नान्हे लइका मन बर
नान्हे निबंध
"खारो, करू अउ मीठ"
जिनगी के अलग स्वाद
नून के स्वाद खारो होथे l बिना नून के भोजन नई बनय l बिना स्वाद के भोजन नई मिठावय l कम नून खा ठीक हे l ज्यादा नून नुकसान दायक होथे l ज्यादा नून के खारो साग सब्जी lखा भी नई सकस l ज्यादा खारो करू हो जथे l
करू स्वाद म करेला के नाम आथे पहिली, बाद मे दवाई के l करू ला कोन मन लगाके खाथे l करेला ला मन लगाके खाथे l करू स्वाद दवाई के काम आथे l
मीठ माने मीठा याने शक़्कर सबला मीठ काये के मीठा पिए के मन होथे l स्वाद के भोजन व्यजन म मीठा श्रेष्ठ हे l 56 भोग म मीठा अपन अलग नाम कमाए हे l देवी देवता के भोग म जघा पाये हे l ज्यादा मीठ घलो करू होथे l
अब ज्यादा मीठ घलो करू
ज्यादा खारो घलो करू अउ करू तो भई करू हे ज्यादा करू बीख करू हो जथे l
तीनो स्वाद के बारे मे जाने के बाद
अपन व्यवहार म लागू करथन l बात चीत आदत आचरण म खारो मीठा अउ करू जरूरी हे l जीवन म तीनो के स्वाद मिलना चाही l
जब जिनगी म जिए के बात आथे त स्वाद के स्वाद बदल जथे l करू गोठ ला सत्य कहे जाथे l करू गोठ ला कोनो भावय नहीं l करू गोठ सुहावय नहीं l जबकि करू वचन अनमोल होथे l जिनगी के सही रद्दा दिखाथे l
मीठ गोठ मीठ लबरा के l मीठ मीठ बोलके फूलो देथे मैनखे ला l मीठ बात म आके फंस घलो जथे l
खारो गोठ मनभावन घलो फेर कमजोरी ला देखाथे जेला हास्य व्यंग्य कही देथन l ताना मार खारो असन खरी खरी जी ला भेद देथे l
दुनिया म किसिम किसिम के मैनखे l कोनो ल कइसे कहें जाय इही स्वाद म स्वाद मिलाथे l फेर अतका सिरतोंन गोठ आय कम जादा कम जादा बोलके सुनके जानके समझके
रहे ला पड़थे l कोनो ला मीठ बोलके लूटव मत l कोनो ल करू बोलके मारो मत l कोनो ल खारो बोलके उछराव मत l सही बोलव मीठ बोलव हाँस के हँसा के जी गुद गुदाजय l हित मीत बने रहय l कोनो ल टोरो भी मत ककरो सो टूटव भी झन तभे जिनगी के खारो मीठ अउ करू स्वाद के असल मजा मिलही l
मुरारी लाल साव
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