Wednesday 16 June 2021

आगी लगे तोर पोथी म जिव गेहे मोर रोटी म

 आगी लगे तोर पोथी म जिव गेहे मोर रोटी म 



               छुरा हा तइहा तइहा के रजवाड़ा गाँव आय । कचना धुरवा वंश के कतको राजा मन इहां राज करिन । बिद्रानवागढ़ राज के सबले बड़का भाग रिहिस हे छुरा रजवाड़ा । एकदमेच बीहड़ …. भयानक जंगल के सेती इहां तक काकरो पहुंच नइ रिहिस ते पायके इंकर शोर बहुत जादा नइ रिहिस । इहां के राजा मन घला अपनेच तक सीमित रिहिन । येमन केवल राज करिन । जनता बर कुछ नइ बनइन । राजकोष के उपभोग केवल राजा अऊ ओकर हाली मोहाली तक सीमित रिहिस । न सड़क बनइन न कुंआ तरिया खनवइन । तभो ले .... क्षेत्र के आदिवासी भोला भाला जनता हा ... इंकर आज्ञा के कभू उजर नइ करिन । न इंकर कभू अपमान करिन । इहां के राजा मन म खास बात यहू रिहिस के ..... ओमन अपन जनता ला ... न कभू लगान बर पदोइस .... न कहूं काम बर ....... तेकर सेती जनता हा इंकर राज म खुसहाल रिहिस । इहां प्राकृतिक संसाधन के अतका भरमार रिहिस के .... जनता कभू भूख नइ मरिस । 

               छुरा रजवाड़ा के आश्रित गाँव कोसमी म एक झिन बावा महराज रहय जेहा .... संस्कृत अऊ ज्योतिष के बड़ जानकार रिहिस । ओकर तिर दूरिहा दूरिहा के मन अपन समस्या धरके आवय अऊ समाधान घला पावय । काकरो गाय बइला गंवागे तब .. या कन्हो ला खेत खार बिसाना हे या नोनी बाबू के बर बिहाव करना हे तब .... बावा महराज के पोथी ले निकले समाधान अऊ मुहुरत ले बढ़के कहींच नइ रिहीस । बावा महराज हा बहुत गरीब रिहिस । बावा अऊ बवइन हा घनघोर जंगल के बीच गाँव ले थोकिन दुरिहा नानुक डोंगरी म कुटिया बनाके रहय । कथा पूजा इचार बिचार के भेंट चघावा के अलावा ओकर तिर जीविका के अऊ कन्हो साधन नइ रिहिस । महराज के एको झिन लोग लइका घला नइ रिहिस । तेकर सेती जवानी तो निकलगे फेर अवइया बुढ़हापा हा कष्टमय दिखे लगिस । गाँव के मन कभू कभार फोकटे फोकट मदत घला करय , तभो ले कभू कभू एक लांघन दू फरहर होइच जाय । 

               इंकरे भरोसा म महराज महराजिन के जिनगी चलत हे जानके ..... इहां के आदिवासी मन पोथी पतरा बिचराये बर जब जावय तब ... दार चऊंर , चार तेंदू , आमा अमली , केरा पपीता , जिमीकांदा कोचई अऊ भाजी पाला धरके जरूर जावय । कथा पूजा म घला अन्न दान खूबेच करय । फेर दान के चीज कतेक चलय । ओ समे दू दिन चार दिन म एकाध झिन फरियादी आवय । पंद्रही - महिना म एकाध घर पूजा होवय । बछर म चार छै बिहाव निपटय । काम कमई के दिन म वहू सब चुमुकले बंद रहय । महराज महराजिन के बहुत झिन चेला बन चुके रहय । ओमन हा महराज महराजिन ला अपन अपन घर म आके रेहे के नेवता देवय फेर महराजिन हा अबड़ छुवाछूत मानय तेकर सेती ओमन काकरो घर जाके खावय निही अऊ तो अऊ काकरो हांथ के पानी तको नइ पियय । 

               एक बेर भरे बरसात म महराज के घर दू दिन ले हांड़ी नइ चइघिस । घर म एक दाना अनाज नइ रइही तब हांड़ी उपास तो होबे करही । काम कमई के दिन म कन्हो अवइया जवइया के घलो उम्मीद नइ दिखत रहय । महराज अऊ महराजिन के जीव पोट पोट करे लगिस । महराज हा गाँव बसती के भीतर रहवइया चेला मन के घर जाये बर महराजिन ला मनाये बर लगिस । खाये बर मरत रहय फेर धरम भ्रस्ट झिन होय कहिके .... महराजिन हा गाँव म काकरो घर जाये बर मना कर दिस अऊ महराज ला मांगे बर जाये के किलौली करिस । बहुत समे पहिली ..... महराज हा एक घाँव राजा तिर मांगे बर गये रिहिस तब ओ समे ..... राजा हा ओला फोकटे फोकट दे बर मना करदे रिहिस हे तबले ..... उहू हा कसम खा डरे रिहिस के ..... भले ओमन बावा के मंगइया जात आय अऊ भले भूख मर जाय फेर कभू काकरो तिर हांथ नइ लमावन ..... । वहू मना कर दिस । 

               एक दिन अऊ इही उहापो म नहाकगे । महराजिन एकदमेच लरघियागे । तब बिहिनिया ले महराजिन पूछथे के - दूसर गांव म घला तुंहर चेला रहिथे का ? महराज हव किथे । महराजिन किथे - ओकरे घर जातेव ... अऊ दू चार दिन पुरतिन कुछु मांग के ले आतेन । महराज भड़कगे अऊ केहे लगिस - मोर परन भले टूट जाये फेर तोर धरम भ्रस्ट झिन होय ...... तैं उही तो कहना चाहत हस ना ...... । महराजिन के शक्ति नइ चलत रहय ....... भूख गरीबी अऊ लाचारी ले लड़त लड़त , ओकर मेर महराज ले लड़े के हिम्मत सिरा चुके रिहिस । ओहा धीर से महराज ला केहे लगिस – मोर केहे के अरथ तुंहर प्रण टोरना नोहे महराज ...... । तूमन गलत समझत हव .... । इहां मांगिहौ त सबो जान डरही के बावा महराज हा मांगे बर आये रिहीस कहिके । तेकर सेती दूसर गांव म जाये बर केहेंव । तूमन ला बने नइ लागिस होही ते मोला माफी दव । महराज हा किथे – सरी दुनिया जानत हे के ..... महराज हा कभू न भीख मांगिस .... न उधारी ..... । कुछ बेर म शांत दिमाग म महराज हा समाधान निकालत किहिस - दुनों अपन प्रण अऊ धरम ला भगवान तिर धर देथन अऊ जाथन दूसर गांव ....... । उहां मांगन निही फेर मना घला नइ करन ....... जे दिही तेला खाबो अऊ बांच जही तब बचा के लानबो ...... । मरता क्या नही करता ........ । महराजिन तुरते तैयार होगे । 

                डोंगरी ले उतरके रेंगत रेंगत सांझ होवत ले टेंगनाबासा नाव के गाँव म अपन चेला घर पहुंचगे । किसनहा चेला हा ओतके बेर ..... कमा धमा के आये रहय अऊ परछी म पटका पहिरे ...... गोरसी तिर आगी तापत ...... बीड़ी पियत बइठे रहय । उदुपले महराज ला अपन घर म देख .... लजागे बपरा हा । दुनों झिन के गोड़ धोवइस अऊ लकड़ी के पाटा के उप्पर म कमरा बिछाके बइठारिस । अपन बहू बेटा मनला घला महराज महराजिन के आसीरबाद देवइस । ओमन महराज के आये के कारन समझ नइ पइस अऊ ओकर श्रीमुख से ज्ञान के बात सुनाये के आग्रह करे लगिस । महराज हा काकरो हांथ के बने खाये पिये के समान ला नइ खाये सोंचके ..... न पिये बर पानी दिस ..... न चहा । महराज हा ज्ञान के बात बताये बर महराजिन ला पोथी ला झोला ले हेरे बर किहिस । महराजिन कहां सुनय । महराजिन के ध्यान हा गोरसी म चुरत चूनी रोटी के उपर रहय । भूख के मारे महराजिन कलकलागे रहय । महराज हा ओला दू तीन घाँव हुद करइस । महराजिन नी सुनिस त जोर से कोचकत किथे - तोर ध्यान कति हे बई ....... तोला अतेक बेर ले पोथी मांगत हँव .......। महराजिन ले रेहे नइ गिस ...... भूख हा ओकर पेट अऊ मन ले जादा मुहुं म बिराज चुके रिहीस .... ओहा कहि पारिस के - आगी लगे तोर पोथी म जिव गेहे मोर रोटी म ......  । 

               चेला मन समझगे । ताते तात गोरसी म बनत चूनी रोटी ला , आमा के अथान संग परोस दिन । महराज महराजिन के छुधा सांत होइस तब मुहुं ले ज्ञान अऊ अध्यात्म उपजे लगिस । चेला मन महराज महराजिन के अबड़ सेवा करिन । कुछ दिन पाछू दार चऊंर देके बिदा करिन । अब महराजिन हा छुवाछूत ला भुलागे अऊ महराज हा नइ मांगे के कसम ला भुलागे ...... । फेर क्षेत्र के मन महराज महराजिन के बदले बेवहार के पाछू घटे घटना ला अभू तक नइ भुलाहे अऊ अपन उपर परत अइसन मौका म , आगी लगे तोर पोथी म , जिव गेहे मोर रोटी म , केहे बर नइ भुलाये । 


                                                                                        हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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