Monday 26 April 2021

छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक लोक-नाट्य "कारी" की केंद्रीय नायिका: शैलजा ठाकुर (भाग - 3)


 

छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक लोक-नाट्य "कारी" की केंद्रीय नायिका: शैलजा ठाकुर

(भाग - 3)


 इस श्रृंखला के प्रथम भाग में आपने जाना कि शैलजा ठाकुर शुरुआत में चंदैनी गोंदा की कोरस गायिका रहीं, फिर गंगा की भूमिका में आईं। ड्रेस डिजाइनर का भी दायित्व संभाला और नृत्य-निर्देशिका भी रहीं। नृत्य-निर्देशिका के रूप में उन्होंने चंदैनी गोंदा के नर्तक कलाकारों को मौलिक, अभूतपूर्व व अभिनव स्टेप्स सिखाये थे, उन्हीं स्टेप्स का अनुसरण आज भी अनेक लोक-कला मंचों पर किया जा रहा है। श्रृंखला के द्वितीय भाग में उन्हें छत्तीसगढ़ के पारम्परिक आभूषणों की शालीन व सौम्य प्रथम महिला मॉडल के रूप में जाना। आक का यह आलेख सुप्रसिद्ध व ऐतिहासिक लोक-नाट्य "कारी" पर केंद्रित है। "कारी" की महिमा का वर्णन एक आलेख में किया जाना "असंभव" है। नयी पीढ़ी के लिए "कारी" के कुछ बिंदुओं को ही रेखांकित करने का प्रयास कर रहा हूँ।


केंद्रीय चरित्र "कारी" की कठिन भूमिका का शैलजा ठाकुर ने अविस्मरणीय रूप से निर्वाह किया है। दुखों के बीच जन्मी, अभावों में जवान हुई, अशिक्षा के साथ ब्याही गई, निपट भोली किंतु ममतामयी "कारी"। मिली हुई दुनिया को बेहतर और सरस बनाने के लिए प्राण-प्रण से लगी बिसेसर की जीवन-संगिनी, आमादाई की सेविका और "लुरू" की संरक्षिका, अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति "कारी"। अति ममत्व के अभिशाप को झेलती, समाज द्वारा अकारण दंडित, लांछित, जीवन को दूसरों के लिए उत्सर्ग के संकल्प पर अडिग "कारी"। भिखारी को तनिक उदारतापूर्वक "सीधा" देने के अपराध में सास की झिड़की झेलती और बिसेसर से लड़ती-झगड़ती, प्यार करती "कारी"। मास्टर के सामने अंक में मेमने को समेटे सलज्ज एवं मर्यादित खड़ी "कारी"। अंत में किसन के बालरूप में उलझी उसे फटाखे और मिठाई नवाज अति भोली, सरल एवं ममत्व से छलकती "कारी"। सबको "शैलजा" ने भरपूर जिया है। (डॉ. संतराम देशमुख की किताब - "छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य के विकास में दाऊ रामचंद्र देशमुख का योगदान" से साभार)


कारी के अन्य पात्र कृष्ण कुमार चौबे, चतरू साहू , विनायक अग्रवाल, विजय मिश्रा "अमित", बिसंभर यादव, ध्रुव सिंह चंदेल, सुरेश यादव, ललित हेड़ाऊ, गजराज, नवल मानिकपुरी, भैयालाल हेड़ाऊ, अघनू,  ईश्वर मेश्राम, अनुराग ठाकुर, माया मरकाम आदि थे।  बाल कलाकार थे - दीपा देवांगन,, अनुसुईया, गायत्री, सुमति, इंदिरा, मंजू, सविता, अनीता, संगीता आदि। "कारी" के संगीत निर्देशक थे गिरजा कुमार सिन्हा। उनके साथ संतोष टाँक (बाँसुरी), श्रवण कुमार दास (वायलिन), अन्य वाद्य यंत्रों पर विवेकानंद भारती, तुलसी, विवेक वासनिक, अरविन्द शेंडे आदि थे। कारी के लिए गीत लिखे थे गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया और मुरली चंद्रकार ने। कारी के गीतों को स्वरों से सजाया था - भैयालाल हेड़ाऊ, अनुराग ठाकुर कविता वासनिक ने। संवाद एवं पटकथा लेखक थे प्रेम साइमन, निर्देशक थे रामहृदय तिवारी और कारी के शिल्पी, प्रेरणा स्रोत एवं संचालक थे दाऊ रामचंद्र देशमुख।


दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के ससुर स्वर्गीय डॉक्टर खूबचंद बघेल की पुण्य स्मृति पर सिलयारी में "कारी" की प्रथम सम्मोहक व भव्य प्रस्तुति के बाद क्रमशः हरदी बाजार, राजनाँदगाँव, महासमुन्द, बेमेतरा, सिविक-सेंटर भिलाई आदि अनेक स्थानों में श्रृंखलाबद्ध कारी की सफल प्रस्तुति हुई। चालीस से अधिक सफल प्रदर्शनों के बाद "कारी" की अंतिम प्रस्तुति राजनाँदगाँव में हुई थी। इस आलेख के साथ ही कुछ अचल-चित्र जो सुप्रसिद्ध छायाकार "प्रमोद यादव" द्वारा खींचे गए हैं, भी पोस्ट किए जा रहे हैं जो "कारी" के प्रत्यक्षदर्शियों को चल-चित्र का आभास कराएंगे। (क्रमशः) 


आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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