Thursday 10 November 2022

मोर गाँव 'डोंगाकोहरौद'

 मोर गाँव 'डोंगाकोहरौद'

    जांजगीर-चाँपा जिला के बिकासखंड पामगढ़ ले 5 किमी दूरिहा रक्सहूँ दिसा म डोंगाकोहराउद नाँव के एक गाँव बसे हे। बस्ती के चारो मुड़ा म सरलग तलाब हे। धोबनी, अखरहा, डुमरिहा, जोखिया, डोंगिया, बंधवा, केरहा अउ पर्री। ए तलाब मन इहाँ के जीवनदाता आँय। घर-गिरहस्थी के काम बर, नहाय बर अउ खेत मन ल पलोए बर, जब भी पानी के जरूरत होथे, महतारी के गोरस सही ईंकर पानी ह तुरते मिल जाथे। इन सब्बो तलाब म जउन डोंगिया तलाब हे, ओकर खाल्हे बीच खार म एक ठन सिरीस के पेड़ हावै। कब के हावै, तेला कोनो नइ बता सकैं।

     ए गाँव म तइहा जमाना म डोंगा ले जुड़े एक ठन घटना घटे रहीस। ओकरे कारन ईंकर नाँव कोहराउद ले डोंगाकोहराउद परगिस। घटना अइसे हे कि राउत पारा के एक झन माईलोग, जेन ह देह म रहिस याने गरभैतिन रहिस, तीजा मनाए अपन भाई के संग अपन मइके जावत रहिस। ओकर मइके हर महानदी के ओ पार परै। भादो के महीना, महानदी म पाठी-पाठ पूरा आय रहै। ओ पार जाय बर जउन जघा म ओमन डोंगा चढ़िन, उही मेर शिवनाथ नदी ह महानदी म मिले हावै। एमन के डोंगा ह संगम म हबरिस त दूनो नदिया के धार बीच फँसगे। न आघू बढ़ै, न पाछू घूँचै। डोंगहार ल शंखा होइस कि डोंगा के देबी ह नराज होगे हे। ओहर कहिस- ए डोंगा म कोनो गरभैतिन बइठे होहौ, त कुछु बदना बदौ, नहीं त डोंगा ह लहुट (बूड़) जाही। सब झन के कहे म ओ रउताइन ह बदना बदिस, त डोंगा ह पार होइस।

       समे ह बछर दू बछर बीतगे। रउताइन ह बदना के बात ल भुलागे रहै। एक दिन ओ डोंगा ह नदिया के घाट ले निकल के भाँठा म घिसलत-घिसलत ए गाँव के तरिया म आके बूड़े रहै। ओ रउताइन ह गघरी म पानी भरे बर जब ए तरिया म आइस, त ओ डोंगा ह ओकर ऊपर म जाके खपलागे। रउताइन ह मरगे। ए बात के खभर मिलिस त ओकर गोसइया ह डोंगा ल कुटी-कुटी काट के नरवा म फेंक दिस। डोंगा के एक ठन खीला ह सिरीस के रहिस, जेहर गाँव के बहरा खेत जामगिस। बाद म ओहर सिरीस के पेड़ बनगिस।

      एइ घटना के सुरता कराए ब गवाही सही  ओ पेड़ ह उही जमाना ले खड़े हावै। पेड़ ह बुड़गाए के पहिली जरी ले नवा पिचका फेंक देथे अउ ओकर दलगत ले फेर नवा पेड़ तियार हो जाथे। सिरीस के एइ पेड़ तरी देबी दाई के बास हवै। काबर नइ रहही। पखना होवै कि रूख-राई। मनखे के आस्था अउ बिसवास ह जिहाँ टिकगे उहाँ कन-कन म बास करइया सक्ति मन उही मेर ठुलाकेअइसे असर देखाथे ं कि लोग-बाग मन ओला या तो ईश्वर के किरपा समझथें या फेर भगति के चमत्कार।सिरीस-पाठ घलो ह लोगन मन के मनोकामना ल पूरा करे के अधार आय।ऊँकर सरधा-भगति के ठउर आय।

      सिरीस-पाठ के चारो मुड़ा म खेत-खार हे। असाढ़ महीना म पहिली बारीस होत्ते-साथ किसान मन नांगर-बइला लेके धान बोंए बर अपन-अपन खेत म आ जाथें। ए बखत चारो मुड़ा म अर्र-तता के बोली के संगे-संग सुघ्घर गीत हवा म गूँजे लगथे। सावन महीना म जब धान मन बियासे के लइक हो जाथे, तब चौतरफा हरियरहूँ सुघराई ल देखके अइसे लागथे कि जाना-माना धरती दाई ह सिरीस-पाठ के ठउर ल सजाए खातिर हरियर-हरियर मखमली दरी दसाए हे। कुआँर के महीना म छटके धान के बाली अउ पकराए पान मन जब हवा के झँकोरा संग लहराथे, त लगथे कि धरती-दाई ह अपन बेटी अन्न-कुवारी ल सुघ्घर पोतिया पहिरा के अऊ ओकर मुँड़ म सोन के कलगी खोंच के माता के दरसन बर भेजे हवै, तेकरे सेती ओहर ढोंकर-ढोंकर के पाँ परत हे।

     नवरात बखत इहाँ लोगन मन के चहल-पहल बाढ़ जाथे।कुआँर अउ चइत दूनो महीना म एक हफ्ता पहिली ले जवा बोंवा जाथे। अंजोरी पाख के परिवाँ लगते भगत मन मांदर घिड़का-घिड़का के जस-गीत गाए लगथें। अपन मनोकामना ल पूरा कराए बर कोनो घी के, त कोनो तेल के जोत जरवाथें अउ कोनो माता के सिंगार चूरी-फुंदरी चढ़ाथें। धन्न हे ए देबी-देवता मन ल। भगत मन जउन ढंग ले ऊँकर पूजा-आँचा करथें, मौन-भाव ले उनला अपना के सुख-शांति देवत रइथें। तभे तो इहाँ आए म जेकर दुख-अलहन टर जाथे अउ मनोकामना ह पूरा हो जाथे, ओकर मुँह ले जबरन निकल जाथे- जै सिरीस पाठ, जै देबी दाई।

                     संतोष कश्यप

                     जांजगीर

No comments:

Post a Comment