Saturday 19 November 2022

चेंदरू

 चेंदरू 

               बस्तर के बियाबान जंगल हा .. अपन भितरि म सूरज के प्रकाश तको ला खुसरे के अनुमति नइ देवय ... तिंहा भोलाभाला आदिवासी मन .. नरुवा ढोंड़गा तिर थोर बहुत जगा भुँइया ला चतवार के माटी अऊ कोरई के कुटिया बना के जंगली जानवर मन के बीच रहय । बीहड़ घाटी म एक ठिन नानुक गाँव बसे रहय जेकर रहन सहन आदिम युग कस रिहिस । एक कोति सागौन के पत्ता अऊ पेड़ के छाल म तन ढँका जाय त .. दूसर कोति जंगल के फल फलहरी के संगे संग .. छोटे छोटे जंगली जानवर के मास म धोंध भर लेवय । 

               धीरे धीरे छोटे जानवर मन के संख्या म कमी होय लगिस । तब उहाँ के रहवइया मन अपन धोंध भरे बर खेती किसानी करे बर धर लिन । अइसने एक ठिन गाँव के एक घर म एक झन चेंदरू नाव के लइका रिहिस .. ओहा बहुतेच हिम्मती रिहिस । ओला खेती किसानी म मन नइ लागय । ओला जंगल बहुत पसंद रिहिस । ओकर दाई ददा मन ओला जंगल भितरि म अकेल्ला जाये बर मना करय फेर जंगल म बगरे फलहरी हा .. ओकर मन ला अतेक ललचावय के ओहा बघवा भालू के डर ला तको भुला जाय । 

               एक दिन अपन महतारी संग चेंदरू हा जंगल गिस । एक ठन चितवा हा उँकर उपर हमला कर दिस । दस बछर के चेंदरू के हाथ म नानुक टंगिया रिहिस । ओहा चितवा संग न केवल भिड़गे बल्कि अपन टंगिया ले लहूलुहान कर दिस चितवा ला .. चितवा हा ओ तिर ले अइसे भागिस के ... फेर दुबारा जंगल म लहुँट के नइ अइस । इही सब ला जंगल के राजा बघवा हा अपन माड़ा तिर म सपट के देखत रहय । ओकर नान नान चार ठन पिला रहय .. अपन संग पिला मन के घला जान बँचाये के फिकर धर लिस । ओला चेंदरू ले भय होगे । अब बघवा हा चेंदरू ले बाँचे बर ओकर संग मितानी करे के सोंचिस ।  

               दूसर दिन .. बघवा हा चेंदरू ला संगवारी बनाये बर ओकर आये के अगोरा करे लगिस । चेंदरू हा जइसे अइस बघवा हा ओकर आगू पिछु रेंगत घेरी बेरी पुछी हलाये लगिस । चेंदरू हा बघवा के पुछी ला धरय अऊ अँइठे .. बघवा ला घला मजा आय । कुछ दिन म .. चेंदरू हा ओकर पुछी ला छुवत छुवत पीठ अऊ मुँहु तक अमरगे । अब ओकर माथ ला चुम देवय तभो बघवा हा कुछ नइ करय बल्कि अऊ अपन देंहे ला चेंदरू के देंहे म ओधाये बर धरय । बघवा अऊ चेंदरू हा .. नरुवा म पटकी पटका खेले लगगे । चेंदरू हा जंगल जाये के अतेक टकराहा हो चुके रिहिस के ओला जंगल के अऊ दूसर जानवर मन तको चिन्हे बर धरले रिहिस । जंगल के हरेक जानवर मन चेंदरू संग मितानी करे के सोंचय फेर बघवा हा ओकर तिर म रहय तेकर सेती ओकर मेर कोन्हो नइ जावय । कुछ दिन म चेंदरू हा जंगल के राजा बघवा के पक्का संगवारी बन गिस । अब तो चेंदरू के मन से जंगली जानवर के डर बिल्कुलेच खतम हो चुके रिहिस । बघवा हा चेंदरू के आये के रोज अगोरा करय ... ओहा चेंदरू बर कभू खरगोश के मास राखे रहय त कभू हिरण के । चेंदरू हा बघवा के पीठ म बइठके जंगल ला किंजर डरय । 

               एक दिन चेंदरू ला जंगल ले वापिस लहुँटे बर मुंधियार होगे । घर म ओकर दाई ददा ला फिकर हमागे । ओमन खोजे बर निकलिन । रसता म चेंदरू ला आवत देखिन .. थोकिन तिर म गिन त ओमन ला चेंदरू के बगल म रेंगत .. बघवा दिख गिस । ओमन डेर्रा गिन अऊ बघवा हा चेंदरू उपर हमला करइया हे सोंचत .. फरसा ला बघवा कोति फेंकिस । चेंदरू समझ गिस अऊ बघवा के घेंच ला धर के तुरते अपन तिर ले आनिस । ओकर दाई ददा ला लगिस के .. बघवा हा चेंदरू ला धर लेहे .. ओमन डर के मारे चिचियाये लगिन । गाँव के कुछ मन .. अपन अपन हथियार धर के उही तिर सकलाके .. बघवा ला चारों मुड़ा ले घेर लिन । चेंदरू हा बघवा ला कोन्हो कुछु झन करय कहिके .. ओकर पीठ म बइठगे अऊ जम्मो झन ला बताये लगिस के बघवा हा ओकर संगवारी आय .. कोन्हो ला कुछु नइ करय .. अपन अपन हथियार ला तरी म राखव अऊ येला वापिस जंगल म जाये बर जगा देवव । जम्मो झिन एक कोति घुच दिन । बघवा हा कलेचुप मुड़ी नवा के चल दिस अऊ जाके अपन पिला मनला .. चेंदरू के सेती आज ओकर जीव बाँचिस कहिके .. बताये लगिस । चेंदरू के साहस के चर्चा न केवल घर म बल्कि जंगल म तको होय लगिस । 

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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