Monday 26 April 2021

विपदा म धीर कइसे धरन*

 *विपदा म धीर कइसे धरन*


धीरज धर्म मित्र अरु नारी।आपद काल परिखिअहिं चारी।।

       ये अर्धाली म गोस्वामी तुलसीदास जी ह मनखे बर जिनगी के बहुतेच सार बात कहें हें। उनकर कहना हे कि  धीरज (धैर्य), धर्म(मानवता--दया, क्षमा, सत्य, अहिंसा, अस्तेय आदि),   मित्र अउ नारी (जीवन संगिनी) के परख  मतलब असली पहिचान विपत्ति के समे होथे। ये चारों म पहिली क्रम म *धीरज* ल रखे गे हे काबर के  धीरज के बगैर बाँकी मन के सहीं परख नइ हो सकय।

   ये ह कतका सिरतोन अउ सार बात आय।भगवान राम अउ कृष्ण, भगवान गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी,  ईसा मसीह, मोहमम्द पैगम्बर , गुरु नानकदेव ,संत कबीर दास,गुरु बाबा घासीदास, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी ले लेके संसार के अइसे कोनो ज्ञानी, ध्यानी नइ होहीं जेन मन संकट के समय धीरज धरे ल नइ कहे होहीं। 

    समझे के बात ये हे के धीरज आय का? धीरज के मतलब होथे कोनो दुख ल, विपरीत परिस्थिति ल सहन कर लेना। सहन करना तको दू तरह के हो सकथे----एक तो सचेत होके, ये विश्वास म के आज नहीं ते काल दुख के बदली छँट जही अउ सुख के सुरुज के दर्शन होके  रइही, तूफान ल देख के मन के चिरइया जेन अपन डेना-पाँखी ल सकेल के खोंधरा म कँपसे खुसरे हे वो ह एक दिन जरूर चहचहावत ,आजादी ले उड़ पाही। एही ह असली धीरज आय।

       आदमी ह कई पइत शांत दिखथे, अइसे लागथे के के ये ह संकट के समें एकदम धीरज धर लेहे।एमा अबड़ेच सहनशक्ति हे फेर होय उल्टा रहिथे। वोह विपत्ति ल देख के अधीर होके निराशा के सागर म डूबगे रहिथे। जियें के आशा ल छोड़के अपन आप ल परिस्थिति के हवाले कर देथे अउ जिंदा मनखे मुर्दा बरोबर हो जथे। मुर्दा ह शांत, धीर गंभीर तो दिखबे करही । अइसन नकली धीरज ह म खुद अउ समाज बर बड़ घातक होथे।

     हाँ, एक बात जरूर हे कि विपत्ति म धीरज धरना चाही, ये बात कहे म जतका सरल लागथे ,करे म वो ह ओतके कठिन हे। विपत्ति के समे ,खासकर अपन प्रिय जन ल खोये म, ओकर ले बिछुड़े म बड़े -बड़े साहसी अउ विचारवान मन के धीरज जवाब दे देथे। फेर इही समे म कोनो भी चिटिकुन ठहर के , सोंच विचार के , ईष्ट मित्र, बड़े-बुजुर्ग परिवार जन, सद साहित्य के  सांत्वना म धीरज धर लेथे त वो ह ये दुख ले उबर जथे।

          विपत्ति के समे धीरज रखे बर सबसे पहिली बात तो दुख ल सहे ल परथे। जेन दुख ल सहि लेथे उही धीरज धर सकथे ,नहीं ते संभव नइये।दूसर बात वो परम कृपालु ,परम सत्ता जेला प्रकृति, ईश्वर आदि अनेक नाम ले पुकारे जाथे उपर दृढ़ विश्वास होना चाही के वो ये विपत्ति ल टार के रइही। विश्वासं फलदायकं कहे गे हे। जेन चीज म हमर बस नइ चलय वोला बिना विचलित होय स्वीकार कर लेना तको धीरज के निशानी आय। धीरज ह जिनगी के सुरक्षा कवच आय। सफलता बर धीरज तो चाहीच फेर असफलता, दुख, निराशा, विपत्ति के समे  वोकरो ले जादा धीर रखना चाही।

      हम सबला कोरोना महा संकट के विपरीत समे म धीरज रखना बहुत जरूरी हे।जेन सइही, तेन रइही। धीरज के महिमा अपरम्पार हे। मनखे बर ये ह दैवीय गुण ये। येकर लाभ असिमित हे। प्रातः स्मरणीय संत कबीर दास जी कहिथें---

कबीरा धीरज के धरे,हाथी मन भर खाय।

टूक एक  के कारने, स्वान घरै घर जाय।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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