Friday 11 June 2021

हम पेंड़ कती लगावन* (निबंध)

 *हम पेंड़ कती लगावन*

(निबंध)

----------   ---------------


आज विश्व पर्यावरण दिवस हे।पूरा संसार पर्यावरण प्रदूषण के चिंता म बूड़े हे।  भले एमा कतको देश मन अउ मनखे मन देखौटी हाथ -गोड़ छटकारत हें। बाहिर म राम राम तरी म --- जइसे विकसित देश मन सबले जादा चिंता के इजहार करत हें जेन मन पर्यावरण ल सबले जादा नुकसान पहुँचाये हें।

      आज जेन ल देखबे तेन सोशल मिडिया म पर्यावरण ल बँचाये बर प्रार्थना ऊपर प्रार्थना करत हें।अतका प्रार्थना तो वो ह कभू अपन ईष्ट देव ले नइ करे होही। सब जगा पेंड़ लगावव-पर्यावरण बँचावव, पेड़ लगाबो--धरती ल सरग बनाबो --जइसे नारा अउ पोस्ट के भरमार हे।अइसे लागथे के बूड़त धरती ल बँचाये बर सब वराह अवतार ले लेहीं। फेसबुक अउ व्हाट्सएप म बाढ़ आगे हे।

     अइसन नारा लगवाये म वो मन डेड़ हुशियार अउ सबले आगू हें जे मन पर्यावरण के सबले जादा चीरहरण करे हें। बड़े- बड़े परबत मन ला ठेकला करे म इँखरे हाथ अउ छूरा के कमाल हे।एमन सदा दिन दूसर के कंधा म बंदूक मढ़ा के गोली दागे म माहिर हें। ये मन दूसर ल अइसने उचकावत रहिथें अउ भितरे भीतर जंगल-झाड़ी, नदी-नरवा अउ डोंगरी-पठार ल सिरवा के अपन उल्लू सीधा करत रथें।

    हमन तो संस्कारी ,परबुधिया आम जनता आन।  परबुधिया नइ रइतेन त हमर घन ,गद हरियर जंगल मन नइ उजरतिन। धनहा,भर्री -भाँठा म जहर उछरत बड़े बड़े कारखाना नइ तनातिन। सात लेन-आठ लेन के सड़क मन जीव लेवा राक्षस मन सहीं सैंकड़ो साल के जुन्नटहा, हजारों-लाखों पेंड़ मन ल लील के पर्यावरण के घेंच ल मुरकेटे बर अपन धृतराष्ट्री भुजा ल नइ फइलातिन।

       हमर सदग्रंथ, संत, महात्मा अउ पुरखा मन कहे हें के कोनो भी अच्छा बात ल मान लेना चाही। मान लेथन का,मानबेच करबो । तभो ले ये तो सोचे ल परही के पेड़ मन ल कोन काटत हें ? जंगल मन ल कोन सिरवाये हें? का ये काम ल गरीब ,मजदूर जेन मन परे डरे लकड़ी ल बिन के अपन घर लाथें तेन मन करे हें या वो भुँइया के भगवान किसान ह करे हे जेन अपन एक ठन दतवन ले उपराहा डगाली ल टोरना पाप समझथे ,जेन ल अपन खुद के जरूरत बर अपने लगाये पेड़ ल काटे बर आदेश ले बर परथे। नहीं न ।  

      जंगल सिरवाये के पाप तो बड़े-बड़े जंगल के ठेकेदार मन ,फेक्ट्री वाले मन, खदान वाले मन करे हें। पर्यावरण प्रदूषण के दोषी तो सुरसा के मुँह जइसे बाढ़त महानगर अउ उहाँ रहइया अमीर मनखे मन हें जेन मन रात-दिन फर्र-फर्र मोटर-कार म घूमत हें, ए सी चलावत हें।जेकर सेती हवा म धुँगिया भरत हे। हवा ल जहरीला तो बड़े आदमी मन के कारखाना ले निकले धुँवा ह करे हे।

     नदिया मन के पानी प्रदूषित होगे हे। पिये के लइक का,खेत म पलोये के लइक नइ रहिगे हे। का ये आम जनता के सेती ये ? का इँखर हाथ गोड़ धोये पानी ह नदिया म जाके गिरत हे ,धन कारखाना मन के बजबजावत, बस्सावत ,कीरा परे पानी के नाला मन गिरत हें---ये गुने के बात ये।

     जंगल मन दिनों-दिन कमती होवत हें। हम पूछथन काबर होवत हें? जंगल,पहाड़, नदी,नरवा तो सरकार के आय। वोकर रक्षा के जिम्मेदारी सरकार के आय धन नहीं? रक्षा नइ होवत ये तभे तो कटावत हे न? एक बात अउ--साल पूट मनमाड़े पेंड़ लगावत हन कहिथें त वो पेड़ मन कहाँ हें? रहितिन त पेंड़े-पेड़ हो जतिस त पर्यावरण प्रदूषण के रोना रोये ल नइ परतिस। फेर का करबे ढोल के भीतर पोल हे। भ्रष्टाचार के मुसवा ह जर ल कतरते रहिथे। सबले पहिली तो ये रक्षक के रूप म भक्षक मन ल दंड मिलना चाही। पेड़ लगावव कहे भर ले थोरे होही।

       कई पइत तो सरकारी वृक्षारोपण अइसन चटर्रा भाँठा म होये रहिथे जिहाँ न तो सिंचाई के सुविधा, न तो रेंका झेंका। एक दू महिना म पेड़ का वोकर सुखाये खूँटी तको खोजे नइ मिलय।

            समे के संग चले म कोनो ल परशानी नइये। विकास भला कोन ल नइ चाही। फेर ये विकास पर्यावरण के बलि देके नइ होना चाही। पहिली दू -चार सौ पेड़ तइयार होवत त कहूँ जरूरत परे म कुछ पेड़  कटाना चाही। हाइवे बनाये के पहिली बीच म अवइया पेंड़ मन ल सुरक्षित आन जगा लगाये के जोखा होना चाही।

         चलौ हम  आम जनता मन मान लेथन के पेंड़ लगाना हे। त कती मेर लगावन ? जम्मों आबादी अउ चरागन तको म  राजनैतिक संरक्षण ले बेजा कब्जा होगे हे।तरिया के पार म बस्ती बसगे हे। मैदान तो हइ नइये। पहिली गाँव म  हेलमेल गुड़ी राहय जिहाँ दू -चार बर पीपर लगातेन तेनो खिरागे,साँकुर होगे।

      हमन सड़क के तीरे तीर म लगाथन। पाँच दस बछर लइका असन से के सजोर करथन तहाँ ले सड़क चौड़ीकरन के आदेश आ जथे। जब ये पेड़ मन कटाथे त अइसे लागथे के कोनो छाती म आरी चलावत हे। 

       बखरी बारी म लगातेन त वो ह बाढ़े जनसंख्या के मारे साल पुट कुरिया बनाये म सिरागे। एक बात अउ खेत के मेड़ पार म लगा देबो त पानी कहाँ ले लाबो? यहा तफर्रा म मनखे के पिये बर बोर, बोरिंग ले पानी  नइ निकलत ये त पेड़-पौधा मन बर तो पूछ झन।

          तभो ले  हम आम जनता अन । तुहँर मन के अच्छा बात ल जरूर मानबो।पेड़ जरूर लगाबो। बरसात ल आवन दव। फेर अतके बता देहू --पेड़ कती मेर लगाना हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment