Monday 26 April 2021

पृथ्वी दिवस* पोखन लाल जायसवाल


 *पृथ्वी दिवस*

          पोखन लाल जायसवाल


        आजकाल दिवस मनाय के चलन बाढ़ते जावत हे। साल म हर दिन कोनो-न-कोनो दिवस परीच जथे। कभू-कभू एके दिन दिवस मन संघर जथे। साल-के-साल दू-चार ठन नवा दिवस जुड़ घलो जथे। कतेक ल सुरता रखे सकबे, तइसे हो जथे। फेर अब तो एके ठन बात समझ म आय धर लेहे कि बहुत अकन दिवस मनाय के पाछू जागरूकता अउ जनचेतना मूल आय। कोनो सामाजिक संगठन, वैश्विक संगठन अउ सरकार कोति ले कोनो गहिर चिंता जाहिर करे म दिवस मनाय के घोषणा होथे। मनखे विकास के सीढ़ी चढ़त-चढ़ कति जाना चाहत हे, तउन समझ नइ आवय। प्रकृति म उपस्थित संसाधन मन के अंधाधुंध दोहन...नइ.. शोषण ले पर्यावरण असंतुलन दिनोंदिन गड़बड़ातेच जात हे। जलवायु परिवर्तन ले अनुमान लगाय जा सकथे। चउमास म होवइया औसत बरसा बहुतेच घटगे हवय। अभी के नवा पीढ़ी झड़ी पूछे म अगल-बगल झाँके धर लिही। चउमास भर के बरसा एके दिन म बरस जथे। तहां खेत अगास ल ताकत रही जथे। ग्लोबल वार्मिंग ले हवा बारो महीना गरम जनाथे। कब चउमास आइस-गिस? अउ ठंड कब आ के विदा घलो होगिस? कहे बानी लगथे। दुनिया के जम्मो देश विकसित देश बने के चाह रखथे। सबो ल आँखीं दिखा सकय सोचथे। अपन विकास बर जेन करथे, तेन सही ए अउ दूसर उही जिनीस ल करही त ऊँगली उठाही। तरा-तरा के तर्क ले बाधा उत्पन्न करे के कोशिश करही। पँचयती घलो करा डरथे। हर देश दुश्मन देश ल डरवाय बर परमाणु परीक्षण करते रहिथे। अपन शक्ति के प्रदर्शन करे म चिटिक पाछू नइ रहय। जल हे त जंगल हे , जंगल हे त जमीन हे। अउ तीनों के रहे ले जीव जनावर हे। फेर मनखे जान के अनजान बने रहे के कोशिश करथे। जल, जंगल अउ जमीन के संरक्षण पाछू ओकर शोषण जतका जादा हो सके, करे म सबो अघुवा हे। मोर अकेल्ला के चिंता ले का होही? सोचत सबो ए डाहन चिंतए नइ करत हन। 

       जंगल ल उजाड़ के करखाना बनावत हन। जंगल के विनाश ले बरसा सरलग थिरावत जात हे। कमती बरसा ले जमीन परती परत हे। उपजाऊपन नष्ट होवत हे। शहरीकरण के सुरसा मुँह खेती जमीन ल लीलते जावत हे। मनखे जानत हवै कि अइसे कोनो करखाना नइ हे जिहाँ अन्न बनाए जा सके। मोटर गाड़ी अउ करखाना के धुँगिया म साँस फूलत हे, तभो चेत-बिचेत हे। मनखे विकास के सीढ़ी चढ़त अँधरा बने हे। काली के चिंता ताक म रख आँखीं मूँदेच हवै। चेथी के आँखीं चेथीच म हे। करखाना के सिरमिट, लोहा लख्खड़, बहुमंजिला अटारी अउ आने-आने जिनिस ले पेट नइ भरय, तब ले खेती जमीन ल चगलतेच हवय। कोन जनी मनखे के ए का भूख ए ? अउ ए भूख कब मिटही? मनखे कब अघाही? भगवाने मालिक... भगवान का करही, जब मनखे हदराहा होगे हे त। धरती के जम्मो छोटे-बड़े जीव-जंतु के हक ल घलो मार के अघात नइ हे। वाह रे मनखे के पेट।      

            विकास जरूरी हे, फेर वहू विकास का काम के? जेन खुद के बलि ले डरय। चिटिक समझ नइ आय, मनखे विकास के नाँव म विनाश के फइरका ल काबर खटखटाथे? सरी धरती के पानी ल जोंक सही चूस डरही त धरती दाई कोनेच मेर ले अपन गोरस पियाही। जंगल के विनाश ले रिसाय बादर-पानी कति बइठे हे? एकरो पता नइ हे। अभियो अतेक देर नइ होय हे कि लहुटे नइ जा सकय। 

       " पुत्रोSहम् माता पृथिव्याः। "  कहे के मतलब - मैं बेटा अँव अउ पृथ्वी माता ए। ए भाव ल रख के माता के सेवा करना हमर धरम ए। एकर कोख म खेलइया जम्मो जीव संग कोनो अनियाव झन हो ए सोचे के हे।

         धरती म अतका विकास होगे हवय कि सबो देश तरा-तरा के हथियार हथिया ले हवय। आपसी लड़ई ले एक मिनट म ए धरती राख के ढेर बन जही। 'वसुधैव कुटुम्बकम' के भाव ले धरती ल बचाए बर हम दुनिया ल संदेश दे सकन, पृथ्वी के सुघरई ले मानव जात के कल्याण हे, समझा सकन तव विश्व पृथ्वी दिवस माने के सार्थकता रही। अइसन मोर मानना हवय।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार छग.


1 comment: