Monday 26 April 2021

चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका : शैलजा ठाकुर (भाग - 2)


 

चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका : शैलजा ठाकुर

(भाग - 2)


कल इस श्रृंखला के भाग - 1 पर आयी प्रतिक्रियाओं से यह स्पष्ट हुआ कि नयी पीढ़ी, छत्तीसगढ़ की प्रेरक-प्रतिभाओं के बारे में जानने के लिए कितनी उत्सुक रहती हैं। ऐसी ही प्रतिभाएँ नयी पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त करती हैं। अंचल की विरासत जितनी सम्पन्न होगी, उतनी ही संस्कृति की चित्रोत्पला, नयी फसल को पोषित करती रहेगी। मेरी पीढ़ी के मित्रों की प्रतिक्रियाएँ बता रही हैं कि स्मृति पटल पर सबकुछ वैसा का वैसा ही अभी भी अंकित है। चंदैनी गोंदा के विशाल मंच पर सजीव होती दुखित की जीवन-गाथा, उत्सवों में झूमता-गाता लोक-जीवन, बेलबेलहिन टूरी की पैरी की छन्नर-छन्नर, अकाल की विभीषिका से जूझती संभावनाएँ, शोषकों के चंगुल में छटपटाता हुआ छत्तीसगढ़, अपने स्वाभिमान को जगाता छत्तीसगढ़।  शैलजा ठाकुर के नाम के साथ ही "कारी" की स्मृतियों तरोताजा हो गईं। वक़्त के पर्दे के पीछे सबकुछ तो वैसा का वैसा ही अंकित है स्मृति-पटल पर।  


भाग - 2 में शैलजा ठाकुर जी की एक और प्रतिभा से आपका परिचय कराया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के पारम्परिक आभूषणों के प्रचार-प्रसार  लिए "छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला मॉडल" का श्रेय भी शैलजा ठाकुर के खाते में जाता है। उनके इस कार्य से छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषणों का प्रचार-प्रसार विश्व के अनेक देशों तक हुआ। भिलाई इस्पात संयंत्र के कैलेंडर में (अगस्त 1983) इन्हें स्थान मिला। भिलाई इस्पात संयंत्र की प्रदर्शनी में ये पारम्परिक आभूषण आकर्षण का केंद्र रहे। पत्रिका प्रकाशित हुई। सोवियत रूस तक गयी। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषणों की मॉडलिंग में शालीनता थी। बहुत से मित्र शैलजा जी की इस प्रतिभा से परिचित होंगे किन्तु नयी पीढ़ी की जानकारी के लिए इस परिचय को देना मुझे प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है। अभी यह श्रृंखला जारी रहेगी। (क्रमशः)


आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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