Sunday 13 November 2022

छत्तीसगढ़ के नीलकंठ--मुक्तिबोध जी (जन्मदिन विशेष--13 नवम्बर💐💐)


 

छत्तीसगढ़ के नीलकंठ--मुक्तिबोध जी

(जन्मदिन विशेष--13 नवम्बर💐💐)


हमर छत्तीसगढ़ राज्य के नीलकंठ के नाव ले जनैया परमुख कवि,आलोचक, निबन्धकार,अउ कहानीकार हिन्दी साहित्य जगत के वाद प्रगतिवाद,नयी कविता के बीच के पुलिया सही काम करईया, गजानन माधव मुक्तिबोध जी हिन्दी साहित्य अउ छत्तीसगढ़ राज्य बर कोनो चिन्हारी के जरूरत नई हे। मुक्तिबोध नाव ह ओकर पूरा साहित्यिक रचना मन के बोध करा देथे। फोटो म बीड़ी पियत रूप ज्यादा देखे ल मिलथे। इंकर एक झन संगवारी रिहिस शांताराम जेहा रात कुन पुलिस गश्त के नौकरी म तैनाद होंगे। गजानन जी ओकरे संग रातकुन घूमे बर निकल जाये। बीड़ी के चस्का उही समय ले लग गे रिहिस।


मुक्तिबोध जी के जन्म 13 नवम्बर 1917 के श्योरपुर ग्वालियर में होईस। शुरुआती पढ़ाई लिखाई उज्जैन में होय रिहिस। चार भाई में एक भाई शरतचन्द्र मराठी के बड़े जन कवि होईस।थानेदार पिताजी के मन रिहिस कि बेटा पढ़ लिख के वकील बने,बड़े मुकदमा हाथ मे लेके खूब पैसा कमाय अउ नाम घलो मोर ले जादा कमाए। माताजी सरल स्वभाव के किसान परिवार ईसागढ़ बुंदेलखंड के रिहिस।


माधव जी मन दाई-ददा के विचार ले दूसरा रहय। वो ज्ञान कमाना चाहत रिहिस धन नहीं, वो खोजत रिहिस एक नवा नजरिया,नवा अनुभव अउ काव्य के एक अलग अनुभूति। मने माधव जी के विचार काव्य कला के तरफ खिचात रहय, राष्ट अउ सांस्कृतिक के सेवा बर मन बियाकुल होय।


माधव जी ल कई झन मन साहित्य संसार बर बरगद पेड़ के नाव घलो दिन। जेमे जादा सोचे समझे के बात नई हे। ओकर काव्य कला के एक अलगे रूप देखे बर मिलथे। ओकर कविता बड़ अतभूत संकेत चिन्हा,जिज्ञासा, दुरिया ले चिल्लात,कभू कान म चुपचाप बात कहत,कभू तरिया, कभू अंधियार कुवा, डरराय ल लाईक आवाज करत, ऐसे अलगे ढंग के हावे। कविता मब ल घेरी-बेरी पढबे तभे समझ आहि।पहली बेर म मुढ़ी के उप्पर ले भाग जहि। हा फेर एकदम गुड़ रहस्य ले भरे पड़े हे, ओइसने गद्य साहित्य में के घलो बड़े संदेश ले समाहित हे।  


मोर अच्छा भाग्य हे कि जेन राजनांदगांव के दिग्विजय कॉलेज म मुक्तिबोध जी साठ के दशक म पढाहात रिहिस। उही कालेज में मोला घलो पढ़े के मौका मिलिस अउ अब्बड़ गर्व घलो होथे। त्रिवेणी परिसर म मुक्तिबोध के याद ल संजोय बर मूर्ति के स्थापना साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी,बलदेव प्रसाद मिश्र जी के संग विराजित कराये गेहे,जेकर ले कालेज शोभा अउ बढ़ जाथे। निकट आगू म तीनो झन कलमकार ल ठाड़े दिखथे।


मुक्तिबोध जी के परम संगवारी रिहिन प्रभाकर माचवे,नेमीचंद जैन, नरेश मेहता,भारतभूषण अग्रवाल, अज्ञेय जी। तार सप्तक के प्रकाशन के भार अज्ञेय जी के ऊपर सौप दिस, फेर मूल रूप ले ओकरे हाथ बात रहय। हंस,जयहिंद, समता,नयाखुन जैसे पत्रिका में संपादक के भार घलो मुक्तिबोध जी के कंधा म रिहिस।


मुक्तिबोध जी माखनलाल चतुर्वेदी, महादेवी वर्मा नजदीक अउ विदेशी कवि दस्तायवस्की,प्लाबेयर अउ गोर्की से सबले जादा प्रभावित रिहिस।ओकर कविता मन मे गोर्की के छाप दिखथे।


अपन काम मे सबले पहली शिक्षिकीय बुता करिस फेर साथी मन के बात म आके एमए करिस, कि कही प्राध्यापकी काम मिल जाये। किस्मत ल घलो मंजूर रिहिस अउ राजनांदगांव के दिग्विजय कालेज में नौकरी मिलगे, इन्चे अपन सफल कविता--ब्रह्मराक्षस, ओरांग-उटांग,अंधेरे में ल लिखिस। ये बात ल खुद शमशेर बहादुर सिंह ल 1961 के मिलन म बोले हावे।


मुक्तिबोध जी अब्बड़ साहित्य के रचना करिस चांद का मुंह टेढ़ा है, एक साहित्यिक की डायरी, काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी,भूरी-भूरी खाक धुली,कामयनी एक पुनर्विचार, नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, क्लाड इथरली,जंक्शन सही अउ अब्बड़ रचना हे।


मुक्तिबोध के कोई रचना के प्रकाशन ओकर जीयत ल नई हिय पाइस। आखिरी समय में श्रीकांत वर्मा जी ओकर एक साहित्यिक के डायरी ल छपवाइस। दूसर संस्करण बीते के दु महीना बाद आईस।


मुक्तिबोध जी नवा प्रतिभा मन ल हमेशा उत्साह के संग आगू बढाइस। दुख म पड़े साथी अउ साहित्यिक भाई मन बर अब्बड़ काम,मजदूर मन संग मितानी ओकर बेवहार म रिहिस। दिसम्बर 1957 में इलाहाबाद के लेखक संम्मेलन म नवा कवि-लेखक मन ल अपन बेवहार ल मोहित करके अपन कविता के शक्ति, ओज ल बताईस। हिन्दी साहित्य के नवा पीढ़ी बर सबले जादा प्रिय मुक्तिबोध हरे एमे कोई आश्चर्य के बात नई हे।


शमशेर बहादुर सिंह ल ओकर साहित्य ल दहकता इस्पाती दस्तावेज, कोई छत्तीसगढ़ के नीलकंठ, नामवर सिंह ल नई कविता में मुक्तिबोध उही हरे जेन छायावाद म निराला हावे कहिस। मुक्तिबोध जयशंकर प्रसाद जी ल कामायनी बर बुर्जवाजी का अंतिम मुमुरषु कवि किहिस।


17 फरवरी 1964 के मुक्तिबोध जी ल पक्षाघात हो गे। सारा हिन्दी साहित्य जगत के बड़े-बड़े कवि मन दिनरात ओकर सेवा म लग गे। भोपाल के हमीदिया अस्पताल में भर्ती, जादा दशा बिगड़े में दिल्ली के आल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट में भर्ती करिन। 8 महीना के कठिन लड़ाई 11सितम्बर 1964 के रतिया म मूर्छित अवस्था मे खत्म होथे, अउ साहित्य संसार ले विदा हो जथे।


                    हेमलाल सहारे

                  मोहगांव(छुरिया)


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