Saturday 19 November 2022

छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान अउ अस्मिता के नवा पीढ़ी के दमदार कहानीकार चंद्रहास साहू*


 


*छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान अउ अस्मिता के नवा पीढ़ी के दमदार कहानीकार चंद्रहास साहू*

        जब ले छत्तीसगढ़ राज अपन अस्तित्व म आय हे, तब ले छत्तीसगढ़िया के स्वाभिमान जागे हे। हर छत्तीसगढ़िया के छाती गरब म फूल के चाकर होय हे। दिल्ली दूर हे, के गोठ नइ रहिगे हे। निराशा के घपटे बादर ह छटे गेहे। हमर राज विकास के पटरी म सरपट दउड़े लगे हे। अंतस् म कतको आशा जगे हे। छत्तीसगढ़ अपन संस्कृति, लोककला, परम्परा, तीज-परब अउ दया-मया बर सरी दुनिया म अपन अलगे पहिचान रखथे। इहाँ के लोक संगीत, लोक कला अउ लोक साहित्य बड़ पोठ अउ सजोर हे। सबो राज के अपन भाखा-बोली होथे। जउन उहाँ के लोगन ल मया के एक सुतरी म माला सहीं पिरो के राखथे। साग म जइसे कढ़ी, तइसे भाखा म छत्तीसगढ़ी, जनाथे। छत्तीसगढ़ी भाखा के सुवाद बड़ गुरतुर हे। मिठास हे। दया-मया के पाग म पगाय हे छत्तीसगढ़ी ह। छत्तीसगढ़ी सबो के हिरदे म उतर जथे।चिन्हार-अचिन्हार सब के अंतस् म मदरस घोरथे। तभे तो परदेसिया मन आ के इहें के बसुंधरा बन जथें। 

        भाखा मुँअखरा अउ लिखित दूनो रूप म चलथे। भाखा के लिखित रूप ह देश राज के कहानी ल आखर के अरघ देवत परोसथे। कहानी कहे ले सुरता आइस साहित्य के। हमर छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य म तइहा जुग ले कहानी सुने अउ सुनाय के चलन हावय। डोकरी दाई अउ डोकरा बबा मन दार-भात के चुरत ले नाती-नतुरा मन ल भुलवारत कहिनी-किस्सा काहँय, लइकामन घलव कहानी सुनत जागत राहँय। तभे तो कहानी के छेवर म उन मन काहँय - "दार-भात चूरगे, मोर कहानी पूरगे।"। आज सबो के घर-अँगना म शिक्षा के अँजोर हबर गे हे। पढ़-लिख के बुधियार मनखे मन लोककथा मन ल कथा-कंथली कहिके लिखित रूप म गढ़े हें त कुछ मन अपन कोती ले नवा कहानी गढ़े हें अउ सरलग गढ़त जावत हें। कहे के मतलब आय- भाखा के लिखित सरूप म कहानी लिखे जावत हे। हमर पुरखा कहानीकार मन कहानी लिख के छत्तीसगढ़ी साहित्य के सेवा करिन अउ कतको मन आजो नवा पीढ़ी ल रस्ता दिखावत हें। 

       घुरवा के दिन सहीं छत्तीसगढ़ी के दिन बहुरत हे। छत्तीसगढ़ी म अभी के बेरा म लिखइया मन कलम थामे रकम-रकम के साहित्य लिखत हें। छत्तीसगढ़ी साहित्य म कविता अउ गीत भरपूर लिखे जावत हे। सोशल मीडिया म गीत-कविता के पूरा दिखथे। उहें छपास के बेमारी ह नेवरिया मन के मति ल भरमा देवत हे। छपास रोग ले बाँच के कलेचुप सरलग लिखत रहना घलव बड़े बात आय। बड़ धीरज अउ धैर्य के गोठ घलव ए। अइसन धीरज अउ धैर्य नवा पीढ़ी के कहानीकार चंद्रहास साहू म दिखथे। जउन मन एक-दू पेज नइ, छै-सात पेज कभू-कभू तो एकर ले आगर पेज के कहानी लिखइया आँय। उँकर तिर चार कोरी ले आगर कहानी हे। असो १६-१६ कहानी के दू ठन संग्रह 'तुतारी' अउ 'करिया अंगरेज' छापाखाना ले छप के आय हे। ३०दिसंबर १९८० म धमतरी के जोरातराई गांव म जन्मे चंद्रहास साहू के पहिली कहानी संग्रह 'तिरबेनी' २०१६ म छपे हे। जेमा उँकर २३ ठन कहानी पढ़े जा सकत हे। उँकर कहानी आकाशवाणी रायपुर ले प्रसारित होवत रहिथे। ओकर लिखे कहानी मन समाचारपत्र म सरलग छपत रहिथें। कृषि विभाग म मुलाजिम चंद्रहास साहू सिरिफ छत्तीसगढ़ी म लेखन करथें। उँकर मानना हे कि छत्तीसगढ़ी उँकर नस-नस म महतारी के गोरस संग हमाय हे। अइसन म मैं अपन महतारी के दूध के करजा छत्तीसगढ़ी के सेवा बजा के कर पाहूँ। ए अलग गोठ आय के महतारी के ऋण ले कोनो कभू उऋण नइ हो पाय। चंद्रहास यहू कहिथे कि छत्तीसगढ़ी म हम नइ लिखबोन-पढ़बोन त कोन लिखही- पढ़ही? छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य ल सिरजाय के जुम्मेवारी तो हमरे आय....

       अइसे तो चंद्रहास साहू ले मोर परिचय ल अभी एक बछर घलव नइ होय हे। उँकर ले मोर भेंट-मुलाकात एके पइत होय हे। उँकर कहानीमन ले मैं जे समझ पाय हँव उही ल उँकर रचना संसार कहिके लिखे के एक उदिम हे। कोनो ल लग सकथे कि नौजुवान कहानीकार के रचना संसार ल अतेक जल्दी लिखे के का मतलब? अभी तो उन उड़ान भरे के शुरुआत करे हें। मोर मानना हे के जब उँकर रचना संसार अतका हो चुके हे के ओकर चर्चा करे जा सकथे त काबर नइ करे जाय? गोठ होही तभे तो बुधियार मन के नजर म आही। अउ आम आदमी के आवाज ल मुखर करइया नवा पीढ़ी कदम मिला के चलही।

        अइसे तो छत्तीसगढ़ी म कहानी लेखन बड़ जुन्ना आय। छत्तीसगढ़ी के पहिली कहानी 'सुरही गइया' आय जउन ल पं. सीताराम मिश्र जी मन लिखें हें। एकर पाछू कतकोन भभह  मन लिखिन अउ आज घलव सरलग लिखते हें। कतकोन कहानीकार के कहानीमन अपन अंचल म या कहन क्षेत्र म अगास म बगरे चंदैनी सहीं जगमगात हें, किताब के शकल म नइ छपे ले उँकर चर्चा साहित्यिक सभा अउ गोष्ठी मन म नइ हो पाय। कहानी मन के आरो पत्रिका मन म छपे के जरूर मिलथे। अइसन कहानी मन ल सीला बिने बरोबर सकला करे ले छत्तीसगढ़ी कहानी ल टानिक मिल पाही। छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य ऊप्पर पर्याप्त गोष्ठी-संगोष्ठी नइ होय ले कतको लिखइया मन के नाँव सकलाय नइ हे। जेकर ले गिनती च के नाँव गूगल बबा तिरन मिलथे। उँकर हितवा बन गूगल बबा के रजिस्टर म कोनो नाँव लिखवाँय नइ हें। उहें कतको के कहानी छपे हे त कोनो सुध नइ लिन अउ उन गुमनामी के अँधियार म गँवा गिन या बिसर गिन। पुरखा मन के दे थरहा ले स्थापित कहानीकार मन के रोपे खेती म अपन मिहनत, समे अउ लगन के खातू पानी दे के छत्तीसगढ़ी कहानी ल सजोर करे म चंद्रहास साहू के योगदान ल कमती आँके नइ जा सकय। 

         चंद्रहास साहू के कहानी मन म ठेठ छत्तीगढ़ियापन झलकथे। छत्तीगढ़ियापन कहानीमन म जगर-मगर दिखथे। जउन ल हिंदी साहित्य म रचनाकार के मीमांसा करत भारतीयता के कसौटी म कतका खरा? कहिके एला तउले के कोशिश करे जाथे। अइसने भारतीयता म चंद्रहास साहू के कहानीमन कोनो मेर उन्नीस नइ जनावय। उँकर कहानी म गाँव-गँवई के जिनगी अउ जीवनशैली के संग खेती-खार, रीति-रिवाज, परम्परा, सामाजिक ताना-बाना, नता-गोत्ता म हँसी-ठिठोली के संग दया-मया के बोहावत धार... सब कुछ तो मिलथे। लोक मानता, संस्कार अउ लोक संस्कृति के वर्णन तो अइसे हे कि उँकरे छाँव म कतको कहानी विस्तार पाय हे। पसहर चाउँर, खिचरी, सोहाई, आरुग फूल, टोनही ए मन अइसे कहानी आँय जेमन म माटी के ममहासी हे, संस्कृति अउ परम्परा के उजास हे, संस्कार हे, त नवा संदेश घलव हे। अंधविश्वास म जकड़ाय समाज ल जगाय के उदिम हे। 

       एक रचनाकार पहिली समाज के एक इकाई होथे। समाज म उँकर उठना-बइठना होथे। ए नाते ओकर एक सामाजिक दायित्व बनथे, चंद्रहास साहू सामाजिक सरोकार ले जुड़े कहानीकार आँय। उन अपन पात्र मन के माध्यम ले अपन ए दायित्व ल पूरा-पूरा निभावत दिखथें। सामाजिक विसंगति, समाज म उपेक्षित वर्ग अउ घुमंतू जाति के लोगन के पीरा, दुर्दशा मन ल केन्द्र म रख के जउन कहानी गढ़े हे, ओला पढ़ के अइसे लागथे कि ए कहानी मन हमरे तिर तखार के आय, हमरे कहानी आय। कहानी के उद्देश्य उपेक्षित अउ पीड़ित मन ल समाज के मुख्यधारा म लाय के दिखथे, त उहें शोषक मन के बिरुद्ध बगावत के सुर सराहे के लइक हे। 'द जर्मन शेफर्ड'  म विलासिता के फेर म दीन-हीन संग कइसन खेलवाड़ होथे? मानवीय संवेदना कइसे दम टोरथे, के चित्रण मिलथे, उहें दूसर कोती बड़े-बड़े नर्सिंग होम के नाँव म  कइसन बेवसाय चलथें, एकर पोल खोले म चंद्रहास साहू सफल दिखथे। 'खिचरी' जेन ल आस्था, विश्वास अउ भक्ति(परेम) के त्रिवेणी कहे जा सकथे। ए कहानी  छत्तीसगढ़ के सोसायटी म चाँउर के गजब खेल कइसे चलथे एकर पोल पट्टी खोल के रख दे हे।

        किसान अउ नारी दूनो समाज ल हमेशा लुटाथें। दूनो  अपन दुख-पीरा ल भुलाके या फेर तिरियाके समाज के, परिवार के संसो करथें। फेर बिडम्बना ए हे कि इँखर संसो करइया कोनो नइ हे।  किसान अपन आने-आने बूता बर दफ्तर अउ साहेब के कतका चक्कर लगाथे ए ह कखरो ले छिपे नइ हे। कभू विस्थापन त कभू बाढ़/सूखा आपदा के मुआवजा त अउ कभू बिजली-पानी बर ...फेर उँकर गोहार ल सुनथे कोन...? चक्कर लगा-लगा के थक जथें। इही सब के परछो देवत कहानी 'तुतारी'  अउ 'करिया अंगरेज' आय। जेकर नाँव दू ठन किताब छपे हे। ए कहानीमन म उँकर कलम ह शोषण अउ भ्रष्टाचार के पोल खोले म सामरथ हे। उहें ए कहानी ले कहानीकार स्वाभिमान जगाय के उदिम करत दिखथे। 

      चंद्रहास के कहानी मन म नारी के त्याग हे, समर्पण हे, दीन-हीन दुर्दशा अउ शोषण के चित्रण हे, उहें साहस, स्वाभिमान अउ अपन अस्मिता बर महिषासुरमर्दिनी बने नारी सउहत खड़े हो जथें। 'जकही' म महतारी के मानवीय संवेदना हे, 'इन्दरानी' म मन के मइलाहा मन ले लड़त, बिपत के बेरा म स्वाभिमान के संग आघू बढ़े के साहस हे, त 'थपरा' म नारी के महिषासुर मर्दिनी के रूप सहीं सशक्त गोदावरी ह नारी के अस्मिता अउ स्वाभिमान के अलख जगाय हे। 'चिरई-चुगनी' सच म 'छत्तीगढ़िया, सब ले बढ़िया,' के भुलभुलैया म भुला अपने बिनास करइया छत्तीगढ़िया के पीरा के कहानी आय। जउन छत्तीगढ़िया के स्वाभिमान ल जगाय के रस्ता म कहानीकार के एक ठन अऊ उदिम आय।

       चंद्रहास साहू के कहानी म मनोविज्ञान के सुग्घर समन्वय देखब म मिलथे। 'मड़ई' म जिहाँ पुरुष वर्ग के मनोविज्ञान के सुघरई हे, उहें 'भरम' म समाज के मनोविज्ञान के झलक मिलथे। 'मंतर' एक नवयौवना के कहानी आय, जउन ह अपन घर वाले मन ल अपन बिहाव करे बर कहिथे। एकर पाछू ओकर सोच रहिस कि गोसइया के संग रहे ले कोनो मनचलहा मन रोज-रोज ताना नइ मारही। सिरतोन म ए कहानी बाढ़े नोनी मन के अंतस् के पीरा ल कूढ़ो के रख दे हे, जउन ल ओमन रोज सहत रहिथें।

       काव्य साहित्य म शृंगार रस के बिना रचना अधूरा माने जाथे। वइसने कहानी संसार घलव मया के बिगन अधूरा च रही। निमगा मया के कहानी फिल्मी हो सकथे। अउ साहित्य ले बाहिर करे घलव जा सकथे। ए गोठ ल चंद्रहास साहू जी जानथे। तभे ओकर कहानीमन म निमगा मया के कहानी नइ हे, फेर कहानी मन म मया साग म नून सहीं मिंझरे हवय। उँकर कहानी म आज के समस्या भ्रष्टाचार, शोषण, भ्रूणहत्या, जिनगी के संघर्ष, सामाजिक मुद्दा सब कुछ मिलथे। चंद्रहास के हर कहानी के खास बात ए हे के हर चरित्र के संग उन नियाव करथें। कथानक अउ पात्र ल पूरा-पूरा उभारे म सफल हें। 

       असली साहित्य तो अपन समे के सामाजिक समस्या, विद्रुपता, विसंगति मन ऊप्पर अउ समाज के संग मनखे के हित बर लिखे साहित्य हरे। चंद्रहास साहू एक कहानी छोटे छोटे कतको समाजिक संसो ल समेट लेथे, इही उँकर बड़े खासियत घलव आय। एक-एक कहानी म किसम-किसम के मुद्दा/समस्या ल रखत हमर संस्कृति, स्वाभिमान अउ अस्मिता के बात रखे म चंद्रहास साहू जी माहिर हे, कहे जा सकत हे। भाषा शैली, वाक्य विन्यास, मुहावरा, हाना के सुघरई ले कहानी पाठक के हिरदे म अपन छाप छोड़थे। जम्मो कहानी म छत्तीसगढ़ के साँस्कृतिक छाप दिखथे। राम लीला के बात होवय ते महाभारत के कथा, राउत नाचा के होय चाहे पंथी के धुन, भोजली के कहन चाहे जँवारा के, मड़ई मेला ...सब के नजारा मिल जथे उँकर कहानी म। 

        चंद्रहास साहू ह अपन मिहनत ले डॉ. परदेशी राम वर्मा के भरोसा ल उम्मीद ल पूरा करे के रस्ता म सरलग बढ़त हे। डॉ. परदेशी राम वर्मा उँकर पहिली कहानी 'तिरबेनी' के भूमिका म लिखें हवँय,  '... चंद्रहास साहू ह नवा कहानीकार ये फेर नेवरिया नोंहय। कहानी लिखब म अभी वस्ताज तो नइ बने फेर वस्ताजी ओकर लेखन म हे। आगे चलके नइ थकही, लगातार रेंगते जाही त छत्तीसगढ़ी भाखा के गजब सेवा कर पाही, ये उमेंद मोला हे।' सिरतोन म चंद्रहास साहू बिन थके रेंगते जावत हे। थके नइ हे त सुरताय च के का बात?  डॉ. परदेशी राम वर्मा के संबल अउ असीस पाके चंद्रहास साहू निखरत हे। डॉ. परदेशी राम वर्मा के अइसन सहयोग ह बंदनीय हे।

        मोर नजर म चंद्रहास साहू नवा पीढ़ी के अइसन कहानीकार आँय जउन ल छत्तीगढ़िया स्वाभिमान अउ अस्मिता के दमदार कहानीकार कहना गलत नइ होही।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी)

जिला बलौदाबाजार छग.

No comments:

Post a Comment