Friday 9 April 2021

छत्तीसगढ़ी साहित्य के अवइया स्वरुप

 छत्तीसगढ़ी साहित्य के अवइया स्वरुप 

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      छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद पहिली दशक मं छत्तीसगढ़ी साहित्य पद्य , गीत , कविता मं माते रहिस । छत्तीसगढ़ महतारी के वंदना , गांव , संस्कृति , तीज तिहार के सुरता इही सब ...जेहर ओ समय के मांग रहिस  तभो कलेचुप गद्य हर अपन रस्ता धर लेहे रहिस । 

पिछले दशक ले गद्य के बहुतायत देखे बर मिले लगिस । अखबार मं छत्तीसगढ़ी बर अलग पन्ना देहे जाए लगिस जेहर नवा , जुन्ना लिखइया मन के गद्य लेखन ल आगू बढ़ाये के काम करिस । 

    वैचारिक लेख , कहानी , संस्मरण , उपन्यास ,लघुकथा पढ़े बर मिले लगिस त लोगन के ध्यान छत्तीसगढ़ी उपर परे लगिस कई झन हिंदी लेखक मन घलाय छत्तीसगढ़ी मं लिखे बर सुरु करिन । इही बदलाव हर छत्तीसगढ़ी के रचनाधर्मिता ल जगाए के काम करिस , खुशी ये बात के भी होइस के छत्तीसगढ़िया लेखक मन छत्तीसगढ़ी भाषा ल चिंतन के भाषा के रुप मं स्थापित करे के प्रक्रिया ल अपनाईन । छत्तीसगढ़ी हर आंचलिकता ले आघू बढ़े लगिस , सुरता आवत हे के एक व्यापक भाषा के माध्यम से छत्तीसगढ़ी आउ मुखर होइस त डॉ हीरा लाल शुक्ल के आलेख हर प्रतिष्ठित " इलुस्ट्रेटेड वीकली " मं प्रकाशित होए रहिस । ओ समय खुशवंत सिंह असन बुधियार लेखक , सम्पादक मन भी बड़ाई करे रहिन । 

     अब छत्तीसगढ़ी साहित्य मं गद्य के सहभागिता बढ़त हे काबर के छत्तीसगढ़ी ल  साहित्य संसार मं जघा बनाये बर पोट्ठ गद्य जरुरी हे । निचट आंचलिकता ले उबर के राष्ट्रीय , अंतरराष्ट्रीय 

परिदृश्य , समकालीन सन्दर्भ संग वर्तमान देश काल , वैश्विक तंत्र , उपनिवेशवाद , बाजारवाद , उपभोक्ता संस्कृति असन विषय वस्तु ल छत्तीसगढ़ी साहित्य मं जघा देहे बर परही तभे हमर छत्तीसगढ़ी  साहित्य हर आघू बढ़ही । संसार मं हर साल कतको भाषा बोली मन नंदावत जात हें कहि सकत हन के आज के युग हर भाषाई संकट के युग आय अइसन दौर मं छत्तीसगढ़ी ल सिर्फ जियत जागत नइ रहना हे , अपन जनारो देना है । बुधियार लिखइया मन के जिम्मेदारी बढ़ गए हे त कलम सम्हारव , लिखत चलव ...नवा युग के नवा कहानी । गद्य के सबो विधा ल तो आप सबो झन चीन्ह डारे हव त अबेर काके ? कलम धरव ..लिखव सामयिक सन्दर्भ के गम्भीर लेख ...। एकर एक ठन फायदा अउ होही छत्तीसगढ़ी भाषा हर पोट्ठ होही , शब्द भंडार बढ़ही , तकनीकी शब्दावली ल सहजता से अपनाए जा सकही । गद्य के परिष्कृत रुप जगर मगर करही । 

   दलित चेतना , स्त्री विमर्श असन विषय मन भी अब जुन्ना गिन । मानत हंव के प्रिंट मीडिया ले सोशल मीडिया हर अघुवा गए हे । तभो ध्यान देहे च बर परही के सोशल मीडिया के साहित्य हर क्षणिक होथे जरुर ग्लेमर जादा रहिथे ..तुरते ताही लाइक , बड़ सुग्घर असन बड़ाई मिल जाथे फेर किताब , पत्र पत्रिका मं प्रकाशित साहित्य हर दस्तावेज बन जाथे , साहित्य के भंडार भरे के काम करथे , कोठी मं सुरक्षित हो जाथे , भाषा के इतिहास के एक ठन अध्याय बन जाथे । तभो आउ सुरता राखे के बात एहू हर तो आय के स्थाई साहित्य हर मीडिया साहित्य कस उन्मुक्त नइ होवय , एतरह के साहित्य के अपन रचनाधर्मिता होथे , आदर्श होथे । मनसे के सोच विचार , चिंतन मनन ल समाज , देश राज के कल्याण कती ले चलथे । गिरे हपटे , पिछुवाये , रस्ता भुला गए मन ल संग चले बर हांक पार के बलाथे उही कहिथें न सहितेन साहित्य: ...। 

      लोकाक्षर पटल हर छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य ल पोट्ठ करे के बीड़ा उठाये हे , खुशी होथे जब ये पटल मं गुनी मानी लिखइया मन के अलग अलग विधा के लेख पढ़थंव । अभी on line परीक्षा , exam . From home उपर गम्भीर सामयिक लेख पढ़ के मन मं नवा भरोसा जागिस हे के अब छत्तीसगढ़ी गद्य सरपट दौड़ही ..। सबो लिखइया मन ल बधाई देवत हंव । 

 कहे च बर परही कलम तोर जय होवय । 

    सरला शर्मा 

     दुर्ग

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