Monday 26 April 2021

दाऊ रामचन्द्र देशमुख के "चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका : शैलजा ठाकुर" (भाग - 1)


 

दाऊ रामचन्द्र देशमुख के "चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका : शैलजा ठाकुर"  (भाग - 1)


"शैलजा ठाकुर" सत्तर और अस्सी के दशक  का एक जाना पहचाना और चर्चित नाम है। वर्तमान समय की युवा पीढ़ी के लिए संभवतः यह नाम नया हो क्योंकि शैलजा ठाकुर में कभी भी आत्म-प्रशंसा के लिए अपनेआप को कभी भी प्रचारित नहीं किया। आज की पीढ़ी के लिए छत्तीसगढ़ी रंगमंच की श्रेष्ठ कलाकार, शैलजा ठाकुर का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहा हूँ। शैलजा ठाकुर का जन्म राजनाँदगाँव में हुआ था और उनका बचपन अंबिकापुर में बीता। वह बहुत छोटी थी फिर भी शैलजा ठाकुर के नृत्य के बिना अंबिकापुर में कोई भी सांस्कृतिक आयोजन सम्पन्न नहीं होता था।  उस दौर के सुप्रसिद्ध संगम आर्केस्ट्रा में उन्होंने अपनी मधुर आवाज आवाज का जादू बिखेरा था।


चंदैनी गोंदा के संस्थापक दाऊ रामचंद्र देशमुख जब प्रतिभावान कलाकारों की खोज में डोंगरगढ़ से लेकर रायगढ़ तक के चप्पे-चप्पे में उत्कृष्ट प्रतिभाओं की तलाश कर रहे थे, उस समय एक ही परिवार के दो अनमोल रत्न दाऊजी की नजर में आए। यह दो रत्न थे शैलजा ठाकुर और अनुराग ठाकुर। अनुराग ठाकुर चंदैनी गोंदा की प्रमुख गायिकाओं में से एक गायिका रही हैं। बखरी के तुमा नार,  हमका घेरी-बेरी देखे ओ बलमा पान ठेला वाला, पुन्नी के चंदा, संगी के मया जुलुम होगे आदि गीत आज भी आकाशवाणी और अन्य माध्यमों से सुने जाते हैं। चंदैनी गोंदा में पहले तो शैलजा ठाकुर कोरस की गायिका रहीं। तत्पश्चात उन्हें "गंगा" जैसे पात्र की भूमिका मिली। धीरे धीरे शैलजा ठाकुर चंदैनी गोंदा की मुख्य नृत्य निर्देशिका बन गयीं।


नृत्य निर्देशन के साथ ही चंदैनी गोंदा के ड्रेस-डिजाइनर का दायित्व भी उन्होंने सम्हाल लिया। छत्तीसगढ़ की महिला का प्रतीक परिधान - लाल पोलखा और हरी साड़ी, यह कॉम्बिनेशन शैलजा ठाकुर का ही दिया हुआ है।  इन्हीं बहुमुखी प्रतिभाओं के कारण दाऊ रामचंद देशमुख जी ने शैलजा ठाकुर को "कारी" की मुख्य नायिका बनाया था। "कारी" पर विस्तृत चर्चा अगले आलेख में की जाएगी। (क्रमशः)


आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

No comments:

Post a Comment