Thursday 24 June 2021

चिट्ठी पाती

 चिट्ठी पाती


💐श्री गणेशाय नमः💐

                        शुभ जगहा-पलारी

                        तारीख २३/०६/२०२१

मयारुक संगवारी

       जय राम जी की🙏


           लिखना समाचार मालूम हो कि मँय इहाँ भगवान के किरपा ले आनंद कुशल हँव अउ घर म सबझन बने बने हें। हाँसी-खुशी ले मजा मजा म हवय। आशा करत हँव कि उहाँ आपो मन उहाँ आनंद कुशल ले होहू। 

         आगू समाचार मालूम होवय कि हमर कोति नवटप्पा के बीते पाछू सरलग पानी गिरे ले आगी बरसावत गरमी के नाँव बुतागे हवय। कूलर आराम फरमावत हे। पँखा मच्छर भगाय के बूता जादा करत हे। 

       बादर महराज के पहुनई म खेती खार गजमज गजमज करे धर लिस। नँगरिहा मन - 'मोर खेती खार रुमझुम मन भँवरा नाचे झूम झूम.....' गावत झूमरे लगत हे। त कतको मन खिसा म धरे मोबाइल ले गीत के आनंद लेवत हें।

           ए अलगे बात आय कि अब आगू जइसे किसानी नइ होवत हे। खेती किसानी बइला नाँगर ले कमतिया गेहे। सबो टेक्टर ले बूता कराना पसंद करत हें। चार दिन के बूता दूए दिन म निपट जात हवै। हरर हरर के कमई के दिन बीतगे। विज्ञान के मिले बरदान ले सबो ल आराम हे। असो एक ठन फरक देखे ल मिलत हवय। पहिली कस सँझा के बेरा गुड़ी चउँक म बइठइया मन के कमी होगे हे। बइरी कोरोना के आय ले सबो घरखुसरा बनगे हे। कखरो तिर मन भर हाँस के गोठियाय अउ दुख पीरा बाँटे बर समे नइ रहिगे हे। सबो डर्रात हे। डर्राना जरूरी घलव हे। आखिर जिनगी के सवाल जउन हे। गाँव भर उमहियाके धान बो डरे हे। सोलाआना बाउँत होगे हवय। दस बारा दिन ले सूरूज देवता के दर्शन नइ होत रहिस हे।  तरिया के मन दू मन अगरा गे हे। बोरिंग अउ कुआँ ल नवा जिनगी मिलगे हे। पेड़ पउधा मन  उल्हवा पाना ले सजगे हे। धरती दाई ह हरियर सँवागा म सबके मन ल हरसावत हे। बम्बरी ह सोनहा फूल ल धरे बरसा के स्वागत म खड़े हे, त कोयली ह अपन मीठ बोली ले करिया करिया बादर ल रिझावत हे। ए सब ल देख के मोर का सबो के हिरदे गदगद हो जात हे। कालीच के बात आय लक्ष्य ह अपन महतारी ले बरसत पानी म काग़ज के डोंगा बना गली म बोहावत पानी म के चलाहूँ कहिके जिद करत रहिस। ओकर जिद ले हमर लइकापन के सुरता आगे। ...तब गाँव मन म गली कँक्रीटीकरण नइ होय रहिस। माड़ी भर चिखला म रेंगन। तरिया अउ खेत के मेड़ पार आवत जावत कतको बेर बिछल के उतान गिर जवत रहेन। संगी साथी ल गिरत देख कभू हँसी मजाक करन तव कभू दुखी घलव हो जवत रहेन। एके छाता ल दू तीन झन सँगवारी ओढ़के रेंगन। प्राइमरी पढ़त राहन त चूमड़ी ल मोड़के कमपापड़(झिल्ली) के ओढ़नी कस बना ओढ़के स्कूल जान। कतिक मजा आत रहिस। चउमास के चार महीना गली म चप्पल पहिनबे नइ करत रहेंन। पानी थोरकिन थिरातिस तहाँ चिखला माटी खेलन। नाली बनावन अउ डोंगा चलावन। अब कँक्रीटीकरण के होय ले चिखला माटी खेले के मउका नइ मिलय।

        अभी लगातार तीन दिन होगे, संझौती बेरा बादर ह अपन किरपा करत हे। बाउँत पंदरही होय ले धान के नकसानी ल बचाय खातिर गाँव म गरवा मन के रोका छेंका बर बइठका सकेलाय रहिस अउ रखवार के बेवस्था घलव होगिस। 

       पड़ोसी गाँव कौड़िया म नवयुवक संगी मन डाहर ले पड़ती भुइँया म पौधारोपण के उदिम होवत हे। जउन पर्यावरण के सुरक्षा बर सराहे के लइक हे। एकर चर्चा जिला भर म जोर शोर ले होवत हे। ए एक अभियान के रूप ले ले हे। 

         कोरोना काल म सबके बया भुलागे हवय। बेवसाय मन पटरी म लहुटे नइ हे। अइसन म रायपुर शहर म परिवार सहित रहना बड़ मुश्किल के बात आय। अभियो सावचेत ले रहे के जरूरत हवय।अउ हाँ टीका खच्चित करके लगवा लेहू। कहूँ काम धंधा बरोबर नइ चलत होही त गाँव आके खेती किसानी म चेत लगातेव। अउ पूरा परिवार एके जगा रहितेव अइसे मोर सुझाव हे। जादा अउ का लिखँव, आप खुद समझदार हव। 

      चिट्ठी पातेच खानी गाँव लहुटे के खुशखबरी देहू के आशा बाँधे हँव।

          तोर संगवारी

      पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह वाले

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भेजइया--

पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार छग. ४९३२२८

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         प्रति,

                भुवन सिंह कमल

 मोवा मार्केट चउँक रायपुर छग. ४९२००१

मितान के नाँव पाती*

 *मितान के नाँव पाती*

                                     भिलाई 

                                    24/06/2021 


मयारुक मितान,

                    जोहार।

        लिखना हाल ये हे कि हमर इहाँ भिलाई मा ईश्वर के दया ले सब बने- बने हे।उम्मीद हे तहूँ मन परिवार समेत उहाँ सकुशल होहू।


मितान! चउमास आ गेहे अउ एसो हमर डाहर लगते जून ले जबर बरसा शुरू हे। गरमी के मार अउ उमस ले अब राहत हे। कभू झिटिर- झिटिर अउ कभू रदरद- रदरद पानी के गिरना मन ला शुकून देवत हे।हवा- गरेरा ले एसो झाड़- झंखाड़ मन बिकट टूटिन - गिरिन फेर अब थोर राहत हे। पानी के दिन आय फेर मौसम सुग्घर हे। 


*घूमड़ घूमड़ बादर आवत।*

*बरसा सिरतो गजब सुहावत।।*

*धरती के हे प्यास बुझावत।*

*सुक्खा रुखराई हरियावत।।*


बैसाख जेठ मा एसो के गरमी बड़ हलकान करिस मितान।एसी कूलर घलो फेल होय ला धर ले रहिन।फेर कोरोना महमारी के सेती बहुते जरूरी काम परे ले ही घर ले बाहिर निकलना होय। हाँ, प्लांट के ड्यूटी ला तो नइ छोड़ सकन। सबो सावधानी के पालन कर के विपरीत काल ले सुरक्षित हावँन। अब चउमास शुरू होगे हे अउ लाकडाउन घलो खतम होगे तब बने राहत हे अउ लोग- लइकामन के मन मा उमंग हे।


*घाम घमुर्री जी बिट्टागे।*

*ऊपर अउ कोरोना आगे।।*

*रहन कलेचुप घर मा भइया।*

*नहीं थोरको ता ता थइया।।*


तुँहर कोती का हालचाल हे ? बताहू।बाउत होगे? पानी बने गिरत हे? खच्चित चिट्ठी लिखहू। जाने बर मन ललसावत हे।


*खेत खार नाँगर बखर, का बाउत के हाल।*

*देख ताक रइहू बने, कोरोना के काल।।*


सहीं मा बरसा ऋतु बड़ आनंद देथे मितान।बड़े- बड़े कवि मन इफरात लिखे हें चउमासा उपर।बरसा मा नारी के बिरही रूप के वरनन हा मन मा एक पीरा भर देथे। देखौ,  विरहिणी के मन के गोठ ला कइसे लिखे हे कवि हा-


*बड़ गड़ गड़ गरजत,*

 *चम चम चमकत,*

*करिया बादर,*

*जब बरसै।*

*दिन संग धनी बिन,*

*गुजरै गिन गिन,*

*हाय! कहौं का,*

*मन तरसै।।*

*बस के तँय अंतस,*

*पिया कहाँ हस,*

*मन हे बेबस,*

*काय करौं।*

*ये चिंउ चिंउ चिरई,*

*पानी गिरई,*

*कइसे मँय हर,*

*धीर धरौं।।*


शहर मा तो खेती किसानी ले दुरिहा रहिथँन मितान। फेर ननपन के गाँव मा बिताय समय के सुरता आथे। जेठ के सिराती अउ असाड़ के शुरुआती मा चउमासा ले निपटे बर केउ किसम के उपाय करे बर धर लँय। खेती किसानी के तैयारी मा कमिया- किसान मन मगन हो जावँय । आजो गांव गवई मन मा इही माहौल दिखत होहीं।


*पैरा भरत हवैं परसार, कोनो बोवत बारी।*

*नाँगर बइला के तैयारी, बाँधत हवैं झिपारी।।*


*काँटा खूँटी बीन- बीन के, साफ करत हें डोली।*

*अउ छान्ही छावत हे कोन्हो, उजड़े झन घर खोली।।*


गाँव मा सब बने होही? जेठ के तपिस मा जीव जगत मुरझाय कस होगे रहिस ।अब असाड़ आ गेहे मितान। घाम मा घमाय अउ झांझ मा झोलाय अउ लाहकत जीव मन अब थीर पावत हें।

रहि रहि के झड़ी ले जेन सुक्खा तरिया डबरी हें ओ मन मा अब पानी माढ़े बर धर ले होहीं।अउ सुरुज के ताप ले अउँटे अउ अब मतलाय मटियाहा  पानी वाले तरिया मन घलो बरसा  ले धीरे-धीरे भरे ला धर ले होहीं।चिरई - चुरगुन मन के टोंटा घलो अब तर होवत होही। बोर कुआं के पातर होय जल स्रोत मन बने ओगरे पझरे बर धर लें होहीं। काबर मानसून ए बखत समय ले पहिली पहूँच के बरोबर बरसत हे। एसो के चउमासा सबो तनी सुखदाई रइही, अइसे भरोसा हे।देखौ तो-


*पल्हरा ऊपर पल्हरा आगे।*

*बादर चारों कोती छागे।।*

*हवा गरेरा तको उमड़गे।*

*अमली आमा जामुन झरगे।।*


गाँव के बात सोचत - सोचत असाड़ के दिन के सुरता मन मा समावत हे -


*लगत झड़ी हे मानसून के।**

*कमरा खुमरी रखत तून के।।*

*बरदी मा गरुवा अब जाही।*

*ग्वाला बँसरी बाँस सुनाही।।*


मितान! लइका मन ला घलो असाड़ के दिन अनोखा लागथे। प्रकृति के बदलत रंग के संग मगन होत मन उँकर खुशी मा उछलत रहिथे।अगोरा रहिथे ए बेरा के ।अँगना मा ओरवाती के टपक, मोरी के गोदगोदा अउ गली मा पानी के धार घात प्रिय हे ये मन ला।घमाय लइकई जीव बरसा के आनंद ले बर अकुलावत रहिथे।काँचा-चिखला माटी अउ पानी मा उँकर किसम - किसम के खेलकूद। 


*ओरवाती हर चुहत हे, देख अँगना भाय पानी।*

*गोदगोदा मा खड़े हे नानकुन लइका नदानी।।*

*बड़ बबा बरजत हवै रे, झन नहा तबियत बिगड़ही।*

*तोर दाई देखही ते,संग मोरो बर बिफड़ही।।*

*हे कहाँ लइका ह मानत, हाँस बड़ चिल्लात हावै।*

*जोर जब बिजुरी ह कड़कै, भाग परछी दौड़ आवै।।*


मितान! इही बरसात के दिन ननपन मा आल्हा गीत सुने के मजा घलो लेवन। फेर अब वो दिन नँदागे हवै अइसे लागथे ।

एक बानगी सुरता मा आवत हे आल्हा के,


*बीर उदल हर बैरी मन बर, निमगा होगे हावै काल।*

*पीट - पीट के मार- मार के , कर दे हावै बारा हाल।।*


*चौसठ जोगनी अउ पुरखा ला, सुमिरत आल्हा बारंबार ।*

*छोड़ँव नहीं कहत बैरी ला, लहू पिही मोरे तलवार।।*


मितान,इहों शहर मा अब पहिली जइसे रौनक नइ रहिगे। बेरोजगारी अति हे। काम धाम शुन्य हे। 


 बारिस मा शहर के हाल घलो बेहाल रहिथे।चिकना- चिकना सड़क पानी मा बूड़ जथे। जाम नाली ले गली- मोहल्ला मा पानी के निकासी नइ होय धरै। पानी के बहाव क्षेत्र मन अतिक्रमण के शिकार हें। सरकारी मशीनरी अउ ठेकेदार अपन तरीका ले काम करथे। फेर पेपर अउ पब्लिक के हल्का- गुल्ला ले धक्कापेल होवत रहिथे। इहों के जिनगी अब पहिली जइसे नइ रहिगे हे ।कोरोना के मार सबो कोती नजर आवत हे। भगवान जल्दी सब ला ठीक ठाक करै।रोजी- रोटी के हाल संसो मा डारे के लइक हे।लोगन कलपत हें।


*रोजी रोटी हाथ हर, देवव तुम सरकार।*

*जनता ला व्याकुल करत, मँहगाई के मार।।*

*मँहगाई के, मार गजब हे, बेकारी हे।*

*काम धाम बिन, भटकत शिक्षित, नर नारी हे।।*

*देख उपेक्षा, हिरदे होवत, बोटी बोटी।*

*उद्यम धंधा, बिन अब कइसे, मिलही रोटी।।*


महूँ का बात मा फदक गेंव मितान? बरसा के सुग्घर गोठ होवत रहिस।मँय समस्या गिनाय ला धर लेंव।

बात असाड़ के होवत रहिस-


*आय असाड़ नदी नरवा छलके बरसे जब अब्बड़ पानी।*

*प्यास बुझै भुइयाँ हरियावय जंगल झाड़ उल्होवय धानी।।*

*वाह! मितान बड़े निकता दिन कोयल के सुन मीठ जुबानी।*

*जीव जनावर हे खुश इंदर ढोल बजात करै मनमानी।।*


मोर भिलाई शहर के हरियाली जग जानत हे मितान।मँय भागमानी आँव कि इहाँ भिलाई इस्पात संयंत्र के सुग्घर बसाय नगर के निवासी हरँव। पेड़ पौधा, बाग - बगीचा इहाँ के विशेषता हरे। मोर निवास के चारों कोती सघन पेड़ पौधा अउ हरियाली ले मन सदा प्रसन्न रहिथे। 


घनघोर बरसा, हवा गरेरा के चलना,घर मा बिजली के चले जाना अउ अइसन मा घोर अँधियार मा आसमानी बिजली के कड़कना चमकना, कभू कभू  रात के दृश्य ला बिकट डरावना कर देथे।एक दिन तो 

कीड़ा - मकोड़ा के आवाज अउ अध जगा नींद भयानक होगे।दृश्य अभो आँखी मा हे, 


*कड़-कड़-कड़ बड़, कड़कत लउकत,*

*सर सर सर सर , चलत पवन हर।*


*झरर झरर झर, बरसत जल हर,*

*अगन लगत अस, तड़पत तन हर।*


*छमक छमक छम, कउन चलत झम,* 

*बजत गजब बड़, जस पयजन हर।*


*धक् धक् धक् धक्, धड़कत उर हर,*

*डर डर अड़बड़, झझकत मन हर।।* 


मोर कवि मन के भाव ला का बतावव मितान। घर मा बइठे - बइठे कल्पना लोक मा गिंजरत रहिथँव।अभी के बेरा बाहिर गिंजरे के इजाजत नइ दय, तब कलम मोर सँगवारी बने हे ।एकर संग मोर खूब जमत हे ।दया मया राखे रइहू ।खच्चित पाती भेजहू। 


*कोरोना के काल गुजरही, जाही दुख के बेरा।*

*हरदम जीते हे मनखे हर, आही नवा सवेरा।।*

*नेव मया के हमर मितानी, अमर हमेशा रइही।*

*सुख दुख के संगी रहिबो हम, समय कहानी कइही।।* 


मितान, गाँव मा सब झन ला मोर राम राम। फूल ददा अउ फूल दाई ला पायलगी कही देहौ मोर कोती ले।लइका मन ला शुभाशीष, मया दुलार अउ संगी जहूँरिया मन ला जोहार ।अगोरा मा। 


                        *तुँहर मितान*

                 बलराम चंद्राकर भिलाई

चिट्ठी पाती-महेंद्र बघेल

 चिट्ठी पाती-महेंद्र बघेल


सत्य कबीर                

   

                           डोंगरगांव

                        24/06/21


मयारू मितान खेलन दास जी,

         सादर साहेब बंदगी.

" सद्गुरु दूनो डहर ल मंगल कुशल राखय."


*(मॅंहगाई के मार मा,बढ़गे सबके रेट।*

*मसकत हे पेट्रोल हर, दॅंदरावत हे नेट।।*

*सुरसा कस बाढ़त हवय, निकलत तन के रेश।*

*चिट्ठी बचिस विकल्प अब, भेजत हॅंव संदेश।)*


दिन हा कइसे निकलथे गमेच नइ मिले, देखना आप से बात करे गंज दिन होगे रहिस, सम-कुसमय आपके सुरता ह आते रहय  फेर का करबे उसरत नइ रहिस, अक्ती बर बिहाव म मिलहू सोचे रहेंव त एती लाक डाउन ह पेर दिस। दस झिन बराती-घराती के नियम धियम के चक्कर म बिहद्रा सगा घर न तहू आय न महू गेंव । पता चलिस घरवाले मन चुलमाटी तेलमाटी लाय बर अपने अपन सुटुर- सुटुर गीन, खन-कोड़ के ले अइन।

मेन नाचा त दूर तेल चघाय बर सात झन मनखे के टोंटा होगे। ये कोरोना के सेती सब नेंग जोंग हर शार्ट कट के भेंट चढ़गे। मोला तो अइसे लगथे मितान ये महामारी के सेती बिहाव घर के खरचा घलव अब्बड़ बाचिस होही।

येदे चिट्ठी लिखत बइठे हॅंव त रटरटऊॅंव्वा पानी घलव झोरत हे। आस पास के गाॅंव गॅंवतरी मा 14 तारीख ले पानी गिरत हे, फेर कोन जनी का होगे रहिस ते डोंगरगांव मा बने ढंग ले बारिश नइ होय रहिस जेन समझ ले बाहिर हे। हर रोज संझा-बिहना भंडार डहर ले चिरईजाम बरोबर करिया करिया बादर उठे, बंग- बंग अउ चिरिर-चिरिर बिजली चमकई ले ऑंखी हा मुॅंदाय कस हो जात रहिस, डरडरावन गरजना ले पुठा काॅंप जावत रहिस। फेर सिटिर-सिटिर गिरके बादर उड़ा जाय। खेती बारी के नाव मा काॅंटा-खूॅंटी बिना गेहे, काॅंद-बूटा छोला गेहे अउ गोबर खातू घलव छिचा गेहे। बस एके चीज के अगोरा करत रहेन, बाॅंवत के लईक पानी के। लगथे हमर आस ल ईश हा ओरख डरिस तभे तो मेघ देव के कृपा ले आज बनेच पानी ठठावत हे। 

झमाझम बरसा अउ परछी मा मारत झिपार के बूंद के गुदगुदी ले हाथ गोंड़ के जम्मो  रूंवा हर ठाढ़ होगे हे ।

जीव हर तो करत हे गोदगोदा में बैठ के नहा लेतेंव अउ गरमी ला शांत कर लेतेंव। फेर सर्दी जुकाम के बड़े बाप कोरोना के डर के मारे हिम्मत नइ होइस।

ए साल सोयाबीन के बीजहा के दाम म तो आगी लगे हे। हाॅं मितान  काली जुवार के पेपर मा पढ़ें हॅंव के सरकार हर दलहन तिलहन बोंवइया किसान मन ला एकड़ पाछू दस हजार प्रोत्साहन राशि देवइया हे। सबों ला धनहा डोली बनाय के लोभ मा का बताव मोर कर एको कनी भर्री-भाॅंटा नइ बाचिस, नइते दलहन तिलहन के फसल जरूर लेय रहितेंव। 

तुम्हर डहर पानी-काॅंजी , बोनी-बाॅंवत के का हाल-चाल हे।मॅंय तो इही कहूॅं मितान कोनो भर्री-भाॅंटा होही ते तीली, राहेर, उरीद जइसे फसल ला खच्चित ले बोना उचित रइही।

माॅंहगी डीजल के सेती टेक्टर मा जोताई हजार रूपया घंटा होगे हे। फेर हमला तो हर हाल मा खेती करना च हे चाहे कुछु हो जाय। सोचत  हॅंव खेत के राग-पाग बने रइही ते हमूमन काली ले बोनी शुरू करबो।

आशा हे सदगुरु के कृपा ले एसो के पानी बादर सब ठीक-ठाक रइही।

हमर मेल मुलाकात होय अब्बड़ दिन होगे हवय ,तेकर सेती कहिथॅंव एकाद दिन समय निकाल के भऊजी सॅंग हमरो घर पधारे के कृपा करहू। घर म कका-काकी, भऊजी ल प्रणाम अउ लइका मन ल मोर डहर ले मया दुलार कहि देबे मितान।

         *साहेब बंदगी*

   🙏चिट्ठी के अगोरा मा🙏


                    तोर मितान

               महेंद्र कुमार बघेल

                    डोंगरगांव

*परम पूज्य संत कवि कबीर दास जी के जयंती के अवसर म भावांजलि सादर अर्पित हे।* 🌺🌺🌺💐💐💐 *सदगुरु संत कबीरदास जी* ---------------------------- हिंदी साहित्य के इतिहास म भक्ति काल ल स्वर्ण युग कहे जाथे काबर के वो समे(लगभग 500 -600 साल पहिली) अइसे-अइसे महामानव ,पथ प्रदर्शक,जन-जन म प्रेम अउ मानवता के अलख जगइयाँ संत कवि होइन जिंकर सृजन मन ल असली म कालजयी कहे जा सकथे। उही मन म सर्वश्रेष्ठ रहस्यवादी ,क्रांतिकारी, निर्गुण ब्रह्म उपासक संत कवि कबीरदास जी माने जाथें। *जीवन परिचय*-- संत कवि कबीरदास जी के जन्म तिथि, माता पिता ,परिवार ,शिक्षा दिक्षा आदि के संबंध म कई प्रकार के मान्यता हे काबर के ये सबंध म इतिहास के कोनो पुस्तक म स्पष्ट अउ प्रमाणिक उल्लेख नइये। तभो ले अधिकांश विद्वान मन कबीर दास जी के जन्म काशी(वाराणसी) म *लगभग सन् 1398 म* मानथें पिता नीरू अउ माता नीमा जे मन जुलाहा रहिन के घर मानथें। कबीर दास जी के अनुयायी मन के मान्यता हे के कबीरदास जी ह काशी के लहरतारा ताल म पुरइन के पत्ता उपर प्रगट होये रहिन जेकर पालन पोषण नीरू अउ नीमा करे रहिन। संत कबीरदास जी के पत्नी लोई अउ संतान कमाल(पुत्र) अउ कमाली(पुत्री) ल माने जाथे। कबीरदास जी के गुरु काशी के प्रख्यात वैष्णव संत *रामानंद* ह आँय जेकर ले कबीरदास जी ह राम नाम के दीक्षा प्राप्त करे रहिस।ये बात के उल्लेख स्वयं कबीरदास जी ह अपन साखी अउ सबद म करे हावयँ। कबीर दास जी के मृत्यु मगहर नामक जगा म जेन ह वाराणसी के तीर गंगा के वो पार घाट म हे ,लगभग सन 1518 म होये रहिस। ये जगा म आजो कबीरदास जी के समाधि (मठ) हाबय। इहें *सिद्ध पीठ कबीर चौंरा मठ मुलगड़ी* हावय जिहाँ संत के खड़ाऊ, रुद्राक्ष के माला,जेला गुरु रामानंद जी दे रहिन हें अउ उनखर बउरे आन जिनिस मन तको रखाय हाबयँ जेकर दर्शन बर देश-दुनिया के लोगन आथें। ये मठ म कबीरदास जी के बाद पहिली मठाधीश सर्वानंद जी राहत रहिन। संत कबीरदास जी के अंतिम क्रिया करे के समे के एकठन रोचक जनश्रुति हे के हिंदू अउ मुस्लिम मन अपन अपन ढंग ले संत कबीरदास जी के मृत शरीर के क्रिया कर्म करे बर झगरा होइन फेर जब ढँकाये कफन ल हटाइन त उहाँ शरीर नइ रहिसे सिरिफ फूल बिखरे रहिस हे तब वोमन उही ल बाँट के क्रियाकर्म करिन। हकीकत काये तेला परमात्मा जानय काबर के -जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। हाँ अतका जरूर हे एक सच्चा संत ,महात्मा मन के जीवन म अइसन चमत्कार होवत सुने अउ देखे गेहे। *संत कबीरदास जी के साहित्य*-- संत कबीरदास जी कोनो स्कूल या फेर आश्रम म पढ़े-लिखे नइ रहिन । ये बात के पता उँखर एक प्रसिद्ध साखी ले चलथे जेमा लिखाये हे-- *मसि कागद छुवौ नहीं, कलम गह्ये नहिं हाथ।* संत कबीरदास जी ह अपन विचार अउ शिक्षा ल मुँह अँखरा बोलयँ अउ उँखर शिष्य मन ,प्रमुख रूप ले धनी धर्मदास जी ह लिखयँ। पश्चिमी विद्वान एच०एच० विल्सन ह संत कबीरदास जी के आठ ग्रंथ, जी०एच०वेस्काट ह चौरासी त भारतीय विद्वान रामदास गौड़ ह एकहत्तर ग्रंथ मानथें। संत कबीरदास जी के साहित्य के संग्रह ग्रंथ ल *बीजक* कहे जाथे जेन साखी(दोहा), सबद (गीत) अउ रमैनी(रहस्यमयी उलटबांसी) के रूप म हावय। ये जम्मों रचना कालजयी हें। आजो जन-जन म पढ़े अउ सुने जाथे। एक निरक्षर जेन अद्भुत ज्ञानी रहिसे के रचना उपर आज संसार के बड़े-बड़े विश्वविद्यालय म शोध होवत हे अउ डाक्टरेट के उपाधि दे जावत हे। *ये रचना मन कोनो साधारण पुस्तक नोहयँ। ये मन ग्रंथ* *आयँ।हमर विचार से ग्रंथ मतलब जेन मनखे के मन के गाँठ ल खोल दय। ग्रंथ मलतब जेन मनखे के मानवता के ग्रंथि ल जगा दय जेकर ले प्रेम के रस स्रावित होवय ,जेकर ले हिरदे के आँखी उघर जय अउ सत्य के दर्शन होवय।* संत कबीरदास जी के साहित्य के भाषा खिचड़ी, साधुक्ड़ी हे जेमा पंजाबी, व्रज, अवधी, राजस्थानी अउ पूर्वी खड़ी बोली मिंझरे हे। भाषा सहज अउ सरल हे । *संत कबीरदास जी के शिक्षा अउ साहित्य म संदेश*---- *निर्गुण ब्रह्म के उपासना* कबीर दास जी निर्गुण ब्रह्म उपासक ज्ञानमार्गी संत कवि रहिन। अध्यात्म म आत्ममुक्ति,आत्मज्ञान (जेला मोक्ष, निर्वाण,मुक्ति, दुख निवृत्ति, भवसागर ले तरना, जन्म मृत्यु के बंधन ले मुक्त हो जाना आदि नाम ले अपन- अपन मान्यता ,संप्रदाय ,पंथ आदि के अनुसार पुकारे जाथे) ल पाये के *तीन प्रमुख मार्ग--ज्ञान, भक्ति अउ कर्म* बताये जाथे।एमा सबले कठिन रास्ता *ज्ञान मार्ग* हाबय। येला तलवार के धार म चलना कहे जाथे। गोस्वामी तुलसीदास दास जी कहिथें के-- *ग्यान पंथ कृपाण की धारा। परत खगेस लागहिं नहिं बारा।।* ज्ञान मार्ग म चलना एखर सेती अबड़ेच कठिन हे के सबो सजीव, निर्जीव म एक उही परमात्मा के दर्शन करके सबो संग भेदभाव ल त्याग के निर्मल प्रेम करे बर परथे। एक कीड़ा अउ इंसान दूनों बर तको समान भाव रखे बर परथे। जरा सोचे जाय ये कतका कठिन हे? हमर सदग्रंथ अउ सतपुरुष मन इही ज्ञान ल जगाये के शिक्षा दे हावयँ। परम पूज्य संत गुरु घासीदास जी ह इही ल *मनखे-मनखे एक समान कहे हें* त वेद ह *वसुधैव कुटुम्बकं* कहे हे। गोस्वामी जी ह *सियाराम मैं सब जग जानी। करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।* कहे हावय। संत कबीरदास जी इही घट-घट म समाये परमात्मा के उपासना के शिक्षा दे हावयँ। *आडंबर के विरोध*-- आडम्बर ह मनखे ल भटकाके गिरा देथे। असली ल छोड़के मनखे ह नकली कोती जादा भागे ल धर लेथे काबर के वोमा आकर्षण दिखथे। संसार के सबले बड़का क्रांतिकारी कवि कबीर दास जी ह( अरबी भाषा के शब्द कबीर के अर्थ बड़े होथे) समाज म व्याप्त नाना प्रकार के आडम्बर, मिथ्याचार जेन चाहे हिंदू मन म रहिस या मुस्लिम मन म वोकर पुरजोर विरोध करके ,आडम्बर ल छोड़े के शिक्षा दे हें। मूर्ति पूजा के विरोध करत उन कहिथे--- *पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।* *था ते तो चाकी भली,जा ते पीसी खाय संसार*। अइसने मस्जिद के उपर चढ़के जोर-जोर ले चिल्लाना ल सुनके ये आडम्बर बर भड़कत संत कबीर के वाणी के ललकार हे-- *काकर पाथर जोर के, मस्जिद दई चुनाव।* *ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।* अइसने अउ नाना प्रकार के आडम्बर मन के विरोध म संत कबीरदास जी के साहसिक अउ प्रेरणादायक वाणी हें। *मानवतावादी सीख*--- संत कबीरदास मानवतावादी कवि यें।उन दीन-दुखी के सेवा ल परमात्मा के सेवा माने हें। परहित के सीख देवत उन कहिथें-- *जो तोकौ काँटा बुवै, ताहि बोवे फूल।* *तोहि फूल के फूल है, वाको है तिरसूल।।* *सत्य के महिमा बखान*--संत कबीरदास जी सत्यदृष्टा ,सत्यप्रचारक रहिन। उखँर सत्य के संदेश सिक्ख धर्म के आदि ग्रंथ म शामिल तो हाबेच ओखर प्रभाव अनेक संत मन के शिक्षा म तको दिखथे। उन कहे हें-- *साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।* *जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप।* *प्रेम के संदेश*--- संत कबीरदास जी परमात्मा ले कभू पती भाव ले, त कभू माता-पिता अउ सखा के रूप म निश्छल अउ निर्मल प्रेम करयँ। कतका सुंदर प्रेम हे- *हरि मोर पिउ,मैं राम की बहुरिया।* मलिन लौकिक प्रेम ल बिरथा बतावत उन सबो प्राणी ले प्रेम के उपदेश देवत कहिथें- *पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।* *ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।* *प्रेम प्रेम सब कोई कहे, प्रेम न चिन्है कोय।* *आठ पहर भीगा रहे, प्रेम कहावय सोय।* *गुरु के महिमा बखान*-- ये तो अकाट्य सत्य हे के बिना गुरु के ज्ञान कभू नइ मिल सकय। जानकारी (नालेज) गली गली अउ कखरो से भी मिल सकथे। ज्ञान (अध्यात्म ज्ञान ,खुद ल जाने के ज्ञान) अउ जानकारी म जमीन-आसमान के अंतर हे। अध्यात्म ज्ञान सदगुरु ले ही मिलथे। सदगुरु ईश्वर तुल्य होथे। संत साहित्य गुरु महिमा के बखान ले सराबोर मिलथे। गुरु के संबंध म संत कबीरदास के साखी सबके जुबान म रहिथे।उन कहे हें-- *गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय।* *बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।* आज नैतिक पतन अउ घोर आडम्बर के ये युग म मानवता ,प्रेम ,सत्य ,अहिंसा अउ भाईचारा के शिक्षा देवत संत कबीरदास जी के वाणी म व्यक्त शिक्षा ल अपनाये के बहुतेच आवश्यकता हे। चोवा राम वर्मा 'बादल' हथबंद, छत्तीसगढ़

 




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*सदगुरु संत कबीरदास जी*
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हिंदी साहित्य के इतिहास म भक्ति काल ल स्वर्ण युग कहे जाथे काबर के वो समे(लगभग 500 -600 साल पहिली) अइसे-अइसे महामानव ,पथ प्रदर्शक,जन-जन म प्रेम अउ मानवता के अलख जगइयाँ संत कवि होइन जिंकर सृजन मन ल असली म कालजयी कहे जा सकथे।
      उही मन म सर्वश्रेष्ठ रहस्यवादी ,क्रांतिकारी, निर्गुण ब्रह्म उपासक संत कवि कबीरदास जी माने जाथें।
  *जीवन परिचय*--
  संत कवि कबीरदास जी के जन्म तिथि, माता पिता ,परिवार ,शिक्षा दिक्षा आदि के संबंध म कई प्रकार के मान्यता हे काबर के ये सबंध म इतिहास के कोनो पुस्तक म स्पष्ट अउ प्रमाणिक उल्लेख नइये। तभो ले अधिकांश विद्वान मन कबीर दास जी के जन्म काशी(वाराणसी) म *लगभग सन् 1398 म* मानथें पिता नीरू अउ माता नीमा जे मन जुलाहा रहिन के घर मानथें। कबीर दास जी के अनुयायी मन के मान्यता हे के कबीरदास जी ह काशी के लहरतारा ताल म पुरइन के पत्ता उपर प्रगट होये रहिन जेकर पालन पोषण नीरू अउ नीमा करे रहिन।
        संत कबीरदास जी के पत्नी लोई अउ संतान कमाल(पुत्र) अउ कमाली(पुत्री) ल माने जाथे।
      कबीरदास जी के गुरु काशी के प्रख्यात वैष्णव संत *रामानंद* ह आँय जेकर ले कबीरदास जी ह राम नाम के दीक्षा प्राप्त करे रहिस।ये बात के उल्लेख स्वयं कबीरदास जी ह अपन साखी अउ सबद म करे हावयँ।
      कबीर दास जी के मृत्यु मगहर नामक जगा म जेन ह वाराणसी के तीर गंगा के वो पार घाट म हे ,लगभग सन 1518 म होये रहिस। ये जगा म आजो कबीरदास जी के समाधि (मठ) हाबय।
 इहें *सिद्ध पीठ कबीर चौंरा मठ मुलगड़ी* हावय जिहाँ संत के खड़ाऊ, रुद्राक्ष के माला,जेला गुरु रामानंद जी दे रहिन हें अउ उनखर बउरे आन जिनिस मन तको रखाय  हाबयँ जेकर दर्शन बर देश-दुनिया के लोगन आथें। ये मठ म कबीरदास जी के बाद पहिली मठाधीश सर्वानंद जी राहत रहिन।
      संत कबीरदास जी के अंतिम क्रिया करे के समे के एकठन रोचक जनश्रुति हे के हिंदू अउ मुस्लिम मन अपन अपन ढंग ले संत कबीरदास जी के मृत शरीर के क्रिया कर्म करे बर झगरा होइन फेर जब ढँकाये कफन ल हटाइन त उहाँ शरीर नइ रहिसे सिरिफ फूल बिखरे रहिस हे तब वोमन उही ल बाँट के क्रियाकर्म करिन।
     हकीकत काये तेला परमात्मा जानय काबर के -जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। हाँ अतका जरूर हे एक सच्चा संत ,महात्मा मन के जीवन म अइसन चमत्कार होवत सुने अउ देखे गेहे।
*संत कबीरदास जी के साहित्य*--
 संत कबीरदास जी कोनो स्कूल या फेर आश्रम म पढ़े-लिखे नइ रहिन । ये बात के पता उँखर एक प्रसिद्ध साखी ले चलथे  जेमा लिखाये हे--
*मसि कागद छुवौ नहीं, कलम गह्ये नहिं हाथ।*
      संत कबीरदास जी ह अपन विचार अउ शिक्षा ल मुँह अँखरा बोलयँ अउ उँखर शिष्य मन ,प्रमुख रूप ले धनी धर्मदास जी ह लिखयँ। पश्चिमी विद्वान एच०एच० विल्सन ह संत कबीरदास जी के आठ ग्रंथ, जी०एच०वेस्काट ह चौरासी त भारतीय विद्वान रामदास गौड़ ह एकहत्तर ग्रंथ मानथें।
      संत कबीरदास जी के साहित्य के संग्रह ग्रंथ ल *बीजक* कहे जाथे जेन साखी(दोहा), सबद (गीत) अउ रमैनी(रहस्यमयी उलटबांसी) के रूप म हावय।
      ये जम्मों रचना कालजयी हें। आजो जन-जन म पढ़े अउ सुने जाथे। एक निरक्षर जेन अद्भुत ज्ञानी रहिसे के रचना उपर आज संसार के बड़े-बड़े विश्वविद्यालय म शोध होवत हे अउ डाक्टरेट के उपाधि दे जावत हे।
     *ये रचना मन कोनो साधारण पुस्तक नोहयँ। ये मन ग्रंथ* *आयँ।हमर विचार से ग्रंथ मतलब जेन मनखे के मन के गाँठ ल खोल दय। ग्रंथ मलतब जेन मनखे के मानवता के ग्रंथि ल जगा दय जेकर ले प्रेम के रस स्रावित होवय ,जेकर ले हिरदे के आँखी उघर जय अउ सत्य के दर्शन होवय।*
      संत कबीरदास जी के साहित्य के भाषा खिचड़ी, साधुक्ड़ी हे जेमा पंजाबी, व्रज, अवधी, राजस्थानी अउ पूर्वी खड़ी बोली मिंझरे हे।
      भाषा सहज अउ सरल हे ।

*संत कबीरदास जी के शिक्षा अउ साहित्य म संदेश*----
  *निर्गुण ब्रह्म के उपासना* कबीर दास जी निर्गुण ब्रह्म उपासक ज्ञानमार्गी संत कवि रहिन।
       अध्यात्म म आत्ममुक्ति,आत्मज्ञान (जेला मोक्ष, निर्वाण,मुक्ति, दुख निवृत्ति, भवसागर ले तरना, जन्म मृत्यु के बंधन ले मुक्त हो जाना आदि नाम ले अपन- अपन मान्यता ,संप्रदाय ,पंथ आदि के  अनुसार पुकारे जाथे) ल पाये के  *तीन प्रमुख मार्ग--ज्ञान, भक्ति अउ कर्म* बताये जाथे।एमा सबले कठिन रास्ता *ज्ञान मार्ग* हाबय। येला तलवार के धार म चलना कहे जाथे। गोस्वामी तुलसीदास दास जी कहिथें के--
*ग्यान पंथ कृपाण की धारा। परत खगेस लागहिं नहिं बारा।।*
       ज्ञान मार्ग म चलना एखर सेती अबड़ेच कठिन हे के सबो सजीव, निर्जीव म एक उही परमात्मा के दर्शन करके सबो संग भेदभाव ल त्याग के निर्मल प्रेम करे बर परथे।  एक कीड़ा अउ इंसान दूनों बर तको समान भाव रखे बर परथे। जरा सोचे जाय ये कतका कठिन हे? 
   हमर सदग्रंथ अउ सतपुरुष मन इही ज्ञान ल जगाये के शिक्षा दे हावयँ। परम पूज्य संत गुरु घासीदास जी ह इही ल *मनखे-मनखे एक समान कहे हें* त वेद ह *वसुधैव कुटुम्बकं* कहे हे। गोस्वामी जी ह *सियाराम मैं सब जग जानी। करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।* कहे हावय।
        संत कबीरदास जी इही घट-घट म समाये परमात्मा के उपासना के शिक्षा दे हावयँ।
*आडंबर के विरोध*-- आडम्बर ह मनखे ल भटकाके गिरा देथे। असली ल छोड़के मनखे ह नकली कोती जादा भागे ल धर लेथे काबर के वोमा आकर्षण दिखथे।
  संसार के सबले बड़का क्रांतिकारी कवि कबीर दास जी ह( अरबी भाषा के शब्द कबीर के अर्थ बड़े होथे) समाज म व्याप्त नाना प्रकार के आडम्बर, मिथ्याचार जेन चाहे हिंदू मन म रहिस या मुस्लिम मन म वोकर पुरजोर विरोध करके ,आडम्बर ल छोड़े के शिक्षा दे हें। मूर्ति पूजा के विरोध करत उन कहिथे---
*पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।*
*था ते तो चाकी भली,जा ते पीसी खाय संसार*।
      अइसने मस्जिद के उपर चढ़के जोर-जोर ले चिल्लाना ल सुनके ये आडम्बर बर भड़कत संत कबीर के वाणी के ललकार हे--
*काकर पाथर जोर के, मस्जिद दई चुनाव।*
*ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।*
     अइसने अउ नाना प्रकार के आडम्बर मन के विरोध म संत कबीरदास जी के साहसिक अउ प्रेरणादायक वाणी हें।
*मानवतावादी सीख*---
 संत कबीरदास मानवतावादी कवि यें।उन दीन-दुखी के सेवा ल परमात्मा के सेवा माने हें। परहित के सीख देवत उन कहिथें--
*जो तोकौ काँटा बुवै, ताहि बोवे फूल।*
*तोहि फूल के फूल है, वाको है तिरसूल।।*
    
*सत्य के महिमा बखान*--संत कबीरदास जी सत्यदृष्टा ,सत्यप्रचारक रहिन। उखँर सत्य के संदेश सिक्ख धर्म के आदि ग्रंथ म शामिल तो हाबेच ओखर प्रभाव अनेक संत मन के शिक्षा म तको दिखथे। उन कहे हें--
*साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।*
*जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप।*

*प्रेम के संदेश*---
  संत कबीरदास जी परमात्मा ले कभू पती भाव ले, त कभू माता-पिता अउ सखा के रूप म निश्छल अउ निर्मल प्रेम करयँ। कतका सुंदर प्रेम हे-
*हरि मोर पिउ,मैं राम की बहुरिया।*

   मलिन लौकिक प्रेम ल बिरथा बतावत उन सबो प्राणी ले प्रेम के उपदेश देवत कहिथें-
*पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।*
*ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।*

*प्रेम प्रेम सब कोई कहे, प्रेम न चिन्है कोय।*
*आठ पहर भीगा रहे, प्रेम कहावय सोय।*

*गुरु के महिमा बखान*-- ये तो अकाट्य सत्य हे के बिना गुरु के ज्ञान कभू नइ मिल सकय। जानकारी (नालेज) गली गली अउ कखरो से भी मिल सकथे। ज्ञान (अध्यात्म ज्ञान ,खुद ल जाने के ज्ञान) अउ जानकारी म जमीन-आसमान के अंतर हे।
अध्यात्म ज्ञान सदगुरु ले ही मिलथे। सदगुरु ईश्वर तुल्य होथे। संत साहित्य गुरु महिमा के बखान ले सराबोर मिलथे। गुरु के संबंध म संत कबीरदास के साखी सबके जुबान म रहिथे।उन कहे हें--
*गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय।*
*बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।*

         आज नैतिक पतन अउ घोर आडम्बर के ये युग म मानवता ,प्रेम ,सत्य ,अहिंसा अउ भाईचारा के शिक्षा देवत संत कबीरदास जी के वाणी म व्यक्त शिक्षा ल अपनाये के बहुतेच आवश्यकता हे।

चोवा राम वर्मा 'बादल'
 हथबंद, छत्तीसगढ़

Wednesday 23 June 2021

जउन मन कबीर ला जान लिही कबीर ओखरे आय*।


 

दिनांक___23/06/2021

पद्मा साहू ‘पर्वणी‘

खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़

*जउन मन कबीर  ला जान लिही कबीर ओखरे आय*।


हमर भारतीय दर्शन मा बहुत से साहित्यकार, संत पुरुष होय  हे जेमा संत कबीर हा भक्ति काल के एक अइसे संत हरै जेकर ज्ञान अटपट हे जेला समझ पाना बहुत कठिन हे। कबीर जी सधुक्कड़ी जीवन अपनाइस, अपन जीवन ला साधु के समान बिताइस ।कबीर के ज्ञान ला जाने बर  पहिली अपन आप ला जाने ल पड़ही । कबीर के ज्ञान छोटे-मोटे ज्ञान नोहे कबीर एक अइसे व्यक्तित्व , महान पुरुष हरै जेन ला आज पूरा दुनिया हा जानथे अउ संत कबीर के ज्ञान ला मानथे। 

       कबीर के गुरु रामानंद स्वामी जी हा कबीर के वास्तविक रूप, ज्ञान ला जान के कबीर ला गुरु मानीस  फेर कबीर के आज्ञा ले कबीर के गुरू बने रहिस। रामानंद गुरु हा  शालिग्राम के मूर्ति ला नहा धोवा के तैयार कराथे फेर माला पहिनाय बर भूला जाथे त अपन माला ला हेरथे  ओहा गर ले निकलबे नइ करे। कबीर कहीथे गांठ ला खोलव, अज्ञानता के भ्रम ला तोड़व, तब माला गर ले निकलही अउ भव बंधन हा छुटही उही दिन ले स्वामीजी ला ब्रह्म तत्व  अपन अंतस के राम के ज्ञान होथे, अउ कबीर के आगु मा नतमस्तक हो जाथे। 

          कबीर भक्ति काल के इकलौता संत हरै। 

कबीर कहीथे__

        एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट–घट बैठा।

        एक राम सकल पसारा, एक राम सबहुँ ते न्यारा।


एक राम दशरथ के, दुसर राम तीसर घट–घट वासी हे, तीसर राम सर्वव्यापी हे,अऊ जउन राम हा  सर्वव्यापकता ले ऊपर हे न्यारा हे उही राम के गुणगाथे कबीर हा।


       कबीर कहीथे कि राम अविनाशी नाम निराकार हे , साधना के प्रतीक  हे। 

अऊ ओ राम के दर्शन कब होही?

कबीर कहीथे__ 

         मन सागर मनसा लहरी, बूड़ै बहुत अचेत।

         कहहीं कबीर ते बांचिहैं, जिनके ह्रदय विवेक।।


 अर्थात मन सागर हे अउ ये सागर मा काम, क्रोध, विषय, वासना, लोभ, मोह, अहंकार के कई लहर उठथे। जउन मनखे मन अपन अंतस मन के ये लहर ल काबू  मा कर लेथे ब्रह्म तत्व ला जान लेथे उही मन भव सागर ले पार हो जाथे । जेन मन, मन के लहरा  ला शांत नइ कर पाय वो मन दुनिया के माया मा डूब जाथे।


    संत कबीर माया ले बचे बर दुनिया ला अगाह करथे ।

           मन माया तो एक है, माया मन ही समाय।

           तीन लोक संशय पड़ा , काहि कहूं समझाय।।


माया अउ मन एक हे।  माया मन मा ही बैइठे हे । जेकर से तीनों लोक संशय मा पड़गे  जेन मनला देवता कहिथे वहू मन नइ बाचिस।  त अब कोन हा कोन ला समझाही । अइसन अद्भुत हे कबीर के ज्ञान हा। 

 कबीर सम्यक तत्व ला समझाय के प्रयास करे हे दुनिया ला। 


         मन ऐसा निर्मल भया , जैसे गंगा नीर ।

         पाछे–पाछे हरि फिरै, कहत कबीर–कबीर।।


कबीर मनखे के असल रूप ला बतात हुए कहीथे कि तुम भगवान ल मत खोजव अपन मन ला अइसे निर्मल बनाव अउ अपन अस्तित्व ला जानव निर्गुण ब्रह्म तत्व ला जानव तहां ले हरि खुद तुम ला खोजत आही।

संत कबीर  ये संसार मा रहत हुए भी संसार के माया से दूर रिहिस। कबीर संसार  ला छोड़िस नइ हे फेर संसार ला पकड़िस घलो नहीं। विरक्त होके राहय, इही कबीर के जीवन जिए के कला आय।

 कबीर तो जनम अउ मरण के भ्रम ला घलो तोड़ दीस। लोगन मन के धारणा रहे कि काशी मा मरथे ता मुक्ति मिलथे, मगहर मा मरथे ता गधा बनथे । ये बात हा एक अंधविश्वास हरय ये अन्धविश्वास ला दूर करे बर कबीर खुद 120 वर्ष के उम्र मा काशी ले मगहर गिस । मगहर मा जाके लोगन मन ला समझाइस की आदमी के कोनो जगह मरेले सरग या नरक मा नइ जावय, आदमी के कर्म ओला सरग अउ नरक मा ले  जाथे। 


      ‘क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा।

        जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा’


हिंदू मुस्लिम ल फटकार घलो लगाय हे, एकता के सूत्र मा बाँधे के प्रयास करे हे ।

   हिंदू मुस्लिम के एकता बर काशी के राजा वीर सिंह बघेल अउ मगहर रियासत के मुस्लिम नवाब बिजली खान पठान दोनों कबीर के परम शिष्य हरय जउन मन कबीर के प्राण त्यागे के बाद देह ला अपन–अपन अपनाय बर  झगड़ा लड़ाई  के बात सोंचय । कबीर झगड़ा लड़ाई ला दूर करे बर अंत समय मा भी समन्वय करा दिस। एक दिन आमी नदी जेहा  शंकर के श्राप ले  सुक्खा राहय ऊंहा  कबीर के जाए ले पानी बोहाय लागीस। आज भी बहत हावय। ऊहा ले स्नान करके कबीर हा आइस  अउ अपन ध्यान समाधि बर चादर के बीच मा सोगे ओखर ऊपर फिर चादर ढक दिस। कबीर कहिस की  बिजली खान पठान , राजा वीर सिंह बघेल  चादर मा जो वस्तु मिलही तउन ला बराबर– बराबर बांट लेहू। अउ झगड़ा मत करहु। 

फेर कहीथे__

    उठा लो पर्दा, इनमें नहीं है मुर्दा।

 देखते–देखते चादर मा  कबीर के देह के जगह मा फूल  बनगे वोला हिंदू, मुस्लिम दोनों मन बाँट लिस अउ अपन –अपन  हिंदू मन समाधि, मुस्लिम मन मजार  बनाके कबीर ला माने लागिस।  अहु एक अद्भुत बात आय। जेला देख के बिजली पठान हा अचंभा मा पड़गे।


           संत कबीर नहीं नर देही, जारय जरत न गाड़े गड़ही।

           पठीयों इत पुनि जहाँ पठाना, सुनि के खान अचंभा माना। ।


कबीर अपन सधुक्कड़ी जीवन बिताइस । समाज ला समन्वय  के शिक्षा दीस । अनपढ़ होय के बाद भी पूरा दुनिया ला अपन अइसे शिक्षा दीस कि आज वो शिक्षा के फेर जरूरत हे । अद्भुत हे कबीर  अउ वोकर ज्ञान हा।


जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही।

सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही।।

  तत्व ज्ञान ला पाए बर निर्गुण उपासक कबीर हा अहंकार ला मेट के अपन जीवन ला जान लीस, दुनिया ला उपदेश करीस अंधविश्वास कुरूती ला दूर करे बर जब्बर काम करिस साहित्य ला नवा दिशा दिस।  कबीर के जीवन पूरा ज्ञान से भरे हे। जउन हा कबीर ला जान लिही  कबीर ओखरे आय।


पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।

एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात ।।


कबीर साहेब मनखे  मनला नेकी करे बर सलाह देथे, क्षणभंगुर मनखे शरीर के सच्चाई  ला लोगन मन ला बताथे कि पानी के बुलबुला जइसे मनखे के शरीर क्षणभंगुर हे। जइसे प्रभात होथे ता तारा छिप जाथे , वइसने  ये देह हा घलो एक दिन नष्ट हो जाही।


रचनाकार (संकलन कर्ता)

पद्मा साहू "पर्वणी"

खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़

विधा - चिट्ठी



 

विधा - चिट्ठी 


  🙏🙏जय सिया राम🙏🙏

                              शुभ स्थान - लाल बहादुर नगर 

  तारीख - 23 -0-6-2021

  मयारुक लहर जी 

                     जय जोहार 

            मेहा मोर घर -परिवार सहित भगवान के कृपा ले बने -बने हवँ.  बीच म कोरोना के असर हमरो घर म देखे ल मिलिस. अब सब बढ़िया से हवन.मोला बिश्वास हे कि आपो मन ह राम जी के कृपा ले ठीक -ठाक होहू. कका -काकी ल  मोर डहर ले सादर पैलगी कह देहू. नोनी -बाबू ल अब्बड़ आशीर्वाद देवत हवँ. 

   याद हे लहर जी जब मोबाइल के सुविधा नइ रिहिस त कइसे एक दूसरा के सोर हमन चिट्ठी लिख के करन. आज मोरो मन ह चिट्ठी लिखे के होइस. 

      हमर पाथरी म काली सुग्घर ढंग ले बरसा होइस हे. मन ह मयूर जइसे नाचे ल लगगे. 

लहर भाई जी जेठ ह बुलकइया हे अउ सुग्घर आषाढ़ अवइया हे. 

अगास  म करिया करिया बादर छाय हे. अइसे लगत हे जइसे आसमान ह काजर आंजे हे.सुग्घर 

ढंग ले पुरवाही चलत हे. रुख -रई ल देखत हन त अइसे लगथे जइसे लहरा लहरा के नाचत हे. चिरई -चुरगुन ह खुश होके गावत हे. कोइली के मीठ आवाज ह हमर हिरदे ल खुश कर देथे. 

   बारिश होय ले छानी अउ छत ले सुग्घर ओरसा बोहात हे. गली  म पानी बहत हे. लइका मन कागज के डोंगा ल बोहात हे. ओरसा के पानी ल हाथ म धरके

सींचत हे.  वोमन एक दूसर ल खींचत हे. कई लइका मन गिद- गिद गली म भागत हे अउ बरसा के मजा लेवत हे.

    एती किसानी के बात करन त हमर किसान भाई मन नाँगर -बईला ल धरके खेत जोते बर जावत हे. आज कल खेत म ट्रेक्टर हा जादा दिखत हे.समय के 

सँग चलना घलो जरुरी हे. किसान मन थरहा लगात हे. कोरोना के सेति लइका मन ह स्कूल नइ जात हे त कतको लइका मन ह खेती किसानी म घलो थोर कुन हाथ बटात हे. खेत म माई -पिला गोबर खातू ल बगरात हे. कोंटा ल कुदारी म खनत हे.किसानिन अउ लइका मन नंगरिहा बर सुग्घर ढंग ले भात अउ रोटी धर के जावत हे. नंगरिहा  ह खावत हे अउ लइका मन घलो झड़कावत हे. खाय के बाद किसान ह थोरकुन सुरतावत हे. एति नोनी -बाबू ह नाँगर चलाय बर अपन हाथ चलावत हे. त नान्हें लइका मन ल देखके बइला मन हरिया म नइ चलके दूसर कोति जावत हे. एला देखके वोकर बाबू -दाई मन खिला -खिला के हांसत हे. 

  खेत खार बोवात हे त धान ल नुकसान झन होय कहिके गरुवा मन ल बरदी डहर पहटिया के हाथ लगात हे. कई ठक गरुवा ह भगात हे त पहटिया ह नंगत कूदात हे. गरुवा मन के घंटी -घुम्मर ह सुग्घर सुनात हे. यादव मन बांसुरी बजावत हे. गरुवा मन आदर्श गौठान म जावत हे अउ सुग्घर ढंग ले कांदी अउ पैरा खावत हे. 

    हमर गांव डहर पर्यावरण ल बने रखे बर जवान सँगवारी मन पौधा लगात हे. वोला बचाय बर घेरा घलो डारत हे. 

     अउ तुंहर कोति का हाल -चाल हे तेला चिट्ठी लिख के बताहू लहर  जी. आषाढ़ म मोर भतीजा के बिहाव होही त चार -पांच दिन मेहा सुरगी आहू त अउ बाकी सोर -खबर ल गोठियाबो. घर डहर बड़े भइया अउ छोटे भाई, भतीजा मन ले फोन म बीच -बीच म बात करत रहिथों. कोरोना ह भागही त साकेत के गोष्ठी म सकलाबो. ये कोरोना काल म गुजर चुके हमर साकेत साहित्य परिषद् के वरिष्ठ सदस्य श्रद्धेय स्व. यशवन्त कुमार मेश्राम जी, स्व. नंद कुमार साहू जी साकेत के 

अब्बड़ याद आथे. आजो एको कनक बिश्वास नइ होय कि येमन हमर बीच से चले गेहे.अभी कोरोना काल म अॉनलाइन कवि सम्मेलन /परिचर्चा ह ठीक हे. 

   एक बार फेर बड़का मन ल पैलगी करत हवँ. नोनी -बाबू मन ल आशीर्वाद हे. कवि सँगवारी भाई  दिलीप कुमार साहू अमृत, धर्मेन्द्र पारख मीत, रोशन लाल साहू, .जशवन्त कुमार चतुर्वेदी, जशवन्त साहू (जे. के. इलेक्ट्रॉनिक), फकीर प्रसाद साहू फक्कड़, कुलेश्वर दास साहू, रोहित साहू गायक, याद दास साहू, राम खिलावन साहू, डोहर दास साहू, बल राम सिन्हा के सँगे सँग अउ जम्मो सँगवारी मन ल मोर डहर ले जय जोहार ...🙏🙏🙏

 

                            तोर सँगवारी 


                            ओमप्रकाश साहू "अँकुर "

      लाल बहादुर नगर 

       विकासखंड - डोंगरगढ़ 


 भेजइया -


 ओमप्रकाश साहू "अँकुर "

   छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक के पास 

   ग्राम +पोष्ट - लाल बहादुर नगर 

  तहसील -डोंगरगढ़ 

   जिला -राजनांदगॉव (छ. ग.) 

  

    मो.  7974666840


                             

 प्रति, 


         श्री लखन लाल साहू "लहर "

     ग्राम -  मोखला 

     पोष्ट - भर्रेगॉव 

     तह. + जिला -राजनांदगॉव (छ. ग.) 

    पिनकोड - 491441

Saturday 19 June 2021

सब ले कीमती जमीन।* (ऐतिहासिक नाटक)

 *सब ले कीमती जमीन।*        (ऐतिहासिक नाटक)

पात्र--


*गुरु गोविंद सिंह*-सिख मन के दशम गुरु,खालसा पंथ के संस्थापक।

*दीवान टोडरमल जैन*---सरहिंद(पंजाब) के दीवान 

*वजीर खाँ*---बादशाह औरंगजेब के सर हिंद के फौजदार

*गंगू*---सरहिंद के निवासी

*साहिबजादा जोरावरसिंह*--गुरु गोविंद सिंह के 9 साल के बेटा

*साहिबजादा फतेह सिंह*---गुरु गोविंद सिंह के 5 साल के छोटे बेटा


सैनिक, एक आदमी आदि

स्थान---सरहिंद

तिथि-- 26 दिसम्बर  सन् 1705 

             दृश्य--1


 ( वजीर खाँ के महल। वजीर खाँ कुछ सोंचत बइठे हे। वोतके बेर एक मुगल सैनिक के प्रवेश होथे)


सैनिक--- (झुक के सलाम करत)--अस्लामु अलैकुम।


वजीर खाँ--वलेकुल सलाम। बोल सैनिक का बात हे--।


सैनिक--जनाब फौजदार जी। एक झन आदमी जेन अपन नाम गंगू बतावत हे,तूमन से मिलना चाहत हे।


वजीर खाँ --मिलना चाहत हे---काबर ? जा पूछ के आ।


सैनिक--- क्षमा करहू जनाब।

 पूछे हँव फेर  वो ह कारण ल तुहीं मन ल  बताहूँ कहिथे।


वजीर खाँ---अच्छा--जा ले आ वोला।


(सैनिक जाथे अउ गंगू संग आथे)

गंगू---(सिर झुका के वजीर खाँ ल सलाम करथे)


वजीर खाँ--- बोल कइसे आये हस।


गंगू--- मैं ह एक ठन बहुत बड़े खुश खबरी दे बर आये हँव जनाब।


वजीर खाँ---खुश खबरी अउ तैं ---बोल का खुश खबरी हे।


गंगू---तुँहर मन के खाँटी दुश्मन जेला खोजत हव तेकर पता ठिकाना मैं जानत हँव।


वजीर खाँ--(खुश होके) का कहे?  काकर ठिकाना --वो काफिर गुरु गोविंद सिंह के ?


गंगू--- नहीं जनाब। वो तो नइये फेर वोकर दू झन नान नान औलाद साहिब जादा फतेह सिंह अउ जोरावर सिंह  अउ इँखर दादी गुजरी बाई के ठिकाना ल जानत हँव।


वजीर खाँ--(म्यान ले तलवार खींचत) कहाँ हे वोमन तुरत बता ?

गंगू---वोमन गुरु गोविंद सिंह के जत्था ले भटक के मोर घर म शरण ले हावयँ। 


वजीर खाँ--वाहह वाह जोरदार खबर। साँप नहीं ते सँपोला सहीं। बादशाह औरंगजेब जब इँखर पकड़ाये  या फेर मौत के खबर सुनही त बहुतेच खुश हो जही। वाहह-- खुदा के रहमो करम---वाह

(थोकुन रुक के)

फेर एक बात सुन ले तैं--


गंगू---( सिर झुका के)--- हुकुम जनाब ।


वजीर खाँ---ये ले अभीच्चे हजारों सोन के अशर्फी इनाम। अउ कहूँ ये खबर झूठा होही त तोर सिर तुरते कलम कर दे जाही।


गंगू --(इनाम ल झोंकत)--मंजूर हे जनाब।

वजीर खाँ--अरे सैनिक। तैं ह अपन संग म अउ सौ-दू सौ सैनिक ले ले अउ एखर संग जाके उन दूनो सपोला मन ल पकड़ के जिंदा मोर सामने हाजिर करव।


सैनिक-- जी जनाब।


(गंगू के संग बहुत झन मुगल सैनिक आथें अउ दूनो साहिब जादा मन ल पकड़ के ले जथें। रात भर ठंड म बुर्ज म बाँध के राखथें तहाँ बिहनिया दरबार म पेश करथे। )


वजीर खाँ--(ठहाका लगावत)---आवव --आवव --काफिर के औलाद सँपोला हो।


साहिबजादा फतेह सिंह--जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल।


साहिबजादा जोरावर सिंह-- -(दूनों हाथ उठा के ,जोर से) जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल।


वजीर खाँ --(आग बबूला होके)  तुँहर मोर आगू म ,मोर दरबार म अतका जुर्रत। चुप राहव नहीं ते तुँहर जुबान खींच लेहौं।


सैनिक---(साहिबजादा मन ल ढपेलत)---अरे काफिर ,पाजी बच्चा हो। जान बँचाना हे त जनाब ल सिर झुका के सलाम करव, नही ते सिर कलम कर दे जाही।


साहिबजादा फतेह सिंह--भले मोर सिर कलम हो जही फेर सिर झुका के सलाम नइ करवँ।


साहिबजादा जोरावर सिंह--- हमन अपन सिर अकाल पुरुख, गुरु, माता अउ पिता के अलावा कखरो आगू म नइ झुकावन। जेन करना हे कर लव।


वजीर खाँ--(तलवार निकाल के गुस्सा ले)---तुँहर अतका हिम्मत ---अभी बोटी-बोटी कर देहूँ।

(पूरा दरबार में सन्नाटा छा जथे ,वजीर खाँ कुछ सोंचके मुस्कुरावत कहिथे)


वजीर खाँ----चलौ तुँहर जान बक्स देहूँ। इस्लाम कबूल कर लव। तुँहर ददा जेला हमन रात-दिन खोजत हन ,वोहू ल क्षमा कर देबो।


दूनों साहिब जादा---(एक संग)---कभी नहीं--कभी नहीं-कभी नहीं---


वैजीर खाँ--(गुस्सा ले तिलमिलावत)---अरे सैनिक हो मैं ए मन ल तड़प-तड़प के मरत देखना चाहत हँव। एमन ल दीवार म जिंदा  चुनाई कर दव। अभी--तुरंत 


सैनिक---जो हुक्म जनाब।


(दूनों साहिबजादा ल जिंदा दीवार म चुन दे जाथे। ये खबर पूरा सरहिंद म पलभर म फइल जथे। दहशत के संग चारो मुड़ा दुख छा जथे।)


    (अपन जहाज हवेली म दीवान टोडरमल जैन बइठे रहिथे)

एक आदमी---( दँउड़त हँफरत आथे)--दीवान जी ---दीवान जी--दीवान जी---


दीवान टोडरमल---का होगे भाई --का होगे---कहाँ ले हँफरत आवत हस।


आदमी---घोर अत्याचार होगे दीवान जी।घोर पाप होगे--


दीवान टोडरमल-- का होगे भाई बताबे तब न जानहूँ।


आदमी--(रोवत--रोवत)-- बहुत बड़े घटना घटगे दीवान जी। क्रूर फौजदार वजीर खाँ ह अपन दरबार तीर गुरु गोविंद सिंह के दू झन छोटे-छोटे साहिबजादा मन ल दीवार म जिंदा चुनवा के तड़पा-तड़पा के मार दीस। दूनों अबोध साहिबजादा मन के लावारिस लाश उही मेर परे हे अउ वजीर खाँ जश्न मनावत हे।


दीवान टोडरमल-- ओह (मुँड़ ल धरके बइठ जथे।कुछ देर पाछू अपन ल संभालत) चलौ मोर संग ।शहर के मनखे मन ल जा बला के ला।


आदमी--हव दीवान जी।

(वो आदमी ह बाहिर जाथे अउ कुछ देर म  शहर के नर-नारी संग आथे। तहाँ ले सब दीवान संग वजीर खाँ के महल म आथे)


वजीर खाँ---आवव दीवान जी आवव। फेर ये रोवत हें ते मन चुप रहे ल कहि दे। रंग में भंग मत डारयँ।नहीं ते------ले बता कइसे आये हस।तोर मुँह काबर लटके हे।


दीवान टोडरमल---(हाथ जोर के)---हमन ला ये साहिब जादा मन के अंतिम क्रिया करे के इजाजत देये के कृपा करव।


वजीर खाँ--(हाँस के)--हाँ ,कृपा कर देहूँ।फेर इही मेर क्रिया कर्म करे बर परही।फेर एक शर्त हे।


दीवान टोडरमल-- (हाथ जोर के) ---बोलव फौजदार जी।


वजीर खाँ---इँखर कफन दफन करे बर कतका बड़ जगा चाही।


दीवान टोडरमल --(कुछ सोच के)-- सिरिफ चार गज जमीन दे दव जनाब।


वजीर खाँ---ठीक हे वोतका जगा मिल जही।फेर वोकर कीमत चुकाये ल परही। वो चार गज म सोन के मोहरा बिछाये बर परही। मंजूर हे त बोल।


दीवान टोडर मल---हाँ, ए शर्त मंजूर हे जनाब। मोला अपन घर ले आये के समे दव।


वजीर खाँ--(ठहाका लगा के)--ठीक हे जा अउ जल्दी आ।


(दीवान टोडरमल जाथे अउ अपन खजाना ल खाली करके जम्मों सोन के मोहरा मन ल लाथे।


दीवान टोडरमल---जनाब ये दे आगेंव। अब हमला मोहरा बिछाये के आज्ञा दव।


वजीर खाँ-- हाँ, आज्ञा हे बिछावव ।


(दीवान अउ वोकर संगवारी मन चार गज जमीन ल सोन के मोहरा मन ल पट बिछा के ढाँक देथें)


दीवान टोडरमल--फौजदार जी ,देख लव ये चार गज जमीन पूरा ढँकागे हे।अब अंत्येष्ठि के इजाजत दव।


वजीर खाँ--(बिछाये मोहरा मन ल देखके)---ये काये।मैं अइसना ढाँके ल थोरे कहे रहेंव।मोहरा ल पट नइ रखना हे।खड़ी खड़ी मढ़ा के ढाँकना हे।


(वजीर खाँ के बात ल सुनके सब सन्न हो जथें। दीवान के आँखी ले आँसू के धार बोहा जथे।)


दीवान टोडरमल---ठीक हे जनाब।मोला दू घंटा के मोहलत दव।


वजीर खाँ---दू घंटा का चार घंटा के मोहलत देवत हँव।


(दीवान टोडरमल अउ वोकर संगवारी मन लहुट के आथें।तहाँ ले टोडर मल ह अपन महल अउ जमीन जायजाद ल तुरत फुरत बेंच देथे।अउ फेर सोना के मोहरा मन ल काँवर म भरवा के आथें अउ वो चार गज जमीन म खड़ी खड़ी राख के तोप देथे। कुल 78000 हजार सोन के मोहरा लागथे)


दीवान टोडरमल--जनाब फौजदार जी।देख लव शर्त पूरा होगे। अब इजाजत दव।


वजीर खाँ--( अचरज ले देख के)- ठीक हे। अरे सैनिक हो ये जम्मों मोहरा ल उठावव अउ चलव। येमन ल लाश ल जलावन दव।


(वजीर खाँ जाथे तहाँ ले वो चार गज जमीन म दूनो साहिबजादा के अंतिम क्रिया करे जाथे।

लोगन जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल के संग दीवान टोडर मल के जै बोलाथे।


        दृश्य --2

(नदिया के तीर म घास फूस के झोपड़ी म दीवान टोडरमल बइठे हे। बाहिर ले जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल के अवाज सुनाई देथे। वो ह झोपड़ी ले बाहिर निकल के देखथे त गुरु गोविंद सिंह अपन जत्था के संग खड़े रहिथे।)


दीवान टोडरमल--अहोभाग्य। सतपुरुष गुरु मोर गरीब के कुटिया म पधारे हे---अहोभाग्य( गुरु गोविंद सिंह के चरण म दंडाशरण गिर जथे)


गुरु गोविंद सिंह---(टोडरमल ल उठाके हिरदे ले लगावत)-- तैं धन्य हस दीवान --तैं धन्य हस। मैं तोर ऋणी हँव। तोर त्याग के गाथा अमर रइही।

मैं भला तोला आशिर्वाद के अलावा अउ का दे सकहूँ।

तभो ले कुछु माँग ले।


दीवान टोडरमल---हे सदगुरु मोला एक वरदान दे दव।


गुरु गोविंदसिंह---बेहिचक बोल पुण्यात्मा।


दीवान टोडरमल-- हे सतगुरु मोला ये वरदान दव के मोर वंशावली मोर संग समाप्त हो जय।


गुरु गोविंद सिंह --(आश्चर्य ले)--ये का माँग लेस धन्यभागी।  सब औलाद माँगथे अउ तैं ह उल्टा वंश लकीर मिटे के वर ।अइसन काबर?


दीवान टोडरमल---हे सतगुरु। मैं नइ चाहौं के भविष्य म मोर कोनो वंश ह ये काहय के मोर पुरखा ह संसार के सबले कीमती भुँइया ल खरीदे रहिसे।

 अइसे भी सरी सृष्टि  भुइयाँ वो अकाल पुरुष के आय अउ उही ल अर्पण करे हँव।मोर कुछु नोहय।


गुरु गोविंद सिंह---( दीवान ल हिरदे ले लगावत) धन्य --धन्य टोडरमल। धन्य हे तोर ये त्याग। धन्य हस--धन्य हस--धन्य हस।


(पर्दा गिरथे)

समाप्त

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🙏

चोवा राम वर्मा 'बादल'

Wednesday 16 June 2021

आगी लगे तोर पोथी म जिव गेहे मोर रोटी म

 आगी लगे तोर पोथी म जिव गेहे मोर रोटी म 



               छुरा हा तइहा तइहा के रजवाड़ा गाँव आय । कचना धुरवा वंश के कतको राजा मन इहां राज करिन । बिद्रानवागढ़ राज के सबले बड़का भाग रिहिस हे छुरा रजवाड़ा । एकदमेच बीहड़ …. भयानक जंगल के सेती इहां तक काकरो पहुंच नइ रिहिस ते पायके इंकर शोर बहुत जादा नइ रिहिस । इहां के राजा मन घला अपनेच तक सीमित रिहिन । येमन केवल राज करिन । जनता बर कुछ नइ बनइन । राजकोष के उपभोग केवल राजा अऊ ओकर हाली मोहाली तक सीमित रिहिस । न सड़क बनइन न कुंआ तरिया खनवइन । तभो ले .... क्षेत्र के आदिवासी भोला भाला जनता हा ... इंकर आज्ञा के कभू उजर नइ करिन । न इंकर कभू अपमान करिन । इहां के राजा मन म खास बात यहू रिहिस के ..... ओमन अपन जनता ला ... न कभू लगान बर पदोइस .... न कहूं काम बर ....... तेकर सेती जनता हा इंकर राज म खुसहाल रिहिस । इहां प्राकृतिक संसाधन के अतका भरमार रिहिस के .... जनता कभू भूख नइ मरिस । 

               छुरा रजवाड़ा के आश्रित गाँव कोसमी म एक झिन बावा महराज रहय जेहा .... संस्कृत अऊ ज्योतिष के बड़ जानकार रिहिस । ओकर तिर दूरिहा दूरिहा के मन अपन समस्या धरके आवय अऊ समाधान घला पावय । काकरो गाय बइला गंवागे तब .. या कन्हो ला खेत खार बिसाना हे या नोनी बाबू के बर बिहाव करना हे तब .... बावा महराज के पोथी ले निकले समाधान अऊ मुहुरत ले बढ़के कहींच नइ रिहीस । बावा महराज हा बहुत गरीब रिहिस । बावा अऊ बवइन हा घनघोर जंगल के बीच गाँव ले थोकिन दुरिहा नानुक डोंगरी म कुटिया बनाके रहय । कथा पूजा इचार बिचार के भेंट चघावा के अलावा ओकर तिर जीविका के अऊ कन्हो साधन नइ रिहिस । महराज के एको झिन लोग लइका घला नइ रिहिस । तेकर सेती जवानी तो निकलगे फेर अवइया बुढ़हापा हा कष्टमय दिखे लगिस । गाँव के मन कभू कभार फोकटे फोकट मदत घला करय , तभो ले कभू कभू एक लांघन दू फरहर होइच जाय । 

               इंकरे भरोसा म महराज महराजिन के जिनगी चलत हे जानके ..... इहां के आदिवासी मन पोथी पतरा बिचराये बर जब जावय तब ... दार चऊंर , चार तेंदू , आमा अमली , केरा पपीता , जिमीकांदा कोचई अऊ भाजी पाला धरके जरूर जावय । कथा पूजा म घला अन्न दान खूबेच करय । फेर दान के चीज कतेक चलय । ओ समे दू दिन चार दिन म एकाध झिन फरियादी आवय । पंद्रही - महिना म एकाध घर पूजा होवय । बछर म चार छै बिहाव निपटय । काम कमई के दिन म वहू सब चुमुकले बंद रहय । महराज महराजिन के बहुत झिन चेला बन चुके रहय । ओमन हा महराज महराजिन ला अपन अपन घर म आके रेहे के नेवता देवय फेर महराजिन हा अबड़ छुवाछूत मानय तेकर सेती ओमन काकरो घर जाके खावय निही अऊ तो अऊ काकरो हांथ के पानी तको नइ पियय । 

               एक बेर भरे बरसात म महराज के घर दू दिन ले हांड़ी नइ चइघिस । घर म एक दाना अनाज नइ रइही तब हांड़ी उपास तो होबे करही । काम कमई के दिन म कन्हो अवइया जवइया के घलो उम्मीद नइ दिखत रहय । महराज अऊ महराजिन के जीव पोट पोट करे लगिस । महराज हा गाँव बसती के भीतर रहवइया चेला मन के घर जाये बर महराजिन ला मनाये बर लगिस । खाये बर मरत रहय फेर धरम भ्रस्ट झिन होय कहिके .... महराजिन हा गाँव म काकरो घर जाये बर मना कर दिस अऊ महराज ला मांगे बर जाये के किलौली करिस । बहुत समे पहिली ..... महराज हा एक घाँव राजा तिर मांगे बर गये रिहिस तब ओ समे ..... राजा हा ओला फोकटे फोकट दे बर मना करदे रिहिस हे तबले ..... उहू हा कसम खा डरे रिहिस के ..... भले ओमन बावा के मंगइया जात आय अऊ भले भूख मर जाय फेर कभू काकरो तिर हांथ नइ लमावन ..... । वहू मना कर दिस । 

               एक दिन अऊ इही उहापो म नहाकगे । महराजिन एकदमेच लरघियागे । तब बिहिनिया ले महराजिन पूछथे के - दूसर गांव म घला तुंहर चेला रहिथे का ? महराज हव किथे । महराजिन किथे - ओकरे घर जातेव ... अऊ दू चार दिन पुरतिन कुछु मांग के ले आतेन । महराज भड़कगे अऊ केहे लगिस - मोर परन भले टूट जाये फेर तोर धरम भ्रस्ट झिन होय ...... तैं उही तो कहना चाहत हस ना ...... । महराजिन के शक्ति नइ चलत रहय ....... भूख गरीबी अऊ लाचारी ले लड़त लड़त , ओकर मेर महराज ले लड़े के हिम्मत सिरा चुके रिहिस । ओहा धीर से महराज ला केहे लगिस – मोर केहे के अरथ तुंहर प्रण टोरना नोहे महराज ...... । तूमन गलत समझत हव .... । इहां मांगिहौ त सबो जान डरही के बावा महराज हा मांगे बर आये रिहीस कहिके । तेकर सेती दूसर गांव म जाये बर केहेंव । तूमन ला बने नइ लागिस होही ते मोला माफी दव । महराज हा किथे – सरी दुनिया जानत हे के ..... महराज हा कभू न भीख मांगिस .... न उधारी ..... । कुछ बेर म शांत दिमाग म महराज हा समाधान निकालत किहिस - दुनों अपन प्रण अऊ धरम ला भगवान तिर धर देथन अऊ जाथन दूसर गांव ....... । उहां मांगन निही फेर मना घला नइ करन ....... जे दिही तेला खाबो अऊ बांच जही तब बचा के लानबो ...... । मरता क्या नही करता ........ । महराजिन तुरते तैयार होगे । 

                डोंगरी ले उतरके रेंगत रेंगत सांझ होवत ले टेंगनाबासा नाव के गाँव म अपन चेला घर पहुंचगे । किसनहा चेला हा ओतके बेर ..... कमा धमा के आये रहय अऊ परछी म पटका पहिरे ...... गोरसी तिर आगी तापत ...... बीड़ी पियत बइठे रहय । उदुपले महराज ला अपन घर म देख .... लजागे बपरा हा । दुनों झिन के गोड़ धोवइस अऊ लकड़ी के पाटा के उप्पर म कमरा बिछाके बइठारिस । अपन बहू बेटा मनला घला महराज महराजिन के आसीरबाद देवइस । ओमन महराज के आये के कारन समझ नइ पइस अऊ ओकर श्रीमुख से ज्ञान के बात सुनाये के आग्रह करे लगिस । महराज हा काकरो हांथ के बने खाये पिये के समान ला नइ खाये सोंचके ..... न पिये बर पानी दिस ..... न चहा । महराज हा ज्ञान के बात बताये बर महराजिन ला पोथी ला झोला ले हेरे बर किहिस । महराजिन कहां सुनय । महराजिन के ध्यान हा गोरसी म चुरत चूनी रोटी के उपर रहय । भूख के मारे महराजिन कलकलागे रहय । महराज हा ओला दू तीन घाँव हुद करइस । महराजिन नी सुनिस त जोर से कोचकत किथे - तोर ध्यान कति हे बई ....... तोला अतेक बेर ले पोथी मांगत हँव .......। महराजिन ले रेहे नइ गिस ...... भूख हा ओकर पेट अऊ मन ले जादा मुहुं म बिराज चुके रिहीस .... ओहा कहि पारिस के - आगी लगे तोर पोथी म जिव गेहे मोर रोटी म ......  । 

               चेला मन समझगे । ताते तात गोरसी म बनत चूनी रोटी ला , आमा के अथान संग परोस दिन । महराज महराजिन के छुधा सांत होइस तब मुहुं ले ज्ञान अऊ अध्यात्म उपजे लगिस । चेला मन महराज महराजिन के अबड़ सेवा करिन । कुछ दिन पाछू दार चऊंर देके बिदा करिन । अब महराजिन हा छुवाछूत ला भुलागे अऊ महराज हा नइ मांगे के कसम ला भुलागे ...... । फेर क्षेत्र के मन महराज महराजिन के बदले बेवहार के पाछू घटे घटना ला अभू तक नइ भुलाहे अऊ अपन उपर परत अइसन मौका म , आगी लगे तोर पोथी म , जिव गेहे मोर रोटी म , केहे बर नइ भुलाये । 


                                                                                        हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

कमाए निंगोटी वाले , खाये टोपी वाले

 कमाए निंगोटी वाले , खाये टोपी वाले  

                       बात वो समे के आय जब हमर देश म आजादी बर लड़ई चलत रिहिस । देश म आम मनखे मनला , अजादी के लड़ई के समे , टोपी पहिरे के अवसर मिले रिहिस । ओ समे टोपी पहिरइया मनखे के बड़ इज्जत होवय । देश के मनखे हा , टोपी पहिरइया मनला , अपन भविष्य के निर्माता समझय । धमतरी जिला के कुरूद कसबा तिर खिसोरा नाव के गाँव म , माधोराम पटेल नाव के साधारन किसान रिहिस हे । माधोराम के पूरा परिवार हा स्वतंत्रता आंदोलन म माते रहय । माधोराम के ददा , माधोराम के कका मन ..... राजिम अऊ कुरूद म आंदोलन ला जिंदा राखे बर बहुतेच मेहनत करय । जवान माधोराम हा एक कोती खेत खार म बलकरहा कस कमावत मात जावय , दूसर कोती परिवार के बबा ददा के परम्परा अऊ नियम अनुशासन के पालन करत , आंदोलन म बढ़ चढ़ के हिस्सा घलाव लेवय । 

                    एक बेर के बात आय । रायपुर म छत्तीसगढ़ के सेनानी मन बर , बड़का कार्यक्रम के आयोजन राखे गे रहय , जेमा देश के कुछ बड़का सेनानी नेता मन सकलइया रहय । माधोराम पटेल हा , भलुक बहुत पइसा वाला नइ रिहिस फेर , जब पाये तब , आंदोलन बर , अपन जांघ टोरत मेहनत के कमई के आधा पइसा खरचा कर देवय , तेकर सेती कार्यक्रम म संघरे बर नेवतहार म ओकरो नाव रहय । कार्यक्रम तय होगे , अतका बेर नेता मन के आगमन , स्वागत सतकार , मंझनिया बेर खाना पीना , संझाती सम्मेलन । नेता के स्वागत कोन कोन करही , मंच म कति कति मनखे बइठही अऊ कति मनखे मन , नेताजी मन के संग बइठके जेवन जेहीं ... तेकर नाव तय होके , अलग अलग लिखावत रहय । माधोराम पटेल के सेवा ... सहयोग अऊ त्याग समर्पण ... देखके ओकर नाव सबे म लिखाये रहय । 

                    रायपुर के एक झिन मनखे ला , जम्मो मुखिया नेवतहार के घर घर जाके , नेवता देके जुम्मेवारी मिले रहय । ओहा कार्यक्रम के कुछ दिन पहिली नेवता हिकारी के बूता म लगगे । नेवता देवत , माधोराम पटेल ला खोजत , खिसोरा पहुंचगे । माधोराम ला कभू देखे नइ रहय ….. काला चिनही । येला ओला पूछे लगिस । बतर बियासी के समे , गांव म कोन कमइया मिलही , माधोराम हा खेत खार म व्यस्त रहय । रायपुर के मनखे ला , भांड़ीं म खेकसी टोरत मनखे ले पता लगिस के , माधोराम खेत गेहे । रइपुरिहा सोंचिस के , खेत म जाके मिल लेथंव अऊ नेवता हिकारी देके पूरा कार्यक्रम ला समझा देथंव । खेत जाये के रसदा म , माटी गोंटी चिखला कांटा खूंटी पार करत करत , ओकर हलक सुखागे । कभू अइसन रस्दा म रेंगे नइ रहय , मेंड़ पार म गोड़ खसलगे , बपरा हा खेत म भसरंग ले गिरगे , गोड़ हा बिला म भोसागे । दगदग ले पहिरे सादा कुरता सनागे । थोकिन आगू जाये के बाद , गांव के जे मनखे इहां तक रसदा देखावत लाने रिहिस तिही बतइस के , इही खेत माधो भइया के आय । रइपुरिहा हा संगवारी संग , मेंड़ पार म बइठके , माधोराम कति तिर मिलही सोंचत , अनताजत ठड़े रहय । 

                                              खेत के बींचों बीच कमावत , बिरबिट करिया मनखे माधोराम हा , अपन कोत निहारत , नावा मनखे ला देख खुदे तिर म अमर गिस । सावन के दिन आय , पानी घलाव सिटिर सिटिर सुरू होगे । शहरिया मनला घर वापिस जाये के जलदी होगे । पछीना ले तरबतर चिखला माटी म सनाये , माधोराम ला देख शहरिया मन पूछे लगिस - तैं माधोराम के कमइया अस का जी ....... माधोराम ला एक कनिक बुलातेस का , थोकिन बूता हे ओकर ले ? माधोराम समझगे के , येमन नावा मनखे आय अऊ ओला चिन्हत नइहे , थोकिन मजकिया कस घलाव रिहिस माधोराम हा , ओहा सगा मनला , अपन आप ला माधोराम के कमइया आंव अइसे कहि देथे । शहरिया मन पूछिन - माधोराम कतिहां हे अऊ कति तिर मिलही ....? माधोराम किथे – माधोराम हा कती तिर मिलही तेला नइ जान सकंव मालिक , हां फेर काये संदेश पहुंचाना हे ओकर तिर तेला बतावव । खराब मौसम ला देखत , शहरिया मन ला वापिस जाये के लकर्री हमागे रहय अऊ उही चक्कर म ... ओला रायपुर म होवइया जम्मो कार्यक्रम के बिबरन समझइस अऊ माधोराम ला , हर हालत म कार्यक्रम म , भेजे बर ताकीद करिस । माधोराम हा , शहरिया मनला , माधोराम ला कार्यक्रम म भेजे के , खमाखम आसवासन दिस अऊ दुनों झिन ला घर म चलके ठहरे के आग्रह करिस अऊ पानी पसिया पाये के निवेदन करिस । शहरिया मन के कपड़ा लत्ता सनागे रहय । को जनी , माधोराम कतिक बेर आही न कतिक बेर सोंचके , खेत ले बिदा होगे । जावत जावत दुनों शहरिया मन गोठियावत रहय के , गाँव के अनपढ़ कमइया हा घलाव कतेक सुघ्घर मिठ मिठ गोठियाके मनला मोहि डारिस , समे रहितिस ते ओकर मालिक माधोराम ले जरूर मुलाखात करे रहितेन ... जेकर कमइया हा अतेक सुघ्घर आदत के हाबे , तेकर मालिक हा को जनी अऊ कतेक सुघ्घर होही ।

                    कार्यक्रम के पहिली दिन रायपुर पहुंचना रिहिस फेर रझरझ रझरझ पानी के सेती जा नइ सकिस । कार्यक्रम के दिन , माधोराम हा बिहिनिया ले तैयार होके घर ले निकलगे ।  छुकछुकिया म बइठके रायपुर पहुंच लकर धकर सभा स्थल अमरगे । स्वागत सत्कार निपट चुके रहय ....। खाये के बेरा हो चुके रहय , ओहा सिध्धा खाये के जगा म अमरगे । खाये के पहिली , नेवता देवइया शहरिया हा ..... पहुना बड़े नेताजी संग .... जम्मो सेनानी मनके खोज खोज के चिन्हारी करावत रहय । चिन्हारी करावत , माधोराम तिर पहुंचिस , माधोराम ला देखके सुकुरदुम होगे अऊ बिगन बलाये , ये कइसे अइस , ये कोन मनखे आये कहिके सोंचत रहय , तभे ओला खिसोरा के खेत अऊ मेंड़ के सुरता आगे अऊ ओहा जान डरिस के , ये मनखे तो माधोराम के कमइया आय । ओ कुछु कहितिस तेकर आगू , पहिली दिन ले पहुंचे कुरूद के अऊ दूसर संगवारी मन , माधोराम के चिन्हारी नेताजी ले करइन । पहुना नेताजी हा माधोराम के बारे म पहिली ले सुन चुके रिहीस .. ओकर ले मिलके बड़ खुश होइस । 

                    खाये के पाछू नेवता देवइया रायपुरिहा हा , माधोराम ले माफी मांगत कहत रहय , तूमन ला चिन नइ सकेंव भइया । माधोराम किथे – मोर हुलिया हा उइसने रिहिस गा ... काला चिनतेव भइया । हमन गाँव गँवई के मनखे आन भइया .... । दिन भर टोपी पहिर के किंजरबो त कमाबो कइसे , बिगन कमाये , हमन ला खाये बर कोन दिही .......? नइ कमाबो त हमर घर कइसे चलही अऊ हमर आंदोलन बर पइसा कइसे सकलाही ........ ? वइसे भी , कपड़ा के काहे गा , समे समे म , आवसकता के हिसाब से बदलत रहिथे । ओ दिन कमाये के रिहिस तेकर सेती , निंग़ोटी पहिर के लगे रेहेन , आज खाये के दिन आय तेकर सेती , टोपी पहिर के आये हन ..। खाये टोपी वाले .. कमाये निंगोटी वाले .... कहत मजकिया माधोराम हा खुदे हाँस पारिस । सकलाये जम्मो मनखे मन माधोराम के गोठ सुन खलखलाके हाँसिन । कालांतर म , माधोराम के इही गोठ , कमाये के बेर निंगोटी वाले , खाये के बेर टोपी वाले हा ..... हाना बनगे । 

                    ओ समे मनखे हा , आवसकता मुताबिक कपड़ा बदल के अपन बूता निपटा डरय । समे बदलत गिस । अब टोपी वाला अऊ निगोटी वाला एके मनखे नइ रहिगे .... दू अलग अलग मनखे होगे । कुछ दिन म ... टोपी वाला अलगियागे , निंगोटी वाला मन छंटागे । समे के सांथ बपरा निंगोटी वाला मन निंगोटिच म रहिगे अऊ टोपी वाला मन टोपी पहिरके , देश ला टोपी पहिराये बर धर लिस । जब ले हमर देश म इही बिकृत चाल चरित्तर चलन म आये हे तब ले , माधोराम पटेल के इही साधारन सोज गोठ बात हा , व्यंग के नावा रूप रंग धरके , मनखे के मन ला , रहि रहि के , हुदेलत हे .... कमाये निंगोटी वाले , खाये टोपी वाले । 

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

नंगरा ले खुदा डरे ..........

 नंगरा ले खुदा डरे .......... 

               द्वापर जुग के बात आय । भगवान कृष्ण हा खेल खेल म गोप गोपी मनला केऊ ठिन लोक बेवहार के शिक्षा देवय । ग्वाल बाल ला हंसी मजाक म घला नावा नावा बात सिखावय । बहुत सधारन उपाय ले काकरो भी गरब के चकनाचूर कर देवय । 

               वो जुग म महिला मन बहुतेच परदा म रहय । एक मरद हा दूसर मरद के घरवाली के चेहरा ला कभू नइ देखय । महिला अऊ पुरूष ...... एके घाट म कभू नइ नहावय । अऊ तो अऊ औरत अऊ मरद मनके नहाये के समे म तको अंतर रहय । गांव के जम्मो महिला मन नहा धो के जब लहुंट जतिन तब पुरूष मन नहाये बर जावय अऊ अपनेच बर निर्धारित घाट म नहावय ।  

               एक बेर के बात आय । एक दूसर ला अगोरत गोपी मनला तरिया पहुंचत ले  थोकिन मंझन होगे । घरवाले मन गारी झिन देवय सोंचत , आतेच साठ लकर धकर कपड़ा ला उतार के कांच दिन अऊ तरिया पार म सुखाये बर बगराके अधकपड़ा म नहाये बर कुद दिन । ओ बेरा म मई लोगिन के अलावा कन्हो दूसर ला न आना रहय न जाना .... तेकर सेती निच्चिंत नहावय । कृष्ण भगवान हा गोपी मनला खोजत पहुंचगे । भगवान के नजर गोपी मनके बगरे कपड़ा म परगे । ओला मजाक सूझिस ..... जम्मो कपड़ा ला लुकाके रुख म चइघके ..... अगोरे लगिस । गोपी मन नहा के तरिया पार म अमरिन त देखथे के जम्मो कपड़ा गायब । एक तो अइसने मंझन होगे रहय । तभे मरद मन के आये के बेरा होगे । ऊंकर मन के पहुंचे के आरो मिले लगिस । धकर लकर जम्मो झिन तरिया म वापिस कुद दिन अऊ मुड़सुद्धा तब तक बुड़े रिहीन जब तक ..... जम्मो मरद मन नहा के वापिस नइ मसक दिन ।

               मरद मन अपन घर पहुंचिन त देखथे ...... रंधनी सुन्ना परे हे ..... घरवाली मन गायब हे । खोजा खोज मातगे । येती तरिया म मरद मन के जाये के अवाज सुन महिला मन फेर निकलिस । तब तक भगवान घला रुख ले कुद के तरी म आगे । गोपी मन समझगे  भगवान जी के करस्तानी । गोपी मनके घुस्सा ला देख भगवान कछोरा भिर के पल्ला छांड़ दऊंड़िस । गोपी मन आव देखिन न ताव ओकरे पिछू पिछू धरा रपटी दऊंड़े लगिन । भगवान के ..... दऊंड़े के गति बहुतेच तेज रहय ..... ओहा सटले गांव पहुंचगे । उहां गांव भरके ग्वाला मनके बइठका सकलाये रहय अऊ बिचार चलत रहय के गोपी मनला कइसे अऊ कहां खोजे जाये ? तभे भगवान कृष्ण ला अपन कोती पल्ला दऊंड़त आवत देखिन ....... त जम्मो झिन ठड़ा होगे । गांव के मन भगवान ला कुछ पूछतिन तेकर पहिली ...... भगवान किथे – भागो ...... नंगरा मन पिछू परे हे ...... । गांव के जम्मो लइका सियान मन बिगन कुछ सोंचे समझे ..... गोपी मन के फिकर छोंड़ ..... अपन प्राण बचाये बर कृष्ण भगवान ले अगुवागे भागत भागत ....... । भगवान हा ..... गांव वाले मनला तब तक भगावत रिहीस जब तक ..... जम्मो गोपी मन अपन अपन घर नइ पहुंच गिन । घर पहुंचके गोपी मन .. कपड़ा पहिरे बर जइसे धरिन तब पता चलिस के उंकर देंहें हा पहिली ले लुगरा कपड़ा म ढंकाये रहय । गोपी मन भगवान के पिछू भागत भागत गांव ला सुन्ना पाके अपन देंहें ला तोपत ढांकत लाजे काने अपन अपन घर म खुसरत भगवान ला बखानत बखानत भागे रहय । सुन्ना घर म अपन आप ला अकेल्ला पाके अऊ भगवान के लीला ला आकब करके मने मन खीजत घला रहय अऊ हांसत घला रहय ।  

                एती भागत भागत गांव के गोप ग्वाला मनला ... भगवान हा .... वापिस गांव के बइठका ठऊर म लहुंटे बर हाँक पारिस .... तब जम्मो झिन लहुंटिन । ओमन दऊंड़त ले हफरगे रहय । भूख पियास के मारे प्राण छूटत रहय । पछीना अऊ गरमी के मारे देंहें तहल बित्तल होवत रहय । लीम चऊंरा म एक कनि सुसताये के पाछू ..... बइठका ठऊर के ग्वाला हा अपन घर पानी पिये बर निंगिस ..... ओहा अपन घर म ...... अपन घरवाली ला रांधत पसावत देख पारिस । ग्वाला हा पानी पिये ला भुलागे । बाहिर निकलके चिचिया के अपन घरवाली के घर म आये के बात बतइस । लकर धकर , सब अपन अपन घर भागिन अऊ अपन अपन ग्वालिन ला पाके खुस होगिन । 

               भगवान मजाके मजाक म बड़ शिक्षा दे दिस । पहिली ये के , जे मनखे नंगरा मनले डर्राही ते अपन घरवाली ला सुरक्षित पाही । दूसर ये के , कन्हो नइ देखत हे सोंचके कभू अइसे कदम नइ उठाना चाही जेकर ले पाछू शर्मसार होना परे । तीसर ये के , भगवान के पिछू जे भागही तेकर नइया ला भगवान सुरक्षित पार लगाही । चऊथा ये के , जेकर पिछू भगवान भागही तेला दुनिया के सरी सुख घर बइठे मिल जाहि । 

               घटना तो द्वापर म घटगे , फेर आज तक कन्हो नइ समझिन के , भगवान काबर डर्रइस ? फेर जब मनखे हा कन्हो लुच्चा लफंगा ले निपटे नइ सके अऊ डर्रा के पलायन कर जथे .... तब इही ला सुरता करत जरूर उहीच बात ला दोहराथे .... नंगरा ले खुदा डरे .... । 

       हरिशंकर गजानंद देवांगन छुरा .

Friday 11 June 2021

सत्यवान के खोज

 सत्यवान के खोज 

                धरती म एक झन अबड़ हलाकान परेशान .... सत्यवान खोजत माईलोगिन के दुख , नारद ले नइ देखे गिस । वोहा माई लोगिन ला रसदा बतावत किहीस - बर रूख म बइठे भगवान शिव के , पूजा करे बर लागही  ।  एक बेर सावित्री हा अइसने पूजा करके , अपन सत्यवान ल वापिस लहुटा डरे रिहीस । यदि तोरो पूजा ले , भगवान शिव जी प्रसन्न हो जही , तब तोरो जिनगी म सत्यवान वापिस लहुट जही , अउ जेन सुख के आस तैं संजोये हस , ते पूरा हो जही । 

                कुछ बछर पाछू ..... उदुपले .... उहीच माईलोगिन ले नारद के फेर भेंट होगिस । नारद ओखर ले कुछु पूछतिस तेकर ले पहिली , वो माई हा नारद बर बरसगे – तेंहा अच्छा फंसाये नारद जी , सत्यवान मिल जही कहिके । भगवान कसम ...... सरकारी नौकरी खोजे कस पनही के संगे संग एड़ी घला घिसागे । कोन जनी कहां लुकागे सत्यवान ...... हमर बिधायक ले जादा लुकव्वल में अगुआगे । न गूगल में दिखत हे , न रडार के पकड़ में आवत हे । नारद किथे - का ? सत्यवान दुनिया ले चल दिस , तैं मोला बताए नई बेटी । चल मिही ध्यान लगा के देखथंव , कतिहां हे तेला । दू चार मिनट पाछू ....... नारद खुशी ले कूदे लागिस , अउ किथे - सत्यवान इंहीचे हे बेटी , तैं ठीक ठाक खोजे नइ सकत हाबस ... । नारद कुछु अउ कहितिस तेकर पहिलीच माईलोगिन के खखारवृन्द फेर चालू होगे ।   

                मईलोगिन हा पड़पड़ऊंवा केहे लगिस - का ? सत्यवान इंहे हे । अई .... तें वो इंजीनियर सत्यवान के बात तो नइ करत हस भगवान ... । गऊकिन ...... वो नोहे सत्यवान , वोहा ईंटा पथरा सीमेंट रेती , कभू कभू जम्मो सड़क , मकान अउ कुआं ला घला खा देथे  , फेर बताथे सिर्फ दार भात साग ...... । उही सत्यवान होही कहिके ओखरे तिर पहुंच गे रेहेंव । ओहो .... मोला सुरता आगिस ....... तेंहा डाक्टर सत्यवान ल कहत होबे का भगवान ..... फेर वहू ..... ओकरो ले कम निये , नानुक बीमारी ल बढ़हा चढ़हा के , बड़े बड़े इलाज करके , मनमाने पइसा वसूलथे । मरे के डर देखाके , जिनगी भर सूजी पानी के दर्द सहे बर मजबूर कर देथे । अई .. थुथी होगे ... तेंहा वो सत्यवान साहेब के बात करत होबे का भगवान ..... । फेर ओ अभू तक बिन पइसा के अऊ बिन चौखट रगड़े कोन्हो काम नइ करिस , यहू नोहे सत्यवान ।

                 नारद किथे - मेंहा ये सब सत्यवान के बात नइ ...। नारद के बात पूरा होए नइ रहय , वो माई फेर सुरू हो जाए । मईलोगिन फेर बड़बड़ाये लगिस - अब जानेव गा ...... तेंहा सत्यवान दरोगा के बात करत होबे । देस के सेवा बर मर मिटे के कसम खवइया दरोगा , खाली दारू भट्ठी अउ जुआं अड्डा ले वसूली करके , को जनी काकर , सेवा करत हे । नारद किथे – यहू नोहे वो सत्यवान ...... । मईलोगिन तपाक ले किहीस - अई ...... में भुला गे रेहेंव का या ......... तें खादीछाप सत्यवान के बात करत हस , कस लागथे । वोहा काला सत्यवान आए भगवान ....... देस के कुटका कुटका करके बेंचत हे , पांच बछर म एक घांव अपन थोथना देखाथे , सपना बुनाथे , ओकर पाछू , लवारिस लास कस , हमर सपना ल कोन जनी कते करा गड़िया देथे .... कन्हो ला गम नइ पावन देत हे । येमन ओरीजिनल सत्यवान नइ होही सोंचके अऊ इंकर मन ले असकटाके ..... एक झिन सत्यवान बाबा के नाव सुनके ओकरे तिर चल देंव । सत्यवान बाबा हा ..... बड़ प्यार ले बईठारिस , रेहे बर जगा दिस , खाए बर रोटी ..... । बड़ मया करय .... । एक दिन अपन बेड रूम म बलइस ...... बड़ मुश्किल ले इज्जत बचा के भागेंव । शिकायत करे बर , न्याय पाए बर .... एक ठिन बड़का जिनीस न्याय के मंदिर म खुसर गेंव । इंहों एक झिन सत्यवान जज ले मुलाखात होगिस । फेर समझ आगिस , येहा बिन पहुंच अऊ टुटपुंजिया मन के मंदिर नोहे । इहां मनखे ल मुसेट के मरइया बड़का मनला अराम ले छूटत देखेंव ..... फेर छुटका गरीब किसान मजदूर ल , मुसवा मारे म जेल म सरत । इहां सुनवई नइ होइस , त अपन स्याही के शान बघरइया सत्यवान राइटर तिर चल देंव , यहू मन ला ... गली गली बेंचावत पायेंव । मोला अइसन सत्यवान नइ चाही नारद जी । तेंहा अभू घला सत्यवान जियत हे कहिके , मोर मनला झिन बहला । रो डरिस । 

            चुप करावत नारद किहीस – तैं मोला बोले के मौका देबे तभेच तो बताहूं , तोर सत्यवान कते तिर हे तेला । तेंहा मोर पूरा बात ल सुनेच नियस , अऊ अधरे अधर खोजे के इतिहास बताए लागेस । महल अटारी मठ मंदिर आश्रम म , नइ मिले बेटी , सत्यवान हा । सत्यवान के ठिकाना , झोपड़ पट्टी आए , जेकर रसदा चिक्कन चांदर सड़क नोहे , खब डब माटी गोटी पयडगरी आय । माईलोगिन सुकुरदुम होगे अऊ मनेमन सोंचे लागिस , हतरे बैरी ........ , पहिली बताए रहिते ..... गरीब मनखे मन के बीच म सत्यवान रिथे , त काबर दूसर जगा जातेंव , अइसन गरीब सत्यवान ल में काए करहूं । मन ल पढ़ डारय नारद । वोहा किहीस – सत्यवान सोज्झे गरीब नोहे बेटी , वोहा भूखहा अऊ नंगरा घला आय , फर्क अतके के ओहा ..... तोर अउ सत्यवान कस निये , येहा पइसा के गरीब हे , दिल के नोहे । पेट के भूखहा हे , पइसा के नोहे । अउ तन के नंगरा आय , मन के नोहे । 

            माई किथे - फेर नारद जी तहीं केहे रेहे , सत्यवान राजा महराजा के बेटा रिहीस ? नारद किथे - हव बेटी , ओहा राजा के बेटा आय , फेर राजा अंधरा ..... । अंधरा राजा के सेती , लइका सत्यवान , रंक बन के भटके लागिस । अभू घला अइसनेच अंधरा राजा मन के सेती सत्यवान ( प्रजा)  हा गरीब मजदूर कस जिये बर मजबूर भटकत किंजरत हे , अउ बिन मौत मर जावत हे । फेर एक बात जरूर हे बेटी , सत्यवान चाहे कतको दिन जिए , ओहा अपन सावित्री के झोली ल खुसी ले भर देथे । मई लोगिन किथे – गरीब आदमी का सुख दिही नारद जी ..... तहूं बनेच मजाक करथस ..... ? नारद जी बताये लगिस – सिर्फ येकरेच म अपन सावित्री ला सुख देके ताकत हे बेटी ...... काबर येहा जेन कमाथे तेमें काकरो लहू के महक निही , पछीना के सुघ्घर वास रिथे । जेला खवाथे ते कन्हो बईमानी या घोटाला के कऊंरा नइ होय , बल्कि ईमांनदारी अउ मेहनत के मिठास आय । जे पहिराथे ते , काकरो चीरहरण के लुगरा नोहे , महतारी के ओली के आशीर्वाद आए । ये जेन कुरिया म राखथे तेमे , दुसकरम के दुर्गंध निही , प्रेम के महक होथे । तेंहा इही सुख के कामना करे रेहे बेटी , तेकर सेती तोला सत्यवान पाए के उपाय बतायेंव मेंहा । 

            माई ल फेर लकर्री छा गिस । लकर धकर फेर रेंगे लागिस । नारद जी वापिस बलाइस -फेर कहां जाथस ? माई किथे - सत्यवान खोजे बर ...... । इहीच तो बात हे बेटी , बात ल पूरा सुनस निही , अऊ अधरे अधर करे अऊ केहे बर धर लेथस ...... । सत्यवान ल बाहिर खोजे के कोन्हो जरूरत निये । ओ तोर घरे म हे । जरूरत ओला जगाए के हे । माई समझिस निही । नारद जी किहीस‌ - तोर पति के भीतर सत्यवान हाबे । ओकर अंतस के सत्यवान ला जगा । माई किथे - असन म , मोर पति घला गरीब हो जही । नारद किथे - निही बेटा ओ गरीब नइ होए वो ...... , ओला अंधरा राजा के सेती गरीबी मिले हे । ओहा अंधरा राजा कती ले खुदे आंखी मूंदे , कलेचुप बइठ ...... मिटका देहे .... उही ला जगाना हे तोला । अउ उही ल जगाए खातिर , बर रूख के भगवान शिव ल मना । संकल्प ले । तोर पूजा ले जे दिन भगवान शिव प्रसन्न होगे , उही दिन तोर पति के भितरी म सुते ..... सत्यवान जाग जही अऊ …… सच जाने बर धर लिही , तब इही सच के ताकत ले अंधरा राजा के आंखी खुल जही । तब तहूं , बांचे खुचे जिनगी ल हांस हांस के काटबे । कोन जनी कते दाई माई के संकल्प पूरा हो जही , कोन जनी काकर ले शिव प्रसन्न हो जही , को जनी काकर पति सत्यवान बन , अपन सावित्री ल सुख दे पाही अऊ हमर देस के अंधरा राजा मन के आंखी खोल दिही ......... । 

    हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

जिंदा खेलौना* (कहानी)

 *जिंदा खेलौना*

(कहानी)

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संझा के बेरा रामबती ह अपन मंदबुद्धि अउ दिव्यांग छोटे बेटा कुमार ल जेन ह न तो रेंगे सकय,न तो बोले सकय--- उपर ले बेचारा के लार बोहावत रहिथे ल परछी म बइठे खेलावत राहय ओतके बेर ओकर पति चपरासी हुलास ह घर आइस।अँगना म साइकिल ल खड़ाँग ले टेंकाइस तहाँ ले मनमाड़े गुसियावत कहिस---तोला घेरी पइत चेताये हँव न--ये तोर मंदबुद्धि बेटा ल मोर घर आये के बेरा कुरिया म धाँध के राखे कर।एला  देखते साठ मोर तन-बदन म भुर्री फूँका जथे। एखर मारे जीना हराम होगे हे फेर तोला कुछु समझ नइ आवय ।निच्चट घेक्खरहिन होगे हस---।

       ये दे फेर तोर किटिर-किटिर चालू होगे न। पता नहीं काबर ये ते,एला देखथस तहाँ ले तोर बइगुन उमड़ जथे। एखर जतन-पानी तो मैं हर करथँव न---तैं तो हिरक के नइ निहारस--- नइ सहे सकस त एला धरके कहूँ निकल जहूँ। बनी भूती करके पोंस लेहूँ मैं ह।अउ का कहे तोर बेटा----एहा तोर बेटा नोहय का? नइ सहे सकस त मुरकेट के मार डर एला--रामबती ह झुँझवावत कहिस।

     तहीं जहर देके मार डर।बियाये तो तैं हस न? तोर दाई ददा के खानदान म अइसने अउ कोनो रहिस होही ---हुलास ह बइहाये सहीं कहिस।

       दाई-ददा कोती दोष लगावत सुनके रामबती ह बिफरत कहिस--मोर कोंख ल दोष झन लगा अउ मोर दाई-ददा ल झन अमर। पढ़े-लिखे हस फेर बोले के तको सहुँर नइये। एखर ले बड़े दू झन अउ लइका हे तेन मन तो अइसना नइयें। ये हा तोर कोनो जनम के पाप के भुगतना आय।

   इँखर किल्लिर-कइया ल देख के बड़े बेटा महेश ह चुपकरावत बोलिस-- का बात हे बाबू?पहिली तो अइसन नइ गुसियावत रहे। आजकल बात-बात म चिड़चिड़ावत रहिथस।कुछु कारण हे का ?आफिस कोती कोनो परशानी हे का?

        आफिस कोती कुछु परशानी नइये--सरी परशानी घरे कोती ले हे। कोनो बइठया-उठइया आथे या कोनो सगा -सोदर आथे त ये मंदबुद्धि लइका के सेती मोर मन म हीन भावना आथे।कहूँ आये-जाये ल परथे तभो अच्छा नइ लागय।दूसर म ये साल दुलारी अउ तोर बिहाव तको खच्चित करना हे।दू साल होगे रिश्ता खोजत। ये मंदबुद्धि लइका के बारे म जान के सगा मन भिरक जथें तइसे लागथे--हुलास ह थोकुन शांत होवत कहिस।

     अच्छा त तनाव के ये कारण हे बाबू। तैं फिकर झन कर।अइसन बात होही त हमन शादीच नइ करन। मँझली बेटी दुलारी ह चाय-पानी देवत कहिस।

   नहीं बेटी !असो बिहाव तो माढ़बे करही। हुलास ह चाय पियत थिरबाँव होवत कहिस।

     बात आये-गये होगे।रतिहा बने जेवन-पानी होइस तहाँ ले सोवा परिस। बिहनिया हुलास ह रामबती ल कहिस-- चल तो आज सरकारी अस्पताल जाबो जिहाँ बच्चा मन के ,नवाँ बड़े डाक्टरिन आये हे सुने हँव। अतेक बइद-गुनिया,डाक्टर मन सो इलाज करवा के थक हारगेन त उहू ल एक पइत देखा देबो। हो सकथे वोकर हाथ म जस लिखाये होही अउ कुमार बेटा ह ठीक हो जही।

   हव ,ले का होही चल देबो। जम्मों पुराना एक्सरे अउ रिपोट मन झोला म भराये माढे़ हें। सबो ल चेत करके धर लेबे--रामबती कहिस।

       वोमन ठीक दस बजे अस्पताल पहुँच गेइन। डाक्टरिन ह आगे राहय। शुरुच म नंबर लगगे। डाक्टरिन ह कुमार के जाँच करके अउ पुराना एक्सरे, रिपोट संग दवई-पानी के पर्ची मन ल देख के पूछिस--इस बच्चे की डिलवरी कहाँ हुई थी?

    घरे म होये रहिस हे डाक्टरिन जी।गाँव के एक झन सियनहीन दाई ह बड़ मुश्किल म डिलवरी कराये रहिस--रामबती बताइस।

      हाँ--,यही तो बात है।उल्टी-सीधी डिलवरी के कारण बच्चे का पीटयूटरी पूरा डैमेज हो गया है।पैदाइशी में देरी के कारण इसको उस समय आक्सीजन भी ठीक से नहीं मिला जिसके कारण यह विकलांग हो गया। एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानेंगे आप लोग-

        काबर बुरा मानबो मैडम जी।बोलव का बात ये ते--हुलास कहिस।

     इस बच्चे का कहीं इलाज नहीं हो सकता । व्यर्थ  में भटकते और धन लुटाते रहोगे। अच्छा ये बताओ--इसकी उम्र कितनी है?

     सोला साल के होगे हे मैडम जी।

     ठीक है--मैं यह बताना चाह रही हूँ कि ऐसे बच्चों का उम्र ज्यादा नहीं होता है।मेरे ख्याल से यह एक-दो वर्ष और जीवित रहेगा। 

     का करबो मैडम जी, हमला अपन पाप के फल अउ करम दंड ल तो भोगेच ल परही--हुलास ह उदास होवत कहिस।

      अरे कोई पाप, कर्म दंड -वंड नहीं है।यह तो एक मेडिकल इशु है।फिर भी लगता है आप थोड़ा धार्मिक प्रवृत्ति के हो तो इतना तो मानते ही होगें कि दीन-दुखियों की सेवा करनी चाहिए। उससे पुण्य की प्राप्ति होती है-डाक्टरिन बोलिस।

    हाँ मैडम जी।ये तो सिरतो बात ये--हुलास हामी भरिस।

      तो फिर इस बच्चे की सेवा करो ।यह तो बहुत ही दीन-दुखी है।सेवा का अवसर सबको नहीं मिलता। आप लोगों को तो अपने घर में ही ,अपने ही बच्चे की सेवा का सौभाग्य मिल रहा है। एक बात और--देखो जैसे छोटे बच्चे निर्जीव गुड्डा-गुड्डी या अन्य खिलौनों से खेलकर खुश होते हैं वैसे ही आप लोग इस जिंदा खिलौने से खेलकर आनंद लो।

      डाक्टरिन के बात ल सुनके रामबती अउ हुलास के आँखी छलछलागे। उँखर मन ल बहुत ढाँढ़स मिलिस। आज पहिली बार कुमार ल लेके मन ल शांति मिलिस।तहाँ ले वोमन हाँसी-खुशी डाक्टरिन मैडम ले छुट्टी माँग के अपन जिंदा खेलौना संग खेलत घर आगें।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

हम पेंड़ कती लगावन* (निबंध)

 *हम पेंड़ कती लगावन*

(निबंध)

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आज विश्व पर्यावरण दिवस हे।पूरा संसार पर्यावरण प्रदूषण के चिंता म बूड़े हे।  भले एमा कतको देश मन अउ मनखे मन देखौटी हाथ -गोड़ छटकारत हें। बाहिर म राम राम तरी म --- जइसे विकसित देश मन सबले जादा चिंता के इजहार करत हें जेन मन पर्यावरण ल सबले जादा नुकसान पहुँचाये हें।

      आज जेन ल देखबे तेन सोशल मिडिया म पर्यावरण ल बँचाये बर प्रार्थना ऊपर प्रार्थना करत हें।अतका प्रार्थना तो वो ह कभू अपन ईष्ट देव ले नइ करे होही। सब जगा पेंड़ लगावव-पर्यावरण बँचावव, पेड़ लगाबो--धरती ल सरग बनाबो --जइसे नारा अउ पोस्ट के भरमार हे।अइसे लागथे के बूड़त धरती ल बँचाये बर सब वराह अवतार ले लेहीं। फेसबुक अउ व्हाट्सएप म बाढ़ आगे हे।

     अइसन नारा लगवाये म वो मन डेड़ हुशियार अउ सबले आगू हें जे मन पर्यावरण के सबले जादा चीरहरण करे हें। बड़े- बड़े परबत मन ला ठेकला करे म इँखरे हाथ अउ छूरा के कमाल हे।एमन सदा दिन दूसर के कंधा म बंदूक मढ़ा के गोली दागे म माहिर हें। ये मन दूसर ल अइसने उचकावत रहिथें अउ भितरे भीतर जंगल-झाड़ी, नदी-नरवा अउ डोंगरी-पठार ल सिरवा के अपन उल्लू सीधा करत रथें।

    हमन तो संस्कारी ,परबुधिया आम जनता आन।  परबुधिया नइ रइतेन त हमर घन ,गद हरियर जंगल मन नइ उजरतिन। धनहा,भर्री -भाँठा म जहर उछरत बड़े बड़े कारखाना नइ तनातिन। सात लेन-आठ लेन के सड़क मन जीव लेवा राक्षस मन सहीं सैंकड़ो साल के जुन्नटहा, हजारों-लाखों पेंड़ मन ल लील के पर्यावरण के घेंच ल मुरकेटे बर अपन धृतराष्ट्री भुजा ल नइ फइलातिन।

       हमर सदग्रंथ, संत, महात्मा अउ पुरखा मन कहे हें के कोनो भी अच्छा बात ल मान लेना चाही। मान लेथन का,मानबेच करबो । तभो ले ये तो सोचे ल परही के पेड़ मन ल कोन काटत हें ? जंगल मन ल कोन सिरवाये हें? का ये काम ल गरीब ,मजदूर जेन मन परे डरे लकड़ी ल बिन के अपन घर लाथें तेन मन करे हें या वो भुँइया के भगवान किसान ह करे हे जेन अपन एक ठन दतवन ले उपराहा डगाली ल टोरना पाप समझथे ,जेन ल अपन खुद के जरूरत बर अपने लगाये पेड़ ल काटे बर आदेश ले बर परथे। नहीं न ।  

      जंगल सिरवाये के पाप तो बड़े-बड़े जंगल के ठेकेदार मन ,फेक्ट्री वाले मन, खदान वाले मन करे हें। पर्यावरण प्रदूषण के दोषी तो सुरसा के मुँह जइसे बाढ़त महानगर अउ उहाँ रहइया अमीर मनखे मन हें जेन मन रात-दिन फर्र-फर्र मोटर-कार म घूमत हें, ए सी चलावत हें।जेकर सेती हवा म धुँगिया भरत हे। हवा ल जहरीला तो बड़े आदमी मन के कारखाना ले निकले धुँवा ह करे हे।

     नदिया मन के पानी प्रदूषित होगे हे। पिये के लइक का,खेत म पलोये के लइक नइ रहिगे हे। का ये आम जनता के सेती ये ? का इँखर हाथ गोड़ धोये पानी ह नदिया म जाके गिरत हे ,धन कारखाना मन के बजबजावत, बस्सावत ,कीरा परे पानी के नाला मन गिरत हें---ये गुने के बात ये।

     जंगल मन दिनों-दिन कमती होवत हें। हम पूछथन काबर होवत हें? जंगल,पहाड़, नदी,नरवा तो सरकार के आय। वोकर रक्षा के जिम्मेदारी सरकार के आय धन नहीं? रक्षा नइ होवत ये तभे तो कटावत हे न? एक बात अउ--साल पूट मनमाड़े पेंड़ लगावत हन कहिथें त वो पेड़ मन कहाँ हें? रहितिन त पेंड़े-पेड़ हो जतिस त पर्यावरण प्रदूषण के रोना रोये ल नइ परतिस। फेर का करबे ढोल के भीतर पोल हे। भ्रष्टाचार के मुसवा ह जर ल कतरते रहिथे। सबले पहिली तो ये रक्षक के रूप म भक्षक मन ल दंड मिलना चाही। पेड़ लगावव कहे भर ले थोरे होही।

       कई पइत तो सरकारी वृक्षारोपण अइसन चटर्रा भाँठा म होये रहिथे जिहाँ न तो सिंचाई के सुविधा, न तो रेंका झेंका। एक दू महिना म पेड़ का वोकर सुखाये खूँटी तको खोजे नइ मिलय।

            समे के संग चले म कोनो ल परशानी नइये। विकास भला कोन ल नइ चाही। फेर ये विकास पर्यावरण के बलि देके नइ होना चाही। पहिली दू -चार सौ पेड़ तइयार होवत त कहूँ जरूरत परे म कुछ पेड़  कटाना चाही। हाइवे बनाये के पहिली बीच म अवइया पेंड़ मन ल सुरक्षित आन जगा लगाये के जोखा होना चाही।

         चलौ हम  आम जनता मन मान लेथन के पेंड़ लगाना हे। त कती मेर लगावन ? जम्मों आबादी अउ चरागन तको म  राजनैतिक संरक्षण ले बेजा कब्जा होगे हे।तरिया के पार म बस्ती बसगे हे। मैदान तो हइ नइये। पहिली गाँव म  हेलमेल गुड़ी राहय जिहाँ दू -चार बर पीपर लगातेन तेनो खिरागे,साँकुर होगे।

      हमन सड़क के तीरे तीर म लगाथन। पाँच दस बछर लइका असन से के सजोर करथन तहाँ ले सड़क चौड़ीकरन के आदेश आ जथे। जब ये पेड़ मन कटाथे त अइसे लागथे के कोनो छाती म आरी चलावत हे। 

       बखरी बारी म लगातेन त वो ह बाढ़े जनसंख्या के मारे साल पुट कुरिया बनाये म सिरागे। एक बात अउ खेत के मेड़ पार म लगा देबो त पानी कहाँ ले लाबो? यहा तफर्रा म मनखे के पिये बर बोर, बोरिंग ले पानी  नइ निकलत ये त पेड़-पौधा मन बर तो पूछ झन।

          तभो ले  हम आम जनता अन । तुहँर मन के अच्छा बात ल जरूर मानबो।पेड़ जरूर लगाबो। बरसात ल आवन दव। फेर अतके बता देहू --पेड़ कती मेर लगाना हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी फ़िल्म अउ साहित्य*

 *छत्तीसगढ़ी फ़िल्म अउ साहित्य*


कोनो फ़िल्म मा साहित्य के प्रयोग दुये जघा हो सकथे। एक तो फ़िल्म के कहानी (पटकथा) के आधार कोनो साहित्यिक कहानी या उपन्यास मा अउ दूसर वो फ़िल्म के गाना मा। छत्तीसगढ़ी भाषा के पहिली फ़िल्म "कहि देबे संदेश" रहिस। दूसर फ़िल्म "घर-द्वार" रहिस। ये दुनों फ़िल्म श्वेत-श्याम रहिन। साठ में दशक के ये दू फ़िल्म के बाद सन् 2000 तक अउ कोनो छत्तीसगढ़ी फ़िल्म के निर्माण नइ होइस। नवा राज्य छत्तीसगढ़ बने के संगेसंग "मोर छइयाँ भुइयाँ" बनिस अउ सुपर हिट होके कतको रिकॉर्ड बना डारिस। ये पहिली रंगीन छत्तीसगढ़ी फ़िल्म रहिस। मोर छइयाँ भुइयाँ के सफलता ला देख के  अनेक मन फ़िल्म निर्माण कर डारिन फेर अधिकांश फ़िल्म मन अइसन सफलता नइ पा सकिन। आज घलो बहुत अकन छत्तीसगढ़ी फ़िल्म बनत हें फेर मोर जानकारी मा कोनो साहित्यिक उपन्यास या कहानी ऊपर शायद अभी तक एको फ़िल्म नइ बनिस हे। मोर ये जानकारी अधूरा घलो हो सकथे। 


अब छत्तीसगढ़ी फ़िल्म मा साहित्य के चर्चा करे बर फिल्मी गाना रहि जाथे। कहि देबे संदेश फ़िल्म के गीतकार हनुमंत नायडू "राजदीप" रहिन जउन मन साहित्यकार घलो रहिन। उनकर लिखे फिल्मी गाना मा साहित्य देखे बर मिलथे। 


झमकत नदिया बहिनी लागे, परबत मोर मितान 

मोर अँगना के सोन चिरैया ओ नोनी

तरी हरी नाहना

तोर पैरी के छनर छनर 

होरे होरे होरे

दुनिया के मन आघू बढ़ गें

बिहिनिया ले ऊगत सुरुज देवता

कहि देबे संदेश फ़िल्म के एको गीत मा फिल्मी मसाला के तड़का नइये। हर गीत साहित्य के श्रेणी मा खरा उतरे हे। 


फ़िल्म घर-द्वार के गीतकार प्रखर साहित्यकार हरि ठाकुर रहिन। फ़िल्म बर इनकर लिखे गीत रहिन - 


गोंदा फुलगे मोर राजा

झन मारो गुलेल

सुन सुन मोर मया पीरा के सँगवारी

जउन भुइयाँ खेले

आज अधरतिहा 


इन गीत मन मा घलो फिल्मी मसाला के तड़का नइ दिखै। ये गीत मन घलो साहित्यिक के श्रेणी मा आहीं।


मोर छइयाँ भुइयाँ, मा चार गीत लक्ष्मण मस्तुरिया के अउ बाकी आने गीतकार मन के रहिन। छइयाँ भुइयाँ ला छोड़ जवइया तँय थिराबे कहाँ रे, ये गीत के साहित्यिक ऊँचाई अइसन हे कि आज बीस बछर बाद इही गीत के कारण मोर छइयाँ भुइयाँ फ़िल्म ला सुरता करे जाथे। सतीष जैन के फ़िल्म रहिस "मोर छइयाँ भुइयाँ"। अभी हाल मा उनकर "हँस झन पगली, फँस जाबे" भले हिट होइस फेर साहित्यिक कसौटी मा फ़िल्म के गीत मन निराश करिन। बहुत अकन फ़िल्म बनिस, बहुत अकन गीत बनिन फेर अधिकांश गीत मन साहित्य के कसौटी मा खरा उतरे के लाइक नइ माने जा सकें। छत्तीसगढ़ी फिल्मी गीत मा हनुमंत नायडू, हरि ठाकुर अउ लक्ष्मण मस्तुरिया जइसे साहित्यिक स्तर दूसर गीत मन मा देखे बर नइ मिलिस। ये मोर निजी आकलन आय। हो सकथे आप के आकलन कुछु अउ हो।


*अरुण कुमार निगम*

Thursday 10 June 2021

दलित जी के काव्य मा गाँधी बबा"* *"बापू जी अउ बाबू जी"*

 *"दलित जी के काव्य मा गाँधी बबा"*


*"बापू जी अउ बाबू जी"*


आज हमर देश महात्मा गाँधी जी के 152 वाँ जनमदिन मनावत हे। संगेसंग दुनिया के आने देश में मा घलो बापू जी के जयंती मनत हे। ये मंगल बेरा म छत्तीसगढ़ के जनकवि कोदूराम "दलित" जी के रचना के सुरता करना प्रासंगिक होही। दलित जी के अनेक रचना मन मा महात्मा गाँधी के महातम ला रेखांकित करे गेहे। उनकर विचार ला छत्तीसगढ़ी कविता के माध्यम ले बगराए गेहे। विशेष उल्लेखनीय बात ये हे कि दलित जी परतंत्र भारत ला देखिन, आजादी ला देखिन अउ आजादी के बाद के भारत ला घलो देखिन। आजादी के पहिली आजादी पाए के संघर्ष, आजादी के दिन के हुलास अउ आजादी के बाद नवा भारत के नवा सिरजन बर उदिम, उनकर रचना मन मा देखे बर मिलथे। उनकर रचना मा महात्मा गाँधी के विचार के अनेक झलक देखे बर मिलथे। उनकर रचना मन मा जहाँ-जहाँ गाँधी जी के उल्लेख होइस हे, संबंधित पद ये आलेख मा रखे के कोशिश करे हँव। पूरा रचना इहाँ देना संभव नइ हो पाही। 


सब ले पहिली सुराज के बेरा मा भारत के नागरिक मन ला संबोधित गीत के अंश देखव -


(1)"जागरण गीत"


अड़बड़ दिन मा होइस बिहान।

सुबरन बिखेर के उइस भान।।


छिटकिस स्वतंत्रता के अँजोर।

जगमगा उठिस अब देश तोर।।


सत् अउर अहिंसा राम-बान।

मारिस बापू जी तान-तान।।


आजादी के पहिली सत्याग्रह करे के आह्वान करत सार छन्द आधारित कविता के अंश - 

(2) "सत्याग्रह"

अब हम सत्याग्रह करबो।

कसो कसौटी-मा अउ देखो,

हम्मन खरा उतरबो।

अब हम सत्याग्रह करबो।।


जाबो जेल देश-खातिर अब-

हम्मन जीबो-मरबो।

बात मानबो बापू के तब्भे

हम सब झन तरबो।

अब हम सत्याग्रह करबो।।


चलो जेल सँगवारी घलो आजादी के पहिली के कविता आय, सार छन्द आधारित ये कविता के एक पद -

(3) "चलो जेल सँगवारी"

कृष्ण-भवन-मा हमू मनन, गाँधीजी साहीं रहिबो।

कुटबो उहाँ केकची तेल पेरबो, सब दुख सहिबो।।

चाहे निष्ठुर मारय-पीटय, चाहे देवय गारी।

अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल सँगवारी।।


आजादी के बाद आत्मनिर्भर बने बर गाँधी जी स्वदेशी अपनाए आह्वान करिन। चरखा अउ तकली के प्रयोग करे बर कहिन। इही भाव मा चौपई छन्द आधारित कविता के अंश - 

(4) "तकली"


सूत  कातबो   भइया , आव।

अपन - अपन तकली ले लाव।।


छोड़व आलस , कातव सूत।

भगिही  बेकारी  के भूत।।


भूलव  मत  बापू के बात।

करव कताई तुम दिन-रात।।


तइहा के जमाना मा खादी के टोपी के खूब चलन रहिस। इही टोपी ला गाँधी टोपी घलो कहे जात रहिस। खादी टोपी कविता के कुछ पद - 


(5) "खादी टोपी" 


पहिनो खादी टोपी भइया

अब तो तुँहरे राज हे।

खादी के उज्जर टोपी ये

गाँधी जी के ताज हे।।


येकर महिमा बता दिहिस

हम ला गाँधी महाराज हे।

पहिनो खादी टोपी भइया !

अब तो तुम्हरे राज हे।।


गाँधी बबा कहँय कि भारत देश ह गाँव मा बसथे। उनकर सपना के सुग्घर गाँव के कल्पना ला कविता मा साकार करिन दलित जी - 


(6)  सुग्घर गाँव के महिमा"

सब झन मन चरखा चलाँय अउ कपड़ा पहिनँय खादी के।

सब करँय ग्राम-उद्योग खूब, रसदा मा रेंगँय गाँधी के।।


आज के सरकार "गरुवा, घुरुवा, नरवा, बारी" के नारा लगाके छत्तीसगढ़ के विकास के सपना देखता हे। सरकार ला दलित जी के "पशु पालन" कविता ला पूरा जरूर पढ़ना चाही। ये कविता मा उनकर सपना साकार करे के मंत्र बताए गेहे। यहू कविता सार छन्द आधारित हे - 


(7) "पशुपालन"

पालिस 'गऊ' गोपाल-कृष्ण हर दही-दूध तब खाइस 

अउर दूध छेरी  के, 'बापू-ला' बलवान बनाइस।।


लोकतंतर के तिहार माने छब्बीस जनवरी के हुलास के बरनन हे ये कविता मा, एक पद देखव - 

(8) "हमर  लोकतन्तर"

चरर-चरर गरुवा मन खातिर, बल्दू लूवय काँदी।

कलजुग ला सतजुग कर डारे,जय-जय हो तोर गाँधी।।

सुग्घर राज बनाबो कविता के ये पद मा गाँधी के संगेसंग देश के महान नेता मन के मारग मा चलके समाजवाद लाए के सपना देखे गेहे - 


(9) "सुग्घर राज बनाबो"

हम संत विनोबा, गाँधी अउ नेहरु जी के 

मारग मा जुरमिल के सब्बो झन चलीं आज।

तज अपस्वारथ, कायरी, फूट अउ भेद-भाव

पनपाईं जल्दी अब समाजवादी समाज।।


धन्य बबा गाँधी गीत सार छन्द आधारित हे। चौंतीस डाँड़ के ये गीत महात्मा गाँधी ऊपर लिखे गेहे। कुछ पद देखव - 


(10) धन्य बबा गाँधी  


चरखा -तकली चला-चला के ,खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।


सबो धरम अऊ सबो जात ला ,एक कड़ी मा जोड़े।

अंगरेजी कानून मनन- ला, पापड़ साहीं तोड़े।।

चरखा -तकली चला-चला  के, खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।


रहिस जरुरत  तोर  आज पर चिटको नहीं अगोरे।

अमर लोक जाके दुनिया-ला दुःख  सागर मा बोरे।।

चरखा -तकली चला-चला  के ,खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।


एक के महातम कविता दलित जी के सुप्रसिद्ध कविता आय। यहू कविता मा गाँधी जी के चर्चा होइस हे - 


(11) एक के महातम

एक्के गाँधी के मारे, हड़बड़ा गइन फिरंगी।

एक्के झाँसी के रानी हर, जौंहर मता दे रहिस संगी।।

एक्के नेहरु के मानँय तो, दुनिया के हो जाय भलाई।

का कर सकिही हमर एक हर ?अइसन कभू कहो झन भाई।

जउन "एक" ला  हीनत रहिथौ, तउन "एक" के सुनो बड़ाई।।

आजादी ला पाए बर कतको नेता मन प्राण गँवाइन, अघात कष्ट सहिन। ये आजादी बड़ कीमती हे। इही भाव आधारित ये कविता के कुछ अंश देखव - 

(12) "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय"

फाँसी मा झूलिस भगत सिंह

होमिस परान नेता सुभाष।

अउ गाँधी बबा अघात कष्ट 

सहि-सहि के पाइस सरगवास।।

कतकोन बहादुर मरिन-मिटिन

तब ये सुराज ला सकिन लाय। 

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय।।

ये कविता मा सत्य-अहिंसा के संदेश के संगेसंग भारत भुइयाँ ला गौतम अउ गाँधी के कर्म-भूमि निरूपित करे गेहे -

(13) वो  भुइयाँ  हिन्दुस्तान आय 

लाही जग-मा सुख शांति यही,कर सत्य-अहिंसा के प्रचार।

अऊ आत्म-ज्ञान,विज्ञान सिखों के देही सब ला यही तार।।

गौतम-गाँधी के कर्म भूमि , जग के गुरु यही महान आय।

वो  भुइयाँ  हिन्दुस्तान आय ।।


गुलामी का जमाना मा राष्ट्र प्रेम के बात करे के मनाही रहिस। वो जमाना मा दलित जी इस्कुल के लइका मन के टोली बनाके छत्तीसगढ़ी भाषा मा राऊत नाचा के दोहा के माध्यम ले गाँव गाँव मा जाके गाँधी जी के विचार बगरावत ग्रामीण मन मा राष्ट्र प्रेम के भावना भरत रहिन। ये काम आजादी के बाद घलो जारी रखिन। छत्तीसगढ़ी के राऊत नाचा के दोहा छन्द शास्त्र के दोहा विधान ले अलग होथे अउ सरसी छन्द जइसे होथे फेर बोलचाल मा दोहा कहे जाथे - 

(14) "राऊत नाचा के दोहा"

गाँधी-बबा देवाइस भैया  , हमला  सुखद सुराज।

ओकर मारग में हम सबला ,चलना चाही आज।।


(15) "राऊत नाचा के दोहा"


गाँधी जी के छापा संगी, ददा बिसाइस आज।

भारत माता के पूजा-तैं, कर ररूहा महाराज।।


(16) "राऊत नाचा के दोहा"


गोवध - बंदी  सुनके  भैया, छेरी बपुरी रोय।

मोला कोन बचाही बापू, तोर बिन आफत होय।।


(17) "राऊत नाचा के दोहा"

गाँधी जी के छेरी भैया, में में में नरियाय रे।

एखर दूध ला पी के संगी बुढ़वा जवान हो जाये रे।।

दलित जी के लोकप्रिय गीत छन्नर छन्नर पैरी बाजे, खन्नर खन्नर चूरी, उनकर धान लुवाई कविता के एक हिस्सा आय। सार छन्द आधारित यहू कविता मा गाँधी बबा के सुरता करे गेहे - 

(18) "धान लुवाई"

रहय न पावय इहाँ करलई,रोना अउर कलपना।

सपनाए बस रहिस इहिच,बापू- हर सुन्दर सपना।।


सुआ गीत, छत्तीसगढ़ के लोकगीत आय। एकर लोकधुन मा घलो दलित जी राष्ट्र-प्रेम अउ भाईचारा के संदेश देवत गाँधी जी ला स्मरण करिन हें - 


(19) "तरि नारि नाना"


भाई संग लड़ना कुरान हर सिखाथे ?

कि भाई संग लड़ना भगवान हर सिखाथे ?

मिल के रहव जी, छोड़व लेड़गाई

जीयत भर तुम्मन-ला गाँधी समझाइस।

अउ जीयत भर तुम्मन ला नेहरू मनाइस।।


"पढ़इया प्रौढ़ मन खातिर" रचना एक लंबा रचना आय जेला चौपाई छन्द मा लिखे गेहे। आजादी के तुरंत बाद दलित जी अपन संगी गुरुजी मन के साथ आसपास के गाँव मा प्रौढ़ शिक्षा के कक्षा लगावत रहिन। उनकर अधिकांश रचना मा गाँधी जी के जिक्र होए हे - 


(20) "पढ़इया प्रौढ़ मन खातिर"


बने रहव झन भेंड़वा-बोकरा।

यही सिखाइस गाँधी डोकरा।।

वो अवतार धरिस हमरे बर।

जप तप त्याग करिस हमरे बर।।


(21) "दोहा"


गाँधी जी के जोर मा, पाए हवन सुराज।

वोकर बुध ला मान के, चलना चाही आज।।


दलित जी कभू श्रृंगार रस के कविता नइ गढ़िन। उँकर रचना मा प्रकृति चित्रण, देश अउ समाज निर्माण, सरकारी योजना के समर्थन अउ सामाजिक बुराई मिटाए बर जागरण के बात रहिस। मद्य निषेध कविता ला मध्यप्रदेश शासन के प्रथम पुरस्कार मिले रहिस। यहू काफी लंबा रचना हे। अइसन रचना मन मा घलो गाँधी जी के उल्लेख होइस हे - 


(22) "मद्य-निषेध"


काम बूता कुछु काहीं, तेमा मन ला लगाहीं

जर-जेवर बनाहीं, धोती लुगरा बिसाहीं वो

मनखे बनहीं, अब मनखे साहीं, खूब

मउज उड़ाहीं, गाँधी जी के गुन गाहीं वो।।


(23) "पियइया मन खातिर"


मँद पीए बर बिरजिस गाँधी महाराज जउन लाइन सुराज।

ओकर रसदा ला तज के तँय, झन रेंग आज, झन रेंग आज।।

का ये ही बुध मा स्वतंत्र भारत के राजा कहलाहू तुम ?

का ये ही बुध मा बापू जी के, राम-राज ला लाहू तुम ?


आजादी के बाद देश के नवा निर्माण होइस। सब झन भारत ला बैकुंठ साहीं बनाये के सपना सँजोये रहिन। अइसने एक कविता मा गाँधी जी ला देखव - 


(24) "भारत ला बैकुंठ बनाबो"


अवतारी गाँधी जी आइन

जप-तप करिन सुराज देवाइन

हमर देश ला हमर बनाइन

सुग्घर रसदा घलो देखाइन।

उँकरे मारग ला अपनाबो।

भारत ला बैकुंठ बनाबो।।


दलित जी रवींद्रनाथ टैगोर, लोकमान्य गंगाधर तिलक, जवाहर लाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, विनोबा भावे जइसे अनेक महापुरुष ऊपर घलो कविता गढ़िन हें। तिलक के कविता मा घलो गाँधी जी के उल्लेख होइस है - 


(25) "भगवान तिलक"


बापू जी जेकर चेला।

श्रद्धांजलि अर्पित हे तेला।।


दलित जी के रचना मन मा गाँधी के विचार के संगेसंग दीगर महापुरुष जइसे संत विनोबा के भूदान यज्ञ असन आंदोलन के उल्लेख दीखथे - 


(26) "हम सुग्घर गाँव बनाबो"


गाँधी बबा बताइस रसदा, तेमा रेंगत जाबो।

संत विनोबा के भूदान-यज्ञ ला सफल बनाबो।


देश के विकास मा छुआ-छूत सब ले बड़े बाधा आय। ये कविता काफी लंबा हे, इहाँ घलो गाँधी जी के विचार देखे बर  मिलथे।1


(27) "हरिजन उद्धार"


गाँधी बबा सबो झन खातिर, लाए हवय सुराज।

ओकर प्रिय हरिजन मन ला, अपनाना परिही आज।।


देश मा किसान अउ मजूर के राज होना चाही, इही भाव के कविता आय सुराजी परब, कविता के कुछ अंश -


(28) "सुराजी परब"


घर-घर मा हो जाही सोना अउ चाँदी।

ए ही जुगत मा भिड़े हवै गाँधी।।

किसान मँजूर मन के राज होना चाही।

असली मा इँकरे सुराज होना चाही।।

गाँधी बबा ये ही करके देखाही।

फेर देख लेहू, कतिक मजा आही।।


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ददरिया राग आधारित कविता बापू जी के दू डाँड़ - 


(29) "बापू जी"


बापू जी तोला सुमिरौं कई बार।

आज तोर बिना दीखथे जग अँधियार।।


किसान अउ मजूर मन ला जगाए खातिर लिखे कविता मा गाँधीवादी विचार देखव - 


(30) "जागव मजूर जागव किसान"


बम धर के सत्य अहिंसा के

गाँधी जी बिगुल बजाइस हे।

जा-जा के गाँव-गाँव घर-घर

वो जोगी अलख जगाइस हे।।


आही सुराज के गंगा हर

झन काम करव दुखदाता के।

जय बोलव गाँधी बाबा के

जय बोलव भारत माता के।।


गाँधी जी गृह उद्योग अउ कुटीर उद्योग के समर्थक रहिन। उनकर विचार ला जन-जन तक पहुँचाए बर दलित जी के घनाक्षरी के एक हिस्सा देखव - 


(31) "गाँधी के गोठ"


गाँधी जी के गोठ ला भुलावव झन भइया हो रे

हाथ के कूटे पीसे चाँउर दार आटा खाव।

ठेलहा बेरा मा खूब चरखा चलाव अउ

खादी बुनवा के पहिनत अउ ओढ़त जाव।।


अंग्रेज के राज मा उँकर सेना मा हिंदुस्तानी मन घलो रहिन। अइसन सिपाही मन ला गाँधी जी के रसदा मा चले बर सचेत करत कविता झन मार सिपाही के चार डाँड़ - 


(32) "झन मार सिपाही"


फेंक तहूँ करिया बाना ला, पहिन वस्त्र खादी के।

सत्याग्रह मा शामिल हो जा, चेला बन गाँधी के।।

तोर नाम हर सोना के अक्षर मा लिक्खे जाही

हम ला झन मार सिपाही।।


जनकवि कोदूराम "दलित" जी के छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी भाषा ऊपर समान अधिकार रहिस। अब उनकर हिन्दी के कविता देखव जेमा गाँधीवादी विचारधारा साफ-साफ दिखथे - 


"दलित जी के हिन्दी कविता के अंश जेमा महात्मा गाँधी के उल्लेख हे"


आजादी मिले के बाद देश के नेता मन लापरवाह अउ सुखवार होवत गिन, उँकरे ऊपर व्यंग्य आय ये कविता - 


(33) "तब के नेता-अब के नेता"


तब के नेता को हम माने |

अब के नेता को पहिचाने ||

बापू का मारग अपनावें |

गिरे जनों को ऊपर लावें ||


महात्मा गाँधी के महातम बतावत कविता विश्व वंद्य बापू, दोहा अउ चौपाई छन्द मा लिखे गेहे - 


 (34) विश्व वंद्य बापू

दोहा

जय-जय अमर शहीद जय, सुख-सुराज-तरु-मूल।

तुम्हें  चढ़ाते  आज हम , श्रद्धा  के  दो फूल।।

उद्धारक माँ - हिंद के, जन - नायक, सुख-धाम।

विश्व वंद्य बापू तुम्हें , शत् -शत् बार प्रणाम।।


चौपाई

जय जय राष्ट्र पिता अवतारी।जय निज मातृभूमि–भय हारी।।

जय-जय सत्य अहिंसा -धारी। विश्व-प्रेम के   परम पुजारी।।

जय टैगोर- तिलक अनुगामी।जय हरि-जन सेवक निष्कामी।।

जय-जय कृष्ण भवन अधिवासी। जय महान , जय सद्गुण राशी।।

जय-जय भारत भाग्य-विधाता। जय चरखाधर,जन दुख: त्राता।।

जय गीता-कुरान –अनुरागी। जय संयमी ,तपस्वी, त्यागी।।

जय स्वातंत्र्य -समर -सेनानी। छोड़ गये निज अमर कहानी।।

किया देश हित जप-तप अनशन। दिया ज्ञान नूतन , नव जीवन।।

तुमने घर-घर अलख जगाया। कर दी दूर दानवी  माया।।

बापू एक बार  फिर आओ। राम राज्य भारत में लाओ।।

अनाचार - अज्ञान मिटाओ। भारत भू को स्वर्ग बनाओ।।

बिलख रही अति  भारत माता। दुखियों का दु:ख सुना न जाता।।

दोहा

दीन-दलित नित कर रहे, देखो करुण पुकार।

आओ मोहन हिंद में  , फिर लेकर अवतार।।

विश्व विभूति, विनम्र वर,अति उदार मतिमान।

नवयुग - निरमाता, विमल, समदरशी भगवान।।


मादक पदार्थ के त्याग करे बर निवेदन करत ये कविता के कुछ पद देखव - 

(35) "स्वतंत्र भारत के राजा" 

बापू के वचनों को न भूल

मादक पदार्थ मतकर  सेवन।

निर्माण कार्य में जुट जा तू

बन सुजन, छोड़ यह पागलपन।।


सुराजी परब के बेरा मा गाँधी अउ संगी महापुरुष ला सुरता करत ये कविता मन के कुछ डाँड़ - 

(36) "पंद्रह अगस्त"

आज जनता हिन्द की, मन में नहीं फूली समाती

आज तिलक सुभाष गाँधी के सुमंगल गान गाती।

(37) "पंद्रह अगस्त फिर आया"

जिस दिन हम आजाद हुए थे

जिस दिन हम आबाद हुए थे

जिस दिन बापू के प्रताप से 

सबल शत्रु बरबाद हुए थे

जिस दिन घर घर आनंद छाया।

वह पंद्रह अगस्त फिर आया।।

(38)  आठवाँ पन्द्रह अगस्त

इसी रोज बापू के जप तप ने आजादी लाई थी।

इसी रोज नव राष्ट्र ध्वजा, नव भारत में लहराई थी।

बापू के पद चिन्हों पर चलना न भुलावें आजीवन।

आज आठवीं बार पुनः आया पंद्रह अगस्त पावन।।

(39) "स्वाधीनता अमर हो"

हम आज एक होवें। कुल भेदभाव खोवें।।

बापू का मार्ग धारें। सबका भला विचारें।।


बापूजी के महिमा के बखान ये चरगोड़िया मा देखव - 

(40) "मुक्तक (चरगोड़िया) छत्तीसगढ़ी"

बापू हर  हमर सियान आय।

बापू हर हमर महान आय।

अवतरे रहिस हमरे खातिर।

बापू हमर भगवान आय।।


ये मुक्तक मा आजादी के बाद के हकीकत ला देखव - 

(41) "मुक्तक (चरगोड़िया) छत्तीसगढ़ी"

बबा मोर गाँधी, ददा धर्माधिकारी।

चचा मोर नेहरू अउ भारत महतारी।

कथंय मोला - "तँय तो अब बनगे हस राजा",

पर दुःख हे, के मँय ह बने-च हँव भिखारी।


कविता के ये चार डाँड़ , बापू के सीख के सुरता देवावत हें - 

(42) "राह उन्हीं की चलते जावें" -

बापू जी की सीख न भूलें

सदा सभी को गले लगावें

सत्य अहिंसा और शांति का

जन-जन को हम पाठ पढ़ावें।


गाँधी जी के सहकारिता के समर्थन करत घनाक्षरी छन्द के अंश देखव - 

(43) सिर्फ नाम रह जाना है -

सहकारिता से लिया गाँधी ने स्वराज्य आज

जिसके सुयश को तमाम ने बखाना है।

उसी सहकारिता को हमें अपनाना है औ

अनहोना काम सिद्ध करके दिखाना है।।


कविता के इन डाँड़ मा लोकतंत्र ला बापू के जिनगी भर के कमाई बताए गेहे - 

(44) हो अमर हिन्द का लोकतंत्र-

जो बापू की अमर देन

जो सत्य अहिंसा का प्रतिफल

उपहार कठिन बलिदानों का 

जिसका स्वर्णिम इतिहास विमल

परम पूज्य बापू जी के जीवन

भर की यही कमाई है

नव उमंग उल्लास लिए

छब्बीस जनवरी आई है।


दलित जी के बाल-साहित्य मा नीतिपरक रचना के संगेसंग राष्ट्रीय भाव ला जगाए के आह्वान घलो मिलथे - 

(45) बच्चों से -

अब परम पूज्य बापू जी का

है राम राज्य तुमको लाना 

उनके अपूर्ण कार्यों को भ

है पूरा करके दिखलाना।


गाँधीवादी कवि कोदूराम "दलित" गाँधी जी ला अवतार मानत रहिन - 

(46) बापू ने अवतार लिया - 

भारत माता अति त्रस्त हुई

गोरों ने अत्याचार किया।

दुखिया माँ का दुख हरने को

बापू जी ने अवतार लिया।।

पद-चिन्हों पर चल कर उनके

हम जन-जन का उद्धार करें।

अब एक सूत्र में बँध जाएँ

भारत का बेड़ा पार करें।।


गो वध के संदर्भ मा कविताई करत दलित जी ला गाँधी जी के सुरता आइस - 

(47) "गोवध बन्द करो"

समझाया ऋषि दयानन्द ने गो वध भारी पातक है

समझाया बापू ने गो वध राम-राज्य का घातक है।


जनकवि कोदूराम "दलित" जी के कविता "काला" अपन समय के बहुते प्रसिद्ध कविता रहिस ओकरे दू डाँड़ देखव - 

(48) "काला"

काला ही था रचने वाला पावन गीता।

बिन खट-पट के काले ने गोरे को जीता।।


नीतिपरक ये कविता मा बताए गेहे कि बापू के मार्ग मा चले ले हर समस्या के समाधान होथे - 

(49) "होता है उसका सम्मान"

बापू के मारग पर चल,

करें समस्याएँ अब हल।


वह मोहन और यह मोहन कविता मा "वह मोहन" माने कृष्ण भगवान अउ "यह मोहन" माने मोहनदास करमचंद गाँधी के कर्म अउ चरित्र के समानता बताए गेहे। यहू बहुत लंबा कविता आय। इहाँ कुछ पद प्रस्तुत करत हँव - 

(50) "वह मोहन और यह मोहन"

वह मोहन था कला-काला

यह मुट्ठी भर हड्डी वाला।।

कारागृह में वह आया था।

कालागृह इसको भाया था।।

उसका गीता-ज्ञान प्रबल था।

सत्य-अहिंसा इसका बल था।।

दोनों में है समता भारी।

दोनों कहलाते हैं अवतारी।।

इनके मारग को अपनाएँ।

लोकतंत्र को सफल बनाएँ।।


ये आलेख एक शोध-पत्र असन होगे। जब बाबूजी के गाँधी जी के उल्लेख वाला कविता खोजना चालू करेंव तब अधिकांश कविता बापू के उल्लेख वाला मिलिस। पचास कविता के उदाहरण खोजे के बाद मँय थक गेंव। मोर जानकारी मा छत्तीसगढ़ी मा अइसन दूसर कवि अभिन ले नइ दिखिस हे जिनकर अतका ज्यादा रचना मा गाँधी बबा के उल्लेख होइस हे। आपमन के नजर मा अइसन कोनो दूसर कवि हो तो जरूर बतावव। 

बहुत पहिली छत्तीसगढ़ के विद्वान साहित्यकार हरि ठाकुर जी, जनकवि कोदूराम "दलित" ऊपर एक आलेख लिखे रहिन जेकर शीर्षक दे रहिन - गाँधीवादी विचारधारा के छत्तीसगढ़ी कवि - कोदूराम "दलित"। आज मोला समझ में आइस कि हरिठाकुर जी अइसन शीर्षक काबर दे रहिन। 

महात्मा गाँधी के 152 वाँ जनम दिन बर ए आलेख ले सुग्घर अउ का लिख सकत रहेंव ? मोला विश्वास हे कि छत्तीसगढ़िया पाठक मन ला ये आलेख जरूर पसंद आही।


आलेख के लेखक - अरुण कुमार निगम

सुपुत्र श्री कोदूराम "दलित"