Wednesday 23 November 2022

छत्तीसगढ़ अउ संत कबीर-*

 *छत्तीसगढ़ अउ संत कबीर-*


    छत्तीसगढ़ प्राचीन काल ले संत, ऋषि, मुनि अउ उँखर साधना बर तपस्थली आय। इहाँ के पबरित भुइयाँ मा कतको संत महात्मा मन के जन्म होईस अउ कतको के कर्मभूमि घलो बनिस। अईसने भारत भुइयाँ मा मध्यकालीन युग मा एक झन बड़े संत के जन्म होईस। जेहा ज्ञानाश्रयी शाखा के निर्गुण भक्त कवि में सबके ऊपर स्थान पईस।  हिन्दी साहित्य के हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ह जेला 'वाणी के डिक्टेटर' अउ बच्चन जी ह 'रैडिकल सुधारक' कहिके ओकर काम ला समाजोपयोगी मानत जन-जन तक पहुँचाईस। जेला समाज सुधारक के पर्याय संत कबीर जी के नाव ले जम्मो संसार जानथे। दुनिया मा अईसन कोई नई होही जेहा कबीर जी ल नई जाने। कबीर जी एके झन अतिक काम करे हे, ओतिक तो उही समय के सबो कवि संत मन मिलके घलो नई कर सके हे। हिन्दू-मुस्लिम एकता, जाति प्रथा के खंडन, मूर्ति पूजा के विरोध, जीव हिंसा के विरोध, पाखंड अउ कर्मकांड के विरोध, छुआछूत जइसे कुरीति मन के विरोध में एके झन भीड़े रिहिस। कतको लोगन मन इंकर विरोध करीस फेर कबीर ला कोनो रोक नई पाईस।


कबीर जी ला आय अतिक साल बीत गे, फेर आज घलो कबीर के बताये रद्दा आज के समाज ला अँजोर देखाय के काम कर सकत हे। उँखर शिक्षा, सिद्धांत, कर्म के महानता, समतामूलक समाज के अवधारणा छत्तीसगढ़ मा गहरी ले जड़ जमाये हवे। कबीर के जन्म अइसे बेरा मा होईस जब हमर देश ला बाहरी लुटेरा मन आके इहाँ के धन-संपत्ति ला लूट के खोखला करत रिहिस। जनता इंकर अत्याचार ले उपजे निराशा ले भरगे रिहिस। सगुन साकार भगवान के पूजा-पाठ ले थकगे रिहिस। उही समय कबीर जी के जन्म होईस अउ निराश जनता ला मानसिक सबल करत निर्गुण निराकार ब्रह्म के भक्ति के रद्दा ला देखाईस। समाज के जम्मो बुराई, कुरीति, कर्मकांड, भेदभाव ला दूर करे के सराहनीय बुता करीस।  तेकर सेती आज देश के साथ हमर छत्तीसगढ़ मा कबीर के बहुते मान-सम्मान हवे। छत्तीसगढ़ के सबो सम्प्रदाय के लोगन मन इंकर प्रभाव ले आलोकित हवे। 


कबीर जी के हमर छत्तीसगढ़ में जादा प्रभाव के एक ठन अउ बड़े कारण हवे। उँखर सबले बड़े शिष्य धर्मदास जी के कर्मस्थली होना। संत कबीर जी के उपदेश ले प्रभावित होके धर्मदास जी छत्तीसगढ़ मा कबीर के संदेश ला जनमानस तक पहुँचा के उँखर स्थान ला सबके ऊपर करीस। ओहा अपन पत्नी संग मिलके अपन करोड़ों के संपत्ति ला कबीरपंथ के स्थापना अउ प्रचार-प्रसार मा लगाये बर संकोच नई करीस। धर्मदास जी के सेती छत्तीसगढ़ के जन-जन मन कबीर ला जानथे। 

छत्तीसगढ़ मा कबीरदास जी के प्रभाव सबो क्षेत्र मा दिखथे। चलव अलग-अलग क्षेत्र मा उँखर प्रभाव ला जाने के कोशिश करथन-


धर्म- छत्तीसगढ़ मा अलग-अलग धर्म के मनईया मन हवय। अईसन कोई धर्म के नई होही जेहा कबीर जी के संदेश का नकार दिही। हर छत्तीसगढ़िया मन ला अभी घलो 8-10 ठन उँखर दोहा मुंहजबानी याद होही। कबीर के संदेश ह सबो धर्म बर हवय। काबर के ओहा तो धर्म ले ऊपर रिहिस। सबो धर्म के मन ला उँखर बुराई बर फटकारिस हे। 


"कांकर-पाथर जोड़ के, मस्जिद लई बनाय।

ता चढ़ी मुल्ला बांग दे, का बहरा हुआ खुदाय।।"


"पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।

इससे तो चाकी भली, पीस खाय संसार।।"


छत्तीसगढ़ मा कबीर जी के प्रभाव बहुत गहरा हवे। कबीरपंथी मन आज घलो अपन लोग लइका के नाव मा दास जरूर लगाथे- रामदास, फुलदास, राहुलदास, आशीषदास, जनकदास, नरेंद्रदास, नोहरदास, साहेबदास। दास लगाके कबीरदास जी के नजदीकी होय के आभास पाथे। आज घलो छत्तीसगढ़ के हर समाज वाले मन कबीर जी के फोटो रख के पूजा करथे। कबीरपंथी मन घर चौका-आरती में कबीर जी के भजन गाके उँखर शोर करथे। अईसन कार्यक्रम में भीड़ कबीर के प्रभाव के प्रमाण आय।


संस्कृति- हमर छत्तीसगढ़ के कबीर जी नो हरे, तभो ले उँखर प्रभाव ला देखव कि हमर संस्कृति मा रच-बस गे हवय। छत्तीसगढ़ में कई ठन कबीर मठ अउ धार्मिक स्थल के रूप मे चिन्हा गे हवय। इहाँ के दामाखेड़ा कबीर आस्था के सबले बड़े जगह आय। येला 12वें गुरु उग्रनाम साहेब जी ह 1903 में दशहरा के दिन के स्थापित करे रिहिस। इहाँ के भवन मा दोहा, चौपाई मन कलात्मक ढंग ले अंकित हे।  कबीर-धर्मदास के सवाल-जवाब इहाँ संवाद रूप मे हवय। साजा विकासखंड के मुसवाडीह गाँव, कोरबा के कुदुरमाल, कबीरधम्म, राजनांदगाँव के नांदिया मठ जइसे जगह मा हर साल मेला के आयोजन होथे। सेवाभावी लोगन मन साँस्कृतिक पक्ष ला मजबूत करे बर वृक्षारोपण, साफ-सफाई के काम करत रथे।


दर्शन-  कबीर के दार्शनिक विचार ले इहाँ के मन कइसे छूट जाही। नवा पीढ़ी के मन कबीर के विचार ला अपनाके नवा समाज बनाये बर उदीम करत हवय। जेमे छुआछूत, कर्मकांड, पाखंड, जाति, भेदभाव, मूर्ति पूजा ला छोड़े बर तैयार दिखथे। नवा समाज अब अईसन विसंगति का नई माने। कबीर जी के दर्शन के नवा युग के निर्माण हो सकता हे। उँखर ब्रह्म संबंधित बिचार ला देखव- 


"दसरथ सुत तिहुँ लोक बखाना।

राम नाम का मरम है आना।"


सबके राम अउ कबीर के राम मा अंतर हवय। दशरथ के राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम हरे अउ कबीर के राम निर्गुण निराकार ब्रह्म ला राम किहिस। 

कबीर जी दूसर संत मन सही ककरो ऊपर भार नई रिहिस। अपन जीवन चलाये बर अपन हाथ ले मिहनत करे। अउ जरूरत मंद मनखे मन के मदद घलो करय। ओहा धन संपत्ति का कभू नई जोड़िस। कबीरदास जी ज्ञान के महत्व बर किहिस घलो-


"जाति न पूछो साधु की, पुछि लीजिए ज्ञान।

मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।"


लोककला-  छत्तीसगढ़ के लोककला मा कबीर जी के संदेश घलो नजर आथे। छत्तीसगढ़ के कतको साँस्कृतिक कार्यक्रम, मंडली, पार्टी मन कबीर जी के नाव के हवय। येमन कबीर जी के दोहा बिना पूरा नई होय। आज घलो सियान मन लइका मन ला सीख देय बर कबीर जी के दोहा ला उपयोग मा लेथे। छत्तीसगढ़ी नाच पार्टी मटेवा के कलाकार झुमुकदास बघेल अउ न्याईक दास मानिकपुरी जी बात-बात मा कबीर के दोहा ला सुनाके जनमानस ला गदगद करे। अउ कतको पार्टी के मन घलो कहिथे। राऊत नाचा दल के मन कबीर जी के दोहा पारत नाचथे। गाँव के बिहाव नचौड़ी पार मा नाचे के बेर गड़वा बाजा के धुन मा दोहा सुनाथे। ग्रामीण अंचक मा गणेशजी, सरस्वती, लक्ष्मी जी के स्थापना के अवसर मा भजन गायक मन नीतिपरक अउ प्रेरणा गीत में कबीर के दोहा ला प्रमुख अंतरा बनाके गाथे।


कबीरा खड़े बाजार में, सबसे मांगे खैर हो राम....

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर हो राम....


जीवनशैली- कबीर छत्तीसगढ़ के जन-जन के हृदय मा समाये हे। कबीरपंथी समाज के कार्यक्रम सगाई, शादी, नामकरण, भंडारा जइसे में भोजन करे के पहली कबीर जी के स्तुति के संग 3-5 बेर सकल संत को बंदगी, साहेब बंदगी साहेब केहे के बाद ही खाय के शुरुआत होथे। अभिवादन के बेरा साहेब बंदगी साहेब केहे बर नई भुलाय। अईसने दूसर मत के मन घलो अभिवादन के बेरा एक-दूसर के अभिवादन ला कहिके सम्मान देथे। एक दूसर के जीवनशैली में बसे भाव ला आदर-सम्मान करना छत्तीसगढ़ के लोगन के व्यवहार मा शामिल हे।


छत्तीसगढ़ में कबीर सिर्फ सम्प्रदाय तक सीमित नई हे। ओ तो सबो समाज के नवा रद्दा बर मशाल देखईया हरे। सबले जादा शाखा अउ कबीरपंथी मन के संख्या तो छत्तीसगढ़ मा ही हे जिन्हां के मन कबीरदास ला करीब के जाने के प्रयास करिन अउ अपन आत्मा तक बसा के जीवनशैली के अभिन्न अंग बना डारिन। कबीर ककरो नोहे ओ तो सबो के हरे। जेमन अपन अउ अपन सामाजिक बुराई, कुरीति, भेदभाव, जाति-पांति, ऊंच-नीच, शोषण, पाखंड बर लड़त हे। उँखर संग कबीर खड़े हे। कबीर पूरा देश ल नंगत घूमिस, एकरे सेती उँखर गोठ मा पंजाबी, हरियाणवी, राजस्थानी, खड़ी बोली, ब्रज, अरबी, फ़ारसी के मधुर पुट भरे हे। इंकर भाषा इहि पाय के पंचमेल खिचड़ी, सधुक्कड़ी बनगे हे। कबीर पढ़े-लिखे तो नई रिहिस, छन्द अउ अलंकार के बिसेस जानकारी नई होय के बाद घलो उँखर लिखे दोहा-चौपाई मन कतिक सुहाथे। अब तो कबीर जी जन सामान्य मा बाबा तुलसीदास जी के बाद सबले जादा धर्मोपदेशक संत कवि के रूप में जन-जन में स्वीकार हे।





          हेमलाल सहारे

मोहगाँव(छुरिया)राजनांदगॉंव

Saturday 19 November 2022

बाल दिवस विशेष---- *छत्तीसगढ़ी गीत अउ लोकगीत मा बाल साहित्य/बाल गीत*


 

बाल दिवस विशेष---- *छत्तीसगढ़ी गीत अउ लोकगीत मा बाल साहित्य/बाल गीत*


                 हमर छत्तीसगढ़ के गीत संगीत गजब पोठ हे। मधुरस कस मीठ छत्तीसगढ़ी भाँखा जब  गीत संगीत मा गुथाथे तब, सुनइया सुनते रही जथे। लोक गीत माने जनमानस के अंतर्मन मा रचे बसे गीत। कुछ गीत जुन्ना समय ले परम्परागत चलत आवत रथे ता कुछ गीत के अइसे कवि गायक होथें जउन जनमानस के मन मा अपन छाप छोड़ देथें। हमर लोक गीत घर द्वार, खेती खार, डोंगरी पहाड़, नदी नाला, तीज तिहार, चंदा सुरुज, नता गोता, छोटे बड़े, दया मया, सुख दुख जमे ला समेटे हे,अइसन मा बाल मन के गीत छूट जाए, ये होई नइ सके। लोक गीत मा बाल साहित्य के बात होइस ता, मोला वो दौर के सुरता आवत हे,जब घर घर सुबे शाम रेडियो बजे, जिहाँ सरलग रिकिम रिकिम के गीत सुने बर मिले, वोमा के बाल वाटिका, चौपाल, घर आँगन कस अउ कतकोन कार्यक्रम मा बाल गीत गजब बजय। रेडियो आजो हे,गीत संगीत आजो बजत हे, फेर पहली कस कान मा सहज नइ सुनाय, ना पहली कस परछी मा अर्वाय,बजत दिथे। नवा जमाना के चका चौंध हम सब ला दुरिहा दिस। अइसन मा रेडियो मा ही सुने कुछ बाल गीत मन ला ओरियाये के प्रयास करत हँव।  रेडियो मा बद्री विशाल परमानंद, मेहत्तर राम साहू,दानेश्वर शर्मा, केयूरभूषन, हरि ठाकुर,प्यारेलाल गुप्त, दारिकाप्रसाद तिवारी विप्र, उधोराम झकमार, कोदूराम दलित, सुशील यदु, लक्ष्मण मस्तूरिहा, मुकुंद कौशल, पी सी लाल यादव, रामेश्वर शर्मा, दीप दुर्गवी कस कतको अउ गीतकार मन के किसम किसम के मनभावन गीत बजे।  जेला शेख हुसैन,परसराम यदु, मेहत्तर राम साहू, पंचराम मिर्झा, केदार यादव, नवलदास मानिकपुरी, फिदा बाई मरकाम,किस्मत बाई, बैतल राम साहू, गंगा राम, दुखिया बाई, लता खपर्डे, धुरवा राम मरकाम, लक्ष्मण मस्तुरिया, साधना यादव, कविता वासनिक, ममता चन्द्राकर, कुलेश्वर ताम्रकर कस अउ कतको सुर साज के धनी गायक मन स्वर देवयँ। इही सब हस्ती मन के लिखे अउ स्वर देय छत्तीसगढ़ी लोक गीत मन मा बाल गीत छाँट के परोसे के प्रयास करत हँव। कोन गीत ला कोन गाये हे अउ कोन सिरजाये हे, ठीक ठीक बता पाना मुश्किल हे,काबर कि वो सब गीत मन ला सुने बड़ दिन होगे, अउ कुछ परम्परागत रूप ले बड़ जुन्ना समय ले चलत आवत हें, तभो सुरता के गगरी मा भराय कुछ गीत के मुखड़ा पेस हे---


              खेल के बात होथे, ता सबें लइका मन एक जघा जुरिया जथे। एक मौका मा बासी पेज नइ मिलही ता चल जही, फेर खेल बिगन लइका मन नइ रही सके। तभे तो ये गीत मा उमंग उछाह मा लइका मन आपस मा मिलके रेलगाड़ी खेल खेलबों कहिके,एक दूसर ला बुलावत काहत हे----

*रेलगाड़ी रेलगाडी रेलगाड़ी रेलगाड़ी रेल*

*चलो चली मिलके खेलबों,रेलगाड़ी खेल*

*कोनो बनबों इंजन, अउ कोनो डिब्बा*


              अइसनेच एक गीत अउ हे जेला दानेश्वर शर्मा जी लिखे हे अउ कुलेश्वर ताम्रकर जी मन आवाज देय हे-

*रेलगाड़ी झुकझुक रेलगाड़ी*

*रायपुर ले वोहा छूटे रे संगी*


                 लइका मन के खेल खेलवारी मा, झूलना झूलई के अलगे मजा हे,बिगन झूला के कहाँ  लइका मन  रथे, तभे तो ये गीत नोनी मन ला झूलना झुलावत हे----

*झूलना के झूल नोनी,कदम्ब के फूल वो।*

*झूलना झूलत नोनी हाँसे खुलखुल वो।*


                  गाँव के  तरिया, नरवा, परिया, दैहान अउ गली खोर संग लइका मन अमरइया मा घलो खेलत दिखथें। तभे तो अपन संगी साथी ला सँकेलत घरघुन्दिया खेले बर कविता वासनिक जी मन अपन कोयली कस आवाज मा काहत हे----

*चलो बहिनी जाबों अमरइया मा खेले बर घरघुंदिया*

*घर के खेलई मा दाई खिसियाथे, खोर के खेलई मा ददा*

(ये गीत ला परसराम यदु जी मन घलो अपन अलगे अंदाज मा गाये हे)


              बेंदरा, भलवा, हाथी, घोड़ा, मुसवा,कुकूर, बिलई लइका मन ला बड़ सुहाथे। तभे तो गाँव मा खेल मदारी वाले आये ता सब ले पहली भागत लइका मन घर ले निकले, अउ मँझोत मा डेरा डार देवयँ। कुलेश्वर ताम्रकर जी के ये गीत सियान मन संग लइका मन के बीच बड़ सुने जाथे---

*नाच नचनी वो झुमझुमके झमाझम नाच नचनी*

*बरसे तोर पांव तरी रुपिया खनाखन वो नचनी।*

(लक्ष्मण मस्तुरिया जी के लिखे ये मनभावन गीत उंखर स्वयं के स्वर मा घलो बड़ मनभावन हे।)


               मदारी अउ भलवा बर एक लोकगीत, बैतल राम साहू के गाये बड़ चलथे। जेला लइका मन खूब पसन्द करथें-----

*मदारी वाले आय हे।*

*भलवा ला धरके।*

*खेल देखावय अउ भलवा नचावय*

*जुरियाये गाँव भरके।*


            बिलई अउ मुसवा ऊपर घलो गीत सुने बर मिलथे। जेन गीत के बात करत हँव,ये गीत हबीब तनवीर जी के नाटक चरणदास चोर मा घलो बजे---

*बलई ताके मुसवा, भाँड़ी ले सपट के।*


             लइका मन बबा, डोकरी दाई, ममा दाऊ, ममा दाई के नजदीक जादा रथे,अउ अपन बात  झट ले उन ला बताथे, तभे तो एक लइका ये गीत मा अपन ममादाई ला काहत हे--

*चीला ला ले गे बिलइया वो ममा दाई*

*चीला ला ले गे बिलइया*


               पहिली सब कुकरा के बांग सुनत उठयँ। कुकरा के बोली सुन लइका मन नकल करत बड़ खुश होथे। यर गीत मा लइका मन जुरियाके कुकरा के आवाज निकालत,पढ़े लिखे जाए बर काहत गावत हें,---

*बड़े फजर ले कुकरा बोलय*

*कुकरुस कु भइ कुकरुस कु*

*चल वो सीता चल वो गीता*

*बड़े बिहनिया स्कूल जाबों*


                   सबें चीज मा अघवा रहवइया लइका मन,देश भक्ति मा कइसे पीछू रही। ये गीत मा देशभक्ति के रंग मा रँगे, लइका मन अपन ददा ला काहत हे---

*ददा ग महूँ बनहूँ सिपाही*

*सीमा मा जाहूं, बंदूक चलाहूँ*

*तभे मोर छाती जुड़ाही।*


                मेला मड़ई, हाट बाजार गांव गौतरी जाये बर लइका मन एक टांग मा खड़े रथे। अउ उहाँ मोटर गाड़ी, कुकूर बिलई, फुग्गा लेय के जिद करत घलो दिखथें। बैलतराम साहू जी के गाये ये गीत हर फुग्गा बेचइया के जुबान मा रथे-----

*दाई वो दीदी वो लइका बर फुग्गा ले ले*


              हाथ मा राहेर काड़ी धरे बरसात के मौसम मा फांफा फुरफुंदी के पाछू भागत लइका मन मारे खुशी मा देश राज के बढ़वार के कामना करत इही गीत गाथें---

*घानी मुँदी घोर दे, पानी दमोर दे*

*हमर भारत देश ला भैया, दूध दही मा बोर दे*

(ये गीत दाऊ रामचन्द्र देशमुख जी के द्वारा सिरजाये चंदैनी गोंदा के प्रमुख गीत मा एक रिहिस।)


               का सुबे अउ का शाम,,, बरसा घरी घानी मुंदी खेलत लइका मन यहू गीत ला बड़ गुनगुनाथे---

*अँधियारी अंजोरी*

*घानी मुंदी खेबलों वो*


              गर्मी घरी लइका मन सुते सुते जब जब आगास ला देखथे, चंदा ममा ला अपन तीर बुलाथे। अउ चंदा, ममा कस लइका मन के सब ले पसंददीदा होथे। दाई ददा मन चंदा ला लइका मन ला ममा कहिके रटवा देथे, तभे तो  थोरिक बड़े होके नोनी मन चंदा ममा ला काहत हे---

*ए ममा चंदा ।।2*

*देश बर दे हम ला हंडा*


                पुतरी, घुँघरू, तुतरु लइका मन ला बड़ पसंद आथे। रोवत या फेर रिसाय नोनी बाबू मन ला खेलावत ये गीत सबें गाथें---

*करू करेला वो मीठ कुंदरू*

*नाचत हे नोनी बजत हे घुँघरू*

*पुतरी ला देख के नोनी कइसन हँसत हे*


                तिहार बार ला घलो लइका मन के किलकारी अउ उंखर उछाह उमंग विशेष बनाथे। हरेली मा गेड़ी चढ़ई होय, या पोरा मा नन्दिया बइला दौड़ई। राखी, दही लूट, गणेश पक्ष, दीवाली,दशहरा, होली, छेरछेरा सबें तिहार बार मा लइका मन नाचत गावत अपन छाप छोड़थे। अउ उंखर गीत घलो बरोबर सुनावत रहिथे---


1,*छेरिकछेरा छेर मरकिन छेरछेरा*

2,*दाई मोर बर पिचका लेदे वो*

3, *हाथी घोड़ा पालकी*

4, *रिगबिग रिगबिग बरत दियना*

5, *आगे तीजा पोरा के तिहार ,ममा घर जाहूं*

6, *अटकन बटकन दही चटाका*

7,*फुगड़ी रे फुन्ना फुन

8, सो जा लाला सो जा-लोरी

9, सोहर गीत


               बाबू मन गिल्ली, भौरा बाँटी, ता नोनी मन फुगड़ी खोखो खेलत मगन रथें। चाहे कोनो खेल होय मुख ले बरोबर मया के गीत झरत रथे। अइसने एक  गीत बिन तो फुगड़ी होबे नइ करे, ये गीत हे---

*गोबर दे  बछरू गोबर दे*

*चारो खूँट ला लिपन दे*


          लइका मन के मन के खुशी ला लक्ष्मण मस्तूरिहा जी एक गीत  के रूप मासिरजाये रिहिस, जे चंदैनी गोंदा के प्रमुख गीत के रूप मासबके मन मोहे।

*चंदा बनके जीबों हम*


                एखर आलावा अउ कतकोन जुन्ना लोक गीत हे, जे बाल साहित्य, बाल गीत के रूप मा सुनावत रथे। नवा नवा गीतकार,गायक मन घलो बाल मन के गीत लिखत हें, अउ जनमानस बीच लावत हें। बाल साहित्य छत्तीसगढ़ी मा अभी खूब सिरजाये जात हे। बलदाऊ राम साहू, मुरारीलाल साव,कन्हैया साहू अमित, मनीराम मितान, दिलीप वर्मा, बोधनराम निषादराज,मिनेश साहू, राम नाथ साहू,अजय अमृतांशु, रामकुमार चन्द्रवंसी, मनोज वर्मा, मिलन मिलरिया, बलराम चन्द्राकर, सुशील भोले,डी पी लहरे, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर, चोवाराम वर्मा बादल, जीतेन्द्र वर्मा कस कतको नवा अउ जुन्ना कवि मन अभो बाल गीत, कविता सिरजावत हे। अरुण निगम जी द्वारा बनाये ब्लाग ""बालगीत खजाना" मा 600 ले घलो जादा एकजई बाल गीत हे। खोजे मा बाल गीत, बाल साहित्य छत्तीसगढ़ी मा बहुत अकन मिल जही। मैं विषयानुसार सिरिफ छत्तीसगढ़ी गीत, लोक गीत के रूप मा रचे बसे बाल गीत ला ,जउन सुरता आइस उही ला रखे के प्रयास करे हँव। नवा गीत मन तो आज यू ट्यूब,फेसबुक आदि मा हे, पर पुराना कतको गीत संगीत के अभाव हे। आज जरूरत हे,उन सब ला नवा माध्यम मा संघेरे के। रेडियो या फेर रिकार्डिंग स्थल मा आजो ये सब गीत मन होही, जेला नवा माध्यम मा बगराना चाही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

चेंदरू

 चेंदरू 

               बस्तर के बियाबान जंगल हा .. अपन भितरि म सूरज के प्रकाश तको ला खुसरे के अनुमति नइ देवय ... तिंहा भोलाभाला आदिवासी मन .. नरुवा ढोंड़गा तिर थोर बहुत जगा भुँइया ला चतवार के माटी अऊ कोरई के कुटिया बना के जंगली जानवर मन के बीच रहय । बीहड़ घाटी म एक ठिन नानुक गाँव बसे रहय जेकर रहन सहन आदिम युग कस रिहिस । एक कोति सागौन के पत्ता अऊ पेड़ के छाल म तन ढँका जाय त .. दूसर कोति जंगल के फल फलहरी के संगे संग .. छोटे छोटे जंगली जानवर के मास म धोंध भर लेवय । 

               धीरे धीरे छोटे जानवर मन के संख्या म कमी होय लगिस । तब उहाँ के रहवइया मन अपन धोंध भरे बर खेती किसानी करे बर धर लिन । अइसने एक ठिन गाँव के एक घर म एक झन चेंदरू नाव के लइका रिहिस .. ओहा बहुतेच हिम्मती रिहिस । ओला खेती किसानी म मन नइ लागय । ओला जंगल बहुत पसंद रिहिस । ओकर दाई ददा मन ओला जंगल भितरि म अकेल्ला जाये बर मना करय फेर जंगल म बगरे फलहरी हा .. ओकर मन ला अतेक ललचावय के ओहा बघवा भालू के डर ला तको भुला जाय । 

               एक दिन अपन महतारी संग चेंदरू हा जंगल गिस । एक ठन चितवा हा उँकर उपर हमला कर दिस । दस बछर के चेंदरू के हाथ म नानुक टंगिया रिहिस । ओहा चितवा संग न केवल भिड़गे बल्कि अपन टंगिया ले लहूलुहान कर दिस चितवा ला .. चितवा हा ओ तिर ले अइसे भागिस के ... फेर दुबारा जंगल म लहुँट के नइ अइस । इही सब ला जंगल के राजा बघवा हा अपन माड़ा तिर म सपट के देखत रहय । ओकर नान नान चार ठन पिला रहय .. अपन संग पिला मन के घला जान बँचाये के फिकर धर लिस । ओला चेंदरू ले भय होगे । अब बघवा हा चेंदरू ले बाँचे बर ओकर संग मितानी करे के सोंचिस ।  

               दूसर दिन .. बघवा हा चेंदरू ला संगवारी बनाये बर ओकर आये के अगोरा करे लगिस । चेंदरू हा जइसे अइस बघवा हा ओकर आगू पिछु रेंगत घेरी बेरी पुछी हलाये लगिस । चेंदरू हा बघवा के पुछी ला धरय अऊ अँइठे .. बघवा ला घला मजा आय । कुछ दिन म .. चेंदरू हा ओकर पुछी ला छुवत छुवत पीठ अऊ मुँहु तक अमरगे । अब ओकर माथ ला चुम देवय तभो बघवा हा कुछ नइ करय बल्कि अऊ अपन देंहे ला चेंदरू के देंहे म ओधाये बर धरय । बघवा अऊ चेंदरू हा .. नरुवा म पटकी पटका खेले लगगे । चेंदरू हा जंगल जाये के अतेक टकराहा हो चुके रिहिस के ओला जंगल के अऊ दूसर जानवर मन तको चिन्हे बर धरले रिहिस । जंगल के हरेक जानवर मन चेंदरू संग मितानी करे के सोंचय फेर बघवा हा ओकर तिर म रहय तेकर सेती ओकर मेर कोन्हो नइ जावय । कुछ दिन म चेंदरू हा जंगल के राजा बघवा के पक्का संगवारी बन गिस । अब तो चेंदरू के मन से जंगली जानवर के डर बिल्कुलेच खतम हो चुके रिहिस । बघवा हा चेंदरू के आये के रोज अगोरा करय ... ओहा चेंदरू बर कभू खरगोश के मास राखे रहय त कभू हिरण के । चेंदरू हा बघवा के पीठ म बइठके जंगल ला किंजर डरय । 

               एक दिन चेंदरू ला जंगल ले वापिस लहुँटे बर मुंधियार होगे । घर म ओकर दाई ददा ला फिकर हमागे । ओमन खोजे बर निकलिन । रसता म चेंदरू ला आवत देखिन .. थोकिन तिर म गिन त ओमन ला चेंदरू के बगल म रेंगत .. बघवा दिख गिस । ओमन डेर्रा गिन अऊ बघवा हा चेंदरू उपर हमला करइया हे सोंचत .. फरसा ला बघवा कोति फेंकिस । चेंदरू समझ गिस अऊ बघवा के घेंच ला धर के तुरते अपन तिर ले आनिस । ओकर दाई ददा ला लगिस के .. बघवा हा चेंदरू ला धर लेहे .. ओमन डर के मारे चिचियाये लगिन । गाँव के कुछ मन .. अपन अपन हथियार धर के उही तिर सकलाके .. बघवा ला चारों मुड़ा ले घेर लिन । चेंदरू हा बघवा ला कोन्हो कुछु झन करय कहिके .. ओकर पीठ म बइठगे अऊ जम्मो झन ला बताये लगिस के बघवा हा ओकर संगवारी आय .. कोन्हो ला कुछु नइ करय .. अपन अपन हथियार ला तरी म राखव अऊ येला वापिस जंगल म जाये बर जगा देवव । जम्मो झिन एक कोति घुच दिन । बघवा हा कलेचुप मुड़ी नवा के चल दिस अऊ जाके अपन पिला मनला .. चेंदरू के सेती आज ओकर जीव बाँचिस कहिके .. बताये लगिस । चेंदरू के साहस के चर्चा न केवल घर म बल्कि जंगल म तको होय लगिस । 

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

भूत बर भभूत

 भूत बर भभूत


    दाई हमेशा टोकते रहय l

            देख़ बेटा

    समे खराब हे l देख़ के आये जाये कर l रात बिकाल के झन घूमे कर l

    ककरो इंहा कुछ खाये पिए झन कर l कुछ कर देथे l  इही बीच म अन्नू भले छै साल के हे बात ल सुनत कहिस -दाई मैं जान डरेव l टोनही तमन्ही भूत परेत के बारे म बतात हस l दाई कहिस  हव बेटा तै नई जानस अभी नानकुन हस l

    मैं नई देखेव  दाई त मोला डर नई लागय l देखलुहूँ  त डर्रहूँ l दाई कहिस  माने कर बेटा l अन्नू हव हव

    कहत घर म खेले ला धर लेथे l    

           बस ले उतर के झोला  बेग धरे सगा आइस l मौसी मामी अउ मामाजी l दाई अबड़ खुश l उही सगा मानिस l मोला पूछिस अन्नू कहाँ हे? नई दिखत हे? खेलत होही वो l

           मौसी मोर बर कपड़ा लाने रहिस  तेला देये बर कहिस  अन्नू  आ  ये देख़ तोर बर का लाने हव l  तीर म आ गेव l खुश होगे l  ममा अउ मामी

           गोठ भर करिस  भांचा  तै कब बड़े होबे?समोसा पैकेट अउ एक दर्जन केला ला दीस l दाई के बात सुरता म आगे कोनो दिही त मत खाबे l  बात ल धर के मैं नई खाएव l

              खाये के बहाना करके लुका देव l

              रात होइस l ममा खा पी के घूमे ल निकल गे l ऐति मामी पटर पटर मारत रहिस l

              दाई सुनत रहिस मामी के मुँह चलत रहिस l एला कुछ कर दे हे वो का भूत धरे हे उतरबे नई करय

              खाये पिए के चेत नहीं l कोन कुछू कांही खवा दे हे l

               मैं सुनत रहेव l ममा उपर भूत हे l कइसे पता चलही? आइडिया लगाए ला धर लेव l

               ममा आइस l गर्मी के दिन रहिस l अपन कुरता ल  उतारीस l ओकर लाने समोसा म अउ नून मिरचा डार के रखे रहेव l  खाले  ममा कही के देव l लालची ममा खाइस l सुस्वा सुस्वा के l हू हू  हा हा  ---!

               भूत गोठिया ला धरलिस l

     सुने रहेव भूत ल भभूत दिखाना चाही l मिर्ची पाव डर के भभूत म फूँक देव l ममा भागिस ओकर ऊपर चढ़े भूत भागिस l हू हू ह ह हो हो l

     कंजूस ममा मोला मोर जन्मदिन म साईकिल नई दीस ओकर भूत ल उतार देव l अन्नू ल मजा आवत रहिस

     भागत भूत ल देख़ के l

          ∞   ∞ ∞  ∞

           मुरारी लाल साव

           कुम्हारी


       

कहानी-*महतारी*

 कहानी-*महतारी*


संजू अपन दाई ददा के दुलरवा लइका रिहिस।ऊमर छै सात बच्छर के लगभग रिहिस। एकलौता रिहिस ती पाय के ओकर ददा ओला घातेच मया करय।ओकर सबो साध ला पूरा करय। ज्यादा लाड़ दुलार ले लइका मन बिगड़ जाथे।अइसे सियान मन के कहिना हे।उही बात ला चरितार्थ करत संजू हा अपन घर के तीर तार मा रहिने वाले कुकुर,बिलई अउ आने जीव जंतु मन ला मारे। कुकुर मन ला लहू के आत ले ढेला पथरा मारे।कुकरी चिंगरी के पिला मन के गोड़ ला टोर देवय।फुरफुंदी ला धरे अउ ओकर पांख ला नीछ देवय।मेकरा ला अमरा जाय त ओकर गोड़ ला टोर देवय।

कुल मिलाके भारी उज्जट होगे रिहिस संजू हा।संजू के अइसन हरकत ला देख के ओकर महतारी हा ओला अबड़ डाॅंटय।ओला समझावय कि सबो ला पीरा हा जनाथे कहिके। फेर ददा के मया दुलार के सेती ओहा धियान नी देवय।

एक दिन के बात आय। बड़े जनिक कोहा धरे संजू कोनो ला मारे बर शिकार खोजत रहय।तभे ओला एक ठ पिलारी कुकुर दिखगे।जेहा अपन नान्हें नान्हें पिला मन ला दूध पिलावत रहे।आदत से लचार संजू फेंक के कोहा मा मारिस ओला।कोहा परिस त ओकर माथ फूटगे अउ वो पिलारी कुकुर कांय कांय गिंगयावत भगागे।एती संजू थपरा पीटत हाॅंसत रहय।

उही संझौती संजू के महतारी छत में सुखाय कपड़ा मन ला उतारे खातिर गे रिहिस।उंहे ले गोड़ खसलिस ताहने सिढिया ले गिरगे।पारा परोस मा देखो देखो होगे।परोसी मन तत्काल एंबुलेंस मंगवा के ओला अस्पताल लेगिन अउ संजू के पापा ला सीधा अस्पताल के पता बताइन।थोरिक देरी मा संजू के पापा हड़बडावत अस्पताल पहुंचिस। डाक्टर मन बताइन कि संजू के मां के गोड़ मा फ्रेक्चर हे।कुछ दिन अस्पताल मा रुकना पड़ही।संजू के पापा हव किहिस अउ वहू हा अस्पताल में रुकगे।रातकुन संजू घलो अपन पापा के कोरा मा बइठे अस्पताल मा ही सुतगे।सुते के बाद संजू हा सपना मा देखथे कि ओकर मां ला कोनो हा जबरदस्ती ओकर कना ले छोड़ा के लेगत हे अउ ओकर पापा के गोड़ ला दूझन मनखे मन काटत रहय।संजू चिल्ला चिल्ला के रोवत रहय।ये दृश्य ला सपना मा देखत ओहा सिरतोन मा रोवत झकनकाके उठगे।उठते साठ ओहा अपन दाई ददा ला देखिस ताहने सुसकत चुप होइस।

बिहान दिन संजू के नाना नानी मन घलो आगे।चार पांच दिन के बाद ओकर महतारी के अस्पताल ले छुट्टी घला होगे।फेर अस्पताल ले लहुटे के बाद संजू पूरा बदलगे रिहिस।अब ओहा कोनो जीव जंतु ला नी पदोय।ओकर दाई ददा संजू के बदले आदत ला देख के बिकट खुश होइन।


रीझे यादव

टेंगनाबासा

कहानी// धरम युद्ध


 कहानी//     धरम युद्ध

    कोल्हान नरवा के खंड़ म एक ठन पांच हाथ चउंच-चाकर के मंदिर बने हे, फेर वोमा आज तक कलस नइ चघे हे. सुराजी बबा बताथे, के एला एक नवंबर सन् दू हजार म बनवाए रिहिसे, जब ए भुइयाॅं ल अलग राज के रूप म चिन्हारी मिले रिहिसे. मंदिर भीतर जाबे त बड़ा अचरज लागथे. उहाँ एक ठन नक्शा के छोड़ अउ कुछू नइए, फेर रोज संझा-बिहनिया दीया-अगरबत्ती जलबेच करथे. सुराजी बबा खाए-पीए बर भुला जाही, फेर उहाँ दीया-अगरबत्ती करे बर कभू नइ भुलावय. कतकों जुड़, घाम या पानी-बादर राहय, वो अपन कोकानी लाठी ल धरे बस्ती ले रेंगत ठाकुर देव-बोहरही दाई के खंड म पहुँची जाथे. चार कोरी ले उप्पर अकन होगे होही वोकर उम्मर ह, फेर बीस बछर के नेवरिया टूरा मन घिलर जाहीं वोकर रेंगई म. मार किलो भर के गरू पनही ल पहिर के खड़ंग-खड़ंग रेंगथे, त अच्छा-अच्छा बर वो ह देखनी हो जाथे. चक-उज्जर धोती, तेकर उप्पर म खादी के  कुरता अब्बड़ फभथे सुराजी बबा ल. पूरा ऐतराब के गाँव-बस्ती म वोकर नांव के डंका बाजथे. सत्, धरम अउ ईमान के जब कहूँ चर्चा होथे, त लोगन वोकरे नांव के किरिया खाथें.

    गाँव म एकक झन सेठ, पुरोहित अउ गौंटिया घलो हें, फेर वोमन ल मीठ-मीठ गोठिया के लोगन ल लूटे-खसोटे अउ भरमाए के छोड़, अउ कुछू नइ आवय. नवा राज बने के बाद एकरे मन के बुगबुगी ह बाढ़गे हे. जब देखबे त हरहा बिजार मन बरोबर बोरक्का मारत रहिथें. एकर मन के सबले बड़े गुन एक ठन ए हे, के जेन कोनो दल के सरकार बनथे, उही दल के मुखौटा ल अपन टोटा म ओरमा लेथें. राजधानी के जुड़वासा कुरिया म खुसरे लोगन का जानयं, के कोन लोगन के हितु-पिरुतु आय, अउ कोन लंदी-फंदी? वोमन तो सिरिफ टोटा म ओरमाए मुखौटा भर ल देखथें. एकरे सेती आजो इहाँ के मनखे सुराज के सेवाद ल चीखे नइ पाए हें. ए भुइयाॅं ल सरग बनाए बर हमर पुरखा मन अपन खून-पछीना ल कतेक एक नइ करिन हें, फेर दिन के दिन नरक के रद्दा ह चाकर होवत जावत हे.

    सुराजी बबा काहत रिहिसे- 'जब तक हमर मन के वोट ह दारू-कुकरी अउ चिटिक पइसा-कौड़ी के लालच म गलत मनखे मन के खीसा म हमावत जाही, तब तक ए सोनहा भुइयाॅं के सुख के मुंहाटी म लोहाटी तारा ओरमे रइही. हमन अपने घर-कुरिया म जेल कस धंधाए रहिबो अउ बाहिरी मनखे हमर जम्मो खेत-खार, बारी-बखरी अउ जंगल-झाड़ी म रार मचावत रइही. धरती दाई के गरभ म समाए हीरा, लोहा अउ आनी-बानी के रतन-खजाना मन म लूट मचावत रइही. का इही दिन ल देखे खातिर हमन सुराज के लड़ई लड़ेन, अउ वोकर पाछू नवा राज के सपना संजोएन? 

    सुराजी बबा बतावत रिहिसे- 'मैं कोल्हान खंड़ म बनाए अपन मंदिर म एकरे सेती कलस नइ चघाए हौं, काबर ते सिरिफ अलग राज बने भर ले मोर नमसुभा ह पूरा नइ हो पाए हे. जब तक इहाँ के जम्मो हवा-पानी, रोजी-रोजगार, उद्योग-बैपार अउ शासन-प्रशासन म मोर जम्मो दुलरवा मन नइ बइठ जाहीं, तब तक मैं वो छत्तीसगढ़ महतारी के मंदिर म कलस नइ चघावौं. महतारी ल अपन मंदिर म कलस चघवाए के सउंख होही, त मोर मन के साध ल पूरा करही.'

    एक दिन मैं सुराजी बबा ल पूछ परेंव-' कस बबा! अपन माटी के दुलरवा बेटा तैं काला मानथस?'

    बबा कहिस- 'जेन ये माटी संग मया करथे. एकर बोली-भाखा अउ संस्कृति ल जीथे, एकर मान-सम्मान अउ गौरव के रकछा खातिर अपन तन-मन अउ धन-दोगानी ल अरपन करे बर तियार रहिथे, अउ सबले बड़का बात इहाँ के लोगन संग मया करथे, इंकर मनके बढ़वार खातिर जम्मो किसम के बुता करथे.

    अउ बबा ह जेन मनला दुलरवा नइ मानय, तेकर मनके थाह ले खातिर मैं सुराजी बबा ल फेर पूछेंव. त वो कहिस-' ए माटी म जनम धरे भर म कोनो ल इहाँ खातिर ईमानदार नइ माने जा सकय. कतकों अइसन हें, जेन इहाँ के खाथें-पीथें अउ बाहिर के गुन गाथें. बाहिर ले आए कतकों मनखे मन संग कुछ इहों के मन अइसनेच करत हें. राष्ट्रीयता-राष्ट्रीयता कइहीं अउ बाहिर ले अपन संग लाने बोली-भाखा अउ संस्कृति ल इहाँ लादे के उदिम रचहीं... अरे इहाँ हें, त ए माटी खातिर ईमानदार बनयं. इहाँ के बोलयं-गोठियावंय अउ अपन मन-अंतस म धारन करयं तब तो.'

    मैं बीच म टोकत केहेंव-' फेर बबा ये देश म कोनो मनखे ल कोनो भाग म आए-जाए अउ रहे-बसे के अधिकार हे न?'

    -हां-हां राहय-बसय न, फेर जिहां रहिथें, तिहां के लोगन के, उहाँ के अस्मिता के उपेक्षा करे के अधिकार या नियम-कायदा तो नइ बने हे न?'

   बबा के ए बात मोला ठउका लागिस. जिहां तक शासन करे अउ योग्यता के बात हे, त अंगरेज मन घलोक आज इहाँ जेन शासन के नांव हमेरी बघारत हें, तेकर मन ले कम नइ रिहिन हें, त फेर वोमन ल इहाँ ले खदेरे के का जरूरत परगे? 

    मोर मन म राज-धरम अउ शासन-सत्ता के बारे म अउ जाने-समझे के भाव जागिस, त मैं बबा जगा पूछ परेंव-' अच्छा बबा, ये बतावौ के राज-धरम का होथे, राजा के कर्तव्य कइसे होना चाही?'

    सुराजी बबा कहिस-' सबले पहिली तो ए हे, के जेन मनखे जिहां हे, वोला उहें अतका रोजी-रोजगार अउ सुख-समृद्धि दे जाय, तेमा वो ह कोनो दूसर के भुइयाॅं या अधिकार म बरपेली जाके झपा मत जावय. काबर ते कोनो भी दूसर मनखे के अधिकार म हिस्सा मंगई ह कोनो भी दृष्टि ले न्याय के बात नइ माने जा सकय. ए भुइयाॅं ल अलग राज के दर्जा मिले हे, त उही सबला गुन के मिले हे. हर राज के अपन भाखा होथे, संस्कृति होथे, गौरव होथे, इतिहास होथे, रीति-नीति अउ अधिकार होथे, वो सबके रक्षा करे जाना चाही. इही ल न्याय या राज धरम कहिथें. शासन के मतलब कोनो ल सटासट पीटना अउ वोकर मन के जम्मो अस्मिता के लरी-लरी करना नइ होवय.

    सुराजी बबा थोरिक चुप रहिस, तहाँ ले फेर कहिस-'बेटा! भगवान मनके जीवन-दरसन अउ बोली-बचन ह हमर मन बर सुग्घर आदर्श होथे.'

    भगवान राम ल देख, वोहर अइसन बेरा आइस, ते बाली ल मारना परिस, रावन ल मारिस. फेर वोकर मन के राज म राजा बनके बइठिस का, ते अपन भाई-बंद मनला उहाँ के राजा बना के बइठारिस? नहीं न... वो उहें के मनखे मनला, चाहे वो सुग्रीव के रूप म होय चाहे विभीषण के रूप म होय, उहिच मनला बइठारिस न. एकर असली कारन इही आय, के जेन जिहां के मूल निवासी होथे, उही उहाँ के पीरा ल जानथे, उहाँ के बोली-भाखा, संस्कृति अउ जम्मो गौरव के मरम अउ महत्व ल समझथे. एकरे सेती भगवान ह उहाँ के मूल निवासी मनला उहाँ के राजा बनाइस. भगवान राम के इही सब शासन व्यवस्था ल वोकरे सेती सबले आदर्श, सुखी अउ  लोकप्रिय माने जाथे, के वोहर कोनो मनखे के मूल अधिकार ऊपर कोनो दूसर ल नइ बइठन दिस.

    सुराजी बबा के ए बात महूं ल सोला आना सच लागिस. हर मनखे के मौलिक अधिकार के रक्षा होना चाही. वोकर बोली-भाखा, संस्कृति अउ इतिहास ऊपर दूसर डहार के बोली-भाखा, संस्कृति ल नइ थोपे जाना चाही. न राष्ट्रीयता जइसन लोक-लुभावन नारा के नांव म कोनो भी बाहिर के मनखे ल वोकर ऊपर राजा के रूप म लादे जाना चाही. तभे तो राज धरम के स्थापना होही. सही अरथ म रामराज के स्थापना होही.

    सुराजी बबा के एकक ठन बात ह मोला अमरित के बूंद पियाए कस लागे लागिस. अभी तक महूं ह परबुधिया भरम म बूड़े रेहेंव. हां भई राष्ट्रीयता के मापदंड क्षेत्रीय उपेक्षा कभू नइ होय. जे मन अइसन कहिथें या करथें, वो मन लोगन ल भरमाथें अउ बदमासी करथें. तब तो अइसन करइया मनके जरूर विरोध होना चाही. उंकर मनके गलत काम ल रोके अउ छेकें जाना चाही. सुराजी बबा करा ले जइसे-जइसे सत् गियान के अमरित बूंद मोर कान म परत गिस, तइसे-तइसे मोर मन-अंतस जागे अउ अन्याय संग लड़े बर टांठ अउ चेम्मर होवत गिस.

    सुराजी बबा मोला चिंतन-मनन के समुंदर म लहरा मारत देखिस, त कहिस-' इही धरम ये बेटा, अउ एकर रकछा के बुता ह धरम युद्ध'.

    धरम युद्ध के बात सुनके मैं हड़बड़ा गेंव. मैं आजतक सोचत रेहे हौं, के पूजा-पाठ अउ देवता-धामी के नांव मन म जेन लड़ई-झगरा अउ युद्ध होथे, उही ह धरम युद्ध आय कहिके, फेर सुराजी बबा ह तो अपन अधिकार अउ गौरव के रक्षा खातिर लड़ई ल धरम युद्ध काहत हे. मैं ए बात ल बने फोरिया के बताए ल कहेंव, त बबा कहिस-' बेटा! तैं ये बता, भगवान कृष्ण ह कुरुक्षेत्र के मैदान म अरजुन ल काला धरम युद्ध केहे रिहिसे? अपन अधिकार अउ गौरव के रक्षा करना ल न? त फेर तैं काबर अन्ते-तन्ते अउ एती-तेती के बात म बूड़े हस? जे मन पूजापाठ के विधि अउ अलग-अलग देवता के नांव म लड़ाथें, वो ह तो सिरिफ बदमासी आय. तोर देवता अउ मोर देवता के नांव म लड़ई ह हमर मनके अज्ञानता अउ मुरखता आय. धरम युद्ध तो सिरिफ अपन भाखा, संस्कृति, गौरव, अधिकार अउ अपन सम्पूर्ण अस्मिता के रक्षा खातिर संघर्ष करई ल कहे जाथे.

    सुराजी बबा के रूप ह आज मोला साकछात भगवान के रूप लागे लागिस. मोला अइसे लागिस, जइसे वो मोला अपन विराट रूप के दरसन करावत हे, अउ मैं वोकर आगू म हाथ जोड़ के मुड़ी नवाए खड़े हौं. वो काहत रिहिसे-' बेटा! अपन ये धरम या अस्मिता अधिकार के रकछा खातिर हमन ल अपन सगा, संबंधी या नता-गोता के चिंता-फिकर नइ करना चाही. भगवान कहे हे न-' अरजुन, दुसमन संग खड़ा होवइया मन घलो तोर दुसमन आय, एकरो मनके संहार जरूरी हे. वो मुड़ा म जतका झन खड़े हें, वोमा के एको झन तोर कका-बबा या गुरु नोहय. न कोनो हितवा या भाई-बंद यें. सोसक, अत्याचारी अउ दूसर के अधिकार म बंटमारी करइया दुसमन संग खांध म खांध मिलाके रेंगने वाला घलोक सिरिफ दुसमन होथे. अउ जब दुसमन के संहार के बात आथे, त वोमा कोनो किसम के कानून-कायदा लागू नइ होवय. अइसन बेरा म एकमात्र लक्ष्य होथे, सिरिफ दुसमन के संहार.

    -'फेर लोकतंत्र म अइसन कइसे हो सकथे बबा? हमर इहाँ तो कानून के राज चलथे?'

    मोर बात ल सुनके बबा कहिस-' बेटा! लोकतंत्र म चुनावी व्यवस्था ह हमर धरम युद्ध के दूसरा रूप आय. इही म बने-गिनहा अउ अउ अपन-बिरान के बेवस्था ल पूरा करे जा सकथे.

    मोर मन म फेर एक ठन शंका के पीका फूटिस, मैं बबा सो पूछेंव-' बबा, फेर उहाँ राजधानी म बइठे मनखे मन चुनावी टिकिस बांटे म जेन भेदभाव करथें, तेकर का उपाय हे?'

    बबा झट कहिस-' अपन हाथ ले टिकिट बांटे के काम करव, अउ एकर एके ठन उपाय हे- अपन खुद के पारटी बनावौ. जब तक  दूसर के मुंह देखिहौ तब तक दुसरेच ल अपन मुड़ म बइठे पाहव. चाहे कुछू काम-बुता खातिर होवय, एकरे सेती बड़े-बड़े गुनिक अउ पुरखा सियान मन कहें हें- 'अपन दीया खुदे बनौ... अपन मारग घलो खुदे बनावौ.'

    सुराजी बबा संग गियान चरचा के बाद महूं कोल्हान के खंड़ म बने छत्तीसगढ़ महतारी के मंदिर म संझा-बिहनिया जाए लगेंव. सुराजी बबा संग भितरी म माढ़े नक्शा के आरती अउ हूम-धूप करे लागेंव, संग म गाँव के जम्मो जउंरिहा लइका मनला घलो एकक दू-दू करके उहाँ लेगे लागेंव. सुराजी बबा के संगत म आके जम्मो लइका मन के ऊपर ले भरम के भूत उतरे लागिस. धीरे-धीरे करके हमन एक गाँव ले दूसर गाँव, अउ दूसर ले तीसर करत चारों मुड़ा के गाँव मन म धरम युद्ध के बाजा गदकाए लागेन.

    हमर मन के जवनहा जोश म परलोखिया मनके पेट पिराए लागिस, उन लइका मनला भरमाए के, स्वारथ के दलदल म बोरे के अउ एती-तेती के गलत आरोप म डरवाए-फंसवाए के घलोक खेल खेले लागिन. फेर जवानी तो जवानी होथे, जब तक वो नइ जागे राहय, तभे तक वोला कोनो ठग सकथे या वोकर ऊपर राज कर सकथे. अउ कहूँ जागगे त फेर ककरो छेंके नइ छेंकावय, बिल्कुल नंदिया के उफनत धारा कस.

    नंदिया के उफनत धारा ल कोनो रोके सकथे जी? वोला कतकों रोक ले, तोप ले, छेंक ले, मूंद ले, फेर वो अपन आगू बढ़े के रद्दा निकालिच लेथे. कतकों बड़े-बड़े बांधा आ जाय, वोकर रद्दा म तभो वोला घेपय नहीं. कइसनो न कइसनो करके बांधा के गरब ल टोरिच देथे. अइसने जवानी के जोश घलो होथे. सुराजी बबा के संग जुड़े जम्मो दुधरू जवान मन चारों मुड़ा धरम युद्ध के जागरन अउ अपन खुद के पारटी-बेनर के जयकारा बोलाए लागिन.

    ठउका उहिच बखत चुनाव के घोसना होइस. जम्मो लइका मन खाए-पीए ल तियाग दिन. वोकर मन जगा पइसा-कौड़ी के तो कमी रिहिसे, फेर सुराजी बबा के ये भाखा सबो झनला सुरता रिहिसे-' लोकतंत्र म भीड़ संपन्न मनखे सबले बड़े होथे. जेकर संग भीड़ या बहुमत हे, वोकर जगा सबकुछ हे. बस तुंहर मनके एकता कभू मत टूटय, कोनो विभिसन कस घर फोरुक मनखे ह तुंहर मनके दल म मत खुसरय, अतके भर के चेत राखिहौ, तहाँ ले सब ठीक-ठाक निपट जाही.'

    लइका मन के पंदरा दिन ले बइहा-भुतहा सहीं किंदरई ह आखिर सुफल होइस. पइसा-कौड़ी, लाठी-बेड़गा अउ छल-छिद्र के ऊपर आखिर सत्-विसवास अउ एकता के जीत होइस. आज जम्मो लोगन ल भरोसा होगे के परमात्मा आखिर सत्-नियाय के रद्दा म रेंगइया मनला साथ देथे. परीक्षा जबड़ लेथे, फेर जीतवाथे घलोक उहिच ल जेन सत् के मारग ल धरे रहिथे.

    सुराजी बबा के आज खुशी के ठिकाना नइए. जतका खुशी वोला पंदरा अगस्त सन् सैंतालिस के होए रिहिसे, वतकेच खुशी आजो लागत हे. वो देश के आजाद होए के खुशी रिहिसे, आज अपन घर-कुरिया अउ अस्मिता के आजाद होए के खुशी ए. कोनो मनखे चाहे कतकों गरीब-गुरबा राहय, अप्पढ़ राहय तभो अपन घर के सियानी ल कोनो दूसर ल नइ देवय. जे मन अइसन सोचथें-गुनथें, ते मन सिरिफ उपद्रव के गोठ करथें.

    जवनहा लइका मन बाजा गदकावत सुराजी बबा मेर आइन अउ वोला फूल-माला म लाद दिन. चारों मुड़ा सिरिफ उमंग अउ उत्साह दिखत राहय. चारों मुड़ा, जिहां तक नजर जाय, कटकट ले मनखेच-मनखे. सुराजी बबा जम्मो मनखे मनला सबासी देवत कहिस-' बाबू हो, तुंहर मनके परसादे आज मोर सपना सुफल होइस. अब सबले पहिली छत्तीसगढ़ महतारी के मंदिर म कलस जघाबो, उहाँ छत्तीसगढ़ महतारी के साकछात मुरति बइठारबो, तेकर पाछू फेर राजधानी म अपन सरकार के शपथ ग्रहन करवाबो. तुमन जेकर जइसन योग्यता हे, तेकर मुताबिक पद अउ विभाग के बंटवारा खातिर लेखा-जोखा कर लेवौ. अब महूं ए बस्ती भीतर के घर-कुरिया ल बेंच-भांज के कोल्हान खंड म छत्तीसगढ़ महतारी के मंदिर करा एकाद खंड़ के अपन रेहे बर खोली बना लेहूं, अउ बांचे जिनगी ल इंहचे महतारी के सेवा करत बिताहूं. अब मोला लागत हे, के मोर चोला ले परान ह हांसी-खुसी निकल जाही.'

    दुरिहा ले सुराजी बबा के मंदिर ले छत्तीसगढ़ महतारी के आरती-वंदना के आवाज सुनावत राहय-

    अरपा-पइरी के धार

    महानदी हे अपार

    इंदरावती ह पखारय तोर पइयां

   महूं पांवें परंव तोर भुइयाॅं

    जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मइया...

(कहानी संकलन 'ढेंकी' ले साभार)

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811


छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान अउ अस्मिता के नवा पीढ़ी के दमदार कहानीकार चंद्रहास साहू*


 


*छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान अउ अस्मिता के नवा पीढ़ी के दमदार कहानीकार चंद्रहास साहू*

        जब ले छत्तीसगढ़ राज अपन अस्तित्व म आय हे, तब ले छत्तीसगढ़िया के स्वाभिमान जागे हे। हर छत्तीसगढ़िया के छाती गरब म फूल के चाकर होय हे। दिल्ली दूर हे, के गोठ नइ रहिगे हे। निराशा के घपटे बादर ह छटे गेहे। हमर राज विकास के पटरी म सरपट दउड़े लगे हे। अंतस् म कतको आशा जगे हे। छत्तीसगढ़ अपन संस्कृति, लोककला, परम्परा, तीज-परब अउ दया-मया बर सरी दुनिया म अपन अलगे पहिचान रखथे। इहाँ के लोक संगीत, लोक कला अउ लोक साहित्य बड़ पोठ अउ सजोर हे। सबो राज के अपन भाखा-बोली होथे। जउन उहाँ के लोगन ल मया के एक सुतरी म माला सहीं पिरो के राखथे। साग म जइसे कढ़ी, तइसे भाखा म छत्तीसगढ़ी, जनाथे। छत्तीसगढ़ी भाखा के सुवाद बड़ गुरतुर हे। मिठास हे। दया-मया के पाग म पगाय हे छत्तीसगढ़ी ह। छत्तीसगढ़ी सबो के हिरदे म उतर जथे।चिन्हार-अचिन्हार सब के अंतस् म मदरस घोरथे। तभे तो परदेसिया मन आ के इहें के बसुंधरा बन जथें। 

        भाखा मुँअखरा अउ लिखित दूनो रूप म चलथे। भाखा के लिखित रूप ह देश राज के कहानी ल आखर के अरघ देवत परोसथे। कहानी कहे ले सुरता आइस साहित्य के। हमर छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य म तइहा जुग ले कहानी सुने अउ सुनाय के चलन हावय। डोकरी दाई अउ डोकरा बबा मन दार-भात के चुरत ले नाती-नतुरा मन ल भुलवारत कहिनी-किस्सा काहँय, लइकामन घलव कहानी सुनत जागत राहँय। तभे तो कहानी के छेवर म उन मन काहँय - "दार-भात चूरगे, मोर कहानी पूरगे।"। आज सबो के घर-अँगना म शिक्षा के अँजोर हबर गे हे। पढ़-लिख के बुधियार मनखे मन लोककथा मन ल कथा-कंथली कहिके लिखित रूप म गढ़े हें त कुछ मन अपन कोती ले नवा कहानी गढ़े हें अउ सरलग गढ़त जावत हें। कहे के मतलब आय- भाखा के लिखित सरूप म कहानी लिखे जावत हे। हमर पुरखा कहानीकार मन कहानी लिख के छत्तीसगढ़ी साहित्य के सेवा करिन अउ कतको मन आजो नवा पीढ़ी ल रस्ता दिखावत हें। 

       घुरवा के दिन सहीं छत्तीसगढ़ी के दिन बहुरत हे। छत्तीसगढ़ी म अभी के बेरा म लिखइया मन कलम थामे रकम-रकम के साहित्य लिखत हें। छत्तीसगढ़ी साहित्य म कविता अउ गीत भरपूर लिखे जावत हे। सोशल मीडिया म गीत-कविता के पूरा दिखथे। उहें छपास के बेमारी ह नेवरिया मन के मति ल भरमा देवत हे। छपास रोग ले बाँच के कलेचुप सरलग लिखत रहना घलव बड़े बात आय। बड़ धीरज अउ धैर्य के गोठ घलव ए। अइसन धीरज अउ धैर्य नवा पीढ़ी के कहानीकार चंद्रहास साहू म दिखथे। जउन मन एक-दू पेज नइ, छै-सात पेज कभू-कभू तो एकर ले आगर पेज के कहानी लिखइया आँय। उँकर तिर चार कोरी ले आगर कहानी हे। असो १६-१६ कहानी के दू ठन संग्रह 'तुतारी' अउ 'करिया अंगरेज' छापाखाना ले छप के आय हे। ३०दिसंबर १९८० म धमतरी के जोरातराई गांव म जन्मे चंद्रहास साहू के पहिली कहानी संग्रह 'तिरबेनी' २०१६ म छपे हे। जेमा उँकर २३ ठन कहानी पढ़े जा सकत हे। उँकर कहानी आकाशवाणी रायपुर ले प्रसारित होवत रहिथे। ओकर लिखे कहानी मन समाचारपत्र म सरलग छपत रहिथें। कृषि विभाग म मुलाजिम चंद्रहास साहू सिरिफ छत्तीसगढ़ी म लेखन करथें। उँकर मानना हे कि छत्तीसगढ़ी उँकर नस-नस म महतारी के गोरस संग हमाय हे। अइसन म मैं अपन महतारी के दूध के करजा छत्तीसगढ़ी के सेवा बजा के कर पाहूँ। ए अलग गोठ आय के महतारी के ऋण ले कोनो कभू उऋण नइ हो पाय। चंद्रहास यहू कहिथे कि छत्तीसगढ़ी म हम नइ लिखबोन-पढ़बोन त कोन लिखही- पढ़ही? छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य ल सिरजाय के जुम्मेवारी तो हमरे आय....

       अइसे तो चंद्रहास साहू ले मोर परिचय ल अभी एक बछर घलव नइ होय हे। उँकर ले मोर भेंट-मुलाकात एके पइत होय हे। उँकर कहानीमन ले मैं जे समझ पाय हँव उही ल उँकर रचना संसार कहिके लिखे के एक उदिम हे। कोनो ल लग सकथे कि नौजुवान कहानीकार के रचना संसार ल अतेक जल्दी लिखे के का मतलब? अभी तो उन उड़ान भरे के शुरुआत करे हें। मोर मानना हे के जब उँकर रचना संसार अतका हो चुके हे के ओकर चर्चा करे जा सकथे त काबर नइ करे जाय? गोठ होही तभे तो बुधियार मन के नजर म आही। अउ आम आदमी के आवाज ल मुखर करइया नवा पीढ़ी कदम मिला के चलही।

        अइसे तो छत्तीसगढ़ी म कहानी लेखन बड़ जुन्ना आय। छत्तीसगढ़ी के पहिली कहानी 'सुरही गइया' आय जउन ल पं. सीताराम मिश्र जी मन लिखें हें। एकर पाछू कतकोन भभह  मन लिखिन अउ आज घलव सरलग लिखते हें। कतकोन कहानीकार के कहानीमन अपन अंचल म या कहन क्षेत्र म अगास म बगरे चंदैनी सहीं जगमगात हें, किताब के शकल म नइ छपे ले उँकर चर्चा साहित्यिक सभा अउ गोष्ठी मन म नइ हो पाय। कहानी मन के आरो पत्रिका मन म छपे के जरूर मिलथे। अइसन कहानी मन ल सीला बिने बरोबर सकला करे ले छत्तीसगढ़ी कहानी ल टानिक मिल पाही। छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य ऊप्पर पर्याप्त गोष्ठी-संगोष्ठी नइ होय ले कतको लिखइया मन के नाँव सकलाय नइ हे। जेकर ले गिनती च के नाँव गूगल बबा तिरन मिलथे। उँकर हितवा बन गूगल बबा के रजिस्टर म कोनो नाँव लिखवाँय नइ हें। उहें कतको के कहानी छपे हे त कोनो सुध नइ लिन अउ उन गुमनामी के अँधियार म गँवा गिन या बिसर गिन। पुरखा मन के दे थरहा ले स्थापित कहानीकार मन के रोपे खेती म अपन मिहनत, समे अउ लगन के खातू पानी दे के छत्तीसगढ़ी कहानी ल सजोर करे म चंद्रहास साहू के योगदान ल कमती आँके नइ जा सकय। 

         चंद्रहास साहू के कहानी मन म ठेठ छत्तीगढ़ियापन झलकथे। छत्तीगढ़ियापन कहानीमन म जगर-मगर दिखथे। जउन ल हिंदी साहित्य म रचनाकार के मीमांसा करत भारतीयता के कसौटी म कतका खरा? कहिके एला तउले के कोशिश करे जाथे। अइसने भारतीयता म चंद्रहास साहू के कहानीमन कोनो मेर उन्नीस नइ जनावय। उँकर कहानी म गाँव-गँवई के जिनगी अउ जीवनशैली के संग खेती-खार, रीति-रिवाज, परम्परा, सामाजिक ताना-बाना, नता-गोत्ता म हँसी-ठिठोली के संग दया-मया के बोहावत धार... सब कुछ तो मिलथे। लोक मानता, संस्कार अउ लोक संस्कृति के वर्णन तो अइसे हे कि उँकरे छाँव म कतको कहानी विस्तार पाय हे। पसहर चाउँर, खिचरी, सोहाई, आरुग फूल, टोनही ए मन अइसे कहानी आँय जेमन म माटी के ममहासी हे, संस्कृति अउ परम्परा के उजास हे, संस्कार हे, त नवा संदेश घलव हे। अंधविश्वास म जकड़ाय समाज ल जगाय के उदिम हे। 

       एक रचनाकार पहिली समाज के एक इकाई होथे। समाज म उँकर उठना-बइठना होथे। ए नाते ओकर एक सामाजिक दायित्व बनथे, चंद्रहास साहू सामाजिक सरोकार ले जुड़े कहानीकार आँय। उन अपन पात्र मन के माध्यम ले अपन ए दायित्व ल पूरा-पूरा निभावत दिखथें। सामाजिक विसंगति, समाज म उपेक्षित वर्ग अउ घुमंतू जाति के लोगन के पीरा, दुर्दशा मन ल केन्द्र म रख के जउन कहानी गढ़े हे, ओला पढ़ के अइसे लागथे कि ए कहानी मन हमरे तिर तखार के आय, हमरे कहानी आय। कहानी के उद्देश्य उपेक्षित अउ पीड़ित मन ल समाज के मुख्यधारा म लाय के दिखथे, त उहें शोषक मन के बिरुद्ध बगावत के सुर सराहे के लइक हे। 'द जर्मन शेफर्ड'  म विलासिता के फेर म दीन-हीन संग कइसन खेलवाड़ होथे? मानवीय संवेदना कइसे दम टोरथे, के चित्रण मिलथे, उहें दूसर कोती बड़े-बड़े नर्सिंग होम के नाँव म  कइसन बेवसाय चलथें, एकर पोल खोले म चंद्रहास साहू सफल दिखथे। 'खिचरी' जेन ल आस्था, विश्वास अउ भक्ति(परेम) के त्रिवेणी कहे जा सकथे। ए कहानी  छत्तीसगढ़ के सोसायटी म चाँउर के गजब खेल कइसे चलथे एकर पोल पट्टी खोल के रख दे हे।

        किसान अउ नारी दूनो समाज ल हमेशा लुटाथें। दूनो  अपन दुख-पीरा ल भुलाके या फेर तिरियाके समाज के, परिवार के संसो करथें। फेर बिडम्बना ए हे कि इँखर संसो करइया कोनो नइ हे।  किसान अपन आने-आने बूता बर दफ्तर अउ साहेब के कतका चक्कर लगाथे ए ह कखरो ले छिपे नइ हे। कभू विस्थापन त कभू बाढ़/सूखा आपदा के मुआवजा त अउ कभू बिजली-पानी बर ...फेर उँकर गोहार ल सुनथे कोन...? चक्कर लगा-लगा के थक जथें। इही सब के परछो देवत कहानी 'तुतारी'  अउ 'करिया अंगरेज' आय। जेकर नाँव दू ठन किताब छपे हे। ए कहानीमन म उँकर कलम ह शोषण अउ भ्रष्टाचार के पोल खोले म सामरथ हे। उहें ए कहानी ले कहानीकार स्वाभिमान जगाय के उदिम करत दिखथे। 

      चंद्रहास के कहानी मन म नारी के त्याग हे, समर्पण हे, दीन-हीन दुर्दशा अउ शोषण के चित्रण हे, उहें साहस, स्वाभिमान अउ अपन अस्मिता बर महिषासुरमर्दिनी बने नारी सउहत खड़े हो जथें। 'जकही' म महतारी के मानवीय संवेदना हे, 'इन्दरानी' म मन के मइलाहा मन ले लड़त, बिपत के बेरा म स्वाभिमान के संग आघू बढ़े के साहस हे, त 'थपरा' म नारी के महिषासुर मर्दिनी के रूप सहीं सशक्त गोदावरी ह नारी के अस्मिता अउ स्वाभिमान के अलख जगाय हे। 'चिरई-चुगनी' सच म 'छत्तीगढ़िया, सब ले बढ़िया,' के भुलभुलैया म भुला अपने बिनास करइया छत्तीगढ़िया के पीरा के कहानी आय। जउन छत्तीगढ़िया के स्वाभिमान ल जगाय के रस्ता म कहानीकार के एक ठन अऊ उदिम आय।

       चंद्रहास साहू के कहानी म मनोविज्ञान के सुग्घर समन्वय देखब म मिलथे। 'मड़ई' म जिहाँ पुरुष वर्ग के मनोविज्ञान के सुघरई हे, उहें 'भरम' म समाज के मनोविज्ञान के झलक मिलथे। 'मंतर' एक नवयौवना के कहानी आय, जउन ह अपन घर वाले मन ल अपन बिहाव करे बर कहिथे। एकर पाछू ओकर सोच रहिस कि गोसइया के संग रहे ले कोनो मनचलहा मन रोज-रोज ताना नइ मारही। सिरतोन म ए कहानी बाढ़े नोनी मन के अंतस् के पीरा ल कूढ़ो के रख दे हे, जउन ल ओमन रोज सहत रहिथें।

       काव्य साहित्य म शृंगार रस के बिना रचना अधूरा माने जाथे। वइसने कहानी संसार घलव मया के बिगन अधूरा च रही। निमगा मया के कहानी फिल्मी हो सकथे। अउ साहित्य ले बाहिर करे घलव जा सकथे। ए गोठ ल चंद्रहास साहू जी जानथे। तभे ओकर कहानीमन म निमगा मया के कहानी नइ हे, फेर कहानी मन म मया साग म नून सहीं मिंझरे हवय। उँकर कहानी म आज के समस्या भ्रष्टाचार, शोषण, भ्रूणहत्या, जिनगी के संघर्ष, सामाजिक मुद्दा सब कुछ मिलथे। चंद्रहास के हर कहानी के खास बात ए हे के हर चरित्र के संग उन नियाव करथें। कथानक अउ पात्र ल पूरा-पूरा उभारे म सफल हें। 

       असली साहित्य तो अपन समे के सामाजिक समस्या, विद्रुपता, विसंगति मन ऊप्पर अउ समाज के संग मनखे के हित बर लिखे साहित्य हरे। चंद्रहास साहू एक कहानी छोटे छोटे कतको समाजिक संसो ल समेट लेथे, इही उँकर बड़े खासियत घलव आय। एक-एक कहानी म किसम-किसम के मुद्दा/समस्या ल रखत हमर संस्कृति, स्वाभिमान अउ अस्मिता के बात रखे म चंद्रहास साहू जी माहिर हे, कहे जा सकत हे। भाषा शैली, वाक्य विन्यास, मुहावरा, हाना के सुघरई ले कहानी पाठक के हिरदे म अपन छाप छोड़थे। जम्मो कहानी म छत्तीसगढ़ के साँस्कृतिक छाप दिखथे। राम लीला के बात होवय ते महाभारत के कथा, राउत नाचा के होय चाहे पंथी के धुन, भोजली के कहन चाहे जँवारा के, मड़ई मेला ...सब के नजारा मिल जथे उँकर कहानी म। 

        चंद्रहास साहू ह अपन मिहनत ले डॉ. परदेशी राम वर्मा के भरोसा ल उम्मीद ल पूरा करे के रस्ता म सरलग बढ़त हे। डॉ. परदेशी राम वर्मा उँकर पहिली कहानी 'तिरबेनी' के भूमिका म लिखें हवँय,  '... चंद्रहास साहू ह नवा कहानीकार ये फेर नेवरिया नोंहय। कहानी लिखब म अभी वस्ताज तो नइ बने फेर वस्ताजी ओकर लेखन म हे। आगे चलके नइ थकही, लगातार रेंगते जाही त छत्तीसगढ़ी भाखा के गजब सेवा कर पाही, ये उमेंद मोला हे।' सिरतोन म चंद्रहास साहू बिन थके रेंगते जावत हे। थके नइ हे त सुरताय च के का बात?  डॉ. परदेशी राम वर्मा के संबल अउ असीस पाके चंद्रहास साहू निखरत हे। डॉ. परदेशी राम वर्मा के अइसन सहयोग ह बंदनीय हे।

        मोर नजर म चंद्रहास साहू नवा पीढ़ी के अइसन कहानीकार आँय जउन ल छत्तीगढ़िया स्वाभिमान अउ अस्मिता के दमदार कहानीकार कहना गलत नइ होही।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी)

जिला बलौदाबाजार छग.

नान्हे निबंध

 नान्हे लइका मन बर


नान्हे निबंध


"खारो, करू अउ मीठ"

जिनगी के अलग स्वाद 


नून के स्वाद खारो होथे l बिना नून के भोजन नई बनय l बिना स्वाद के भोजन नई मिठावय l कम नून खा ठीक हे l ज्यादा नून नुकसान दायक होथे l ज्यादा नून के खारो साग सब्जी lखा भी नई सकस l ज्यादा खारो करू हो जथे l

           करू स्वाद म करेला के नाम आथे पहिली, बाद मे दवाई के l करू ला कोन मन लगाके  खाथे l करेला ला मन लगाके खाथे l करू स्वाद दवाई के  काम आथे l

           मीठ माने मीठा याने शक़्कर  सबला मीठ काये के मीठा पिए के मन होथे l स्वाद के भोजन व्यजन म मीठा श्रेष्ठ हे l 56 भोग म मीठा अपन अलग नाम कमाए हे l देवी देवता के भोग म जघा पाये हे l ज्यादा मीठ घलो करू होथे l

          अब ज्यादा मीठ घलो करू

   ज्यादा खारो घलो करू अउ  करू तो भई करू हे ज्यादा करू बीख करू हो जथे l

   तीनो स्वाद के बारे मे जाने के बाद

   अपन व्यवहार म लागू करथन l बात चीत आदत आचरण म खारो  मीठा अउ करू जरूरी हे l जीवन म तीनो के स्वाद मिलना चाही l

      जब जिनगी म जिए के बात आथे त स्वाद के स्वाद बदल जथे l करू गोठ ला सत्य कहे जाथे l करू गोठ  ला कोनो भावय नहीं l करू गोठ सुहावय नहीं l जबकि करू वचन अनमोल होथे l जिनगी के सही रद्दा दिखाथे l

         मीठ गोठ मीठ लबरा के l मीठ मीठ बोलके फूलो देथे मैनखे ला l मीठ बात म आके फंस घलो जथे l

         खारो गोठ मनभावन घलो फेर कमजोरी ला देखाथे जेला हास्य व्यंग्य कही देथन l ताना मार खारो असन खरी खरी जी ला भेद देथे l

         दुनिया म किसिम किसिम के मैनखे l कोनो ल कइसे कहें जाय इही स्वाद म स्वाद मिलाथे l फेर अतका सिरतोंन गोठ आय कम जादा कम जादा बोलके सुनके जानके समझके

 रहे ला पड़थे l कोनो ला मीठ बोलके लूटव मत l कोनो ल करू बोलके मारो मत l कोनो ल खारो बोलके उछराव मत l सही बोलव मीठ बोलव हाँस के हँसा के जी गुद गुदाजय l हित मीत बने रहय l कोनो ल टोरो भी मत ककरो सो टूटव भी झन  तभे जिनगी के खारो  मीठ अउ करू स्वाद के असल मजा मिलही l


  मुरारी लाल साव

बियंग - ट्राफिक सिगनल

 बियंग - ट्राफिक सिगनल

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।

रसरी आवत जात ही सील पर होत निसान।।


जे मनखे जे काम म रत रहिथे। ओकर गत ओइसने हो जथे। ओहँ ओमा दक्ष हो जाथे धीरे-धीरे, हलू-हलू । येमा कोनो तीन मत के बात नइए। दू के तीन  मत ये सेती काबर के जइसन दुगोड़िया प्रानी हँ ऊपर लिखे बात ल कहे हे, ओइसनेच् किसम के मानुस हँ इहू कहे हे कि -

जदपि सुधा बरसही जलद, फूलहिं फरहिं न बेंत।

जो गुरू मिले बिरंचि सम, मूरख हिरदय न चेत। 

फेर देखब म मिलथे कि पहिली वाले गोठ हँ हर मनखे के मुड़ म कुकरा कस कलगी गजब सोभायमान होथे। त दूसरइया गोठ हँ मनखे के नाक कान बर चिथायमान सिध होथे। ये शोभायमान-चिथायमान के बीच एक चलायमान सब्द तको हे, जिहाँ दुविधा उहाँ बीच के सुविधा ल सधायमान करना चाही। एकरे सेती हम दू मत नइ कहेन। तीन के जगा अढ़ाई भले कहि सकथन। हम चाहे दू काहन के तीन, हमर मरजी।

हाँ, त हम बात करत रेहेन दक्षता के। मनखे हँ जे लाइन रद्दा म चलथे ओमा ओहँ दक्ष हो जथे। जइसे लइकामन ल पढ़ावत-पढ़ावत गुरूजीमन घला लइका हो जथे। उहूमन कुछ दिन के बाद, अउ नहींते कम से कम रिटायर होवत तक लइकेमन बरोबर बेवहार करे लगथे। जेला परिभासिक रूप म ‘सठियाना’ कहे जाथे।

वोमन लइकन ल चरावत-चरावत, उन्कर बात-बेवहार, उन्कर मानसिकता के अवलोकन करत उन्करे सम्मुख गुन ल ग्रहन कर लेथे। लइकामन के गुन-ग्रहणी प्रभाव से गुरूजीमन के मति हँ खीरे-खियाए लगथे। जेकर ले गुरूजीमन गुर के गुर रहि जाथे अउ चेला-चाँटीमन सक्कर फेर सक्कर ले मिसरी हो जथे।

गुरूजी मन अपन जिनगी म घर बनाए के छोड़ आने करमचारी मन कस दूसर बिकास नइ कर सकय। घर ले स्कूल, स्कूल ले घर। उन कूआँ के मेचका बरोबर दुनियादारी ल जानबे नइ करय। त काय घंटा बिकास कर सकही ?

कूआँ के मेचका मंदरसा के मास्टर।

अँड़हा के बैदई अउ झोला छाप डाक्टर।

पाकिटमार, चोर-उचक्कामन धन-दौलत, रूपिया-पइसा ल सूँघ डरथे । नेतामन नेतागिरी करत, चुनाव लड़त जनता के मति ल पढ़-टमर डरथे। मत माँगत -माँगत जन-जन के मति ल मता डरथे। इही गियान के सीढ़िया म चढ़के आज के टुटपूँजिया काली मंतरी बन बइठथे। जन-जन के मति ल अपन मंतर के राख तरी दबाके रखे सकय उही मंतरी।

इही किसम ट्राफिक वालेमन के कहिनी होथे। उनमन दूरिहा ले गाड़ी चलइया के सकल-सूरत, हाव-भाव अउ गाड़ी के दसा-दिसा ल देखके जान डरथे कि कते वाहन चालक चालाक हे अउ कते हँ जोजवा। अंधरा मन के पढ़ई बर जइसे ब्रुएल लिपि होथे तइसे देहाती गँवार अउ बिन लइसेंस के गाड़ी चलइयामन के हालत-डोलत मुड़ी कान, उन्कर चमकई-झझकई अउ गाड़ी के रंगरूप हँ ट्राफिक पुलिसवाला मन बर सिगनल के काम करथे।

कते रंग के सिगनल ल कब बारना हे, कते ल कब बुताना हे ट्राफिक वालेमन खूबे जानथे-समझथे।

लाइन गोल रहय के चालू रहय। इन्कर दिमाक म ये तीनांे लाइट आठो काल बारा महिना बंगाबंग बरत रहिथे। ओकरे सेती वोमन ल तीन रंग के सिगनल दे गे हवय- लाल, हरियर अउ पींवरा। 

हरियर रंग माने धर्रा दऊड़ा देना हे- ‘जावव ददा भइया हो। तुँहरे राज हे। परजातंत्र ये।’

येहँ हरहर-कटकट, लफड़ा-झंझट ले परे जाए के मंत्र ये। टोंके-टाँकेवाले कामे नइ करना हे।

लाल म रोकना-छेंकना, फाइन ठोंकना हे। लाल बत्ती माने -‘‘अबे रूक। लायसेंस देखा।’

‘दूपहिया माने दू सवारी ले उपरहा नइ होना चाही। तीन सवारी काबर बइठे हव ? तुँहर बाप के राज ये का रे ? चल फाइन निकाल। कम से कम इही बहाना राजस्व के वसूली होही। हमरो जेब गरम होही। गरम नइ होही त कुनकुनाही तिहू।’

सुनसुनहा मनखे जिनगी म फुस्का विकास नइ कर पावय। विकास खातिर ताते-तात नहीं त कुनकुना सही।

पींवरा बत्ती माने-सक भर संका करना हे। अइसे तो संका करना उन्कर जनमजात सुभाव होथे। ये सुभाव के अभाव हँ टेªनिंग के प्रभाव ले पूरा हो जथे। भूले-भटके कभू कोनो वर्दीधारी बर सलाम पटके, माने तैं सटके। सलाम देख उन्कर माथा ठन्न के छटके -‘‘स्साला कोन-से धारा वाला ये यार ! चलो झपटे-झटके।’’

धारा नइ मिलही तभो धार निकाल के धारे-धार बोहवा देबोन, बाँच के कहाँ जाही।

तेल देख तेल के धार देख।

सलाम फेंक, सलाम के लाम-लाम दाम देख।

अइसन अक्सर टेक्स महीना अर्थात मार्च-अप्रैल म होथे। मार्च के महीना सब बर मार्च पास्ट ले कम नइ होवय। ददा भइया मुहरन अउ साहेब सहरिया टाइप के मनखे मन बर निसदिन हरियर बत्ती बरत रहिथे। गँवार टाइप के मनखे मन बर हमेशा लाल, माने रोका-छेंका-टोंका के बत्ती बरथे। जिहाँ टेक्स महीना माने मार्च-अप्रैल आइस तहाँ सबो बत्ती पींवरा पर जथे।

एक पइत अइसने एक ठन फिलिम म चऊक के दृश्य उभरथे। सड़क के तीर म  एक ठो बेंवारस बंबरी पेड़ हे। पेड़ म तक्ती टंगाए हे -‘‘येला अव्वल दर्जा के भ्रस्ट अधिकरी द्वारा लगाए गे हे।’’ उही पेड़ तरी साहेब जोगी बाबा बने ध्यान-मुद्रा म बइठे मुद्रा-ध्यान म मगन हे। ट्राफिक जवान बीच चऊक म ‘बगुला-भगत’ कम स्वामी-भगत’ बने रिंगी-चिंगी कोतरी-मछरी अगोरत एक टाँग म खड़े हे।

‘रिंगी-चिंगी’ माने निच्चट गँवखरहा, गरीब-गुरबा, मेहनत-मजूरी करत घाम-प्यास झेलत झोल खाए मुँहवाले झोइलाए-झुर्रियाए झोला छाप ड्राइवर। 

एक झिन ईमानदार गाड़ीवाला हँ हरियर सिगनल ल पींवरावत देखके गाड़ी ल रोक दिस। 

जवान अपन अंतर्दृष्टि ले गाड़ीवाला के चाल-चलन अउ स्वभाव ल पढ़ डारिस। 

‘हाँ, ये हे झोलझोलहा-डरपोकना मनखे। जेन हँ नियम-धरम के पालन करत हे।’

रीत-रिवाज, नियम-धरम के पालन करइया ले बड़े बयकूफ, गँवार, डरपोकना अउ रूढ़िवादी ये दुनिया म दूसर कोनो नइ होवय।

आ बइला मोला हुमेल। 

कतको जवान अउ ताकतवार सेर होवय वोहँ झूंड के निजोर से निजोर सिकार ऊपर ही झपट्टा मारथे। जनम के कोलिहामन, सेर के भेस म सिधवा चियाँ मन ऊपर ही गिधवा कस झपटथे। उही किसिम वो जवान हँ गाड़ीवाले ऊपर झपटिस, दबोचिस अउ ‘हर्रस-ले’ हबक लिस। गिस-गिस अउ ‘सट-ले’ गाड़ी के चाबी ल निकाल लिस-

‘चल गाड़ी ल किनारे कर। कागजात हे ?’

‘सर.....।’

‘लाइसेंस हे ?’

‘सर.....।’

‘बीमा करवाए हस ?’

‘ ........।’

वो बिचारा सर सर करते रहिगे अउ वो जवान सर्र-सर्र प्रश्न के पिचकारी मारके ओला चोरो-बोरो कर डारिस।

‘‘हेलमेट काबर नइ पहिरे हस ? चोरी के गाड़ी हरे का रे ?’’

‘‘नहीं साहेब।’’

‘‘अरे मोला मत सीखो। दिखत के गरीब-गुरबा मुरदा मानुस ! तैंहँ कहूँ गाड़ी ले सकबे रे ! हमला मालूम हे स्साले ! जतका छोटे मनखे होथव चोरी के दूचकिया म उदाली मारके मन ल मड़ाथौ।’’

‘‘बड़का मन तो चरचकिया कुदाथे। अपहरन करथे। फिरौती माँगथे। जतका बड़े मनखे ओतके छोटे आँखी के। ओतके बडे़ कांड। सब डंका के चोट म खुले आम करथे। हमर बर उन्कर एके टुकड़ा काफी होथे।’’

‘‘तुम छोटे-मोटे मनखे नान-मुन चोरी-चपाटी करथव। मेहनत जादा लगथे, फायदा कम। चार आना के कुकरी नहीं बारा आना पुदगौनी। माछी मारे हाथ गंदाए। ऊप्पर ले तुंहर कारण बिभाग गंधाथे-बस्साथे। धन जाय त जाय, धरमो जाय। तुम मानबे नइ करव। जब तक तुमन ये नीच धंधा नइ छोड़हूँ। हमन ल नीचे उतरके अँगरी टेड़गा करेच् ल परही। काबर कि लोहा लोहे ल काटथे।’

अतेक अकन सवाल के छर्रा गोटी म कइसनो चलाक चालक होवय बँधा-छँदा जथे। वो बिचारा तो जनम के गँवइहा । ओकर खाँध म गमछा लपेटाए देखिके तो बिधुर बाबा हँ ओला दूरिहे ले चिन्ह डारे रिहिस। 

नवा-नवा अउ गँवखरहा चालक तो वर्दीच् ल देखके बरदी के छँटियाए बछरू कस बिचारा हो जथे। आगू-आगू जवान पीछू-पीछू चालक। साहब कुछू बोलतिस तेकर पहिली चालक कहिथे -‘‘देखौ साहब मोर तीर सबो कागजात हे।’’

चालक ल देखके साहेब मोगंबो खुस हुआ के स्टाइल म मुसकाइस। अपन चिक्कन चेंदवा मुड़के उछलत-बिछलत-खिसलत टोपी ल सोझियाइस। पेट म खपलाए पबरित-अमरित मरकी के पेंदी म हाथ ल फेरिस। जेकर प्रभाव ले घूस खाए ले बने अपान हवा हँ डकार मारके बाहिर होगे - ‘‘बोंअ....अं... ’’

‘‘बोंअ....अं... ’’ डकार हँ अवइया घूस के स्वागत सत्कार बर फेर राजी हँव कहिके हुँकारू दिस। 

तेकर पीछू फोकट के खाए पान के बोहावत लार ल हँथेरी म सरमेट्टा पोंछत- चाँटत साहेब कहिथे-‘‘बेटा ! कागज के रहे भर ले का होही ? हम जे चाहत हवन तेन कागज हे के नहीं तेला बता ? बापू छाप कागज के तो दर्शने नइ हे।’’

‘‘रेड सिगनल के पार करौनी फाइन पटा। लालबत्ती ल हरियर पत्ती ही काट सकथे। जब तक तोर कोती ले बापू के असहयोग आंदोलन जारी रिहिही, हमर कोती ले करो या मरो के प्रयास जारी रहिही। सरकार के कुछू फायदा कर । दू सौ नइहे त सौवेच् रूपिया म काम बन जही, फिक्कर झन कर। फेर सौ रूपिया के रसीद नइ मिलय भई ! बताए बात बने होथे। पाछू किरिर- कारर झन करबे।’’

‘कानून ल हटा, नून चटा। नमक कानून के तको हमर देस म गजब महात्तम हे।’

‘हमू ल देश के प्रति नमकहलाली के सुअवसर प्रदान कर।’

ओतके बेरा एक झन जवान हँ एक झिन गाड़ीवाला संग थोरिक दूरिहा म गोठियावत रहय । ओला देखके पहला जवान के सलेंसर पाइप फूट गे। जेमा ले संेका-भूँजा, जर-बरके धुँगिया उठे लगिस । वोहँ भदभदावत चिल्लाइस -‘‘देख तो साहेब, ओहँ उही मेर गाड़ीवाला संग बात करत अकेल्ला कोन्टा म निपटत- निपटावत हे।’’

साहेब ठहिरिस निर्मल बाबा के परम भगत। अपन पद के रोवाब अउ मुँहू के खाज म ओला गज्जब बिस्वास हे। पद हे त कद हे, वरना दू आना के मनखे ल गिराए-पटके के लाखो बहाना। ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़......कहिस-‘‘कोई बात नहीं पुत्तर ! दस परसेंट एती आहिच्। कहाँ जाही ? हमू घाट- घाट के पानी पीए हन।’’

फेर जादा बेर ले गोठियावत देखके साहबो के कुंडली जागृत होगे। साहेब के छट्ठी इन्द्री टुनटुनाइस-‘‘अरे ! कोन्टे ले खिसकाबे झन।’’

दूसर जवान कहिस -‘‘येहँ कोनो सिकार नोहय साहेब ! एकर संग मैं घरू चर्चा करत हौं।’’

साहेब तिखारिस -‘‘घरू चर्चा ? 

जवान कहिथे -‘‘साहेब ! येहँ मोर जुन्नेटहा भाटो हरे ।’’

साहेब ल ‘झम्म-ले’ लगिस, मन मारके रहिगे। ओकर संका के ठढ़ियाए डंडा हँ ‘लज्झ-ले’ ओरम गे। दिमाग के जम्मो सिगनल ‘चुमुक-ले’ बुता गे।

मुड़ी ल खजुवावत अपन तीर खड़े जवान ल कहिथे -‘‘का करोगे यार ! बिभागीय आदमी का भाटो पूरे बिभाग का भाटो होता है।’’

तेकर पीछू सपड़ाए चालक ल कहिथे -‘‘चल भाई ! अब तँही कुछु निकाल, तभे बात बनही। हमर अटके-फटके अउ सटके-भटके सिगनल के गाड़ी ल तहीं पार लगा। जय होवय तोर अउ जय होवय भारत माता के।’

जवानमन एति थैली-थैली के बीच ‘बापू-सेतू’ के निर्माण म लगे हे। ओति अतका सीन के सूटिंग होवत ले कतकोन चोर-उचक्का गाड़ीवालेमन बजरंगी बन जझरंग-जझरंग उचक-उचकके समुन्दर पार कर डारे हावय।


धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

बियंग - बिग्यापन के चस्का

 बियंग - बिग्यापन के चस्का


नान्हेपन म कहिनी पढ़े रहेन - नाम बड़े या काम। ओमा नाम ले बड़े काम ल बताए गे रिहिसे। ये दुनिया कभू -कभू बड़ गड़बड़ -सड़बड़ लगथे। जेती देखबे तेती सब उल्टा -पुल्टा। अब देखव न, पढ़ेच भर बर के काम बड़े हे। बाकी बेरा अउ जगा म तो नामेच् हँ बड़े होथे। सधारन मनखे कतको बड़का, पोठ अउ जउँहर जझरंगा काम कर लेवय ओकर नाम फुस्का नइ होवय। बने असन बड़का काम बूता ल करत मर जही, तभो नाम नइ होवय।

 

जे मनखे दाम म बड़े होथे ओकरे नाम होथे अउ ओकरेच् काम ल बड़े अउ बने माने जाथे। बडका मनखे छींकथे-पादथे तेनो हँ खबर बन जथे। अउ होही काबर नहीं ? काबर के वोहँ मनखेच् बड़े होथे। 


बड़का के सबो बूता सोभाय। राजा के पादे नइ बस्साय। 


ओकर सेती आजकाल लोगन के मगज म नाम कमाए के चस्का स्वाइन फ्लू कस बुखार चढ़े रहिथे। काम हँ तेल ले बर जाय। नाम पहिली होना चाही। देखत तो हावव। नानमुन पैखाना के घला उद्घाटन करे बर कतको झिन कइसे झपा-कूद परथे। काबर के ओकर ले उन्कर नाम हँ पैखाना के दुवार म स्यामाक्षर म लिखा जथे। अइसन म हर मनखे हगत-मूतत उन्करे नाम लेथे।

 

इही ल कहिथे, आँखी धोके पद पाइस, त हगत-मूतत गुन गाइस।

 

नाम के पाछू मंतरी-संतरी मन तो बिना मुँह-हाथ धोए फुसीमुँह परेच् रहिथे । चम्मच-करछुल मन घला कुकुर कस एक हाथ जीब ल लमाए लाहकत-हँफरत इहाँ-उहाँ लुड़ुंग-लुड़ुंग दऊड़त रहिथे।

 

अब तो कवि कलाकार अउ बड़े-बड़े बुधजीवी परानी मन तको ये छूतहा चिक्कनगुनिया बीमारी ले अछूता नइ रहि गे हे। कभू -कभू तो इहों तक देखे बर मिलथे के पुरूस्कार-उरूस्कार के चक्कर म साहित्यकार मन घला राजनीत अउ गनित के दाँव-पेंच अजमाए बर नइ छोड़य। नाम तो होना चाही गा।


जिहाँ नाम के पारी आथे असल आदमी पीछवाए रहिथे । नकली मन बतर कीरा कस झपाए परथे। 


खेत-खार होवय के बारी-बखरी होवय, बोंए फसल ले बने सुघ्घर अउ हरियर बनकचरा मन दीखथे। ‘सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुँह काला’ वाले बात ल ओला-पाला मार दे हे। अब तो सत के गत मराय अउ असत के फद पराय हो गे हे। एक अनार सौ बीमार कस किस्सा हे।


नाम के चुलुक, दीवाना सरी मुलुक।


जिहाँ बिग्यापन के चस्का दिमाक म चिपकिस-चटकिस। वोहँ एला-ओला मस्का लगाये बर धर लेथे। एकर बाद ओकर ठसका दिनो-दिन बाढ़े लगथे। 

खुस रहा चस्का म, काम जाय फुस्का म। 


एक झिन कंगला भूखमर्रा मनखे हे। नाम धनीराम हवय। वोहँ अपन घर के गलीपार जतका बड़ भीथिया हे, ओतके बड़ अपन नाम ल लिख-पोत दिए रहिथे। जेन मनखे ये गली ले रेंगथे-गुजरथे, वोहँ जान डरथे के ये घर म धनीराम नाम के कोनो न कोनो परानी रहिथे। जेन हँ नाम के खखाए-भूखाए हे। 


बने हे। बड़ अच्छा काम करथे। अवइया-जवइया ल तो घलो पता लगना चाही के धनीराम नाम के मनखे कोन ये ? कहाँ रहिथे ? कतेक गरीब अउ भूखमर्रा हे ? अइसन म नवा-नवा मनखे ल घला ककरो पता ठिकाना पूछे के जरूरत नइ परय। मनखे ल काम तो अइसने करना चाही। घर के आघू म नाम पलेट टाँगे के इही मतलब होथे कि घर बइठे बिग्यापन हो जाय।

 

कोनो-कोनो घर के आघू म लिखाय रहिथे - ‘कुत्तों से सावधान!’ 

मनखे मगज के कसरत कराके थक जथे। समझ नइ पावय कि इहाँ मनखे रहिथे या कुकुर। सावधान नइ होवय। उन्कर ले बड़े मूर्खता के प्रमाणपत्र  धारी अउ कोन हो सकथे।

 

अच्छा हे, होना तको चाही । जिनगी के भाग-दऊड़, काम -बूता म काकर तीर अतका मउका-फुरसत होथे के कोनो, ककरो पता-ठिकाना पूछत-बतावत, घूमत -फिरत, भटकत रहय। कोनो मनखे के जानकारी लेवत-देवत बइठे रहय। ओकर ले अच्छा हे के गली-गली म अपन-अपन नाम के पोस्टर लगा देवय।

 

मनखे हँ बाढ़े के संगे-संग अतेक व्यस्त हो गे हे के परोसी हँ तको परोसी ल नइ जानय-चिन्हय, त कोन काकर पता ठिकाना बतावत रहिही ? गली -मुहल्ला, चऊक-सड़क, बजार-हाट जगा-जगा लगे बड़े-बड़े पोस्टर मन इही बताथे। 

परोसी के मारे साँप नइ मरय तइसे परोसी के बताए घरो नइ मिलय। त ओइसनो परोसी घला का मतलब के ? पोस्टरे बने हे। 


ये जुग हँ प्रचार अउ बिग्यापन के जुग हरे। मनखे कहूँ प्रचार-प्रसार नइ करही त दुनिया ओला जानबे नइ करही। अइसन प्रचार-प्रसार के जुग म कोनो मनखे कुरिया म घुसरे-घुसरे नइ मरना चाहै। जे मनखे अपन नाम ल उजियार नइ कर सकिस। ओला घुसमुड़, घरघुसरा अउ कूआँ के मेचका माने जाथे। आज के मनखे कूआँ के मेचका के बजाय पैठू-ढोड़गा के घोड़पिल्ली कहाना ल भला मानथे। 


बिला के मुसुवा ले बन के भठइला बने। 


अब तो नाम जगाए, चलाए अउ चमकाए के चलागन हो गे हावय। लोगन हँ मूरति बन-बनके चौक-चौराहा म लगे-लगाय बर धर ले हावय। बड़े-बड़े पोस्टर बनवाके सड़क के आँही-बाँही म टाँगे-टँगाय ल धर ले हे। माने तबके आदमखोर, मनखे अतेक नीच हो गे हावय के वोला अपन आप ल ऊँच-उठाए बर बिग्यापन के सीढ़ी-सहारा ले बर परत हे। 


हे ऊप्परवाले ! ये बेदम जीपरहा खलपट्टा खाल्हेवाले खली खल मन ल ‘टिंग-ले’ उठाले। 

धरती के बोझ हर, कुकुरमन के पूछी ल सोझ कर। 


कतकोन अपन गाड़ी म आगू-पीछू पोतवा डारे रहिथे - ‘भूतहा मंतरी, ’द’लाल माटी के। प्रदेस अउ रास्ट्र म फरक जानबे नइ करय, गाड़ी म ‘रास्ट्राध्यक्ष’ लिखवाए रहिथे। मंतरी के म में कोन-से मात्रा लगथे पता नही, फेर महामंतरी कहावत हे। 


कोनो जगा छट्ठी के बधई, त कहूँ कुकुर ले कोलिहा रंग म रंगे के बधई। कोनो तेल बेचत हे। कोनो सेल बेचत हे। कोनो कद बढ़ावत हे, त कोनो पद मिलावत हे। काकरो तीर बजन घटाए के तरीका हे। कोनो धन कमाए के नुस्का नोखियावत हे। कोनो बाल बढ़ाए के दवई देवत हे, त कोनो गाल चिकनाए के।

इहाँ तक के अब तो बुढ़ापा ल घलो दुरिहा रखना असान हो गे हावय।


पैडगरी रद्दा तको हाइवे रोड बने बर चालू हो गे हे । कोनो दिन म मनखे अम्मर हो जाही। बुकिंग चालू हो गे हे। ठेकादारी के टेंडर निकल गे हावय। माने किसम -किसम के बिग्यापन।

 

बिग्यापन के बहाना भर अलग-अलग होथे। मतलब सबो के एके हे-नाम। भीतर ले कड़हा-कोचराहा हे तेला सबो जानथे, तभो कलमुँही कल्यानी भाँटा कस चिक्कन-चाँदर दिख अउ बजार भाव म बिक। इही मंतर हँ ये कलमुँहा कलजुग अउ जग म जिनगी के सरियत हो गे हवय।

 

नाम के संगे-संग दाम के मक्खन पा लेना। जऊन ल नाम के डबलरोटी म चुपर-छबड़के खाए जा सकय। एक घँव नाम हो गे ताहेन दाम तो आना ही आना हे। दाम से नाम अउ नाम से दाम, उपराहा म चेम्मर चाम। दूनो महापरसाद हो गे ताहेन भइगे । जिनगी म अरामे-अराम हे। सबे कोती राम -राम हे। सबे कोती दुआ -सलाम हे।


अब ‘अराम हराम हे’ के दिन चइत-बइसाख कस तरिया अँटा-नँदा गे। ओकर बाद जिनगी बीता भर नानुक नइ रहि जाय। चारो मुड़ा हरियर-हरियर घऊद -फइलके लामे-लाम हो जथे। दुनिया म जतका काम-धाम, ताम-झाम हे सब नाम अउ दामेच् खातिर तो हे। 


कतकोन अधिकारी-नेता पद ले उन्डे-उन्डाए के बाद देखते कि जनता के बीच ओकर थूआ-थूआ होवत हे। पाल्टी म घलो बँड़वा कुकुर कस पूछ-परख खियाए लगे हे। ओकरे पाल्टी के नेतामन ओकरे नाम म उल्टी करे बर धर ले हे। जेन चमचा मन पूछी हलावत ओकर आगू-पीछू जी-जी करत रहय, उहीमन अब खेलाहूर करत एकरे पूछी ल धर-धरके तीरे लगे हे। 


जेन करमचारी मन ओला देखके मुड़ी-कान ल खजुवाए लगय। थोथना ल ओरमाए खड़े राहय, उहीमन ओकरे आखा-बाखा ल हूदरे-कोचके लगे हे। माने कुल जमा-पूँजी कुकुर गत होगे हावय, अइसन अधिकारी-नेतामन उल-जलूल कुछू भी बयान देके बयानबीर बने बर धर लेथे। तीर-तुक्का म बात फिट बइठ जाथे त वाहवाही के भरम ल चिमोट-पोटार, चाँट-चिचोर मन ल मड़ाए लगथे। काबर के जनम भर ठग-पुसारी करके वाहवाही लूटे मनखे ल आखरी पाहरो तक वाहवाही चाही। 


सतरंज के घोड़ा खोरवा रहय के कनवा रहय, जब कूदही अढ़ाईच् घर। टूटे -फूटे साख ल सिल-सुलाके संतुलित रखना अउ निमार-निचोर के जिनगी फीलगुड के चुस्की चुहके-चिचोरे बर इही मन जानय।

 

पद ले धकियाए-छँटियाए अधिकारी-नेतामन के बियान जइसे पट्टा छाप बैटमेन के भूल-भूलैया के चौका-छक्का। कतकोन झिन बिग्यापने के नाम से कभू भी कुछू भी भूँकत-बड़बड़ावत रहिथे। बिना मतलब के काकरो बर होवय गुर्रियावत-गरियावत रहिथे। अइसन करइया मंतरी-संतरी दूनो हो सकथे। 


अखबार म कभू-कभू फोटू सम्मेत समाचार छपथे। फलाना जगा अतका जुआरी सपड़ाइस। चोर गिरोह पुलिस के हत्था चढ़ गे अउ पुलिस के मत्था सोन मढ़ गे। देखे होहू अइसन समाचार म चोर, जुवारी या आरोपी के मुँह म कपड़ा लपेटाए रहिथे अउ पुलुसवाले मन के मुड़ ले बड़े आँखी हँ बटबट ले दिखत रहिथे। उन्कर छाती हँ फरारी काटत आरोपी कस पता नही कहाँ नदारद रहिथे ? फेर पेट हँ टोमटोम ले कोंहड़ा कस तनाए-फूले रहिथे। जानो- मानो उनमन अभीन-अभी परेड ले आवत हे। नानकुन समाचार बड़ेजन फोटू। पुलिस टीम म कोन-कोन रहिन, ये बजूर छपथे। 


अरे भई ! चोर-ढोर के नाम अउ फोटू छापे के का मतलब ? उन्कर चिन्हारी समाज बर जरूरी नइ हे। चिन्हारी पुलुसवाला मनके होना चाही ताकि लोगन जान सकय के एदे-एदे पुलिस सरी दिन बेइमानी नइ करय। चोर-चोर मौसेरा भाई होथे ते का भइगे। दूर के ढोल गजब नींक लगथे, तइसे सग भाई ले जादा दूरिहा के भाई बर मया होथे। अउ उन्करो मन म बछर-बछर म बखत परे कभू -कभार करतब भावना रटपटा-अँटियाके उमड़ परथे। जिनावर ले गे बीतेच् हे त का भइगे आखिर उहू मन मनखे ये।  


कतको चिपरी-चिपरी बिगर रंग-ढंग के हीरवइन मन पिच्चर नइ मिलय त अपने ओनहा-कपड़ा ल चीर-चार के फोटू खींचवावत रहिथे। इहाँ-उहाँ गोदना गोदाके टैटू बताथे। उन ल का पता, गाँव के गोदना सहर जाके टैटू बने हे।


खाए बर-भाजी भात, बताए बर बोकरा ।

वाह गा ! चोखू हो। दुनिया म हुसियार तो तुँहीच् भर मन हवव।


धर्मेन्द्र निर्मल 

9406096346

Sunday 13 November 2022

छत्तीसगढ़ के नीलकंठ--मुक्तिबोध जी (जन्मदिन विशेष--13 नवम्बर💐💐)


 

छत्तीसगढ़ के नीलकंठ--मुक्तिबोध जी

(जन्मदिन विशेष--13 नवम्बर💐💐)


हमर छत्तीसगढ़ राज्य के नीलकंठ के नाव ले जनैया परमुख कवि,आलोचक, निबन्धकार,अउ कहानीकार हिन्दी साहित्य जगत के वाद प्रगतिवाद,नयी कविता के बीच के पुलिया सही काम करईया, गजानन माधव मुक्तिबोध जी हिन्दी साहित्य अउ छत्तीसगढ़ राज्य बर कोनो चिन्हारी के जरूरत नई हे। मुक्तिबोध नाव ह ओकर पूरा साहित्यिक रचना मन के बोध करा देथे। फोटो म बीड़ी पियत रूप ज्यादा देखे ल मिलथे। इंकर एक झन संगवारी रिहिस शांताराम जेहा रात कुन पुलिस गश्त के नौकरी म तैनाद होंगे। गजानन जी ओकरे संग रातकुन घूमे बर निकल जाये। बीड़ी के चस्का उही समय ले लग गे रिहिस।


मुक्तिबोध जी के जन्म 13 नवम्बर 1917 के श्योरपुर ग्वालियर में होईस। शुरुआती पढ़ाई लिखाई उज्जैन में होय रिहिस। चार भाई में एक भाई शरतचन्द्र मराठी के बड़े जन कवि होईस।थानेदार पिताजी के मन रिहिस कि बेटा पढ़ लिख के वकील बने,बड़े मुकदमा हाथ मे लेके खूब पैसा कमाय अउ नाम घलो मोर ले जादा कमाए। माताजी सरल स्वभाव के किसान परिवार ईसागढ़ बुंदेलखंड के रिहिस।


माधव जी मन दाई-ददा के विचार ले दूसरा रहय। वो ज्ञान कमाना चाहत रिहिस धन नहीं, वो खोजत रिहिस एक नवा नजरिया,नवा अनुभव अउ काव्य के एक अलग अनुभूति। मने माधव जी के विचार काव्य कला के तरफ खिचात रहय, राष्ट अउ सांस्कृतिक के सेवा बर मन बियाकुल होय।


माधव जी ल कई झन मन साहित्य संसार बर बरगद पेड़ के नाव घलो दिन। जेमे जादा सोचे समझे के बात नई हे। ओकर काव्य कला के एक अलगे रूप देखे बर मिलथे। ओकर कविता बड़ अतभूत संकेत चिन्हा,जिज्ञासा, दुरिया ले चिल्लात,कभू कान म चुपचाप बात कहत,कभू तरिया, कभू अंधियार कुवा, डरराय ल लाईक आवाज करत, ऐसे अलगे ढंग के हावे। कविता मब ल घेरी-बेरी पढबे तभे समझ आहि।पहली बेर म मुढ़ी के उप्पर ले भाग जहि। हा फेर एकदम गुड़ रहस्य ले भरे पड़े हे, ओइसने गद्य साहित्य में के घलो बड़े संदेश ले समाहित हे।  


मोर अच्छा भाग्य हे कि जेन राजनांदगांव के दिग्विजय कॉलेज म मुक्तिबोध जी साठ के दशक म पढाहात रिहिस। उही कालेज में मोला घलो पढ़े के मौका मिलिस अउ अब्बड़ गर्व घलो होथे। त्रिवेणी परिसर म मुक्तिबोध के याद ल संजोय बर मूर्ति के स्थापना साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी,बलदेव प्रसाद मिश्र जी के संग विराजित कराये गेहे,जेकर ले कालेज शोभा अउ बढ़ जाथे। निकट आगू म तीनो झन कलमकार ल ठाड़े दिखथे।


मुक्तिबोध जी के परम संगवारी रिहिन प्रभाकर माचवे,नेमीचंद जैन, नरेश मेहता,भारतभूषण अग्रवाल, अज्ञेय जी। तार सप्तक के प्रकाशन के भार अज्ञेय जी के ऊपर सौप दिस, फेर मूल रूप ले ओकरे हाथ बात रहय। हंस,जयहिंद, समता,नयाखुन जैसे पत्रिका में संपादक के भार घलो मुक्तिबोध जी के कंधा म रिहिस।


मुक्तिबोध जी माखनलाल चतुर्वेदी, महादेवी वर्मा नजदीक अउ विदेशी कवि दस्तायवस्की,प्लाबेयर अउ गोर्की से सबले जादा प्रभावित रिहिस।ओकर कविता मन मे गोर्की के छाप दिखथे।


अपन काम मे सबले पहली शिक्षिकीय बुता करिस फेर साथी मन के बात म आके एमए करिस, कि कही प्राध्यापकी काम मिल जाये। किस्मत ल घलो मंजूर रिहिस अउ राजनांदगांव के दिग्विजय कालेज में नौकरी मिलगे, इन्चे अपन सफल कविता--ब्रह्मराक्षस, ओरांग-उटांग,अंधेरे में ल लिखिस। ये बात ल खुद शमशेर बहादुर सिंह ल 1961 के मिलन म बोले हावे।


मुक्तिबोध जी अब्बड़ साहित्य के रचना करिस चांद का मुंह टेढ़ा है, एक साहित्यिक की डायरी, काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी,भूरी-भूरी खाक धुली,कामयनी एक पुनर्विचार, नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, क्लाड इथरली,जंक्शन सही अउ अब्बड़ रचना हे।


मुक्तिबोध के कोई रचना के प्रकाशन ओकर जीयत ल नई हिय पाइस। आखिरी समय में श्रीकांत वर्मा जी ओकर एक साहित्यिक के डायरी ल छपवाइस। दूसर संस्करण बीते के दु महीना बाद आईस।


मुक्तिबोध जी नवा प्रतिभा मन ल हमेशा उत्साह के संग आगू बढाइस। दुख म पड़े साथी अउ साहित्यिक भाई मन बर अब्बड़ काम,मजदूर मन संग मितानी ओकर बेवहार म रिहिस। दिसम्बर 1957 में इलाहाबाद के लेखक संम्मेलन म नवा कवि-लेखक मन ल अपन बेवहार ल मोहित करके अपन कविता के शक्ति, ओज ल बताईस। हिन्दी साहित्य के नवा पीढ़ी बर सबले जादा प्रिय मुक्तिबोध हरे एमे कोई आश्चर्य के बात नई हे।


शमशेर बहादुर सिंह ल ओकर साहित्य ल दहकता इस्पाती दस्तावेज, कोई छत्तीसगढ़ के नीलकंठ, नामवर सिंह ल नई कविता में मुक्तिबोध उही हरे जेन छायावाद म निराला हावे कहिस। मुक्तिबोध जयशंकर प्रसाद जी ल कामायनी बर बुर्जवाजी का अंतिम मुमुरषु कवि किहिस।


17 फरवरी 1964 के मुक्तिबोध जी ल पक्षाघात हो गे। सारा हिन्दी साहित्य जगत के बड़े-बड़े कवि मन दिनरात ओकर सेवा म लग गे। भोपाल के हमीदिया अस्पताल में भर्ती, जादा दशा बिगड़े में दिल्ली के आल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट में भर्ती करिन। 8 महीना के कठिन लड़ाई 11सितम्बर 1964 के रतिया म मूर्छित अवस्था मे खत्म होथे, अउ साहित्य संसार ले विदा हो जथे।


                    हेमलाल सहारे

                  मोहगांव(छुरिया)


तइहा के सुरता-सीला बिनई


 तइहा के सुरता-सीला बिनई


               कभू पाँव म चप्पल, त कभू बिन चप्पल के झिल्ली नही ते झोला धरे स्कूल जाय के पहली अउ स्कूल ले आय के बाद, संगी संगवारी मन संग मतंग होके, ये खेत ले वो खेत म भाग भाग के सीला बिनन। मेड़ पार ल कूदत फाँदत, बिना काँटा खूंटी ले डरे, धान लुवई भर जम्मो धनहा खेत म भारा उठे के बाद, छूटे छाटे धान के बाली ल टप टप बिनत झोला ल भरन। सीला केहेन त धान के लुवत, भारा बाँधत अउ डोहारत बेरा म गिरे या छूटे धान के कंसी आय। सीला बीने बर  लइकापन म,एक जबरदस्त जोश अउ उमंग रहय, बिनत बेरा भूख प्यास, कम जादा, तोर मोर ये सब नही, बल्कि एके बूता रहय, गिरे छूटे धान ल सँकेलना।  सीला उही खेत म बिनन, जेमा के धान  उठ जाय रहय,कतको खेत के धान लुवाये घलो नइ रहय,न डोहराय। तभो मन म भुलाके घलो लालच नइ आय। वो खेत म जावत घलो नइ रेहेन। फेर कोन जन आजकल के लइका मन का करतिस ते? 

                      हप्ता दस दिन धान लुवई भर सीला बिनई चले,  ज्यादातर बड़े भाई बहिनी मन धान ल डोहारे के बूता करे अउ छोटे मन गिरे धान ल बीने के। संगी संगवारी मन सँग सीला बिनत बेरा काँटा गड़े के दरद तो नइ जनावत रिहिस, फेर घर आय के बाद बबा के चिमटा पिन म काँटा निकालत बेरा के पीरा बड़  बियापे। हाँ, फेर सीला बिनई नइ छूटे, चाहे कतको काँटा खूंटी गड़े। एक दू का?  कोनो कोनो संगवारी मन के गोड़ म, आठ दस काँटा घलो गड़ जावय, तभो कोनो फरक नइ पड़े। रोज रोज सीला बीने म, छोट मंझोलन चुंगड़ी भर  घलो धान सँकला जाये। जेला खुदे कुचर के दाना ल फुन-फान के अलगावन। जेन उत्साह अउ उमंग म सीला बिनन, उही उत्साह  ले वोला घर म लाके सिधोवन, अउ सब चीज होय के बाद नापे म जे आनंद मिले, ओखर बरनन नइ कर सकँव।  कभू कभू ददा दाई मन पइसा देके सीला के धान ल रख लेवय त कभू दुकान म बेच देवन, त कभू हप्ता हप्ता लगइया हाट बाजार मा, धान के बदली मुर्रा अउ लाडू लेवन। का दिन रिहिस, कतका पइसा -धान सँलाइस ते मायने नइ रखत रिहिस, पर बढ़िया ये लगे कि सीला बिने के पइसा या धान मिले अउ मन भर उछाह। सीला के पइसा ल मंडई हाट बर घलो गठियाके रखन। 

                सीला बिनइया संगवारी मन म बनिहार घर के लइका संग गौटिया घर के लइका घलो रहय, पहलीच केहेंव पइसा कौड़ी धान पान मायने नइ रखत रिहिस, बल्कि धान फोकटे झन पड़े रहे अउ जुन्ना समय ले चलत आवत हे, कहिके सब मिलजुल सीला बिनन। ऋषि कणाद के सीख के निर्वहण करन। फेर आज ये बूता जोर शोर म नइ दिखे, न पहली कस सीला बीने के माहौल हे, न कखरो सँऊख। आजकल खेत म ही मिंजई हो जावत हे। थ्रेसर हार्वेस्टर के लुवई मिंजई म सिर्फ कंसी(बाली) नही, दाना  घलो गिर जाथे, उहू बहुत ज्यादा, ओतना तो चार पाँच खेत ल किंजरे म मिले। ये सब देख के दुख होथे, फेर का करबे नवा जमाना के ये बदले रूप रंग ल बोकबाय सब देखते हन। काम बूता नवा नवा तकनीक ले भले तुरते ताही हो जावत हे, फेर मनखे, बचे बेरा के बने उपयोग नइ कर पावत हे, येमा न लइका लगे न सियान। हमर संस्कृति अउ संस्कार मा अन्न धन ला जान बूझ के कोनो नइ फेके, बल्कि ओला अन्न देव मानत सँकेले जाथे, इही भावना ले ओतप्रोत रहय सीला बिनई। जे आज कमसल होवत हे।

ना थारी मा भात छूटे, ना खेत मा अन्न।

फेर आज के गत देख, मन हो जाथे सन्न।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


फ़ोटो-साभार फेसबुक( श्री सौरभ चन्द्राकर)


सुरता// सिला बिनई अउ भक्का लाड़ू के खवई...

 


सुरता//

सिला बिनई अउ भक्का लाड़ू के खवई...

    जाड़ के आगमन के संग छत्तीसगढ़ के खेत-खार म धान लुवइया मन के आरो मिले लगथे. जेती देखव तेती हंसिया डोरी धरे किसान परिवार के सदस्य अपन-अपन उदिम म भीड़े दिख जाथें. कोनो ओरी धर के धान लु-लु के करपा रखत दिख जथे, त कोनो करपा मनला सकेल-सकेल के बोझा बांधत, त कोनो ओ बंधे बोझा मनला एक जगा सकेल के छोटे खरही असन रचत. इही बीच म घर-परिवार के छोटे-छोटे लइका मन किंजर-किंजर के सिला बीनत.

    ए बड़ा मोहक दृश्य होथे. हर गाँव म अउ हर खार म अइसन मनभावन नजारा देखब म आथे. हमूं मन जब गाँव म राहन, त प्रायमरी ले लेके मिडिल स्कूल के पढ़त ले ए उदिम म मगन राहन. बिहनिया स्कूल जाए के पहिली तीर-तखार के खेत म धमक देवन, अउ संझा स्कूल ले लहुटे के पाछू थोक दुरिहा के खेत मन म घलो अभर जावत रेहेन.

   धान लुवई ले लेके सिला बिनई अउ बढ़ोना बढ़ोई ले लेके धान मिंज के ओसाई अउ ओला कोठी म सहेजई तक अइसन बेरा होथे, जब इहाँ के किसान मन म औघड़दानी के रूप सहज देखे जा सकथे. हमन जब सिला बीने बर जावन त ए जरूरी नइ राहय के अपनेच खेत म जावन. जेने खेत म बोझा बांधे के बुता चलत राहय, उहिच म अभर जावन. खेत वाले मन घलो हमन ल देखय, तहाँ ले पढ़इया लइका मन आए हे कहिके जान-बूझ के बोझा ले धान ल गिरा देवंय, तेमा हमन ल आसानी के साथ जादा ले जादा सिला मिल सकय. कतकों खेत वाले मन तो हमन ल आज अपन खेत ले बोझा डोहारबो कहिके अपनेच मन संग गाड़ा बइला म बइठार के लेग जावंय, अउ सिला बीने के बाद लहुटती म गाड़ा म बइठार के बस्ती डहार लान देवंय घलो. जेन दिन बढ़ोना बढ़ोवंय, तेन दिन तो बढ़ोना के पूजा-नेंग के बाद खीर सोंहारी चघावंय, तेला खाए बर घलो देवंय.

    स्कूल के छुट्टी राहय, तेन दिन हमर मनके गदर राहय. बस बिहनिये नहाए-धोए के बाद खेत के रद्दा. हमर मन के चार-पांच लइका मन के टोली राहय. इतवार या छुट्टी के दिन सिला बीने के संगे-संग खारेच म पिकनिक घलो मनावन. सबो लइका अपन अपन घर ले रांधे-गढ़े के जिनिस धर के लेगन. ए सीजन म तींवरा भाजी घलो बने फोंके-फोंक ल सिलहो के रांधे के लाइक हो जाए रहिथे, तेकर चिखना तो बनाबे करन. बोइर मन घलो गेदराए ले धर ले रहिथे, वोकरो मन के पोठ मजा लेवन. हमर गाँव म खार के बीचोबीच कोल्हान नरवा बोहाथे. एकर दूनों मुड़ा के कछार म जाम के कटाकट बारी हावय. अउ इही जाड़ के दिन ह एकर सीजन आय. जम्मो बारी मन म गौंदन मता देवत रेहेन. उहाँ साग-भाजी अउ कतकों जिनिस के खेती होवय. सबके मजा ओसरी-पारी लेते राहन.

     सिला बीने ले जेन धान मिलय, तेला बने गोड़ म रमंज-रमंज के मिंजन अउ सकेलन. कमती राहय तेन दिन पसरा वाली घर जाके कभू मुर्रा, त कभू मुर्रा लाड़ू अउ कभू लाई के बने भक्का लाड़ू के सेवाद लेवन, अउ कोनो दिन शीला ह थोक जादा सकला जावय, तेन दिन वोला दुकान म बेंच के इतवार के पिकनिक खातिर जोखा करन.

     फेर अपन लइकई के ए सब बात ल गुनथन, अउ आज के दृश्य ल देखथन त एमन अब सिरिफ सपना बरोबर लागथे, काबर ते आज वैज्ञानिक आविष्कार के चलत खेतिहर मजदूर मन के जगा बड़े बड़े ट्रैक्टर अउ हार्वेस्टर ह जगा ल पोगरा लिए हे. न तो खेत म बने गढ़न के धान लुवइया दिखय, न बोझा बंधइया अउ न सिला बिनइया. हाँ कभू-कभू उहू जुन्ना दृश्य मन घलो एती-तेती दिख जाथे, फेर बहुत कम संख्या म.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

व्यंग "तड़कफांस"

 व्यंग "तड़कफांस"

बरदीहा मन  पहाट ल बढ़ हियाव ले राखथे। पाहट म रंग बिरंगी नाना परकार के गाय गरु रहिथे।  अलग-अलग गली मोहल्ला के तभो ले चीन डारथे उंकर नजर कोनो नेता ले कम थोड़ी आए दूरियां ले जान डारथे ये  दे फलाना घर के हरही गाय आए। उंकर कामे काए जी? वहुमन ल बरदी चराए के एक्सपीरियंस रहिथे।  हर्रे थुर्रे काहत दिन भर पहा देथे, अउ जईसे संझा होथे गरुवा मन अईसे भागथे  जईसे कोनो नेता के रैली होथे,अउ आदमी मन पुड़ी सब्जी बर टूट पड़थे। बरदिहा मन के बढ़ ताकत एके ही इसारा काफी रहिथे। बारवाही के समे कतको  मरखडीं , हड़बड़ही राहय  सहिला -साहिला के दुहूं डारथे । फेर गरवा मन ऊपर आज बिपत आन पड़े हैं तरिया के पानी सूखागे,   खेतखार म चारा नई हे, गरवा मन बोंबीयावत हे। न तो बरदीहा छेंकत हे न गोसइया,। सब दूरिया ले  आंखी सेंकत हे।मोला लागते ये बीमारी तड़कफांस ले  जादा खतरा हे।

           फकीर प्रसाद   

            "फक्कड़"🙏

           २५-५-२०२०लाकडाउन

मोर शहर नांदगांव

 मोर शहर नांदगांव

जेकर पूरा नांव राजनांदगांव हवे ।राजा- नंद- ग्राम से बने राजनांदगांव बड़ अकन विशेषता ल समेटे नानपन ले हमर गरब के आधार रहे। हमर रायपुर वाले जीजाजी के भाई बहिनी संग अपन गांव-शहर के गोठ-बात  होय त हमर नांदगांव अघुवा जाय ।  भरोसा नईए हे न , त सुनव - आज से चालीस-पचास साल पहिली के गोठ आय मोर नांदगांव कना बी.एन.सी.मिल रिहीस, अउ अतिक बड़ रायपुर शहर कना अइसन कोनो कपड़ा मिल हवे का । नान -नान रेहेन त महतारी के अंचरा धरे विश्वकर्मा जयंती म घुमे रेहेन। इंहा के मच्छर दानी बड़ फेमस रहिस।आज भी ये मिल म धागा बनई- रंगई अउ कपड़ा बनत देखे के सुरता महतारी के अंचरा सही गठियाय हे।

     नांदगांव म वो जमाना के सरकारी प्रिंटिंग प्रेस रहिस यहू म रायपुर का पीछवाय हमर जहुरियां मन भी पीछवा जाय अउ हमर मन के गरब थोरकन अउ बाढ़ जाय ।

     इंदिरा गांधी कला विश्वविद्यालय खैरागढ भी वो ज़माना म हमर राजनांदगांव के शान रहिस। अहा! सुंदर गोठ-बात  के वो दिन,संगी-जहुरिया संग जीत के वो भाव , अइसे लगथे जइसे कले के बात हे ,फेर  आज नांदगांव कना एमन कुछु नइ रहिगे,आरूग सुरता के ।

     हां ! हमन ला अपन कालेज उपर भी बड़ा गरब रहिस एक तो राजा दिग्विजय सिंह के दरबार, उपर ले एक डहर रानीसागर त एक डहर बुढ़ासागर ,बीच म शीतला माई के मंदिर। महतारी बताय के पहिली इंहां भूलन बाग रहिस जइसने नाम तइसने गुण,मनखे बिन सहायता के नइ निकल पाय ये भूलन बाग ले । अतिक सुंदर कालेज ल कोई कइसे भूलाही ,सुरता तो रहिबे करही ।

     डोंगरगढ़ बमलाई के आशीष म आगू बढ़े, कइसे ओकर उपर गरब नइ होही ।उपर पहाड़ म बिराजे बमलाई दाई ले खाल्हे झांकबे त रेलगाड़ी के डब्बा मन भी माचिस डिब्बी बरोबर दिखे । ऐकरे आशीष म राजनांदगांव सबर दिन फूले -फले हे ।

     संगी-जहुरिया संग गोठ म यहूं बात आय कि तुंहर शहर म अइसे कोई मंदिर हे जिंहा चप्पल पहिन के जा सकत हन का।

हमर शहर म हे -मानव-मंदिर । इंहां के पोहा -जलेबी सबे सुरता करे हे अउ रसगुल्ला, रसगुल्ला तो रसगुल्ला ही रहिस हे । बड़ नाम रहिस हे ये मानव-मंदिर के।

     आज अपन शहर के सुरता करत सब सब गोठ-बात आघु-आघु आवत हे  ,जइसे बहुत अकन विशेषता ह राजनांदगांव से दुरिहा गे हे ,वइसने हमुमन बर-बिहाव कि नौकरी-चाकरी म इंहा ले दुरिहां गे हन,बेटी अन इंहां के त सबो सुरता धराय के धराय हे ।

     श्रीमती गीता साहू

     10.11.22

व्यंग्य- अच्छे दिन के तलाश

व्यंग्य- अच्छे दिन के तलाश


          अच्छे दिन कब आही गा ? लइका अपन बाप ला पूछत रहय । बाप बतइस – आही बेटा । अभी उँकर मन घर म अच्छे दिन हा पहिली गेहे जेमन कहत रिहिन अऊ जेमन ला ओकर जादा आवश्यकता रिहिस । उँकर समस्या के समाधान हो जही तब हमर कोति अच्छे दिन हा रुख करही । लइका फेर पचारिस – हमर समस्या ले घला रोंठ अऊ काकरो समस्या हो सकत हे का बाबू ? बाप किहिस – हमर काये समस्या हे तेमा बाबू .. हम कमावत हन तब खावत हन ... पहिरत हन .. ओढ़हत हन । समस्या उँकर मन घर म हाबे बाबू जेमन दूसर के कमई ला खावत भुकरत हे .. तेकर सेती अच्छे दिन ला ओकरे मन घर जाये बर मजबूर होय ला परे हे । 

          चार दिन पाछू ... लइका हा अपन बाबू ला फुरसत म देख पूछ पारिस – अच्छे दिन के अवई लकठियागे हे अइसे अभी अभी सुने म आहे बाबू .. । कतेक धुरिहा म आये हाबे ते .. लाने ला जावँव का । बपरा हा रद्दा मद्दा झन भटक जाये । बाप किथे – तैं काये करबे जी अच्छे दिन ला .. मारो मारो खेती किसानी के दिन म ओकरे पाछू परे हस । लइका किथे – तैं नइ जानस गा । हमर घर अवइया अच्छे दिन ला अऊ कोनो झन लेग जाय कहिके ओला लाने बर चल देतेंव सोंचथँव । कति मेर अमरे होही बपरा हा ते ... । बाबू किथे – हमर घर के नाव म अच्छे दिन हा बीते पछत्तर बछर ले निकले हे । फेर ओला भेजइया मन देखावटी भेज के अपने तिर लुकाके राख लेथे । बेटा किथे – उहीच ला तो महूँ कहत हँव बाबू .. तेकरे सेती लाने बर चल देतेंव । एक बेर हमरो घर आतिस .. हमरो दुख दरद ला देखतिस अऊ समाधान करतिस । बाबू किथे – अच्छे दिन हमर मन घर नइ आवय बेटा । हमर मनके घर म का समस्या हे तेमा ... ? सरी समस्या ला देश के चलइया चारों खुरा मन ओढ़के खुसरे हे । समस्या ला अपन बाहाँ म पोटारके धरे हे .. । जब समस्या हा उँकर तिर म हाबे त अच्छे दिन तो उँकरे तिर म रहिबेच करही । अच्छे दिन के प्रादुर्भाव हा समस्या के निपटारा बर होय हे .. बिगन समस्या के हमर तिर काबर आही बपरा हा ? लइका किथे – हमर तिर समस्या कइसे निये कहिथस बाबू .. न खाये बर पेट भर अनाज .. न तन भर कपड़ा .. न रेहे बर बने असन कुरिया । बाबू किथे – येहा कोनो समस्या नोहे बाबू । हमन केवल अपन बर सोंचथन । हमर तिर काँही नइये तेमा कोनो बात नइये । पारा मोहल्ला गाँव म अऊ काकर काकर तिर काये काये नइहे ... इही ला सोंचना हा समस्या आय अऊ इही सोंच सोंच के बपरा मन पचास ले सौ किलो हो जावत हे । तेकर सेती अच्छे दिन हा ओकरे कोति रुख अख्तियार कर लेथे । 

          लइका के मन हा अच्छे दिन ले मिले खातिर बड़ चुटपुटावत रहय । दू दिन नहाकिस तहन फेर पूछ पारिस – हमर घर अच्छे दिन कइसे आही गा ? बाबू बतइस – बड़ मेहनत करे बर लागथे बेटा । लइका किथे – तैं अऊ बबा .. अतेक मेहनत करत हव  .. फेर अच्छे दिन के दर्शन हमर घर कभू नइ होइस । बबा किथे – हमन अपन संग दुनिया के धोंध भरे बर मेहनत करथन बेटा .. । अइसन मेहनत म अच्छे दिन भगवान हा खुश नइ होवय गा । अच्छे दिन ला अपन घर लाने बर चुनाव लड़े बर परथे अऊ जीते बर परथे अऊ जीत के सरकार बनाये बर परथे । जेकर जेकर सरकार बनथे .. तेकरे मन घर अच्छे दिन हा खुसरथे । पछ्त्तर बछर ले देखत हन .. हमर गाँव गोढ़हा म चुनाव लड़के जतका झन जीतिन अऊ सरकार बनइन .. सब अच्छे दिन ला कब्जिया डरिन । 

          लइका फेर पचारिस – त महूँ चुनाव लड़हूँ अऊ अच्छे दिन ला अपन घर म लानहूँ । बबा हाँसिस – तैं जीतबे थोरेन तेमा .. । मानलो कोनो काल के जीतिस गेस तब ... जब सरकार बनाबे तब अच्छे दिन हा तोला सुंघियाही बेटा । फकत जीत जाय म अच्छे दिन हा तोला नइ पूछय । लइकाफेर किहिस – जीत जहूँ तहन दूसर घर के समस्या ला जाके बहुत तिर ले देखहूँ ... तहन जगा जगा पचारहूँ .. तब चाहे सरकार म रहँव या विरोध म .. अच्छे दिन ला हमर कुरिया म आयेच ला परही । बबा किथे – निचट भोला अस जी । अभू तैं कच्चा हस । तोला जनाकारी नइहे । काकरो समस्या तभे दिखथे .. जब सरकार विरोधी चश्मा चघथे । सरकार म आये के पाछू .. ओकर आँखी के आगू समस्या नंदा जथे अऊ अच्छे दिन तिरिया जथे । मोर बेटा किहिस – जेला समस्या नइ दिखय तेकर घर .. अच्छे दिन हा काबर खुसरथे ? बबा बतइस – बेटा .. । सरकारी चश्मा जेला लग जथे .. ओकरे स्मार्टनेश देख .. अच्छे दिन हा ओकरे घर खुसरे बर मोहा के बइहा जथे अऊ बिगन मौका के तलाश करे बरपेली ओकरे मन के घर म खुसर जथे । 

          अच्छे दिन के चाह म लइका के मन बहुत उद्वेलित होवत रहिथे । ओहा सवाल उचइस – धँवावत का बबा ? बबा किहिस – का धँवाहूँ बेटा ... धँवा सकतेंव त हमरो घर अभू तक अच्छे दिन हा खुसर चुके रहितिस । काकरो समस्या ला कन्नेखी देख .. तहन तुरते सरकारी चश्मा पहिर .. तहन निवारण कर डरेन कहिके .. जगा जगा पचारत किंजर .. तब अच्छे दिन हा आके खुदे तोला घेर लिही ।  समस्या जस के तस हाबे कहत फकत चिचियावत रहिबे तब .. अच्छे दिन ला थोरेन पाबे । लइका हा बबा ला पूछिस – में ओला लाने बर जाहूँ .. तैं ओकर पता तो बता बबा । बबा हाँसत कहि दिस –   अच्छे दिन उही तिर म रहिथे बेटा जेकर धरती अऊ आकाश के मिलन होथे ।  

          लइका हा अच्छे दिन के अड्डा खोजत .. आकाश अऊ धरती के मिलन स्थान देखे बर बाहिर खुल्ला मैदान म निकलगे । हरेक दिन ओला लगय के अच्छे दिन के बहुत तिर पहुँच चुके हे ... फेर सांझ होवत ले जुच्छा के जुच्छा ... । कति तिर आकाश अऊ धरती के मिलन होथे ... अऊ कतका धूरिहा ओला रेंगे बर लागही ... तब अच्छे दिन ला अमराही .... ?  

 

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

Thursday 10 November 2022

लोक संस्कृति के ढेलवा-रहचुली मेला- मड़ई..


 

लोक संस्कृति के ढेलवा-रहचुली मेला- मड़ई..

    छत्तीसगढ़ के संस्कृति म मेला-मड़ई मनके घलोक महत्वपूर्ण स्थान हे। मड़ई के शुरूआत जिहां देवारी/मातर ले होथे, उहें मेला के आयोजन ह कातिक पुन्नी ले होथे, जेन ह महाशिवरात्रि (फागुन अंधियार तेरस) तक चलथे। छत्तीसगढ़ के भीतर जतका भी सिद्ध शिव स्थल हे, उन सबो म मेला भराथे जेमा राजिम, सिरपुर, शिवरीनारायण, रायपुर के महादेवघाट आदि मन पूरा प्रदेश भर म प्रसिद्ध हें जिहां चारों मुड़ा के मनखे सैमो-सैमो करत रहिथें। एकर छोड़े अउ कतकों जगा हे जिहां स्थानीय स्तर म अलग-अलग तिथि म मेला के आयोजन होवत रहिथे।


    खेत म खड़े धान के सोनहा लरी जब बियारा अउ बियारा ले मिसा- ओसा के घर के माई कोठी म खनके लगथे, तब ये मेला-मड़ई के शुरूआत होथे। एकरे सेती कतकों लोगन एला कृषि संस्कृति के अंग मानथें। फेर जिहां तक देखब म आथे के एकर संबंध कोनो न कोना किसम ले अध्यात्म संग जुड़े होथे। छत्तीसगढ़ आदिकाल ले बूढ़ादेव के रूप म भगवान शिव के उपासक रहे हे, एकरे सेती इहाँ जतका भी बड़का मेला के आयोजन होथे, जम्मो ह सिद्ध शिव स्थल म ही होथे। पहिली ए अवसर ए बधई (पूजवन) देके घलोक चलन रिहीसे। फेर जइसे-जइसे लोगन म शिक्षा के प्रसार होवत जावत हे वइसे-वइसे अब मरई-हरई के रीत ह कमतियावत जावत हे। बिल्कुल वइसने जइसे पहिली जंवारा बोवइया वाले मन अनिवार्य रूप ले बधई देवयं, फेर अब उहू मन सेत (सादा, बिन पूजवन के) जंवारा बो लेथें तइसने मेला-मड़ई म घलोक लोगन अपन मनौती ल सिरिफ नरियर आदि फल-फलहरी म भगवान ल मना लेथें। फेर कतकों मनखे अभी घलोक पूजवन के रिवाज ल धरे बइठे हें।

मेला संग जुड़े ये आध्यात्मिक रूप ह ए बात के जानबा देथे के एकर संबंध सिरिफ खेती-किसानी वाला नहीं भलुक आध्यात्मिक संस्कृति संग घलोक हे। फेर एकर गलत रूप म व्याख्या के संगे-संग एकर आयोजन के कारन अउ रूप ल घलोक बदले जावत हे जेला कोनो भी रूप म अच्छा नइ केहे जा सकय। उदाहरण के रूप म छत्तीसगढ़ के प्रयाग कहे जाने वाला राजिम के प्रसिद्ध पारंपरिक मेला जेला कुछ बछर पहिली कुंभ के रूप म प्रचारित करे जावत रिहिसे, तेला ले सकथन।


    मेला के कोनो भी बड़का आयोजन ल कुंभ के संज्ञा तो दिए जा सकथे फेर वोकर कारन ल बदलना ह अच्छा बात नोहय। छत्तीसगढ़ के संगे-संग देश म भरने वाला जम्मो मेला ह सिरिफ शिव स्थल म ही भरथे, एकरे सेती नानपन ले ये सुनत आये रहे हन के राजिम मेला ह कुलेश्वर महादेव के नांव म भराथे। फेर अब ले एकर नांव ल कुंभ कर दिए गे रिहिसे तब ले एकर कारन ल राजीव लोचन के नांव म भरने वाला बताए जावय। एहर इहाँ के मूल संस्कृति के संग खिलवाड़ आय जेला कोनो भी रूप म माफी नइ करे जा सकय। सरकार अउ कथित संस्कृति मर्मज्ञ मनला अपन अइसन गलती ल सुधारना चाही।


    राजिम मेला के संगे-संग इहाँ पंचकोसी यात्रा के महत्व घलो बताये जाथे, जेमा राजिम के संगम म स्थित कुलेश्वर महादेव के संगे-संग चंपेश्वर महादेव (चांपाझार या चम्पारण्य), बम्हनिकेश्वर महादेव (बम्हनी), फणिकेश्वर महादेव (फिंगेश्वर), अउ कमरेश्वर महादेव (कोपरा) के एके संग दरसन करे के रिवाज हे, तभे ये राजिम मेला के दरसन लाभ ह पूरा छाहित होके मिलथे।


    मेला चाहे कहूंचो के होवय, वोकर रूप ह बड़का होवय ते छोटका होवय। फेर जब तक वोमा ढेलवा, रहचुली अउ कुसियार के कोंवर-कोंवर डांग नइ दिखय तब तक मन नइ भरय। लोगन होत मुंदरहा मेला तीर के नंदिया-नरवा म नहा-धो के भगवान भोलेनाथ के पूजा-पाठ करथें। तेकर पाछू फेर चारों-मुड़ा कटाकट भराये मेला (बाजार) ल घूमथें- फिरथें। रंग-रंग के जिनिस बिसाथें। अउ जब मन भर के ढेलवा-रहचुली झूल लेथें, त फेर, कांदा, कुसियार, ओखरा झड़कत घर लहुटथें।


-सुशील भोले 

संजय नगर, रायपुर 

मो/व्हा.98269-9281

7 नवंबर जयंती म सुरता// मयारुक गीत मन के मयारु रचनाकार मुकुंद कौशल

 




7 नवंबर जयंती म सुरता//

मयारुक गीत मन के मयारु रचनाकार मुकुंद कौशल

    सन् 1980 के दशक ह छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत के स्वर्ण काल रिहिसे. तब इहाँ मनोरंजन के मुख्य साधन आकाशवाणी ले बजइया गीत मन ही प्रमुख राहयं. तब तावा, जेला ग्रामोफोन काहयं, तेहू म बर-बिहाव अउ छट्ठी-बरही आदि मन म नंगत के छत्तीसगढ़ी गीत चलय. 

    वो बखत एक ले बढ़के एक छत्तीसगढ़ी के कर्णप्रिय गीत सुने ले मिलय. वो गीत मनमा-

 मोर भाखा संग दया मया के  सुग्घर हवय मिलाप रे

अइसन छत्तीसगढ़िया भाखा कोनो संग झन नाप रे...

* * * * *

धर ले कुदारी गा किसान

आज डिपरा ल खन के डबरा पाट देबो गा..


 आदि गीत कतकोन गीत सुने बर मिलय. वो बखत छत्तीसगढ़ के मोहम्मद रफी के नांव ले चिन्हारी करइया केदार यादव के आवाज अउ मुकुंद कौशल के रचना के लगभग जुगलबंदी के मोहक रूप गजबेच सुने बर मिलय. मुकुंद कौशल जी मोला एक पइत बताए रिहिन हें, के उन अपन जम्मो गीत मनके धुन ल घलो खुदे बनावंय, जेमा थोड़ा-बहुत परिमार्जन कर के गायक-गायिका मन गा लेवत रिहिन हें.

    7 नवंबर 1947 के दुरुग के सोनी जेठालाल धोलकिया अउ महतारी उजम बेन के घर जनमे मुकुंद कौशल जी के चिन्हारी वइसे तो हिन्दी, छत्तीसगढ़ी, गुजराती अउ उर्दू सबो भाखा म समान अधिकार रखने अउ लिखने वाला के रूप म रिहिसे, फेर मैं उंकर छत्तीसगढ़ी रूप, उहू म खास करके गीतकार रूप ले जादा प्रभावित रेहेंव. 

    मोर वोकर संग चिन्हारी वइसे तो 1983 म जबले मैं साहित्य जगत म पांव रखेंव तबले रिहिसे, फेर घनिष्ठता सन् 1987 म जब छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' निकाले के चालू करेन तब ले बाढ़िस. वो बखत मैं दुरुग-बघेरा दाऊ रामचंद्र देशमुख अउ महासिंग चंद्राकर जी संग भेंट करे बर जावत राहंव, तब मुकुंद कौशल जी अउ वोकर दूकान के तीरेच म रहइया केदार यादव संग घलो भेंट करके आवत रेहेंव. फेर उंकर संग जादा बइठकी तब होइस जब 1993-94 म मैं छत्तीसगढ़ के पहला रिकार्डिंग स्टूडियो चालू करेंव. तब हमर स्टूडियो म मुकुंद कौशल जी के संगे-संग वो बखत के प्रायः जम्मो प्रसिद्ध गायक-गायिका, गीतकार अउ संगीतकार मन संग घंटों बइठना अउ विविध विषय म गोठियाना चलय. काबर ते उन सब रिकार्डिंग के बुता म कोनो न कोनो किसम ले संघरत रिहिन हें.

     मुकुंद कौशल जी साहित्य के संगे-संग ज्योतिष शास्त्र के घलो बने जानकार रिहिन हें. एक पइत मोला बताय रिहिन हें, पहिली उन मुकुंद लाल सोनी के नांव ले लिखयं. फेर उनला वतका सफलता नइ मिलिस, तब अंक ज्योतिष के अनुसार अपन जन्म मूलांक 7 के शुभांक खातिर मुकुंद  नांव ले लाल अउ सोनी ल निकाल के वोमा कौशल शब्द जोड़ देंव कहिके. ए प्रकार फेर उन अपन नांव मुकुंद कौशल लिखे लगिन. उन बतावंय के अंक ज्योतिष के अनुसार ए बदले नांव ले वोला साहित्य के संगे-संग रोजगार-व्यापार म घलो अच्छा सफलता मिले लगिस. 

     मुकुंद कौशल जी के पहला रचना उंकर पढ़ई करत बेरा ही सन् 1964 म 'प्रयास' नांव के स्मारिका म छपे रिहिसे. वोकर पाछू डाॅ. विनय पाठक के संपादन म छपइया तिमाही 'भोजली' म. उंकर पहला काव्य संकलन 'लालटेन जलने दो' 1993 म छपिस. फेर तो लगातार लेखन अउ प्रकाशन के सिलसिला चल परिस, जेमा करीब 18 किताब शामिल हें.  एमा के एक-दू छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी संग्रह के प्रूफ उन मोरो जगा पढ़वाए रिहिन हें, जेन वैभव प्रकाशन ले निकले रिहिसे. 

     मुकुंद कौशल जनता के कवि रहिन हें. उंकर रचना म ए बात जगजग ले दिख जावय-

जे बनिहारिन बर-बिहाव म 

बत्ती धर चलत रथे

ओकर अंधियारी जिनगी म

दीया बारौ तब बनही

* * * * * 

बिन सुरुज के जग अंधियारी, बिन परेम के दुनिया

बिना बजाए मया-पिरित के, नई बाजय हरमुनिया

आज संग नइ गा पाएन तौ अउ कब गाबोन वो

छिन भर कहुंचो बइठ क सुख-दुख ल गोठियाबो वो

     मुकुंद कौशल जी मोला एक पइत बताए रिहिन हें, मैं अपन रचना मनला तीनों भाखा म एक साथ लिख लेथौं. पहिली हिन्दी म लिखथौं, फेर गुजराती म अउ ओकर बाद छत्तीसगढ़ी म. मुकुंद कौशल जी एक अच्छा रचनाकार, अच्छा वक्ता के संगे-संग एक बहुत ही अच्छा कवि मंच के संचालन करइया घलो रिहिन हें. मोला उंकर संचालन म आकाशवाणी के संगे-संग कतकों कवि सम्मेलन के मंच मन म घलो कविता पाठ करे के अवसर मिले रिहिसे.

    मुकुंद कौशल जी संग मोर उंकर जिनगी के आखिरी बेरा तक संपर्क बने रिहिसे. ए दुनिया ले बिदागरी के ठउका पंदरही पहिली 19-20 मार्च 2021 के रायपुर के होटल क्लार्क इन म होए दू दिनी छत्तीसगढ़ी साहित्य के जलसा के पहला दिन हमन पूरा कार्यक्रम म एके संग बइठे रेहेन. हमर मनके संग म नंदकिशोर तिवारी जी अउ डाॅ. विनय पाठक जी घलो रिहिन. वो दिन हम चारों के ओ मंच ले एके संग सम्मान होए रिहिसे. तब जनावत रिहिसे, के मुकुंद जी के तबियत बने नइ चलत ए. विश्वव्यापी महामारी कोरोना के दौर चालू होगे रिहिसे, फेर मुकुंद जी मास्क नइ लगाए रिहिन हें. तब मैं पूछे रेहेंव- भैया... त उन कहे रिहिन हें- भाई मोला सांस ले म तकलीफ होथे, भारी अकबकासी लागथे, तेकर सेती मास्क नइ लगाए औं. अउ ठउका ओकर पंदरही के बीतते 4 अप्रैल के खबर आगे के उंकर देवलोक गमन होगे.

उंकर सुरता ल पैलगी.. जोहार 🙏

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811