Thursday 10 November 2022

मोर गांव ल जानंव-अंकुर









 


मोर गांव ल जानंव-अंकुर


  सुरंग होय ले नांव पड़िस सुरगी 


 हमर गाँव सुरगी ह राजनांदगॉव ले अर्जुन्दा मार्ग म राजनांदगॉव ले 13 किलोमीटर दूर हे. खरखरा नदी के किनारे म बसे हे हमर गाँव सुरगी ह. येहा राजनांदगांव जिला के बड़का गाँव मन म शामिल हवय . येहा विधायक आदर्श गाँव हरे. हमर छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुखिया डॉ. रमण सिंह जी ह ये गाँव ल विधायक आदर्श गाँव के रुप म गोद ले रीहिस. सुरगी म हायर सेकेण्डरी तक स्कूल, पांच आंगनबाड़ी केंद्र, दस बिस्तर वाला अस्पताल, आयुर्वेदिक अस्पताल,पशु अस्पताल, मिनी स्टेडियम राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केन्द्र ,कृषि अनुसंधान केन्द्र, कृषि महाविद्यालय, दू ठक पेट्रोल पम्म अउ पुलिस चौकी हे. 


इहां अंग्रेज जमाना म प्राथमिक स्कूल खुल गे रीहिस हे. सन 1961 म हाईस्कूल शुरु होगे रीहिस हे. इहां चार ठक प्राइवेट स्कूल हे.


छै आगर छै कोरी तरिया बर प्रसिद्ध


 जन श्रुति के अनुसार हमर गाँव म" छै आगर छै कोरी" तरिया रिहिस हे . तइहा  जमाना म ओड़िया मजदूर मन  छैमासी रात म ये तरिया मन ल खने रिहिन. समय के संग कतको तरिया पटागे. आजो हमर  गांव म दर्जनभर ले जादा तरिया हे गांव के चारों मुड़ा तरिया नजर आथे. इहां के तरिया म दर्री तरिया ह सबले बड़का तरिया हरे.आने तरिया म 

चंडी तरिया, मतवा तरिया,मंधना तरिया, डोंगी तरिया,  बुड़गा तरिया सड़क बुंदिया तरिया, चुनचुनिया तरिया,तुलसी तरिया, पुरइना तरिया , हुर्रा तरिया,खमर्री तरिया ,कोठर्री तरिया, मोहन डबरा सामिल हे. इहां सबो गांव के जइसन चारो मुड़ा देवी -देवता के मंदिर हे. जेमा शीतला माता,सांहड़ा देव, बूढ़ा देव,राम मंदिर, कृष्ण मंदिर, शिव मंदिर, जैतखाम सामिल हे. गांव म जुड़वास,सोमवारी ,बीज बोनी तिहार,मातर मड़ई सुग्घर से मनाय जाथे.


साहित्यकार अउ कलाकार के गांव


दसमत कैना प्रसंग के संबंध ये गाँव ले जुड़े हवय.सुरगी साहित्य अउ कला बर अब्बड़ प्रसिद्ध हे.  ये संस्था ह तेवीस बछर ले संचालित हे. ये संस्था म हमर गांव के संगे संग सुरगी के आस पास गांव के संगे संग दूर दराज के साहित्यकार मन घलो जुड़े हावय.साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के वार्षिक समारोह म प्रदेश के दर्जन भर बड़का साहित्यकार मन इहां पहुंच के अपन विचार ल साझा कर चुके हे. 


"सुरंग" रहे ले  हमर गाँव के नाँव "सुरगी "पड़े हे. ओड़ार बांध (टप्पा) ले सुरंग के स्रोत कहे जथे. अइसन जन श्रुति हे.  पूर्व सरपंच स्व. पदुमलाल लाल साहू के घर के सामने सुरंग के निसान आजो विद्यमान हे जेला सुरक्षा के दृष्टि ले चौड़ी के रुप म बांधे गे हावय.


  संत कवि पवन दीवान जी के बिचार


एक बार साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के वार्षिक सम्मान समारोह म पहुंचे माई पहुना श्रद्धेय संत कवि पवन दीवान जी ह "सुरगी " के व्याख्या अइसन करे रीहिस हे - "सुर" माने "देवता "अउ "गी "माने "गाँव". मतलब" देवताओं का गाँव सुरगी " . 


 इहां दू ठक मानस मंडली,

दू ठक रामधुनी मंडली,दू ठक पंथी मंडली, चार ठक जसगीत मंडली अउ एक ठक लोक सांस्कृतिक मंडली हे. इहां मानस टीकाकार, प्रवचनकार , उद्घोषक, कवि, लोक गायक,वादक कलाकार एवं नृत्य कलाकार मन के पर्याप्त संख्या हे. 


इहां कबीर कुटी आश्रम संचालित हे. हमर गांव म हर बछर  प्रवचन के आयोजन होथे.  गोवर्धन पूजा के दिन गांव भर के मन सकलाके गोवर्धन चौक म सकलाथे अउ जाति पाति के बंधन ल तोड़ के सुग्घर ढंग ले गोबर के टीका लगा के एक दूसरा ल बधाई देकर सुखी जीवन के कामना करथे.मातर मड़ई के बढ़िया आयोजन होथे. हमर गांव म तीन घांव मड़ई होथे. शनिच्चर, मंगल अउ खरखरा नदी के किनारे म शिवरात्रि मड़ई .


इहां के रहवासी मन म साहू, सतनामी,ढीमर, निषाद,यादव, सिन्हा,सेन,जैन, गोंड़,महार सहित आने जाति के लोग हे. जैन, मुसलमान,सिक्ख धर्म

के लोग घलो हे. सबो जाति अउ धर्म म

सुग्घर भाईचारा के भावना विद्यमान हे.हमर‌ गांव म समय- समय म सस्वर मानस गान टीका स्पर्धा, रामधुनी प्रतियोगिता, पंथी नृत्य प्रतियोगिता,जसगीत प्रतियोगिता होवत रहिथे.


अँचल के पहिली मँड़ई 


कोनो भी गाँव -शहर के मँड़ई -मेला एक तय दिन म होथे. हमर गाँव सुरगी (राजनांदगॉव) के मँड़ई देवारी तिहार मनाय के बाद जे पहिली शनिवार पड़थे वोमा मनाय जथे. ये दृष्टि ले हमर गाँव के मँड़ई ह अँचल के पहिली मँड़ई होथे. मोंहदी(बालोद जिला) मड़ई ह  देवारी तिहार मनाय के बाद पहिली इतवार के होथे. 

देवारी तिहार मनाय के बाद हमन ल मँड़ई के अगोरा रहिथे. अपन सगा औ-सोदर मन ल नेवता देथन. सगा मन ल घलो हमर गाँव के मड़ई के गजब अगोरा रहिथे. काबर कि देवारी तिहार मनाय के बाद शनिवार के मनाय जाथे. ये समय सब के मन अपन सगा संबंधी से मिले -जुले बर होथे. सुग्घर ढंग ले देवारी -मिलन हो जथे. मँड़ई के बहाना एक दूसरा ले मिल के सुख -दु:ख के बात ल आपस म बाँटथे. 

हमर गाँव के शनिच्चर मड़ई ह पुराना बस स्टेण्ड के उत्तर दिशा म बाजार चौक म होथे. इही जगह हमर गाँव के मुख्य सांस्कृतिक मंच हे.जेमा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम समय समय म आयोजित होवत रहिथे.  राउत मन ह मोंहदी मड़ई माने के बाद गरुवा मन ल फिर से चराय बर जाथे. 


मँड़ई - 


मँड़ई -मेला म मँडई के गजब महत्व हे. येखर बिना मँड़ई ह पूरा नइ होवय. मँड़ई ह बड़का बाँस ले बनाय जथे. येला तोरन -पताका, मयूर पंख, घुंघरु, कौड़ी जइसन जीनिस ले सजाय जथे. राउत अउ गोंड समाज के मन ह ईष्ट देवता के पूजा करके मँड़ई ल लाथे. अपन समाज के मुखिया घर सकलाथे. फेर सबो झन सुग्घर नाचत अउ दोहा पारत गाँव के सरपंच, पटेल अउ दू -चार झन मुखिया के अँगना म जाके परघाथे.  मुखिया मन ह राउत समाज ल स्वेच्छा से रुपया -पैसा दान देथे. फेर मँड़ई म आके नँगत नाचथे -गाथे. दुकान दार मन ल जोहारथे अउ खुसी -खुसी वहू मन राउत समाज ल पैसा देथे. राउत मन सुग्घर दोहा पारके दान दाता मन ल आशीष देथे.


राउत मन के पहनावा -


राउत मन के पहनावा ह गजब सुग्घर लगथे. धोती -कुर्ता पहने ,मूंड़ म पागा बाँधे ,कलगी लगाय, कमर ल पटका मा बांधे, अपन शरीर म रस्सी के माध्यम ले मयूर पंख, कौड़ी, घुंघरू ल पिरो के पहने रहिथे. पांव म घलो घुंघरु पहनथे. लौठी ल घलो बढ़िया किसिम -किसिम ढंग ले सजाय रहिथे. राउत मन ह लाठी के माध्यम ले अपन शौर्य के प्रदर्शन घलो करथे. बिधुन होके बाजा बजावत, दोहा पारत, नाचत जब लउठी ल घूमाथे अउ मँडई ल लहराथे त देखइया मन के मन ह घलो झूमे ल लगथे. 


  नाना प्रकार के दुकान -


  हमर गाँव के मँड़ई म मिठाई दुकान वाले अउ कुछ दूसरा व्यापारी मन ह शुक्रवार के संझा -रात तक पहुंच के अपन बर ठीहा पोगरा लेथे. मिठाई  दुकान के संगे सँग कपड़ा -लत्ता,  बर्तन दुकान,सोना चाँदी  के दुकान मनियारी दुकान,जूता- चप्पल दुकान ,लईका मन के खिलौना दुकान,  नाश्ता-चाय दुकान, फल दुकान, झूला, रहचुली, फुग्गा वाले, चॉट -गुपचुप दुकान, गन्ना वाला, सूपा, चरिहा, टुकनी, झाड़ू, के सँगे सँग साग -सब्जी के पसरा लगे रहिथे. बाजार ठेकेदार ह दुकानदार मन ले पैसा वसूलथे. हमर गाँव के सँगे आस- पास के गाँव के मनखे मन अउ दूर -दराज ले रिश्तेदार मन ह आके मँड़ई के शोभा बढ़ाथे. जरूरत मुताबिक मनखे मन किसिम -किसिम के चीज खरीदथे. नान्हें लइका मन झूला अउ जवान मन रहचुली के मजा लेथे. माई लोगन मन के मनियारी अउ सोना चांदी के दुकान डहर गजब भीड़ रहिथे. वोमन ह माला,खिनवा,बिछिया ,सांटी, करधन के सँगे सँगे टिकली -फुंदरी खरीदथे.

मँड़ई म दुकान वाले मन किसिम -किसिम ढंग ले चिल्लाके अपन सामान ल बेचथे. कुछ दुकान वाले मन पोंगा रेडियो के माध्यम ले घलो रिझाथे. एक्का -दुक्का  दुकान वाले मन विशेष रुप से उद्घोषक घलो रखथे. रँग -रँग के बात बताके, लोक गीत अउ फिल्मी गीत सुना के अपन दुकान के सामान ल बेचे के कोशिश करथे. मँडई म सब मन ल उछाह रहिथे. पर जवान अउ लईका मन के बाते अलग रहिथे. ऊंकर मन के खुशी ह देखते बनथे. 

 मँडई म आस -पास के सँगे सँग दूर रहवईया सँगी -साथी अउ जान -पहिचान वाले मन सँग भेंट होथे त गजब खुशी होथे.रात होथे त  मँड़ई म जवान लईका मन के भीड़ ह बढ़ जथे. ये समय सियान मन ह घूम -घाम के घर आ गे रहिथे. 


  मनोरंजक कार्यक्रम -


  रात म मनखे मन के मनोरंजन करे बर मुख्य सांस्कृतिक मंच म कोनो साल नाचा त कोनो साल लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन करे जथे. नाचा अउ लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम ले जनता जनार्दन के जिहां मनोरंजन होथे. त दूसर कोति अपन समृद्ध लोक संस्कृति ले परीचित घलो होथे. ये प्रकार ले 

मँड़ई के बहुतेच महत्व हे. येहा खुशी के प्रतीक हरे. 


              ओमप्रकाश साहू" अंकुर"

     सुरगी, राजनांदगॉव (छत्तीसगढ़) 

  मो.  7974666840

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