Thursday 25 January 2024

नानकुन कहानी " जी काल्कुत "

 नानकुन कहानी

   "   जी काल्कुत "

हफ़रत आके मुड़ के झिटी लकड़ी के बोझा ला पटकीस l गमछा म मुँह कान पोछत मांगिस -ला पानी दे वो l मुंगेसरी पानी देवत पुछिस -थोकिन थिरा नई लेतेव जी l

" काला थिराबे, बोझा उठाइय्या नई मिलय l"

मंगल साँस भरत कहिस l

नई बांचय अब जंगल ह मुंगेसरी l गाड़ी म जोर जोर के

डोहारत हे ट्रक टेक्टर के लाइन लगे हे l मशीन ऊपर मशीन आरा असन l देखते देखत खडे रुख धड़ धड गिरत हे l डारा थांगा छिनावत हे l पीड़ाउरा पोठ पोठ ला भरत हे मशीन म l "

जी काल्कुत होगे दाई कइसे रहिबो कइसे जीबो ते l मुंगेसरी के गोठ पूरा नई हो पाये रहिस मंगल कहिथे -" लकड़ी असन हमू मन ला जोर के  ले जतिस

तेने अच्छा हे l"

 "गाँव ल उजर ही कहिथे l "

"उजरगे बेंचागे भैरी, दूसर जघा जाये ला परही  l "

"गाय -बछरु,छेरी- पठरू ला --l"

"अपन जी ला देखबो कि --l"

मुंगेसरी कहिस कुछु हो जय अपन धन ला नई छोड़न l"

" जी के जंजाल नई करन जी काल्कुत म जियत हन अउ झंझट नई पालन l"

बछरु के चिल्लाये के अवाज आइस l मुंगेसरी  गाय बछरु ल दुलारत कहिस-

"तहीं चिल्ला गऊ माता, तोरे करलाई जादा लगत हे l "

 मुंगेसरी के आँखी ले आँसू चुहे ला धर लीस l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

गुनान

 गुनान 

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     कार्ल मार्क्स हर धर्म ल अफीम के नशा कहे रहिस । 22 जनवरी के जानेवं देश दुनिया , लइका सियान , गरीब अमीर सबो राम मय होगिन त कहि सकत हन राम नाम के नशा मं झूमे लगिन । 

    हमर देश के जन मन मं राम अउ कृष्ण दूनों जुग जुग ले आसन जमाए बइठे हें । दूनों झन अवतारी पुरुष आयं ..दूनों झन श्याम सरोरुह गात माने सांवर रहिन । राम त्रेता युग मं रावण ल मार के अन्याय के शमन करीन त राम राज्य के स्थापना के संगे संग समाज ल , परिवार ल आदर्श के रस्ता देखाईन तभे तो मर्यादा पुरुषोत्तम  कहाइन । द्वापर मं जनमिन कृष्ण , कंस के अत्याचार ले लोगन ल बचाये बर कंस वध करीन , महाभारत युद्ध के सर्वेसर्वा तो उही रहिन । 

मन गुने लगिस त दूनों मं अंतर का रहिस ? उत्तर मिलिस राम भाव आयं त कृष्ण कर्म आयं कइसे ? राम समाज बर आदर्श बेटा , भाई , सखा , पति , राजा रहिन उंकर आचरण , व्यवहार आज भी अनुकरणीय हे । कृष्ण कर्म करे के प्रेरणा दिन ...समय , सुयोग , परिस्थिति के अनुसार आचरण , व्यवहार करे बर कहीन । 

भारतीय जीवन मं राम अउ कृष्ण दूनों के महत्व के बढ़िया उदाहरण देखे बर मिलथे तब जब मरणोन्मुख मनसे ल गीता सुनाथें ...काबर ? जनम मरण या कहिन कर्म बंधन से मुक्ति बर ..। सुरता करे लाइक बात एहर आय के उही मरणोन्मुख मनसे के मुंह मं तुलसी पाना / मंजरी डार के गंगाजल पियाथें अउ राम राम कहिथें अतके नहीं ...अंतिम यात्रा मं राम नाम सत्य है कहिथें । 

   त राम अउ कृष्ण दूनों एके होइन न ? ठीक समझेव मनसे के जीवन मं भाव अउ कर्म दूनों के समायोजन जरुरी हे काबर के भावहीन कर्म अउ कर्महीन भाव दूनों अकारथ हो जाथें । हिन्दू संस्कृति , धर्म , समाज , परिवार , देश राज इही समन्वयवादी परम्परा ल जानत , मानत आवत हे । हमर देश के सभ्यता , संस्कृति के मजबूत आधार आयं राम अउ कृष्ण । 

  नील सरोरुह नीलमणि , नील नीरधर श्याम 

  बसहु सदा सबके हिय , पूरण हो सब काम ।

सरला शर्मा

लघु कथा*

 *लघु कथा*

दसरु बरवट के खटिया म पड़े कल्हरत हे । दसरु के चार झन बेटा हावय । रमउ,भुवन,लच्छू अउ सोनउ।

        " का करत हस गो दसरु कका" डेरवठी बाहिर के भाखा ओरख के दसरु चिचियाथे।" आ....आ....सुजानिक......आ...बइठ" दसरु कांखत सुजानिक ल बुलाके खटिया के तीर म माढ़े टेबूल उपर बइठे के इशारा करथे।

सुजानिक बइठत पुछथे " अउ का हाल चाल से कका ,लोग लइका मन नइ दिखत हे "। 

   " काला बताबे सुजानिक" दसरु कांखत एक लम्बा सांस ले के कइथे "तोर काकी परबुधनिन काल के बात मान के स्वर्ग सिधारगे । बड़े बेटा रमउ खाय कमाय ल परदेश गेहे,वो हां उहें भूला  गेहे । भुवन अपन लोग लइका समेत अलग ठउर म रइथे । लच्छू जुआ चित्ती नशा म भक्क पड़े रइथे अउ सोनउ हा शरीर अउ दिमाग ले दिव्यांग हावय ।

        "मंय समय के मार के दंश झेलत परमात्मा के आस म पड़े हंव सुजानिक.....।" 

अतका काहत दसरु एक गहरा सांस लेवत दसरु अउ सुजानिक उपर कोती ल देखत मने मन सोचें ल लग जाथे " का इही कलयुग ये भगवान"।


अशोक कुमार जायसवाल

भाटापारा

रोज एक पुड़िया व्यंग्य किस्सा - " भगवान कइसे दिखही? "

 रोज एक पुड़िया 

व्यंग्य  किस्सा -

   " भगवान कइसे दिखही? "


तीन आदमी तीनो म मतभेद lतीनो के तीन तरीका l तीनो म तिरिकतीरा l  भगवान कइसे दिखही ?ज्ञान बघारे के उदिम करत रहीस l बिना ज्ञान -ध्यान के,, बिना समझे -बूझे भगवान ला देखे के सऊँख तीनो ल हे l  देख के तो बताय  सबूत के संग l गवाही साखी लेके l अभी तक कोनो नई कहे हे  l कहे हे तेला कोनो पतियाये नइये हे l सबूत चाही देखे हे l इही बहस होवत रहिस ओमा कहिस 

पहिली आदमी -

"भगवान ला देख के मै बताहूँ हाँ ,देख के मै बताहूँ दूनो झन आँखी ल मुँदव l" दू झन विरोध करत कहिस -" तै का बताबे बीता भर ज्ञान हे तोर करा l "

ए ए चलाकी झन चल l हमू ला आथे देखे बर l अकेल्ला तै काबर देखबे? झंझेट के बैठाऱ दीस l

दूसरा आदमी -

"भगवान ला हम दू झन देखबो एक गवाही रही l तभे तो सब पतियाही l"  पहिला आदमी दूनो के विरोध करिस -ए ए उहू गलत होही दूनो सांठ गांठ कर लुहू l दूनो मिलके  कुछ भी कर लुहू l 

लबारी मार दुहू तुंहर का हे l 

तीसर आदमी  दूनों ले डेढ़ हुसियार l उहू ला मौका दीस l अपन  बुद्धि  ले मात देवत 

तीसर आदमी  कहिस -" एक उपाय हे हम तीनो झन आँखी ल मुँद बो l कोनो अउ ला साखी गवाही बनाबो l"

 भगवान ला कोन देखिस 

उही ह बताही, उपाय खोजिस l एक झन कहिस - गवाही 

कुकुर ला बनाबो l कुकुर ल ईमानदार प्राणी हे l जानवर मन  भरोसा करथे,झूठ नई बोले l ककरो पक्ष नई लेवय l सही सही बताही l कुकुर  अपन आदत भूँकना  सूंघना अउ मूतना  ले  फरी फरी कर दीही l एखर ले पता हो जही l कोन देखिस? जेन देखही तौन कुछ तो बोलही ? 

आपस म मान लीस l  तीनो आदमी 

अलग अलग दिशा म आँखी मुँद के बइठ गे l मने मन कुकर ले बिनती करत हे मोला सूंघ दय,भूंक दय, नई ते ---l

एक झन मुंदे बइठे देख कुकुर सुंघिस  ले ओला कुछु नई होइस l दूसर के पीठ ला सुंघिस कुछु चिटपोट नई करिस l डोलिस भर l कुकुर अपन तीसर आदत ला छोड़िस एक टांग उठाके चुर्र --चुर्र --l

तीसर के मुड़ी म पडिस lचिल्लाके कहिस -भगवान  मोला दिख गे  l कुकुर भगागे l

सबूत दिखाके l

मुरारीलाल साव

रोज एक पुड़िया नानकुन कहानी- " बईमान कोन ? "

 रोज एक पुड़िया 

 नानकुन कहानी-

  "   बईमान  कोन  ? "

प्रकृति म सब कुछ हे प्रकृति ले देवी देवता खुश हे, प्रकृति बिगड़ही त बाँच ही का?

तरिया के पार म पहिली बहुत बड़े बड़े रुख राई रहिस l अब नई रहिगे l कुंदरा झोपडी मकान बनगे l तरिया घलो सकलावत जात हे l तरिया के पानी मतलवत जात हे l न तरिया बांचत हे न परिया l

इही सँसो म पीपर अउ बर आपस म गोठियावत रहिस l

दूनो जुन्ना पेड़ बहुत कुछ कहानी ला जानत हे l

पीपर रुख कहिस - हमन ल पोथी पुरान  बंचाईस, नई ते कब के हमर सत्यानाश होगे रहिस l

बर रुख बताइस - भला हो भगवान के हमला शरण म राखे हे l फेर एक ठन अउ बात

भगवान के पूजा पाठ म हमर पान पत्ता ल नई चढ़ाय  l बने हे नई ते?

पीपर सोच के कहिस - परमान तो हमार पास हे l अंतर मंतर वाले मन जानत हे l सबला

 डरहवाके राखे हे l भूत परेत शैतान के वासा l

बर बात ला पुरोवत कहिस - बईमान कोन बनही  हमन ला काट के l इही बेरा चील कौवा मन आगे l तुंहर आसरा म हमू मन साँस लेवत हन l मैनखे मन जान डारे हे इंखर मांस खाना पाप हे l जेन दिन पीपर बर कटे ला धरही जान ले बिनास l 

धरम जाही चूल्हा म l हवा पानी बर लोगन तरस के मरही l पथरा माटी बँचही l

महल अटारी देखे बर के ताय

एक न दिन उकरों पिंडा दान इही मेऱ होही l

बने हे डोकरी दाई रखवारी करत सब ला बताथे l कतको पूजा पाठ कर लेव,दान पुन कर लेव भगवान प्रसन्न नई होय जब ओकर बनाये प्रकृति  ल बँचा के नई रख ही तब तक l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

आज के राशिफल*.

 *आज के राशिफल*.      


      बिना महुरत देखे जनम धरेंन, जीयत भर शुभ महुरत खोजेन अउ बिना महुरत के दुनिया ले बिदा घलो हो जथन। शुभ घड़ी शुभ महुरत खटिया के मुड़सरिया गोड़सरिया घर के मोहाटी बर उत्ती बुड़ती बर बिहिव मा रास बरग जनम बर नामकरन अउ कोन जनी का का बर पंचाँगी पन्ना खोधियाना परथे। अभी तक इँकर शुभ अशुभ फल बताए ले हमर उपर का फरक परथे सउँहत परिणाम देखे बर नइ मिले हे। हमर असन मन वर्तमान के चिंता मा चितियाय परे हवन तौ भविष्य के का गोठ करन। हमर असन कतको हे जेकर आगू दिन बर अँजोर के दउहा नइये। तब समझ जाना चाही कि हम मनहूस घड़ी मा जनम धरे हन। अँधियार मा मुँसवा रेंगथे तेहू हर बिलई कूदे कस लागथे। जेकर उपर बिसवास करना घलो मजबूरी हो जथे। अँधियार मा फूटे कनोजी घलो अपन दसा के करता ला नइ  बताय। तब अँखमुँद्दा  बिसवास करना परथे। अउ नइ करबे तब जे मन पंचाँग लिखत हे कुंडली अउ भविष्य बतावत हे उँकर दुकान के का होही।

         धन धरम अउ धंधा के महायोग के संजोग ले लछमीपति होवत देरी नइ लगे। ये अलग बात हे कि दौलत राम अउ धनसिंग नाम के हर बाढ़ी खाके करजा मा जीयत हे। भरोसा अउ भगति के सँग महादान के पूछी धरके बैतरी पार हो सकत हस तब एकादकनी अखबारी राशिफल पंचाँग उपर घलो मन मड़ा के भरोसा कर। नइ करबे तब इन पंचाँगी मन के पेट अउ परिवार के का होही। बेरोजगारी के दौर मा इँकर हाथ मा कुछ तो काम हावे। झाड़ू राम फेकन कचरा बाई बुधारू मँगलिन खोरबाहरा असन नाम तो बिना पंचाँग देखे जनम धरे के बखत मुँहूँ ले जौन निकल जाय सदा दिन बर पहिचान बन जाय। इही उदुपहा धरल नाम के उपर कभू चंद्र सुर्य ग्रहण के शुभ अशुभ फल के असर नइ होइस। न तो सम्मार शनिच्चर  फलदायी होइस। वोइसे भी जिंकर राशि मा बारोमासीशनिच्चर झपाए हे बाँचे खोंचे देंह के हाड़ा दान करके कते दोष ला कटवाही। पेट भर भर के पेट निकालत  हे। वो मन हमर असन ला दान करतिस ते हमरो शुभ दिन आतिस। फेर अइसन करना तो विधान के खिलाप हे। ज्ञान चक्र ये कथे कि अन्न दान धन दान वस्त्र दान के सँग एक्कइस झन नव ग्रह के सेवक मन ला भोज करवाना परथे। अउ कहूँ अतका करम नइ करे तब जिद्दी शनिच्चर हर तोर नाम अउ राशि के उपर अढ़ई साल ले परिक्रमा करत रही।

             हमर कोती अखबार के एक कोंटा मा रोज राशिफल छपे रथे। बारा महिना मा बारा राशि के फल दसा सबो राशि मा घूमत रथे। जे आज तोर मा छपे हे काली मोर मा रही। फेर अपन ला पढ़के मन ढाढस मा तो रथे कि आज के दिन शुभ हे। हमर परोसी चिंताराम ला रोज अखबारी राशिफल देखे के आदत हे। ओकर राशि मा लिखे गोठ कतका सच होथे उही जाने। आज ओकर राशि मा शुभ दिन के सँग धन प्राप्ति के योग लिखाय रिहिस। फेर ये उल्लू वाहिनी आये तो आये कते डहर ले। झूठ बोले के धोखा देय के गुन तो सीखे नइये। ईमानदारी के थइली मा चिल्हर ला बजा बजा के रेंगके जेबकतरा मन के काम ला असान कर देथे। तभो ले मनभ मा बिसवास तो बने हे कि कोनो डहर ले लछमी उड़ाके आही। इही शुभ दीन चिंताराम बिजली बिल पटाए बर बिजली आफिस गेय रिहिस। भीड़ अउ धक्का धूमी मा चिंताराम के पाकिटमारी होगे। बिचारा बिना बिल पटाय मुँहूँ ओथराय घर आगे। दिन शुभ आउ धन प्राप्ति के योग तो पाकिटमार के रिहिस। सच यहू हे कि जेब कतरा अउ पाकिटमार मन के मन के दिन शुभ चलत हे। चाहे वो राजकीय जेबकतरा होय चाहे प्रशासनिक। इन पाकिटमार मन कभू राशिफल देखके नइ निकले। काबर कि इँकर उपर उल्लू वाहिनी के किरपा सदा बने रथे। ये मन राशिफल देखके निंही धन राशि देखके काम शुरू करथे।

         भरम तो मोरो वो दिन टूटगे जब मोरो राशि मा दाम्पत्य जीवन सुखमय अउ घर मा सुख शांति लिखाय रिहिस। बिहनिया ले घरवाली सँग खटर पटर होगे। जेकर ले चाय नास्ता नइ मिलिस। झगरा के मारे बिना टिफिन के काम मा जाना परिस। अब राशिफल बनाने वाला ला कोसवँ कि धन्यवाद देववँ। हम तो अतका जानथन कि चंदा ला गरहन धरे चाहे सुरुज ला, राशिफल बताये के पहिली जान लेथन कि जतका अशुभ फल होने वाला हे हमरे उपर होही। पंचाँग के सबो पन्ना ला खल्हार निमार के बिहाव के शुभ दिन घड़ी पाख महुरत बताय रिहिस। फेर ये नइ बताइस कि लगिन बर नंगत अकरस पानी गिरही। मोर बिहाव के मँड़वा पंडाल हवा बँड़ोरा मा उड़ागे। तभो पंचाँगी ला दोष नइ दे पायेंव। 

एक झन अचार्य जी मोर कपार के रेखा देखके कहि दिस कि तोर राजयोग के संजोग हे। सिंघासन सुख भोगे के लालच मा पाँच बखत चुनाव लड़ेंव पंच तको नइ बन पायेंव। आखिर मा वो किहिस कि, बेटा जनाधार के खेती मा धनाधार के जल रितोय बर परथे। बड़े बड़े राहू केतू से लेके छोटे छोटे गिरहा के मूँड़ी मा रुपिया माला पहिराय बर परथे। पहिली गिरहा टोरवा पाछू सबके गिरहा टोरइया खुदे बन जबे। ठग फुसारी झूठ लबारी के गुन आगू चलके खुदे सीख जबे। नामकरन के दोष ले देश के तरक्की मा संका होवत हे। भारत नाम मा तरक्की होही कि इंडिया हिन्दुस्तान मा एकर खोज शुरू हो गेहे।

              जिंकर घर रोज धन बरसत हे उँहा शनि पाँव नइ रखे। जिंकर घर उल्लू वाहिनी के छाँव नइ परे उँहिचे सबो राहू-केतु मन डेरा डारे रथे। सुख अउ शांति राशिफल देखके निंही धनबल देखके आथे। रूखा सूखा खाके चैन के नींद सोथन उही हमर शांति आय। बिना राशिफल देखे उढ़रिया भगाके बिहाव करथे तेनो मन सुखी रथे। पंचाँग देखके गुन राशि मिलाय रिहिन तेमन कतको झन रात दिन के तनातनी ले तंग आके मइके मा बइठे हे। कतको झन के ससुरार दहेज के समान देखके दुखी हे। ओकरे सेती कतको सास कंकाली रुप धरके बहू बर खप्पर धरके नाचत हे। पंचाँगी मन कथे कि ग्रह नक्षत्र के असर ले देश मा उथल पुथल हे। राजनीति मा उठापटक हे। अर्थतंत्र डाँवा डोल हे। फेर ये नइ बताय कि व्यवस्था मा झोल हे। निचे से उपर तक के तंत्र मा पोल हे। छोटे सँग बड़े के अमीर सँग गरीब के राशपाटी माड़ जही वो दिन कोनों ला शुभ दिन के राशिफल देखे के जरूरत नइ रही।

         भाग्य रेखा के लेखा जोखा रखइया मन करम रेख के लेख ला कतका पढ़ पाहीं। तकदीर के लेखा जोखा पाप पुन्न दान धरम के बही खाता कोन रँग के सियाही मा लिखाय हे कोनो नइ बताय। फेर अतका बताथें कि मुँदरी के पथरा तकदीर बदल देथे। मोर असन मनहूस ला ये पथरा मिल जाय तब पारा के उन चार घर ला पहिली देतेंव जिकर चुलहा लटपट जरथे। इँकर शुभ दिन बर बनत योजना ला दुरगत करे बर कोनों न कोनों बड़का बँड़वा बिलई मन रसता काटत हे। तभोले जेमन भाग्यरेखा अउ भविष्य फल बताये के दुकान चलावत हे। उँहा हमर असन मन भरम खरीदे के तरीका खोजत रथन। झूठ फरेब अउ भरम के दुनिया मा जीयत हावन, तब तो एकातकनी एकरो उपर भरोसा करे मा का हरज हे। मन मा कुछ देर सही ढाढस तो रही शुभ दिन के। एकरे सेती देश दुनिया के काल चक्र सँग अपनो शुभ दिन जाने बर अखबारी राशिफल ला झाँख लेना चही। हो सकथे धोखा मा आज के दिन शुभ हो जाय।


राजकुमार चौधरी "रौना" 

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

दान-पुन के तिहार- छेरछेरा


 

दान-पुन के तिहार- छेरछेरा 


हमर छत्तीसगढ़ म हर तिहार बार के पीछू बड़ निक संदेश छिपे रथे। जेला हर छत्तीसगढ़वासी मन बड़ा जोर शोर, उत्साह मंगल ले मनाये जाथे। चाहे कोई बड़का कारज हो कोई उत्साह के समे हो। सबो माई पीला मिलजुल के कारज ल पूरा करथे अउ तिहार सरी मनाथे। इहि हमर छत्तीसगढ़ के रहवइया मन के संस्कार,संस्कृति आय। जेकर ले आपसी सहयोग, तालमेल, मिलजुल के काम करे के भावना घलो बने रहिथे। अइसन भाव जम्मो  छ्त्तीसगढिया मन के हिरदे म छलकत ले भरे हवय।


अइसने एक ठन प्रमुख तिहार हवे जेला छत्तीसगढ़ म दान पुन के परब--छेरछेरा तिहार के नाव ले जानथन। येला अंजोरी पाख म पूस पुन्नी के दिन मनाथन। ये तिहार दू-तीन दिन ले आघु-पीछू अपन-अपन गाँव के हिसाब से मनाए जाथे। दाई-माई मन बिहिनिया ले खोर-दुआर-अंगना ल लीप पोत के सुभीता हो जाथे। फेर नहा धो के छेरछेरा मँगइया मन बर धान-कोदो ल मँझोत म निकाल के तैयार रेहे रथे।


ये परब दान के परब आये। किसान के अन्न-धन सबो घर के कोठी-डोली म भराय रथे। किसान अपन संग जम्मो जीव बर घलो संसो करत कमाए रथे। ओकर मेहनत के कमाई म चांटी, मिरगा, मुसवा, चिरई-चिरगुन, कीरा-मकोरा के भाग घलो लगे रथे। सबो के भाग मिले के बाद आखिरी में किसान के घर म अन्न ह पहुँचथे। छेरछेरा के दिन किसान मन के घर ले जम्मो झन बर दान के रूप म अन्न ह ठोमा-खोंची जरूर निकलथे। येला पुन के तिहार मानत सबो झन देथे।


छेरछेरा मांगे बर छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, महिला-पुरूष, लईका-सियान सबो मन जाथे। ऐमे दल बना के जाथे।अउ घर-घर के दुवारी म जाके अन्न के दान माँगथे। जेमे गीत घलो गाथे--छेरी के छेरा छेर मरकनीन छेर छेरा, माई कोठी के धान ल हेर हेरा।

अरन बरन कोदो दरन,जभे देबे तभे टरन।

तारा रे तारा अंग्रेजी तारा,जल्दी-जल्दी देवव जाबो दूसर पारा।

अइसे गीत गावत घर के मन ल रिझात अन्न के दान ल मांगते। अउ घर के मन घलो खुशी-खुशी दान देथे।


छेरछेरा तिहार मनाये के कई ठन किवदंती हवे। भगवान शिव जी के माता पारबती जी ल बिहाव के पहिली परीक्षा लेके के सेती घलो कारण बताथे। जेमे शिव जी रूप बदल के पारबती जी के परीक्षा लेवत दान मांगथे। दूसर किवदंती धरती माता के बड़हर किसान मन के परीक्षा लेवई घलो हरे। जेमे एक पहित अकाल पड़थे तब किसान-मजदूर मन बड़हर मन के कोठी-डोली म तो अन्न ल भर देते। लेवई-देवई, करजा-बोड़ी म सबो अनाज सिरा जाथे। पर उँकर मन बर कही नई बचे। जम्मो झन मन मिलके धरती दाई के पूजा पाठ करिन। उँकर पूजा ले खुश होके धरती दाई परगट होईस। किसान-मजदूर मन जय-जयकार करत अब्बड़ खुश होइन। धरती दाई बड़हर किसान मन ल चेतात किहिस कि अपन कोठी के अनाज ल छोटे किसान-मजदूर मन ल दान देके इंकर सहयोग करत रहव। तभे तुंहर अकाल ल सिराही। बड़हर मन धरती दाई के बात मानिस, अउ दान देय के तिहार शुरू होइस। परगट दाई ल शाकम्भरी देवी के रूप मानत आज घलो ओकर जयंती समारोह मनावत धरती दाई के कृतज्ञ करथे।


पहली छेरछेरा म बाजा,मोहरी, पेटी,तबला, बेंजो के धुन म बिधुन डंडा नाचत गावत छेरछेरा तिहार मनाये। एक झन कांवर ल अनाज धरे बर बोहे रहय। दाई-माई मन सुवा गीत गावत अपन दल बनाके छेरछेरा मांगे बर जाए। स्कूल म गुरुजी मन लईका मन संग जाए अउ मिले अनाज ल बेच के स्कूल के लईका मन बर जरूरी समान ल लेवय। अब सबो सुविधा होय के बाद घलो इंकर रंग म कमी होवत हे। अब येकर परती ज्यादा ध्यान नई दिखे। फेर गाँव म आज घलो हमर ये संस्कृति जीयत हवय।


येकर सकलाये जम्मो अनाज ल एक दिन सुभीता होके या बाजार-हाट के दिन सांझ के बेरा पारा भर के मन रान्ध के खाये के घलो रिवाज हवय। जेला रावण भात घलो कथे। ऐमे जतिक झन के दल रथे उतिक घर के मन शामिल होके बढ़िया भात-साग खाथे। अईसन ढंग ले हमर छत्तीसगढ़ी संस्कृति ह एक-दूसर के सहयोग, परेम, सद्भाव ले भरे सुनता के डोर ले बंधाये हवय।


        हेमलाल सहारे

मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव

Saturday 20 January 2024

रोज एक पुड़िया नानकुन कहानी -

 रोज एक पुड़िया 

नानकुन कहानी -


"रिपोट लिख साहेब "


" क्या हुआ? "

थानेदार पूछिस

"बहुत मारपीट करथे साहब "

रमसिला कहिस l

"कौन करता है?"

मोर आदमी साहब "

"हम क्या कर सकते है?ये तुम्हारा आपस का मामला है l "

"कुछ करो साहब  "

"किस कारण से?"

"कुछु कारन नई साहब

दारू पीके l"

ठीक है देखते है जाओ l

 "रिपोट लिख  ना साहेब? "

लिख लेंगे l थानेदार के हुकुमl अकड़ जादा l

रमसिला  के अंतस रोवत रहिस  l निरबुद्धि  होये के बाद काया माया के मोह खतम हो जथे l हमेसा हमेसा के लिए  ---l


बिहान दिन

उही थाना म एक आदमी

जी सर

 "गलती होगे सर पता नई होइस अइसन करही के l

"क्या बक रहे हो? "

जी सरl 

"मोर औरत मर गे साहब "

"मर गईं कि मार डाले?"

"मर गे साहव जहर खाके l "

"जहर तुमने दिया? "

"नहीं साहब जहर खाके l"

क्या नाम है? "

सुन्दर l

मरी उसका नाम?

जी सर रमसिला l

थानेदार थोकिन चौकीस हड़बड़ा गे उही तो नोहय रिपोट लिख ना साहेब काहत रहिस l

"क्या नाम बताया?"

रमसिला सर l

ओ  तुम ही हो l

चलो बैठो गाड़ी मे l

आके देखिस

उही हरेl

"का होइस साहब? "

चुप रहो l सारा खेल तुम्हारा है लॉकअप म बंद कर दीस सुन्दर ला l

थानेदार भीतरी ले रमसिला के लॉकअप म बंद होगे

I रिपोट लिखें  रहतेव त ए नौबत नई आतिस l 


मुरारीलाल साव

कुम्हारी

मोर राम तोर राम कति करा ...

 मोर राम तोर राम कति करा ...

बुधारू –  भगवान राम आवत हे कहिथे बइहा .. गऊकिन कब दर्शन दिही अऊ हमन ला अहिल्या कस तारही ... । 

भकाड़ू – कइसे गोठियाथस जी तेमा ... राम कहाँ हे जेहा हमर उद्धार करे बर आही । 

बुधारू – तैं कइसे गोठियाथस बइहा । राम तो इँहे हे । तभे तो ओकर रेहे बर अतेक बड़ मंदिर बनइन हे । 

भकाड़ू – मंदिर म काय करही भगवान हा जी .. ?  मंदिर म खुसर जहि तहन उहाँ ले निकलही कइसे बइहा ... असन म काकरो उद्धार तो सम्भवेच नइहे । रेहेच बर बनवाना रिहिस त महल बनवातिन ... कम से कम उहाँ ले उँकर निकले के गुंजाइश तो रहितिस अऊ दर्शन के घला उम्मीद रहितिस । 

बुधारू – देख भाई । राम चाहे मंदिर देवाला म रहय या महल अटारी म .. । ओहा कब निकलही अऊ कब दर्शन दिही तेला कोन्हो कइसे बता सकत हे । ओला बताय बर बबा तुलसी चाहि ..... । तैं अऊ हम राम ला ओतके जानथन जतका बबा तुलसीदास हा बताए हाबे । ओहा केहे रिहिस .. कलयुग म राम के केवल नाव हा जीव के उद्धार बर पर्याप्त रइहि । ओकर दर्शन पर्शन के काय जरूरत .. ? 

भकाड़ू – त ... मंदिर काबर बनिस हे ... केवल ओकर खुसरे बर .. त असन म कोन तरही ? 

बुधारू – ओला में कइसे जानहूँ जी । तुलसी बबा हा ओकर बारे म कुछु नइ केहे हे । सुने म आहे के बड़े बड़े मनखे मन ओकर संग रहि कहिके .. । 

भकाड़ू – अरे भई । त अइसन म राम हा भगवान कहाँ बन पाही जी .. ओला भगवान बने बर नानुक मनखे के साथ चाहि । वहू पइत राम ला भगवान हमन बनाय रेहेन ... कति बड़े मनखे मन ओकर संग साथ रिहिन बता भलुक .. । दबे कुचले मनखे मन ओकर संग म रिहिन ... अऊ ओकर हरेक बुता म अपन हाथ बँटइन । पूरा देश के कति राजाधिराज हा ओकर सहायता बर अइस । हम जुड़ेन .. हम मरेन .. हम खपेन .. तब राम हा ... भगवान राम बनिस । हम मंदिर म बइठारे बर ओला भगवान नइ बनाय रेहेन ... । 

बुधारू – चुप रे । तोरे बनाये म राम हा भगवान बनही तेमा .. । बड़े मन जेला कहिथे तेहा भगवान बनथे बइहा । 

भकाड़ू -  वा कति बड़े हा ओला भगवान केहे रिहिस । बड़े मन तो ओला अपन दुश्मन समझय या साधारण मनखे ... । केवल हमीं मन ओकर भगवानियत म इवीएम कस विश्वास राखे रेहेन । ओहा महल ले बाहिर नी आतिस ते भगवान बनतिस का तेमा .. ? 

बुधारू - वइसे तोर बात म दम हे गुरू । फेर बड़का मन ये बात ला बहुत अच्छा ले जानथे के राम हा बाहिर म रइहि तब .. तुँही मनला फायदा देवाहि .. तेकर ले ओला एक जगा कलेचुप बइठार दे जाय जिहाँ तुँहर अमरना मुश्किल हे .. तब फायदा उही ला होही जे उहाँ तक पहुँच रखहि । ओकर बर महल बना देतिस तभो कतको ओकर तिर म ओधिया जतिन .. मंदिर असन पवित्र जगा म नानमुन के पहुँच बड़ मुश्किल हे बइहा । 

भकाड़ू – त एती हमर डहर .. कुछ मन जंगल म रेंगे बर ... रद्दा चतवार डरे हे किथे । 

बुधारू – ओकर रेंगे बर नी चतवारे बइहा .. अपन पाय बर चतवारे हे । राम ला रद्दा बताय बर लागही तेमा ... ओ जेती रेंग दिस तिही रद्दा हो जथे ... तभो ले जेमन अभू तक राम के अस्तित्व ला नकार चुके रिहिन .. जेमन राम ला काल्पनिक बतावत ओकर सेतु के मजाक उड़ावत रिहिन तऊन मन .. कागज म अबड़ अकन राम पथ गमन बनवा डरिन .. राम ला रेंगे बर बला डरिन .. राम अइस के निही ... हम नइ सुनेन फेर अभू उही मन .. वन गमन पथ के आड़ म राज भवन पथ तक अमरे के प्रयास म जुटे रिहिन । 

भकाड़ू – राम ओकरे तिर म रहि कहिके .. इही मन माता कौशल्या के मंदिर घला जोरदार बनवा डरे हे .. महूँ थोक थोक सुने हँव भई । राम आही तहन महतारी के गोदी म खेलही किथे बइहा .. । 

हा. हा .. कहत खलखलाके हाँसत रहय बुधारू हा । भकाड़ू भड़कगे । 

भकाड़ू – बने बताबे त हाँसथस .. ? 

बुधारू थोकिन सीरियस होगिस । लम्भा साँस भरत केहे लगिस । 

बुधारू – कुछ मन के राम केवल मंदिर के शोभा बन अयोध्या म विराजही अऊ कुछ के राम जंगल के रसता अमरके ... नानुक लइका बन महतारी के गोदी म फुदकही । ये दुनों राम हमर तोर बर नोहे बइहा ... । हमर राम हमर संग जंगल म जुठा बोईर खवैया आय .. खदर छानी के कुरिया म सुतइया आय .. हमर तोर कष्ट हरइया आय । अन्याय के विरोध म हमन ला खड़ा करइया आय । तोर हमर राम को जनी कति तिर म लुकाय हे बइहा .. ?  

भकाड़ू – के झन राम हे तेमा जी .. ? 

बुधारू – जे मनखे ते राम । काकरो बर केवल राम ... काकरो बर राम नाम ... काकरो बर राम नाम सत ... । 

भकाड़ू – अरे हम तो एके राम ला जानत रेहे हन बइहा ... इहाँ कोरी कोरी राम जनम धर डरे हे हमला जनाकारी नइ रिहिस । त कति राम ला मानबो जी हमन ... । फोकट म चऊँर देबो .. ससता म गैस ... फोकट म हर घर के लक्ष्मी ला पइसा देबो .. करजा माफी करबो ... अइसे कहवइया मन राम आय का जी ... ? 

बुधारू – चुप बइहा ... । येमन अपने देश ला बरबाद करइया आय । जइसे रावण हा अपन सत्ता ला बचाय बर हरेक उपाय म लगे रहय ... तइसने येमन सत्ता पाय बर उदिम करत रहिथे । 

भकाड़ू – अरे हम इही मनला राम समझगे रेहे हन । त राम हा मंदिर म अमरके बइठ जहि तहन राम राज तो आबे करही बइहा .. ।       

बुधारू – चल चुलागे हस का जी । राम हा राज करे बर नइ आवत हे केवल मंदिर देवाला म बिराजे बर आवत हे । रिहिस बात इहाँ राज करइया के ... ओमन राम थोरेन आय बइहा । ओमन रावण आय जेकर दसो ले जादा मुहुँ बन चुके के । ओ पइत रावण हा राम के रूप धरे के हिम्मत नइ करिस .. अभू के मन रोज छद्म रूप धरत हे । तभे तो हमन कन्फ्यूजिया जथन । इँकर रहत ले का  राम आही अऊ का ओकर राज .. । राम आवत होही जरूर फेर ओकरे संग रेंगे अऊ रेहे बर आवत होही जेला सत्ता तक पहुँचे बर ओकर आवसकता हे । वाजिम म राम केवल सतयुग म रिहिस बइहा । अभी केवल ओकर शोर हे ... अऊ कुछ निही । बाबा तुलसी हा ओकरे सेती राम ला दुनिया ले बिदा करदे रिहिस ताकि कोन्हो ओकर उपर अपन अधिकार झन जताय सकय । फेर ओला नाम म जिंदा इही पायके राखिस ताकि तोर हमर कस हरेक मनखे उही नाव ला ले सकय । रिहीस बात राम राज आय के .. त ओ तो हमर देश म बिगन राम के रेहे पहिली ले हाबे ... । 

भकाड़ू – कइसे धँवाथस भइया । राम राज पहिली ले हाबे कहिथस .. ? 

बुधारू – अरे मोर भाई .. राम राज म कन्हो मनखे ला कोनो किसिम के दुख रिहिस का .. ?  नइ रिहिस ना ... । अभू घला निये । तिहीं देख ... जेकर जतका मन ततका .. सब खावत हे .. । भरे पेट म तो खवई के मजा कुछ अलग हे तेकर सेती .. भरे पेट वाला मन कुछ जादा मजा लेवत खावत हे .. अऊ पचो घला डरत हे । रेहे बर उँकर तिर .. केऊ ठिन घर कुरिया ... । नंगरा रेहे के सुख तैं का जानबे ... कपड़ा के काय आवसकता ... ?  हमर दई बहिनी मन रावण के घर तको सुरक्षित रहि जात हे । 

भकाड़ू – तहूँ न भइया ... सरकारी पोसहा कस गोठियाथस । कतेक मनखे बिगन खाय मरत हे तेहा तोला दिखत नइहे ... ?  बिगन घर रहत हे अऊ बिगन कपड़ा उँकर हाड़ा काँपत हे । 

बुधारू – मरत हे कहना ... फोकट बात आय । सत्ता बर कुलबुलावत विपक्षी कस आरोप लगाथस । खाय बर अतेक आश्वासन रोज मिलत हे ... तभो ले मनखे मर जही .. तेमा राम के काय दोष । रेहे बर कागज म लाखों घर बन चुके हे अऊ बनइया हे .. रहवइया नइ मिलत हे .. । हरेक पाँच बछर म जलसा होथे .. तेमा पहिरे बर गाड़ा गाड़ा कपड़ा .. । अतेक के पाछू मनखे मरत हे तेमा राम काय करही । अतेक मिलत हे उही ला आँखी मुंद के देखत .. हमू मन तो जियत हन का । राम राज नी होतिस त तोर हमर अइसन जीना सम्भव रिहिस का तिहीं बता ... ?   

भकाड़ू – हम पढ़े लिखे नोहन गा । तोर अतेक गूढ़ गोठ नइ समझ सकन .. फेर अतका समझ गेन के राम के राज म सब सुखी रहिथे .. । फेर राम संग कति मेर हमर तोर भेंट होही भइया .. ।   

बुधारू ‌-  भेंट वेंट ला छोंड़ अऊ राम ला येती ओती झन खोज .. राम हमरे भितरि म हाबे बइहा .. । राम ला बाहिर खोजे के आवसकता नइहे बइहा । बाहिर के राम तोला हमला भौतिक सुख दे सकत हे फेर अभू केवल रावण मन छद्म राम बनके हमर तोर तिर अमर जथे अऊ हमला भरमा देथे । सतयुग म रावण हा छद्म राम भले नइ बन सकिस फेर कलयुग म रावण हा रोज राम के पाठ करत दिख जथे । ओ पइत रावण हा डर्राय के राम के चोला पहिर लेहूं ते रावणत्व झन सिरा जाय .. ।       

भकाड़ू – हव भइया ... हमन असली राम ला खोज के बाहिर लाने के उदिम तो हरेक पाँच बछर म करथन ... फेर ओला कोन छेकथे समझ नइ आवत हे ।  

बुधारू – मंथरा हा छेकत हे बइहा । ओहा प्रायश्चित करत हे ... ओ पइत भितरी म रहन नइ दिस .. ये पइत बाहिर म निकलन नइ देवत हे । इही ला पहिली पहिचान के अलगियाना हे तभे तोर हमर मुलाखात अपन राम ले होही ... निही ते दूसर के राम के जै बोलावत भर रहिबो ... मिलना जुलना कुछ निही । 

भकाड़ू – बने बताय भइया । राम कति करा हे तेला उदिम लगाके खोजबो बइहा .. । फेर आज हमर भांचा राम के मंदिर बने हे ... चल पूजा के नेवता हे .. जाबो .. । 

बुधारू – का पता कति राम के मंदिर आय .. फेर हम एके राम ला जानथन जेहा हमर भांचा आय .. हमर खेवनहार आय .. हमर पालनहार आय ... जेकर नाव लेहे म दुख मेटा जथे ... । जेकर राज म मेहनत करइया ला मेहनत के पूरा फल मिलथे .. जेकर राज म हरेक मनखे के हाथ म बुता अऊ तब ओकर पाछू हरेक मुहुँ म चारा .. उही राम बर कुछ उदिम हो जतिस ते .. बपरा घला कुछ बछर सुरता लेतिस ... । 

भकाड़ू – तोर राम मोर राम कति करा हे तेला तो हम नइ जान सकेन फेर जे राम दुनिया म हे तेला हम भांचा बनाके अइसे मया दुलार देबो के .. तोर हमर दुख ला धूर करे बर .. हमला लड़ना सिखाय ला परही .. हमला अन्याव के विरोध म खड़े कराय ला परही । 

बुधारू – चल छोंड़ यार भकाड़ू ... । कहूँ तिर जाय जुवाय के आवसकता नइहे .. इँहे ले आवाज लगाथन .. । राम तैं कति करा हस ... सुनही तहन आबेच करही । 

  

हरिशंकर गजानंद देवांगन .. छुरा .

रोज एक पुड़िया नानकुन कहानी " झन ठोनक"


 

रोज एक पुड़िया 

नानकुन कहानी 

 " झन ठोनक"


"मस्त रहो बढ़िया रहो आनंद से जिओ l" रास बिहारी मंदिर म जाके भगवान के हाथ जोड़के 

मोहनी पाँव परिस त आशीर्वाद मिलिस l

महराज के असिस बचन सुनके मोहनी के मन बदलगे l

" भज मन प्यारे,

            हरि हरि बोल "l

मन उही डहर लोरघीयाये ल धर लीस मोहनी के l

मोहनी ला देख महाराज के भजन के बेरा अउ बाढ़ जाथे l

    मोहनी के मन बाहिर अउ भीतरी ले  भजन मा रमे ल धर लीस  l संगत के रंगत चढ़थे  l

नारी परानी काला जोर से दबका के  कइही -"नियत ला बने राख l"

     उमर पैतालिस के होगे l सगा आही सगा आही l बिहाव बर सगा आइस फेर नई जमींस l मड़वा काला कहिथे नई जानिस ?

माँ बाप का करही l 

"अपन रद्दा म आये गेव l

मोहनी अपन पीरा ला गोठियायेस अस करिस गनेस करा l

गनेस बचपन ले जानत रहिस मोहनी ल l जात समाज के सेती कभू बात ल नई रखीस l नियत गड़े रहिस  भाग संग नई दीस l आखिर एक दिन मौका पाके पूछ परिस -"मोहनी थोकिन सुन l अकेल्ला कतेक दिन ले रहिबे?"मोला अउ ठोनक झन गन्नू l"

"मोर भीतर म अब सँसो घलो नई हे l "     सँसो रहिस  तोर बर "तै मोला नौकरी  लगन दे काहत -काहत उमर ला निकाल देस l  तोर नौकरी घलो नई लगिस न बिहाव करे के मन बनाये जोगी जोगड़ा होगेस l

"अभी का बिगड़े हे तेमा? गनेस कहिस l "

" बिगड़ गे ?  जिए के आस के रद्दा ल बदल देंव l"  महाराज के गऊ गोठान म आगे हँव l

गाय बछरु के सेवा करहूँ l

"बिन असीस के धरम करम पूरा नई  होवय l "

"उही बात ला अब एती झन ठोनक l "

" सुक्खा कुंआ ले पानी नई  निकलय मया  मर गे हे l "

आश्रम के मतलब  आसा कर अउ शरम कर अतका कहिके गनेस चल दीस l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

छत्तीसगढ़ अउ भांचा राम - ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

 

छत्तीसगढ़ अउ भांचा राम 


                 - ओमप्रकाश साहू "अंकुर"


    त्रेता जुग म पवित्र सरयू नदी के तीर म बसे अयोध्या म महान प्रतापी राजा दशरथ राज करत रिहिन।  राजा दशरथ के पूर्वज मन के अब्बड़ सोर रिहिन हे। येमा  राजा रघु,राजा दिलीप, राजा शिवि, सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र, महा प्रतापी अज , भागीरथ अउ आने राजा के नांव सामिल हे। सूर्यवंशी राजा दशरथ के तीन झन रानी रिहिन जेमा कौशल्या सबले बड़की,कैकैयी मंझली अउ छोटकी रानी के नांव सुमित्रा रिहिन। राज पाठ सुघ्घर चलत रिहिस। राज्य ह धन - धान्य ले संपन्न रिहिस पर राजा दशरथ के एको झन बेटा नइ रिहिन। इही हंसो  ह राजा ल घुना कस खाय जात रिहिन। अपन ये परेसानी ल अपन कुल गुरू  वशिष्ठ के पास रखिस त राजा ल सलाह दिस कि राजन् येकर बर पुत्रेष्टि यज्ञ कराव। ये यज्ञ करे बर सबले बने महान तपस्वी श्रृंगि ऋषि रहि। ये ऋंगि ऋषि छत्तीसगढ़ के सिहावा पहाड़ी क्षेत्र म तप - जप म मगन राहय। ये इही सिहावा पहाड़ी आय जिहां ले छत्तीसगढ़ के जीवनदायिनी नदी महानदी निकले हे। राजा दशरथ ह ऋंगि ऋषि कर जाके कलौली करिन कि हे महान तपस्वी आप मन मोर बिनती ल स्वीकार करके पुत्रेष्टि यज्ञ करहू त मंय ह आप मन के जिनगी भर आभारी रहूं। श्रृंगि ऋषि ह राजा दशरथ के घर जाके पुत्रेष्टि यज्ञ करिन येकर फलस्वरूप बड़की रानी  कौशल्या ह 

रामचंद्र लला, कैकैयी ह भरत अउ सुमित्रा ह लक्ष्मण अउ शत्रुघ्न जइसे हीरा बेटा पाइन। येमा राम ह विष्णु के सातवां 

 अउ लक्ष्मण ह शेषनाग के अवतार माने जाथे। 

कतको इतिहासकार मन के मानना हे कि हमर छत्तीसगढ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र जी के महतारी कौशल्या के मइके हरे। छत्तीसगढ़ के जुन्ना नांव कोसल रिहिस अउ इहां के भाषा ल कोसली कहे जाय। कौशल्या के नांव भानुमति रिहिन जउन ह दक्षिण कोसल के महाप्रतापी राजा भानुमंत के बेटी रिहिन। अयोध्या के महाप्रतापी राजा दशरथ ले वोकर बिहाव होइस। भानुमति कोसल प्रदेश के होय के कारन आगू चलके कौशल्या कहलाइस। आदिकाल म छत्तीसगढ़ महाकोसल के नांव ले प्रसिद्ध रिहिस हे। श्रीराम के जनम भूमि अयोध्या हरे अउ ननिहाल छत्तीसगढ़ के चंदखुरी (आरंग)गांव हरे। हर लइका बर ममा गांव के अब्बड़ मया रहिथे त भगवान राम ल कइसे नइ रहि। येमा दू मत होय नइ हो सकय कि भगवान राम ह अपन नाना गांव नइ आइस होही।कतको बार नानपन म आइस होही। ये स्भाविक बात ये। त हम देखथन कि भगवान राम अपन नानपन म हमर छत्तीसगढ म आके अपन बाल सुलभ लीला चंदखुरी गांव म घलो दिखाइस। ये चंदखुरी गांव म महतारी कौशल्या के बड़का मंदिर हे। ये जगह ह लोगन मन के आस्था के बड़का केन्द्र हरे अउ अब पर्यटन स्थल के रूप म अपन एक अलग पहिचान बना लेहे।


 हमर छत्तीसगढ के महत्तम मअउ बढ़वार जाथे जब ये जाने ल मिलथे कि भगवान राम ह अपन  चौदह बछर बनवास म बारह बछर तो इहि छत्तीसगढ़ ( सिहावा) राज्य म वो समय के सप्त ऋषि क्षेत्र म बिताय रिहिन। त ये प्रकार ले हमर छत्तीसगढ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरनरज ले पवित्र होय हे। तेकर सेति हमर छत्तीसगढ म भगवान राम ल भांचा राम कहे जाथे। अउ येकर असर हमर छत्तीसगढ के संस्कृति म देखे ल मिलथे। इहां के लोगन मन अपन भांचा - भांची ल भगवान कस मानथे। चरन छूके प्रनाम करथे। बिहाव से लेके कोनो खुशी के आयोजन हो या जिनगी के अंतिब बेरा होय भांचा - भांची ल अपन शक्ति अनुसार दान जरूर करथे।


 संत कवि पवन दीवान जी महतारी कौशल्या के जनम भूमि चंदखुरी के उद्धार अउ माता कौशल्या शोध पीठ बनाय बर अब्बड़ उदिम करिन। दीवान जी ह काहय कि - " भगवान राम हमर छत्तीसगढ के भांचा आय। चंदखुरी वोकर ममा गांव आय। तभे तो हमन   कहिथन -"कइसे भांचा राम। सब बने बने भांचा राम। ले तूही मन बताव ग कोनो मन कहिथे का कइसे भांचा कृष्ण। अउ मानलो कहूं कोनो अइसने कहि दिस त वो कहइया ह ल कहू !" अइसे कहिके दीवान जी ह जोरदार ठहाका लगाय।

  हमर छत्तीसगढ म भगवान राम ह जन -जन अउ सबके मन म बसे हे। इहां राम भगवान ले जुड़े कतको आयोजन होथे। छत्तीसगढ़ के सबो गांव म रामायण मंडली हावय जउन मन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के गुनगान अपन सामर्थ्य अनुसार करथे। अउ ये प्रकार ले गोस्वामी तुलसीदास बाबा के रामचरित मानस के संदेस ल जन - जन तक पहुंचाथे।नवा मकान म गृह प्रवेश होय,षट्ठी होय या दशगात्र बेरा राम नाम के चर्चा रामायण मंडली के माध्यम से या रामधुनी मंडली के माध्यम ले होथे। जिहां गीत- संगीत ले वातावरण ह भक्तिमय हो जाथे त दूसर कोति मानस टीकाकार मन राम के चरित्र के गुनगान कर परिवार,समाज अउ देस हित बर संदेश देथे। हमर छत्तीसगढ म रामधुनी प्रतियोगिता, राम सत्त , मानस गान स्पर्धा/ मानस सम्मेलन, नवधा रामायण, राम लीला के आयोजन कर भगवान राम काबर मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाथे।भगवान राम ह वर्तमान बेरा म काबर प्रासंगिक हे।ये सब बात ल जोड़ के लोगन मन ल सही रस्दा म चले बर सीख देय जाथे। हमर छत्तीसगढ म रामनामी संप्रदाय के लोगन मन अपन पूरा शरीर म राम नाम के गोदना गोदाय रहिथे। अत्तिक आस्था हे भगवान राम बर। भगवान राम सबके हरे। महर्षि बाल्मीकि अउ गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार राम सगुन रूप म हे। जब- जब समाज म अतियाचार बाढ़ जाथे। जब- जब अपन महान धर्म ल हीनमान करे जाथे त भगवान विष्णु ह नर रूप म अवतार लेके पापी मन ल मारथे अउ हमर महान धर्म अउ संस्कृति के रक्षा करथे।

त दूसर कोति देखथन कि कबीर के राम निर्गुण हे। कबीर के राम कोनो मंदिर अउ पथरा म नइ हे वो तो घट -घट म विराजमान हे। निराकार हे। सबो जगह वोकर उपस्थिति हे। कबीर ह धर्म के नांव म दिखावा करइया अउ येकर आड़ म

 म लड़वइया पाखंडी मन ल जम के लताड़िस।


  राम सबो झन के हरे। वो कौशल्या के राम हरे त कैकेयी बर भगवान हरे। राजा दशरथ के घलो परान हरे। वोहा अयोध्या के मान हरे। भाई भरत , लक्ष्मण, शत्रुघ्न बर महान हरे। केंवट , सबरी माता, अहिल्या, जटायु के उद्धारक हरे। ऋषि - मुनि अउ सज्जन मन के रक्षक त अत्याचारी ,पापी मन बर महाकाल हरे। 

हनुमान के भगवान हरे त सुग्रीव अउ विभीषण के सुघ्घर मितान हरे। ताड़का, मारीच, बाली, कुंभकरण, रावण जइसन राक्षस अउ अहंकारी मन के संहारक हरे। जनकनंदिनी सीता के मर्यादा पुरुषोत्तम राम हरे।जेकर मान राखे बर अहंकारी रावण ल संहारे। राम कैकेयी,मंथरा ल ढांढस बंधवइया वो राम हरे जेहा दूनों ल ये श्रेय देथे कि राम ल मर्यादा पुरुषोत्तम बनाय म तुंहर मन के हाथ हे नइ ते मंय तो सिरिफ अयोध्या के राजा बस कहलातेंव।

    हमर छत्तीसगढ म उत्तर दिशा के सरगुजा ले लेके  दक्षिण दिशा के सुकमा तक भगवान राम ले जुड़े ठउर अउ जुन्ना अवशेष मिलथे जेमा लोगन मन के आस्था जुड़े हावय। हमर राज्य म भगवान राम ले जुड़े पछत्तर ठउर मन के पहिचान करे गे हावय।येमा सीतामढ़ी - हरचौका ( कोरिया), रामगढ़ ( सरगुजा), शिवरीनारायण ( जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया ( बलौदाबाजार - भाटापारा), चंदखुरी ( रायपुर), राजिम( गरियाबंद), सिहावा सप्त ऋषि आश्रम ( धमतरी), जगदलपुर ( बस्तर) व रामाराम ( सुकमा) सामिल हावय‌। भगवान राम के बनवास ले जुड़े कतको ठउर मन ल सहेजे अउ पर्यटन स्थल के रुप म बढ़वार करे खातिर पहिली के कांग्रेस सरकार ह श्रीराम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना बनाय रिहिन। काम घलो चालू करिन।

   अभी देखे ल मिलत हे कि बाइस जनवरी के दिन भगवान राम के जनम भूमि अयोध्या म श्रीरामलला के मूर्ति के प्रान प्रतिष्ठा करे जाही। मोदी - योगी के शासन काल म होवत ये बड़का आयोजन ले सिरिफ अयोध्या ह नइ पूरा देस के संगे -संग आने देस मन घलो राममय होगे हे लागत हे। त अइसन सुघ्घर बेरा म भगवान राम के ममा ठउर छत्तीसगढ़ ह कइसे अछूता रहि। छत्तीसगढ़ ह अपन भांचा राम के मूर्ति ल मंदिर म करीब पांच सौ बछर बाद फिर से स्थापित करे के बेरा म उछाह ले भर गे हावय। भगवान राम के ननिहाल हमर छत्तीसगढ ले अयोध्या म आयोजित बड़का भंडारा खातिर बासमती चउंर , किसम- किसम के सब्जी के संगे संग सहयोग राशि पठोय गे हावय। इहां के सबो शहर अउ सब गांव राममय होगे हे।किसम किसम के आयोजन होथे। जय सिया राम।


           ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

         सुरगी, राजनांदगांव

Wednesday 17 January 2024

नानकुन कहानी - एक म एक फिरी

 नानकुन कहानी -


   एक म एक फिरी

हाट बजार म बिकट भीड़ बिकट आवाज चारो कोती l

आलू- प्याज़ वाले अलग चिल्लावत हे -पचास रुपिया किलो चले आओ l 

मुरई -पताल वाले अलग  - सौ रुपिया म ढाई किलो l चड्डी बनियाईन वाले अलग l जूता चप्पल वाले एक जोड़ी म एक फिरी l वो रेंगत हे धकियावत

कोनो ककरो गोड़ ला खुंदत l

वो गारी देवत हे -देखना रे अंधरा l देखत नई हस अतेक भीड़ हे l देख के रेंग l

 बजार म घलो शिक्षा शास्त्री मन के खैर नहीं l

सबके मुँह ले एक ही बोल देख के रेंग l

रेंगे के क़ानून पुलिस मन घलो कतेक ला दिही अउ कइसे दिही? डेरी हाथ कोती चलो

सोझ चलो देख के चलो l

दे हाथा पाही एक दूसर ऊपर

अरे अरे  कहत एक झन चिल्लाईस - झगरना लड़ना हे बजार ले बाहिर म जाओ l

एक म एक फिरी कहिके एक जोड़ी चप्पल भर ला दीस l

मानस व्याख्याकार मन घलो फेल?का समझाही? बजार म का- का,कइसे - कइसे बेचे के टिरिक अपनावत हे l

एक गारी देवत हे एक फिरी l

एक हाथ जमावत हे एक हाथ फिरी l एक हुद्दा मारत हे एक हुद्दा फिरी l बजार के नवा संस्कृति  बने पनपत हे l 

मर्यादा ला कोन लिही? का नियम बनही?बने मैनखे घलो खोजत हे-

एक म एक फिरी l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

नानकुन कथा - सुवा का हुआ?

 नानकुन कथा -


सुवा का हुआ?


हमर  गाँव नानकुन रहिस अब बड़े गाँव होगे l फेर रुख राई कम होगे l एके ठन रुख बाँच गे हे तरिया के पार म l उही रुख म सब सकलाके रहिथन l बांचे खोचे  उड़य्या जीव मन l

उहू म छदर बदर l कऊंवा   जेला कोनो नई पकड़य l बामहन चिरई लरे परे l कोकड़ा के आँखी आये हे आँखी म नई दिखय l सिलहाई,पड़की, परेवा,मैना  नंदागे lसुवा अपने जी लुकाये रहिथे दू चार ठन l रहिथन मनभेद अउ मत भेद म l बिचारा बुढ़वा कऊंवा अपन गोठ ला बताइस l

मुश्किल म जियत हन मैनखे के राज म l क़ानून ऊपर क़ानून बने हे फेर हमरे बंस नष्ट होवत हे l जिए के लाइक नई रहिगे l दू चार कऊंवा  काँव -काँव करे ल धर लीस l

एक ठन सुवा कहिस तुंहर काँव काँव ले सब हलाकान हे आदत नई सुधारत हव l अतका कहिके अलगियागे l

रुख के तरी म दाना बगरे देख परिस सुवा चारा चरे बर उतरगे l  मिठ -मिठ करथे मिठ मिठ कहिथे उही ला सब पोटारथे l

 कुछ बेरा बाद सुवा के टर्र टर्र अवाज सुनाइ दीस l

सियानहा पूछिस - सुवा का हुआ? जाल म फंस गेव l

अब का करबो? अपन रंग रूप ला देख के सम्भल के रखना चाही ना l  बने बने ला सब छांट निमार लेथे जांसा फाँसा करके l  मीठ -मी ठ करे मटकाये  तै जान?

ओखरे सेती हमन काँव  करथन कोनो पकड़य नही l

फेर करिया अन कोनो भावय नहीं l

सुवा  तोला बहुत चेतायेन संघ म राह l करिया संग म रहिथेच मन जोर के अइसन नई होतिस lसुंदरी ऊपर सबके नजर रहिथे  गेंग रेप असन l

तोर संग अच्छा नई हुआ

सुंदरी सुवा!!


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

रायपुर, २५ अक्टूबर,

 रायपुर, २५ अक्टूबर,      

        आज २५ अक्टूबर के दिन राजधानी रायपुर के प्रेस क्लब म 'सुरता' कार्यक्रम के आयोजन कर पुरखा साहित्यकार श्री मेहतर राम साहू जी ल उँकर पुण्यतिथि म सुरता करे गिस। सुरता के ए चौदहवां आयोजन रिहिस। जउन एकर पहिली ए आयोजन बागबाहरा म होवत रहिस। जेकर माई पहुना रहिन डॉ. बिहारी लाल साहू वरिष्ठ साहित्यकार, अध्यक्षता करिन भाषाविद् अउ साहित्यकार डॉ. चित्तरंजन कर अउ खास पहुना म देवधर महंत, रामेश्वर शर्मा, कुबेर साहू, पद्मश्री अनूप रंजन मन रहिन। 

      सुरता के ए आयोजन शुरुआत पहुना मन डहर ले पूजन अर्चन दीप प्रज्वलन अउ श्री सुरेन्द्र मानिकपुरी कोति ले संगीतमय राजगीत के प्रस्तुति संग होइस। एकर पाछू पधारे पहुना मन के अक्षत-टीका लगा के पारंपरिक रूप ले स्वागत करे गिस। श्री मेहतर राम साहू गुरुजी के लिखे सरस्वती वंदना के सुरेन्द्र मानिकपुरी के गायन संग ए सुरता कार्यक्रम के विधिवत शुरुआत होइस। पुरखा साहित्यकार श्री मेहतर राम साहू के कृतित्व अउ व्यक्तित्व ऊपर मंचासीन पहुना मन अपन विचार रखिन।

      श्री देवधर महंत ह अपन प्रशासनिक सेवा के बखत उँकर ले भेंट अउ साहित्यिक आयोजन के सुरता करत उँकर मिलनसार सहज व्यक्तित्व ल सुरता करिन। रेडियो म उँकर लिखे गीत के प्रसारण के शोर घलव करिन। 

     श्री रामेश्वर शर्मा उन ल महापुरुष बतावत कहिन कि हरिठाकुर सरीखे पहिली पंक्ति के छत्तीसगढ़ के साहित्यिक महापुरुष रहिन। आप उँकर कृतित्व के चर्चा घलव करेव। उँकर कृतित्व म हास्य, व्यंग्य अउ निराशा के बीच आशा के समाय सुर के दृष्टान्त देव।

      ए बेरा म कुबेर साहू उन ल सुरता करत छत्तीसगढ़ी के प्रति समर्पित शख्स बतावत छत्तीसगढ़ी के अइसे शब्दकोष बनाय के जरूरत बताइन जेमा एके अर्थ के क्षेत्रीय चलन के जम्मो शब्द एक जघा आ जवय। 

         बस्तर ले आय पद्मश्री अनूप रंजन मन उन ल छोटे जघा ले निकले अउ निखरे बड़े रचनाकार बताइन।

      श्री चित्तरंजन कर उन ल महत्तम रचना के रचनाकार बताइन अउ उँकर रचना के सार्थकता ल रेखांकित करिन। श्री मेहतर राम के कृतित्व अउ व्यक्तित्व ल सरेखत ए आयोजन बर उँकर सपूत धनराज साहू ल बधाई देवत आप कहेव-अइसन आयोजन करे ले साहित्यकार के जिनगी बाढ़ जथे। 

      अध्यक्ष के अनुमति ले वरिष्ठ साहित्यकार नंदकिशोर शुक्ल मन छत्तीसगढ़ी साहित्य अकादमी के माँग करे के प्रस्ताव रखिन अउ एला सभा म स्वीकृति दे गिस।

      सुरता करे के ए बखत म श्री मेहतर राम साहू के किताब कउआँ लेगे कान ले के दूसरइया संस्करण के विमोचन करे गिस। संगेसंग वीरेन्द्र सरल के किताब ठग अउ जग के विमोचन घलव होइस। 

     छत्तीसगढ़ी भाषा के बढ़वार बर आज श्री मेहतर राम साहू सुरता सम्मान, श्री शिव निश्चिंत रायपुर ल, डॉ. नारायण लाल परमार सुरता सम्मान श्री वीरेन्द्र सरल व्यंग्यकार ल, ग़ज़ल खातिर पूरन जायसवाल, पठारीडीह ल पी. एल. कोरी सम्मान, डॉ. प्रभंजन शास्त्री सुरता सम्मान श्री चंद्रहास साहू कहानीकार धमतरी ल, श्री हरिकृष्ण श्रीवास्तव सुरता सम्मान ईश्वर साहू आरुग ल, अउ साहित्य संदेश सम्मान साकेत साहित्यिक समिति सुरगी, राजनांदगांव ल प्रदान करे गिस। ए सत्र के सफल संचालन मंच संचालक विवेक अग्रवाल करिन।

    मँझनिया जेवन के पाछू दूसर सत्र म उपस्थित कवि अउ रचनाकार मन कविता पाठ करिन। 

     ए कार्यक्रम म कतकोन गायक अउ साहित्यकार बंधुराजेश्वर खरे, विजय मिश्रा अमित, अरुण कुमार निगम, नरेंद्र वर्मा, अजय अमृतांशु, मनीराम साहू, डॉ रामकुमार साहू, पोखन लाल जायसवाल, ओमप्रकाश अंकुर, मीनेश साहू, हबीब खान, अनुराग द्विवेदी, चंद्रकांत सेन, दीपक तिवारी आदि उपस्थित रहिन।

      सुरता के अइसन आयोजन करे ले गुमनामी म साहित्य सिरजन करे पुरखा के कृतित्व अउ व्यक्तित्व साहित्य ल नवा दिशा दिही। खासकर के राजधानी म होय ले एकर गूँज दूर तक जाही, ए उम्मीद करे जा सकत हे।

       आयोजक श्री धनराज साहू उपस्थित पहुना अउ साहित्य प्रेमी मन के आभार प्रकट करिन।


पोखन लाल जायसवाल

एक कहानी हाना के ..... आठ हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा

 एक कहानी हाना के .....

         आठ हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा 

                    धरम करम पूजा पाठ अऊ जन कल्याण म , रात दिन अपन देहें ल होम देवइया नारायण के जिनगी म , सिर्फ एक कमी रहय । बिहाव के दस बछर पुरगे रहय , एको ठिन नोनी बाबू नइ नांदत रहय । जिनगी भर कठिन परिश्रम करके बनाये , बड़े जिनीस घर दुवार , मनमाने अकन खेत खार ला कोन संभालही , तिही फिकर म उनत गुनत रहय नारायण अऊ ओकर सुवारी सुपेलहिन हा । बपरी ला खाये अंग नइ लागय । पुरखा ले टिकला भाठाँ भुँइया के अलावा , कुछ नइ पाये रहय बपरा नारायण हा  , फेर अपन बाहाँ के बल म , रगड़ा टूटत मेहनत करके खूबेच सँपत्ति बना डरे रहय । नारायण सोंचय मोर पाछू , मोर सँपत्ति के खवइया नइ रहि , तेकर ले , अपन जिये खाये के पुरती बँचाके , सरी संपत्ति ला दान धरम म लगाय जाय । मंदिर देवाला बनवाये बर , कुआँ तरिया खनवाये बर , धरमशाला बनवाये बर , दान दक्षिणा करे लागिस । परोपकार म जगा जगा नाम कमइया , नारायण के मन के भीतर संतान नइ होय के दुख , घुना कस हिरदे ला छेदत रहय । देरानी जेठानी के ताना म , सुपेलहिन के देंहें अधियागे रहय ।  

                    भगवान के घर म देर जरूर हे फेर अंधेर निये । सुपेलहिन के कोख म , चौथापन म लइका नांदिस । लइका के जनम म बड़ खुशियाली मनइन । नाच पैखन , राम रमायन अऊ गाँव भर ला झारा झारा पक्की मांदी खवईस । हीरा बरोबर सुघ्घर लइका के नाव हीरानंद धरागे । दिखम म जतेक खबसूरत ततके गुन म घला अव्वल । देखते देखत पुन्नी कस चंदा बाढ़हे लगिस । पढ़हे लिखे बर आश्रम म भरती होये के लइक होगे । हीरानंद हा , आचार्य मन के सबले प्यारा चेला बन गिस । आश्रम म जम्मो चेला मनला , पढ़ई के अलावा काम काज के अऊ दूसर बूता घला सिखाय जाय । नांगर जोते से लेके धान लुवे तक के शिक्षा दीक्षा आश्रम म होवय । फेर हीरानंद के सुकुमार देंहे देख , हीरानंद ला नांगर जोते बर , माटी खने बर , कन्हो नइ कहय । हीरानंद के जुम्मा , आश्रम के बखरी के निंदई कोड़ई अऊ जतनई रहय । 

                    अपन अपन बूता ला जम्मो चेला मन बहुतेच जुम्मेवारी ले करय । तइहा तइहा के बात आय गा , जब तक लइका के शिक्षा पूरा नइ होय रहय तब तक , लइकामन आश्रम म रहय , कभू अपन घर दुवार म झाँके बर नइ जावय । आश्रम म पढ़त लिखत आठ दस बछर निकल जावय , तब तक ननपन ले आये , लइकामन के देंहे म , जवानी गेदरा जाय । शिक्षा पूरा हो जाये के पाछू , दीक्षांत समारोह म , लइका के ददा ला आश्रम म बलाके , लइका के गुण ला बताये जाये अऊ ओकर द्वारा आश्रम म करे काम काज के बखान करे जाय । काम काज के निपुणता , लोक बेवहार के दक्षता देख , लइका ला वापिस ओकर ददा के हाथ म सौंप दे जाय ।  

                    आश्रम म आये के पाछू , जब हीरानंद ला बखरी के बूता मिले रहय तब , बखरी एकदमेच ठन ठन ले सुक्खा निचट भर्री भाठाँ कस रहय । अपन मेहनत म , हीरानंद हा , पूरा बखरी भर साग भाजी बों डरिस । हीरानंद के मेहनत ले , साग भाजी के अतेक उत्पादन होय लगिस के , आश्रम के रहवइया मन खा नइ सकय । तिर तखार के बाजार म कोचिया मन , आश्रम के साग भाजी ला बेंचे बर लेगय । ओकर मेहनत म , नानुक बखरी हा बड़े जिनीस खेत म बदलगे रहय । खेत के चारो मुड़ा म , माटी के भाँड़ी खड़ा होगे । खेत भितरी म दू ठिन गऊशाला बनगे रहय । आश्रम म दूध दही के पूरा बोहाये लगगे । हीरानंद के नाव हा न केवल आश्रम म बलकी तिर तखार म घला प्रसिद्ध होगे रहय । अपन ददा नारायण के नक्शा कदम म चलत हीरानंद के गुन म , आश्रम के आचार्य मन घला गरब करय ।   

                     एक दिन वहू समे आगे , जब हीरानंद के शिक्षा पूरा होगे रहय । ददा नारायण ओला वापिस लेजे बर आय रहय । आश्रम के प्रधान आचार्य हा हीरानंद के गुन ला बतावत , नारायण ला आश्रम म , किंजारत रहय । सावन के महिना रहय । हीरानंद हा बखरी म , बलकरहा जवान कस माते रहय । तइसने म नारायण , प्रधान आचार्य संग बखरी म पहुंचगे । आधा बखरी म खीरा बोंवाये रहय अऊ अतेक फरे रहय के , ढेखरा मन .. फर के मारे , लदलदागे रहय । प्रधान आचार्य कहत रहय – हीरानंद के मेहनत अऊ ईमानदारी के परिणाम आय ये बखरी के सुघरता .......। जब ओ अइस ते समे , बखरी हा परिया परे रिहिस । सुकुमार लइका रापा नइ धर सकही , नांगर नइ जोत सकही , धीरे धीरे बखरी के बन बांदुर निंदत रहि सोचे रेहेन , फेर अपन मेहनत के बलबूता म नानुक बखरी ला बढ़ोवत बड़े जिनीस खेत बना डरिस । इही बखरी के कमई म आश्रम के बिकास के काम होये लगिस । 

                    बाते बात म गाँव के मुखिया घला आश्रम पहुंचगे । हीरानंद ला बलाये बर , आचार्य जी हा हाँक पारिस । घमघम ले फरे खीरा के ऊँच ऊँच ढेखरा के बीच ले आवत , गंइठाहा गंइठाहा हाथ गोड़ के , छै फुट के जवान देंहें हा , दिखत नइ रहय । तिर म अइस त , हीरानंद ला देखके नारायण ला विश्वास नइ होइस के , इही ओकर हीरानंद आय । दस बछर म बाप बेटा के भेंट होय रिहिस । मया पलपलागे । प्रेम हा आँखी ले धार बनके बोहाये लगिस । बाप बेटा के मिलन हा , पूरा आश्रम म प्रेम के राग भर दिस । हीरानंद के बिदई के बेर , आश्रम के चिरई चिरगुन गाय गरू तक रोय लगिस । प्रधान आचार्य के आँसू तक नइ थिरकत रहय । प्रधान आचार्य हा , बिदई म बड़ आशीर्वाद देवत आश्रम के नावा चेला मनला बतावत रहय के , हीरानंद हा कइसे सिर्फ खीरा ले शुरू करके , बखरी ला व्यवसाय बना दिस अऊ आश्रम ला चमका दिस । हीरानंद हा नावा चेला मनला अपन अनुभौ बतावत किहिस - जब वोहा पहिली बेर बखरी म निंगिस तब ओकर उमर सिर्फ दस बछर के रिहिस , बखरी म सिर्फ एक ठिन खीरा के नार .. जाम के रुख म चघे लामे रिहिस । बन बांदुर निंदत निंदत एक दिन एक ठिन खीरा फरे देख डरेंव । भुखागे रेहेंव , खीरा टोरे के कोशिस करेंव , खीरा हा पाक के पिंवरागे रहय फेर रुख म चघे नार अतका अरझे रहय के तिराबे नइ करिस । नार टुटगे । खीरा उहीच तिर के उहीच तिर लटके रहय । पेंड़ ला नवाये के कोशिस करेंव । जाम के रटहा रुख म चघे के हिम्मत नइ होइस । एक लबेदा कस के मारेंव , खीरा फूटगे , भुइँया म गिरके सनागे ओला खा नइ सकेंव । इही खीरा के बीजा हा बखरी भर बगरके , केऊ जगा नार बियार बनके अस फरिस के खीरा हा आश्रम ला आर्थिक फायदा देवावत ... व्यवसाय के प्रेरणा अऊ हिम्मत बनगे .. । 

               बिदई के समे .... बिदई लेवइया जम्मो चेला मनला , उँकर दस बछर के कमई के अर्जित पइसा म , खरचा काटके बचत पइसा ला , आश्रम के प्रमुख हा गाँव के मुखिया के हाथ ले बँटवावत गिस । हीरानंद ला कहींच नइ मिलिस । नावा चेला के संगे संग गाँव के मुखिया तको अचरज म परगे । आश्रम के बित्त बिभाग बतइस के , हीरानंद के कमई के एको पइसा जमा निये । मुखिया के प्रश्नवाचक मुहुँ देखके , आश्रम के प्रधानाचार्य बतइस के – आश्रम जबले बने हे तबले सबले जादा कमई , हीरानंद के द्वारा होहे ...... । हीरानंद हा मोला कभू झिन बताबे केहे रिहिस फेर , अभू गरब से मोला बताये म कोई हिचक निये के , येकर कमई म , हमर आश्रम के ओ लइकामन के खरचा चलथे जेमन शरीर ले असहाय हे अऊ जेमन कमा के अपन खरचा के पूर्ति नइ कर सकय । अऊ तो अऊ तिर के गाँव के गरीब मनखे मनला घला हीरानंद के पइसा के मदद जावत रहिथे । अतेक उपकार सुनके , सावन के बूंद तभो अतरगे फेर , न सिर्फ नारायण के बल्कि उपस्थित जम्मो झिन के आँखी के आँसू नइ अतरिस । भावभीना माहोल म .. अपन बात राखत .. मुखिया भरभराये गला म केहे लगिस - जइसे ओकर ददा हा समाज सेवा करके नाव कमइस तइसे हीरानंद हा घला नाव कमाइस बल्कि , ओकर ले दू डेंटरा उपराहा ओकर नाव होगे । जइसे एक ठिन खीरा के बीजा हा बखरी भर बगरके , आश्रम ला धन धान्य ले पाट दिस तइसने , हीरानंद हा नारायण रूपी आठ हाथ जगा म फरे खीरा के वो बीजा आय , जेहा नौ हाथ बगरके , समाज के बहुतेच भला करत हे । 

                    हीरानंद हा ददा संग अपन घर वापिस आगे । गाँव के लइका मन के पढ़हे लिखे बर अपनों गाँव म आश्रम बनवा दिस , गाँव के चिखला माटी गोटी के रसदा ला श्रमदान करके सुधरवा दिस , अकाल दुकाल के मार ले बाँचे बर , गाँव तिर के नरुवा म बांधा बना दिस अऊ ओकर पानी ला खेत तक अमराये बर नाली बनवा दिस । समाजसेउक नारायण के बीजा हीरानंद हा , बाप ले जादा परोपकार करके , बड़ नाव कमइस । जइसे नारायण हा , हीरानंद ला पाके गरब अनुभौ करिस , तइसने हीरानंद कस बेटा सबो के होय । मोर कहिनी पुरगे फेर अपन संतान के , बने बने बूता ले , दई ददा के चौंड़ा होवत छाती ला देख , इही बीजा के सुरता करत , अभू घला कहूँ कहूँ तिर सुने बर मिल जथे – आठ हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा ....... । 

                                                             हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

नानकुन कहानी - खार के बुखार

 नानकुन कहानी -

  खार के बुखार 

 अपन चीज बर सबके मया होथे l बेकार होगे तभो खराब होगे तभो l अपन चीज बर पीरा  होही l

बखरी के भांडी फूट गे रहिस l रमऊ कका के बारी के परदा डहर ले  रोज एक ठन गाय आये के घुस जाय अउ बखरी म लगाये साग भाजी ल चर दय l बड़की दाई चिल्लावय खिसयावय - "अपन गाय ला काबर बांध के नई राखे? " बलदू  के गाय आय l गाय गरु ल कोनो सीखा  -पढ़ा के नई भेजय? 

"पइधे गाय कछारे जाय l'

बद्दी के ओखी हरे l बलदू खार खाये बइठे हे l "

"केजऊ के पूरा गरवा मन धान ला चर डरे हे l"

"अतेक भारी नसकान के भरपाई ले के रहूं  बलदू सोच के राखे हे l "

केजऊ आखिर बलदू ल जाके कहिस -"अपन गाय ला बांध के राख  अपन घर म l"

बलदू  ललियाये आँखी म -" हाँ अपन के नसकान होवत हे त जियानत हे मोर खेती के चरी -नुसकानी  म आँखी मुंदाये रहिस l नुकसानी ल कोन दिही? ला निकाल l"  दूनो रोसिया ल धर लीन l 

"तोर दाई ----l  तोला  अभी देखावत हँव ---l"झगरा ल झारा झारा नेवतत हे l गोठ के मांदी कलेवा खाये धर लीन l गारी -गल्ला,औखर -तौखर बकई  सुनके सब सकलागे मोहल्ला भर l गोठान का बंद होइस? शान्ति भंग होवत हे l

भीतरी के जलन बाहिर म भभकथे  l

दूनो ला का बोलबो -का समझाबो? हम सब आज ले बलदू से अउ केजऊ से बोल चाल बंद करबो l दाई दीदी के मान मरजाद l नई देखिन नान नान लइका मन सुनत हे l इंखर खार बुखार के इही इलाज l

ए हमर फैसला हे

मोहल्ला वाले के l  दूनो अपन गाय गरू ला अपने घर म राखव l दैहान बरदी म भेजे के जरूरत नई हे l खार  ल  झन देखाव l सरकार घलो गोठान बर हाथ झर्रा देहे l

     केजऊ अउ बलदू  के मुड़ी म लाठी परे अस लागिस  l बात बिगड़े हे थिरावन दे l



मुरारी लाल साव

कुम्हारी

विमर्श के संग नवा उदिम आय: मोर अँगना के फूल

 विमर्श के संग नवा उदिम आय: मोर अँगना के फूल


छत्तीसगढ़ म साहित्य अउ साहित्य म छत्तीसगढ़ दू आने-आने गोठ आय। छत्तीसगढ़ म साहित्य, छत्तीसगढ़ म साहित्य के दशा अउ दिशा का हे? एकर आरो देथे। जेन ह छत्तीसगढ़ के साहित्यिक पुरोधा अउ आज के समय म स्थापित अउ नवोदित रचनाकार मन तक के साहित्यिक यात्रा के लेखा-जोखा बताथे। इहाँ के साहित्य के दशा अउ दिशा दूनो तय करथे। ... तब ले अब तक साहित्यिक यात्रा म सहयात्री बने लिखइया मन के आरो लेना, उन ल सरेखना, इहाँ के साहित्य के बढ़वार बर जरूरी हे। जेन म इहाँ के बुधियार मन अपन गुनान ले साहित्य सेवा करिन अउ अपन आखर के अरघ के आहुति दिन। नेंव रखिन। जेकर ले छत्तीसगढ़ ल साहित्य म एक पहिचान मिलिस, तभे तो हम बड़ गरब ले अपन पुरोधा साहित्यकार मन के नाम ले पाथन। साहित्यिक पुरोधा मन के संग अभी के बेरा म लिखइया स्थापित अउ नवोदित रचनाकार मन के साहित्यिक योगदान ले छत्तीसगढ़ साहित्य म मान पावत हे।

       अब गोठ करन, साहित्य म छत्तीसगढ़ के। साहित्य म छत्तीसगढ़ कहे के भाव हे- साहित्य के मूल म छत्तीसगढ़ दिखना। छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक, सामाजिक, प्राकृतिक, लोक-जीवन, आँचलिकता, माटी के महमहासी, प्रकृति के दर्शन जेन साहित्य म होही, उही तो साहित्य म छत्तीसगढ़ आय।

            छत्तीसगढ़ म जब कभू साहित्य के बात होही, हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार के रूप म नाम अलगे-अलगे लिए जाही। दूनो साहित्य म अतेक लेखक-कवि हें कि सब के नाम ल लिख पाना संभव नइ हे। चाहे हम हिंदी साहित्य म उल्लेख करन, चाहे छत्तीसगढ़ी साहित्य म। ए विमर्श छत्तीसगढ़ी साहित्य ऊपर केंद्रित रही, एकर बावजूद ए विमर्श के पहलइया डाँड़ म लिखाय दूनो गोठ ले हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो के साहित्य साधक के नाम आना च हे।

          छत्तीसगढ़ी साहित्य के गोठ करहूँ, अइसन म छत्तीसगढ़ी साहित्य के भंडार भरइया मन के नाम  लिखे ले कुछ नाम छूट जाय के डर हे। सेवा सेवा होथे, बस जनमानस के तिर जेकर प्रभाव जादा परिस उही बड़का ए। काखरो योगदान ल कमती अँकई ह बने नोहय। काबर कि प्रसंग के मुताबिक कमती योगदान ह घलव बड़े हो जथे। तभे तो घर म सुजी अउ तलवार दूनो रखे जाथे, फेर बउरई के बात आथे त जरूरत के मुताबिक एक ल चुने ल परथे। एके काज बर दूनो के प्रयोग न होवय अउ न संभव हे। 

        पं. सुंदर लाल शर्मा, लोचन प्रसाद पांडे, कोदूराम दलित, हरि ठाकुर, नारायण लाल परमार, भगवती सेन, डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा, पवन दीवान, लक्ष्मण मस्तुरिया, लाला जगदलपुरी, श्यामलाल चतुर्वेदी, जइसन कतको नाम हें, जे पहिली पंक्ति के नाम म शामिल हें। जेन मन आज घलव सरलग लिखत हें। इही नाम मन के संग आज निच्चट कलेचुप बिना ताम-झाम के लिखइया नवोदित नवांकुर मन घलव अपन मिहनत अउ समय के समिधा ले आहुति दे बर तियार हें। वर्तमान साहित्य अकास म स्थापित अउ नवोदित के नाम लिख के सूची ल लम्बा करना बने नइ जनावत हे। नाम के चक्कर म ए विमर्श कोनो अउ डहर म चल दिही।

         छत्तीसगढ़ म साहित्य अउ साहित्य म छत्तीसगढ़ ए दूनो के परछो देवत एक ठन किताब मोर हाथ लगिस- 'मोर अँगना के फूल' जे ह वसन्ती वर्मा के ५१ कविता मन के संग्रह आय। जेन ल डॉ. विनोद कुमार वर्मा मन विमर्श के संग नवा रूप दिए के एक नवा उदिम करे हें।  

         अइसे तो हर गीत एक कविता होथे, भले हर कविता गीत नइ होय। गीत म काव्य के वो सब सौंदर्यं होथे जउन कविता म चाही। रस, छंद, अलंकार, प्रवाह, यति सबे तो मिलथे गीत म। गीत अतुकांत कविता ले सिरीफ गेयता के मामला म अलग होथे। भाव बिगन तो काव्य के सिरजन होबे नइ करय। या कहन कि जेमा भाव नइ हे ओ काव्य होय च नइ सकय। 

           ५१ कविता मन के सकला (संग्रह) देख के पूर्व प्रधानमंत्री अइ कवि हृदय अटल बिहारी बाजपेई के 'मेरी इँक्यावन कविताएँ' के सुरता आइस, जेकर चर्चा खूब सुने हँव। ए अलग बात ए कि मैं वो किताब ल पढ़े नइ हँव। छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी साहित्य के गोठ बात अब पहिली ले कुछ जादा होय ल धर लेहे। अब साहित्यिक वातावरण बनत हे। २०१२ म प्रकाशित ए किताब के चर्चा कतेक हो पाय हे, मैं नइ जानँव। काबर कि तब निजी कारण ले मोर संगति साहित्य अउ साहित्यकार मन ले जादा नइ रेहे हे। अभी-अभी कोनो-कोनो साहित्यिक जुराव म जावत हँव।

         ५१ कविता मन के संग्रह के विमर्श म वसन्ती वर्मा के मूल कविता के संग छत्तीसगढ़ या छत्तीसगढ़ ले जुड़ाव रखइया ७२ अउ रचनाकार मन के कविता ल भाव साम्य विमर्श के संग पाठक के तिर परोसना अभिनव पहल आय। नवा उदिम ए। जे ए संग्रह ल विशिष्टता प्रदान करथे। ए किताब के भूमिका म डॉ. विनय कुमार पाठक किताब ल विमर्श के संग प्रकाशित होवइया छत्तीसगढ़ी के पहिली कृति बताय हें। ए संग्रह म सकेले गे गीत कविता मन के खास बात ए हे कि इँकर कुछ रचनाकार नवोदित हें त कुछ मन स्थापित पोठ रचनाकार हें अउ कुछ मन हमर धरखन आँय। धरोहर बन गे हें।

         किताब के नाम 'मोर अँगना के फूल' पढ़के हमर छत्तीसगढ़ी लोकगीत के लोकगायिका कुलवंतिन बाई मिर्झा के गाय गीत मोला सुरता आय लगिस। ....मोर घर के मुँहाटी म दसमत के फूल, फूले हावय लाली अउ गुलाबी..... तैं पूछत आबे...ये गीत म अपन मयारुक अउ हितु-पिरीतु ल बड़ मन ले नेंवता दे गे हे। एक संवाद हे। वइसने किताब के शीर्षक नाम ले किताब के तीसर रचना म कवयित्री वसंती वर्मा आनी-बानी के फूल मन संग अपन अनुभूति ल साझा करे हे। छत्तीसगढ़ के लोकजीवन म हर घर के अँगना म फूल महमहाथे। बाँटा म साँकुर होवत अँगना म आज काल गमला संस्कृति घलव आगे, फेर फूल जरुर मिलथे। गीत के आखरी डाँड़... लाली फूल गुलाब के, हाँसत हे चारों ओर...कोनो ल हाँसत देख के हाँसी आथे तभे तो केहे हे का... फूलों से नित हँसना सीखो।

       'मोर अँगना के फूल' के मुख पृष्ठ देख के पाठक इही अनुमान लगाहीं कि अँगना अउ फूल दूनो प्रतीक आय। कविता पढ़े ले अइसन नइ हे। फेर अँगना म लगे फूल बर वत्सलता तो रहिबे करथे। अइसन म कवयित्री के मनोभाव अउ संवाद बिरथा नइ हे। शीर्षक म अपनापन हे, आत्मीयता हे। जे हर छत्तीसगढ़िया के स्वभाव आय, त वसन्ती वर्मा एकर अपवाद कइसे बनही।

       रितु बसन्ती म प्रकृति चित्रण के संग छत्तीसगढ़ म होवत प्रगति या विकास घलव दिखथे। कवयित्री पर्यावरण के प्रति सजग हे, प्रकृति असंतुलन बर चिंतित दिखथें।

      उलुहा बेटी के गुहार कविता एक अजन्मे दुलौरिन के करुण बिनती आय। जेन म बेटी का कर सकथे एकर उदाहरण हे। इही कविता के विमर्श म मोर जइसे नवसिखिया के (२००१-०२ म लिखे) 'नई कविता' भ्रूण हत्या ल सरेखे हे। जेकर उल्लेख करे के मोह नइ छोड़ सकत हँव।

       आने से पहले उसकी/चल रही है/ घर पर बात।

उपाय सबको/सूझ रहा है/ कराने उसका गर्भपात!

इस नव आगंतुक का/ दोष/ सिर्फ इतना है/कि वह लड़का नहीं/एक लड़की है। 

पोखन लाल जायसवाल, (समन्वय वार्षिकांक २००२ पृ. ३१)

       अभिमन्यु कस

       तुमन के गोठ-बात ल

       चुप्पे-चुप सुनत रहें।

       कवयित्री वसन्ती वर्मा पौराणिक प्रसंग के बहाना समाज ल संदेश देना चाहथे कि कोख भीतर हे, वहू कुछ कहना चाहत हे, ओकरो कुछ सुनव अउ गुनव। 

        वसन्ती वर्मा खुदे एक नारी आँय। नारी के दरद का होथे? ओकर ले वो अनजान नइ हे। नारी के मन के बात उँकर रचना मन म देखे ल मिलथे। चाहे वो बात ददा घर ले बिदा के होय, तीजा तिहार के आरो म मइके के सुरता, भ्रूण हत्या म समाय महतारी के पीरा, महतारी के महिमा, बहुरिया बन नवा घर जा के दूनो कुल के ख्याल रखे के बात होय, त कभू काम बुता ले मयारुक ले दुरिहाय म विरह के गोठ सब वसन्ती वर्मा के गीत-कविता म दिखथें। 

       नवा बहुरिया के अपने आप ले संवाद अउ उँकर अंतर्द्वंद्व देखत बनथे-

      पैरी के रुन-झुन ह, मया पिरीत बाँटे।

      पीहर के भाग लिखे, मइके के लाज राखे।

      का-का ल बाँधौं, मैं अँचरा म आज।

      दुइधा म डारे हे, पैरी हर आज....

      एक डहर मइके के संस्कार अउ दूसर कोति ससुरार के जिम्मेदारी के बीच विचारथे कि अँचरा तो एक हवय अउ मैं दूनो कुल के लाज ल गँठिया के कइसे राखँव। मोला मोर पाँव के पैरी बिकटे भरमात हे। गँवई-गाँव म लोगन के बीच पैरी के जादा बजना ल बने नइ समझे जाय। इही मानथें कि वो मटका के चलत हे। रेंगत हवय। पैरी हवय कि चारी करथे। इहीच भाव ले नवा बहुरिया डर्रावत कहिथे- का का ल बाँधौं

       एक डहर संस्कृति, लोक-परम्परा अउ विरासत के सुग्घर समन्वय घलव वसन्ती वर्मा के सृजन म झलकथे। उहें समाज म व्याप्त विसंगति ऊपर उँकर कलम जम के आगी बरसथे। ताना मारथे।

      बेंदरन बइठिन कुर्सी म, पगुरावत करय तकरीर।

      बंदरोबिनास अउ बेंदरा बाट ह, बनगे हमर माथा के लकीर।

      विमर्श म प्रस्तुत देवधर महंत के छांदिक रचना देखव

     गोरस के होगे रे भइया, देख बिलइया साखी।

     सिंहासन ला पहिरावत हे, आज कलम हर राखी।

         उहें गरीबी ले पार पाय बर काम-बुता के तलाश म गँवई छोड़ शहर जवइया मन के मन के पीरा के चित्रण सुग्घर हे।

अकाली दुकाली के दिन म संगी,

मोरे जी ह घबराथे...

काम बुता नइ मिलै संगी, सबो हम ल ठुकराथें...

    विमर्श म प्रस्तुत श्यामलाल चतुर्वेदी के रचना देखन-

दिन दुकाल ल कई बछर, भोगत भोगत थर्राय गयेन।

थारी बटकी गहना गुरिया, ले गयेन हाय! सुर्राय गयेन।

       मया मयारुक के गोठ कवि मन के मन के विषय होथे। शृंगार के बिना उँकर लिखई अधूरा सहीं लगथे। कभू ए मया हाट-बजार म भेंट संग होथे, त कभू इही हाट बजार ले बिसाये जिनिस ले मयारुक के मन ल रिझाय के उदिम होथे। दूनो एके रचना म समाय हे

   तहूँ देखे मोला महूँ देखेव मोला।

   नैना ह लड़गे ओ सक्ती के हाट म।

   बस्तर नामक कविता म बस्तर के सुघरई के चित्रण हे, उहें बस्तर के पीरा कवयित्री के अंतस् ल झकझोर देथे, तब तो लिखथे-

   कइसे आही

   फेर सोनहा बिहान।

   जिहाँ सुनाही

   छत्तीसगढ़ महतारी के गान।

      एकर पहिली उन गागर म सागर समोवत बस्तर के पीरा ल लिखथें-

     कोनो ल कइसे समझाओं आज

     बस्तर के फेर लुकागे भाग।

     सुरेन्द्र दुबे के लिखे मैं बस्तर बोल रहा हूँ, इहाँ प्रासंगिक हे..

    मेरी बर्बादी का जिम्मेदार कौन है

    मेरे सवाल पर सियासत मौन है

    आप बहरे हैं, मैं गूँगा हूँ

    लेकिन मुँह खोल रहा हूँ

    मैं खामोश बस्तर हूँ

    लेकिन आज बोल रहा हूँ।

      किसान, किसानी अउ बादर के तपवना अतिवृष्टि अउ  सूखा, पूस के जाड़, शरद पुन्नी के चंदा, फागुन, के अलावा कतकोन विषय ऊपर वसन्ती वर्मा के कलम चले हे। जम्मो रचना के भाव पक्ष बड़ सजोर हवय। 

          २७ रचना अनुक्रमणिका के मुताबिक गीत हे, इँकर शिल्प के बात करन त गीत म गेयता तो मिलथे। फेर गीत जेन कलेवर बर जाने जाथे, ओ कलेवर गीत मन ल थोरिक अउ लाय के जरुरत हवय। गीत म पद अउ पद म तुकांत जरूरी हे। एक गीत म कम से कम तीन पद जरूरी होथे अउ हर पद के आखिरी डाँड़ के तुकांत गीत के पहलइया डाँड़ संग मेल खाना चाही। जुड़ाव नइ होय ले गीत के मधुरता थोरिक कम हो जथे। लय मात्रा के बराबर होय ले सध जथे, उन्नीस बीस घलव हो सकथे। पर ए किताब म मोला ए नजर नइ आइस। 

         नई कविता म अइसन शिल्पगत कमी नइ हे। नई कविता मन अपन भाव के संग प्रवाह अउ सशक्त हे। जापानी विधा के छंद हाइकू म लाजवाब हे। सिरिफ सत्रह अक्षर म अपन बात ल रखना बहुतेच कठिन बुता आय। कम से कम शब्द म जादा गहिर बात/गोठ कठिन होथे। भारतीय सनातनी छंद जइसे इहू छंद म तुकांत एकर संप्रेषण क्षमता बर सोने म सुहागा होथे। तंज कसना, व्यवस्था ल कटघरा म खड़ा करना, विसंगति ऊपर प्रहार हाइकू ल प्रभावी बनाथे। ए संग्रह के हाइकू मन शिल्प अउ भाव दूनो म खरा उतरथें

    कोला न बारी/ मिठलबरा नेता/ सब ले भारी।

    चोट्टा सियान/ कब आही देश मा/ नावा बिहान।

    बिन बोली के/ कौआ हे कि कोयल/ नि चिन्हाय जी।

      छत्तीसगढ़ के तीज तिहार, तुलसी, पुन्नी महात्तम, कबीर वंदना अउ झन भुलाबे रचना मन म एक वैचारिकी हवय। सांस्कृतिक, दार्शनिक अउ अध्यात्मिक भावबोध हें।

         ए किताब के मूल कविता वसन्ती वर्मा के हे, पर विमर्श म परखे अउ तौले के जतन अउ उदिम  डॉ. विनोद कुमार वर्मा के हे। विमर्श के पीछू के मिहनत ले किताब विशिष्ट बनगे हे। विशिष्ट ए खातिर कि एकर बहाना पाठक ल ७२ अउ कवि मन ल पढ़े के अवसर देथे। संगेसंग रचना के मूल्यांकन समकालीन रचनाकार मन के साथ होना एक सार्थक पहल ए। 

       वसन्ती वर्मा के कविता के बहाना डॉ. विनोद कुमार वर्मा के विमर्श म शामिल ७२ रचनाकार के एक-एक रचना मन किताब के शीर्षक 'मोर अँगना के फूल' ल सार्थक करथे। 


     संग्रह का नाम : मोर अँगना के फूल

     कवयित्री:  श्रीमती वसन्ती वर्मा

    विमर्श: डॉ. विनोद कुमार वर्मा

     प्रकाशक : श्री प्रकाशन दुर्ग, छत्तीसगढ़

     प्रकाशन वर्ष: 2012

     स्वामित्व : राहुल वर्मा

     मूल्य : 300/-

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पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी)

जिला-बलौदाबाजार भाटापारा छग

मोबाइल - 6261822466

पवन दीवान : 79 वीं जयंती म विशेष – ओमप्रकाश साहू ‘ अंकुर ‘

 🌸 पवन दीवान : 79 वीं जयंती म विशेष

– ओमप्रकाश साहू ‘ अंकुर ‘


जउन मन  ह छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाय के गजब उदिम करिन वोमन मन म  श्रद्धेय खूबचंद बघेल , कृष्णा रंजन , हरि ठाकुर ,लक्ष्मण मस्तुरिया , अउ संत कवि, भगवताचार्य पवन दीवान के नांव अव्वल हवय । दीवान जी हा बाहरी मनखे मन के द्वारा जउन शोषण करे जात रिहिस वोकर अब्बड़ विरोध करिन. लाल किला ले काव्य पाठ कर छत्तीसगढ़ के मान बढाइन.


दीवान जी के जनम किरवई गांव म 1 जनवरी 1945 मा होय रिहिन । वोकर कर्मभूमि राजिम के संगे संग पूरा छत्तीसगढ़ रिहिन ।


वे एक भगवताचार्य के संगे संग बड़का साहित्यकार अउ राजनीतिज्ञ रिहिन। विधायक, सांसद अउ अविभाजित मध्य प्रदेश के जेल मंत्री घलो बनिस ।  जब जेल मंत्री रिहिन त वोहा कहय "ले भइया हो तुंही मन बतावव मंय ह का काम करंव. मोर लइक काम नइ हे. अब तुमन ल कोन कोन ल जेल म डालंव ". अइसे कहिके जोरदार ठहाका लगाय. 

 दीवान जी गौ सेवा आयोग छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष बनाय गिस । कौशल्या माता उपर अभियान चलाइस. 


दीवान जी के भागवत प्रवचन मेहा पहिली बार राजनांदगांव जिला के गांव भर्रेगांव म सुने रेहेंव ।वो समय मेहा मीडिल स्कूल म पढ़त रेहेंव ।वो समय वोहा जवान रिहिन हे । वोकर भागवत प्रवचन सुने बर अपार जन समूह उमड़ पड़े । वोकर जोरदार ठहाका ला भर्रेगांव मा सुने रेहेंव । जब वोहा हंसय त सब ला हंसा के छोड़य । अइसने बुचीभरदा (सुरगी) मा घलो वोकर प्रवचन के लाभ उठाय रेहेंव ।बीच बीच मा अपन कविता सुना के मनोरंजन करे के संगे- संग लोगन मन म जागरुकता लाय । अपन हक बर आगू आके लड़े के प्रेरणा देवय । छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान के बात करय.


सन् 2001 मा कन्हारपुरी, राजनांदगांव म प्रांतीय छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन म दीवान जी के काव्य पाठ सुने के अवसर मिलिस.  इहां अपन कविता सुनाय के पहिली संस्कारधानी धनी के सपूत  पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, गजानन माधव मुक्तिबोध, बल्देव प्रसाद मिश्र, कुंज बिहारी चौबे, नाचा के पितामह दुलार सिंह साव मंदराजी दाऊ मन ल नमन करिन. कार्यक्रम म उपस्थित लोक संगीतकार खुमान साव जी के उदिम के तारीफ करिन . इहां सबो कवि मन कविता पढ़े ले पहिली दीवान जी के पैलगी जरूर करय. येकर बाद छत्तीसगढ़ राज

भाषा आयोग के प्रांतीय सम्मेलन मन म दीवान जी के सुग्घर विचार सुने ला मिलिस.


सौभाग्य से हमू मन ल माई पहुना के रुप मा दीवान जी के दर्शन होइस वोकर सुग्घर बिचार


सुने के संगे- संग हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी कविता ला सुनके धन्य होगेन .


जब साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगांव द्वारा 10 जून 2007 म आयोजित आठवां वार्षिक सम्मान समारोह बर निमंत्रण छपवायेन ता सुरगी के संगे- संग तीर -तखार के गांव वाले मन ल एको कनक बिश्वास नइ होय कि पवन दीवान जी हा इंकर कार्यक्रम मा आही!


ये सब संभव हो पाय रिहिस डॉ. नरेश कुमार वर्मा जी( भाटापारा, बलौदाबाजार) के कारण जउन ह वो समय म दिग्विजय कालेज राजनांदगांव म हिंदी के प्राध्यापक रिहिन ।  वर्मा जी अउ हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के कुबेर सिंह साहू जी , वरिष्ठ कहानीकार डॉ. परदेशी राम वर्मा जी से  सुघ्घर  संबंध बन गे रिहिन । एकर से पहिली डॉ. वर्मा जी ह  हमर वार्षिक समारोह म  तीन बार पहुना के रूप मा पहुंच चुके रिहिन ।ये प्रकार ले साकेत परिषद् ले सुग्घर संबंध बन गे रिहिन ।डॉ. परदेशी राम वर्मा जी कृपा ले पवन दीवान जी के सुरगी आगमन होइस ।संगे संग छत्तीसगढ़ के  पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी हा घलो पहुना बन के आय रिहिन । वो समय बघेल जी हा विपक्ष मा दमदार नेता रिहिन ।


ये कार्यक्रम मा दीवान जी ह छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति राजनांदगांव के अध्यक्ष आत्मा राम कोशा अमात्य जी अउ साकेत के तत्कालीन सचिव अउ वर्तमान अध्यक्ष भाई लखन लाल साहू लहर जी ला साकेत सम्मान 2007 प्रदान करिन ।


इहाँ दीवान जी हा अपन विचार राखिस तेमा छत्तीसगढ़ी भाखा ला राजभाषा बनाय के मांग करे गिस । येमा पारित प्रस्ताव ला राज्य शासन के पास भेजे गिस.येकर बर डॉ. परदेशी राम वर्मा जी के साथ मिलके अभियान घलो चलाइस ।अपन उद्बोधन के माध्यम से छत्तीसगढ़िया मन ल जागरुक करिन।बीच बीच म अपन जोरदार ठहाका ले लोगन मन ल गजब हंसाइस ।दीवान जी हा किहिस – “हमर छत्तीसगढ़ हा माता कौशल्या के मइके हरय तेकर सेति भगवान राम हा इहां के भांचा कहलाथे ।तेकरे सेति हमर छत्तीसगढ़ मा भांचा- भांची ला गजब सम्मान देय जाथे । आगे किहिस कइसे सुग्घर ढंग ले कहिथन – कइसे भांचा राम । सब बने बने भांचा राम । कोनो हा कैसे भांचा कृष्ण नइ काहय ।अउ कहइया हा अइसने कहि दिस ता वोहा का कहाही ।"अइसन कहिके  ठहाका लगाइस अउ उपस्थित लोगन मन जोरदार ताली बजा के सभा ला गुंजायमान करिन ।ये कार्यक्रम हा


सुरगी के शनिचर बाजार चौक के मुख्य मंच मा होइस ।दीवान जी हा किहिस कि मेहा पहिली बार कोनो साहित्यिक कार्यक्रम ला खुला मंच मा होवत देखत हंव।”अइसे कहिके परिषद् के लोगन मन ला प्रोत्साहित करिन ।


साथ मा हमर गांव ” सुरगी ”


के सुग्घर व्याख्या घलो कर दिस ” सुर ” माने देवता अउ “गी ” माने गांव ।


एकर बाद दीवान जी हा” राख ” “चन्दा,  ” अउ “तोर धरती तोर माटी रे भइया “कविता सुनाके काव्यप्रेमी मन ला आनंदित करिन.


तो ये किसम ले संत कवि पवन दीवान जी के कार्यक्रम ह यादगार बनिस ।हमर साकेत के कार्यक्रम म पहुंच के परिषद् ला गौरवान्वित करिन । 10 जून 2007 हा हमर परिषद् अउ गांव बर ऐतिहासिक तिथि के रुप मअंकित रही । 2 मार्च 2016 मा दीवान जी हा स्वर्ग लोक चले गिस । आज उंकर 79 वीं जयंती म शत् शत् नमन हे.


          ओमप्रकाश साहू अंकुर 

            सुरगी, राजनांदगांव ( छ.ग.)

मरजाद* *करत अगोरा नौकरी, जिनगी हर करियाय।* *बेटा बेटी बाढ़गे,उम्मर बिछलत जाय।।*

 *मरजाद*


*करत अगोरा नौकरी, जिनगी हर करियाय।*

*बेटा बेटी बाढ़गे,उम्मर बिछलत जाय।।*


मयारू पाठक हो!!!मोर येदे दोहा ऊपर जरूर गौर करहू,मोला लागथे नौकरी अउ कैरियर के चक्कर में कहूँ हम अपन लइका के जिनगी संग खिलवाड़ तो नइ करत हन,चौरासी लाख योनि ला भुगते के पाछू ये मानव योनि हर मिलथे,मनखे योनि पाय बर भगवान घलो हर तरसत रहिथे,बड़े-बड़े ऋषि मुनि मन मनखे योनि पाय बर भारी तपस्या करे हें,अइसे हमर वेद शास्त्र मन कहिथें।


         आज बाढ़त जनसंख्या अउ भौतिक सुख सुविधा के लालसा में हम अपन नोनी बाबू ला सुखी देखे के चाहत में खूब पढ़ावत लिखावत हन,पढ़ाना लिखाना कोनो गिनहा बात नोहै,ज्ञान मनुष्य के गहना आय,ज्ञान बिना मनुष्य ला बिना सींग पूँछी के जानवर केहे जाथे,मतलब ज्ञान बिना आदमी पशु बरोबर हे।फेर हमर पुरखा मन ज्ञानार्जन बर एक समय सीमा तय करे रिहिन,मानव योनि ला 100 बछर के मानके 25 बछर ला ब्रम्हचर्य आश्रम मा ज्ञानार्जन बर आरक्षित करे हे,तेखर बाद गृहस्थ आश्रम बर बताये गेहे।फेर हमन पुरखा मन के द्वारा स्थापित परंपरा ले दुरिहावत अपन हित अउ मरजाद ला घलो दाँव में लगा देहन।


         आधुनिक जीवनशैली,खानपान,प्रदूषित वातावरण में हम पूरा 100 बछर के स्वस्थ जिंदगी जी सकन एमा संदेह लागथे,अच्छा जिनगी जीये बर शिक्षित होना बहुते जरूरी हे,पर हम सरकारी नौकरी या निजी संस्था में रौबदार अधिकारी कर्मचारी बने बर ये प्रतियोगिता भरे युग मा अपन जीवन दाँव में लगा देथन अउ उम्मर ला बढ़ा डरथन,का सबो सुख ला धन दौलत में ही खरीदे जा सकत हे का ?


      मोर केहे के मतलब अतकेच हे,बड़का नौकरी, जादा वेतन अउ उत्तम सुख सुविधा बर ये अनमोल मनुष्य जीवन ला तो कुर्बान नइ करे जा सकै ना ? ये जीवन दुबारा मिलही धन नइ मिलही तेखर गारंटी नइहे,पर सही उमर में बिहाव करके घलो तो हम सारी सुख सुविधा ला हासिल कर सकत हन,हमर उमर हा लहुट के नइ आवै लेकिन पद अउ पइसा ला तो हम अपन बाँचे जिनगी में कमा सकत हन।


                  प्रकृति के हर चीज एक सीमा रेखा मा बँधाये हे,ये हमर सुंदर काया के घलो कुछ सीमा हे,सीमा रेखा ला पार करे के बाद,प्रकृति के वरदान घलो श्राप में बदल जथे,एक निश्चित उमर के बाद बेटा बेटी के सौंदर्य अउ उत्साह में घलो परिवर्तन देखे जाथे,बारह महिना में बसंत घलो एके बार आथे,प्रकृति के ये संदेश ला समझे के जरूरत हे।लइका मनके उमर बाढ़े ले,अनमेल जोड़ी के संभावना बाढ़ जथे अउ दाम्पत्य जीवन मा एक दूसर बर समर्पण घलो बने नइ हो पावै,एक तरह से समझौता करे बर परथे,यौवनावस्था के आकर्षण में दाई ददा के सहमति बिना लइका मन गलत कदम उठा लेथे,अइसे अधिकांश देखे मा आवत हे।जादा उमर में बिहाव होय ले संतान आय में घलो बहुत परेशानी होथे,लइका च के पालन पोषण करत हमर बुढ़ापा आरो दे बर धर लेथें,मोर  खियाल में इही समस्या मन ला देखके हमर सियान पुरखा मन ब्रम्हचर्य आश्रम के बाद तुरते गृहस्थ आश्रम के व्यवस्था ला बनाये होहीं तइसे लागथे अउ हम अपन पुरखा मन के बताये रस्ता ला छोड़के रेंगबो तब जरूर तकलीफ मा रहिबो,अइसे मोर विश्वास हे।ता ये बात में आपो मन गुनान करौ अउ अपन संतान के भविष्य ला उज्जर करौ,हमर पुरखा मनके बनाये परंपरा ला अपनाबो तभे हमर देश समाज अउ कुल के मरजाद हा बाँचही।

मोर गांव के मड़ई अगहन पूस के दांत किंकिनावत जाड़

 मोर गांव के मड़ई 

अगहन पूस के दांत किंकिनावत जाड़

जगह जगह म भुर्री तापत कान मा पगड़ी बांधे गांव के बबा मन गपशप मुड़ डोलावत हाथ के अंगरी ल सेकत 

नवा टूरा टूरी मन के चारीखोदी के गोठ बात करत राहय इतवार के दिन भैंसी  ल तरिया मा धोके लाने ओकर पडिया मेछराके बबा मन के भुर्री तरफ भागीस बबा मन डरा गए मोला घलो गाली दिन मै मुड़ी नवा के भुर्री तापे लगेव गोठ बात मा मोला मजाक मा बता इन आज हमर गांव के नजदीक के गांव मा मड़ई हे अतका गोठ ल सुन के दौड़त दौड़त आके अपन दाई ला बताएव अपन कुरता पैंठ ला माटी राख पावडर  मा उजराये अऊ कपड़ा सुखाय के बाद

पीतल के पेंदयही लोटा मा जलत कोयला डाल के आयरन करके एक चौथिया धान ला बेच के पैसा के जुगाड करेव संझा बेरा बबा बइला गाड़ी तियार कर दिस हमर घर भर के लइका सियान गाड़ी मा बैठ के मड़ई गए न भीड़ मा गाड़ी के धुर्रा मा कुर्ता धुर्रे धूर्रा होगे परसा पान तोरके सबों ढुर्रा ला झरायेव मड़ई मै जिनिस जिनीस के दुकान ढेलुवा रायचूल ढेरी के ढेरी मौत कुवा तमाशा बताशा के दुकान चुरी चाकी के दूकान किसिम किसीम खोवा जलेबी भूरमुंग मुर्रा लाडू कुशियार के दूकान किसिम किसिम टूरी टूरा अतियावत घुमत राहय महु ह मुर्रा लाड़ू कुशीयार जलेबी अऊ लाल रंग के झिल्ली लगे चश्मा चेथी मा लटकाए बर पतला रबर खूब मड़ई मा मस्ती राउत मन रंग बिरंग के कुरता पहने मुड़ मा पागा कलगी कौड़ी के गुथना गड़वा बाजा मा कूदत राहय मड़ई देवता धुर्रा के उड़ावत चारो कोती गोल गोल घुमत रंग रंग के दोहा पारत मस्ती मा नाच य lये मड़ई संस्कार अभी भी गांव मा जिंदा हे किसान खेती बाड़ी के काम से फुरसत पा के एक जगह गांव मा इकठ्ठा होके खुशी मनाथे अब धीरे धीरे मड़ई के चलन

कम होवत हे काबर की कतको जगह मड़ई मा झगड़ा भी हो जाथे कतको जगह मेला के आड़ मा अवैध काम भी होथे एला युवा पीढ़ी ल सतर्क होना हे मेला मड़ई मा नशाखोरी के कारण झगरा लड़ाई भी हो जा थे पढ़े लिखे लोगन मन एकर रोक थाम करना चाहिए शालीनता से मड़ई के आयोजन करना चाहिए l

मोहन लाल डहरिया,, निर्दोष,,

सुरता शिक्षा, साहित्य अउ समाज सेवा ल समर्पित व्यक्तित्व - बंशी लाल जोशी 'गुरूजी ' जनम -15-08-1940 निधन -08-01-2024

 सुरता 


शिक्षा, साहित्य अउ समाज सेवा ल समर्पित व्यक्तित्व - बंशी लाल जोशी 'गुरूजी '

जनम -15-08-1940    निधन -08-01-2024


   शिक्षा ह आगू बढ़े के सुघ्घर माध्यम हरे। शिक्षा ह शेरनी के दूध के समान होथे जेला पीके मनखे ठाहिल बनथे। शिक्षा जिहां संस्कार, रोजगार पाय के साधन हरे त अपन अधिकार के रक्षा खातिर जूझे बर घलो प्रेरित करथे। कोनो मनखे  बर शिक्षा ह तभे सार्थक हे जब वोकर उपयोग वोहा समाज हित बर करय। अइसने एक व्यक्तित्व के धनी रिहिन हे बंशी लाल जोशी' गुरु जी 'जउन ह अपन शिक्षा ल सार्थक करिन. शिक्षा के माध्यम ले सरकारी नौकरी पाइस फेर अपन जिनगी ल 

 साहित्य अउ समाज सेवा बर समर्पित कर दिस।

   राजनांदगांव ह संस्कारधानी नगर कहलाथे। ये जिला/शहर ह पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, गजानन माधव मुक्तिबोध, बल्देव प्रसाद मिश्र, कुंज बिहारी चौबे, विनोद शुक्ल,शरद कोठारी, रमेश याज्ञिक, डा.नंदू लाल चोटिया, कनक तिवारी, स्वर्ण कुमार साहू, दुलार सिंह साव मंदराजी दाऊ, खुमान साव, मदन निषाद, पद्मश्री गोविंद राम निर्मलकर, नूतन प्रसाद शर्मा, डा. गणेश खरे, मेघनाथ कन्नौजे,आचार्य सरोज द्विवेदी, गणेश शंकर शर्मा, डा. दादू लाल जोशी, कुबेर सिंह साहू, माला बाई मरकाम, दीपक विराट, पूनम विराट, कविता वासनिक,गिरिजा सिन्हा, डा. शंकर मुनिराय, हर्ष कुमार बिंदु,आत्मा राम कोशा अमात्य,वीरेंद्र बहादुर सिंह , महादेव हिरवानी जइसे साहित्यकार अउ कला साधक मन के जनम भूमि/ कर्म भूमि हरे। संस्कारधानी राजनांदगांव ले बालोद मार्ग म एक पावन गांव हे सिंघोला। मां भानेश्वरी मंदिर के कारन ये गांव के अब्बड़ सोर हे। एक पर्यटन स्थल के रूप म एक अलग पहिचान बन गे हावय।इही पावन गांव ह बंशी लाल जोशी जी के जनम भूमि हरे।

  बंशी लाल जोशी के जनम 15 अगस्त 1940 म किसान परिवार म होइस।ऊंकर ददा के नांव नाथू दास जोशी अउ दाई के नांव जीरा बाई जोशी रिहिन। उंकर बिहाव बिसरी बाई जोशी संग होइस। सतनाम पंथ के संस्थापक गुरु घासीदास के उपदेश ल अपना के जोशी जी ह आगू बढ़िस। पढ़े लिखे म अब्बड़ हुसियार रिहिन। इंटरमीडियेट तक पढ़ाई करिन। फेर अपन मिहनत ले आदिम जाति कल्याण विभाग म शिक्षक बनगे‌। शिक्षकीय दायित्व ल बने निभात साहित्य अउ समाज सेवा कोति घलो अपन धियान लगाइन। जोशी जी ह अपन बेटा दिनेश जोशी अउ दू झन बेटी ल अब्बड़ पढ़ाइस - लिखाइस। उंकर बेटा भिलाई इस्पात संयंत्र म अधिकारी पद ले सेवानिवृत्त होय हे त दूनो बेटी शिक्षा विभाग म शिक्षिका हावय।



जोशी जी ह हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म कलम चलाय हे। पद्म के संगे संग गद्य म लेखनी करे हावय।उंकर रचना सत्यध्वज, दैनिक सबेरा संकेत,दावा, साकेत स्मारिका अउ आने अखबार म सरलग प्रकाशित होवत गिस।उंकर प्रकाशित कृति म दादू लाल जोशी फरहद का सामाजिक चिंतन ( संपादित कृति _1998),  कविता संग्रह म 'शब्द नहीं भाव '-2008, संपादित कृति म' सूर्य कहूं या दीप "(2012) सामिल हे।


शिक्षा विभाग ले सेवानिवृत्त होय के बाद अपन पूरा धियान साहित्य अउ समाज सेवा म लगा दिस। संस्कारधानी राजनांदगांव के साहित्यिक आयोजन के संगे संग प्रांत स्तरीय आयोजन म घलो सक्रियता ले भाग लेवय । पत्र लेखक मंच राजनांदगांव,छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति,  विचार विन्यास राजनांदगांव,साकेत साहित्य परिषद सुरगी, शिवनाथ साहित्य धारा डोंगरगांव, राष्ट्रीय कवि संगम राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के आयोजन म सामिल होवय। साहित्य अउ समाज सेवा बर आर्थिक सहयोग करे बर सदा तत्पर राहय। हमर प्रदेश के बड़का साहित्यकार डॉ दादू लाल जोशी फरहद के कहना हे कि- "जोशी जी ल कभू क्रोध करत नइ

देखेन। काकरो बर नराज होवत नइ देखेन। वोहा अब्बड़ सरल,सहज अउ सरस व्यक्तित्व के धनी रिहिन ‌।" जोशी जी ह शिक्षा, साहित्य अउ समाज सेवा बर कतको घांव सम्मानित होइस। 84 बछर के उम्र म घलो साहित्यिक अउ समाजिक आयोजन म सक्रिय रिहिन। खेती किसानी डहर घलो धियान देवय।अइसन कर्मठ अउ समर्पित व्यक्तित्व के धनी जोशी जी ह 8 जनवरी 2024 म अपन नश्वर शरीर ल छोड़ के स्वर्गवासी बनगे। उंकर बेटा दिनेश जोशी ह वोला मुखाग्नि दिस। ये बेरा म समाज के संगे संग पत्रकार अउ साहित्य बिरादरी ह अपन उपस्थिति देके जोशी जी के योगदान ल सुरता करिन। मृतात्मा के शांति बर दो मिनट मौन धारन कर श्रद्धांजलि अर्पित करिन। जोशी जी ल शत्  शत् नमन हे। विनम्र श्रद्धांजलि।


             ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

                सुरगी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)

आज 26 वीं पुण्यतिथि म विशेष चंदैनी गोंदा के सर्जक - दाऊ रामचंद्र देशमुख

 आज 26 वीं पुण्यतिथि म विशेष


चंदैनी गोंदा के सर्जक - दाऊ रामचंद्र देशमुख 



जनम : 25 अक्टूबर 1916

लोकगमन : 13 जनवरी 1998


हमर छत्तीसगढ के लोक साहित्य अउ लोक संस्कृति ह अब्बड़ समृद्ध हे. इंहा के पण्डवानी, पंथी नृत्य, कर्मा,सुआ, ददरिया,  भरथरी,रहस,नाचा, लोरिक -चंदा, ढोला-मारू के सुघ्घर सोर हे. लोक कला अउ सांस्कृतिक क्षेत्र में दाऊ रामचंद्र

देशमुख , देवदास बंजारे,  झाड़ू राम देवांगन,तीजन बाई, हबीब तनवीर,मदन निषाद,  लालू राम साहू,गोविंद राम निर्मलकर,  फिदा बाई मरकाम,माला बाई मरकाम, दाऊ दुलार सिंह साव मंदराजी, दाऊ महासिंह चंद्राकर, दीपक चंद्राकर, शिव कुमार दीपक,  नियाइक दास मानिकपुरी, झुमुक दास बघेल,भैया लाल हेड़ाऊ, ऋतु वर्मा, सुरूज बाई खांडे, शेख हुसैन, खुमान साव,लक्ष्मण मस्तुरिहा, केदार यादव,  बद्रीविशाल परमानंद,विमल कुमार पाठक, पूना राम निषाद, मिथलेश साहू, भूपेन्द्र साहू, दुष्यंत हरमुख, कुलेश्वर ताम्रकार, रामाधार साहू,ममता चंद्राकर,  डा. पीसी लाल यादव, धुरवा राम मरकाम,जयंती यादव,  अनुराग ठाकुर,साधना यादव, संगीता चौबे, कविता वासनिक, लक्ष्मी बंजारे, दुकालू राम यादव, सुनील सोनी, महादेव हिरवानी,मंजुला दास गुप्ता, आरू साहू जइसे  कतको कलाकार के नांव सामिल हे.


दाऊ रामचंद्र देशमुख कला के पारखी रिहिन हे. छत्तीसगढ़ के गरीब, मजदूर, किसान मन के शोषण ल देखके वोकर मन म अब्बड़ पीरा होय. ये पीरा ल  दूर करे खातिर वोहर कला अउ संस्कृति के रद्दा ल धरिस. छत्तीसगढ़ के संस्कृति के उज्जर पक्ष ल सामने लाके इहां के सोर बगराइस. कला के विकृति ले वोकर मन ल अब्बड़ ठेस पहुंचय तेकर सेति सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उद्देश्य ल लेके गांव- गांव म जाके गुनी कलाकार मन के खोज करिस अउ चंदैनी गोंदा जइसे कालजयी सांस्कृतिक संस्था के गठन करिस. चंदैनी गोंदा ह अपन प्रस्तुति ले सांस्कृतिक क्षेत्र म छागे. शोषित-पीड़ित छत्तीसगढ़िया मन के हीन भावना दूर होइस अउ अपन स्वाभिमान बर जागिस.

 

जब मोर जनम होइस वोकर ले दू साल पहिली “चन्दैनी गोंदा “के जनम होगे रहिस हे. अउ जब येखर सर्जक श्रद्धेय दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ह जब येला कोनो कारन ले आगू नइ चलइस त मात्र

आठ साल के रहेंव. मेहा दाउ राम चन्द्र देशमुख जी द्वारा संचालित” चन्दैनी गोंदा “ल कभू नइ देखेंव. दाउ जी ले घलो कभू आमने- सामने भेंट नइ कर पायेंव. मोर अइसन सौभाग्य नइ रीहिस हे. पर

मोर डायरी म दैनिक सबेरा संकेत

राजनांदगांव के “आपके पत्र “स्तंभ के पेपर कटिंग हे. वोखर मुताबिक मेहा दूरदर्शन केन्द्र रायपुर के कार्यक्रम “एक मुलाकात ” म 21 मार्च 1996 म जब  राम हृदय तिवारी जी ह दाऊ जी ले “गोठ बात “करे रीहिस हे वोला मेहा गजब रुचि लेके सुने रेहेंव. काबर कि मेहा कई ठक अखबार म श्रद्धेय दाऊ जी के जीवन परिचय, चन्दैनी गोंदा , देवार डेरा अउ “कारी” के बारे म पढ़े रेहेंव. उद्भट विद्वान डॉ. गणेश खरे जी के लेख के सँगे सँग कुछ अउ विद्वान मन के लेख ल पढ़े रेहेंव. जब दूरदर्शन केन्द्र रायपुर ले ये भेंटवार्ता ह शुरु होइस त मेहा आखिरी होत तक टस से मस नइ होयेंव. ये भेंटवार्ता ले मोला छत्तीसगढ़ लोक कला मंच के विकास यात्रा म दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के योगदान के सुग्घर जानकारी मिले रीहिस हे. आदरणीय राम हृदय तिवारी जी ह दाऊ जी ल गजब अकन सवाल करिन कि “देहाती कला विकास मंडल “, “चन्दैनी गोंदा” के गठन अउ “कारी “के मंचन के का उद्देश्य रीहिस हे. चन्दैनी गोंदा के पहिली इहां के नाचा अउ लोक कला मंच के कइसन दशा अउ दिशा रीहिस हे .चन्दैनी गोंदा ल आप विसर्जित करे जइसे कठिन निर्णय काबर लेंव. अइसेझ का परीस्थिति अइस! ये सवाल जब आदरणीय तिवारी जी ह श्रद्धेय दाऊ जी ले करिस त एकदम भावुक घलो होगे. वर्तमान म लोक कला मंच के दशा अउ दिशा उपर जब चर्चा चलिस तब दाऊ जी ह गजब उदास होगे अउ कहिस कि हमर छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान ल जगाय बर काम नइ हो पावत हे. लोक कला मंच के नाम म सिनेमा संस्कृति ह हावी होगे हे. अइसे कहत -कहत दाउ जी ह भावुक अउ एकदम गंभीर होगे.


दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के जनम 25 अक्टूबर 1916 म बालोद जिला के डौंडीलोहारा विकासखंड के गाँव पिनकापार म होय रीहिन हे. दाऊ जी ह अपन गाँव पिनकापार म राम लीला मंडली के गठन करके अपन संगठन शक्ति के परिचय दे रीहिन हे. बाद म गांव गांव म घूम के गुनी कलाकार म ल खोज के संगठित करिस. वोहा 1951 म देहाती कला विकास मंडल के गठन करिस. येमा लाला फूलचंद श्रीवास्तव जी चिकारावाला (रायगढ़), ठाकुर राम जी , बुलवा (रिंगनी साज), रवेली साज के मदन निषाद जी (गुंगेरी नवागाँव, डोंगरगॉव, राजनांदगांव) जइसे बड़का कलाकार शामिल होगे. दाऊ जी ह ये कलाकार मन ल लेके काली माटी, बंगाल का अकाल, सरग अउ नरक, राय साहब मि. भोंदू खान साहब नालायक अली खां, मिस मैरी का डांस जइसे प्रहसन खेल के मनोरंजन के सँगे सँग जनता म जन जागरण के संदेश घलो दिस.

अउ 7 नवंबर 1971 म अपन गाँव बघेरा (दुर्ग) मा सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उद्देश्य लेके लोक सांस्कृतिक संस्था “चन्दैनी गोंदा “के गठन करिस. दाउ जी ह चन्दैनी गोंदा, कारी के माध्यम ले छत्तीसगढ़वासी मन के स्वाभिमान ल जगाइस. चन्दैनी गोंदा के माध्यम ले लक्ष्मण मस्तुरिया जी, केदार यादव, खुमान साव जी, केदार यादव जी, साधना यादव जी, भैया लाल हेड़ाऊ, कविता हिरकने (वासनिक ), राम रतन सारथी, शेख हुसैन, संगीता चौबे, साधना यादव, शैलजा ठाकुर, अनुराग ठाकुर, शिव कुमार दीपक, मुकुंद कौशल, महेश ठाकुर ,मदन चौहान, , संतोष झांझी, मंजूला बनर्जी, संतोष टांक, लाला फूल चंद, लालू राम, बसंत दीवान, रवि शंकर शुक्ल ,गिरिजा सिन्हा,सुरेश देशमुख उद्घोषक,  विजय श्रीवास्तव अमित,हीरा सिंह गौतम चित्रकार जइसे उम्दा कलाकार (गायक- गायिका /गीतकार /संगीतकार /अभिनेता) सामने आइन.

मेहा दाऊ जी द्वारा संचालित चन्दैनी गोंदा ल कभू नइ देखेंव पर

बाद म लोक संगीत सम्राट श्रद्धेय खुमान साव जी द्वारा संचालित चंदैनी गोंदा ल घलो मात्र दो बार देख पायेंव .पर श्रद्धेय खुमान साव जी ले भेंट नौ बार होइस हे. येखर संस्मरण घलो लिखे हवँ.

हमर छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत ये महामानव ह 13 जनवरी 1998 म अपन नश्वर शरीर ल छोड़ के स्वर्ग लोक चले गिस. दाऊ जी ह अपन यश रुपी शरीर ले सदैव जीवित रहि.


चन्दैनी गोंदा के यात्रा अउ दाऊ जी के व्यक्तित्व अउ कृतित्व पर उंकर भतीजा अउ चंदैनी गोंदा के प्रथम उद्घोषक डॉ. सुरेश देशमुख जी के अथक प्रयास ले उंकर संपादन म अउ राजगामी संपदा न्यास राजनांदगांव के आर्थिक सहयोग ले सन 2021 म गजब सुग्घर किताब प्रकाशित होय हे. ये किताब ह चंदैनी गोंदा अउ दाऊ जी के बारे म एक अमूल्य दस्तावेज हे. प्रो. देशमुख जी ह किताब प्रकाशन म एक भागीरथ प्रयास करे हे जेकर जतकी प्रशंसा करन वोहा कम होही. येहा

छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति पर शोद्धार्थी छात्र अउ येकर ले लगाव

रखइया मन बर गजब अनमोल हे. ये सुघ्घर किताब खातिर डा. सुरेश देशमुख जी ल 14 जनवरी 2024 के दिन  छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन म सम्मानित करे जाही।येकर  बर डा. देशमुख जी ल गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे. सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ल उंकर 26 वीं जयंती म शत् शत् नमन हे. 

        

       ओमप्रकाश साहू" अंकुर"

       सुरगी, राजनांदगांव

मड़ई*

 *मड़ई*


मड़ाई के नाव सुनत ही मन प्रफुल्लित अउ अंग अंग म रोमांच भर जाथे । बचपन के सुरता ह पिक्चर कस आंंखी म झूले लगथे फेर अब एक्का दुक्का गांव म मड़ाई होथे। मड़ई के बात ले मोर बड़ा के सुरता आ जाथे । जब मैं नानकुन आठ दस साल के रहेंव तब बाबा मड़ई देखाय बर लेजावय। वइसे भाटापारा के गौशाला के मड़ई बड़ प्रसिद्ध हे । मड़ई के आयोजन ह धान लुवाई मिजाई के बाद किसान मन फुरसदहा बेरा म करथे। मड़ई  म बेटी माई के संगे संग आस पास के हित मीत सगा सोदर मन आथे । पूरा गांव खुशी उमंग ले झूम जाथे। गली खोर उचास लागथे। 

     दइहान म मड़ई ल गड़िया के राउत भाई मन गोल घूम घूमके नाचथे। दइहान म मड़ई के चारों मुड़ा खई खजाना के अबड़ अकन दुकान लगथे। तरह तरह के जिनिस बेचाय बर आय रथे। मुर्रा लाड़ू,करी लाड़ू,रायजीरा लाड़ू,फल्ली लाड़ू बेचावत रथे, फेर भक्का लाड़ू अब देखे ल नइ मिलय।

  लइका मन खेलवना,टुरी टानकी मन टीकली फुंदरी,मोटीयारी मन साग पान बिसाय म लगे रथे । बाबु पिला मन पान खाके टेस मारत रइथे।

        मड़ई के दिन रथियाकुन नाचा के आयोजन होथे। मोला तो  जोक्कड़ के जनउला पुछई हां बड़ निक लागथे। मड़ई के बहाना ही संगी साथी हित मीत बेटी माई ले मिलना जुलना तन अउ मन म एक नवा उर्जा के संचार कर देथे। अउ आगु साल के अगोरा म ये साल के मड़ई है सुरता बन जाथे।


अशोक कुमार जायसवाल

भाटापारा

मंथरा*

 [1/10, 10:25 AM] Chandrahas Sahu धमतरी: *मंथरा*


                                     चन्द्रहास साहू

                                   मो 8120578897


आज मोर चेहरा अब्बड़ दमकत हावय भलुक ऑंखी ले दू टीपका ऑंसू निकलगे तभो ले मन गमकत हावय। सिरतोन ऑंसू घला  सुघ्घर लागथे,...उछाह के ऑंसू। काखरो जिनगी सिरजाये ले बड़का उछाह का होही...?

           गोरी सांवरी बरन,घुंघरालू चूँदी, सरई के कोंवर पाना कस होंठ, खीरा बीजा कस दांत। नाक मा चमकत रवाही फूली, कान मा झूलत झुमका, बाँहा भर चूरी गोड़ मा बिछिया आलता अउ संग मा दमकत लाल कुहकू। शिफॉन के लुगरा सिंपल सोबर पोलखा ओखर उप्पर सादा डॉक्टरी कोट....! साज-सँवर के अपन चेहरा ला देखेंव दरपन मा। सुघ्घर... अब्बड़ सुघ्घर लागत रेहेंव।

"काखरो नजर डीठ झन धरे......!''

 कजरारी ऑंखी ला मटकावत केहेंव अउ काजर के दू टीपका ला कान के पाछू लगायेंव। कोन जन ये बिसवास आवय कि अंधविश्वास..। फेर दाई के मया दुलार हाबे अइसे लागथे।

                     जादा उछाह मा झन नाच लता कोनो नइ हे देखइया। बाल मन हुक मारे लागिस मोर। फुसफुसावत हावँव अउ अपन वैक्सीन बेग ला साव चेती होके जोरे लागेंव। अपन पर्स मा पइसा डारेंव अउ टिफिन मा इडहर के साग.. । चट्ट चट... चटकारा लेयेंव। पहिली बेरा बनाये रेहेंव...।

                         कोंवर-कोंवर कोचई पान ला मास्टर घर ले आनेंव उरिद दार के पीठी बनायेंव। दूनो ला मिंझारके थारी मा राखेंव अउ ओ थारी ला कड़ाही मा मड़ाके भाँप मा उसनेंव। ...अब नान-नान कुटका काट के डबकत अम्मट मा ओइर के बनायेंव। अब बनगे इडहर साग हा पियर-पियर .. फोरन के मिठ्ठी लीम पाना अउ सरसो-राई के दाना उफले ....अब्बड़ ममहावत इड़हर साग।

मास्टर कका ला तो  देयेंव घला। ओखर कटोरी घला सकेलागे रिहिस न।

"वाह.. अब्बड़ सुघ्घर,स्वादिष्ट गुरतुर । तोर हाथ के जादू ... अहा..ह..अब्बड़ मिठाथे ओ लता ! तोर बनाये साग हा।''

कका अघागे।

कंघी करके एक बेरा दरपन के आगू मा अउ ठाड़े होयेंव। मुॅॅंहू के मुॅॅंहुरंगी लागयेंव अउ ड्रेसिंग के दरपन मा होंठ के गोल-गोल चिन्हा बनायेंव लिपिस्टिक मा। चुन्दी मा फूल खोसेंव। मुच ले मुचका के नानकुन कागज मा लिखेंव।


मोर मयारुक !

पैलगी 

           ये कुरिया मा तोर स्वागत हाबे मोर देवता !  भलुक तेंहा आबे तब मेंहा अपन ड्यूटी कोती रहूँ फेर ये घर तोला सुन्ना नइ लागे।  भीतरी मा आबे  ..अउ लम्बा साँस लेबे तब,..मोर ममहासी ला महसूस करबे। खिड़की खोलबे तब, खिलखिलावत हवा के झोंका बनके गुदगुदाहूँ। दरपन ला देखबे तब मुचकावत रहूँ। अउ गद्देदार सोफा मा बइठबे तब,.. तोला बइहा बनाहूँ ही..ही...। 

दूध वाला आरो करही ते कसेली मा दूध झोंका लेबे। मेंहा झटकुन आहूँ मोर राजा !

                                  तोर गोसाइन

                                         लता

कागज मा नानकुन स्माइली बनायेंव। अउ टी टेबल मा मड़ा देंव चंदैनी गोंदा के गुलदस्ता मा दबाके। तारा कूची लगा के जिला अस्पताल अमरगेंव।

गोसाइया आवत हावय आज। पहिली हफ्ता पन्दरा दिन मा आवय फेर ये पारी पूरा-पूरा तिरसठ दिन मा आवत हाबे। ओखर बिना कतका तड़पेंव.. कतका रोयेंव ..परेशान होयेंव.. मेंहा जानहूँ, मोर ऑंसू जानही अउ मोर अकेल्लापन जानही..। 

            दू महीना के ट्रेनिंग मा गेये रिहिस रायपुर। मास्टर नोकरी लगगे हावय। ट्रेनिग होही ओखर पाछू स्कूल मा पोस्टिंग। हे महामाई एके ठौर बर आदेश निकलवाबे दाई ! हमर दुनो के.. हमर शहर बर।         

                      आज मोर बर अब्बड़ उछाह रिहिस। गोसाइया आवत हे। मोर ससुर बेटी के नर्सिंग पढ़ाई मा नाव आये हाबे अउ बहिन बेटी के बिहाव तय होगे।....सब्ब एक सँघरा अब्बड़ अकन खुशखबरी। भलुक मोर जेठ-जेठानी के बेटी आवय फेर पइसा के कमती नइ होवन देवंव पढ़े बर। जिनगी सिरजाये बर।

                     मोर बाबू मन दू भाई अउ दू बहिनी होथे। मोर बाबू बड़का आवय जम्मो झन ले, अउ कका हा जम्मो झन ले नान्हे। हमर खानदान मा पहिली बेटी आवँव मेंहा, जम्मो के दुलारी। सबके लाड़ली रेहेंव फेर कका बर जादा। कका के परी आवव न ..। कही जातिस कका के साइकिल के आगू कोती डंडिल मा बइठँव। अउ डंडिल ले अब केरियल मा। जम्मो गाॅंव भर किंजर डारों मेंहा।

कका के  बिहाव के बरात निकलिस तब फूफू के बेटी संग मोहाटी के दोनों कोती  शुभ कलश ला बोहो के ठाड़े रेहेंव । कका हा ओला दस के कड़कड़ाती नोट दिस अउ मोला मइलाहा दस के नोट। अतकी मा अब्बड़ रोयेंव मेंहा अउ जम्मो देखइया मन अब्बड़ हाॅंसिस। लइका पन के रूठना मनाना..। कका जानथे। पचास के कड़कड़ाती नोट दिस अपन दुल्हा माला ले निकाल के। 

'मोर कंकालिन दाई ला कइसे मनाना हे जानथो मेंहा।''

अउ टुप-टुप पाँव परिस मोर। कोन जन काबर पाँव परिस ते आज ले समझ नइ आइस।

मोर कका के कोरा मा बइठके बरतिया गेयेंव। अउ लहुटेंव तब तो कका काकी दुनो के कोरा ला पीरा कर डारेंव जागत भर ले ।.... अउ अब बिहनिया उठेंव तब फूफू दीदी के तीर मा सुते रेहेंव। कका के परी,कंकालिन दाई फेर बिगड़गे रिहिस। कोंन जन फूफू का तेल लगाथे ते अब्बड़ बस्साइस। मइलाहा लागथे मोला,ये फूफू हा साफ-सफा मा धियान नइ देवय न। बफल-बफल के अब्बड़ रोयेंव। कका-काकी मनाइस अब, फेर शर्त रिहिस मोर।

"रातकुन दुनो के संग सुतहूँ कका !''

जम्मो कोई फेर हाॅंसिस ।

"हाव मोर बेटी ! सूत जाबे ।''

काकी किहिस। ओ दिन अब्बड़ रोये रेहेंव घोलन-घोलन के अउ कका हा पेमखजूर खवाके मनाये रिहिस।

कोन जन सिरतोन मा सुतेंव कि नही  भगवान जाने फेर कतको महीना ले मोर नींद हा कका-काकी के पलंग मा परे अउ दाई ददा के पलंग ले बिहनिया उठो । ननपन के जम्मो गोठ ला सुरता करत मोर मन गमकत हे। 

          मोर दाई ददा अब्बड़ बुता करथे उवत के बुढ़त ले। रोपा लगाई अउ मिंजाई बर तो कोन जन ...? घुघवा के ऑंखी ला उधार मांग के खार ले घर आथे। ठुकुर-ठुकुर रेंगत ददा आगू-आगू, दाई पाछू-पाछू अउ ओखर पाछू मा कमइया बनिहार मन के रेला अंधियारी रात मा।

"कइसे दाई अब्बड़ बेरा होगे घर लहुटे बर।''

"का करबो बेटी ! उवत ले बुढ़त कमाबो तब तो दू पइसा बाचही ओ। 

महतारी बेटी गोठियावत हावन अउ अब काकी के गोठ मिंझरगे।

"तोर पढ़ाई लिखाई मा अब्बड़ खरच आवत हे नोनी । तोर बिहाव बर घला सकेले ला लागही का ? उवत के बुढ़त कमाही तब तो तोर दाहिज-डोल बर पइसा सकेलाही, न बड़की दीदी !''

काकी चटाक ले किहिस अउ दाई हा बुताये बरोबर हुंकारु दिस।

"हाव ।''

आज सोज्झे अपन कुरिया मा खुसरगे दाई हा। नहीं ते आने दिन..कभू जुआ देखे ला काहय कंघी ला धर लेवय अउ। कभू डोकरी दाई बबा बर गोरसी सपचा देवय कभू सुआ ददरिया सुना देवय। ...फेर आज हाथ गोड़ धोइस अउ कुरिया मा खुसरगे।

"दाई चाहा पी ले।''

अब्बड़ गेलोली करेंव तब पीयिस चाहा। कमइया मन संग अब्बड़ हाॅंसत गोठियावत आयेस दाई ! अउ काकी के गोठ सुनके का होगे.......?

दाई मोला पोटार लिस अउ अपन छाती मा सुता लिस । अब रोये लागिस। बारवी पढ़त हँव फेर दाई के रोवई ला नइ जान सकेंव। दसवीं पढ़इया भाई संग अब्बड़ गुनेंव फेर कुछु नइ सूझिस।

                    कका सोसायटी मा सेल्समैन हाबे। काकी हा तो बड़का घर के गुनवंती बेटी आवय। तभे तो कहिथे-

"पइसा सकेल के राख, हमरो तीन झन बेटी हावय। टूरा के अगोरा मा पुरोनी घला टूरी होगे।पाले-पोसे मा अब्बड़ खरच आही। बड़की के  बेटी लता उप्पर जम्मो ला झन लुटा...। जम्मो कोई बर कपड़ा लेथस.. खई-खजाना बिसाथस.... फीस भर देथस ..।''

कोन जन काकी ला का होगे ते   ? ओखर ले अब्बड़ दुलार पाये रेहेंव फेर अब ..... बिखहर साँप बरोबर बीख उगलत हावय। 

                   गाँव मा कथा-भागवत माढ़े रिहिस। घर-घर सगा पहुना आये रिहिस। हमरो घर सगा आये रिहिस। कतको  सगा झर गे अउ कतको सगा रुकिस। काकी के फूफू दीदी घला आये रिहिस। हफ्ता दिन ले रिहिस।

"दमाद बाबू ! तोर लइका मन बर का सकेले हस   ? अब लइका मन संग्यान होवत हे। बड़का स्कूल मा पढ़ावत हस ते सुघ्घर आवय फेर बर बिहाब बर घला कुछु गुन। आगी लगत ले महँगाई बाढ़ गेहे ,...जानथस ? हमन बड़का नौकरी वाला मन दू तोला सोना नइ बिसा सकत हावन ते तोर का होही...? नानकुन नौकरी वाला के। तीन झन टूरी तीनो के दाइज-डोल, बर-बिहाव, पढ़ाई-लिखाई जम्मो मा लगही ...। करजा करबे ..? वहू ला छूटे ला परही...?''

फूफू हा कका ला अब समझावत हे। कका सुनत हे।

"देख दामाद बाबू दुलरू ! अभिन एके मा हावव तब बड़की के नोनी बाबू के पढ़ाई -लिखाई के खरचा , समिलहा होवत हाबे। काली बिहाव होही दुनो लइका के। खेत बेचहूँ तब, ... अउ खेत नइ बेचहूँ तब करजा कइसे छुटाही ..? बिहाब होवत ले ...करजा करत ले तोर संग मा रही तोर चतरा भाई हा। ताहन बाँटा-खोंटा माँगही। तोला देये ला परही..। ओहा गंगा नहा डारही अउ तेहाँ फदक जाबे।''

"कइसे फूफू..,कइसे फदक जाहूँ..?''

कका पूछिस  फूफू सास के गोठ सुनके। अब थोक-थोक समझे लागिस कका हा फूफू सास के गोठ ला।

"भोकवा नहीं तो ...! जम्मो सकेले रहिबो तेला बड़की के नोनी बाबू मा लगा देबो तब हमर लइका बर का बाँचही ..? अउ तोर भतीजी हा नर्सिंग कॉलेज मा पढ़े बर रुंगरूँगाये हाबे। जानथस कतका पइसा लागही ...? चार बच्छर के कोर्स, दस लाख लागही...दस लाख। सब उही सिरागे तब हमर लइका हा कटोरा धर के भीख माँगही । अप्पड़ रही .., गुन कुछु , बइला झन बन।''

काकी अगियावत रिहिस। अब कका जान डारिस। दूसरा दिन ले कका हा मोर बाबू करा अड़गे, बाँटा माँगे बर। आज अउ अब्बड़ रोयेंव मेंहा। जम्मो बेरा मोर कका मनावत रिहिस फेर आज....? आज तो ओखरे सेती रोवत हावव।

"कका मोला नर्सिंग कॉलेज मा पढ़ा दे।''

कका मुॅॅंहू मुरकेटत रेंग दिस। आज के मंथरा के नजर हमर घर मा परगे रिहिस। भगवान राम ओखर ले नइ बाचिस तब मोर ददा का बाचही ? साधारण मइनखे हा। 

                भागवत मा कतका सुघ्घर बताइस महराज जी हा। आज कलजुग मा खुरसी  मा बइठे बर भाई-भाई गला काट झगरा होथे। अउ  श्री रामजी अउ भरत जी घला झगरा होइस फेर उँखर भाव आने रिहिस। 

छोटे भाई भरत ते बइठ ! बड़का भइया श्रीराम जी ते बइठ गद्दी मा अइसे। भाई लक्ष्मण सेवादार बनगे भैया-भौजी के अउ शत्रुघ्न तपस्वी भाई भरत के रखवार। राम के खड़ाऊ ले राज चलत हाबे। रामायण किताब नोहे भलुक जीवन में उतारे के धार्मिक ग्रंथ आवय। भाई-भाई, महतारी-बेटा, गोसाइन-गोसइया,भाई-भौजी जम्मो के नत्ता ला  मान देवत कइसे निभाना हाबे रामायण सीखोथे। राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न माता सीता उर्मिला जम्मो के किरदार मा सेवा समर्पण अउ कुटुम्ब ला मान देये के उदिम हाबे। ... फेर कुबरी मंथरा ले हमन ला सीखना हाबे। मंथरा कोनो बरन मा आ सकथे, सचेत रहना हे। भागवत के सुनइया हो ! भक्त वत्सल देवी और सज्जनों राम ला जानना हे तब आचरण मा उतारहू। हजारों के भीड़ सकेल के बड़का आयोजन करवाये मा भगवान के आसीस नइ बरसे भलुक चरित्र  बनाये ले आसीस होही...।

भगवताचार्य आचार्य जी के प्रवचन ला जम्मो कोई कान लगा के सुनिस। कका ददा अउ जम्मो कोई  प्रसंग मा ताली बजा-बजा के नाचिस,गाइस अउ ..... घर लहुट के बाँटा होइस।

                 गरीब मन बर सरकार के योजना संजीवनी आवय। बैंक ले लोन लेयेंव - शिक्षा लोन अउ नर्सिंग कॉलेज मा पढ़े बर भर्ती होयेंव। सिरतोन अगास मोर रिहिस अउ पांख घला मोर। तब बेटी ला उड़ियाये ले कोन रोकही..? पढ़ डारेंव अउ बनगेव नर्स दीदी।

             सरकारी अस्पताल के वेक्सीनेशन सेक्शन मा ड्यूटी हाबे मोर। अब्बड़ जिम्मेदारी ले ड्यूटी करत हँव। कतको झन ला पढ़े बर प्रोत्साहित करत हँव अउ कतको झन  दीदी मन ला प्राथमिक उपचार करे बर सीखोवत हँव। लइका के जतन टीका के खुराक .. जम्मो ला बताथो।

         ड्यूटी ले घर अमरेंव। गोसाइया आगे रिहिस। मुचकावत मोर स्वागत करिस। 

"मोला पचास हजार रुपिया के जरूरत हाबे लता !''

"काबर  ?''

"भतीजी के नर्सिंग कॉलेज मा एडमिशन करवाये  बर पइसा कमती परत हाबे।''

"हाव ''

एटीएम कार्ड ला देयेंव अउ पासवर्ड ला घला बतायेंव। 

"मोर गरीबहा कका के लइका मन ला घला पढ़े लिखे मा अब्बड़ दिक्कत होवत हे । उपराहा पइसा निकाल देबे। ओमन नइ मांगे तभो ले काखरो जिनगी सिरजाये बर पँदोली देबो ते अब्बड़ उछाह मनाही। ... अउ नत्ता गुरतुर हो जाही। काखरो बर मंथरा बने मा उछाह नइ हे भलुक शबरी बनके जूठा बोइर के पुरती मया दे देबो ।

"सिरतोन काहत हस लता ! मोला तोर उप्पर गरब हाबे।''

गोसाइया किहिस छाती फुलोवत अउ एटीएम के रस्दा चल दिस। मेंहा अब साँझकुन के दीया-बाती के तियारी करत हंव, मुचकावत, गमकत। जीवन के अंधियारी ला भगाये के उदिम करेंव अब मोहाटी के अंधियारी ला उजियारी मा बदलत हावंव।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com


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समीक्षा--

[1/13, 8:41 PM] पोखनलाल जायसवाल: आज जब घर-परिवार अउ समाज सोशल मीडिया के चलत एकाकी के दाहरा म बुड़े सहीं जनावत हे। दुरिहा के मनखे ले लिखना म गोठबात होवत हे, एके हँड़िया के भात खवइया अउ एक छत तरी रहवइया म बिगन झगरा-झाँसी के अनबोलना हे। अइसन म एक ठिन चुल्कियाहा गोठ नता के सरी मरम ल लेस-भुँज के जिनगी ल खुवार कर देथे। अनदेखना मन घर-परिवार के बनौकी म जोझा परथें। बाधा डारे बर मति ल भरमा देथें। अइसने बाधा परइया मंथरा मन ले सावचेत करत चंद्रहास साहू के  आत्मकथ्यात्मक शैली म लिखे कहानी आय- 'मंथरा'। जौन म कहानीकार पौराणिक पात्र मन के चित्रण करत कहानी के माध्यम ले समाज ल नवा दिशा दे के अपन सामाजिक दायित्व ल पूरा करत दिखथें।

     आज कतको घर-परिवार बिन मुड़ी-पूछी के गोठ करत तहस-नहस होवत हें। पहिली परोसी ले आगी लग जाय के डर राहय...फेर आज तो मोबाइल के चलत लिखरी-लिखरी बात घर के मुहाँटी ले पार हो जथे। महतारी-बहिनी ल लागथे कि बहू-भौजाई के निंदा करे म आनंद हे। फेर कोन जनी इही आनंद कब जिनगी म जहर घोरे लागथे। खैर...ए मंथरा कोनो हो सकथे। हम ल चिन्हारी कर के बाँचे ल परही।  इही गोठ के आरो देवत अउ पाठक बर सावचेत अउ गुनान के गोठ कहानी के डाँड़ देखव- 'भगवान राम ओखर ले नइ बाँचिस त मोर ददा का बाँचही...साधारण मनखे ह...।'

       हमर तिर तखार म जौन मंथरा हे, वो हमर मति ल कइसे फेरथे, एकर परछो देखव- ओहा गंगा नहा डारही अउ तेंहा ... फदक जाबे। उँकर भुँजे-बघारे अइसन गोठ ले भला काकर मति नइ फिरही।

      अइसने गोठ कतकोन घर म आगी लगा डारथे। अउ मति भरमाय काकी अपन जेठ बेटी  ल बिरान समझत कका ले कहिथे- 'बड़की के बेटी लता ऊप्पर जम्मो ल झन लुटा।'

       कहानी म बेटा-बेटी म भेद ले उपजत समस्या डाहर संसो घलव कहानीकार करत दिखथें। तभे तो पात्र के आड़ लेवत लिखे हे- 'टूरा के अगोरा म पुरोनी घला टूरी होगे...।' 

        शिक्षा लोन योजना के फायदा ल सरेखत कहानी योजना के महत्तम ल पाठक तिर पहुँचाय म सफल हे। 

         कहानी के मुख्य पात्र लता के सुमत अउ सकारात्मकता कहानी ल उँचास देथे। उँकर अपन घरवाला संग करे गे सुमत भरे गोठ परिवार अउ समाज ल नवा दिशा दिही। संदेश दिही।'... पँदोली देबो त अब्बड़ उछाह मनाही, अउ नता गुरतुर हो जाही।' 

     लता के ए दूरदर्शिता बदला के भाव (मइलाहा सोंच) ले समाज ल ऊपर उठे के सीख मिलही। 

      जेन पीरा ले दँदरे हन ओ पीरा अउ कोनो ल झन होवय, इही सोच ल लेके समाज ल आगू बढ़ाय बर लता सहीं आगू आना परही। अपन घर परिवार बर लता के उठाय ए बीड़ा ल अपनाय ले टूटत परिवार ल बचाय जा सकत हे। लता के चरित्र मंथरा बने ले बचे रहे के संदेश देथे।

       कहानी के भाषा शैली सरल सहज अउ प्रवाहमय हे। हाना मुहावरा के प्रयोग ले कहानी म भाषा के सुघरई बाढ़े हे। संदेशपरक सुघ्घर कहानी बर चंद्रहास साहू ल बधाई🌹💐


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी) 

बलौदाबाजार भाटापारा छग