Thursday 24 June 2021

मितान के नाँव पाती*

 *मितान के नाँव पाती*

                                     भिलाई 

                                    24/06/2021 


मयारुक मितान,

                    जोहार।

        लिखना हाल ये हे कि हमर इहाँ भिलाई मा ईश्वर के दया ले सब बने- बने हे।उम्मीद हे तहूँ मन परिवार समेत उहाँ सकुशल होहू।


मितान! चउमास आ गेहे अउ एसो हमर डाहर लगते जून ले जबर बरसा शुरू हे। गरमी के मार अउ उमस ले अब राहत हे। कभू झिटिर- झिटिर अउ कभू रदरद- रदरद पानी के गिरना मन ला शुकून देवत हे।हवा- गरेरा ले एसो झाड़- झंखाड़ मन बिकट टूटिन - गिरिन फेर अब थोर राहत हे। पानी के दिन आय फेर मौसम सुग्घर हे। 


*घूमड़ घूमड़ बादर आवत।*

*बरसा सिरतो गजब सुहावत।।*

*धरती के हे प्यास बुझावत।*

*सुक्खा रुखराई हरियावत।।*


बैसाख जेठ मा एसो के गरमी बड़ हलकान करिस मितान।एसी कूलर घलो फेल होय ला धर ले रहिन।फेर कोरोना महमारी के सेती बहुते जरूरी काम परे ले ही घर ले बाहिर निकलना होय। हाँ, प्लांट के ड्यूटी ला तो नइ छोड़ सकन। सबो सावधानी के पालन कर के विपरीत काल ले सुरक्षित हावँन। अब चउमास शुरू होगे हे अउ लाकडाउन घलो खतम होगे तब बने राहत हे अउ लोग- लइकामन के मन मा उमंग हे।


*घाम घमुर्री जी बिट्टागे।*

*ऊपर अउ कोरोना आगे।।*

*रहन कलेचुप घर मा भइया।*

*नहीं थोरको ता ता थइया।।*


तुँहर कोती का हालचाल हे ? बताहू।बाउत होगे? पानी बने गिरत हे? खच्चित चिट्ठी लिखहू। जाने बर मन ललसावत हे।


*खेत खार नाँगर बखर, का बाउत के हाल।*

*देख ताक रइहू बने, कोरोना के काल।।*


सहीं मा बरसा ऋतु बड़ आनंद देथे मितान।बड़े- बड़े कवि मन इफरात लिखे हें चउमासा उपर।बरसा मा नारी के बिरही रूप के वरनन हा मन मा एक पीरा भर देथे। देखौ,  विरहिणी के मन के गोठ ला कइसे लिखे हे कवि हा-


*बड़ गड़ गड़ गरजत,*

 *चम चम चमकत,*

*करिया बादर,*

*जब बरसै।*

*दिन संग धनी बिन,*

*गुजरै गिन गिन,*

*हाय! कहौं का,*

*मन तरसै।।*

*बस के तँय अंतस,*

*पिया कहाँ हस,*

*मन हे बेबस,*

*काय करौं।*

*ये चिंउ चिंउ चिरई,*

*पानी गिरई,*

*कइसे मँय हर,*

*धीर धरौं।।*


शहर मा तो खेती किसानी ले दुरिहा रहिथँन मितान। फेर ननपन के गाँव मा बिताय समय के सुरता आथे। जेठ के सिराती अउ असाड़ के शुरुआती मा चउमासा ले निपटे बर केउ किसम के उपाय करे बर धर लँय। खेती किसानी के तैयारी मा कमिया- किसान मन मगन हो जावँय । आजो गांव गवई मन मा इही माहौल दिखत होहीं।


*पैरा भरत हवैं परसार, कोनो बोवत बारी।*

*नाँगर बइला के तैयारी, बाँधत हवैं झिपारी।।*


*काँटा खूँटी बीन- बीन के, साफ करत हें डोली।*

*अउ छान्ही छावत हे कोन्हो, उजड़े झन घर खोली।।*


गाँव मा सब बने होही? जेठ के तपिस मा जीव जगत मुरझाय कस होगे रहिस ।अब असाड़ आ गेहे मितान। घाम मा घमाय अउ झांझ मा झोलाय अउ लाहकत जीव मन अब थीर पावत हें।

रहि रहि के झड़ी ले जेन सुक्खा तरिया डबरी हें ओ मन मा अब पानी माढ़े बर धर ले होहीं।अउ सुरुज के ताप ले अउँटे अउ अब मतलाय मटियाहा  पानी वाले तरिया मन घलो बरसा  ले धीरे-धीरे भरे ला धर ले होहीं।चिरई - चुरगुन मन के टोंटा घलो अब तर होवत होही। बोर कुआं के पातर होय जल स्रोत मन बने ओगरे पझरे बर धर लें होहीं। काबर मानसून ए बखत समय ले पहिली पहूँच के बरोबर बरसत हे। एसो के चउमासा सबो तनी सुखदाई रइही, अइसे भरोसा हे।देखौ तो-


*पल्हरा ऊपर पल्हरा आगे।*

*बादर चारों कोती छागे।।*

*हवा गरेरा तको उमड़गे।*

*अमली आमा जामुन झरगे।।*


गाँव के बात सोचत - सोचत असाड़ के दिन के सुरता मन मा समावत हे -


*लगत झड़ी हे मानसून के।**

*कमरा खुमरी रखत तून के।।*

*बरदी मा गरुवा अब जाही।*

*ग्वाला बँसरी बाँस सुनाही।।*


मितान! लइका मन ला घलो असाड़ के दिन अनोखा लागथे। प्रकृति के बदलत रंग के संग मगन होत मन उँकर खुशी मा उछलत रहिथे।अगोरा रहिथे ए बेरा के ।अँगना मा ओरवाती के टपक, मोरी के गोदगोदा अउ गली मा पानी के धार घात प्रिय हे ये मन ला।घमाय लइकई जीव बरसा के आनंद ले बर अकुलावत रहिथे।काँचा-चिखला माटी अउ पानी मा उँकर किसम - किसम के खेलकूद। 


*ओरवाती हर चुहत हे, देख अँगना भाय पानी।*

*गोदगोदा मा खड़े हे नानकुन लइका नदानी।।*

*बड़ बबा बरजत हवै रे, झन नहा तबियत बिगड़ही।*

*तोर दाई देखही ते,संग मोरो बर बिफड़ही।।*

*हे कहाँ लइका ह मानत, हाँस बड़ चिल्लात हावै।*

*जोर जब बिजुरी ह कड़कै, भाग परछी दौड़ आवै।।*


मितान! इही बरसात के दिन ननपन मा आल्हा गीत सुने के मजा घलो लेवन। फेर अब वो दिन नँदागे हवै अइसे लागथे ।

एक बानगी सुरता मा आवत हे आल्हा के,


*बीर उदल हर बैरी मन बर, निमगा होगे हावै काल।*

*पीट - पीट के मार- मार के , कर दे हावै बारा हाल।।*


*चौसठ जोगनी अउ पुरखा ला, सुमिरत आल्हा बारंबार ।*

*छोड़ँव नहीं कहत बैरी ला, लहू पिही मोरे तलवार।।*


मितान,इहों शहर मा अब पहिली जइसे रौनक नइ रहिगे। बेरोजगारी अति हे। काम धाम शुन्य हे। 


 बारिस मा शहर के हाल घलो बेहाल रहिथे।चिकना- चिकना सड़क पानी मा बूड़ जथे। जाम नाली ले गली- मोहल्ला मा पानी के निकासी नइ होय धरै। पानी के बहाव क्षेत्र मन अतिक्रमण के शिकार हें। सरकारी मशीनरी अउ ठेकेदार अपन तरीका ले काम करथे। फेर पेपर अउ पब्लिक के हल्का- गुल्ला ले धक्कापेल होवत रहिथे। इहों के जिनगी अब पहिली जइसे नइ रहिगे हे ।कोरोना के मार सबो कोती नजर आवत हे। भगवान जल्दी सब ला ठीक ठाक करै।रोजी- रोटी के हाल संसो मा डारे के लइक हे।लोगन कलपत हें।


*रोजी रोटी हाथ हर, देवव तुम सरकार।*

*जनता ला व्याकुल करत, मँहगाई के मार।।*

*मँहगाई के, मार गजब हे, बेकारी हे।*

*काम धाम बिन, भटकत शिक्षित, नर नारी हे।।*

*देख उपेक्षा, हिरदे होवत, बोटी बोटी।*

*उद्यम धंधा, बिन अब कइसे, मिलही रोटी।।*


महूँ का बात मा फदक गेंव मितान? बरसा के सुग्घर गोठ होवत रहिस।मँय समस्या गिनाय ला धर लेंव।

बात असाड़ के होवत रहिस-


*आय असाड़ नदी नरवा छलके बरसे जब अब्बड़ पानी।*

*प्यास बुझै भुइयाँ हरियावय जंगल झाड़ उल्होवय धानी।।*

*वाह! मितान बड़े निकता दिन कोयल के सुन मीठ जुबानी।*

*जीव जनावर हे खुश इंदर ढोल बजात करै मनमानी।।*


मोर भिलाई शहर के हरियाली जग जानत हे मितान।मँय भागमानी आँव कि इहाँ भिलाई इस्पात संयंत्र के सुग्घर बसाय नगर के निवासी हरँव। पेड़ पौधा, बाग - बगीचा इहाँ के विशेषता हरे। मोर निवास के चारों कोती सघन पेड़ पौधा अउ हरियाली ले मन सदा प्रसन्न रहिथे। 


घनघोर बरसा, हवा गरेरा के चलना,घर मा बिजली के चले जाना अउ अइसन मा घोर अँधियार मा आसमानी बिजली के कड़कना चमकना, कभू कभू  रात के दृश्य ला बिकट डरावना कर देथे।एक दिन तो 

कीड़ा - मकोड़ा के आवाज अउ अध जगा नींद भयानक होगे।दृश्य अभो आँखी मा हे, 


*कड़-कड़-कड़ बड़, कड़कत लउकत,*

*सर सर सर सर , चलत पवन हर।*


*झरर झरर झर, बरसत जल हर,*

*अगन लगत अस, तड़पत तन हर।*


*छमक छमक छम, कउन चलत झम,* 

*बजत गजब बड़, जस पयजन हर।*


*धक् धक् धक् धक्, धड़कत उर हर,*

*डर डर अड़बड़, झझकत मन हर।।* 


मोर कवि मन के भाव ला का बतावव मितान। घर मा बइठे - बइठे कल्पना लोक मा गिंजरत रहिथँव।अभी के बेरा बाहिर गिंजरे के इजाजत नइ दय, तब कलम मोर सँगवारी बने हे ।एकर संग मोर खूब जमत हे ।दया मया राखे रइहू ।खच्चित पाती भेजहू। 


*कोरोना के काल गुजरही, जाही दुख के बेरा।*

*हरदम जीते हे मनखे हर, आही नवा सवेरा।।*

*नेव मया के हमर मितानी, अमर हमेशा रइही।*

*सुख दुख के संगी रहिबो हम, समय कहानी कइही।।* 


मितान, गाँव मा सब झन ला मोर राम राम। फूल ददा अउ फूल दाई ला पायलगी कही देहौ मोर कोती ले।लइका मन ला शुभाशीष, मया दुलार अउ संगी जहूँरिया मन ला जोहार ।अगोरा मा। 


                        *तुँहर मितान*

                 बलराम चंद्राकर भिलाई

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