Thursday 15 April 2021

कबीरा खड़ा चुनाव में ..................हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

 कबीरा खड़ा चुनाव में ..................हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

                बाजार म खड़े खड़े , कबीरदास जी हा , कबीरा खड़ा बाजार में , लिये लुकाठी हाथ , जो घर फूंकें आपनो , चले हमारे साथ , कहत कहत असकटाये लगिस । गोड़ पिराये बर धर लिस । कबीर के घला अक्कल ला देखथंव , मोला समझेच नइ अइस , अइसने कन्हो अपन घर फूंक के , कबीर के संग दे बर थोरेन आही गा तेमा ... ? तभे कबीरदास जी ला पता चलिस के , मनखे मन के , खड़े होये के समे लकठियावत हे । ओहा लंगोट कसके , अपन तिर आये बर खड़े होवइया मनके , अगोरा करे लगिस । कबीरदास जी ला लगिस के , ओकरे संग खड़ा होय बर मनखे के रेम लगने वाला हे । मनखे अगोरत खड़े खड़े कबीरदास जी के आंखी लटकगे । 

               अपन संग बहुत मनखे के साथ होये के , सपना देखे लगिस कबीरदास जी हा । एक झिन बने दिखत मनखे भोलाराम हा , ओकर बाजू म आके खड़ा होगे । कबीरदास जी हा ओकर स्वागत करत पूछिस – दुनिया के सरी सुख ला त्याग के , अपन घर ला फूंक के आये होबे बाबू तहूं हा ... , कइसे अनुभौ करत हस ? भोलाराम किथे – सुख त्यागे बर होतिस त खड़ेच काबर होतेंव , वहू म तोर तिर ... ? कबीर किथे – जे मनखे सुख त्याग देथे , तिही मोर तिर खड़े होथे , अइसन म तैं काबर आये होबे ? भोलाराम किथे – बड़ अलकरहा गोठियाथस जी ... लोकतंत्र म हरेक मनखे ला खड़ा होय के अधिकार हे । सुख पाये बर खड़ा होय जाथे , तैं सुख त्यागे के गोठ गोठियाथस । कबीर किथे – चल ठीक हे , फेर मोर तिर आये हस त , अपन घर फूंक के आयेच होबे । भोलाराम किथे - अपन घर फूंक के निही बल्कि दूसर के घर फूंक के आये हंव अऊ जेकर जेकर घर ला फूँके नइ सके हंव तेकर मन के , लिस्ट बना के लाने हंव , जीते के बाद फूँकहूं ..... । भोलाराम के बात सुन , ओकर संग कतको मनखे जुरियागे । अतका देख अऊ सुनके , कबीरदास जी नींद म बेहोश होगे ।  

               बेहोशी म , पप्पू ला अपन बाजू म खड़े देख पारिस । पप्पू के एक हाथ म बोतल , दूसर हाथ म कपड़ा लत्ता , एक खींसा म पइसा , दूसर खींसा म आसवासन के हजारों ठिन कागज के फुदकी ....... । कबीर पूछथे – येमन काये जी ...........? पप्पू किथे – येमन हमर खड़े हो सके के यंत्र आय । जेकर तिर ये समान निये तेला खड़े होय के कन्हो अधिकार निये । कबीर पूछथे – येला काये करबे ? पप्पू किथे - येला बांटबो तभे बेड़ा पार होही । बेहोशी हालत में कबीर ला सब दिखत रहय । कबीर किथे – अइसन चीज ला बइठे बइठे बांट सकत हव , येकर बर खड़े होय के का आवसकता हे ? पप्पू किथे – येला खड़े खड़े बांटबो तब बइठे ला मिलथे भकला , बइठे के पाछू बांटे के फुरसत कहां रहिथे , वो समे तो सिर्फ अऊ सिर्फ सकेले के बेरा होथे ..... । कबीर किथे - वो तो ठीक हे फेर , दारू बांटना , फोकट म कन्हो ला कपड़ा लत्ता देना अच्छा काम नोहे जी , कन्हो मना नइ करे का ? पप्पू किथे – झोंकइया मन अभू तक मना नइ करिस , हां कुछ देखइया मन जरूर हरेक दारी मना करत पिछू परे रहिथे । कबीर किथे- त काबर बांटथव जी ? पप्पू किथे – खड़े होये के समे , एक बेर बांट , पांच बछर तक हजारों बेर हजारो गुना सकेल ..... । रिहीस बात मना करे के , वो फोकट बात आय , मना करइया मन घला जानथे के , कतको बरज , बांटबे करही । मोला लागथे , हरेक खड़े होवइया ला मुक्त हाथ से जनता ला ........ खड़े होय के समे , अइसन समान बांटन देना चाही । कबीर मुहुं ला फार के पूछथे – काबर ? पप्पू बतइस - एक बेर अइसन समान ला , जनता म बांटना अनिवार्य कर के देखय , या तो बांटना कमतिया जही या खड़ा होवइया के संखिया । कबीर किथे – अइसन बोल के काबर मोर संग खड़ा होवइया संगवारी मन ला कमतियाथस जी ? पप्पू हाँसिस – हमन तोर संगवारी नोहन गा .. । तोर संगवारी मन का खड़े होही जेमन अपन घर दुवार ला फूंकथे । कबीर पूछथे – त काकर संगवारी अस जी  ? पप्पू किथे – बइठे के सुख पाये के रसता म , हमर कस खड़ा होवइया मनखे के संगवारी आवन जी । 

               कबीर पूछथे – अतके म सुख पा जबे या ओला पाये बर , अऊ कहीं धरे हस ? पप्पू किथे – अऊ कहींच निये मोर तिर । बिसवास नइ होइस कबीर ला । पप्पू के देहें ला टमड़े लगिस । देहें म लुका के बंदूक धरे रहय पप्पू हा । कबीर किथे – ये काये ...... ? पप्पू बतइस – येहा ओकर बर आय जेहा अतका म घला नइ माने । कबीर फेर पूछिस – अऊ मानगे त ...... ? पप्पू किथे – काम झरे के बाद , ओकरे मन के मुड़ी म ताने बर धरे हन , जे अतके म मानगे । अतेक सुघ्घर बिचार के बावजूद भी , पप्पू के पिछू म उमड़त भीड़ देख , बेहोस कबीर कोमा म चल दिस । 

               अइसन खड़ा होवइया मन के नसीब म भारी सुख लिखाये रहय । उंकर मन बर सरग इंहे उतरगे रहय । कबीर के तन के आंखी तो कबके मुंदा चुके रिहिस , मन के आंखी हा लिबिर लिबिर करते रहय । बपरा हा यहू आंखी ला घला मुंदे के बहुत प्रयास करिस फेर ओहा मुंदइस निहे बल्कि आगू म अऊ बहुत कुछ दिखगे । मुहुँ कोति ले बुदबुदाये के प्रयास देख .. कुछ बोलय झन कहिके , लालबत्ती के चमक देखाके , ओला कोंदा बना दिन अऊ सत्ता के मास्क म ओकर मन के सांस ला बंद करे के प्रयास होय बर लगिस .. बपरा कोमा ले निकलके अऊ आगू चल दिस .. । तब सुख पाये के आस करइया मन , ओकर दोहा के स्वरूप बदल डरिन – कबीरा खड़ा चुनाव म , लिये खजाना हाथ । जो घर फूंके दूसरौ कौ , चले हमारे साथ । ये दोहा के महत्तम ला समझइया मन .. चुनाव के बेर खड़ा होके , जम्मो सुख के अधिकारी बने के बाट जोहत रहिथे । 

     हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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