा पंडित म अभिनय करके अंचल मा अपन एक अलग छाप छोड़िस. 


  हबीब तनवीर के संग काम करके छागे ...


     उदय राम के प्रतिभा ला देखके अंतरराष्ट्रीय रंग कर्मी ,पद्मभूषण स्व. हबीब तनवीर हा नया थियेटर दिल्ली मा शामिल होय के नेवता दिस. छत्तीसगढ़ के अन्य कलाकार जइसे श्रीवास जी हा घलो 1975 मा नया थियेटर ले जुड़गे. वोहा रंग मंच के विश्व प्रसिद्ध नाटक चरन दास चोर, आगरा बाजार, बहादुर कलारिन, गाँव के नाँव ससुराल, मोर नाँव दमाद, मुद्रा राक्षस,मिट्टी की गाड़ी, साजापुर की शांति बाई, दुर्योधन, जिन लाहौर नइ देख्या, काम देव का सपना बसंत ऋतु अपना, सोम सागर, बेनी संहार,राज रक्त मा अभिनय करके अपन अभिनय शैली के लोहा मनवाइस . पोंगा पंडित मा प्रमुख अभिनेता के रूप मा काम करिस. सुप्रसिद्घ फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल के संग फिल्म चरन दास चोर मा काम करिस.  एक चोर ने नाम कमाया जी सच बोलके... के गाना दर्शक के जबान मा छा जा रहय. शेखर कपूर के फिल्म बेंडिड क्वीन अउ आमीर खान के फिल्म पीपली लाईफ में अभिनय करे के मौका मिलिस. 


    देश के संगे संग विदेश मा अपन अभिनय के जादू बिखेरिस... 


      श्रीवास जी राष्ट्रीय स्तर मा करीब  90 शहर मा अपन प्रस्तुति 

दिस. अंतर्राष्ट्रीय रंग मंच मा फ्रांस 1984, स्वीडन 1987, रुस 1988,बांग्लादेश 1989 ,इंग्लैंड 1990 , यूनान 1995,जर्मनी 2001 जइसे कतको देश मा अपन सुग्घर प्रस्तुति ले प्रशंसा बटोरिस. 

  आप मन ख्याति प्राप्त निर्देशकों त्रिपुरारी शर्मा (1981),रवि शर्मा, एस. के. सेन गुप्ता, कार्तिक अवस्थी, एलीजा बेन लंदन (1985),राम हृदय तिवारी (2003)एवं उषा गांगुली (2005)के सान्निध्य मा काम करे हवव. कतको राष्ट्रीय अउ अंतराष्ट्ीय नाट्य कार्यशाला मा भागीदारी करीस. आप हा नवोदित नाचा कलाकार मन ला प्रशिक्षण देय  के काम करेव. साक्षरता अभियान मा घलो योगदान दीस. 


  अनेक संस्था मन सम्मानित करिस... 


आप ला अनेक संस्था मन प्रशस्ति पत्र देके सम्मानित करिस. जेमा 1990 मा कार्य समिति आयुध निर्माणी रक्षा मंत्रालय रायपुर (उत्तर प्रदेश), 2001 मा मध्य प्रदेश कला परिषद् भोपाल, 2001 मा ही संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन, 2011 मा आदिवासी कला परिषद् ,तुलसी साहित्य अकादमी भोपाल शामिल हे. नाचा अउ रंग कर्म के क्षेत्र मा वोकर उल्लेखनीय योगदान खातिर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव हा वर्ष 2006 मा साकेत सम्मान प्रदान करिस. 

  छत्तीसगढ़ी फिल्म" बेनाम बादशाह " मा अपन अभिनय से दर्शक मन के दिल मा बढ़िया जगह बनइस. 


    पाछू 5 बरस ले गाँव मा रहत रिहिस ....


  नाचा अउ रंग मंच का यह बड़का कलाकार गजब सरल, सरस अउ हंसमुख व्यक्तित्व के धनी रिहिस. हमर गाँव सुरगी मा आय ता वोकर ले मुलाकात होत रहय. पाछू पांच साल ले वोहा अपन गाँव बेलटिकरी मा रहत रिहिस. अइसन बेजोड़ कलाकार हा 25 अप्रैल 2021 के ये दुनियां ला छोड़ के स्वर्ग लोक चले गे. उदय हा अस्त होगे. वोहर अपन पत्नी झाबिन बाई, दू बेटा शिव कुमार श्रीवास , हेमन्त कुमार श्रीवास , दू बेटी श्रीमती गौरी बाई अउ श्रीमती पद्मा बाई सहित भरा पूरा छोड़ के गेहे. वोकर दूनों बेटा  हा रायपुर मा प्राइवेट कंपनी मन मा काम करथे. स्व. श्रीवास जी ला शत् शत् नमन हे. विनम्र श्रद्धांजलि. हम ईश्वर से प्रार्थना करत हन कि मृतात्मा ला शांति प्रदान करें के संगे संग शोकाकुल परिवार ला दुःख सहे के शक्ति प्रदान करें. ऊँ शान्ति... 🙏🙏💐💐

                  

ओमप्रकाश साहू"अँकुर"


पूर्व अध्यक्ष, साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव 

        एवं संयोजक, पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला -राजनांदगॉव (छत्तीसगढ़)

Monday 26 April 2021

चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका एवं लोक-नाट्य "कारी" की केंद्रीय नायिका : शैलजा ठाकुर (भाग - 4)


 

चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका एवं लोक-नाट्य "कारी" की केंद्रीय नायिका : शैलजा ठाकुर

(भाग - 4)


कारी के लोकप्रियता के कारण छत्तीसगढ़ की पहली हिन्दी फीचर फिल्म *किसान* के लिए शैलजा ठाकुर का चयन किया गया था। इस फ़िल्म में उनकी भूमिका परीक्षित साहनी के अपोजिट थी। इस फ़िल्म में रामायण धारावाहिक फेम अरुण गोविल, मजहर खान, भैयालाल हेड़ाऊ जैसे कलाकार भी थे। 


"मन के बँधना" फ़िल्म के प्रत्येक नारी पात्र के संवादों को पात्र के अनुरूप डबिंग करने का अद्भुत काम भी शैलजा ठाकुर ने किया है।  कटक के डबिंग स्टूडियो के कलाकार आश्चर्यचकित होकर देखने लगे थे कि कितनी महिलाएँ एक साथ डबिंग कर रही हैं किंतु एक मात्र शैलजा ठाकुर को माइक के सामने देख कर अवाक रह गए थे कि एक ही युवती  कैसे विभिन्न महिला पात्रों की अलग-अलग आवाजें निकाल रही है। यह विलक्षण गुण भी शैलजा ठाकुर को नैसर्गिक तौर पर मिला हुआ है।


कारी की अपार लोकप्रियता के कारण बॉलीवुड से हिन्दी सिनेमा में काम करने हेतु अनेक ऑफर आये किन्तु शैलजा ठाकुर को  छत्तीसगढ़ छोड़ के जाना मंजूर नहीं था और उन्होंने बॉलीवुड के सारे ऑफर ठुकरा दिए। 


वे वर्तमान में शासकीय ग्राम्य भारतीय विद्यापीठ महाविद्यालय, हरदीबाजार, कोरबा में राजनीति शास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष (HOD) के पद पर सेवारत हैं और हरदीबाजार में ही सैटल हो गई हैं। इतनी शोहरत पाने के बाद भी शैलजा ठाकुर ने एटीएम-प्रशंसा के राग नहीं अलापे और न ही कभी अपनी उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार किया फिर भी सच्चे कला-प्रेमियों के हृदय में वे अपना विशिष्ट स्थान बनाए रखने में सफल रहीं हैं। 


हाथ कंगन को आरसी क्या - वर्तमान पीढ़ी के युवा प्रशंसक मिलन मलरिहा ने शैलजा ठाकुर का पोर्ट्रेट बना कर यह साबित कर दिया कि इस भूमि पर यदि शैलजा ठाकुर जैसे सच्चे कलाकार हैं तो इसी भूमि पर मिलन मलरिहा जैसे सच्चे कला-प्रशंसक भी हैं। लक्ष्मण मस्तुरिया को अपना आदर्श मानने वाले युवा कवि, गीतकार, गायक मिलन मलरिहा एक कुशल चित्रकार भी हैं। आलेख के साथ संलग्न चित्रों में एक चित्र मिलन मलरिहा द्वारा बनाया हुआ चित्र भी है जिसे आप अलग से पहचान लेंगे। 


आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)


(सभी चित्र आदरणीया नम्रता सिंह से साभार)

छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक लोक-नाट्य "कारी" की केंद्रीय नायिका: शैलजा ठाकुर (भाग - 3)


 

छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक लोक-नाट्य "कारी" की केंद्रीय नायिका: शैलजा ठाकुर

(भाग - 3)


 इस श्रृंखला के प्रथम भाग में आपने जाना कि शैलजा ठाकुर शुरुआत में चंदैनी गोंदा की कोरस गायिका रहीं, फिर गंगा की भूमिका में आईं। ड्रेस डिजाइनर का भी दायित्व संभाला और नृत्य-निर्देशिका भी रहीं। नृत्य-निर्देशिका के रूप में उन्होंने चंदैनी गोंदा के नर्तक कलाकारों को मौलिक, अभूतपूर्व व अभिनव स्टेप्स सिखाये थे, उन्हीं स्टेप्स का अनुसरण आज भी अनेक लोक-कला मंचों पर किया जा रहा है। श्रृंखला के द्वितीय भाग में उन्हें छत्तीसगढ़ के पारम्परिक आभूषणों की शालीन व सौम्य प्रथम महिला मॉडल के रूप में जाना। आक का यह आलेख सुप्रसिद्ध व ऐतिहासिक लोक-नाट्य "कारी" पर केंद्रित है। "कारी" की महिमा का वर्णन एक आलेख में किया जाना "असंभव" है। नयी पीढ़ी के लिए "कारी" के कुछ बिंदुओं को ही रेखांकित करने का प्रयास कर रहा हूँ।


केंद्रीय चरित्र "कारी" की कठिन भूमिका का शैलजा ठाकुर ने अविस्मरणीय रूप से निर्वाह किया है। दुखों के बीच जन्मी, अभावों में जवान हुई, अशिक्षा के साथ ब्याही गई, निपट भोली किंतु ममतामयी "कारी"। मिली हुई दुनिया को बेहतर और सरस बनाने के लिए प्राण-प्रण से लगी बिसेसर की जीवन-संगिनी, आमादाई की सेविका और "लुरू" की संरक्षिका, अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति "कारी"। अति ममत्व के अभिशाप को झेलती, समाज द्वारा अकारण दंडित, लांछित, जीवन को दूसरों के लिए उत्सर्ग के संकल्प पर अडिग "कारी"। भिखारी को तनिक उदारतापूर्वक "सीधा" देने के अपराध में सास की झिड़की झेलती और बिसेसर से लड़ती-झगड़ती, प्यार करती "कारी"। मास्टर के सामने अंक में मेमने को समेटे सलज्ज एवं मर्यादित खड़ी "कारी"। अंत में किसन के बालरूप में उलझी उसे फटाखे और मिठाई नवाज अति भोली, सरल एवं ममत्व से छलकती "कारी"। सबको "शैलजा" ने भरपूर जिया है। (डॉ. संतराम देशमुख की किताब - "छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य के विकास में दाऊ रामचंद्र देशमुख का योगदान" से साभार)


कारी के अन्य पात्र कृष्ण कुमार चौबे, चतरू साहू , विनायक अग्रवाल, विजय मिश्रा "अमित", बिसंभर यादव, ध्रुव सिंह चंदेल, सुरेश यादव, ललित हेड़ाऊ, गजराज, नवल मानिकपुरी, भैयालाल हेड़ाऊ, अघनू,  ईश्वर मेश्राम, अनुराग ठाकुर, माया मरकाम आदि थे।  बाल कलाकार थे - दीपा देवांगन,, अनुसुईया, गायत्री, सुमति, इंदिरा, मंजू, सविता, अनीता, संगीता आदि। "कारी" के संगीत निर्देशक थे गिरजा कुमार सिन्हा। उनके साथ संतोष टाँक (बाँसुरी), श्रवण कुमार दास (वायलिन), अन्य वाद्य यंत्रों पर विवेकानंद भारती, तुलसी, विवेक वासनिक, अरविन्द शेंडे आदि थे। कारी के लिए गीत लिखे थे गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया और मुरली चंद्रकार ने। कारी के गीतों को स्वरों से सजाया था - भैयालाल हेड़ाऊ, अनुराग ठाकुर कविता वासनिक ने। संवाद एवं पटकथा लेखक थे प्रेम साइमन, निर्देशक थे रामहृदय तिवारी और कारी के शिल्पी, प्रेरणा स्रोत एवं संचालक थे दाऊ रामचंद्र देशमुख।


दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के ससुर स्वर्गीय डॉक्टर खूबचंद बघेल की पुण्य स्मृति पर सिलयारी में "कारी" की प्रथम सम्मोहक व भव्य प्रस्तुति के बाद क्रमशः हरदी बाजार, राजनाँदगाँव, महासमुन्द, बेमेतरा, सिविक-सेंटर भिलाई आदि अनेक स्थानों में श्रृंखलाबद्ध कारी की सफल प्रस्तुति हुई। चालीस से अधिक सफल प्रदर्शनों के बाद "कारी" की अंतिम प्रस्तुति राजनाँदगाँव में हुई थी। इस आलेख के साथ ही कुछ अचल-चित्र जो सुप्रसिद्ध छायाकार "प्रमोद यादव" द्वारा खींचे गए हैं, भी पोस्ट किए जा रहे हैं जो "कारी" के प्रत्यक्षदर्शियों को चल-चित्र का आभास कराएंगे। (क्रमशः) 


आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका : शैलजा ठाकुर (भाग - 2)


 

चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका : शैलजा ठाकुर

(भाग - 2)


कल इस श्रृंखला के भाग - 1 पर आयी प्रतिक्रियाओं से यह स्पष्ट हुआ कि नयी पीढ़ी, छत्तीसगढ़ की प्रेरक-प्रतिभाओं के बारे में जानने के लिए कितनी उत्सुक रहती हैं। ऐसी ही प्रतिभाएँ नयी पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त करती हैं। अंचल की विरासत जितनी सम्पन्न होगी, उतनी ही संस्कृति की चित्रोत्पला, नयी फसल को पोषित करती रहेगी। मेरी पीढ़ी के मित्रों की प्रतिक्रियाएँ बता रही हैं कि स्मृति पटल पर सबकुछ वैसा का वैसा ही अभी भी अंकित है। चंदैनी गोंदा के विशाल मंच पर सजीव होती दुखित की जीवन-गाथा, उत्सवों में झूमता-गाता लोक-जीवन, बेलबेलहिन टूरी की पैरी की छन्नर-छन्नर, अकाल की विभीषिका से जूझती संभावनाएँ, शोषकों के चंगुल में छटपटाता हुआ छत्तीसगढ़, अपने स्वाभिमान को जगाता छत्तीसगढ़।  शैलजा ठाकुर के नाम के साथ ही "कारी" की स्मृतियों तरोताजा हो गईं। वक़्त के पर्दे के पीछे सबकुछ तो वैसा का वैसा ही अंकित है स्मृति-पटल पर।  


भाग - 2 में शैलजा ठाकुर जी की एक और प्रतिभा से आपका परिचय कराया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के पारम्परिक आभूषणों के प्रचार-प्रसार  लिए "छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला मॉडल" का श्रेय भी शैलजा ठाकुर के खाते में जाता है। उनके इस कार्य से छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषणों का प्रचार-प्रसार विश्व के अनेक देशों तक हुआ। भिलाई इस्पात संयंत्र के कैलेंडर में (अगस्त 1983) इन्हें स्थान मिला। भिलाई इस्पात संयंत्र की प्रदर्शनी में ये पारम्परिक आभूषण आकर्षण का केंद्र रहे। पत्रिका प्रकाशित हुई। सोवियत रूस तक गयी। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषणों की मॉडलिंग में शालीनता थी। बहुत से मित्र शैलजा जी की इस प्रतिभा से परिचित होंगे किन्तु नयी पीढ़ी की जानकारी के लिए इस परिचय को देना मुझे प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है। अभी यह श्रृंखला जारी रहेगी। (क्रमशः)


आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

दाऊ रामचन्द्र देशमुख के "चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका : शैलजा ठाकुर" (भाग - 1)


 

दाऊ रामचन्द्र देशमुख के "चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका : शैलजा ठाकुर"  (भाग - 1)


"शैलजा ठाकुर" सत्तर और अस्सी के दशक  का एक जाना पहचाना और चर्चित नाम है। वर्तमान समय की युवा पीढ़ी के लिए संभवतः यह नाम नया हो क्योंकि शैलजा ठाकुर में कभी भी आत्म-प्रशंसा के लिए अपनेआप को कभी भी प्रचारित नहीं किया। आज की पीढ़ी के लिए छत्तीसगढ़ी रंगमंच की श्रेष्ठ कलाकार, शैलजा ठाकुर का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहा हूँ। शैलजा ठाकुर का जन्म राजनाँदगाँव में हुआ था और उनका बचपन अंबिकापुर में बीता। वह बहुत छोटी थी फिर भी शैलजा ठाकुर के नृत्य के बिना अंबिकापुर में कोई भी सांस्कृतिक आयोजन सम्पन्न नहीं होता था।  उस दौर के सुप्रसिद्ध संगम आर्केस्ट्रा में उन्होंने अपनी मधुर आवाज आवाज का जादू बिखेरा था।


चंदैनी गोंदा के संस्थापक दाऊ रामचंद्र देशमुख जब प्रतिभावान कलाकारों की खोज में डोंगरगढ़ से लेकर रायगढ़ तक के चप्पे-चप्पे में उत्कृष्ट प्रतिभाओं की तलाश कर रहे थे, उस समय एक ही परिवार के दो अनमोल रत्न दाऊजी की नजर में आए। यह दो रत्न थे शैलजा ठाकुर और अनुराग ठाकुर। अनुराग ठाकुर चंदैनी गोंदा की प्रमुख गायिकाओं में से एक गायिका रही हैं। बखरी के तुमा नार,  हमका घेरी-बेरी देखे ओ बलमा पान ठेला वाला, पुन्नी के चंदा, संगी के मया जुलुम होगे आदि गीत आज भी आकाशवाणी और अन्य माध्यमों से सुने जाते हैं। चंदैनी गोंदा में पहले तो शैलजा ठाकुर कोरस की गायिका रहीं। तत्पश्चात उन्हें "गंगा" जैसे पात्र की भूमिका मिली। धीरे धीरे शैलजा ठाकुर चंदैनी गोंदा की मुख्य नृत्य निर्देशिका बन गयीं।


नृत्य निर्देशन के साथ ही चंदैनी गोंदा के ड्रेस-डिजाइनर का दायित्व भी उन्होंने सम्हाल लिया। छत्तीसगढ़ की महिला का प्रतीक परिधान - लाल पोलखा और हरी साड़ी, यह कॉम्बिनेशन शैलजा ठाकुर का ही दिया हुआ है।  इन्हीं बहुमुखी प्रतिभाओं के कारण दाऊ रामचंद देशमुख जी ने शैलजा ठाकुर को "कारी" की मुख्य नायिका बनाया था। "कारी" पर विस्तृत चर्चा अगले आलेख में की जाएगी। (क्रमशः)


आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

विपदा मा धीर कइसे धरन-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 विपदा मा धीर कइसे धरन-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                   जिनगानी म सुख अउ दुख लगे रहिथे, मनखे सुख म मतंग हो जथे त दुख म मायूस, फेर असल मनखे उही आय जेन ये दूनो समय अपन धीर ल नइ खोवन दय। आज बेरा आफत हे, कोरोना बइरी के कारण के  चारो मुड़ा त्राहिमाम होवत हे। मनखे रक्तबीज कस बाढ़त कोरोना ल सोच के ही घबरा जावत हे। चारो कोती ले सिरिफ मायूसी के खबर ही आवत हे, चाहे टीवी होय, मोबाइल होय, या फेर कोनो पेपर। कतको आफत भरे बेरा आय, सब धीर लगाके छँट जथे। रात होथे, त दिन घलो होथे, सरलग बादल गरजे न बरसे। अइसने धूप छाँव कस जिनगी घलो आय। मनखे ल सुख म जादा न मटमटाना चाही ,न दुख म घबराना। आज समय सबके परछो लेवत हे, मनखे के धीर ल टटोलत हे।

                    "भय नाम भूत" ये वाक्य ह पहली घलो शास्वत रिहिस हे अउ आजो घलो शास्वत हे। डर भय जीव के काल आय,  जतके जादा डर ततके जादा जर, मनखे ल धरथे। मन के हारे हार अउ मनके जीते जीत, इही  गूढ़ मन्त्र ले मनखे ल जीना चाही। मन ले मनखे ल मजबूत होना चाही। तभे तो कथे मन चंगा त कठौती म गंगा। आज जब कोरोना कोरोना सरी जगत म सुनावत हे त सबले पहली, जइसे भी हो सके एखर ले बचना चाही। जउन दिशा निर्देश जारी होय हे ओखर पालन करत, ये रोग कइसे म हमर तन म नइ हमाही एखर उपाय करना चाही। 

                 कोरोना ह मनखे के सामाजिक प्राणी होय के सूक्त वाक्य ल घलो तोड़ दिस, आज मनखे अपने म या फेर अकेल्ला रहे बर मजबूर होगे हे। फेर एखर ले का घबराना अकेला आये हन अउ अकेल्ला जाना घलो हे। समय जउन कहत हे तेला मानना जरूरी हे, जादा अर्दली पन बने नोहे। कोन काय करत हे तेला लेके माथा पच्ची करे ले बढ़िया हे, अपन आप ल सबले पहली बचा के रखन। 

                   कथे न धीर न खीर हे, वइसने आज धीर धरे के जरूरत हे, संगे सँग अपन जरूरत ल घलो सिरिफ जरूरत के पूर्ती करे के जरूरत हे। आफत के बेरा जेखर ठिहा म पाँव जमाये हे, ओखर सबे चीज ल उजाड़ देहे, ये सब ल देखत साव चेत होवत आन ल घलो साव  चेत करना चाही। अइसन बेरा म कखरो मदद हो सके त जरूर करना चाही, काबर की सबे मनखे के आर्थिक स्थिति  एक जइसे नइ हो सके, कतको बपुरा मन ल दू टेम के रोटी घलो नसीब नइ होवत हे। ये दुख के बदरी ल काटना हे, त मन ल मजबूत करत बिना घबराये, सहज लड़ना पड़ही। मन म पहली ले डर होय ले, बने काम घलो बिगड़ जथे, येखर सेती  ये कोरोना के डर ल मन ले निकाले बर पड़ही। अउ सबले जरूरी बात जेन भी खबर मनखे मन म डर भय पैदा करे ओखर ले बचना पड़ही। जइसे संगत के असर होना स्वाभाविक हे वइसने नकारात्मक समाचार घलो मनखे ल हतास कर देथे। अभो घलो चारो मुड़ा अइसने नकारात्मक खबर चलत हे, वइसे सच ल तो नइ तोपे जा सके फेर, कोनो अनहोनी ल तो रोके जा सकथे। कतको बिन सिर पैर के खबर, सोसल मीडिया म छाये हे, जे सिर्फ अउ सिर्फ भ्रम फैलाये के काम करत हे, ये सब ले हमला सावधान होय बर पड़ही। 

                   कभू कभू जिनगी म अइसन कोनो घटना घटथे, जेखर ले निपटे बर आँखी कान ल बन्द करे बर पड़ जथे, यदि अभो घलो आँखी अउ कान अइसन भ्रामक अउ हतास भरे खबर ले बचे तभो चलही, बसरते मन के आँखी खुले रहय। आफत के बेर म चीज बस के आस नही दृढ़

विश्वास काम आथे, आज घलो अइसने विश्वास रखे के जरूरत हे। डर भय तजके मन म धीर धरके ये आफत के बेरा ल घलो काट  सकथन। त आवन ये प्रण करन की कोरोना के बचाव के जमे बात ल मानत, जेन येखर शिकार हे उनका दिलासना देवन, अउ मन ल विचलित कर देवय,

अइसन कोनो भी समाचार ले खुद बचन अउ आन ल घलो बचावन।                


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

विपदा म धीर कइसे धरन- श्री सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"

 विपदा म धीर कइसे धरन- श्री सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"



विपदा जब जब आय हे ओहा जिनगी ल सताय हे अउ सताना ओखर कामेच ए। हॉंसत खेलत आघू बाढ़त रेंगत धॉंवत जिनगी ल भरऑंखी न देखे ए न देखे सकय ए विपदा ह, अब ल देख के तब ल पॉंव ल पीछु खींचेच के काम करे हे आज तक..रेंगत पॉंव के विरोध करे के कारण लगथे एहर विपदा नॉंव ल कमाय हे। 

बेरा के का हे? ओला तो सुट ले बुलकनेच हे, दिन अउ रात ओसरी पारी होनेच हे,फेर हॉं इही दिन अउ रात के बीच म रोवत हॉंसत धन दोगानी के चिंता अउ चिंतन करत खटत रहिथे मनखे के जीवट जिनगानी धरे ऑंखी अउ अंतस म पानी। 

                     सुख के बेरा ह कउखन सुट ले नाहक जथे पते नइ चलय फेर दुख अउ विपदा के बेरा ह मानो मंझोत म खड़े खड़े पाहरा देवत रहिथे, परछो तो लेबे करथे परीक्षा घलो लेवत रहिथे, पल पल परसानी आनी बानी कई परोसा, जोमिया के बइठ जथे टरबे नइ करय.. अजीरन हो जथे पहार हो जथे पहाबे नइ करय। अउ तब मनखे के चतुर्री चक्कर खा जथे जॉंगर थके ल धर लेथे, बुद्धि के शुद्धि होय ल धर लेथे बुद्धि बड़बड़ाय लगथे, बिश्वास डगमग डगमग डोले लगथे मनखे थथमथा जथे, चेत कउवाय अउ मति भकुवाय ल धर लेथे धड़कन के धकधकी घलो बाढ़ जथे।  इही ओ खास समे होथे जे समय म हमला सुरता करना चाही अपन पुरखा मनके अपन महापुरुष मनके अउ उॅंखर जिनगी के अनुभव के जे हमर बीच मुहावरा हाना लोकोक्ति कहावत कथा कहानी कविता सिखौनी आदि के रूप म हमर बीच उपस्थित हे। सैंकड़ों विपदा ले लड़त भिड़त जीतत वर्तमान के दुवारी म उन हमला ला के छोड़े हें, अब पारी हमार हे मुड़ी म घर परिवार के भार हे संकट अपार हे कमी कमजोरी भले हजार हे पर घबराय के काम नइहे हमरो मेर उही संस्कार हे, उत्तम व्यवहार हे अउ सबले बड़े हमर साथ हमर सरकार हे।

              विपदा ले का डर्राना अउ का थर्राना, ओखर ले जुझना तो हेच अउ जीतना घलो हे, अपन पुरखा मनले प्रेरणा लेवन अपन बुद्धि विवेक ज्ञान ध्यान विज्ञान के प्रयोग करन, गुणी ज्ञानी जानकार मनके सलाह सुझाव सावधानी ल मानन धरन अउ धीरज से काम लेवन, विपदा आय हे त विपदा जाही घलो। सियान मन कहे हें.. जिनगी म सुख होवय के दुख जीत होवय के हार दुलार होवय के दुत्कार संबंध होवय के तकरार पहुनाई होवय के लड़ाई, बेरा चाहे अनुकूल होय चाहे प्रतिकूल कुछू होय मनखे ल अपन धीरज ल बना के रखना चाही। सियान मनके अनमोल उपयोगी सियानी सीख जिनगी के करू मीठ अनुभव के ऑंच म तपे तरासे जॉंचे परखे खरा खरा नवा पीढ़ी ल मिले हे, जेहा हरहाल म जीत देवाके रइही। विपदा आजे आय हे अइसे बात नइहे विपदा पहिली घलो कइठन आय हे अउ ओ विपदा के आघू हमर पुरखा मन के धीरज हिम्मत साहस सूझ-बूझ अनुशासन बोली बानी दवई-पानी मन बड़ सरतियन काम करिन। ओखरे परिणाम आय आज हम वर्तमान समय के संग खॉंध जोरे खड़े हन...। का होगे? आज सामने विपदा खड़े हे, लागत घलो हे कि बहुत बड़े हे फेर तनिक सोचन तनिक ध्यान देवन.. आज हम अपन पुरखा मनले जादा सशक्त हन जादा समृद्ध हन जादा सुविधा-संपन्न हन आज हमर पास पैसा के आघू कइठन पराभिट अउ सरकारी अस्पताल हे पहिली ले ठीक-ठाक हमर मनके हाल हे, जघा जघा मेडिकल हे दवाई हे अलग अलग कमरा अलग चारपाई हे, नून हे तेल हे चाउर हे दार हे गोहार सुने बर मीडिया अउ सरकार हे..अतकेच नहीं बल्कि अउ कइठन आधार हे, बस हमला धीरज राखना हे। 

              कोरोना रूपी विपदा ले दुरिहा रहे के जम्मो बताय गे जरूरी निर्देश के कटाकट पालन करना हे, खासकर मास्क हर मुंह बर हे जरूरी अउ मनखे ले मनखे के बीच दो गज के दूरी बना के रखना हे, हाथ ला साबुन अउ साफ पानी ले खेवन खेवन धोना हे, ये नइ कहना हे के अभी तो जेवन नइ करत हॅंव राहन दे बाद म धो लेहूं। बाहिर ले आय के बाद हाथ गोड़ धो के ही घर भीतर जाना हे चप्पल जूता ल बाहिरे उतारना वइसे भी ए जम्मो आदत हमर संस्कारे म हे।अपन पढ़ाई लिखाई शिक्षा दीक्षा के सदुपयोग करना हे कोरोना ले जुड़े अनगिनत भ्रामक अफवाह मनके मुरुवा ल पकड़ के रोकना हे। जागरुकता के जड़ी जनता ल स्वादानुसार पियाना हे। हिम्मत साहस विश्वास अउ सॉंस बढ़ाय वाले गोठ बात ल बउरना हे अउ सुख के दिन ल सॅंउरना हे, तहां फेर का...उही सुख के दिन बादर होही उही बुता-काम अउ उही जॉंगर होही। 



-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम(छ.ग.)

विपदा म धीर कइसे धरन*

 *विपदा म धीर कइसे धरन*


धीरज धर्म मित्र अरु नारी।आपद काल परिखिअहिं चारी।।

       ये अर्धाली म गोस्वामी तुलसीदास जी ह मनखे बर जिनगी के बहुतेच सार बात कहें हें। उनकर कहना हे कि  धीरज (धैर्य), धर्म(मानवता--दया, क्षमा, सत्य, अहिंसा, अस्तेय आदि),   मित्र अउ नारी (जीवन संगिनी) के परख  मतलब असली पहिचान विपत्ति के समे होथे। ये चारों म पहिली क्रम म *धीरज* ल रखे गे हे काबर के  धीरज के बगैर बाँकी मन के सहीं परख नइ हो सकय।

   ये ह कतका सिरतोन अउ सार बात आय।भगवान राम अउ कृष्ण, भगवान गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी,  ईसा मसीह, मोहमम्द पैगम्बर , गुरु नानकदेव ,संत कबीर दास,गुरु बाबा घासीदास, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी ले लेके संसार के अइसे कोनो ज्ञानी, ध्यानी नइ होहीं जेन मन संकट के समय धीरज धरे ल नइ कहे होहीं। 

    समझे के बात ये हे के धीरज आय का? धीरज के मतलब होथे कोनो दुख ल, विपरीत परिस्थिति ल सहन कर लेना। सहन करना तको दू तरह के हो सकथे----एक तो सचेत होके, ये विश्वास म के आज नहीं ते काल दुख के बदली छँट जही अउ सुख के सुरुज के दर्शन होके  रइही, तूफान ल देख के मन के चिरइया जेन अपन डेना-पाँखी ल सकेल के खोंधरा म कँपसे खुसरे हे वो ह एक दिन जरूर चहचहावत ,आजादी ले उड़ पाही। एही ह असली धीरज आय।

       आदमी ह कई पइत शांत दिखथे, अइसे लागथे के के ये ह संकट के समें एकदम धीरज धर लेहे।एमा अबड़ेच सहनशक्ति हे फेर होय उल्टा रहिथे। वोह विपत्ति ल देख के अधीर होके निराशा के सागर म डूबगे रहिथे। जियें के आशा ल छोड़के अपन आप ल परिस्थिति के हवाले कर देथे अउ जिंदा मनखे मुर्दा बरोबर हो जथे। मुर्दा ह शांत, धीर गंभीर तो दिखबे करही । अइसन नकली धीरज ह म खुद अउ समाज बर बड़ घातक होथे।

     हाँ, एक बात जरूर हे कि विपत्ति म धीरज धरना चाही, ये बात कहे म जतका सरल लागथे ,करे म वो ह ओतके कठिन हे। विपत्ति के समे ,खासकर अपन प्रिय जन ल खोये म, ओकर ले बिछुड़े म बड़े -बड़े साहसी अउ विचारवान मन के धीरज जवाब दे देथे। फेर इही समे म कोनो भी चिटिकुन ठहर के , सोंच विचार के , ईष्ट मित्र, बड़े-बुजुर्ग परिवार जन, सद साहित्य के  सांत्वना म धीरज धर लेथे त वो ह ये दुख ले उबर जथे।

          विपत्ति के समे धीरज रखे बर सबसे पहिली बात तो दुख ल सहे ल परथे। जेन दुख ल सहि लेथे उही धीरज धर सकथे ,नहीं ते संभव नइये।दूसर बात वो परम कृपालु ,परम सत्ता जेला प्रकृति, ईश्वर आदि अनेक नाम ले पुकारे जाथे उपर दृढ़ विश्वास होना चाही के वो ये विपत्ति ल टार के रइही। विश्वासं फलदायकं कहे गे हे। जेन चीज म हमर बस नइ चलय वोला बिना विचलित होय स्वीकार कर लेना तको धीरज के निशानी आय। धीरज ह जिनगी के सुरक्षा कवच आय। सफलता बर धीरज तो चाहीच फेर असफलता, दुख, निराशा, विपत्ति के समे  वोकरो ले जादा धीर रखना चाही।

      हम सबला कोरोना महा संकट के विपरीत समे म धीरज रखना बहुत जरूरी हे।जेन सइही, तेन रइही। धीरज के महिमा अपरम्पार हे। मनखे बर ये ह दैवीय गुण ये। येकर लाभ असिमित हे। प्रातः स्मरणीय संत कबीर दास जी कहिथें---

कबीरा धीरज के धरे,हाथी मन भर खाय।

टूक एक  के कारने, स्वान घरै घर जाय।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

विपदा म धीर कइसे धरन*- पोखन लाल जायसवाल

 *विपदा म धीर कइसे धरन*- पोखन लाल जायसवाल


       जिनगी म ऊँच-नीच तो सदा दिन लगे रहिथे। सुख के चाह म जिनगी ह समे के अँगना म घाम-छाँव के खेल खेलत रहिथे। कोनो ह काकरो ऊपर बीस परथे। अउ एक छिन म हाथ के रेती बरोबर सलंग जथे। बाम्बी मछली सही बिछलके भाग जथे। अइसन म जिनगी ले कोनो ल कभू कोनो किसम के रिस नइ रहय। तव मनखे मन भर मन लगा के अपन-अपन बूता काम म भुलाय रहिथे। मन मुताबिक आवा-जाही करत सामाजिक जिनगी जीयत रहिथें। छोटे मुटे दुख-पीरा ल अइसनहे भुला के जिनगी आनंद खुशी ले बितात आगू बढ़थे। फेर कभू-कभू अइसे घलव होथे कि ओसरी-पारी जिनगी म दुख ऊपर दुख आतेच रहिथे। बने जात के एक ठन घाव भराय नइ राहय अउ समे हर हमर ले मजाक कर जाथे। हमर मुड़ी म बड़का बोजहा पटक देथे। हम कुछु कर नइ पावन। हाथ धरे बइठे भर रही जथन। समे निर्दयी बने हमर परछो लेथे कि का? उही जाने अउ ऊपर वाला जानँय। 

         कहे जाथे विपदा कभू बता के नइ आवय।  विपदा के घड़ी कतको आइस अउ चल घलो दिस। वो विपदा चाहे बौराय नदी मन के पूरा होवय, बरफ के चट्टान धसके के बात होवय, सुनामी के बात होवय, चाहे अउ कोनो किसम के होवय। सब ल पार पाएँन। सब ले उबर गेंन। विपदा जब कभू आथे, बड़ोरा कस आथे, अउ बहुत अकन हमर ले छीन के अपन संग लपेट के ले जथे। गँवाय जिनिस के सोग करे म काम नइ चलय। सोग करे बइठ ले बेरा ढरकथे, जिनिस वापिस नइ आय। गँवाय के डर अउ सोग करे म मन कमजोर होथे। अइसन म मन धीर नइ बाँध पावय। विपदा ले उबरे बर धीर धरना जरूरी हवय। मन के डर ल विश्वास के खुँटी म टाँगे ल परही। वो विश्वास जेकर ले हम विपदा ले पार पाय के हिम्मत पावन। ए विश्वास ले हम ल पाछू के विपदा मन ले निपटे के उदीम ले लेना हे। अउ वो विश्वास के नाँव हे विज्ञान। विज्ञान तब ओतका तरक्की नइ करे रहिस जतका आज कर ले हे। कतको आपदा मन के वैज्ञानिक मन कोति ले मिले चेतवना अउ भविष्यवाणी ले अब होवइया नकसान ल कम करे जा चुके हे। 

          ए दरी के आपदा ह जीपरहा कस रमड़ियाके बइठ गेहे। जना मना मनखे ले कोनो बदला ले हे बर खोभ खाय हे। अइसन घलव नइ हे कि एकर ले निपटना मुश्किल हे। आन आपदा मन ले एहर थोरिक दूसरा भले हे। दुख पीरा बाँटे बर तिर म बइठन नइ देत हे। मनखे ल मनखे ले दूर कर दे हे। फेर हारे के बात नइ हे। वैज्ञानिक अउ डॉक्टर मन जउन उपाय बताय हवय तेकर पालन जरूरी हे, एकरे ले मनखे के कल्याण हे। धीर म खीर हे, सियान मन के कहना आय। हम ल बिपत के ए घड़ी के बिलमे के अगोरा घर म बइठ के करना चाही। जब एला कोनो आश्रय नइ मिलही, खुदे मिट जही।

   ए बखत कोनो भ्रम म पड़के अकड़ दिखाय के बखत नइ हे। अकड़ सदा दिन काम नी आय। अभियो ए बात के सुरता रखे के बेरा ए। घर म बइठ के हरि भजन म धियान लगान। मन ल शांति मिलही अउ मन म धीरज आही। मन जभे दुख पीरा ल धरे बइठे रहिथे, तभे भटकथे। कोनो मेर थाह नइ पाय। भटकत मन न शांति पावय, न धीर धरय। मन हार जथे। हारे मन म धीर बर जगहा नइ बाँचय। 

         ए विपदा म कतको झन, मन ले हार के जिनगी ल हार जवत हें। हम सब ल सुरता रखना चाही कि कोनो विपदा के घड़ी बड़ लाम नइ रेहे हे, त एकर कइसे हो सकिही। यहू जल्दी सिराही। बस अतका धीर धरे के जरूरत हे कि हम अपन हिम्मत ले अपन अउ अपन परिजन के हिम्मत बढ़ा सकन अउ विपदा ले मिले दुख सहे बर धीरज बँधा सकन।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार छग.

पृथ्वी दिवस- सरला शर्मा

 पृथ्वी दिवस- सरला शर्मा

      अमेरिकन सीनेटर गेलार्ड नेल्सन के विचार ल मान के 22 अप्रेल 1970 ले दुनिया के 195 देश मं विश्व पृथ्वी दिवस मनाए के सुरुआत होइस । हर साल एक नवा उद्देश्य रहिथे त ए साल  के विषय या कहिन उद्देश्य हे पृथ्वी के पुनर्स्थापना । 

गुने बर पर गिस ए उद्देश्य काबर ? एकर बर --के पृथ्वी मं प्रदूषण , प्राकृतिक संसाधन के उत्ता धुर्रा दोहन , जनसंख्या विस्फोट , ओजोन परत के बढ़त छेद , बरसात के कमी अउ जंगल के पेड़ मन के अंधाधुंध कटाई के संसो हर आय । वाजिब संसो आय एकर उपर विचार जरूरी हो गए हे । 

  हमर भारतीय संस्कृति मं पृथ्वी ल माता , महतारी के दर्जा मिले हे काबर के इही हर मनसे-  तनसे , रूख-  राई , जीव - जंतु ,चिरई - चुरगुन सबो के पालन पोषण करथे । सौर मंडल मं नौ ठन ग्रह माने गए हे फेर पृथ्वी ग्रह ल ही माता कहे गए हे , ऋषि कहिथें " पुत्रोSहम् माता पृथिव्या: " माने मैं बेटा अवं पृथ्वी माता आय । 

    संसार के आपद बिपत टारे के बिनती करत , सुख शांति के बिनती करत यजुर्वेद के ऋषि एक ऋचा मं लिखे हंवय ....

" ॐ द्यौ शांतिः , अंतरिक्ष शांतिः , 

 पृथिवी शान्तिरापः , शान्तिरोषधयः शांति 

 - - - - - - - - - - - 

 सर्वे शांतिः , शान्तिरेव शांतिः ..। " 

     ध्यान देहे लाइक बात एहर आय के आकाश , अंतरिक्ष , पृथ्वी , जड़ी बूटी ( औषधि ) सबो के शांति बर बिनती करे गए हे काबर के ये सब शांत रहिही तभे मनसे सुख सनात से जिनगी काटे सकही । पृथ्वी जेला हमन धरती , भूमि , भुंइया घलाय तो कहिथन । इही भुंइया मं मनसे जनम लेथे , जनम भर खेलत -कूदत , कमावत-  खात  जिनगी पहाथे फेर सांस सिराथे त इही हर तो मरण भूमि बनथे , माटी के चोला माटी मं मिल जाथे । 

सरग नरक ल तो कोनो देखे नइये ... मनसे जब सुख शांति पाथे त इही हर सरग बन जाथे , दुख बिपत परथे त नरक बन जाथे । अपन धरती के बड़ मया , जन्मभूमि कहिथन ..तभे तो वाल्मीकि रामायण मं राम कहिथें " जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी "  । 

अइसन सरग ले सुंदर , सरग ले जादा गरियस पृथ्वी के  विकास के नांव मं हमन, वैज्ञानिक उन्नति के बहाना मं कोन दसा कर डारेन चिटिकन गुने बर ही ऐसों के पृथ्वी दिवस हर कहत हे । 

सिरतो के जंगल ल काटत जावत हन अउ डामर के पक्की सड़क , सिरमिट कुधरा , लोहा लाखड़ के दस मंजिला , बीस मंजिला बिल्डिंग बनावत हन । हर अंगना मं बोरिंग खन के धरती के छाती मं छत्तीस छेदा करत हन त भूमिजल ल बोहावत हन । हजारों साल मं बने पहाड़ ल खन देवत हन , बड़े बड़े रूख राई मन ल काटत जावत हन त बादर बरसा कइसे करही ? नदिया नरवा  सुछंद बोहाये नइ सकत हें जघा जघा बांध बना देवत हन । 

   धरती माता के खनिज भंडार ल खन खन के खाली करत हन ..ओला पाटही कोन ? कल कारखाना के बढ़ोतरी तो होवत हे फेर ओकर चौहद्दी मं खेत खार तो नंदावत जावत हे । प्रदूषण बढ़त जात हे । अंतरिक्ष डहर ध्यान देई त पाबो के पृथ्वी ल सौर मंडल मं सुरक्षित रखइया ओजोन के घेरा के छेदा हर बढ़त जात हे जेकर सेती सुरुज के पराबैगनी किरण मन पृथ्वी के रहइया सबो जीवधारी मन ल बीमार करत हें , गर्मी बढ़त हे , बरसा कमत जात हे । 

  एक ठन अउ नुकसान डहर ध्यान देहे बर परही के संसार भर के मनसे रसायनिक खातू के उपयोग करत हें , कीट नाशक दवाई के घेरी बेरी छिड़काव करत हें जेकर से धरती बंजर होवत जात हे । सबले बड़े अउ जरूरी बात के जनसंख्या सनसनावत बढ़त हे त आम आदमी के औसत उमर घलाय तो बढ़ गए हे , धरती माता उपर मनसे के बोझा बढ़त जात हे । 

जेन पृथ्वी मं जनमे बर देवता मन तरसथें , मनसे तन धर के जनमथें तेकर हमीं मनसे मन का हाल कर डारे हन ? अभियो ध्यान नइ देबो त अवइया पचास साल मं पृथ्वी के का हाल होही ..सोचे ले झुरझुरी धर लेथे । इही सब ल गुन के सन 2021 के पृथ्वी दिवस के विशेष महत्व हे । मनसे तो आने जीव मन ले बुधियार माने जाथे न ?त मोर बुधियार पृथ्वीवासी भाई बहिनी मन पृथ्वी रसातल मं समा जाही तेकर पहिली सावचेत हो जावव । 

  सरला शर्मा

पृथ्वी दिवस-चित्रा श्रीवास*

 *पृथ्वी दिवस-चित्रा श्रीवास*

 

*समुद्र वसने देवी पर्वत स्तनमंडले।

विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादः स्पर्श क्षमस्वमे।


संस्कृत के ये श्लोक के अर्थ होथे समुद्र रूपी ओनहा ला पहिरइया,पहाड़ ला धारण करइया,जेहा संसार के पोषण करत हे,विष्णु के पत्नी हे देवी मै अपन पाँव ले तोला छुवत हवँ तेकर बर मोला माफी देबे।


    रोज बिहनिया भुइयाँ मा पाँव रखे ले पहिली ये मंत्र ला हमन पढ़िथन अउ भुइयाँ ला प्रणाम करके अपन पाँव ला भुइयाँ मा रखथन। हमर संस्कृति मा भुइयाँ,तलाव- नदियाँ, रुख-राई,पहाड़, जीव-जंतु ला देवी देवता माने गिस अउ ओखर संरक्षण के बात कहे गिस।   


     लेकिन विकास के संगे संग मनखे अपन संस्कृति ले दूर होवत गिस ।अंधरा कस विकास के पीछू भागत मनखे जंगल ला काट डारिस,नदियाँ, नरवा तरिया ला पाट दिहिस अउ सीमेंट के जंगल उगा डारिस ,खेती के भुइयाँ बड़े बड़े माल मा बदल गिस ,कारखाना धुआँ उगले लगिस।। प्रकृति के कोनो प्रकार के विनाश करे बर मनखे नइ छोड़िस।जेखर परिणाम मा प्रकृति के रौद्र रूप हा दिखे लगिस।ओजोन परत जेहा सूरज के पराबैंगनी किरण  ले हमर रक्षा  करथे मा छेद हो गिस।जंगल कटाई अउ ग्रीन हाउस गैस के लगातार उत्सर्जन ले भुइयाँ के ताप बाढ़े लगिस जेला ग्लोबल वार्मिग नाम देहे गिस।ग्लोबल वार्मिग के कारण अगर अइसने भुइयाँ के ताप बाढ़त जाहि तब उत्तरी अउ दक्षिणी ध्रुव जिहा बारहों महिना बरफ जमें रहिथे तेखर अउ पहाड़ के ग्लेशियर मन के पिघले के चिंता सताय लगिस।काबर इँखर पिघले ले पूरा भुइयाँ हर जल मा समाहित हो जाही। अब मनखे हा पर्यावरण के बारे मा सोचे लगिस। भुइयाँ ला बचाये के उदिम करे लगिस इही कड़ी मा 1970  ले पूरा विश्व मा 22 अप्रैल के पृथ्वी दिवस मनाये के परंपरा चले आवत हे। 1972 के स्टाकहोम सम्मेलन, 1992 के रियो पृथ्वी सम्मेलन,2002 के जोहान्सबर्ग पृथ्वी सम्मेलन अउ 2016 के पेरिस सम्मेलन मा विश्व स्तर मा  पृथ्वी ला बचाये के उदिम करे के बात कहे गिस ।ये बछर के पृथ्वी दिवस के थीम हवे-हमारी पृथ्वी  को पुनर्स्थापित करें। अब सोचे के बात ये हवे कि साल भर मा एक दिन दिवस मनाय ले या फेर सम्मेलन करे ले का होही।भुइयाँ ला बचाय बर जनजागरूकता जरूरी हे ,मनखे अपन स्वार्थ ला छोड़य,बड़े-बड़े देश मन कार्बन उत्सर्जन ला कम करंय तभे तो ये दिवस मनाये के सार्थकता हे।तभे  हम नवा पीढ़ी सप्फा भुइयाँ दे पाबोन।अभी घलो समय हे चेत जावन अउ भुइयाँ ला बचा लेवन नही त अवइया पीढ़ी हमला कभू माफ नइ करही।



चित्रा श्रीवास

बिलासपुर 

छत्तीसगढ़

सुरता// काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू अउ मानक रेखाचित्र


 

सुरता//

काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू अउ मानक रेखाचित्र

   बात सन् 2010 के आय तब मैं सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ के साप्ताहिक पत्रिका 'इतवारी अखबार' के संपादन कारज ल देखत रेहेंव. एमा हर हफ्ता छत्तीसगढ़ी म एक कालम "गुड़ी के गोठ" घलो लिखत रेहेंव. एकर खातिर हर हफ्ता नवा-नवा विषय खोजे बर लागय. इही उदिम म मोला छत्तीसगढ़ी व्याकरण के प्रथम लेखक हीरालाल चंद्रनाहू "काव्योपाध्याय" जी ले संबंधित लेख पढ़े बर मिलिस. वइसे तो उंकर संबंध म पहिली घलो कतकों बेर पढ़ डारे रेहेंव. फेर वो दिन लेख ल पढ़त खानी  मन म बिचार आइस, के ए बछर ह तो छत्तीसगढ़ी व्याकरण लिखे के 125 वां बछर आय. वोमन एकर लेखन कारज ल तो 1885 म ही पूरा कर डारे रिहिन हें, भले वोकर प्रकाशित रूप ह सन् 1990 म सर जार्ज ग्रियर्सन के द्वारा छत्तीसगढ़ी अउ अंगरेजी म शमिलहा रूप म आइस. फेर लेखन के बछर तो 1885 ही माने जाही. माने ए सन् 2010 बछर ह एकर लेखन के 125 वां बछर आय.

   मोला अच्छा विषय मिल गे रिहिसे. तब लिखेंव-  "छत्तीसगढ़ी व्याकरण के 125 बछर" ए लेख ल लोगन गजब संहराइन. लेख छपे के कुछ दिन बाद संस्कृति विभाग गेंव. उहाँ उप-संचालक राहुल सिंह जी संग बइठे गोठबात चलत रिहिसे, तभे ए लेख ऊपर घलो चर्चा होइस. त उन कहिन- "सुशील भाई एकर ऊपर कुछु कार्यक्रम करव न, हमन संस्कृति विभाग डहार ले सहयोग करबोन. हड़बड़ी नइए. साल भर के भीतर कभू भी करे जा सकथे."

  मोला जानकारी रिहिसे के अइसन किसम के शासकीय सहयोग ह पंजीकृत संस्था के माध्यम ले ही मिल पाथे. फेर मैं तो कभू समिति के झंझट म परत नइ रेहेंव. उहि बीच एक दिन  प्रेस म बइठे रेहेंव, त साहित्यकार डा. रामकुमार बेहार जी मोर संग भेंट करे बर आइन. गोठे-गोठ म संस्कृति विभाग के नियम के बात निकलगे, त उन कहिन- सुशील भाई मोर समिति हे न पंजीकृत "छत्तीसगढ़ शोध संस्थान" चल वोकरे बेनर म ए महत्वपूर्ण आयोजन ल कर लेथन.

   छत्तीसगढ़ी व्याकरण के 125 वां बछर होए के सेती मैं चाहत रेहेंव के कार्यक्रम ह गरिमापूर्ण होना चाही. संग म जेकर मन के छत्तीसगढ़ी व्याकरण अउ भाखा खातिर योगदान हे, उंकर मन के सम्मान घलो होना चाही. रायपुर के मोती बाग वाले प्रेस क्लब के ऊपर वाले बड़े हाल म ए जोखा ल पूरा करेन.

   कार्यक्रम तो बहुत गरिमापूर्ण होइस, जइसे सोचे रेहेन तइसे. फेर एक चीज मोर मन म घेरी-भेरी खटकय. वो ए के हमन ल काव्योपाध्याय जी के फोटो नइ मिल पाइस. अबड़ खोजे के उदिम करेन. साहित्यकार, पत्रकार, इतिहासकार, समाजसेवी चारोंमुड़ा ले आरो लेवन फेर बात नइ बनिस.

  इही बीच इतिहासकार डा. रमेन्द्रनाथ मिश्र जी संग घलो चर्चा होइस, त उन सुझाव दिन-  "तुमन चाहौ त एकर एक  मानक रेखाचित्र बनवा सकत हव. फेर एकर बर मेहनत थोकन बनेच करे बर लागही". तब मैं गुनेंव के ए तो एक झन के बुता नोहय. एकर बर एक पूरा टीम होना चाही, जेन ह चारों मुड़ा जा-जा के संबंधित लोगन मन ले आरो लेवय, पूछय सरेखय.

    रायपुर के टिकरापारा म साहू समाज के एक ठन  छात्रावास हे, उहाँ एक दुकान हे. बसंत फोटो स्टूडियो तिहां हमर ए क्षेत्र के जम्मो साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार अउ एकर प्रेमी मन इहाँ बइठन. एक प्रकार ले ए ह हमर मन के ठीहा रिहिसे. मेल-भेंट करे के जगा.  इहें एक दिन चंद्रशेखर चकोर, जयंत साहू, गुलाल वर्मा, शिवराम चंद्राकर, गोविन्द धनगर, शीतल शर्मा आदि आदि हम सब  बइठे राहन. त हीरालाल जी के मानक रेखाचित्र के चर्चा चलिस. सबो झन मिलके सुनता करेन, चलव एक ठन समिति बनाथन अउ एकरे बेनर म सबो उदिम ल करबोन. 

    तहांले हमन "नव उजियारा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति"  के नांव म एक ठन समिति के पंजीयन करवा डारेन. अउ निर्णय लेन के काव्योपाध्याय जी के मानक रेखाचित्र तो बनाबेच करबोन संग म हर बछर उंकर सुरता  म एक बड़का आयोजन घलोक करे करबोन.

    अब सबले पहिली मानक रेखाचित्र खातिर भीड़ेन. इतिहासकार डा. रमेन्द्रनाथ मिश्र जी के ए कारज म अच्छा सहयोग मिलिस. उंकर कहे म काव्योपाध्याय जी के परिवार वाले मन के रूप-रंग अउ कद-काठी ल देख के उंकरे सहीं आकार दिए के बात तय होइस. संग म इहू बात आइस के उंकर एक हाथ म छत्तीसगढ़ी व्याकरण के किताब दिखत राहय, अउ एक हाथ म काव्योपाध्याय के जेन उपाधि मिले रिहिसे तेकर चिनहा प्रदर्शित होवय. पहिरावा-ओढ़ावा घलो वोकरे मुताबिक राहय. 

   ए बुता खातिर हमर समिति के समर्पित सदस्य अउ साहित्यकार गोविन्द धनगर के सुपुत्र भोजराज धनगर ल जोंगेन. भोजराज इहाँ के प्रसिद्ध चित्रकार आय. खैरागढ़ विश्वविद्यालय ले सीखे-पढ़े हे. इहाँ के कतकों पत्र-पत्रिका अउ आने-आने व्यावसायिक बुता खातिर चित्र बनाते रहिथे. हमर मन के कहे अनुसार वो मानक रेखाचित्र बनावय, तहां ले फेर वोमा कुछु संशोधन होवय. अइसे-तइसे करत चार-छै महीना बुलकगे. भोजराज ल जे बार जइसे काहन ते बार वइसने करय. आखिर म वर्तमान म प्रचलित चित्र ह सबो झन ला पसंद आइस, त फेर इही ल मानक रेखाचित्र के रूप म प्रचार करे के निर्णय लेन.

    समिति म इहू बात आइस, के मानक रेखाचित्र के इहाँ के संस्कृति मंत्री के हाथ ले विधिवत विमोचन करवाना चाही, तेमा एला शासकीय स्वीकृति घलो मिल जाय. वो बखत इहाँ के संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जी रहिन. उंकर ले विमोचन खातिर दिन- बेरा के जोंग तय करेन. निश्चित बेरा 5अगस्त 2011 के सबो झन निर्धारित जगा संस्कृति मंत्री के निवास कार्यालय पहुंच गेन (विमोचन के संलग्न चित्र म डेरी डहर ले बृजमोहन अग्रवाल, डा. रमेन्द्रनाथ मिश्रा, दिलिप सिंह होरा, शकुंतला तरार, गोविन्द धनगर,  शिवराम चंद्राकर, सुशील भोले, चंद्रशेखर चकोर, अउ जयंत साहू आदि) तहाँ ले विमोचन के कारज ह पूरा होइस. 

   ए ह खुशी के बात आय के हमन काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी के जेन मानक रेखाचित्र बनाए के कारज करेन, उही ल आज  सामाजिक, साहित्यिक, शासकीय अशासकीय सबो जगा वोकरे उपयोग करे जावत हे.

  अइसने किसम के उंकर स्मरण दिवस के निर्धारण घलोक होइस. काव्योपाध्याय जी के जनम अउ पुण्यतिथि के जानकारी अबड़ उदिम करे म घलो नइ मिलिस. एक सलाह अइसनो आइस के वोमन धमतरी पालिका के अध्यक्ष रेहे हावंय, त उहों पता करे जाय, शायद कुछ रिकार्ड होही. फेर अबिरथा. आखिर तय होइस के वोमन ल काव्योपाध्याय के जेन उपाधि मिले हे 11 सितम्बर 1984 के वो  तिथि ह तो प्रमाणित हे. त सबले अच्छा हे, के इही ल उंकर स्मरण तिथि या सुरता के रूप म मनाए जाय. हमन डा. सत्यभामा आड़िल, सुधा वर्मा के संगे-संग अउ कतकों साहित्यकार अउ इतिहासकार मन ले ए विषय म चर्चा करेन. सब के इही कहना रिहिसे के कोई भी काल्पनिक तिथि जोंगे के बदला प्रमाणित तिथि ल ही उंकर सुरता के रूप म निश्चित करे जाय.

  काव्योपाध्याय जी के नांव के संबंध म घलो चर्चा होवय. काबर ते अभी उंकर नांव "हीरालाल काव्योपाध्याय" के रूप म प्रचलित हे. ए ह तकनीकी रूप म सही नइए. काबर के काव्योपाध्याय ह उंकर उपाधि आय, सरनेम नहीं. नाम के पाछू म सरनेम ल लिखे जाथे, या उपनाम ल. उपाधि ल नहीं. उपाधि ल तो नाम के आगू म लिखे जाथे. जइसे- कोनो ल भारतरत्न मिले रहिथे, त भारतरत्न फलाना, पद्मभूषण फलाना या पद्मश्री फलाना आदि लिखे के परंपरा हे. त फेर वइसने हीरालाल जी के नाम ल घलो लिखे जाना चाही - "काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू".

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

पृथ्वी दिवस* पोखन लाल जायसवाल


 *पृथ्वी दिवस*

          पोखन लाल जायसवाल


        आजकाल दिवस मनाय के चलन बाढ़ते जावत हे। साल म हर दिन कोनो-न-कोनो दिवस परीच जथे। कभू-कभू एके दिन दिवस मन संघर जथे। साल-के-साल दू-चार ठन नवा दिवस जुड़ घलो जथे। कतेक ल सुरता रखे सकबे, तइसे हो जथे। फेर अब तो एके ठन बात समझ म आय धर लेहे कि बहुत अकन दिवस मनाय के पाछू जागरूकता अउ जनचेतना मूल आय। कोनो सामाजिक संगठन, वैश्विक संगठन अउ सरकार कोति ले कोनो गहिर चिंता जाहिर करे म दिवस मनाय के घोषणा होथे। मनखे विकास के सीढ़ी चढ़त-चढ़ कति जाना चाहत हे, तउन समझ नइ आवय। प्रकृति म उपस्थित संसाधन मन के अंधाधुंध दोहन...नइ.. शोषण ले पर्यावरण असंतुलन दिनोंदिन गड़बड़ातेच जात हे। जलवायु परिवर्तन ले अनुमान लगाय जा सकथे। चउमास म होवइया औसत बरसा बहुतेच घटगे हवय। अभी के नवा पीढ़ी झड़ी पूछे म अगल-बगल झाँके धर लिही। चउमास भर के बरसा एके दिन म बरस जथे। तहां खेत अगास ल ताकत रही जथे। ग्लोबल वार्मिंग ले हवा बारो महीना गरम जनाथे। कब चउमास आइस-गिस? अउ ठंड कब आ के विदा घलो होगिस? कहे बानी लगथे। दुनिया के जम्मो देश विकसित देश बने के चाह रखथे। सबो ल आँखीं दिखा सकय सोचथे। अपन विकास बर जेन करथे, तेन सही ए अउ दूसर उही जिनीस ल करही त ऊँगली उठाही। तरा-तरा के तर्क ले बाधा उत्पन्न करे के कोशिश करही। पँचयती घलो करा डरथे। हर देश दुश्मन देश ल डरवाय बर परमाणु परीक्षण करते रहिथे। अपन शक्ति के प्रदर्शन करे म चिटिक पाछू नइ रहय। जल हे त जंगल हे , जंगल हे त जमीन हे। अउ तीनों के रहे ले जीव जनावर हे। फेर मनखे जान के अनजान बने रहे के कोशिश करथे। जल, जंगल अउ जमीन के संरक्षण पाछू ओकर शोषण जतका जादा हो सके, करे म सबो अघुवा हे। मोर अकेल्ला के चिंता ले का होही? सोचत सबो ए डाहन चिंतए नइ करत हन। 

       जंगल ल उजाड़ के करखाना बनावत हन। जंगल के विनाश ले बरसा सरलग थिरावत जात हे। कमती बरसा ले जमीन परती परत हे। उपजाऊपन नष्ट होवत हे। शहरीकरण के सुरसा मुँह खेती जमीन ल लीलते जावत हे। मनखे जानत हवै कि अइसे कोनो करखाना नइ हे जिहाँ अन्न बनाए जा सके। मोटर गाड़ी अउ करखाना के धुँगिया म साँस फूलत हे, तभो चेत-बिचेत हे। मनखे विकास के सीढ़ी चढ़त अँधरा बने हे। काली के चिंता ताक म रख आँखीं मूँदेच हवै। चेथी के आँखीं चेथीच म हे। करखाना के सिरमिट, लोहा लख्खड़, बहुमंजिला अटारी अउ आने-आने जिनिस ले पेट नइ भरय, तब ले खेती जमीन ल चगलतेच हवय। कोन जनी मनखे के ए का भूख ए ? अउ ए भूख कब मिटही? मनखे कब अघाही? भगवाने मालिक... भगवान का करही, जब मनखे हदराहा होगे हे त। धरती के जम्मो छोटे-बड़े जीव-जंतु के हक ल घलो मार के अघात नइ हे। वाह रे मनखे के पेट।      

            विकास जरूरी हे, फेर वहू विकास का काम के? जेन खुद के बलि ले डरय। चिटिक समझ नइ आय, मनखे विकास के नाँव म विनाश के फइरका ल काबर खटखटाथे? सरी धरती के पानी ल जोंक सही चूस डरही त धरती दाई कोनेच मेर ले अपन गोरस पियाही। जंगल के विनाश ले रिसाय बादर-पानी कति बइठे हे? एकरो पता नइ हे। अभियो अतेक देर नइ होय हे कि लहुटे नइ जा सकय। 

       " पुत्रोSहम् माता पृथिव्याः। "  कहे के मतलब - मैं बेटा अँव अउ पृथ्वी माता ए। ए भाव ल रख के माता के सेवा करना हमर धरम ए। एकर कोख म खेलइया जम्मो जीव संग कोनो अनियाव झन हो ए सोचे के हे।

         धरती म अतका विकास होगे हवय कि सबो देश तरा-तरा के हथियार हथिया ले हवय। आपसी लड़ई ले एक मिनट म ए धरती राख के ढेर बन जही। 'वसुधैव कुटुम्बकम' के भाव ले धरती ल बचाए बर हम दुनिया ल संदेश दे सकन, पृथ्वी के सुघरई ले मानव जात के कल्याण हे, समझा सकन तव विश्व पृथ्वी दिवस माने के सार्थकता रही। अइसन मोर मानना हवय।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार छग.


गऊ माता के इच्छा

 गऊ माता के इच्छा 

                    सरग म गऊ महतारी ला मनाये बर ब्रम्हाजी लगे रहय । गऊ माता हा धरती म जनम धरे बर बिलकुलेच मना कर दे रिहिस । ब्रम्हाजी कारण पूछिस तब गऊ माता बतइस - धरती के रहवइया मन महू ला मनखे समझथे अऊ अपने कस … खाये बर चारा देथे । मेहा मनखे थोरहे आंव ... तिहीं बता , मोला पचही तेमा  ? मोर रेहे बर .. बड़े बड़े गौशाला बना देथे ... हमन नानुक कोठा अऊ परसार के रहवइया आवन .. ओतेक बड़ जगा के आक्सीजन ... हमन ला बर्दाश्त नइ होवय , सांस ले बर तकलीफ शुरू हो जथे । इलाज पानी तो अतेक कर देथे के .. झिन पूछ ...। दूध नइ आही त सुजी , बाढ़हे बर सुजी ....... । बछरू बियाये बर सुजी .....। मोला अस्पताल सुजी पानी दवई बूटी हा डर लागथे ...... कहूं मनखे मन कस घिसट घिसट के झन मरँव .. । ब्रम्हाजी किथे – तोला तो खुश होना चाही के .... तोर बहुतेच ख्याल राखथे धरती के मन .... ? गऊ माता किथे – खुश होके जातेंव ... फेर मोर का उपयोगिता हे उहां ... ? मोर दूध के कन्हो आवश्यकता निये .... मिठई बनाये बर यूरिया आ चुके हे । मोर गोबर कन्हो ला नइ चाही । छेना के जगा गेस सिलेंडर म जेवन चुरथे । उपज बढ़होये बर ... गोबर खातू के जगा .... रसायनिक खातू कचरा बन चुके हे । अब तो मोला बछरू जनमे के घला जरूरत निये ... मनखे के पेट ले ... भुकुर भुकुर के खवइया .... कतको गोल्लर ..... जनम धर डरे हे । मोर पिला के का आवसकता हे अब तो खेती करे बर ...... मशीन निकल चुके हे । 

                  ब्रम्हाजी किथे – जे गऊ पोसथे तेला सरग मिलथे .... तैं नइ जाबे त .. मनखे मन कोन ला पोस के सरग म आहीं । गऊ माता किथे – धरती म पोसे पाले बर कुकुर हाबे .. । रिहीस बात तोर सरग के .. त सुन भगवान , जे कुकुर पोसथे तेकर घर , तोर सरग ले कतको सुंदर होथे .... । जीते जी सरग भोगइया मनखे ला मरे के पाछू ... तोर सरग के काये आवश्यकता । एक बात अऊ ... मेहा धरती म जाथंव त .... मोला कन्हो पोसय निही ..... मेंहा पोसथंव ... कतको झिन ला जियत ले अऊ कतको झिन ला ..... मरे के बाद .... । ब्रम्हाजी पूछिस - कइसे ? गऊमाता किथे – जियत रहिथंव त .... मोर नाव के सरकारी लछमी म .... कतको मनखे पल जथे । मर जथंव त .... मोर लास म रोटी सेंकत ..... कतको के जिनगी संवर जथे ..... । 

                    ब्रम्हाजी किथे – जनम धरे के बेरा लकठियावत हे ..... तैं जा बेटी ... ? गऊ माता किथे – तोर आदेश ...... मुड़ी नवा के स्वीकार हे फेर ...... मोरो एक ठिन शर्त हे ....... में उहां गाय के पेट ले जनम नइ धरंव ...... । उदुपले अइसन अलकरहा बिचार सुन ....... सुकुरदुम होके ब्रम्हाजी मुहुं फार दिस ..... । पछीना पछीना होके ... सियान थकथकागे । हावा धुंकत .... चित्रगुप्त उपाय बतइस – येला दू गोड़िया बना देथन । वइसे भी धरती म येहा साधारन दू गोड़िया कस .... उपयोगिताविहीन होके ..... बिगन हुंके भुंके भुगतत हे .... । दू गोड़िया बन जही ते कम से कम मुहुँ तो दिखहि ....... । ब्रम्हाजी किथे – अतेक सिधवी ला काकरेच पेट म डार देबे .... ? मुहुँ ला काये करही देखाके .. ? चित्रगुप्त किथे – तैं ओकर फिकर झिन कर भगवान । में ओकर बेवस्था कर देथंव ..... । रिहीस बात मुहुँ के ... येहा बोल झन पारे कहिके ... जम्मो झन एकर सेवा बजाये के , अऊ निही ते छ्द्म उदिम करही ... उहां के इंद्र अऊ ओकर लोगन मन .... । जनता के पेट ले उही समे ले ... गऊमाता हा जनम धरके आये लगिस अऊ जनता कस भुगतत .. जिये अऊ मरे लगिस । एती गऊ माता सिर्फ अतके म बड़ खुश हे के .... अब ओला जियत ले दूसर ला पोसे बर नइ लागे .... बल्कि उही ला पोसे के नाव म .... इहां के इंद्र मन .... जियत मरत लड़त भिड़त रहिथें ।  

  हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

लाकडाउन काल होगे-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 लाकडाउन काल होगे-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


              अहा का विपत आगे हे, मनखे ल समाजिक प्राणी कथे तभो समाज म नइ उठ बइठ पावत हे। वाह रे कोरोना तोर झट परे रोना। तोर सेती गाँव शहर सबे जघा चमाचम लाकडाउन हे। दुनिया म पइसा कौड़ी के हिसाब ले तीन प्रकार के मनखे हे-अमीर, मध्यम अउ गरीब। अमीर अउ मध्यम वर्गीय मन कइसनो करके अइसन आफत के समय ल घर म रहिके काटत हें, फेर गरीब मन खुदे कटा जावत हे। हमर जनसंख्या के आधा ले जादा परिवार के गुजारा भीड़ ले होथे, फेर शासन प्रशासन के फरमान के बाद, डाकडाउन के बेरा म , अइसन परिवार मनके आय के जरिया सिरागे हे। रोज के रोज कमइया खवइया आज बेबस अउ लाचार हे। कुछ सरकारी अउ प्रायवेट वाले मनके नवकरी चलत हे ,त कुछ ल सरकार घर बैठे पइसा देवत हे, फेर डेली वेज म  कोनो दुकान, होटल या मिल म रोज काम करइया नवकर चाकर मन,होटल, ढाबा, दुकान मिल, फैक्टरी के बन्द होय ले, बिन पइसा के घर म उदास  पड़े हे। कतको मनखे मन तिहार बार अउ समय सीजन के हिसाब ले घलो काम धंधा करथे, उहू मन घर म धँधागे हे।

            जे मन ये भयानक रोग के रोगी हे, तेला अस्पताल के चिन्ता हे, कि रक्तबीज कस बढ़त कोरोना म ओखर इलाज  हो पाही की नही।  अस्पताल वाले ल बेड अउ आक्सीजन सिलेंडर के चिंता हे, कतको विद्यार्थी मन ल अपन पढ़ई लिखई के चिंता हे, कतको नेता मन ला कुर्सी के चिंता हे, व्यपारी मन ल वैपार के चिंता हे, खात पियत आदमी मन ल अपन इम्युनिटी बनाके रखे के चिंता हे, फेर एक तपका अइसनो घलो हे जेला काली का होही, तेखर चिंता हे, ओला पेट भरे बर रोटी के चिंता हे। आँखी सरलग नदिया बरोबर बहत हे, अइसन समय म, उहू मन ल तो कोरोना ले लड़े बर अपन स्वास्थ्य ल धियान म रखना पड़ही। फेर ओखर तो पेटे नइ भरत हे, इम्युनिटी भला कइसे बढ़ही। एकात हप्ता के लाकडाउन ल पानी पसिया पीके, छाती म पथरा लाद के काट घलो सकथे, फेर पाख अउ महीना भर के समय, दुख ल धरे काटे त, कइसे काटे। कोरोना म वोमन जब मरही तब मरही ,फिरहाल तो भुखमरी अउ संसो म मर जावत हे। रोज कमइया खवइया अउ भीड़ जिंखर जीविका के आधार आय, लाकडाउन म उंखर जिनगी असहाय होगे हे। जीविका यापण करे बर कतको मन रोज जाँगर पेरथे त कतको मन कोनो छोटे मोटे काम धंधा करथे। फेर आज सब चीज बन्द हे, ओमन बेबस होके, घर म धँधा गेहे। मदद करइया मन घलो एक दू दिन पेज पसिया पीया सकथे, फेर जादा दिन तक कोन काखर ठेका लेहे।  डाकडाउन के निर्णय कोरोना ले बचे बर सरकारी फरमान हे, त ये तपका के मनखे मनके संसो करना भी सरकार अउ प्रशासन के कर्तव्य हे। बीमारी के रोकथाम होय कहिके कोनो ल तन मन से बीमार करना ठीक नोहे। ये भयानक महामारी के  उपाय यदि लाकडाउन आय, त अइसन मनखे मन ऊपर धियान देना भी जरूरी हे, जेला दू टेम के रोटी नइ मिल पॉवत हे। आखिर ओमन अपन पेट बर लड़े कि स्वास्थ्य बर। पेटे नइ भरही त का शिक्षा अउ स्वास्थ्य। आवन कुछु काम धंधा ऊपर विचार करीं----


*फेरी वाले* ---

कतको मनखे मन अपन जीवका यापन करे बर, कतको किसम के समान ल शहर गांव म घूम घूम के चिल्ला चिल्ला के बेंचथे। जइसे मनियारी समान वाले, लोहा लख्खड़, प्लासटिक के कबाड़ लेवइया, पेपर लेवइया, लइका मनके खिलौना, कपड़ा-लत्ता, साबुन-सोडा, फल, साग-भाजी, दरी-चद्दर, झाड़ू, फूल, गमला, पेड़ पौधा, गुपचुप चाँट, लाड़ू मुर्रा, पॉपकॉर्न,कुल्फी, बरफ, प्लास्टिक समान, डबलरोटी,अंडा, भुट्टा, दार-चाँउर, जूता-चप्पल, बरतन, जइसे कई समान के बेचइया मन घर म बइठे बइठे के दिन रही सकही। एखर संगे संग खेल मदारी,सर्कस वाले, मिक्सी-कुकर बनइया, कैंची धार करइया, सबके घर घूम घूम के काम करइया आदि सबके हाल बेहाल हें। वइसे दूध,डबलरोटी, अंडा अउ साग भाजी ल कुछ समय बर छूट देहे, तभो कतकोन के अभो रोना हे।


*छोटे मोटे दुकान अउ ठेला ठपरी वाले*---


कतको मन दू पइसा के आस म टीन छप्पर छाके  छोटे मोटे दुकान चलावै, उहू मन आज बेबस पड़े हे। जइसे- छोटे छोटे कपड़ा दुकान, बरा भजिया के होटल, पान ठेला, चाय ठेला, जूता चप्पल दुकान, पंखा कूलर बनइया मिस्त्री, स्टूडियो अउ फ़ोटो कॉपी, फल अउ जूस ठेला, हजामत दुकान,फोटू बंधइया, पिसई कुटई वाले हालर मिल, फूल माला वाले, गद्दा वाले, माटी के बरतन वाले, बाँस के समान वाले, लोहा के समान वाले,चाँट गुपचुप वाले, सरबत ठेला, चिकन मटन दुकान, हवा पंचर वाले, बरफ गोला,अंडा रोल,टोस बिस्कुट, आदि कतको धंधा पानी बंद हे, अउ अइसन काम करइया मनखे मनके हालत तंग हे।


*शादी बिहाव अउ कोनो उत्सव म काम करइया*--


कोरोना के सेती शादी बिहाव ह घलो बेंड बराती बिन दुच्छा बुलक जावत हे ,एखर कारण अइसन समय म काम करइया कतको मनखे मन संसो म हे, फूल, साज सज्जा, केटरिंग के नवकर चाकर, बाजा गाजा वाले,नाचे गाये वाले, घोड़ी वाले, गाड़ी वाले, नाचा गम्मत वाले, फोटू वीडियो वाले संग अइसन बेरा म काम करइया बनिहार, भूतिहार सबे बेबस हे।


*ऑटो, टाँगा, रिक्सा वाले*--


कोरोना काल म अवई जवई घूमई फिरई बन्द हे ते पाय के ऑटो, रिक्सा, टॉगा अउ छोटे मोटे सवारी गाड़ी अउ समान ढुलइया गाड़ी चलइया मन घलो शासन प्रशासन के मुँह ताके बर मजबूर होगे हे।


*टूरिज्म*--


 हमर देश के कतको हिस्सा के जीवका के साधन सिर्फ अउ सिर्फ टूरिज्म आय, फेर कोरोना के चलते कोनो घुमइया फिरइया नइ आवत हे, ते पाय के अइसन जघा के मनखे मन घलो आफत भरे समय ह कइसे कटही कहिके चिंतित हे।


*मजदूर अउ अन्य*--


                        येखर आलावा रोज जाँगर खपा के पइसा कमइया कमिया संगी मन घलो कोरोना काल म बेबस घर म पड़े हे, दिहाड़ी मजदूर,लेबर कूली, घरों घर काम करइया बाई अउ नवकर,माली, धोबी, नाई, लोहार, कुम्हार, पेंटर, ड्राइवर, कलाकार,सबके बारा हाल होगे हे। कोरोना के डर में कोनो इंखर ले काम नइ लेवत हे। अउ बिन काम के कोन पइसा दिही। ट्रेन अउ सड़क म घूम घूम ताली बजाके पइसा मंगइया अउ भीख  मंगइया मन घलो करे त का करे। सरकार के दू रुपिया किलो वाले चाँउर ल घलो बिसाये बर कतकोन गरीब तीर पइसा नइहे हे। कतको कमइया मन बड़े बड़े शहर म जाके काम करे, लाकडाउन लगे ले ओमन अपन गांव लहुट गेहे अब उंखर बर अइसन आफत भरे समय ल काटना दूभर होगे हे। कोरोना काल म सब राशन दुकान बंद पड़े हे , येखर कारण रोजमर्रा के समान मन घलो बड़ मंहगा होगे हे। तेल, नून के जुगाड़ कर पाना कतको बर बड़ मुश्किल होगे हे, अइसन म वोमन गरीबी ले लड़े की कोरोना ले। लाकडाउन म मनखे त मनखे पोंसवा जीव जानवर मन घलो दाना पानी बर तड़प जावत हे, मंडी, बाजार होटल ढाबा बंद होय ले कुकुर माकर अउ गाय गरुवा मन भूख मर जावत हे, जेन सज्जन मन दू रोटी गउ माता ल खवाय उहू मन अपन हाथ ल बाँध लेहे। कुछ मनखे मन खुदे दाना पानी बर तरसत हे त ओमन भला जीव जानवर के सेवा कइसे करे। बिना दाना-पानी,काँदी-पेरा के शहर नगर म पइधे गाय-गरुवा मन के मरना होगे हे, उही हाल कुकुर- माकर अउ चिरई- बिलई के घलो हे। उहू एक चिंतनीय पक्ष हे। कोरोना ले बचे बर यदि लाकडाउन कारगर उपाय हे त, लॉकडाउन के सेती प्रभावित जम्मो मनखे अउ जीव जानवर मन ऊपर घलो धियान दे बर पड़ही तभे तो सब मिल के कोरोना ले लड़ पाबों।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

अइसे म भागही कोरोना-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 अइसे म भागही कोरोना-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                 हमर भारत देश गाँव के देश ये, गाँव म ही हमर जनसंख्या के आधा ले जादा आबादी निवास करथे।  गाँव म हॉस्पिटल अउ डिग्री धारी डॉक्टर नही बल्कि हल्का फुल्का जानकार डॉक्टर जेला, सरकार झोला छाप कहिके लताड़थे, उही मन जमाना ले सेवा करत आवत हे, छोट मोट बीमारी ओखरे दवा पानी म ठीक होत आय हे, जादच बढ़थे तभो गाँव वाले मन शहर कोती जाथे। उही डॉक्टर मन गाँव वाले मन बर भगवान आय। वर्तमान समय म सरी दुनिया कोरोना के दंश ल झेलत हे, येमा भारत घलो अछूता नइहे। दिन ब दिन मरीज मनके संख्या बढ़त जावत हे, हॉस्पिटल म बिस्तर घलो कम पड़ जावत हे। शहर त शहर, गांव के जम्मो मनखे मन घलो ये रोग के इलाज बर शहरे कोती भागत हे। कोरोना के भयावह डर देखाके, सरकार गाँव के डॉक्टर मनके हाथ ल बाँध देहे, अइसन म भयावह स्थिति बनबेच करही। गाँव के मनखे  हॉस्पिटल के हालत ल देखत शुरुवात म ये रोग के प्रति कोनो प्रकार के ध्यान नइ देवत हे, अउ जब बाढ़ जावत हे, त हॉस्पिटल जाये बर मजबूर हो जावत हें।  का कोरोना हॉस्पिटले म सरकार के ठप्पा वाले डॉक्टर मन से ही ठीक होवत हे? का कोरोना के दवाई सिर्फ उँहिंचे हे? यदि कोरोना के कोनो प्रामाणिक दवाई हे त वोला का गाँव के डॉक्टर मन नइ दे सके? का हॉस्पिटल म ही जाना जरूरी हे? हाँ भले जब रोग बढ़ जावत हे या ऑक्सीजन के जरूरत पड़त हे त बात अलग हे। जेन सुरक्षा हास्पिटल के डॉक्टर खुद बर अपनाथे, उही सुरक्षा ल जरूरी करत गाँव के डॉक्टर मन ल घलो ये रोग के मरीज मनके सेवा करे बर प्रोत्साहित करें बर पड़ही, तभे ये सरलग बाढ़त कोरोना ल रोके जा सकत हे, नही ते आदमी डरे म दम तोड़ दिही, प्राथमिक सहायता अउ दवाई देवइया ल आघू लाय बर पड़ही, तभे हमर विशाल जनसंख्या कोरोना ले लड़ पाही, अउ भयमुक्त हो पाही। आधा तो रोग ले जादा डर छाये हे, ये डर अउ ये रोग तभे भागही जब एखर इलाज सहज सुलभ ढंग ले होही।


                 हॉस्पिटल म सेवा देवइया मन घलो कोनो आन लोक के तो प्राणी नोहे, उही मन मनखेच आय। जब वो मन कोरोना के मरीज ल ठीक कर सकत हे, त मोर खियाल से दवा पानी उपलब्ध कराये जाय त, गाँव के डॉक्टर म घलो ठीक कर सकत हे, अउ नही त मरीज के संख्या ल तो जरूर कम कर सकत हे। पहली ले साव चेत करत दवाई पानी देय म रोग नइ बाढ़ पाही। येखर बर वो जम्मो दवाई ल सहज उपलब्ध कराय बर पड़ही, जे हॉस्पिटल म भर्ती होय के बाद चलथे। कोरोना के रोगी घर म बिना डॉक्टर के कोरेण्टाइन होके आखिर का कर सकही, कोनो न कोनो थेभा तो चाही न, ऊंखर मन बर स्पेशल शहर ले तो कोनो डॉक्टर नइ आवय, त घर म कोरेण्टाइन के का फायदा। हर गाँव म कोई न कोई डॉक्टर सूजी पानी देथे, बात बात म कोनो ब्लाक या शहर के अस्पताल म जाना सहज नइ हे। अस्पताल म सूजी लिख देथे, त लगइया भी तो चाही, का सुजीच लगाये बर वो मरीज अस्पताल म भर्ती रहिथे, नही न, आखिर म इही डॉक्टर मन तो काम आथे। हो सकथे कुछ मन कम जानत होही, फेर सबे डॉक्टर ल झोला छाप कहिके गरियाना गलत हे। पहली जमाना से आज तक इंखरे थेभा म गाँव के स्वास्थ भला चंगा हे। ये महामारी ल देखत उन सबला जिम्मेदारी देय के जरूरत हे। आवश्यक सुरक्षा के संग सरकार अपन दिशा निर्देश देके उन सबला काम  सौपे त सहज अइसन महामारी ले निपटे जा सकत हे। भले आज डॉक्टर नर्स के संख्या पहली ले बहुत जादा बाढ़ गेहे, तभो सुदूर गाँव म स्वास्थ सेवा देवइया, उही गाँव के डॉक्टर मन हे। कुछ सरकारी या डिग्री धारी डॉक्टर मन शहर के नजदीक वाले गांव म सेवा देथे, जेमन सुबे क्लीनिक खोलथे अउ संझा बन्द करके शहर भाग जाथे। का तबियत रात म नइ बिगड़त होही, तब कोन काम आथे, यहू बात ल सोचना चाही।


                  मान ले कोनो मनखे के गोड़ टूट गेहे, अउ यदि ओखर घर दू तीन कदम दुरिहा हे त वो बपुरा दर्द ल सहत कूद फांद के घर घलो चल देथे, फेर कहूँ कई कोस दुरिहा हे त,,,, ओखर मन म संसो छा जथे, वो घबरा जथे, डर जथे। अउ जहाँ डर तहाँ जर स्वाभाविक हे। आज कोरोनाकाल म घलो इही स्तिथि देखे बर मिलत हे, इलाज के सुविधा कई कोस दुरिहा म हे, इही कहूँ नजदीक हो जही, त मरीज ल सम्बल मिलही, ओखर डर भय भागही, येखर बर नजदीक के जेन जानकार डॉक्टर हे ओला सेवा के अवसर दे बर पड़ही। सबे चीज डिग्री म सम्भव नइहे, कुछ म दिमाक अउ अनुभव घलो काम करथे। गाँव होय या फेर शहर होय सबे कोती के मनखे मन अपन जर बुखार बर एक झन डॉक्टर धरे रहिथे, फेर आज वो डॉक्टर मन मजबूर होके हाथ बाँध के बइठे हे, मरीज ल प्राथमिक साथ अउ सलाह नइ मिलत हे। कथे न अपन अपन होथे, आज उही अपन के सलाह, साथ के अभाव के कारण डर बाढ़त हे अउ जर घलो। 


               सरकारी अस्पताल मरीज मन ले भराय हे, प्रायवेट चिन्हित अस्पताल म घलो जघा नइहे, आज ये भयावह स्थिति हे, मरीज बिगड़े हालत म अस्पताल आवत हे, आखिर हालत बिगड़त काबर हे, हो सकथे उन ला प्राथमिक उपचार नइ मिल पावत होही। का छोटे छोटे क्लीनिक वाले अउ गाँव शहर के जानकार डॉक्टर मन कोरोना बर कुछु नइ कर सकय। मोर खियाल ले जेन अतिक दिन ले सूजी पानी, दवा दारू करत हे, ते मन बहुत कुछ कर सकत हे, बसर्ते ऊंखर बंधाये हाथ ल सरकार खोले, अउ उनला आघू लावय। कोरोना हे कहिके गम्भीर बीमारी ले तड़पत मनखे मन ल कोविड हॉस्पिटल म डार देना घलो दुखद हे। डाकडाउन म काम धंधा बंद हे, कतको घर दाना पानी के घलो किल्लत मच गेहे, अइसन समय म घलो कतको मन दवाई दारू नइ कर सकत हे, अउ कोरोना ल बढ़ा डरत हे। सरकार ल जानकार डॉक्टर मनके माध्यम ले उंखर मदद करना चाही। अस्पताल म भर्ती होय के नवबत झन आय ये डहर सोचे के जरूरत हे, आज तो सर्दी खाँसी बुखार माने कोरोनच होगे हे, त पहली ले सचेत रहन अउ दवा पानी करन। कतको जघा तो बिना कोरोना टेस्ट के सर्दी खाँसी बुखार के दवाई घलो नइ मिलत हे, ते दुखद स्थिति हे। कतको मन टेस्ट म पॉजिटिव आय के डर म टेस्ट नइ करावत हे, कि  कहीं पॉजिटिव आही त सरकार धर बाँध के अस्पताल म डार दिही। कतको झन अस्पताल म दम तोड़त मरीज मन ल देख के सदमा म हे, अउ अस्पताल ले बचना घलो चाहत हे। सही सलाह अउ दिलासना देवइया नजदीक के डॉक्टर मन ल येखर बर आघू लाय बर पड़ही, कोरोना के टेस्ट अउ इलाज के दायरा(गांव गांव तक) बढ़ाय बर पड़ही, तभे कोरोना के डर भागही, अउ जब डर भागही, तभे जर भागही।


(मोर लिखे के मतलब कोनो ल बने गिनहा या छोटे बड़े साबित करना नही, बल्कि सबे कोती अइसन महामारी के इलाज के प्रक्रिया ल सरल सहज बनाय बर जोर देना हे)


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ अउ गोस्वामी तुलसीदास*


*विषय--छत्तीसगढ़ अउ गोस्वामी तुलसीदास*


*परहित सरिस धरम नहिं भाई।पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।*

      परोपकार ल सबले बड़े धर्म अउ दूसर ल पीड़ा ,कष्ट,दुख देना ल पाप बताने वाला युगदृष्टा ,महान मानवतावादी, परिवार, समाज,देश---हर क्षेत्र म समन्वयवादी, सर्वधर्म समभाव के समर्थक,समतावादी ,विचारक, दार्शनिक, अमर कृति रामचरित मानस के रचयिता महान संत ,महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म भले हमर छत्तीसगढ़ महतारी के गोदी ले सैंकड़ो किलोमीटर दूरिहा राजापुर गाँव(उत्तर प्रदेश) म होये हे फेर वो ह अपन कालजयी कृति रामचरित मानस अउ अन्य रचना मन के माध्यम ले ,  महान संत गुरु बाबा घासीदास जेन ह -मनखे मनखे एक समान के शिक्षा देके ,अमर सत्य के उद्घोष करे हे के जन्मभूमि छत्तीसगढ़ के कण-कण म अउ जन-जन के हिरदे म समाये हे,रचे बसे हे।

      ये धर्म-कर्म के पावन भुँइया हमर छत्तीसगढ़ के अइसे कोन मनखे होही जेन गोस्वामी तुलसीदास जी ल नइ जानत होही? अइसे कोन गाँव-शहर होही जिंहा गोस्वामी जी के अमर वाणी, श्रीराम कथा के आयोजन नइ होवत होही? 

       गोस्वामी तुलसीदास जी के आराध्यदेव मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचंद्र के ननिहाल हमर छत्तीसगढ़ हर आय तेकर सेती इहाँ के रीतिरिवाज अउ संस्कार म रामचरित रचे बसे हे। आज तको ,घोर कलजुग के समे म जब रास रंग अउ खाओ-पियो के चलन हे तभो इहाँ छट्ठी -छेवारी म रमायेन कहवाय के सुंदर परंपरा जिंदा हे। सावन के महिना म अभो गाँव के चौपाल म सवनाही रमायेन महिना भर ले होते रहिथे। इहाँ नवधा रमायण समारोह के भव्य आयोजन होथे जेमा आन आन गाँव के रमायेन मंडली मन आके भक्ति संगीत अउ व्याख्या प्रस्तुत करकें राम-रस गंगा बोहा देथें। अइसन आयोजन संसार म अउ कहूँ नइ होवय। अब तो समे के अनुरूप बड़े-बड़े मानस गान प्रतियोगिता के आयोजन तको होये ल धर लेहे।अइसन परम भक्ति मति छत्तीसगढ़ महतारी के नदी,पहाड़ ,डोंगरी ,मैदान म गोस्वामी तुलसीदास जी के अमर वाणी अविरल गूँजत रहिथे। रामलीला, रामधुनी के आयोजन अउ दशहरा मनाना  तो छत्तीसगढ़िया खून म घुले- मिले हे। बस्तर के जगत प्रसिद्ध दशहरा ल भला कोन भुला सकथे?

        इहाँ के लोकगीत म,लोक कथा म गोस्वामी तुलसीदास जी के संदेश अउ सियाराम कथा के बानगी देखते बनथे। 

     रामचरित मानस जेकर बारे म कहे जाथे के वोकर एकेक शब्द मंत्र ये, वोकर एकेक आखर वो मंजरी ये जेमा राम रूपी भँवरा सदा मँडरावत रहिथे। ये महाकाव्य के प्रभाव छत्तीसगढ़ निवासी मन के मन-वचन अउ कर्म म दगदग ले दिखथे। नैतिकता , सत्य ,ईमानदारी ,मानव-धर्म ल प्राण प्रण ले सरू छत्तीसगढ़िया भले ढगा जथे तभो ले निभाय ल नइ छोड़य। राम-राम कहिके जै जोहार करइया छत्तीसगढ़िया गोस्वामी तुलसीदास जी के परम भाव अनुयायी आय।

           हमर छत्तीसगढ़ म राजधानी रायपुर के सरोना म  गोस्वामी तुलसीदास जी के एकमात्र मंदिर हे फेर वोकर आराध्य भगवान रामचंद्र अउ वोकर मार्गदर्शक संकट मोचक हनुमान जी के हजारों हजार मंदिर इहाँ हावय।

   गोस्वामी तुलसीदास जी के साहित्य म छत्तीसगढ़ --दंडकारण्य वर्णन, सँवरिन दाई के प्रसंग आदि के रूप म संगे संगे छत्तीसगढ़ भाषा के अनेक शब्द मन के प्रयोग के रूप म स्थित हावय ओइसने छत्तीसगढ़ के साहित्य म ,संस्कार म गोस्वामी तुलसीदास जी रचे बसे हावय। 

तुलसीदास ने रचि रमायण गंगा बहा दिया।

भवसागर से पार उतरने नौका बना दिया।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ अउ गोस्वामी


 


छत्तीसगढ़ अउ गोस्वामी  तुलसीदास जी के संबंध मे लिखे के पहिली महान भक्त कवि,भारत देश के महान जनकवि संत तुलसीदास जी के पांव परत हौं |

दो. नामु राम को कल्पतरु,

कलि कल्यान निवासु |

जो सुमिरत भयो भांग ते,

तुलसी तुलसीदासु ||

    भगवान श्रीराम के विशेष कृपादृष्टि से ही तुलसीदास जी ह विश्व के सब ले जादा लोकप्रिय,लोककथा,लोकगाथा "रामचरित मानस" लिखे हवंय |

     इही रामचरित मानस के द्वारा हमन जानेन-भगवान श्रीराम चंद्र जी के माता कौशल्या जी हमर छत्तीसगढ राज्य के खरौद तहसील स्थित कोसला गांव के बेटी आय,अर्थात भगवान श्रीराम चंद्र जी के नाना कोसल गढ़ के राजा रहिस |

*चौ.कोसलेस दसरथ के जाए,

हम पितु बचन मानि  बन आए*

    *तभे हमर छत्तीसगढ के संस्कृति म भांचा ल राम के स्वरूप मान के पांव पड़े के परंपरा हवय*

     *भगवान श्रीराम चंद्र जी ह बनवास काल म सरगुजा के रामगढ़ के पहाड़ी म कई बच्छर गुजारे रहिन | तभे विश्व के सबसे प्राचीनतम नाट्य शाला-रामगढ़ के पहाड़ में स्थित माने गए हवय*

     *इहां "सीताबेंगरा अउ जोगीमार गुफा" आज भी पौराणिक, धार्मिक,आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक दर्शनीय स्थल विद्यमान हवय*

     *इहां सीता माता के चरण चिन्ह आज भी मौजूद हवय, भगवान श्रीराम चंद्र जी द्वारा स्वर्ण मृग के शिकार करे बर बीहड़ वन म चले जाए के बाद "हे लक्ष्मण" के आवाज सुन के माता सीता द्वारा लक्ष्मण ला अपन पति श्रीराम के रक्षा बर जबरन भेजे के कारन विशेष परिस्थिति में सीता जी के सुरक्षा हेतु"लक्ष्मण रेखा" ये"सीताबेंगरा गुफा में आज भी मौजूद हवय*

    *सीताबेंगरा गुफा के ऊपर ६३१ सीढ़ी चढ़े के बाद श्री राम-जानकी मंदिर,जानकी कुंड, सिद्ध गुफा आज भी विद्यमान हवय*

    *रामचरित मानस में उल्लेखित श्रृंगी ऋषि के आश्रम महानदी के उद्गम पहाड़ सिहावा में आज भी मौजूद हवय |

*चौ. श्रृंगी ऋषिहि बसिष्ठ बोलावा,पुत्रकाम शुभ यज्ञ करावा*

    *रामचरित मानस में उल्लेखित "मतंग मुनि के आश्रम -महानदी,पैरी,सोढ़ूल के संगम स्थल राजीम तीर्थ में आज भी विद्यमान हवय*

   *रामचरित मानस में उल्लेखित भगवान श्री राम द्वारा"नवधा भक्ति"  भक्त सबरी ला प्रदान करे रहिन तेकर तीर्थ -सबरीनारायण म आज भी मांघ पूर्णिमा से ले के एक महीना तक मेला लगथे,अउ भगवान श्री राम-जानकी मंदिर में श्रद्धालुगण पूजा-अर्चना करथें*

    *बनवास काल में भगवान श्री राम चन्द्र जी,माता सीता जी अउ छोटे भाई लक्ष्मण वन गमन करते हुए छत्तीसगढ़ के उत्तर से दक्षिण दंडकारण्य क्षेत्र में बीहड़ जंगल पार करते हुए सीता जी के खोज में बस्तर क्षेत्र से दक्षिण भारत होते हुए रामेश्वर के पास "रामसेतु निर्माण उपरांत  समुद्र पार करके लंका पहुंचे रहिन*

*चौ. दंडक वन प्रभु कीन्ह सुहावन,जन मन अमित नाम किए पावन*

     *ये प्रकार से छत्तीसगढ़ अउ गोस्वामी तुलसीदास जी के विशेष संबंध हवय*

   *राम सों बड़ो हैं कौन*

    *मो सो कौन छोटों*

*राम सों खरो हैं कौन*

    *मो सो कौन खोटो*


 *हरि अनन्त हरि कथा अनंता*

   *जै श्री राम*


दिनांक-२६.०४.२०२१


*गया प्रसाद साहू*

   "रतनपुरिहा"

👏🖕✍️❓✍️🙏🏼


तुलसीदास अउ छत्तीसगढ़-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


 तुलसीदास अउ छत्तीसगढ़-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                   गोस्वामी तुलसीदास जी हमर छत्तीसगढ़ राज म रामचरित मानस के माध्यम ले गांव गांव अउ घर घर म पूज्यनीय हे, कोनो परब-तिहार, छट्ठी बरही, मरही हरनी सबे दुख सुख के बेरा म गोस्वामी जी के पावन कृति"रामचरितमानस" घरो घर म पढ़े सुने जाथे। चाहे कोनो गाँव होय या शहर जमे कोती गाँव गाँव, पारा पारा म एक दू ठन रमायण मण्डली खच्चित मिलथे। तुलसीकृत रामचरित के दोहा चौपाई जमे छत्तीसगढ़िया मनके अंतर आत्मा म समाय हे, ते पाय के कभू अइसे नइ लगिस कि गोस्वामी जी आन कोती के आय, सदा अइसे लगथे, कि हमरे अपने राज के आय। गोस्वामी महराज ह हम सब छत्तीसगढ़िया मन ल दुर्लभ प्रसाद देहे, अउ हम सबके दिलो दिमाक म सदियों ले राज करत आवत हे,, अउ अवइया समे घलो राज करही। तुलसीकृत रामचरित मानस अउ अवधी म लिखे अन्य ग्रंथ मन छत्तीसगढिया मन ल सहज ही समझ आ जथे, काबर कि माता कौशल्या के मइके छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ी और अयोध्या के अवधी म एक दुसर के राज म अवई जवई ले दुनो भाषा आपस म चिपक गे रिहिस। यहू कारण तुलसीदास की के अवधी म रचित ग्रंथ ह छत्तीसगढ़िया मन बर अटपटा नइ लगय। तुलसीदास जी के जयंती छत्तीसगढ़ म धूमधाम से मनाये जाथे, ये दिन राम कथा पाठ अउ भजन कीर्तन जम्मो कोती होथे। सिरिफ छत्तीसगढ़ मन ही नही बल्कि पूरा भारत वर्ष तुलसीदास जी के राम चरित रूपी भव तरे बर डोंगा ल पाके कृतार्थ हें।

                  कथे कि तुलसीदास जी महाराज प्रभु कृपा अउ अपन आत्म शक्ति ले कलयुग के मनखे मन बर भगसागर तरे बर डोंगा(रामचरित मानस) के रचना करिन। तुलसीदास जी ल महर्षि बाल्मीकि जी के अवतार घलो माने जाथे। संगे सँग यहू कहे जाथे कि तुलसीदास जी ल शिव पार्वती, बजरंगबली के संगे संग भगवान राम, लक्ष्मण अउ जॉनकी समेत दर्शन देय रिहिस।


*चित्रकूट की घाट पर, भये सन्तन की भीड़।*

*तुलसीदास चन्दन घँसे, तिलक देत रघुवीर।*


 गोस्वामी जी के रचना म दोहा चौपाई अउ कतको प्रकार के छ्न्द के माध्यम से छत्तीसगढ़ सँउहत शोभा पाथे। पुनीत ग्रंथ ल पढ़के अइसे लगथे कि तुलसीदास जी महाराज छत्तीसगढ़ म घूम घूम के रामचरित मानस के रचना करे हे। भगवान राम अपन वनवास के बनेच समय छत्तीसगढ़ म गुजारे हे।जुन्ना समय म छत्तीसगढ़ दण्डकारण्य कहलावै, अउ तुलसीदास जी महाराज कतकोन बेर अपन रचना म इही नाम ल सँघेरे हे-


*दण्डक बन प्रभु कीन्ह सुहावन।जन मन अमित नाम किये पावन*


तुलसीदास जी महाराज रामचरित मानस के रचना करत बेरा छत्तीसगढ़ ल अपन अंतरात्मा ले देखे हे। तभे तो इहाँ के संत मुनि-दीन दुखी मनके पीरा ल हरत भगवान राम ल देखाय हे।उत्तर छत्तीसगढ़ म सरभंग ऋषि के आश्रम म पहुँचे के चित्रण गोस्वामी जी के रचना म मिलथे----


*तुरतहि रुचिर रूप तेहि पावा।देखि दुखी निज धाम पठावा*

*पुनि आए जहँ मुनि सरभंजा।सुंदर अनुज जानकी संगा*


पुत्र यज्ञ बर छत्तीसगढ़ ले सृंगी ऋषि के अयोध्या जाय के वर्णन, अउ श्री राम के  सिहावा पर्वत म बाल्मीकि आश्रम आय के वर्णन , गोस्वामी तुलसीदास जी अपन महाकाव्य म करे हे-

*सृंगी ऋषिहि वशिष्ट बोलावा। पुत्र काम शुभ यज्ञ करावा।*


*देखत बन सर सैल सुहाये।बाल्मीकि आश्रम प्रभु आये।*


येखर संगे संग गोस्वामी तुलसीदास जी ह, सिहावा पर्वत अउ महानदी के पावन जल के घलो बड़ मनभावन ढंग ले चित्रण करे हे-


*तब रघुवीर श्रमित सिय जानी। देखि निकट बटु शीतल पानी।*

*तहँ बसि कंद मूल फल खाई। प्रात नहाइ चले रघुराई।*


*राम दीख मुनि वायु सुहावन। सुंदर गिरि कानन जलु पावन*

*सरनि सरोज विटप बन फूले।गूँजत मंजु मधुप रस भूले।*


भगवान राम के आय ले, सन्त मन के संगे संग,,दण्डक बन के जीव जानवर मनके मनोदशा देखावत तुलसीदास जी लिखथे---


*खग मृग विपुल कोलाहल करही।बिरहित बैर मुदित मन चरही।*

*नव पल्लव कुसुमित तरु नाना।चंचरीक चटली कर गाना।*

*सीतल मंद सुगंध सुभाउ।सन्तत बटइ मनोहर बाउ।*

*कूह कूह कोकिल धुनि करही।सुनि रव सरस ध्यान मुनि टरही।*

*चक्रवाक बक खग समुदाई।देखत बनइ बरनि नहि जाई।*


न देखत बने, न बरनत, गोस्वामी जी के अइसन पंक्ति देखत कभू नइ लगे कि गोस्वामी जी दण्डक बन के शोभा ल आँखी म नइ देखे होही।


तुलसीदास जी महराज महानदी के तट म भगवान के रद्दा जोहत शबरी माता के घलो कथा बताये हे, राम जी के दर्शन माता शबरी पाय हे अउ संग म नवधा भक्ति के धारा घलो बहे हे-


*ताहि देइ गति राम उदारा।शबरी के आश्रम प्रभु धारा*

(पक्षी राज ल परम् गति देय के बाद प्रभु राम जी शबरी के आश्रम घलो पहुँचिस।)


तुलसीदास जी महराज शबरी के हाथ ले भगवान राम ल कंद मूल फल देय के घलो बात केहे हे-


*कंद मूल फल सुरस अति, दिए राम कहुँ आनि।*

*प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि*


जंगल म निवास करत दीन दुखी मुनि जन मनके रक्षा बर भगवान राम ल असुरन मन ले लड़े के बात घलो गोस्वामी जी कहे हे, रेंड नदी के तट म बसे रक्सगन्डा नामक जघा, खरौद म खरदूषण, राक्षसराज विराट, अउ मरीज के सँघार के घलो बात दण्डक बन ले जुड़े हे---


*दंडक बन पुनीत प्रभु करहू।उग्र साप मुनिवर कर हरहू*

*बास करहु तहँ रघुकुल राया। कीजे सकल मुनिह पर दाया।*


गोस्वामी तुलसीदास जी के महाकाव्य ले सहज ही पता लगथे कि ज्यादातर अरण्य कांड के घटना दण्डक बन याने छत्तीसगढ़ ले जुड़े हे। जेमा- पंचवटी निवास, खरदूषण वध, मारीच प्रसंग, सीताहरण, शबरी कृपा आदि


 वइसे तो आने आने  राज के मनखे मन पंचवटी ल अपन अपन क्षेत्र (मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र,उत्तराखण्ड) म होय के बात करथे, फेर सीताबेंगरा, जोगीमारा गुफा म स्थित  लक्षमण गुफा अउ लक्षमण रेखा के साथ साथ गोस्वामी तुलसीदास जी के कतको चौपाई , अउ घटना क्रम जेमा, मारीच वध, खरदूषण वध, आदि छत्तीसगढ़ म होय के पुख्ता सबूत देथे-


*पंचवटी बसि श्री रघुनायक। करत चरित सुर मुनि सुखदायक।*


सूर्पनखा अपन नाक कान कटे के बाद खरदूषण ल जाके कइथे-

*खरदूषण पहि गइ बिलपाता। धिग धिग तव पौरुष बल भ्राता।*


*धुँवा देखि खरदूषण केरा।जाइ सुपरखा रावण केरा।*


एक सुनती जानकारी अनुसार अपन जीवन के आखिर समय म लवकुश जन्मस्थली म तीन दिन बर गोस्वामी जी छत्तीसगढ़ आये रहिन अउ उँहे अपन कृति कवितावली के तीन ठन छ्न्द ल सिरजाइन। रामचरित मानस ल पढ़त सुनत अइसे लगथे कि तुलसीदास जी ह छत्तीसगढ़ म ही रहिके, छत्तीसगढ़ी संग मिलत जुलत भाषा म छत्तीगढ़िया मनके कल्याण बर रामचरित मानस के रचना करे हे। छत्तीसगढ़ ल राममय करे म गोस्वामी जी के अहम योगदान हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Saturday 17 April 2021

डरना अउ लड़ना जरूरी हे -चोवाराम वर्मा "बादल"


 

डरना अउ लड़ना जरूरी हे -चोवाराम वर्मा "बादल"


दू अक्षर के शब्द 'डर ' बहुतेच डर-डरावन हे। तभे तो एकर बर जुमला बने हे--"जो डर गया समझो वो मर गया।" विचार करबे त अइसे लागथे के येला उन मनखे मन बर कहे गे होही जेन मन भूँकत अउ दँउड़ावत कुत्ता ल देखके डर म पल्ला भागथें तहाँ ले कुत्ता के हिम्मत बाढ़ जथे अउ वोहा भूँकई ल छोंड़के शेर जइसे दहाड़ के हबक देथे। अइसन समे म मनखे ल सवा शेर बनके, अँड़ियाके ,ठाढ़ होके कुत्ता ल दबकारना चाही तहाँ ले वो दुम दबाके भाग जथे।

   एक बात अउ कहे जाथे--"भय नाम भूत।" एकर मतलब हे-डरे तहाँ ले भूत धर लेथे। भूत धरथे त काय होथे? लोगन के कहना हे के--आदमी घबरा जथे,करिया पछीना छूटे ल धर लेथे, कई झन थरथर- थरथर काँपे ल धर लेथे, बड़बड़ाये ल धर लेथे।कतको झन के घेंच ल भूत ह चपक देथे अउ वो आदमी के जीव छूट जथे।

  वैज्ञानिक मन के कहना हे के-- भूत होबे नइ करय।ये बात सिरतोन लागथे काबर के आज तक कोनो पूरा दावा अउ प्रमाण के संग नइ कहि सकय के मैं ह भूत ल देखे हँव। वो तो जेन जगा डर्राये रहिथे,नहीं ते अँधियारी म, कोनो सुनसान जगा म कुछु चीज ल देखे रहिथे या फेर कोनो अवाज ल सुने रहिथे वोकर ले डर्राके कहि देथे- फलाना जगा म भूत हे। खोजबे त भूत के लँगोटी तक नइ मिलय। आदमी ह फोकटे-फोकट डर्राथे। कभू-कभू उही डर म हार्ट अटेक आके मर घलो जथे।

        डर के कई किसम अउ कारण हे जेमा सब ले बड़े डर मौत के डर हे।कतको डरपोकना मन मरे के डर म मर जाथें। सबला एक दिन मरना हे त अतेक पन का डरना? कई झन घुचपुचिया मन कोनो काम ल करे के पहिली-'दुनिया का कइही' सोंचके अपने-अपन फोकट के डर्रावत रहिथें। अरे! अच्छा काम करे जा, दुनिया भले कुछु काहय। "कुत्ता भूँके हजार, हाथी चले बजार" वाले बात होना चाही।

    कतको झन पानी ले, आगी ले, भींड़ म जाये ले,सभा-समाज ले,ककरो संग गोठियाये ले डर्रावत रहिथें। कई झन तो घर ले निकले म डर्राके घरखुसरा बन जाथें।ये मन सब फोबिया के रोगी आँय। अइसन मन ल डरना नइ चाही भलुक अपन इलाज करवाना चाही। सब ले बड़े इलाज तो इही हे के येमन जेन चीज ले डर्राथें ,उही चीज ल करके देखयँ जेकर ले डर हा भागय। कुछ  अउ खतरनाक डर हें जइसे-- अपन मान सम्मान ल बँचाके अउ बनाके रखे के डर नैतिकता के डर, कलंक लगे के डर, धर्म के डर,जात -पात के डर, पाप के डर, भगवान के डर। ये डर बढ़िया हे ।जरूर डरना चाही फेर जरूरत ले जादा डरना मना हे नहीं ते ब्लड प्रेशर संग हृदय रोगी बनत देर नइ होवय।

   कई झन डरपोकना मन अपने-अपन नाना प्रकार के कल्पना करके अउ दूसर ले अपन तुलना करके हीनभावना के शिकार होके मानसिक रोगी बन जथें।  कतको झन तो मौत ल गला लगा लेथें।

    उपर लिखाय अइसने जम्मों डर बर कहे गे हे--डरना मना हे।

         ये तो होइस आधा बात, सिक्का के एक पहलू। सिक्का के दूसर पहलू ये हे के हमला डरना तको चाही। कोन चीज ले डरना हे अउ कोन ले नइ डरना हे,येला जानना समझदारी आय।कोनो ये कहिके --- मैं आगी ले बिल्कुल नइ डरवँ---आगी म कूद जही त भुँजाके मरबे करही।ये तो भारी मूर्खता आय।अइसन हिम्मत का काम के जेन जीव लेवा होवय।

     मनखे ल बीमारी ले तको डरना चाही।ये डर ह जागरूकता लाथे। अभी कोरोना महामारी के भयानक तांडव माते हे।ये नानचुक वायरस ले सरी दुनिया थर्रागे हावय।गरीब-अमीर,महिला-पुरुष, लइका-जवान ,सियान सब झन ला ये कोरोना ले डरना जरूरी हे।काबर के ये कोरोना ह कोनो ल बड़े ददा, बड़े दाई नइ मानय।कोनो ल नइ छोंड़य।कहूँ हमन मास्क लगाबो,हाथ ल घेरी-बेरी साबुन ले धोबो,साफ-सफाई रखबो, सेनेटाइजर करबो,सोशल डिस्टेंसिंग के पालन करबो,बेमतलब भींड़-भाँड़ म नइ आबो-जाबो त ये कोरोना बैरी खुदे डर्राके भाग जही। अब तो वैक्सीन लगे ल धर लेहे। कोनो अफवाह म नइ आके बिना डरे वेक्सीन लगवाना जरूरी हे।कोरोना ले डरना जरूरी हे ।वोकर ले लड़ना जरूरी हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

Thursday 15 April 2021

जीतबो कोरोना ले जंग*

 

*विषय- जीतबो कोरोना ले जंग*


ये माना जिंदगी है चार दिन की

बहुत होते हैं यारों चार दिन भी

       फिराक गोरखपुरी


एमा कोनो दू मत नइये के आज सरी दुनिया कोरोनो महामारी ले त्रस्त हे। जेती देखबे तेती हाहाकार मचे हे।संकट के बादर उमड़ घुमड़ के छावत हे, बरसत हे।

   अइसन विपदा के समे हमला का करना चाही ? --ये बहुतेच विचारणीय प्रश्न हे। सबसे पहिली बात तो ये हे के हमला ये महामारी ले बिना दहशत म आये डटके मुकाबला करना चाही। ये समे ये बीमारी ले लड़े बर  धैर्य के हथियार होना बहुत जरूरी हे। ये बात ल सदा याद  राखे ल परही के --समे के फेर होके रहिथे। अभी दुख के दिन हे त सुख के दिन लहुट के आबे करही। दिन-रात, धूप -छाँव तो लगे रहिथे। ये तो प्रकृति के अटल नियम हे। जब घुरवा के दिन बहुर जथे त हम तो समुंदर ल मथे म सक्षम ,असभंव ल तको संभव कर देने वाला सर्वशक्तिमान के शक्ति सम्पन्न अंश अन त का हमर दिन नइ बहुरही ? जरूर बहुरही ,सोला आना बहुरही ।हम फेर आनंद के सागर म गोता लगाके रहिबो। समे ह बड़े बड़े घाव ल भर देथे। चाहे हमर गलती से होवय या फेर कुछु कारण ले ---अभी गहिर घाव मिले हे त विश्वास रखौ मलहम तको मिलके रइही। शर्त अतके हे हमला अपन मनोबल ल बनाके रखे ल परही। संकट ल देखके शुतुरमुर्ग सहीं घेंच ल रेती म खुसेरे ल काम नइ बनय। बल्कि सावधान होके लड़े बर हिम्मत देखाये ल परही। कहे गे हे-"हिम्मते मर्दे मददे खुदा।"

      हम कोरोनो ले जीत के रहिबो---सौ प्रतिशत जीतके रहिबो। जइसे दिया ह बुझाये के पहिली भभकथे तइसने ये कोरोना ह भभकत हे।ये अब बुझाने वाला हे। वेक्सीनेशन  अउ हमर मन के कोरोना गाइडलाइन के पालन, मास्क के उपयोग के आगू म कोरोना अब टिकने वाला नइये।

          तूफान आय हे त गुजर जाही। हमला कोरोनो ले जीते बर अपन सोच ल सकारात्मक रखना जरूरी हे। सोशल मिडिया के नाना प्रकार के अफवाह ले बाँच के रहना हे।

 मनखे ह जे देखथे, पढ़थे वो बात मन वोकर दिलों दिमाग म गूँजत रहिथे। रात दिन टी वी चैनल अउ पेपर मन म बस मौत--मौत-- मौत के खबर छाये हे ,जना मना सृष्टि ले जिंदगी सिरागे हे। इनला देखना, पढ़ना बंद करे बर लागही काबर के ये मन जागरूकता कम, दहशत फैलाये के काम जादा करत हें।

पढ़ना हे त सदग्रंथ अउ साहित्य भरे पड़े हें जेन मन जीवन रस छिंचथें, सब्र करना सिखाथें ,उदासी ल हटाके मन ल हल्का करथें। हम लाकडाउन के बेरा के घर म बइठे बइठे अइसन रचनात्मक काम म सदुपयोग करके कोरोना ले लड़े बर तैयार हो सकथन।

      अभी हम सबला आपदधर्म निभाये के बहुतेच जरूरत हे। अइसे कोन होही जेकर मन ह बाहिर म घूमे-फिरे अउ खाये-पिये के नइ होवत होही ?फेर ये संकट के घड़ी म बिना ना नुकुर के कोरोना गाइडलाइन के पालन करना हम सबके जिम्मेदारी हे। सावधानी ह सबले बड़े सुरक्षा हे। संतुलित भोजन, पर्याप्त नींद ,योग-ध्यान अउ चिंता रहित दिनचर्या ल अपनाके कोरोना बैरी ल हम परास्त कर सकथन।

 वो दिन दूर नइये जब कोरोना हारही अउ हम जीतबो।

*जीतबो कोरोना ले जंग।*

  *रहिबो सावधानी संग।*

   *घर में राहौ,त्याग उदासी*

 *राखौ हिमम्त, मन ला चंग।*


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

जीतबो कोरोना ले जंग* पोखन लाल जायसवाल

 *जीतबो कोरोना ले जंग*

      पोखन लाल जायसवाल


      ए सच आय कि अभी के समे म चारों मुड़ा निराशा के घटाटोप बादर छाय हे। सबो कोति कोरोना रार मचाय हे। का गाँव,का शहर?कति गरीब कति बड़हर? दिन चिह्ने न रात, सब ल अपन चपेट म लेत हवै। घबराय के बात नइ हे। समे थोरिक आन जरूर हे। मन म डर हमाना स्वाभाविक ए, फेर मन के हारे हार हे अउ मन के जीते जीत। डर ल अपन ऊपर चढ़न झन देवन एकर ले हमर आत्मविश्वास कमती होही। डर के अइसन बेरा म एक दूसर के हौसला बढ़ाय के रखे परही। हिम्मत के संग लड़ना पड़ही। हम ल अपन मनोबल बढ़ाय बर कहूँ जाय के जरूरत नइ हे। तिर तखार म सकारात्मक जिनीस ल झाँके के जरूरत हे। सरी दुनिया जानथे कि चढ़त बेरा उतरथे घलव, तहान नवा दिन के संग नवा अंजोर ले के आथे। बिपत के समे म घड़ी थोरिक रुक गे हे कहे बानी जनाथे। अइसन होय नइ। घड़ी के जेन काँटा ऊपर जाथे, उहीच काँटा खाल्हे च आथे। नदिया के पूरा कब लम्बा खींचाय हे। हाँ जउन नुकसान होय रहिथे, ओकर पूरती संभव तो नइ रहै। जिनगी रुके के नइ चाही। संकट ले बिपत ले कब तक मुँह लुकाबो। संघर्ष तो करेच बर परही। तभे तो इतिहास लिखाही। 

       इतिहास ल झाँक लन। चेचक(चिकनपॉक्स) ले बाँच गे हन। जउन रनपिट्टा रार मचाय रिहिस। कतको प्राकृतिक आपदा ले उबर गे हन। फेर यहू ल हरा के रहिबो। ए कोरोना ले जंग हम जरूर जीतबोन। जीते के चाही त लड़े बर परही। लड़े के पहिली अपन हथियार धैर्य, साहस, विश्वास मन ल टेंव के जरूरत हे। नकारात्मक समाचार देख सुन के साहस खोना नइ हे। धैर्य बना के रखे के चाही। वैज्ञानिक मन के अविष्कार अउ डॉक्टर मन के इलाज म विश्वास करना ए समे के जरुरत हे। जतका हो सके नकारात्मक समाचार मन ले बाँचे के कोशिश करन। अपन आप ल कोरोना ले जुरे खबर ले दूर कर लन। काबर कि कोरोना के लक्षण अउ बाँचे के सरी उपाय ले परिचित हन। 

        घोर घोर के एके जिनिस के बारे म देखे सुने ले चेत उहें लगे रहिथे। चेत ल बिलमाय बर घर परिवार के जम्मो सदस्य मिल बइठे के हाँसन गोठियान। गीत संगीत ले मनोरंजन करन। सद्साहित्य मन ले लइका मन ल जोरे के कोशिश करन। घर के काम-बूता ल मिलबाँट के करे जाय। बूता कमती रहे ले योग अउ व्यायाम के सहारा लन। ए सब ले हमर सबो तरा के विकास संभव हे। आपस म हमर संबंध अउ मजबूत होही। ए मजबूती हम ल अउ ताकत दिही। एक अउ एक ग्यारह बनही। अब जब वैक्सीन आगे हे त ढिलाई नइ दिखाना हे। दुश्मन ल कभू कमती नइ आँके के ए। अपन बारी म वैक्सीनेशन जरूर करावन।

      एक बात अउ सुरता राखे के हे कि अपन सुरक्षा, अपन हाथ। कोरोना ले बचे के जम्मो उपाय ल अपनावन। निश्चित हे, जब कोरोना ल हम आश्रय नइ देबो त ओकर हार तय हे।  

*कोरोना ले जीतबो, मिलके सबझन जंग।*

*हँसी-खुशी ले रंगबो, जिनगी के सब रंग।।*

पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार

सुरता...सुशील भोले


 

सुरता...सुशील भोले

छत्तीसगढ़ी लेखन ल अध्यात्म संग जोड़े बर जोर देवइया स्वामी आत्मानंद..

   स्वामी आत्मानंद जी के जनमभूमि ग्राम बरबंदा अउ मोर पैतृक गाँव नगरगांव एक-दूसर के परोसी हे. हमर दूनों गाँव के खार ह आपस म जुड़े हे. फेर मोला स्वामी जी संग पहिली बेर संग म बइठ के गोठियाए के सौभाग्य सन् 1988 के दिसंबर महीना म तब  मिले रिहिसे, जब  हमन छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य प्रचार समिति के प्रादेशिक जलसा रायपुर के रामदयाल तिवारी स्कूल म करे रेहेन.

   ए समिति के संयोजक छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी रहिन. अध्यक्ष भाषाविद डा. व्यास नारायण दुबे जी अउ मैं सचिव रहेंव. तब मैं अपन नांव सुशील वर्मा लिखत रेहेंव. बाद म आध्यात्मिक दीक्षा ले के बाद गुरु आदेश ले जातिसूचक शब्द के जगा अपन इष्टदेव के नांव ल जोड़ेंव. हमन ए समिति के बइठका म तय करे रेहेन  के ए जलसा के मुख्य अतिथि स्वामी आत्मानंद जी ल बनाबोन कहिके. 

   इही जोखा के सेती हम तीनों रायपुर के विवेकानंद आश्रम गे रेहेन स्वामी जी ले  कार्यक्रम म आए के अनुमति ले खातिर. उही दिन मैं स्वामी जी संग पहिली बेर बइठ के गोठियाएंव. संग म बइठ के गोठियाएन त आत्मा ह तृप्त होए असन लागिस. कार्यक्रम के होवत ले दू-तीन पइत भेंट होइस. स्वामी जी हमर मन  संग आरुग छत्तीसगढ़ी म गोठियावंय गजब नीक लागय. वइसे तो स्वामी जी के प्रवचन सुने के अवसर कतकों जगा मिलत रहय. कभू विवेकानंद आश्रम के वाचनालय म अखबार पढ़े खातिर जावन त दरस मिल जावय. एकाद-दू पइत आकाशवाणी म घलो दरस हो जावय, जब वोमन चिंतन कार्यक्रम के रिकार्डिंग खातिर पहुंचे राहंय अउ महूं कोनो कार्यक्रम के सिलसिला म तब. फेर संग म बइठ के गोठियाए के अवसर  उही जलसा के आयोजन बखत मिले रिहिसे.

   जलसा म मुख्य अतिथि के रूप म कहे उंकर एक बात के मोला आज तक सुरता हे- उन कहे रिहिन के "छत्तीसगढ़ी लेखन ल जन-जन म लोकप्रिय बनाना हे, त एला अध्यात्म संग जोड़व. उन उदाहरण देवत कहिन के  तुलसीदास जी, सूरदास जी, कबीरदास जी अउ मीराबाई जइसन मन के रचना आज घलो सबले जादा पढ़े अउ सुने जाथे, एकर असल कारण आय, एकर मन के अध्यात्म संग जुड़े होना. जबकि साहित्यिक दृष्टि ले देखहू, त  एकर मन ले श्रेष्ठ रचना अउ दूसर मन के लेखन म आप मन ला देखे बर  मिल सकथे, फेर जेन लोकप्रियता ए मनला मिलिस, वो ह दूसर मनला मुश्किल हे."

    स्वामी आत्मानंद जी के जनम 6 अक्टूबर 1929 के गाँव बरबंदा, थाना- धरसींवा जिला- रायपुर म होए रिहिसे. बचपन के उंकर नांव तुलेन्द्र रिहिसे. उंकर सियान धनीराम वर्मा जी उही तीर के बड़का गाँव मांढर म तब गुरुजी रिहिन हें. कुछ बेरा के पाछू धनीराम जी के चयन उच्च शिक्षा के प्रशिक्षण खातिर वर्धा म होगे रिहिसे. एकरे सेती वोमन पूरा परिवार सहित वर्धा चले गे रिहिन हें. इहाँ ए जानना महत्वपूर्ण हे के स्वामी आत्मानंद जी के छोटे भाई अउ हमर छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार अउ राजगीत के रचनाकार डा. नरेंद्र देव वर्मा जी के जनम धनीराम जी के वर्धा म राहत ही वर्धा म होए रिहिसे.

   वर्धा म ही स्वामी आत्मानंद जी (बालक तुलेन्द्र)  सेवाग्राम आश्रम म महात्मा गाँधी जी के संपर्क म आइन. तुलेन्द्र बचपन ले ही बहुत प्रतिभा संपन्न रिहिन. उन बड़ मयारुक ढंग ले भजन गावंय. एकरे सेती उन गांधी जी के बड़ मयारुक होगे रिहिन. वर्धा आश्रम ले कुछ दिन बाद धनीराम जी अपन परिवार संग फेर वापस रायपुर आगे रिहिन अउ इहाँ के शक्ति बाजार म श्रीराम स्टोर खोल के जीवनयापन करे लागिन.

    इहाँ तुलेन्द्र ह सेंटपाल स्कूल ले प्रथम श्रेणी म हाईस्कूल के परीक्षा पास करीस अउ उच्च शिक्षा खातिर नागपुर के साइंस कालेज चले गेइन. उहाँ छात्रावास म उनला रेहे खातिर जगा नइ मिलिस, त उन उहाँ के  रामकृष्ण आश्रम म रेहे लागिन. इहें ले तुलेन्द्र के मन म स्वामी विवेकानंद के आदर्श ह संचरे लागिस. तुलेन्द्र नागपुर ले गणित म एम. एससी. के परीक्षा पास करीस. अउ संगवारी मन के सलाह म आईएएस के परीक्षा म शामिल होगें, जेमा उन दस झन पास होए लोगन म शामिल रिहिन. फेर मानव सेवा अउ विवेक दर्शन के जेन जोत उंकर मन म जलगे रिहिसे, तेकर सेती नौकरी के मोह म नइ परिन. आईएएस के मौखिक परीक्षा म शामिल नइ होइन.

   देश ल आजादी मिले के बाद उन रामकृष्ण मिशन म जुड़ गिन. 1957 म रामकृष्ण मिशन के महाध्यक्ष स्वामी शंकरानंद जी ह तुलेन्द्र के प्रतिभा ले प्रभावित होके उनला ब्रम्हचर्य के दीक्षा देइन, अउ उंकर संन्यास जीवन के नांव धरिन स्वामी तेज चैतन्य. तेज चैतन्य ह अपन नांव के अनुरूप मिशन ल आलोकित करीस. सरलग विकास अउ साधना सिद्धि खातिर उन एक बछर तक हिमालय के स्वर्गाश्रम म रहिन. उहाँ कठिन साधना ल पूरा करे  के  पाछू फेर रायपुर आइन. इहाँ स्वामी भास्करेश्वरानंद  जी के संग म रहिके संस्कार के शिक्षा लेइन, इहें फेर उनला स्वामी आत्मानंद के नवा नांव मिलिस.

  आत्मानंद जी स्वामी विवेकानन्द जी के रायपुर म बीताए दिन के सुरता ल अविस्मरणीय बनाए खातिर रायपुर म विवेकानंद आश्रम बनाए के बड़का कारज चालू  करिन. फेर एकर खातिर वोमन मिशन ले विधिवत अनुमति नइ लिए रिहिन हें, तेकर सेती बेलूर मठ ले उनला एकर स्वीकृति नइ मिलिस. तभो उन आश्रम के कारज ल पूरा करिन. फेर बाद म उनला बेलूर मठ ले संबद्धता घलो मिलगे. वोमन शासन द्वारा अनुरोध करे म इहाँ बस्तर के घोर जंगल के बीच नारायणपुर म घलो उच्च स्तरीय शिक्षा के केन्द्र स्थापित करिन. 

  वोमन अपन पूरा जिनगी ल नर रूपी नारायण के सेवा अउ शिक्षा म बीता देइन. 27 अगस्त 1989 के उन जब भोपाल ले रायपुर सड़क के रस्ता ले आवत रिहिन हें, तब राजनांदगाँव के तीर सड़क दुर्घटना म अपन आखिरी सांस लेइन.

    स्वामी जी के परमधाम जाए के समाचार रायपुर के सबो पेपर मन म पहला पेज के खबर बने रिहिसे. हमन पहिली बेर इहाँ देखेन के सबो पेपर वाले मन ए समाचार ल रिवर्स माने पूरा के पूरा करिया रंग म छापे रिहिन हें. अइसन समाचार रायपुर के इतिहास म दुबारा तब देखे बर मिलिस जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्या होए रिहिसे.

    स्वामी जी ल समाधि दे खातिर जब इहाँ के महादेव घाट ले जाए गिस तभो जेन जनसैलाब  देखे गिस वो आज तक रायपुर के इतिहास म देखे ले नइ मिले हे, जेन ह स्वामी जी के जनमानस के बीच के लोकप्रियता ल बताथे. वो बखत विवेकानंद आश्रम ले लेके महादेव घाट तक सिरिफ लोगन के मुड़िच मुड़ी दिखय, एको जगा पांव राखे के जगा तक नइ दिखत राहय.

    बहुत आगू दिन बीते के बाद मोर मन म स्वामी जी के ऊपर कुछ भजन लिखे के विचार होइस, त आठ-दस ठन रचना लिख के मैं स्वामी जी के सबले छोटे भाई अउ विवेकानंद विद्यापीठ के सचिव डा. ओमप्रकाश वर्मा जी ल देखाएंव. उंकर अनुमति मिले के पाछू रामकुंड रायपुर के प्रसिद्ध भजन गायक सुरेश ठाकुर 'पंडा' के माध्यम ले वोला संगीत अउ स्वरबद्ध कर के कैसेट के रूप दे रेहेन. उही म एक रचना ए मेर स्वामी जी न नमन करत प्रस्तुत हे....

आत्मा म आनंद भरइया स्वामी आत्मानंद

तोर संग मिल के लागिस जइसे मिलगे परमानंद...

जय हो स्वामी आत्मानंद...


मन मोर मइलाए रहिस हिरदे रहिस करिया

चिक्कन-चांदन उज्जर करे धोके तैं ह बढ़िया

मोह-माया अउ कपट के छोड़ाए तैं दुरगंध... जय हो..


राग-रंग म बूड़े राहन नइ जानन कुछू सेवा

तरी-उप्पर नाचत राहय पंड़की अउ परेवा

मिरगिन कस उछलन-कूदन ठाढ़ेच अड़दंग.. जय हो...


नाचा-गम्मत खेल-तमासा जिनगी इही लागय

दया-धरम के पाठ-पढ़ौना एतीच-तेती भागय

तोर सुर म सुर मिलाए कस अब जुड़ागे सबो अंग.. जय हो...

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811