Wednesday 17 January 2024

मंथरा*

 [1/10, 10:25 AM] Chandrahas Sahu धमतरी: *मंथरा*


                                     चन्द्रहास साहू

                                   मो 8120578897


आज मोर चेहरा अब्बड़ दमकत हावय भलुक ऑंखी ले दू टीपका ऑंसू निकलगे तभो ले मन गमकत हावय। सिरतोन ऑंसू घला  सुघ्घर लागथे,...उछाह के ऑंसू। काखरो जिनगी सिरजाये ले बड़का उछाह का होही...?

           गोरी सांवरी बरन,घुंघरालू चूँदी, सरई के कोंवर पाना कस होंठ, खीरा बीजा कस दांत। नाक मा चमकत रवाही फूली, कान मा झूलत झुमका, बाँहा भर चूरी गोड़ मा बिछिया आलता अउ संग मा दमकत लाल कुहकू। शिफॉन के लुगरा सिंपल सोबर पोलखा ओखर उप्पर सादा डॉक्टरी कोट....! साज-सँवर के अपन चेहरा ला देखेंव दरपन मा। सुघ्घर... अब्बड़ सुघ्घर लागत रेहेंव।

"काखरो नजर डीठ झन धरे......!''

 कजरारी ऑंखी ला मटकावत केहेंव अउ काजर के दू टीपका ला कान के पाछू लगायेंव। कोन जन ये बिसवास आवय कि अंधविश्वास..। फेर दाई के मया दुलार हाबे अइसे लागथे।

                     जादा उछाह मा झन नाच लता कोनो नइ हे देखइया। बाल मन हुक मारे लागिस मोर। फुसफुसावत हावँव अउ अपन वैक्सीन बेग ला साव चेती होके जोरे लागेंव। अपन पर्स मा पइसा डारेंव अउ टिफिन मा इडहर के साग.. । चट्ट चट... चटकारा लेयेंव। पहिली बेरा बनाये रेहेंव...।

                         कोंवर-कोंवर कोचई पान ला मास्टर घर ले आनेंव उरिद दार के पीठी बनायेंव। दूनो ला मिंझारके थारी मा राखेंव अउ ओ थारी ला कड़ाही मा मड़ाके भाँप मा उसनेंव। ...अब नान-नान कुटका काट के डबकत अम्मट मा ओइर के बनायेंव। अब बनगे इडहर साग हा पियर-पियर .. फोरन के मिठ्ठी लीम पाना अउ सरसो-राई के दाना उफले ....अब्बड़ ममहावत इड़हर साग।

मास्टर कका ला तो  देयेंव घला। ओखर कटोरी घला सकेलागे रिहिस न।

"वाह.. अब्बड़ सुघ्घर,स्वादिष्ट गुरतुर । तोर हाथ के जादू ... अहा..ह..अब्बड़ मिठाथे ओ लता ! तोर बनाये साग हा।''

कका अघागे।

कंघी करके एक बेरा दरपन के आगू मा अउ ठाड़े होयेंव। मुॅॅंहू के मुॅॅंहुरंगी लागयेंव अउ ड्रेसिंग के दरपन मा होंठ के गोल-गोल चिन्हा बनायेंव लिपिस्टिक मा। चुन्दी मा फूल खोसेंव। मुच ले मुचका के नानकुन कागज मा लिखेंव।


मोर मयारुक !

पैलगी 

           ये कुरिया मा तोर स्वागत हाबे मोर देवता !  भलुक तेंहा आबे तब मेंहा अपन ड्यूटी कोती रहूँ फेर ये घर तोला सुन्ना नइ लागे।  भीतरी मा आबे  ..अउ लम्बा साँस लेबे तब,..मोर ममहासी ला महसूस करबे। खिड़की खोलबे तब, खिलखिलावत हवा के झोंका बनके गुदगुदाहूँ। दरपन ला देखबे तब मुचकावत रहूँ। अउ गद्देदार सोफा मा बइठबे तब,.. तोला बइहा बनाहूँ ही..ही...। 

दूध वाला आरो करही ते कसेली मा दूध झोंका लेबे। मेंहा झटकुन आहूँ मोर राजा !

                                  तोर गोसाइन

                                         लता

कागज मा नानकुन स्माइली बनायेंव। अउ टी टेबल मा मड़ा देंव चंदैनी गोंदा के गुलदस्ता मा दबाके। तारा कूची लगा के जिला अस्पताल अमरगेंव।

गोसाइया आवत हावय आज। पहिली हफ्ता पन्दरा दिन मा आवय फेर ये पारी पूरा-पूरा तिरसठ दिन मा आवत हाबे। ओखर बिना कतका तड़पेंव.. कतका रोयेंव ..परेशान होयेंव.. मेंहा जानहूँ, मोर ऑंसू जानही अउ मोर अकेल्लापन जानही..। 

            दू महीना के ट्रेनिंग मा गेये रिहिस रायपुर। मास्टर नोकरी लगगे हावय। ट्रेनिग होही ओखर पाछू स्कूल मा पोस्टिंग। हे महामाई एके ठौर बर आदेश निकलवाबे दाई ! हमर दुनो के.. हमर शहर बर।         

                      आज मोर बर अब्बड़ उछाह रिहिस। गोसाइया आवत हे। मोर ससुर बेटी के नर्सिंग पढ़ाई मा नाव आये हाबे अउ बहिन बेटी के बिहाव तय होगे।....सब्ब एक सँघरा अब्बड़ अकन खुशखबरी। भलुक मोर जेठ-जेठानी के बेटी आवय फेर पइसा के कमती नइ होवन देवंव पढ़े बर। जिनगी सिरजाये बर।

                     मोर बाबू मन दू भाई अउ दू बहिनी होथे। मोर बाबू बड़का आवय जम्मो झन ले, अउ कका हा जम्मो झन ले नान्हे। हमर खानदान मा पहिली बेटी आवँव मेंहा, जम्मो के दुलारी। सबके लाड़ली रेहेंव फेर कका बर जादा। कका के परी आवव न ..। कही जातिस कका के साइकिल के आगू कोती डंडिल मा बइठँव। अउ डंडिल ले अब केरियल मा। जम्मो गाॅंव भर किंजर डारों मेंहा।

कका के  बिहाव के बरात निकलिस तब फूफू के बेटी संग मोहाटी के दोनों कोती  शुभ कलश ला बोहो के ठाड़े रेहेंव । कका हा ओला दस के कड़कड़ाती नोट दिस अउ मोला मइलाहा दस के नोट। अतकी मा अब्बड़ रोयेंव मेंहा अउ जम्मो देखइया मन अब्बड़ हाॅंसिस। लइका पन के रूठना मनाना..। कका जानथे। पचास के कड़कड़ाती नोट दिस अपन दुल्हा माला ले निकाल के। 

'मोर कंकालिन दाई ला कइसे मनाना हे जानथो मेंहा।''

अउ टुप-टुप पाँव परिस मोर। कोन जन काबर पाँव परिस ते आज ले समझ नइ आइस।

मोर कका के कोरा मा बइठके बरतिया गेयेंव। अउ लहुटेंव तब तो कका काकी दुनो के कोरा ला पीरा कर डारेंव जागत भर ले ।.... अउ अब बिहनिया उठेंव तब फूफू दीदी के तीर मा सुते रेहेंव। कका के परी,कंकालिन दाई फेर बिगड़गे रिहिस। कोंन जन फूफू का तेल लगाथे ते अब्बड़ बस्साइस। मइलाहा लागथे मोला,ये फूफू हा साफ-सफा मा धियान नइ देवय न। बफल-बफल के अब्बड़ रोयेंव। कका-काकी मनाइस अब, फेर शर्त रिहिस मोर।

"रातकुन दुनो के संग सुतहूँ कका !''

जम्मो कोई फेर हाॅंसिस ।

"हाव मोर बेटी ! सूत जाबे ।''

काकी किहिस। ओ दिन अब्बड़ रोये रेहेंव घोलन-घोलन के अउ कका हा पेमखजूर खवाके मनाये रिहिस।

कोन जन सिरतोन मा सुतेंव कि नही  भगवान जाने फेर कतको महीना ले मोर नींद हा कका-काकी के पलंग मा परे अउ दाई ददा के पलंग ले बिहनिया उठो । ननपन के जम्मो गोठ ला सुरता करत मोर मन गमकत हे। 

          मोर दाई ददा अब्बड़ बुता करथे उवत के बुढ़त ले। रोपा लगाई अउ मिंजाई बर तो कोन जन ...? घुघवा के ऑंखी ला उधार मांग के खार ले घर आथे। ठुकुर-ठुकुर रेंगत ददा आगू-आगू, दाई पाछू-पाछू अउ ओखर पाछू मा कमइया बनिहार मन के रेला अंधियारी रात मा।

"कइसे दाई अब्बड़ बेरा होगे घर लहुटे बर।''

"का करबो बेटी ! उवत ले बुढ़त कमाबो तब तो दू पइसा बाचही ओ। 

महतारी बेटी गोठियावत हावन अउ अब काकी के गोठ मिंझरगे।

"तोर पढ़ाई लिखाई मा अब्बड़ खरच आवत हे नोनी । तोर बिहाव बर घला सकेले ला लागही का ? उवत के बुढ़त कमाही तब तो तोर दाहिज-डोल बर पइसा सकेलाही, न बड़की दीदी !''

काकी चटाक ले किहिस अउ दाई हा बुताये बरोबर हुंकारु दिस।

"हाव ।''

आज सोज्झे अपन कुरिया मा खुसरगे दाई हा। नहीं ते आने दिन..कभू जुआ देखे ला काहय कंघी ला धर लेवय अउ। कभू डोकरी दाई बबा बर गोरसी सपचा देवय कभू सुआ ददरिया सुना देवय। ...फेर आज हाथ गोड़ धोइस अउ कुरिया मा खुसरगे।

"दाई चाहा पी ले।''

अब्बड़ गेलोली करेंव तब पीयिस चाहा। कमइया मन संग अब्बड़ हाॅंसत गोठियावत आयेस दाई ! अउ काकी के गोठ सुनके का होगे.......?

दाई मोला पोटार लिस अउ अपन छाती मा सुता लिस । अब रोये लागिस। बारवी पढ़त हँव फेर दाई के रोवई ला नइ जान सकेंव। दसवीं पढ़इया भाई संग अब्बड़ गुनेंव फेर कुछु नइ सूझिस।

                    कका सोसायटी मा सेल्समैन हाबे। काकी हा तो बड़का घर के गुनवंती बेटी आवय। तभे तो कहिथे-

"पइसा सकेल के राख, हमरो तीन झन बेटी हावय। टूरा के अगोरा मा पुरोनी घला टूरी होगे।पाले-पोसे मा अब्बड़ खरच आही। बड़की के  बेटी लता उप्पर जम्मो ला झन लुटा...। जम्मो कोई बर कपड़ा लेथस.. खई-खजाना बिसाथस.... फीस भर देथस ..।''

कोन जन काकी ला का होगे ते   ? ओखर ले अब्बड़ दुलार पाये रेहेंव फेर अब ..... बिखहर साँप बरोबर बीख उगलत हावय। 

                   गाँव मा कथा-भागवत माढ़े रिहिस। घर-घर सगा पहुना आये रिहिस। हमरो घर सगा आये रिहिस। कतको  सगा झर गे अउ कतको सगा रुकिस। काकी के फूफू दीदी घला आये रिहिस। हफ्ता दिन ले रिहिस।

"दमाद बाबू ! तोर लइका मन बर का सकेले हस   ? अब लइका मन संग्यान होवत हे। बड़का स्कूल मा पढ़ावत हस ते सुघ्घर आवय फेर बर बिहाब बर घला कुछु गुन। आगी लगत ले महँगाई बाढ़ गेहे ,...जानथस ? हमन बड़का नौकरी वाला मन दू तोला सोना नइ बिसा सकत हावन ते तोर का होही...? नानकुन नौकरी वाला के। तीन झन टूरी तीनो के दाइज-डोल, बर-बिहाव, पढ़ाई-लिखाई जम्मो मा लगही ...। करजा करबे ..? वहू ला छूटे ला परही...?''

फूफू हा कका ला अब समझावत हे। कका सुनत हे।

"देख दामाद बाबू दुलरू ! अभिन एके मा हावव तब बड़की के नोनी बाबू के पढ़ाई -लिखाई के खरचा , समिलहा होवत हाबे। काली बिहाव होही दुनो लइका के। खेत बेचहूँ तब, ... अउ खेत नइ बेचहूँ तब करजा कइसे छुटाही ..? बिहाब होवत ले ...करजा करत ले तोर संग मा रही तोर चतरा भाई हा। ताहन बाँटा-खोंटा माँगही। तोला देये ला परही..। ओहा गंगा नहा डारही अउ तेहाँ फदक जाबे।''

"कइसे फूफू..,कइसे फदक जाहूँ..?''

कका पूछिस  फूफू सास के गोठ सुनके। अब थोक-थोक समझे लागिस कका हा फूफू सास के गोठ ला।

"भोकवा नहीं तो ...! जम्मो सकेले रहिबो तेला बड़की के नोनी बाबू मा लगा देबो तब हमर लइका बर का बाँचही ..? अउ तोर भतीजी हा नर्सिंग कॉलेज मा पढ़े बर रुंगरूँगाये हाबे। जानथस कतका पइसा लागही ...? चार बच्छर के कोर्स, दस लाख लागही...दस लाख। सब उही सिरागे तब हमर लइका हा कटोरा धर के भीख माँगही । अप्पड़ रही .., गुन कुछु , बइला झन बन।''

काकी अगियावत रिहिस। अब कका जान डारिस। दूसरा दिन ले कका हा मोर बाबू करा अड़गे, बाँटा माँगे बर। आज अउ अब्बड़ रोयेंव मेंहा। जम्मो बेरा मोर कका मनावत रिहिस फेर आज....? आज तो ओखरे सेती रोवत हावव।

"कका मोला नर्सिंग कॉलेज मा पढ़ा दे।''

कका मुॅॅंहू मुरकेटत रेंग दिस। आज के मंथरा के नजर हमर घर मा परगे रिहिस। भगवान राम ओखर ले नइ बाचिस तब मोर ददा का बाचही ? साधारण मइनखे हा। 

                भागवत मा कतका सुघ्घर बताइस महराज जी हा। आज कलजुग मा खुरसी  मा बइठे बर भाई-भाई गला काट झगरा होथे। अउ  श्री रामजी अउ भरत जी घला झगरा होइस फेर उँखर भाव आने रिहिस। 

छोटे भाई भरत ते बइठ ! बड़का भइया श्रीराम जी ते बइठ गद्दी मा अइसे। भाई लक्ष्मण सेवादार बनगे भैया-भौजी के अउ शत्रुघ्न तपस्वी भाई भरत के रखवार। राम के खड़ाऊ ले राज चलत हाबे। रामायण किताब नोहे भलुक जीवन में उतारे के धार्मिक ग्रंथ आवय। भाई-भाई, महतारी-बेटा, गोसाइन-गोसइया,भाई-भौजी जम्मो के नत्ता ला  मान देवत कइसे निभाना हाबे रामायण सीखोथे। राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न माता सीता उर्मिला जम्मो के किरदार मा सेवा समर्पण अउ कुटुम्ब ला मान देये के उदिम हाबे। ... फेर कुबरी मंथरा ले हमन ला सीखना हाबे। मंथरा कोनो बरन मा आ सकथे, सचेत रहना हे। भागवत के सुनइया हो ! भक्त वत्सल देवी और सज्जनों राम ला जानना हे तब आचरण मा उतारहू। हजारों के भीड़ सकेल के बड़का आयोजन करवाये मा भगवान के आसीस नइ बरसे भलुक चरित्र  बनाये ले आसीस होही...।

भगवताचार्य आचार्य जी के प्रवचन ला जम्मो कोई कान लगा के सुनिस। कका ददा अउ जम्मो कोई  प्रसंग मा ताली बजा-बजा के नाचिस,गाइस अउ ..... घर लहुट के बाँटा होइस।

                 गरीब मन बर सरकार के योजना संजीवनी आवय। बैंक ले लोन लेयेंव - शिक्षा लोन अउ नर्सिंग कॉलेज मा पढ़े बर भर्ती होयेंव। सिरतोन अगास मोर रिहिस अउ पांख घला मोर। तब बेटी ला उड़ियाये ले कोन रोकही..? पढ़ डारेंव अउ बनगेव नर्स दीदी।

             सरकारी अस्पताल के वेक्सीनेशन सेक्शन मा ड्यूटी हाबे मोर। अब्बड़ जिम्मेदारी ले ड्यूटी करत हँव। कतको झन ला पढ़े बर प्रोत्साहित करत हँव अउ कतको झन  दीदी मन ला प्राथमिक उपचार करे बर सीखोवत हँव। लइका के जतन टीका के खुराक .. जम्मो ला बताथो।

         ड्यूटी ले घर अमरेंव। गोसाइया आगे रिहिस। मुचकावत मोर स्वागत करिस। 

"मोला पचास हजार रुपिया के जरूरत हाबे लता !''

"काबर  ?''

"भतीजी के नर्सिंग कॉलेज मा एडमिशन करवाये  बर पइसा कमती परत हाबे।''

"हाव ''

एटीएम कार्ड ला देयेंव अउ पासवर्ड ला घला बतायेंव। 

"मोर गरीबहा कका के लइका मन ला घला पढ़े लिखे मा अब्बड़ दिक्कत होवत हे । उपराहा पइसा निकाल देबे। ओमन नइ मांगे तभो ले काखरो जिनगी सिरजाये बर पँदोली देबो ते अब्बड़ उछाह मनाही। ... अउ नत्ता गुरतुर हो जाही। काखरो बर मंथरा बने मा उछाह नइ हे भलुक शबरी बनके जूठा बोइर के पुरती मया दे देबो ।

"सिरतोन काहत हस लता ! मोला तोर उप्पर गरब हाबे।''

गोसाइया किहिस छाती फुलोवत अउ एटीएम के रस्दा चल दिस। मेंहा अब साँझकुन के दीया-बाती के तियारी करत हंव, मुचकावत, गमकत। जीवन के अंधियारी ला भगाये के उदिम करेंव अब मोहाटी के अंधियारी ला उजियारी मा बदलत हावंव।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com


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समीक्षा--

[1/13, 8:41 PM] पोखनलाल जायसवाल: आज जब घर-परिवार अउ समाज सोशल मीडिया के चलत एकाकी के दाहरा म बुड़े सहीं जनावत हे। दुरिहा के मनखे ले लिखना म गोठबात होवत हे, एके हँड़िया के भात खवइया अउ एक छत तरी रहवइया म बिगन झगरा-झाँसी के अनबोलना हे। अइसन म एक ठिन चुल्कियाहा गोठ नता के सरी मरम ल लेस-भुँज के जिनगी ल खुवार कर देथे। अनदेखना मन घर-परिवार के बनौकी म जोझा परथें। बाधा डारे बर मति ल भरमा देथें। अइसने बाधा परइया मंथरा मन ले सावचेत करत चंद्रहास साहू के  आत्मकथ्यात्मक शैली म लिखे कहानी आय- 'मंथरा'। जौन म कहानीकार पौराणिक पात्र मन के चित्रण करत कहानी के माध्यम ले समाज ल नवा दिशा दे के अपन सामाजिक दायित्व ल पूरा करत दिखथें।

     आज कतको घर-परिवार बिन मुड़ी-पूछी के गोठ करत तहस-नहस होवत हें। पहिली परोसी ले आगी लग जाय के डर राहय...फेर आज तो मोबाइल के चलत लिखरी-लिखरी बात घर के मुहाँटी ले पार हो जथे। महतारी-बहिनी ल लागथे कि बहू-भौजाई के निंदा करे म आनंद हे। फेर कोन जनी इही आनंद कब जिनगी म जहर घोरे लागथे। खैर...ए मंथरा कोनो हो सकथे। हम ल चिन्हारी कर के बाँचे ल परही।  इही गोठ के आरो देवत अउ पाठक बर सावचेत अउ गुनान के गोठ कहानी के डाँड़ देखव- 'भगवान राम ओखर ले नइ बाँचिस त मोर ददा का बाँचही...साधारण मनखे ह...।'

       हमर तिर तखार म जौन मंथरा हे, वो हमर मति ल कइसे फेरथे, एकर परछो देखव- ओहा गंगा नहा डारही अउ तेंहा ... फदक जाबे। उँकर भुँजे-बघारे अइसन गोठ ले भला काकर मति नइ फिरही।

      अइसने गोठ कतकोन घर म आगी लगा डारथे। अउ मति भरमाय काकी अपन जेठ बेटी  ल बिरान समझत कका ले कहिथे- 'बड़की के बेटी लता ऊप्पर जम्मो ल झन लुटा।'

       कहानी म बेटा-बेटी म भेद ले उपजत समस्या डाहर संसो घलव कहानीकार करत दिखथें। तभे तो पात्र के आड़ लेवत लिखे हे- 'टूरा के अगोरा म पुरोनी घला टूरी होगे...।' 

        शिक्षा लोन योजना के फायदा ल सरेखत कहानी योजना के महत्तम ल पाठक तिर पहुँचाय म सफल हे। 

         कहानी के मुख्य पात्र लता के सुमत अउ सकारात्मकता कहानी ल उँचास देथे। उँकर अपन घरवाला संग करे गे सुमत भरे गोठ परिवार अउ समाज ल नवा दिशा दिही। संदेश दिही।'... पँदोली देबो त अब्बड़ उछाह मनाही, अउ नता गुरतुर हो जाही।' 

     लता के ए दूरदर्शिता बदला के भाव (मइलाहा सोंच) ले समाज ल ऊपर उठे के सीख मिलही। 

      जेन पीरा ले दँदरे हन ओ पीरा अउ कोनो ल झन होवय, इही सोच ल लेके समाज ल आगू बढ़ाय बर लता सहीं आगू आना परही। अपन घर परिवार बर लता के उठाय ए बीड़ा ल अपनाय ले टूटत परिवार ल बचाय जा सकत हे। लता के चरित्र मंथरा बने ले बचे रहे के संदेश देथे।

       कहानी के भाषा शैली सरल सहज अउ प्रवाहमय हे। हाना मुहावरा के प्रयोग ले कहानी म भाषा के सुघरई बाढ़े हे। संदेशपरक सुघ्घर कहानी बर चंद्रहास साहू ल बधाई🌹💐


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी) 

बलौदाबाजार भाटापारा छग

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