Tuesday 27 April 2021

सुरता : श्रद्धेय नारायण लाल परमार


 

सुरता : श्रद्धेय नारायण लाल परमार

(01 जनवरी 1927 - 27 अप्रैल 2003)

संदर्भ : दाऊ रामचन्द्र देशमुख कृत "चंदैनी गोंदा"


29 जनवरी 1972, ग्राम पैरी (बालोद) के बस स्टैंड में लगभग 70 सवारियों से भरी यात्री बस रुकती है। अनेक यात्री उतरते हैं। इन्हीं यात्रियों में चार सवारियाँ धमतरी से भी आयी हैं। ये चारों, पैरी नदी की ओर बढ़ते हैं। रास्ते में लोगों का हुजूम भी चल रहा है। बच्चे, किशोर, तरुण, अधेड़, वृद्ध ग्रामीण बढ़े जा रहे हैं पैरी नदी की ओर। धमतरी से आये ये चारों सज्जन मुख्य मार्ग छोड़कर शॉर्टकट पकड़ते हैं। खेतों के बीच से जाती हुई पगडंडी। बैलगाड़ियाँ और गाड़ा भी सवारियों से भरे हुए इसी दिशा में जा रहे हैं। यह सफर समाप्त होता है चंदैनी गोंदा के शामियाने के निकट जाकर। 


जी हाँ, आज पैरी में चंदैनी गोंदा का द्वितीय भव्य प्रदर्शन है। इसी के कारण यह गहमागहमी और भीड़भाड़ है। शामियाने के निकट आने के बाद ये चारों सज्जन सुरेश देशमुख का पता लगाते हैं। खबर मिलते ही सुरेश देशमुख लपक कर आते हैं। खिला हुआ चेहरा। चंदैनी गोंदा देखने का आमंत्रण उनका ही था। शायद उन्हें विश्वास नहीं था कि उनके गृह नगर धमतरी से ये चारों आमंत्रित सज्जन यहाँ आएंगे इसीलिए उनके चेहरे पर संतोष और उल्लास कुछ ज्यादा ही अभिव्यक्त हो रहा था। चाय के लिए पूछा। स्टेज के सामने बैठने की व्यवस्था करने के बाद स्टेज के पीछे ओझल। मुख्य उद्घोषण की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी। कार्यक्रम के विभिन्न दृश्यों को पिरोने वाला सूत्रधार - सुरेश देशमुख।


ये सारा दृश्य, सारा संस्मरण आदरणीय त्रिभुवन पांडेय जी के आलेख "छत्तीसगढ़ : एक आत्मसाक्षात्कार : चंदैनी गोंदा" से लिया गया है। इस सम्पूर्ण आलेख में तो पैरी में आगमन से लेकर चंदैनी गोंदा के प्रदर्शन की समाप्ति तक का इतना रोचक व सूक्ष्म वर्णन है कि पैरी की वह चाँदनी रात आँखों के सामने सजीव हो उठती है। सुरेश देशमुख जी के आमंत्रण पर धमतरी से पधारे ये सज्जन कौन-कौन थे, यह भी बता दूँ - सर्वश्री नारायणलाल परमार जी, त्रिभुवन पांडेय जी, शेषनारायण चंदेले जी और गिरधारी अग्रवाल जी। इन चारों विभूतियों का चंदैनी गोंदा से यह प्रथम साक्षात्कार था। सुबह-सुबह आयोजन समाप्त हुआ। सुरेश देशमुख जी ने दाऊ रामचन्द्र देशमुख जी को बताया कि धमतरी से सर्वश्री नारायणलाल परमार जी, त्रिभुवन पांडेय जी, शेषनारायण चंदेले जी और गिरधारी अग्रवाल जी आये हैं। दाऊ जी ने कहा - उन्हें हमारे साथ हमारी बस में बघेरा चलने को बोलो। वहाँ विश्राम करेंगे। भोजन में उपरान्त उनके धमतरी लौटने की व्यवस्था कर दी जाएगी। परमार जी, पांडेय जी, चंदेले जी और अग्रवाल जी चंदैनी गोंदा की टीम के साथ बस में बैठकर बघेरा आ गए। विश्राम करने के बाद दाऊ जी से चर्चाएँ हुईं फिर उनके धमतरी लौटने का प्रबंध कर दिया गया। यह प्रथम मुलाकात थी दाऊ रामचंद्र देशमुख जी और आदरणीय नारायणलाल परमार जी और त्रिभुवन पाण्डेय जी की।


चंदैनी गोंदा के प्रदर्शन के प्रारंभ में मंच पर किसी न किसी साहित्यकार का स्वागत व सम्मान किया जाता था।  दाऊ जी के अपने मंच पर कभी भी किसी राजनैतिक हस्ती को आमंत्रित नहीं किया था। 04 मार्च 1972 को सिविक सेंटर भिलाई में चंदैनी गोंदा के मुख्य अतिथि श्रध्देय नारायणलाल परमार जी का सम्मान किया गया था। इस मंच पर स्वागत का दायित्व चंदैनी गोंदा की प्रमुख गायिका श्रीमती संगीता चौबे ने निभाया था। उस अवसर का चित्र भी पोस्ट किया गया है। (आदरणीय सुरेश देशमुख जी की फेसबुक वॉल से साभार)


आपको विदित ही है कि चंदैनी गोंदा का प्रथम प्रदर्शन ग्राम बघेरा में 07 नवम्बर 1971 को हुआ था। दाऊ जी ने चंदैनी गोंदा की स्थापना के पाँच वर्ष पूर्ण होने पर "छत्तीसगढ़ की एक सांस्कृतिक यात्रा : चंदैनी गोंदा" शीर्षक से एक स्मारिका प्रकाशित करवायी थी जिसका सम्पादन श्रद्धेय-द्वय श्री नारायण लाल परमार जी और श्री त्रिभुवन पाण्डेय जी ने किया था। इस स्मारिका का मुख पृष्ठ और प्राम्भिक कुछ पन्ने, संपादकीय सहित यहाँ पोस्ट किए गए हैं ताकि नयी पीढ़ी चंदैनी गोंदा के वैभवशाली इतिहास से परिचित हो सके। इस स्मारिका के अंत में गीत कुंज के नाम से कुछ पन्ने भी हैं जिसमें गीतकार श्री रविशंकर शुक्ल जी के दो गीतों सहित कुल पन्द्रह गीतकारों के एक-एक गीत प्रकाशित हैं। इसी में गीतकार श्री लक्ष्मण मस्तुरिया जी के 10 गीत भी प्रकाशित हैं। इस गीत कुंज में श्री नारायणलाल परमार जी का गीत "गाँव अभी दुरिहा हे" भी प्रकाशित है। इन्हीं स्मृतियों के साथ आज हम श्रद्धेय नारायणलाल परमार जी की पुण्यतिथि पर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करते हैं। 


"गाँव अभी दुरिहा हे" - श्री नारायणलाल परमार


तीपे चाहे भोंभरा, झन बिलमव छाँव मा

जाना हे हम ला ते गाँव अभी दुरिहा हे। 


कतको तुम रेंगव गा, रद्दा हा नइ सिराय

कतको आवंय पड़ाव, पांवन जस नइ थिराय।

तइसे तुम जिनगी मा , मेहनत सन मीत बदव

सुपना झन देखव गा, छाँव अभी दुरिहा हे।


धरती हा माता ए, धरती ला सिंगारो।

नइये चिटको मुसकिल, हिम्मत ला झन हारो।

ऊँच नीच झन करिहव, धरती के बेटा तुम

मइनखे ले मइनखे के नांव अभी दुरिहा हे।


गीतकार - श्री नारायणलाल परमार


सुरता आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़

2 comments:

  1. अनमोल ज्ञान ला साझा करे हौ आदरणीय गुरुदेव🙏🙏🙏

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  2. अनमोल ज्ञान ला साझा करे हौ आदरणीय गुरुदेव🙏🙏🙏

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